Yancey Strickler
दुनिया और भी प्यारी और दयालु बन सकती है
दो लफ्ज़ों में
साल 2019 में एक किताब रिलीज़ हुई जिसका नाम “This Could Be Our Future” है. इस किताब को अमेरिकन लेखक “Yancey Strickler” ने लिखा है. किताब में हमारे भविष्य के बारे में फैक्ट्स को ध्यान रखते हुए बात की गयी है. इस किताब के माध्यम से लेखक ने बताया है कि फ्यूचर की दुनिया को सिर्फ और सिर्फ पैसा ही रूल नहीं करने वाला है. अब आपके दिमाग में आ रहा होगा कि हम तो पैसों के पीछे भाग रहे हैं. अगर पैसा फ्यूचर को रूल नहीं करेगा तो फिर फ्यूचर को क्या रूल करेगा? इस सवाल के जवाब काफी ज्यादा आसान हैं. लेकिन आपको इन्हें जानने के लिए इस किताब की समरी को सुनना या फिर पढ़ना पड़ेगा. इस किताब में “Yancey Strickler” ने पैसों से पड़ने वाले दुष्प्रभाव के ऊपर भी बातें की हैं. उन्होंने बताया है कि किस तरह पैसों की बेइंतेहा भूख से इस सोसाइटी पर काफी ज्यादा बुरे प्रभाव पड़ रहे हैं. इसी के साथ ही साथ इस किताब में सभी प्रॉब्लम से बचने के लिए उठाए जा सकने वाले कदम को लेकर भी बात की गयी है.
ये किताब किसके लिए है
- क्रिटिकल कैपिटलिस्ट
- बिजनेस ओनर्स जिन्हें कुछ सीखने का मन हो
- ऐसा कोई भी जिसे लाइफ का असली मतलब मालुम करना हो
लेखक के बारे में
इस किताब का लेखन “Yancey Strickler” ने किया है. लेखक होने के साथ ही साथ “Yancey Strickler” एक पब्लिक स्पीकर भी हैं. साल 2015 में विश्व आर्थिक मंच की तरफ से उन्हें एक युवा वैश्विक नेता के रूप में मान्यता दी गयी थी.
This Could Be Our Future By Yancey Strickler
ये कहना गलत नहीं होगा कि आज का दौर ही पैसों का दौर है. ये सुनने में अच्छा नहीं लगता है. लेकिन ये गलत भी नहीं है. कई दशकों से हमारी ज़िन्दगी इसी पथ में चल रही है कि पैसों से बड़ा इस दुनिया में कुछ भी नहीं है. इंसान की सफलता और असफलता को भी हम उसके बैंक में पड़े पैसों से नापते हैं. काफी हद तक सफलता को पैसों से नापना उतना गलत भी नहीं है. लेकिन हमें कभी भी मानवीय मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए. अगर हमारे दिमाग में सिर्फ और सिर्फ पैसा ही रहेगा तो फिर हम अपने पोटेंशियल पर लगाम लगा देंगे. हम ज्ञान और सामाज की शक्ति पर भरोसा करना बंद कर देंगे. पैसा ज़रूरी है लेकिन उससे ज्यादा ज़रूरी है कि हम रिश्तों की अहमियत को भी समझने की भी कोशिश करते रहें. यहां हमें इस बात को भी समझना चाहिए कि इंसान बस पैसा ही प्रोड्यूस नहीं करता है. वो सबसे बड़ी चीज़ को भी प्रोड्यूस करता है,जिसे इंसानियत कहते हैं. इसलिए किताब की समरी में आपको पता चलेगा कि हम पैसों के बियोंड क्या देख सकते हैं? इसी के साथ ही साथ आपको ये भी पता चलेगा कि इंसान का फ्यूचर वर्ल्ड कैसा होने वाला है? अगर आप भी इस जर्नी से गुज़रना चाहते हैं तो फिर इस किताब की समरी को पूरी और ध्यान से सुनिए.
तो चलिए शुरू करते हैं!
हमारी जिंदगी को गवर्न कौन से पिलर कर रहे हैं?
यहां पर लेखक “Yancey Strickler” अपनी और अपने दो दोस्तों की कहानी को साझा कर रहे हैं. वो साल 2005 का एक किस्सा शेयर कर रहे हैं. वो बताते हैं कि उस दौर में जब वो अपने स्टार्ट-अप का आईडिया लोगों को बताते थे. तो अधिकाँश लोग उन्हें और उनके दोस्तों को पागल कहा करते थे. लेखक एक ऐसे प्लेटफ़ॉर्म का निर्माण करना चाहते थे. जहाँ पर लोग दूसरे लोगों को उनके आर्ट को पूरा करने के लिए पैसा दिया करेंगे. तब लोग कहा करते थे कि ‘ऐसे दुनिया नहीं चला करती है.’
