Osho
मन की शांति की तरफ ले जाती राह
दो लफ्जों में
साल 1988 में आई ये किताब ओशो की मेडिटेशन टेकनीक के बारे में जानकारी देती है। ये मेडिटेशन का ऐसा तरीका है जिसमें आपकी सेल्फ अवेयरनेस को बढ़ाने पर जोर दिया जाता है और इसके लिए कुछ क्रियाओं की मदद से आपके शरीर और दिमाग को तैयार किया जाता है। इसमें ओशो मेडिटेशन के साथ कुछ और बेसिक टेकनीक भी सिखाई गई है ताकि आपके लिए शुरुआत करने में आसानी हो।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए
• जिन लोगों को मेडिटेशन में इंट्रेस्ट है
• जो लोग ओशो के मेडिटेशन के बारे में जानना चाहते हैं
• जो लोग अपनी अवेयरनेस बढ़ाना और स्ट्रेस कम करना चाहते हैं
लेखक के बारे में
ओशो को ओशो रजनीश के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ फिलॉसॉफी की डिग्री ली। इसके बाद 1970 और 80 के दशक में एक नए तरह के मेडिटेशन, "डायनामिक मेडिटेशन" को बढ़ावा देने का काम किया। एक स्पिरिचुअल लीडर के तौर पर लोग उनको बहुत पसंद करते थे और दुनिया भर में उनके लाखों फॉलोवर्स थे। 1990 में उनका निधन हो गया।
इसमे आपके लिए क्या है?
ओशो के मेडिटेशन को पहली बार 1970 के दशक में पहचान मिली। इसकी वजह समझना बहुत आसान है। ये मेडिटेशन करने वाले लोग नाचते, गाते थे। बहुत खुश और सेक्सुअली लिबरेटेड लाइफ जीते थे। ओशो का तरीका दूसरे सभी मेडिटेशन से बहुत अलग था। जहां दूसरे तरीकों में शरीर और दिमाग की स्थिरता और एकांत पर जोर दिया जाता था वहीं ओशो हलचल और लोगों के बीच रहने पर जोर देते थे। अगर आपको भी मेडिटेशन का ये तरीका अच्छा लगता है तो आपको इस किताब की मदद लेनी चाहिए। इस किताब में आपको कुछ ऐसी तरकीबें मिलेंगी जिनसे आपके लिए शुरुआत करना आसान हो जाएगा। इसके साथ ही साथ ध्यान की एक ऐसी अप्रोच भी मिलेगी जो बाकी सबसे बहुत अलग है। इस समरी को पढ़कर आप यह भी जानेंगे कि कैसे नाचने और उछलने कूदने से आपकी अवेयरनेस बढ़ सकती है? अपने ईगो को काबू में कैसे रखें? और रोशनी और अंधेरे में मेडिटेशन करके किस तरह अपने दिमाग को शांत रखा जाता है?मेडिटेशन आपकी खुद से पहचान कराता है और आनंद की दुनिया में ले जाता है।
ओशो के मेडिटेशन को पहली बार 1970 के दशक में पहचान मिली। इसकी वजह समझना बहुत आसान है। ये मेडिटेशन करने वाले लोग नाचते, गाते थे। बहुत खुश और सेक्सुअली लिबरेटेड लाइफ जीते थे। ओशो का तरीका दूसरे सभी मेडिटेशन से बहुत अलग था। जहां दूसरे तरीकों में शरीर और दिमाग की स्थिरता और एकांत पर जोर दिया जाता था वहीं ओशो हलचल और लोगों के बीच रहने पर जोर देते थे। अगर आपको भी मेडिटेशन का ये तरीका अच्छा लगता है तो आपको इस किताब की मदद लेनी चाहिए। इस किताब में आपको कुछ ऐसी तरकीबें मिलेंगी जिनसे आपके लिए शुरुआत करना आसान हो जाएगा। इसके साथ ही साथ ध्यान की एक ऐसी अप्रोच भी मिलेगी जो बाकी सबसे बहुत अलग है। इस समरी को पढ़कर आप यह भी जानेंगे कि कैसे नाचने और उछलने कूदने से आपकी अवेयरनेस बढ़ सकती है? अपने ईगो को काबू में कैसे रखें? और रोशनी और अंधेरे में मेडिटेशन करके किस तरह अपने दिमाग को शांत रखा जाता है?
