The Miracle of Mindfulness

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The Miracle of Mindfulness

Thich Nhat Hanh
ध्यान के अभ्यास का परिचय

दो लफ्जों में
द मिरेकल ऑफ माइंडफुलनेस (1975) किताब बताती है कि कैसे प्राचीन बौद्ध ध्यानकला हमारे जीवन और सुख में बढ़ोतरी कर सकती है। अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी के उदाहरणों के द्वारा इस पुस्तक के पाठ हमें सिखाते हैं कि कैसे हम अपने वर्तमान को बेहतर बना सकते हैं और दोबारा ज़िंदगी के चमत्कारों को नमन कर सकते हैं। 

यह किताब किसके लिए है
- उस व्यक्ति के लिए जो तनावरहित होने का नुस्खा जानना चाहता है। 
- उनके लिए जो बौद्ध धर्म को करीब से जानना-समझना चाहते हैं। 
- गहन विचारक जो ज़िंदगी की प्रकृति के बारे में एक ताजे दृष्टिकोण के साथ सोचना चाहते हैं। 

लेखक के बारे में
थिख हैट हान एक जेन (बौद्धिक जीवन कला) मास्टर, विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, कवि और शांति कार्यकर्ता हैं। उन्हें उनकी प्रभावी शिक्षाओं के साथ ही साथ शांति तथा चेतना के विषय पर लिखी लोकप्रिय किताबों के कारण दुनियाभर में जाना जाता है। मार्टिन लूथर किंग ने उन्हें "शांति और अहिंसा का दूत" कहा था।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
क्या आप इस पल को जी रहे हैं या फिर आप भविष्य के सपनों में खोये हुए हैं, कि- भविष्य में चीजें कैसी होंगी। भविष्य में क्या बेहतर होने वाला है। या फिर आप यह सोचकर परेशान हैं कि कल क्या होगा? हममें से ज्यादातर लोगों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि हमें हमेशा अपने भविष्य के बारे में सजग रहना चाहिए। लेकिन भविष्य की यह सजग सोच कब चिंता में बदल जाती है? इस किताब में आप जानेंगे कि कैसे हममे से ज्यादातर लोग अपने भविष्य के ख्यालों में या फिर बीती हुई बातों में ही इतना उलझे हुए हैं कि हम अपनी वास्तविक ज़िंदगी को जीना ही भूलते जा रहे हैं। 

तो चलिए लेखक हान के साथ एक ऐसे सफ़र पर चलते हैं जहां हम सीखेंगे कि कैसे ध्यान लगाने की बौद्धिक कला से हम अपनी इस परिस्थिति को बदल सकते हैं ताकी हम वर्तमान को जी-भरकर जी सकें। इसमें आगे हम जानेंगे कि कैसे हमें अपनी ज़िंदगी की छोटी-छोटी चीजों को लेकर परमात्मा का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जैसे- अपने शरीर के लिए, वातावरण के लिए और अपने मस्तिष्क की अवचेतना के लिए। 

ध्यान के सूक्ष्म नियमों और बौद्धिक दर्शनशास्त्र की चौंधियाती अंतर्दृष्टि के साथ ही साथ आप जानेंगे कि कैसे कल के बजाय आज के लिए जीना चाहिए। 

 

- मस्तिष्क से बुरी मानसिकता को निकालने का दिमागी तरीका 

- अपने को एक कंकण के बराबर समझने की मानसिकता कैसे आपको ज़िंदगी की अहमियत समझा सकती है

- संभवत: क्यों आपने अपनी सम्पूर्ण ज़िंदगी गलत तरीके से श्वसन करते हुए गुजारी है?

ज़िंदगी का हरेक पल अपने वर्तमान काम पर ध्यान देकर गुजारिए
1940 के दशक के दौरान जब लेखक हान, ह्यू नगर (वियतनाम) के टू ह्यू पगोडा मठ में एक नौसिखिये संत हुआ करते थे, तो उन्हें अक्सर सर्द जाड़ों के दिनों में रसोई में खड़े होकर अन्य 100 बौद्ध भिक्षुओं के जूठे बर्तन धुलने का कठिन कार्य दिया जाता था। यह कार्य इस बात के कारण और भी मुश्किल था कि उन्हें इस्तेमाल करने के लिए किसी प्रकार का कोई साबुन नहीं दिया जाता था- केवल राख, धान का भूसा और ठंडा पानी उपलब्ध था। 

इसके कुछ समय बाद मठ की रसोई में गरम पानी, साबुन और जूने की सुविधा उपलब्ध हो गई। अब नौसिखिये भिक्षु जल्दी से बर्तन धूल लेते हैं और उसके बाद एक चाय की प्याली के साथ आराम से बैठ जाते हैं। 

पर हैरानी की बात तो यह है कि इन आधुनिक बदलावों को सुधार मानने के बजाय लेखक इन चीजों को आज के बर्तन धुलने वाले नौसिखिये भिक्षुओं के लिए एक समस्या मानता है। 

मगर ऐसा क्यों?

