Zen Mind, Beginner’s Mind

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Shunryu Suzuki
ज़ेन मेडिटेशन और प्रैक्टिस के बारे में अहम बातें

दो लफ्जों में
ज़ेन माइंड, बिगिनर्स माइंड (1970),ज़ेन बुद्धिज्म के बारे में शुरुआती जानकारी देती है। इस समरी में आप जानेंगे कि ज़ेन सिर्फ एक  प्रैक्टिस नहीं, बल्कि जिंदगी की फिलॉसफी भी है। यह हमें प्रेजेंट मोमेंट. से कनेक्शन बनाए रखते हुए बैठने, सांस लेने और ऑब्जर्व करना बताती है।

यह किनके लिये है?
- ओवरअचीवर्स (उम्मीद से ज्यादा हासिल करने वाले) और परफेक्शनिस्ट के लिए
- योगा, ज़ेन या मेडिटेशन के स्टूडेंट्स के लिए
- बैलेंस बनाकर रखने वालों के लिए

लेखक के बारे में
शुनरियू सुज़ुकी जापानी मोंक थे जो 1954 में यूनाइटेड स्टेट्स आये। उन्होंने द सैन फ्रांसिस्को ज़ेन सेंटर बनाने के साथ, बहुत सारे स्टूडेंट को शिक्षित किया और "इंक्लूडिंग ब्रांचिंग स्टीम इन द डार्कनेस" जैसे टोपिक्स पर कई किताबें लिखीं।

ज़ेन मेडिटेशन पोस्चर अपने आप में एक प्रैक्टिस है लेकिन इसके गहरे मायने हैं।
क्या आप स्ट्रेस्ड और फिक्रबंद रहते हैं। आज की मॉडर्न जिंदगी में हम बड़ी आसानी से भाग दौड़ में फंस जाते हैं जिससे बचना नामुमकिन सा लगता है। हम लगातार ईमेल्स और काम, सोशल इवेंट्स और रिलेशनशिप, फिटनेस और वेट गोल के दलदल का सामना करते रहते हैं। हम इन सब चीजों में बैलेंस बनाकर एक परफेक्ट हाई अचीवर बनने की कोशिश करते हैं।

लेकिन अगर यह सारी चीज़ें इस तरह नहीं होनी चाहिए तो? सोसाइटी की प्रायोरिटी, सोसाइटी में स्टेटस हासिल करने, पैसे कमाने और कोई उहदा हासिल करने का गोल सिर्फ एक मिसगाइडेंस हो तो? अगर आप उन कामों पर फोकस कर सकें जो आपको पीस और सेटिस्फेक्शन प्रोवाइड करते हैं, उसके अलावा और कोई मकसद ना हो तो?इसके अलावा इस समरी मे आप जानेंगे कि नोंनडुऐलिटी क्या का होता है। प्योर एक्टिविटी का मकसद क्या है औरक्यों एक बुरा घोड़ा अच्छे घोड़े से बेहतर हो सकता है।

कॉन्फिडेंट और खुश रहने के लिए आजकल के मॉडर्न गुरु कुछ खास तरह के पोस्चर ( मिसाल के तौर पर जब आप फोटो खिंचा रहे होते हैं तो एक खास किस्म का पोज़ दे रहे होते हैं वैसे ही मेडिटेशन में अलग-अलग पोस्टर होते हैं) को प्रमोट करते हैं। दिलचस्प बात यह है, कि ज़ेन बुद्धिज्म भी ऐसा ही करता है।

ज़ेन मेडिटेशन करते वक्त जो पोस्चर अपनाया जाता है वह स्पिरिचुअलिटी को बढ़ाता है, सिर्फ इतना ही नहीं कुछ खास तरह के पोस्चर में सारी मेडिटेशन प्रैक्टिस आ जाती है, और यह ऑटोमेटिकली आपके दिमाग को एक स्प्रिचुअल माहौल में ले जाता है।इस प्रैक्टिस का मकसद एक खास पोजीशन में बैठना होता है, लेकिन आखिर यह पोजीशन है क्या?