तो चलिए शुरू करते हैं!
मेडिटेशन बहुत तरह से होता है लेकिन ओशो का मेडिटेशन सेल्फ अवेयरनेस पर फोकस करता है। इसकी वजह से आपकी पॉजिटिविटी बढ़ती है और आप ज्यादा खुश होकर जीने लगते हैं। आप जो भी कर रहे हों चाहे उठे हों, बैठे हों, चल रहे हों, दौड़ रहे हों या लेटे हों ओशो के हिसाब से ये सब मेडिटेशन है अगर आप इनको करते समय अवेयर रहते हैं तो। ओशो "वॉच करने" पर जोर देते हैं। किसी चीज को वॉच करने का मतलब है कि आप अवेयर हैं। आप अपने आसपास की हर चीज पर ध्यान देते हैं। लेकिन एक वॉचर किसी भावना के साथ बहता नहीं है। आप खुशी देखते हैं, दुख देखते हैं पर उसमें डूब नहीं जाते। आप शांत और निश्चिंत रहते हैं। आपके लिए सब बाहरी बातें हैं। ये भी सच है कि ऐसा बदलाव रातोंरात नहीं होता है। इस प्रोसेस में समय लगता है। इसकी चार स्टेजेस होती हैं। पहली स्टेज में आता है फिजिकल लेवल पर अवेयरनेस बढ़ाना। शुरुआत खुद से करिए। अपनी एक्टिविटीज को ऑब्जर्व करिए। शरीर और दिमाग के कनेक्शन पर ध्यान लगाइए। दूसरी स्टेज होगी अपनी सोच पर ध्यान देना। ये स्टेप पहले वाले से थोड़ा मुश्किल है। आपके विचार तो दो मिनट के लिए आकर चले जाते हैं पर उनमें ताकत बहुत होती है। वे आपको खुश कर सकते हैं, परेशान कर सकते हैं या फिर बेचैन कर सकते हैं। अगर आप मन में आते हर विचार को लिख लें और थोड़ी देर बाद उसे पढ़ें तो आपको हैरानी होगी कि आपने ये सब भी सोचा था।
अभ्यास बढ़ने के साथ ऐसे विचार दूर होते जाते हैं। अब आता है अपनी भावनाओं और मूड को लेकर अवेयर होना। शायद ये सबसे मुश्किल काम है। हमारी भावनाएं हम पर बहुत गहरा असर डालती हैं। आपका मूड आपको और आपकी एक्टिविटीज को कंट्रोल कर सकता है। पर हमेशा याद रखिए वॉचर पर किसी चीज का असर नहीं होता। जब आप अपने शरीर, विचार और भावनाओं को लेकर जागरूक हो जाते हैं तो आप समझ पाते हैं कि ये तीनों आपस में किस तरह जुड़े हुए हैं। आप इनके कनेक्शन समझते हुए परम शांति की तरफ बढ़ने लगते हैं। जब इन तीनों का तालमेल बन जाता है तभी आप चौथी स्टेज की तरफ चल सकते हैं यानि आत्मज्ञान। ये परम आनंद की स्टेज है। इसे पाना ही किसी की आखिरी मंजिल होनी चाहिए।
सारे सवालों और चिंताओं को पीछे छोड़कर मेडिटेशन की शुरुआत करिए।
अब सवाल आता है कि आप मेडिटेशन कैसे करते हैं? ध्यान लगाने के ढेरों तरीके हैं पर इन तरीकों को ध्यान नहीं कहा जा सकता। इन तरीकों का अभ्यास करना ध्यान है। असल में आपको ध्यान करना नहीं होता बल्कि ध्यान लगाना होता है और ये बिना किसी एफर्ट के किया जाने वाला काम है। जब आप ध्यान की शुरुआत करते हैं तो आप कुछ करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जैसे-जैसे समय और आपकी अवेयरनेस बढ़ने लगते हैं आप एफर्टलेस होते चले जाते हैं। यानि आप कुछ करने की कोशिश नहीं करते सब कुछ बस अपने आप होता चला जाता है। ध्यान इसी तरह होता है। आपको ध्यान के लिए रोज 1 घंटे का समय देना चाहिए। शायद आप सोच रहे होंगे कि इतना ज्यादा वक्त किसलिए। पर जरा खुद से पूछकर देखिए 24 घंटों में 1 घंटा निकालना क्या सच में बहुत ज्यादा है?