क्योंकि उन्हें लगता है केवल इसलिए बर्तन धुलना क्योंकि आप उन्हें धुलना चाहते हैं, इस काम को देखने का गलत नजरिया है। इसका सही तरीका है, बर्तनों को केवल उनको धोने की खातिर धुलना । 

अगर हम बर्तन धुलने के इस काम को एक उबाऊ धरेलू काम के रूप में लेते हैं जिसे कैसे भी करके हमें बस यह सोचकर निपटाना है कि इसके बाद हमें चाय मिलने वाली है तो संभवत: हम बर्तनो को बर्तनों को धुलने की खातिर नहीं धुल रहें हैं। इसके अलावा, इस काम को करते वक्त हम पूर्णत: सजग नहीं होंगे। इस तरह से, एक बर्तन धुलने की चौकी में बैठे हुए समय बीतने की इकछा करके हम ज़िंदगी जैसी एक आश्चर्य से भरी हुई चीज को नहीं जान सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दशा में न हम अपने शरीर, न अपने विचारों और न ही अपनी शारीरिक गतियों के प्रति सजग हैं जिन्हें हम बर्तन धुलने के उन महत्वपूर्ण पलों में अनुभव कर रहे हैं। 

इसके बजाय काम करते हुए भी हम, चाय पीते हुए आराम से बैठने के सपने देख रहें होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो कुल मिलाकर आप बर्तन धुल ही नहीं रहे हैं। खैर, इसके बाद जब आप असल में उस चाय की प्याली को पीने जाएंगे तो फिर भी आपका दिमाग दूसरी चीजों में लगा रहेगा । आप अपनी चाय की चुसकियों का बहुत ही कम स्वाद ले पाएंगे। इसका मतलब आप दोबारा आप वर्तमान से कटकर भविष्य में जीने लगेंगे और आप ईमानदारी से वर्तमान का एक भी पल जीने से वंचित रह जाओगे। 

पर इसका एक बेहतर इलाज है- चेतना का सूत्र। यह एक प्राचीन बौद्ध सूत्र है जो हमें बताता है कि किसी पल हम जो कुछ भी काम कर रहे हैं हमें उस काम के प्रति पूरी तरह चेतन और सजग रहना चाहिए। इस विचार के बारे में आगे के पाठों में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं।

सजगता का अभ्यास एक सजग सांस के साथ शुरू कीजिए
सजगता का मतलब यह निश्चित करना है कि एक दिए समय में आपकी चेतना भविष्य या वर्तमान के बजाय पूरी तरह से वर्तमान पर केंद्रित है। हालांकि हममें से कई लोग अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी को जीते वक्त सजग होने की पूरी कोशिश करते हैं मगर भटकाव बहुत तेजी से आकर हमारी सजगता को भंग कर देते हैं। बर्तन धोते वक्त बर्तनों पर ध्यान लगाकर संतुष्ट होने के बजाय हमारा ध्यान तुरंत ही अपनी व्यक्तिगत समस्याओं, परिवारिक मुद्दों और दफ्तर के कामों पर चला जाता है। तो परेशानियों से भरी इस दुनिया में कैसे हम अपनी सजगता को बरकरार रखकर सरलता से वर्तमान के पल में जी सकते हैं? 

अतुलनीय रूप से, इस लक्ष्य को पाने में हमारा सांस लेने का तरीका हमारी मदद कर सकता है! 