वो लोग जो कहा करते थे, वो काफी हद तक सही भी था. तब क्राउड फंडिंग नाम की चीज़ मार्केट में नहीं आई थी. लेकिन हम किसी भी तरह काफी मशक्कत के बाद साल 2009 में अपनी कम्पनी किकस्टार्टर को लॉन्च कर ही दिया था. इसके पीछे का रीजन यही था कि हमें अपने ऊपर कुछ ज्यादा ही भरोसा था. हमने लोगों को बस उतना ही सुना था जिससे हम अपने काम को बेहतर कर सकें. आज इस प्लेटफ़ॉर्म को 10 सालों से भी ज्यादा का समय हो गया है. इस प्लेटफ़ॉर्म से लाखों लोग जुड़े हुए हैं. आज ये दौर भी आ गया है जब इस प्लेटफ़ॉर्म में लाखों क्रिएटिव आईडिया आते हैं.
फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन ना सिर्फ उन्हीं में से एक है बल्कि ये काफी ज्यादा महत्वपूर्ण फैक्टर भी है. किकस्टार्टर कम्पनी ने ह्यूमन थॉट के बारे में भी काफी कुछ बता दिया है. कई बार ऐसा होता है कि हम सोचते हैं कि दुनिया ऐसे काम करती है. लेकिन वैसा बिलकुल भी नहीं है. कई बार हमारे विचार सच्चाई को नहीं दिखाते हैं. जैसा कि किकस्टार्टर को शुरू करने से पहले लोगों ने कहा था कि ये आईडिया वर्क नहीं करेगा. लेकिन हुआ कुछ और ही उस आईडिया ने तो कमाल ही कर दिया है. यहां लेखक ये भी कहते हैं कि मनी मैक्सीमाईजेशन बहुत महत्वपूर्ण फैक्टर है. लेकिन ये फैक्टर आपके विचारों को गाइड नहीं कर सकता है. लेखक कहते हैं कि आपको अपने विचारों से स्वतंत्र रहना चाहिए, उन्हें आज़ाद रखने की कोशिश करिए. आज के समय में जितने भी बिजनेस चल रहे हैं. वो सब एक ही मोटिव पर काम करते हैं. वो मोटिव यही है कि उनके शेयर होल्डर्स को कितना ज्यादा प्रॉफिट हो सकें? जब उनका फंडा ही यही है. तो वो इस लक्ष्य में कामयाब भी हो जाते हैं.
वास्तव में ये सच्चाई है कि आप जितने भी सेक्टर देख रहे हैं. सभी पैसा कमाने के लिए ही बनाये गये हैं. इससे बुरा इफेक्ट यही क्रिएट हो रहा है कि लोग अपने पर्सनल लाइफ बर्बाद करते जा रहे हैं. ये भी काफी हद तक सही है कि पैसों के लिए काम करना चाहिए, लेकिन क्या सिर्फ और सिर्फपैसों के लिए ही काम करना चाहिए? इस सवाल का जवाब आपको खुद तलाशने की कोशिश भी करनी ही चाहिए.
यह विश्वास कि फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन ही एक-मात्र तर्कसंगत विकल्प है, इतना गलत है कि लालच का माहौल पैदा हो गया है
यहां लेखक उदाहरण के लिए 1776 का किस्सा सुनाते हैं. वो बताते हैं कि तब एक मशहूर इकोनॉमिस्ट हुआ करते थे. उनका नाम एडम स्मिथ था. आपको बता दें कि एडम स्मिथ को फादर ऑफ़ मॉडर्न कैपिटलिज्म के नाम से भी जाना जाता है. एडम स्मिथ ने तर्क दिया था कि समाज सबसे अच्छा काम करता है, जब हर कोई अपने स्वार्थ के अनुसार कार्य करता है. इसी के साथ ही साथ उन्होंने कहा था कि जब भी आप कसाई के पास जाते हैं. तब आपको उसके ऊपर भरोसा दिखाना चाहिए. इसके पीछे का रीजन साफ़ है कि वो आपको अच्छा मास काटकर देगा क्योंकि इसी से उसे अपने परिवार का पेट भी भरना है.