पैर क्रॉस करके, दाहिना पांव बाएं पैर की जांघ पर रखिए और बायां पांव दाहिने पैर की जांघ पर रखिए, अपने रीड की हड्डी सीधी और ठोड़ी (चिन) थोड़ी सी नीचे झुकी हुई रखकर, लोटस पोजिशन में बैठिये है।

आपके नाफ के नीचे का हिस्सा, जोकि बॉडी का सेंटर है उसका रुख़ नीचे पर की तरफ हो होना चाहिए। यह स्टेप स्टेबिलिटी में मददगार है।यह टेक्निक पूरी तरीके से प्रैग्मैटिक यानि व्यवहारिक नहीं है। इस लोटस मेडिटेशन का एक सिंबॉलिक मतलब है जो जिंदगी और मौत के रिश्ते से जुड़ा है।

खास तौर पर इसका मतलब नॉनडुलिटी से है, मतलब कोई भी चीज अलग नहीं है, इस दुनिया में मौजूद हर चीज और हर जान में एक पार्टिकल है। लोग सोचते हैं कि हमारे पास दो पैर हैं लेकिन लोटस पोजीशन में, वह दो पैर एक हो जाते हैं और पता नहीं चलता कौन सा दाहिना है और कौन सा बयां।

नॉनडुलिटी का कॉन्सेप्ट इसलिए जरूरी है क्योंकि ज़ेन नज़रिए के हर पहलू पर यह लागू होता है। इसलिए जिंदगी और मौत की कोई मौजूदगी नहीं है। आप मर जाते हैं, लेकिन हमेशा के लिए इस ब्रह्मांड में रहते हैं। आपकी जान चली जाती है, लेकिन मरते नहीं हैं। आपका शरीर और मन खत्म होता है, आत्मा नहीं।इस तरह के कॉन्ट्रैडिक्शन (जैसे कि जिंदगी और मौत), इस आसान आइडिया से एक कर दिए जाते हैं, जिसे ज़ेन कहा जाता है।

सांस लेने की ज़ेन प्रैक्टिस, वक्त और जगह के एहसास को खत्म करके हमें हमारे असल स्वरूप से मिलाती है।
बहुत सारे लोग अपनी हार्ट बीट भी नहीं नोटिस करते हैं, लेकिन इस तरह के बेसिक लाइफ प्रोसेस नोटिस करना बहुत ही फायदेमंद हो सकता है। ज़ेन ब्रीथिंग हमें हमारे असली स्वरूप (मिसाल के तौर पर इंसान का असली स्वरूप उसका जिस्म और दिमाग नहीं बल्कि आत्मा है) के बारे में अवेयर करती है।

यह प्रैक्टिस हमारा ध्यान हमारी सांसों की तरफ खींचती है। इस प्रैक्टिस में अपने अंदर लिए जाने वाली और बाहर निकालने वाली हवा को फॉलो करना या उस पर ध्यान देना होता है। इस प्रोसेस को ध्यान से नोटिस करने पर हमें एहसास होता है कि दुनिया एक है।

और हमारा गला एक दरवाजा है, जो हवा के पार होने के लिए खुलता है। इसका मतलब हमारे अंदर और बाहर की दुनिया एक है, जो सांसों के फ़्लो से जुड़ी हुई है। यह प्रैक्टिस सिखाती है कि हमें "मैं" और "दूसरे" की सोच छोड़ देनी चाहिए। ज़ेन के हिसाब से, जो कुछ भी मौजूद है वह सांस की स्पीड ही है, जिसमें हमारा बुद्व या हमारा असली स्वरूप शामिल है।यह गहरी चीज है, लेकिन ज़ेन ब्रीथिंग इससे भी आगे की बात है जिसमें वक्त और जगह का एहसास खत्म हो जाता है। आखिरकार जब मेडिटेशन के हमारी आंखों के सामने से यह दुनिया गायब सी हो जाती है, तो हमारी यादें और हमारे आसपास का माहौल, वक्त इन सब का एहसास खत्म हो जाता है।