जब हम अपने मन को वर्तमान पर केंद्रित करने में सफल नहीं हो पाते हैं तो हमारे विचार छिटकना और प्रकीरणित होना शुरू हो जाते हैं, जिसके कारण हम ज़िंदगी पर ध्यान देने और उसका आनंद लेने से वंचित रह जाते हैं। सौभाग्य से हमारे पास 'श्वसन्न' नाम का एक ऐसा साधन है जिसकी सहायता से हम विचारों के इस बिखराव पर लगाम लगा सकते हैं। अपनी साँसों को एक ऐसी पुलिया की भांति समझिए जो आपकी चेतना को वर्तमान के साथ जोड़ती है और आपके बिखरे हुए विचारों को वापस आपके शरीर के साथ । 

जब भी आपको लगे कि आपका मन वर्तमान पल से दूर जा रहा है तो अपने मन को एक हल्की-गहरी सांस के साथ नियंत्रित करने की कोशिश कीजिए। जब आप यह क्रिया कर रहे हों तो इस बात के प्रति सजग रहें कि किस तरह से आप सांस ले रहे हैं और किस तरह उस वक्त महसूस कर रहे हैं। सांस को अंदर खींचने की इस लंबी प्रक्रिया के बाद थोड़ा सा समय लेकर अपनी सारी सांस को बाहर छोड़िए। 

सजगता से सांस लेने की इस प्रक्रिया में आपका पेट भी अपना किरदार निभाएगा । जैसे ही आपके फेफड़ों में हवा भरने लगेगी वैसे ही आपका पेट भी उठने लगेगा। जैसे ही आप सांस अंदर लेना शुरू करेंगे आपका पेट अपने आप ही बाहर की ओर निकलना शुरू हो जाएगा और जैसे ही आपके फेफड़ों के दो-तिहाई हिस्से में हवा भर जाएगी, उसी क्षण आपका पेट दोबारा से बैठना शुरू हो जाएगा। लेकिन यह सबकुछ तभी होता है जबकि हम एक सजग और चेतन तरीके से श्वसन की क्रिया को करते हैं।

चेतना का अभ्यास करने वाले नए लोगों के लिए जमीन पर लेटकर इस क्रिया का अभ्यास करना अंत्यन्त ही लाभकारी सिद्ध होता है। पहले-पहले अपने पर अभ्यास करने का बहुत अधिक दबाव न डालें। पहली बार में एक समय पर 10 से 20 सांसें लेना पर्याप्त होता है। याद रखिए, शायद आपके फेफड़े जीवन भर गलत तरीके से श्वसन करने के कारण कमजोर हो गए हो। इसलिए शुरुआत में अगर आपके सांस भरने का वक्त आपके सांस छोड़ने के वक्त से कम हो तो भयभीत मत होइए और ना ही अपने शरीर की क्षमता से ज्यादा सांस लेने की कोशिश कीजिए। अपनी सजग श्वसन की क्रिया को धीरे-धीरे बढ़ाइए और कुछ ही हफ्तों के अभ्यास के बाद आप पाएंगे कि आपकी सांस भरने का समय और सांस छोड़ने का समय दोनों लगभग बराबर हो चुके हैं।

हफ्ते का एक दिन पूरी तरह से सजगता को समर्पित कीजिए
सजगता से भरी एक दुनिया में कोई भी इंसान प्रत्येक दिन के प्रत्येक घंटे के प्रति सजग रहेगा। दुर्भाग्य से हमारी ज़िंदगियाँ वादों और सपनों से भरी पड़ी हैं और पूरे दिनभर सजग रहना एक आम इंसान के लिए बहुत ही कठिनाई भरा काम है। इसलिए लेखक हान लोगों को सलाह देते हैं कि वे पूरे हफ्ते में एक दिन स्वयं को पूर्ण रूप से सजग रखें और उस पूरे दिन को सजगता को समर्पित करें। 

हो सकता है कि हफ्ते में एक पूरे दिन सजगता का अभ्यास करना आपको कठिनाई भरा लग सकता है पर यकीन मानिए हम सभी की ज़िंदगी में, एक अच्छे जीवन के लिए, ऐसा एक दिन जरूर होना चाहिए। और अगर आप अपने लिए इतना भी वक्त नहीं निकाल पाते हैं तो आखिरकार आप तनाव के भंवर में फंस जाते हैं। 

क्या आपको यह उत्पादक (प्रॉडकटिव) लगता है? बिल्कुल नहीं, है ना?