लेकिन स्मिथ ने अपनी बातों में ये नहीं कहा था कि सेल्फ इंटरेस्ट और मैक्सिमम प्रॉफिट एक ही चीज़ है. उन्होंने ये भी नहीं कहा था कि कसाई को अपने स्वार्थ के लिए मीट के रेट्स बढ़ा देना चाहिए.
लेकिन आज के व्यवसाय ऐसे ही चल रहे हैं. जहाँ पर फ्री मार्केट इकॉनमी के नाम पर यही सब हो रहा है.
इस चैप्टर का मुख्य सन्देश यही है कि जिस फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन को लोगों ने तर्कसंगत विकल्प माना हुआ है. उसी ने लालच और अविश्वास का माहौल बनाया हुआ है.
अब आपके मन में ये सवाल भी आ रहा होगा कि आखिर हमने यहां तक का सफर कैसे तय किया है?
यहां पर अब लेखक कोल्ड वॉर का किस्सा शेयर कर रहे हैं. शीत युद्ध के दौरान, रैंड कॉर्पोरेशन - एक वैश्विक-नीति थिंक टैंक.
उन्होंने एक नये तरीके से सभी को रूबरू करवाया-
परमाणु युग के लिए संघर्ष की रणनीतियों का परीक्षण: गेम थ्योरी.
गेम थ्योरी गणना करने का एक तरीका है.
इसका उद्देश्य लोगों से अधिक से अधिक पता लगाने में मदद करना है.
अब लेखक रैंड कारपोरेशन के एक फेमस सीनेरियो के बारे में बताने जा रहे हैं. इसे प्रिजनर डिलेमा भी कहा जाता है. कल्पना कीजिये कि आपको और आपके पार्टनर को पुलिस ने किसी क्राइम के लिए अरेस्ट कर लिया है. आप दोनों ने मिलकर उस क्राइम को किया था. पुलिस आपसे अलग से पूछताछ करती है. आप जानते हैं कि यदि आप अपने साथी से धोखा करते हैं तो आपको रिहा कर दिया जाएगा. और वह तीन साल के लिये बन्दीगृह में जाएगा. अगर वह बात करता है और आप चुप रहते हैं, तो आप तीन वर्षों के लिए जेल जाएंगे. अगर आप दोनों बात करते हैं तो फिर दोनों को दो-दो साल की सज़ा होगी. लेकिन अगर आप दोनों कुछ नहीं बोलते हैं तो आप दोनों को बस एक-एक साल की सजा होगी.
ऐसी सिचुएशन में आप क्या करेंगे?
इस सिचुएशन में आइडल यही होना चाहिए कि दोनों चुप रहें और एक साल की सजा को स्वीकार कर लें. लेकिन रैंड कारपोरेशन के एक्सपर्ट्स के हिसाब से आपकी स्ट्रेटजी होनी चाहिए कि आप प्रिजनर डिलेमा तकनीक की मदद से अपने साथी को बाहर निकलवा सकें. इसी के साथ ही साथ अगर आपका साथी भी आपके प्रति वफादार रहता है. तो हो सकता है कि आप भी बाहर निकल जाएँ.
रैंड कारपोरेशन ने सबसे पहले इस फार्मूला का आविष्कार किया था. इसे वो लोग हाइपर रेशनल वे ऑफ़ थिंकिंग कहते हैं. इस थिंकिंग के हिसाब से आपको अभी फायदा होना चाहिए उसके लिए भले ही आपको कोई भी कीमत चुकानी पड़े.
आज के दौर के बिजनेस में भी आप इस गेम थ्योरी को देख पा रहे होंगे. आज के समय में भी लोग तत्कालीन फायदे को ही तरजीह देते हैं. उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि वो इसकी क्या कीमत चुका रहे हैं. अब आपको इंसानियत की वैल्यू काफी ज्यादा कम होती हुई नज़र भी आ रही होगी. गेम थ्योरी इस बात की और ईशारा भी करती है कि सामाज में लालच और इर्ष्या काफी ज्यादा बढ़ चुकी हैं. इसलिए अब आपको समझ लेना चाहिए कि प्रॉफिट मैक्सीमाईजेशन के काफी ज्यादा नुकसान भी हैं. जिससे हमारा भविष्य ज़रूर खराब हो जायेगा.
कैसे फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन ने हर चीज़ की सूरत को बदल दिया है?