मान लीजिए कि कोई काम है जो आपको दिन में करना है यहां "दिन में" एक आर्बिट्रेरी मतलब अपनी तरफ से बनाया हुआ कांसेप्ट है। असल में वह काम आप किसी दूसरे काम के करने या न करने के बाद करेंगे और इस तरीके से मिनट भी हमारी सांसों की तरह बिना किसी फर्क के चलता रहता है।बार-बार, हम सिर्फ सांसों के अंदर जाने और बाहर निकलने का ही एहसास करते हैं। 

जिंदगी और मेडिटेशन दोनों में ही, बेहतर है कि आप कंट्रोल करने की बजाय ऑब्जर्व करें।

वेस्टर्न सोसाइटी में कंट्रोल करने वालों की भरमार है, लेकिन यह पुराना और नुकसानदेह है। ज्यादातर लोग जब रिलैक्सड होते हैं तभी उनके दिमाग में बेस्ट आइडिया आते हैं।हर छोटी-छोटी चीज खुद से मैनेज करने के बजाए, थोड़ा सा पीछे खड़े होकर ऑब्जर्व कीजिए कि आपके दखलंदाजी के बगैर सिचुएशन कैसी होती है। आखिरकार यह दुनयावी उथल पुथल ह्यूमन कंट्रोल से बाहर है, इसे नहीं समझा जा सकता।

इतना ही नहीं जिंदगी और दुनिया अनअरेंज्ड और रेंडम है, इसे कंट्रोल करने की कोई भी कोशिश बेकार है। हम अपने मन का काम कराके, लोगों को कंट्रोल करने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन मेहनत करने के बावजूद यह कोशिश हमेशा नाकाम हो जाती है।असल में लोगों से अच्छा बर्ताव करवाने का एक ही तरीका है कि उन्हें शरारती, क्रेज़ी या आजाद रहने दिया जाए। अपने हिसाब से उन्हें सलाह देने की बजाए, नोटिस करते रहिए और तभी दखल दीजिए जब वह अपने या दूसरों के लिए मुश्किलें पैदा करने लगे।यह एकदम भेड़ या दूसरे एनिमल को पालने जैसा है, आप उनको जितना बड़ा ग्राउंड देंगे वह उतना ही सुकून में और सर्टिफाइड रहेंगे। अगर आप उन्हें छोटे से घेरे में बंद कर देंगे तो वह चार दिवारी कूदने की कोशिश करेंगे।

जिंदगी में कंट्रोल हमें पीछे ले जाता है, और ऐसा ही मेडिटेशन में भी होता है। अक्सर जब हम मेडिटेड करते हैं तो अपने दिमाग में आ रहे हैं ख़यलों को जबरदस्ती रोकते हैं, जो कि बिल्कुल भी कारगर नहीं है।इसके बजाय थॉट्स को ऑब्जर्व करते हुए, उन्हें आने और जाने दीजिए। याद रखिए, अपने थॉट्स को दबाने की कोशिश करना ज़ेन मेडिटेशन के लिए ठीक नहीं है। इस सिचुएशन में अपना दिमाग और कंसंट्रेशन ब्रीथिंग की तरफ ले आना कारगर रहेगा।

आप सोच रहे होंगे कि अब्जर्व करना दुनिया का सबसे आसान काम है, लेकिन आगे हम जानेंगे कि मेडिटेशन प्रैक्टिस कितनी मुश्किल हो सकती है।

मेडिटेशन में आपके सामने आने वाली मुश्किल ही आपके प्रैक्टिस को मजबूत बनाती हैं।
मेडिटेशन करते वक्त थकना, इमोशनल होना या डिस्करेज हो जाना आम बात है। लेकिन असल में यह सारी चीजें अच्छी हैं।ऐसा इसलिए है क्योंकि मेडिटेशन के दौरान की मुश्किलें, आपको आगे बढ़ने में मदद करती है। दिमाग़ को फूल और घास फूस से भरे गार्डन की तरह समझिए। घास फूस देखने में तो अजीब लगती है, लेकिन जब इन्हें निकाल कर आप फूल के आसपास लगा देते हैं, तो यह मिट्टी की क्वालिटी बढ़ा देते हैं।