अब मेडिटेशन के लिए एक जगह खोजिए। सबहे अच्छा तो ये रहेगा कि आप दुनिया के शोर-शराबे से दूर प्रकृति की गोद में बैठकर ध्यान लगाएं। अगर आप किसी पेड़ के नीचे बैठ सकें तो बहुत ही अच्छा रहेगा। ओशो कहते हैं कि पेड़ हमेशा ध्यान कर रहे होते हैं। हालांकि ऐसी जगह ढूंढना सबके लिए मुमकिन नहीं है। ऐसे में आप घर के अंदर ही एक शांत जगह खोज लें। अगर हो सके तो इस जगह को सिर्फ ध्यान के लिए रहने दें। वरना आप वहां जो भी एक्टिविटी करते हैं उसकी थोड़ी-बहुत एनर्जी बची रह जाती है। इसकी वजह से ध्यान साधने में मुश्किल हो सकती है। आप ये मान लीजिए कि ध्यान लगाने वाली जगह एक पवित्र जगह है। इसलिए यहां आने से पहले अपने जूते उतार दें। इसे ध्यान का पहला स्टेप ही समझ लीजिए। जूतों के साथ अपनी चिंता, परेशानियां, इच्छाएं और दूसरी सभी बातें वहीं छोड़ दें। यानि जूतों के साथ बाकी के 23 घंटे भी छोड़ दें। अपने दिल और दिमाग को तुरंत शांत कर पाना इतना आसान नहीं होगा। यही कारण है कि ओशो का ध्यान अक्सर किसी एक्टिविटी या रेचन यानि कैथार्सिस से शुरू होता है। हो सकता है आपको गुस्सा आ रहा हो। आपको किसी उदासी या परेशानी ने घेरा हो। तो क्यों न चिल्लाकर या नाच-गाकर या खुद को इस स्टेट से बाहर निकाल लिया जाए। आगे आप ऐसे ही कुछ तरीकों के बारे में पढ़ेंगे और देखेंगे कि इस तरह की एक्टिविटीज कैसे आपके मन और शरीर को ध्यान के लिए तैयार करने में मदद कर सकती हैं।
ओशो के डायनामिक मेडिटेशन में कैथार्सिस के लिए एक्टिविटी और मंत्रों की मदद ली जाती है।
ध्यान हो, अवेयरनेस हो या फिर चीजों को वॉच करना ये सब आपको शांति की तरफ ले जाते हैं। लेकिन जब दिमाग में उथल-पुथल मची हो तो भला शांति कैसे मिलेगी? ये कोई बल्ब तो है नहीं कि स्विच बंद करके बुझा दिया। ये सब शांति के रास्ते में आने वाली रुकावटें हैं जिनको दूर करना जरूरी है। एक बार जब आप रास्ता साफ कर लेते हैं तो सब कुछ आसान हो जाता है। यूनिवर्स आपके लिए बाहें फैला देता है। ओशो के एक्टिव मेडिटेशन की एक पूरी सीरीज है। पहली को ओशो डायनेमिक मेडिटेशन कहा जाता है।
ये एक घंटे का होता है और इसे पांच भागों में बांटा जाता है। पहले तीन भाग दस-दस मिनट के और आखिरी दो पंद्रह-पंद्रह मिनट के होते हैं। पहला है तेज-तेज सांसें लेना। इससे आपके शरीर को एनर्जी मिलती है। जोर-जोर से और जल्दी-जल्दी सांस लें। इस पर सारा फोकस देने की या इसे एक रिदम में करने की जरूरत भी नहीं है। इधर-उधर घूमते रहिए और सांस लेते रहिए। इस वक्त आप अपने अंदर एनर्जी भर रहे हैं। दस मिनट बाद इस एनर्जी को रिलीज करना है। इसे एक झरने की तरह बहने दें। नाचिए, गाइए, कूदिए, चिल्लाइए और मन हो तो रो भी लीजिए। यानि उस वक्त जो फील कर रहे हैं वही करना है। इसके बारे में कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं है। जो नेचुरल तरीके से होता जाए वही करना है। यही कैथार्सिस है। इन दस मिनटों में आप खुद को पूरी तरह रिलैक्स करते हैं।