अब हम आपको साल 2017 की बात बताने जा रहे हैं. ये किस्सा सिंगर सैम हंट का है. साल 2017 में उन्होंने एक गाना रिलीज किया था. उस गाने का नाम “बॉडी लाइक अ बैक रोड” था. उस गाने ने उस दौर के सभी रिकार्ड्स को पानी पिला दिया था. इसका मतलब है कि वो काफी ज्यादा हिट हुआ था. उस समय भी ये सवाल उठा था कि आखिर ये हुआ कैसे? क्या वो गाना सबसे अच्छा गाना था? या फिर सैम से बड़ा सिंगर कभी पैदा ही नहीं हुआ था?
लेकिन ऐसा नहीं था. वो गाना भी बाकी गानों की ही तरह था. एक एवरेज सा सुनाई देने वाला गाना, जिसे आप सुनकर भूल सकते थे. लेकिन फिर उसके सफल होने के पीछे आखिर क्या वजह थी? इसका जवाब आपको हम बताने वाले हैं. आपको बता दें कि फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन की वजह से ही वो गाना रातों-रात सुपरहिट हो गया था. इस चैप्टर का सार यही है कि फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन ने हर चीज़ की सूरत बदल दी है. वो हर चीज़ को एक जैसा बना दिया है.
जब रेडियो की शुरुआत हुई थी. तब अमेरिका के हर गाँव, शहर में अपना-अपना स्टेशन हुआ करता था. यहां तक कि ये नियम भी थे कि एक कम्पनी के पास दो से ज्यादा स्टेशन नहीं हो सकते थे. लेकिन इसके बाद समय में बदलाव आया, साल 1943 के बाद जब बड़े रेडियो नेटवर्क मार्केट में आये, तब उन्होंने सरकार के ऊपर फ्रीडम ऑफ़ स्पीच का हवाला देते हुए दबाव बनाना शुरू किया. इसके बाद नियमों में काफी बदलाव आए, दो की जगह 5 चैनलों की अनुमति मिल गई. साल 1984 बीतते-बीतते ये संख्या 5 से 40 कब हो गई किसी को भी पता ही नहीं चला. इसके बाद तो और भी कमाल की बात हुई, साल 1996 आते-आते चैनल्स की संख्या ही हट गई थी. अब सरकार को कोई लेना-देना ही नहीं था कि किस नेटवर्क के पास कितने चैनल हैं?
इसका परिणाम क्या हुआ?
इसका फलस्वरूप छोटे-छोटे चैनल्स का मार्केट से सफाया हो गया था. अब बस दो ही बड़े ग्रुप्स बचे हुए थे. जिन्होंने सारे चैनल्स पर अपना मालिकाना हक हासिल कर लिया था. मार्केट में ऑटोनॉमी आ चुकी थी.
पहले अमेरिकन रेडियो जनता की आवाज़ हुआ करते थे. लेकिन आज वो व्यवसाय का केंद्र बन चुके हैं. पहले रेडियो में सामाजिक मुद्दों को उठाया जाता था. लेकिन आज बस एड्स के लिए गाने चलाए जाते हैं. अमेरिकन रेडियो स्टेशन पर कॉर्पोरेट्स का कब्ज़ा हो चुका है. आज के दौर में मनी ड्रिवेन सोच के कारण ही ये समय आ गया है कि 60 प्रतीशत से ज्यादा हॉलीवुड फ़िल्में सीक्वल होती हैं. 1970 के बाद से ये देखा जाने लगा था कि ज्यादातर प्रोडयूसर्स फिल्मों को इन्वेस्टमेंट की तरह देखने लगे थे. इसलिए ही उसके बाद से आपको पर्दे पर सुपर हीरोज की कहानियां नज़र आने लगी थीं. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन ने एंटरटेनमेंट से क्रिएटिविटी को निकालकर बाहर फेंक दिया है. हम जहां भी देखते हैं, हमारी लाइफ फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन द्वारा शासित हो रही है. और इससे क्रिएटिविटी, डाइवर्सिटी भी खत्म होती जा रही है.
क्या फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन की वजह से अमीर और ज्यादा अमीर हो रहे हैं?
1970 के बाद से जब व्यापार और वित्त कानूनों में ढील दी गई तो एक नए तरह के लोगों ने दुनिया पर कब्जा कर लिया था. उन्हें लेखक ने ‘मैक्सीमाईजिंग क्लास’ का नाम दिया है.