इसे दूसरी तरह कहें, तो मेडिटेशन करने के लिए हर रोज 6:00 बजे उठना मुश्किल होगा। अपने आप को बेड छोड़ने के लिए मजबूर करना पड़ेगा। उसके बाद मेडिटेशन के लिए सही पोस्चर में बैठना भी आसान नहीं होगा और रीढ़ की हड्डी सीधी करके बैठना तो और भी मुश्किल होगा।हालांकि यह सारे स्ट्रगल, समंदर की लहरों की तरह सिर्फ आपके दिमाग के खयाल है, यह बार-बार आएंगे और चले जाएंगे। जैसे-जैसे आप इस तरह की लहरों से पार पाएंगे, वक्त के साथ इनकी  स्पीड भी कम होने लगेगी। अपनी प्रैक्टिस को बेहतर करने के लिये इन मुश्किलों का इस्तेमाल करके, आप बहुत जल्दी प्रोग्रेस कर सकते हैं।

कहने का मतलब है, कि मेडिटेशन में थोड़ी सी मेहनत लगती है। इंसान का दिमाग बहुत तेजी से चलता है इसलिए जरूरी है कि आप उसे शांत करने के लिए सही तरीके का इस्तेमाल करें। और आप पहले से जानते हैं कि इसका एक ही तरीका है, अपने दिमाग पर कंट्रोल पाने की कोशिश के बजाए ब्रीथिंग पर फोकस करना।शुरुआत में राहत पाने की उम्मीद रखने के बजाय आपको अपनी सांसों पर फोकस करने के लिए अपने आपको तैयार रखना चाहिए। वक्त गुजरने के साथ, आपके एफर्टस सटीक और आसान हो जाएंगे।यह सिर्फ एक एग्जांपल है, कि कैसे एफर्टस और सक्सेस को लेकर ज़ेन मेडिटेशन का नज़रिया वेस्टर्न कांसेप्ट से अलग है। अगले लेसन में आप इस फर्क के बारे में और जानेंगे।

ज़ेन मैडिटेशन में, महारत हासिल करना मकसद नहीं है, अक्सर सबसे खराब स्टूडेंट बेस्ट होता है। 

वेस्टर्न दुनिया कामयाब लोगों की इज्जत करती है, खास तौर पर उनकी जिन्हें किसी चीज़ में महारत हासिल हो जैसे कि म्यूज़ीशियंस या मैथमेटिकल जीनियस। लेकिन ज़ेन में सक्सेस के अलग मायने हैं।ज़ेन किसी चीज में महारत हासिल करने के बजाए सब्र और कंटिन्यूटी (किसी काम को करने की प्रैक्टिस लगातार करते रहना) को तर्जीह देता है। ज़ेन की किताबों से एक एग्जांपल लीजिये। संयुक्तागामा सूत्र में अच्छे और बुरे घोड़े की बात की गई है। अच्छे घोड़े अपने मालिक की मर्जी के हिसाब से चलते हैं जबकि ऐसा करने के लिए बुरे घोड़ों को कोड़ मारने पड़ते हैं।

बहुत सारे लोग अपने आप अच्छे घोड़े बनना चाहते हैं, लेकिन ज़ेन का मकसद यह नहीं है। ज़ेन का मकसद, बिना आसान या मुश्किल की फिक्र किये प्रैक्टिस करते रहना है।नतीजतन, सबसे खराब स्टूडेंट्स ज़ेन में सबसे बेहतर होते हैं। क्योंकि यह स्टूडेंट्स ज़्यादा मुश्किलों से बाहर निकलते हैं, दिमाग को डिसिप्लिन करने और स्किल सीखने के लिए इन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।मिसाल के तौर पर मान लीजिए वह कैलिग्राफर्स जिसमें नेचुरल टैलेंट होता है वह बहुत तेजी से आगे बढ़ते हैं लेकिन एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद उसकी प्रोग्रेस थम जाती है। यहां से आगे बढ़ने के लिए उन्हें ढेर सारी प्रैक्टिस की जरूरत होती है और चुंकि उन्होंने कभी प्रैक्टिस नहीं की होती इसलिए अक्सर वह हार मान जाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ, वह कैलीग्राफर्स जिन्होंने शुरुआत से प्रैक्टिस की हो वह ऐसे मुश्किलों से निकलना जानते हैं। इसलिए जब वह कोई चैलेंज फेस करते हैं, तो रुकते नहीं। और ज़ेन भी यही सिखाता है कि आप की नाकामी कामयाबी में और कामयाबी नाकामी में बदल सकती है।ज़ेन में वेस्टर्न सोसाइटी के लिए सिर्फ एक सीख नहीं है, आगे आने वाले लेसंस में हम और भी चीजेंजानेंगे।