तीसरे भाग में अपने हाथ ऊपर करके कूदना है। जब आपके पैर जमीन से टकराते हैं तो आपको जोर से चिल्लाना है- "हू.. हू.. हू.." यही इस ध्यान का मंत्र है। बस इतना ही। आपके दिलो-दिमाग पर किसी तरह का बोझ होगा तो ये मंत्र उसे हल्का कर देता है और आपको अगले राउंड के लिए तैयार करता है। अगले स्टेप में खुद को फ्रीज करना है। आप जैसे थे आपको वैसा ही रहना है। खांसना, हिलना-डुलना, खुजली कुछ भी नहीं करना है। जो भी हो रहा है सबको एक वॉचर की तरह ऑब्जर्व करिए। अब तक जो भी एनर्जी इकट्ठी हुई उसे शरीर में बहने दीजिए। पंद्रह मिनट के लिए बिल्कुल चुप हो जाइए। आखिरी और पांचवे कदम में आपको सेलीब्रेट करना है। झूमिए, नाचिए, खुशियां मनाइए। कुदरत को धन्यवाद दीजिए। अपने अंदर पॉजिटिविटी लाइए और बाकी के 23 घंटे इसी पॉजिटिविटी के साथ रहिए।
ओशो के एक्टिव मेडिटेशन में कैथार्सिस के बहुत से तरीके हैं।
अगले नंबर पर है कुंडलिनी मेडिटेशन। इसे डायनामिक मेडिटेशन का ही एक रूप समझ लीजिए जिसे आपने अभी पढ़ा। इसमें पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार स्टेप्स होते हैं। पहला स्टेप है शेकिंग एंड लेटिंग गो। शरीर के हर हिस्से को हिलाना-डुलाना शुरू कीजिए और एनर्जी को पैरों से ऊपर की तरफ जाने दीजिए। दूसरे स्टेप में डांस करना है। जैसा आता है वैसा डांस करें। दिमाग लगाने की जरूरत ही नहीं है। तीसरे स्टेप में आपको स्थिर रहना है। चाहें तो खड़े रहिए और चाहें तो बैठ जाइए पर इस बात का ध्यान रखिए कि आपको पूरी तरह स्टिल रहना है। अपनी आंखें बंद करके महसूस करिए कि आपके शरीर के अंदर और बाहर क्या हो रहा है। आखिरी यानि चौथे स्टेप में आंखें बंद करके लेट जाएं। बहुत से लोग मानते हैं कि दूसरे स्टेप में किए गए डांस और एक्टिविटीज की वजह से शरीर में एनर्जी बहने लगती है और हर तरह की टेंशन दूर हो जाती है। यानि वो सब जो ध्यान और अवेयरनेस में रुकावट बन सकता है। ओशो नटराज मेडिटेशन में तो डांस खुद ही मेडिटेशन बन जाता है। ये एक घंटे का प्रोसेस है जिसका पहला स्टेप 40 मिनट का डांस है। अपनी आंखें बंद करके इस तरह नाचना शुरू कीजिए जैसे आपकी दुनिया में इस पल के सिवा और कुछ है ही नहीं। आप किसी डांस कॉम्पिटीशन में नहीं हैं। इसलिए डांस आता है या नहीं इसकी कोई चिंता ही नहीं होनी चाहिए। बस झूमते रहिए, नाचते रहिए। यहां तो आपको अवेयरनेस की जरूरत भी नहीं है। जो कर रहे हैं करते रहिए। दूसरा स्टेप 20 मिनट का है। आंखें बंद रखकर लेट जाइए और पूरी तरह से शांत हो जाइए। इसके बाद पांच मिनट सेलीब्रेट किया जाता है और अपनी खुशी जताई जाती है। आखिर में आता है