यह भी जरूरी है कि आप सजगता का अभ्यास हफ्ते के एक निश्चित दिन पर ही करें। इस तरह की एक साप्ताहिक दिनचर्या बना लेने से सजगता वाले दिन आपकी सजगता में एक सकारात्मक वृद्धि दिखनी शुरू हो जाएगी। 

अब जब आप सजगता का अभ्यास करने के लिए एक निश्चित दिन चुन लेते हैं तो उस दिन जब सुबह आप बिस्तर से उठते हैं तो अपने दिमाग को याद दिलाने का प्रयास कीजिए कि आज ही वह दिन है जब आपको पूरे दिन भर सजगता का अभ्यास करना है। उदाहरण के लिए, आप अपने बिस्तर की दीवार पर "आज सजगता दिवस है :)" लिखे हुए पर्चे चिपका सकते हैं। 

बिस्तर से उठने से पहले धीरे-धीरे से कुछ हल्की साँसे भरकर उठने की कोशिश करिए। जब आप अपने सुबह के नित्यकर्म करें (जैसे- अपने बाल कंघी करना) तो अपनी प्रत्येक गति का शांति और सजगता से ध्यानपूर्वक निरीक्षण कीजिए। नहाते वक्त आराम करने के लिए अपने 30 मिनट अलग से बचाकर रखें। इसके बाद अपने आप को एक ध्यानपूर्वक और धीरे तरीके से धोइए ताकि आप पूरी तरह से खुद को ताज़ातरीन और पुनर्जीवित और कर पाएं। नहाने के बाद अपने रोज़मर्रा के कामों को ध्यानपूर्वक करने में लग जाइए और उन्हें बिना ध्यान लगाए मजबूरी समझकर निबटाने के तरीके से न करें। इसके बजाय घर के कामों को किसी अनिकछा या फिर झुंझलाहट के बिना करने का प्रयास कीजिए। 

शुरुआत में पूरे दिनभर खुद को सजग रख पाना आसान नहीं होता है, इसलिए जितना हो सके इस वक्त खुद को शांत रहने दें इससे आपको काम पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। अगर अपने में गाना गुनगुनाना और किसी से बात करना आपकी सजगता में कमी लाता है तो आपको इन चीजों से भी जितनी हो सके उतनी दूरी बनाने का प्रयास करना चाहिए। 

खाना खाने के बाद एक ताज़ातरीन चाय की चुसकियों के साथ वक्त जरूर गुजारें। चाय को जल्दी-से खत्म करने के बजाय इसे आहिस्ता-आहिस्ता पियें और इस पूरे काम को सम्पूर्ण निष्ठा के साथ करें। बाकी बचे दोपहर को बगीचे में पेड़-पौधों के साथ बिताएँ या फिर सिर्फ बादलों को गुजरते हुए देखने में बिताएं। 

शाम के समय आप चाहें तो कुछ बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हैं; दोस्तों को पत्र लिख सकते हैं या फिर कुछ ऐसा कर सकते हैं जिसके लिए आमतौर पर आपकी व्यस्त दिनचर्या में समय नहीं होता। अंत में रात के वक्त खाने में भारी खाना न खाएं। वैसे बेहतर होगा कि आप रात के ध्यान को खाली पेट के साथ ही करें।

पूर्ण सजगता का अर्थ चीजों की अंतर-निर्भरता को समझना है
बौद्ध संस्कृति का एक सम्पूर्ण भाग इस बात को समझने पर आधारित है कि कैसे कुछ खास चीजें (कर्म) एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। ध्यान की प्रक्रिया के द्वारा अपनी एकाग्रता को नियंत्रित करके हम स्वयं इस अंतर-निर्भरता को देख सकते हैं। 

इसे समझने के लिए मानिए कि ज्ञान का किसी कर्म के बिना कोई कर्ता नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए- हम कभी भी केवल सुनते नहीं है, हम किसी चीज के बारे में सुनते हैं। और अगर हम क्रोधित होते हैं तो हम बेवजह क्रोधित नहीं होते, कोई ना कोई चीज होती है जो हमें क्रोधित करती है। 

ध्यान का अभ्यास करने से व्यक्ति अपने मन और शरीर पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लेता है जिससे वह कर्ता और कर्म के बीच के संबंध को भली-भांति समझ पाता है। जैसे उदाहरण के लिए अपनी साँसों के प्रति सजग रहकर हम यह जान पाते हैं कि कैसे हमारी साँसे हमारे दिमाग से जुड़ी हुई हैं और कैसे एक तरह से मन ही हमारी साँसे हैं। इसी तरह, अपने शरीर को लेकर सजग रहना इस संबंध को जानना है कि मन ही शरीर है। 