ज़ेन को फॉलो करना कोई एक्साइटमेंट या अचीवमेंट की बात नहीं है।
आजकल लोग ज्यादा या कम उस तरह की इंफॉर्मेशन या इंटरटेनमेंट के आदि हो गए हैं जिसमें उन्हें एक्साइटमेंट मिले। लेकिन ज़ेन इससे उलट लाइफस्टाइल की वकालत करता है।यह कोई शॉक की बात नहीं है, लेकिन ज़ेन फॉलो करना कोई एक्साइटमेंट नहीं है। ब्लॉकबस्टर पार्टीज, गैलरी ओपनिंग, डिनर डेट जैसी चीजों से ज़ेन का कोई लेना देना नहीं है। हालांकि इसे खुद में शामिल करने के बजाए, ज़ेन इसका विरोध करता है। ज़ेन का मकसद रोजमर्रा के उन कामों पर फोकस करना है जो जरूरी तौर पर होते हैं जैसे कि खाना, सफाई करना, काम करना और बोलना।

इन कामों में एक्साइटमेंट और बेचैनी महसूस करने के बजाए ज़ेन दिमाग की शांति और खुशी को बढ़ावा देता है। मॉडर्न दुनिया में यह थोड़ा सा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि यहां प्रोफेशनल और पर्सनल दोनों ही लाइफ में इंगेजमेंट और रिस्पांसिबिलिटी होती है।लेकिन हमें इसके लिए एक्साइटमेंट का शिकार होने की जरूरत नहीं है हम जिंदगी के हर पहलू में शांत दिमाग से हिस्सा ले सकते हैं।

और सिर्फ ज़ेन को लेकर एक्साइटेड रहना भी कोई हल नहीं है। बहुत सारे यंग ज़ेन मेडिटेटर इन्हीं हालातों का सामना करते हैं, वह सोचते हैं कि सब कुछ छोड़ कर बची हुयी जिंदगी, वह पहाड़ों में मेडिटेशन करते हुए गुजारेंगे। लेकिन ज़्यादा मुश्किल और ज्यादा अच्छा अपनी नॉर्मल लाइफ से जुड़े होते हुए, एक घंटा डेली मेडिटेशन करना है।

ज़ेन का मकसद नतीजे पर पहुंचना नहीं है। हमें यह समझने में मुश्किल होती है। जब हम किसी काम को शुरू करते हैं, तो हमारा मकसद पैसा, नाम और शोहरत जैसा कुछ हासिल करना हो जाता है।ज़ेन में, किसी काम को करने के पीछे की नियत कुछ हासिल करने की नहीं होती। यह काम सफाई करने से खाना बनाने तक, आर्ट बनाने से मेडिटेशन करने तक कुछ भी हो सकता है। मकसद उन चीजों से छुटकारा पाना है जो आप नहीं कर रहे हैं (मतलब ध्यान उस काम पर रखना है जो आप मौजूदा वक्त में कर रहे हैं)।

अगर आप मेडिटेशन करके प्राउड महसूस करते हैं, तो इसे खत्म कर दीजिए, इसी तरह ना उम्मीदी को भी दूर करिए। जिसके लिये आप बैठे हैं सिर्फ वह काम इंपॉर्टेंट है।

ज़ेन प्योर एक्टिविटी की खोज पर ज़ोर देता है, जिसका मतलब हर चीज की गहराई में जाना, दूसरों की मदद करना है। 