ओशो नादब्रह्म ध्यान। वैसे तो इसे सुबह-सुबह करने का चलन है पर इसे किसी भी समय किया जाए तो इसका फायदा मिलता है। हालांकि इसे खाली पेट करने के लिए कहा जाता है। इसका पहला स्टेप 30 मिनट का होता है। आप किसी आरामदायक तरीके से इसकी शुरुआत करते हैं। अब इतनी जोर से गुनगुनाना शुरू करें कि दूसरे भी सुन सकें। ऐसे गुनगुनाएं कि कंपन महसूस होने लगे। जैसे आपका शरीर पूरी तरह खाली है और इसमें से तरंगें आ जा रही हैं। आपको बस इनको आते जाते हुए महसूस करना है।
दूसरे स्टेप में साढ़े सात मिनट के दो भाग हैं। पहले भाग में आप हथेलियों को अपनी नाभि पर ऊपर की तरफ रखें और फिर उन्हें गोल घुमाते हुए बाहर की तरफ ले जाएं। अपनी एनर्जी दुनिया को दें। दूसरे भाग में हथेलियों को नीचे की तरफ रखें और गोल घुमाने का तरीका उल्टा कर दें। यानि अब हथेलियां आपकी नाभि पर आकर मिलेंगी। अब आप ब्रह्मांड से एनर्जी ले रहे हैं। इसे खुद में आता हुआ महसूस करें। अब 15 मिनट के लिए पूरी तरह स्थिर और शांत रहें।
आप मेडिटेशन को दिन के हर काम से जोड़ सकते हैं।
आपका हर काम मेडिटेशन बन सकता है। अगर सही तरह से करें तो जॉगिंग और स्विमिंग भी। हम इनको ऑटोमेटिक मोड पर करते हैं। अगर थोड़ी अवेयरनेस के साथ करें तो ये भी मेडिटेशन बन सकते हैं। आपको अपने हर मूवमेंट का एहसास होना चाहिए। ओशो ने तो सिगरेट पीने की आदत को ही ध्यान में बदलकर एक आदमी को सिगरेट छोड़ने में मदद की। इसमें हर एक स्टेप को गहराई से देखा गया। सिगरेट को पैकेट से बाहर निकालना, सिगरेट के सिरे को पैकेट से टकराना, इसे जलाना, धुआं खींचना और छोड़ना। इस तरह ये पैसिव से एक्टिव आदत बन गई। तीन महीने बाद उस आदमी ने सिगरेट छोड़ दी। अवेयरनेस लाकर और ऑटोमेटिक मोड से बाहर निकलकर हम सालों पुरानी बुरी आदतों से छुटकारा पा सकते हैं।
अगर आप मेडिटेशन के बारे में थोड़ा भी जानते हैं तो आपने ये जरूर सुना होगा कि अपनी सांसों पर ध्यान देना बहुत फायदेमंद होता है। सही तरह से ब्रीद करके आप मेडिटेशन का ज्यादा फायदा उठा सकते हैं। मेडिटेशन की एक टेकनीक है विपश्यना। ये शायद ध्यान का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है क्योंकि ओशो इसे ध्यान का सार कहते हैं। विपश्यना पूरी तरह से अवेयरनेस पर आधारित है। इस बात पर ध्यान दीजिए कि आप अपने शरीर को कैसे चलाते हैं। खाते हुए अपने मुंह में खाना कैसे लाते हैं। आप कैसे चलते हैं। अपनी भावनाओं और मूड को लेकर अवेयर रहें। जब आप इनको बदलता या आता जाता महसूस करें इन पर ध्यान दें। इनको जज नहीं करना है। इनको रोकना भी नहीं है। बस एलर्ट रहना है। अपनी सांसों पर ध्यान दीजिए। जब आप सांस लेते और छोड़ते हैं तो क्या आपके अपने सीने या पेट में हलचल होती हैं? ज्यादातर पश्चिमी देशों में आदमी अपने सीने से सांस लेते