इसके साथ ही हम अपनी सजगता को श्वसन से परे बढ़ा सकते हैं और अपने शरीर को उन चीजों तक जो हमारे लिए बाहरी हैं। जब हम ऐसा करते हैं तो बाहरी चीजों का हमारा यह ज्ञान भी हमसे और हमारे मस्तिष्क से जुड़ जाता है। इसलिए चीजों के अंतर-निर्भरता का विचार भी हमारे मन का विचार बन जाता है और इस अंतर-निर्भरता का मतलब होता है कि हमारे मन का हरेक हिस्सा अपने आप में ही एक मन होता है। 

मन के उद्देश्य को बौद्धिक संस्कृति में "धर्म" कहा जाता है। इन धर्मों को मुख्यत: 5 अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है और इन श्रेणियों को "5 स्कन्ध" कहा जाता है- भावना, बोध, शारीरिक रूप, मानसिक क्रियाएं और चेतना। यद्यपि पाँचवा धर्म अन्य चार के अस्तित्व का आधार है। 

अंतर-निर्भरता का मनन करने के लिए हमें प्रत्येक धर्म में एक गहरा और ध्यानपूर्ण दृष्टिकोण होना चाहिए। इसलिए प्रत्येक धर्म की वास्तविक प्रकृति जानने के लिए और फिर अंत में उनमें से प्रत्येक को एक बडी चीज के हिस्सों के रूप में देखना, जो वास्तविकता है- और फिर अंत में यह जानना कि वास्तविकता अविभाज्य है और इसका हरेक भाग एक-दूसरे से जुड़े बिना कोई अस्तित्व नहीं रखता है। 

पहली चीज जो हमें मनन करते समय सोचनी चाहिए वह है - हमारा खुद का व्यक्तित्व । 

वास्तव में हम इन्ही पाँच धर्मों (स्कन्ध) का समन्वय हैं। इसके संबंध में मनन करने के लिए हमें अपने अंतर्मन में मौजूद पांचों धर्मों से चेतन होना चाहिए। हमें अपने मन के इन पाँच उद्देश्यों के विषय में तबतक मनन करना चाहिए जब तक कि हम स्पष्ट रूप से यह न देख पाएँ कि कैसे ये पाँच धर्म हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हुए हैं। इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि इन धर्मों के बिना हमारे जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है। इसके द्वारा हम यह समझ सकते हैं कि हम इस विशाल दुनियाँ में एक बिंदुमात्र अस्तित्व हैं। 

एक बार जब आप अंतर-निर्भरता की यह अवधारणा समझ जाते हैं तो फिर आप उन बाधाओं के पार जाने लगते हैं जो आपके बोध के मार्ग को संकुचित बनाने का काम करती हैं। इन बाधाओं के पार जाने पर आप बौद्ध संस्कृति के और भी करीब पहुँच जाते हैं।

सजगता का अभ्यास करने के लिये हमें सतर्क और पूरी तरह से जाग्रत होना चाहिए
जब हम पूर्ण सजगता के साथ बैठे हुए होते हैं तो हमारा मन और शरीर पूरी तरह से विश्राम की अवस्था में और शांत होता है। पर इस अवस्था को वह चीज मत समझिए जो कि यह है नहीं। इस तरह के विश्राम की अवस्था मन की उस अध-चेतन ढुलमुल अवस्था से काफी भिन्न है जो ऊँघने या आराम करने से उत्पन्न होती है। 

ऊंघना या विश्राम करना किसी भी प्रकार से सजगता या चेतना से संबंधित नहीं है। क्यों? क्योंकि जब हम एक विश्राम करते हैं तो हमारा मन एक धुंधली मगर आरामदायक गुफा में प्रवेश कर जाता है। हालांकि जब हम सजग होते हैं तब भी हम विश्राम की स्थिति में होते हैं मगर इस समय हम अपने क्रियाकलापों के प्रति सतर्क और जाग्रत रहते हैं। 

इसे कुछ इस तरह से देखिए । जब हम ऊंघ रहे होते हैं या विश्राम कर रहे होते हैं तो हम वास्तविकता से बचने का प्रयास कर रहे होते हैं। जबकि जब हम सजगता की अवस्था में होते हैं तो हम वास्तविकता से बचने का प्रयास नहीं करते हैं बल्कि सीधे एक गंभीर ढंग में उसका मुकाबला करते हैं। इसलिए जो व्यक्ति सजगता का अभ्यास कर रहा है उसे एक वाहन चालक के जितना सजग होना चाहिए। क्यों? क्योंकि जिस तरह से एक सुस्ती से भरा ड्राइवर दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है ठीक उसी प्रकार एक सजगताहीन अभ्यासकर्ता जो पूरी तरह जाग्रत नहीं है, प्रकीरणित विचारों से और भूलने की आदतों से भरा होगा। 