क्या आप पूरे वक्त फिक्र में डूबे होने की वजह से रिलैक्स होने के लिए, लंबी वॉक पर गए हैं?यह सिर्फ एक एग्जांपल है कि कैसे दिमाग में चल रहे थॉट्स हमें ढंग से जिंदगी नहीं जीने देते। इस कशमकश से निकलने के लिए, ज़ेन एक बेहतरीन तरीका है। ऐसा इसलिए क्योंकि ज़ेन किसी भी काम में प्योरली इंगेज होने की प्रैक्टिस है।

दूसरी तरह कहा जा सकता है कि किसी भी काम में बिना गैरजरूरी थॉट्स के, ज़ेन उस काम को पूरी तरीके से करने पर जोर देता है(जैसे हम किसी काम को करते वक्त उसके नतीजे से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगा लेते हैं, ज़ेन इस उम्मीद को गैर जरूरी थॉट कहता है मतलब सिर्फ काम को करने पर फोकस किया जाए)। यही सही तरीका है, क्योंकि जब हम अपने काम के नतीजे के बारे में सोचने लगते हैं- एग्जांपल के तौर पर, अगर एक बुक लिखी जानी है, तो उससे पहले ही हम सोचने लगते हैं कि अच्छी होगी या बुरी और इस सोच से जुड़े जज़्बात हम पर असर डालने लगते हैं।

और यह थॉट्स, किसी भी काम को पूरी प्योरिटी से करने में डिस्ट्रक्शन क्रिएट करते हैं। जितना आप यह सोचते हैं कि दूसरे आपके काम के बारे में क्या सोचेंगे या फिर काम का नतीजा क्या होगा, उतना ही आप उस काम की प्योरिटी से दूर होते चले जाते हैं।और इसी वजह से ज़ेन इस बात की वकालत करता है कि मौजूदा वक्त में आप जो काम कर रहे हो उसमें पूरी तरीके से डूब जाएं और एक काम करने के बाद जवाब दूसरा काम करें, तो उस वक्त पिछले से जुड़े कोई भी थॉट्स आपके दिमाग में नहीं आने चाहिए।

ज़ेन का मानना है कि सबसे बेहतरीन काम दूसरों को देना या उनकी मदद करना है। आखिरकार, इस ब्रह्मांड में हम सब एक हैं, और हम जो भी करने की कोशिश कर रहे होते हैं वह इस ब्रह्मांड का ही एक प्रोडक्ट होता है। इस बात को रियालाइज़ करके, हम समझ सकते हैं कि हमारे काम को पहचान मिलना, तारीफें मिलना इस ब्रह्मांड में बहुत छोटी चीज है।

जब हम किसी काम मन लगाकर ईमानदारी से करते हैं, तो वह काम इस ब्रह्मांड को एक फेवर होता है। यह ज़ेन का एक और फायदा है। हालांकि अगर आप इस प्रैक्टिस का इस्तेमाल कोई दुनियावी चीज़ हासिल करने के लिए या फिर दरियादिली का एहसास करने के लिए करते हैं तो यह कारगर नहीं होंगी।

यही ज़ेन की मिस्ट्री है, जो गहरे मायने की वकालत करती है और इसे सही या गलत जैसे छोटे शब्दों से नहीं समझा जा सकता।

कुल मिलाकर
ज़ेन मेडिटेशन कुछ हासिल करने के लिए नहीं है, यहां तक कि खुशियां भी नहीं। यह अपनी सांसों पर ध्यान देने और बिना किसी डिस्ट्रक्शन के रोजमर्रा के सिंपल कामों को करने की वकालत करता है।

 

अच्छे और बुरे की अपनी समझ पर, हर चीज मत तौलिए।

हम सोचते हैं कि कुछ चीजें अच्छी हैं और कुछ चीजें बुरी, लेकिन यह कंसेप्ट बहुत लिमिटेड है। यह मायने नहीं रखता कि कोई चीज अच्छी है या बुरी।  बिना अपना जजमेंट दिए कोई काम अच्छे से करने की एबिलिटी होना ही मायने रखता है। और यही पीस (सुकून) की सिंपल सी डेफिनेशन है।

 

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