हैं। क्योंकि उन्हें ये बताया गया है कि चौड़ा सीना अच्छा होता है और बाहर निकला हुआ पेट बुरा होता है। लेकिन बहुत से पूर्वी देशों में ऐसा नहीं है। जापान का उदाहरण ले लीजिए। लाफिंग बुद्ध को देखिए। इनका सीना छोटा है। पेट बड़ा और बाहर निकला हुआ है। वे खुश नजर आते हैं। आप कैसे सांस लेते हैं ये आपकी आदत हो सकती है। लेकिन जब आप आराम कर रहे होते हैं या लगभग सो जाने वाले होते हैं तो आप अपने पेट से सांस लेते हैं अपने सीने से नहीं। अगली बार इस पर ध्यान दें। क्या आपको इस तरह ज्यादा आराम महसूस होता है? ये एक और टेकनीक है जिसे आप किसी भी समय इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे आपकी अवेयरनेस भी बढ़ती है। तनाव दूर होता है। असल में आप अपने सिर से लेकर पैरों तक एक के बाद एक ध्यान देते हैं। हर हिस्से की मसल को खींचते हैं, कुछ देर रुकते हैं और फिर ढीला छोड़ देते हैं। हम दिनभर में जाने अनजाने दिल और दिमाग को बहुत तनाव दे देते हैं। ये आसान सी कसरत इस आदत को दूर करने में मदद करती है।
तेज रोशनी और अंधेरे में मेडिटेशन करने और ध्यान देकर सुनने से आपको एक अच्छा वॉचर बनने में मदद मिलती है।
हमारी जिंदगी में अक्सर ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल उलट हों। जैसे खुशी और दुख या फिर रोशनी और अंधेरा। इनसे बचा नहीं जा सकता। मेडिटेशन की मदद से हम इनसे अच्छी तरह गुजरना सीखते हैं। हमें ये समझ आता है कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो बस थोड़ी देर तक ही रहती है। अच्छाई के साथ बुराई जुड़ी है और सुख के साथ दुख जुड़ा है। लेकिन कुछ भी हमेशा टिका नहीं रहता। लेकिन इनको वॉच करना हमेशा बनाए रखा जा सकता है। तेज रोशनी और अंधेरा दोनों ही हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं। एक दिन इसे आजमाकर देखिए। साफ आसमान के नीचे लेट जाइए। इसके नीले फैलाव को देखिए। आपकी आंखों में पानी आए तो आने दें। लेकिन रुकें ना। आसमान के बारे में सोचना भी नहीं है। बस ध्यान से इसे देखते जाना है। महसूस करिए कि आसमान और आपके बीच कोई फर्क ही नहीं रहा। आप भी आसमान बन चुके हैं। आप यही अंधेरे में भी कर सकते हैं। सही तरीका तो ये होगा कि इसे शहर की चकाचौंध से दूर बिल्कुल घुप अंधेरे में करें। बिल्कुल वैसा जैसा पहाड़ों पर होता है जब आसमान पूरी तरह साफ हो। एकटक देखते रहिए। ये सुनने में जितना आसान लगता है करने में उससे कहीं ज्यादा आसान है। बिना किसी चीज को देख पाए आंखें खुली रखना अजीब लग सकता है। लेकिन अंधेरे में घूरते रहिए। आपकी आंखों में पानी आने लगेगा और आपको थोड़ी परेशानी भी होगी। फिर एक वक्त आएगा जब आपके और अंधेरे के बीच कोई फर्क नहीं रहेगा। आप अंधेरे के साथ एक हो जाएंगे। इसमें कोई बुराई नहीं है। हम रोशनी को पॉजिटिव और अंधेरे को नेगेटिव मानते हैं।