इसलिए जब भी हम सजगता का अभ्यास करें तो इस तरह सतर्क रहें जैसे कि एक सर्कस में रस्सी पर खेल दिखाने वाला व्यक्ती रहता है। हमें अपने काम यह बात ध्यान में रखकर करने चाहिए कि ध्यान में एक छोटी-सी गलती लंबी परेशानी खड़ी कर सकती है। या फिर हमें एक बाघ के जैसे होना चाहिए जो धीमे-धीमे कदमों के साथ आगे तो बढ़ रहा है मगर उसी वक्त गंभीर और पूरी तरह से सतर्क भी है। 

यह बात गौर करने वाली है कि सम्पूर्ण जाग्रति महसूस करने के लिए पहले हमें इस तरह की सतर्कता को लाना होगा। 

उन लोगों के लिए जो ध्यान के अभ्यास की इस यात्रा में अभी नए हैं, लेखक एक विशेष तरीका अपनाने की सलाह देता है: शुद्ध खोज का तरीका । 

इसका मतलब उस विचार या भाव को पहचानना और एक अच्छी भावना के साथ उसे स्वीकार करना, जिसे तुम अनुभव कर सकते हो, जैसे- क्रोध या फिर झुंजलाहट । अलग-अलग भावनाओं को अलग-अलग महत्व देने के बजाय सभी भावनाओं को एकसमान महत्व दें। उदाहरण के लिए, करुणा को ईर्ष्या से अधिक महत्व देने के बजाय दोनों भावनाओं को समान महत्व देने का प्रयास कीजिए क्योंकि आखिरकार ये दोनों भावनाएं हैं तो आपका ही अंश । याद रखिए, ध्यान का अभ्यास करते वक्त किसी भी चीज को किसी अन्य चीज के मुकाबले अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। इसलिए ध्यान के दौरान क्रोध, करुणा, एक चाय की प्याली और एक बादाम का पेड़ इनमें से हरेक चीज समान रूप से पवित्र है। 

इसलिए अपनी चुनौतीपूर्ण भावनाओं जैसे- पीड़ा और नफरत को कोमलता और इज्जत के साथ व्यवहार करना सीखिए। उनका विरोध मत कीजिए। बजाय इसके उनके साथ शांति से रहिए जैसे कि आप उनकी अंतर-निर्भरता के साथ ज़िंदगी की दूसरी चीजों पर ध्यान लगाते हैं।

स्वयं को एक कंकण या फिर एक नवजात बच्चा समझकर ध्यान लगाने की शुरुआत कीजिए
जब बात ध्यान की आती है तो ऐसी बहुत-से अभ्यास और तकनीकें हैं जिनका प्रयोग करके आप खुद सजगता के रास्ते पर ले जा सकते हैं। हालांकि ये अभ्यास काफी सरल हैं लेकिन ये वे छोटी-छोटी चीजें हैं जिनमें आपको आगे बढ़ने से पहले महारत हासिल करनी होंगी। 

पहले अभ्यास को पेबल यानि "कंकण" के नाम से जाना जाता है। 

जितना हो सके उतना शांत बैठने की कोशिश कीजिए और धीमी-धीमी और सजगता भरी हुई साँसे लीजिए। अब कल्पना कीजिए कि आप एक कंकण हैं जोकि धारा के साफ पानी में डूब रहा है। जैसे ही आप डूबते हैं तो आप खुद की गतियों को नियंत्रित करने की कोई कोशिश नहीं करते हैं। आप बस एक कोमल रेत से भरी विशेष जगह की ओर गिरने लगते हैं। यह स्थान पूर्ण विश्राम की अवस्था है। 