जबकि इस ब्रह्मांड में अंधेरा वो समय है जब कायाकल्प हो जाता है। रोशनी में हम काम करके थक जाते हैं तब अंधेरे में आराम करके ही हमारी ताकत वापस आती है। यहां तक कि बैठने और सुनने जैसे आसान से काम भी हमारे जीने के तरीके को बदल सकते हैं। ये सब ज़ेन कस्टम की बुनियादी बातें हैं। आप आज सिर्फ एक घंटे के लिए इसे कर लें तो कोई फायदा नहीं मिलेगा। लेकिन अगर आप इसे कुछ महीनों तक रोजाना करते रहेंगे तो आप सही ट्रैक पर आ जाएंगे क्योंकि बिना कुछ किए यूं ही बैठे रहना दुनिया के सबसे मुश्किल कामों में से एक है। पर आप कोशिश करते रहिए। चाहे आप कहीं भी बैठे हों ये तरीका काम कर सकता है। फिर भी सबसे अच्छा यही रहेगा कि आप ऐसी जगह चुनें जहां आपको तरह-तरह की चीजें देखकर भटकने का चांस न हो। आप एक सादी, सफेद दीवार के सामने बैठ सकते हैं। ये अभ्यास 30 मिनट तक करें। किसी एक खास चीज पर फोकस न करते हुए बस एलर्ट रहें।
मेडिटेशन में रुकावट बनने वाली चीजों की जानकारी होना भी जरूरी है।
ओशो मेडिटेशन की कोई भी टेकनीक मुश्किल नहीं है। फिर भी कुछ लोगों को इसमें परेशानी आ सकती है। हमारा दिमाग मुश्किल चीजें ही चाहता है। उसे तरह-तरह की उलझनों में रहना पसंद है। दिमाग को आसान चीजें या सीधे जवाब अच्छे नहीं लगते। भला दीवार के सामने टकटकी लगाने और नाचने से भी कोई फायदा हो सकता है? हमारे दिमाग की ताकत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन ये आत्मज्ञान के रास्ते में रुकावट भी बन सकता है। इसमें ईगो आ सकता है। ईगो हमें सिखाता है कि हम ज्यादा पैसे कमाएं, समाज में रुतबा बनाएं। लेकिन ये कभी भी ऐसा नहीं कहेगा कि आप कुछ देर शांत रहकर देखें। समाज भी यूं खाली बैठे रहने की बात नहीं करता। इसलिए ईगो और मन की हलचल, मेडिटेशन के रास्ते में दो सबसे बड़ी रुकावटें बन जाती हैं। मेडिटेशन में भी विरोधाभास हैं। क्योंकि हर सच में एक पैराडॉक्स छिपा है। मेडिटेशन का सार है खुद पर कंट्रोल बना लेना। पर इस वक्त आपका दिमाग आपको कंट्रोल कर रहा है। आपका ईगो, एम्बिशन, मूड, विचार, भावनाएं इन सबने आपको जकड़ रखा है। आप अपनी जिंदगी इनके हिसाब से जी रहे हैं। ये सब आपको तनाव दे रहे हैं और आपके सुख, शांति और खुशी का रास्ता रोककर खड़े हैं। आप चुप या शांत बैठकर कुछ भी कंट्रोल नहीं कर सकते हैं पर मेडिटेशन आपको ये सब सिखा देता है।
जब आप अवेयर होने लगते हैं और हर चीज में डूबे बिना उसे ऊपरी तौर पर देखते रहते हैं तो आप गुस्से या ऐसी किसी भी फीलिंग से प्रभावित नहीं होते। चाहे जो भी घटना हो आपको हिला नहीं पाती। आप दूसरी किसी चीज को इस बात की इजाजत नहीं देते कि वो आपके ऊपर असर डाले या आपको कठपुतली बनाकर नचाए। भले ही आप ईगो को दूर करने और मेडिटेशन के महत्व को पहचान जाते हैं फिर भी आपको ये समझने में मुश्किल आती है कि बड़बड़ कर रहे मन को कैसे चुप कराना है। जब भी आप बैठकर ध्यान लगाने और अवेयर होने की कोशिश करते हैं तो ढेर सारे विचार मंडराने लगते हैं और आपका ध्यान बंट जाता है। ये बिल्कुल स्वाभाविक है और आपको इस बात से थोड़ी राहत मिलेगी कि ज्यादातर लोगों को इस पर काबू पाने में समय लगता है। ज़ेन मेडिटेशन का अभ्यास करने वाले आगे बढ़ने से पहले महीनों और सालों तक का समय तो सिर्फ लिसनिंग प्रेक्टिस को ही दे देते हैं। तब जाकर उनको यकीन आता है कि वो सही तरह सुन पाना सीख रहे हैं।
आप मेडिटेशन के बारे में उसी तरह सोचें जैसे आप प्यार को लेकर सोचते हैं तो आपको आसानी हो सकती है। प्यार को शब्दों में नहीं बताया जा सकता। जब आप सचमुच किसी को प्यार करने लग जाते हैं तो आप इसके बारे में कैसे बताते हैं? मेडिटेशन बिल्कुल ऐसा ही है क्योंकि वॉचर के पास शब्द ही नहीं होते। वो चीजों को जज नहीं करता न ही उनकी परिभाषाएं बनाता है। वो तो बस उनको ऑब्जर्व करता है। जब आप शब्दों की मदद लेने लगते हैं तो इसका मतलब अब आप चीजों को वॉच नहीं कर रहे। आप उनसे प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए प्यार की तरह सोचें। आप खुद को बिना सिर वाले इंसान की तरह भी देख सकते हैं, हवा में उड़ता या फिर पानी की तरह बहता हुआ महसूस कर सकते हैं। आप ये भी महसूस कर सकते हैं कि आपके दिल में ढेर सारी रोशनी समाती जा रही है। आखिर यही तो वो जगह है जहां आपको पहुंचना है।
कुल मिलाकर
मेडिटेशन एक अभ्यास है जो आप कभी भी, कहीं भी कर सकते हैं चाहे आप कुछ भी कर रहे हों। इसके लिए बस अवेयरनेस की जरूरत होती है। हालांकि कुछ लोगों के लिए मेडिटेशन थोड़ा मुश्किल भी हो सकता है पर ऐसे तरीके हैं जो अवेयरनेस बढ़ाने, ईगो को कम करने और मन की हलचल को शांत करने में मदद करते हैं। ओशो एक्टिव मेडिटेशन को आपकी मदद के लिए ही बनाया गया है ताकि आप तरह-तरह की भावनाओं और विचारों की जकड़न से खुद को आजाद कर सकें। इसके बाद आपको शांति मिलती है। इसमें कुछ एक्टिविटीज और मंत्रों की मदद से आप शरीर और दिमाग को बाहरी शोरगुल से आजाद कर देते हैं। आप इस तरह थक जाते हैं कि बेकार के सवालों या चिंताओं पर ध्यान ही नहीं दे पाते और बस खुद ब खुद ध्यान में लीन होते चले जाते हैं।
क्या करें
आपको ये अभ्यास पूरे एक महीने तक करना है। रोजाना एक घंटे के लिए बस सुनिए। सुनने के सिवा कुछ मत करिए। ये बड़ी बेतुकी सी सलाह लग सकती है। लेकिन जिन लोगों ने इस अभ्यास को किया है उनको इसके नतीजे साफ दिखाई दिए हैं और उन्होंने अपनी जिंदगी का बाकी हिस्सा बहुत शांति और सुकून से बिताया है।
Medicinoz एप पर आप सुन रहे थे Meditation By Osho.
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