अपने बस ध्यान लगाईए, जब तक कि आपका मन और शरीर पूर्ण शांति की स्थिती में न आ जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो तब तक ध्यान लगाना जारी रखिए जब तक कि आप डूबते-डूबते रेत से भरे उस कोमल बिस्तर पर नहीं गिर जाते। ध्यान की इस गहरी अवचेतना में जाने के लिए आपको करीब 15 मिनट तक का समय लग सकता है। एक बार जब आप प्रसन्नता और शांति की इस अवस्था को पा लेते हैं तो इसे अपनी साँसों का निरीक्षण करते हुए पूरे आधे घंटे तक बनाए रखें। जब आप इस अवस्था में होते हैं तो भूत और भविष्य की कोई भी चीज आपको वर्तमान से जुड़ा नहीं कर सकती है। इस परमानंदपूर्ण स्थिति में आपके अंदर सारे विश्व का अस्तित्व आ जाता है और इस दशा में कोई भी चीज आपको शांति से दूर नहीं कर सकती है- ना ही आप मानव जाति को बचाने की सोचते हैं और ना ही महात्मा बुद्ध के जैसे बनने की कोशिश करते हैं। ध्यान की अवस्था में यह समझने की कोशिश कीजिए कि मानव जाति को बचाने में अपना योगदान देना और बुद्ध की भांति आप तभी बन सकते हैं जबकि आप वर्तमान पल में विशुद्ध पवित्रता पा लेते हैं। 

इसके अलावा अपने जन्म का क्षण भी याद करना आपके लिए इस अभ्यास में मददगार साबित हो सकता है। 

पद्मासन में बैठिए और अपनी साँसों के प्रति सजग होने में कुछ समय लीजिए। इसके बाद अपना ध्यान अपने जन्म के क्षण पर लगाइए। मनन कीजिए कि आपके जन्म के क्षण ने ही आपके मरण के क्षण की शुरुआत की थी। समझने का प्रयास कीजिए कि जिस क्षण जीवन पैदा होता है उसी क्षण मृत्यू की भी शुरुआत होती है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं- जीवन मृत्यू के बिना और मृत्यू जीवन के बिना। जीवन और मरण एक-दूसरे की नींव हैं और वास्तव में जीवन और मरण एक-दूसरे के समांतर हैं। इन तरह से, जिंदगी और मौत दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं बल्कि एक ही वास्तविकता के दो अलग-अलग तत्व हैं। एक बार जब हम यह बात जान लेते हैं तो हम मृत्यू के भी से आजाद हो जाते हैं। 

ध्यान एक सजग जीवन की ओर एक महत्वपूर्ण चरण है। हमारे शरीर को विश्राम की अवस्था में लाने के साथ-ही-साथ ध्यान हमारे विचारों, बोधों और भावनाओं को भी मजबूत नींव देता है। इस तरह से हम ध्यान की क्रिया के द्वारा स्वयं को सजग बनाने के साथ ही मन की शांति भी पा सकते हैं।

कुल मिला कर
बहुत बार हम वर्तमान के बहुमूल्य क्षणों को भविष्य की कल्पना में खोकर नष्ट कर देते हैं। बजाय इसके हमें वर्तमान के क्षणों को भली-भांति जीना चाहिए। सौभाग्य से, सजगता, ध्यान और धीमा और सजग श्वसन हमें सजगता और शांति जैसे ज़िंदगी के चमत्कारों को पाने में मददगार साबित हो सकता है। 

 

जब भी आप खाली बैठे हों तो हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ ध्यान जरूर करें

जब भी आप स्वयं को उठते-बैठते हुए पाएं तो उसी क्षण अपने चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान लाने का प्रयास करें। यह मुस्कान आपके चेहरे की मांसपेशियों को विश्राम करने में सहायता करेगी। ऐसी ही मुस्कान आप बुद्ध के चित्र में उनके चेहरे पर भी देख सकते हैं। अपने चारों ओर देखिए। आप बहुत सारे चीजें देखते हैं, है ना? अब उनमें से किसी ऐसी चीज पर ध्यान लगाने की कोशिश कीजिए जो कि काफी हद तक शांत है, जैसे- पौधे की कोई पत्ती, दीवार पर लगी हुई कोई तस्वीर या फिर कोई बच्चा। अब उस चीज में किसी खास बात को देखकर थोड़ा-सा मुस्कुराने का प्रयास कीजिए। इसके बाद सांस को 3 बार अंदर-बाहर लीजिए। अपनी हल्की मुस्कान को बरकरार रखते हुए उस चीज की खास बात पर ध्यान लगाने का प्रयास कीजिए- पौधे की पट्टी, तस्वीर या फिर कोई बच्चा, जिसे भी आपने ध्यान लगाने के लिए चुना है।


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