ये बैंकर, दलाल, सलाहकार और "रणनीतिकार" थे जो कला के विशेषज्ञ बन गए थे. इनका काम ही धन निकालना और लागत कम करना था. ये फायदे के लिए ही जिंदगी को जिया करते थे. ये सिर्फ और सिर्फ बिजनेस को बढ़ाकर शेयर होल्डर्स की जेब भरने का काम करते थे. इसके लिए ये लोगों की तनख्वाह तक काटा करते थे. जिसे आज लोग कॉस्ट कटिंग का नाम भी देते हैं.
इस चैप्टर का मुख्य संदेश यही है कि फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन से बस अमीर लोग और भी ज्यादा अमीर हुए हैं. बाकी सामान्य लोगों की जिंदगी में बस गरीबी ही आई है.
जब कभी कोई कम्पनी प्रॉफिट में जाती है. तो क्रेडिट लेने के मालिक आगे आ जाते हैं. लेकिन ये कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि कम्पनी को प्रॉफिट में ले जाने के पीछे वहां के कर्मचारियों का बहुत बड़ा हाँथ होता है. बिना वर्कर्स के कोई भी कम्पनी जिंदा ही नहीं रह सकती है. लेकिन फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन के अंतर्गत कम्पनी के प्रॉफिट के हकदार सिर्फ और सिर्फ कम्पनी के शेयर होल्डर्स होते हैं.
अब हम आपके सामने कुछ शॉकिंग डेटा रखने वाले हैं. ये डेटा अमेरिका के हैं. स्टेटिक्स के अनुसार 1943 से 1973 के बीच में अमेरिका के अंदर लोगों की कमाई में 91 प्रतीशत की ग्रोथ देखने को मिली थी. ये ग्रोथ कम्पनियों में नौकरी करने वालों की इनकम में देखने को मिली थी.
वहीँ 1973 से 2013 के बीच में ये ग्रोथ महज 9.5 प्रतीशत की हो गई थी. मिडिल क्लास के लिए तो ये ग्रोथ महज़ 3 प्रतीशत ही देखने को मिली थी. लेकिन मैक्सीमाईजिंग क्लास के इनकम में 1000 प्रतीशत की ग्रोथ देखने को मिली थी.
आपको बता दें कि मैक्सीमाईजिंग क्लास अपनी इनकम को बढ़ाने के लिए सेम स्ट्रेटजी फॉलो करते हैं. उनका फंडा कुछ इस तरह से है कि अपना काम बनता और भाड़ में जाए जनता.
ये क्लास पहले फेज में अपने बिजनेस को और बड़ा करने और छोटे व्यापारी के बिजनेस को खत्म करने में विश्वास रखता है.
फिर दूसरे फेज में इनकी स्ट्रेटजी होती है कि ये अपने बिजनेस से कॉस्ट कटिंग कर सकें. ये लोग कम पैसों में लोगों से काम करवाने में विश्वास रखते हैं. कॉस्ट कटिंग करने के बाद जो पैसा बचता है वो कहाँ जाता है? वो पैसा सरकारी अधिकारी के पास जाता है. जिससे इन्हें टैक्स में छूट मिलती है. बाकी बचे पैसों को शेयर होल्डर्स के बीच में बाँट दिया जाता है.
तीसरे फेज में ये सर्विस को महंगा कर देते हैं. जिसका सीधा असर कस्टमर की जेब पर पड़ता है. इससे इनका प्रॉफिट और ज्यादा बढ़ जाता है.
इस तरह इनकी पूरी प्रोसेस से पता चलता है कि फाइनेंशियल मैक्सीमाईजेशन से रिच और भी ज्यादा रिच हो रहे हैं. असली मार तो आम आदमी के घरों में ही पड़ रही है.
ख़ुशी और मानसिक सुकून बस पैसों के दम पर नहीं खरीदा जा सकता है
यहां पर लेखक कहते हैं कि इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि पैसें जिंदगी को जीने के लिए बहुत ज्यादा ज़रूरी हैं. जिन अमेरिकन्स के पास पैसे नहीं हैं उन्ही से पूछना चाहिए कि इसकी अहमियत कितनी होती है? इसमें ही कोई दो राय नहीं है कि हर दिन महंगाई बढ़ती जा रही है.
पिछले साल प्रॉपर्टी के जो रेट थे. इस साल वो रेट नहीं हैं. अगर आप इंसानी ज़रूरतों के पिरामिड को देखेंगे तो आपको पता चल जायेगा कि पैसों की ज़रूरत कितनी ज्यादा है?
लेकिन फिर भी लेखक यही कहना चाहते हैं कि कोई इंसान कितना खुश है. इसको आप उसके बैंक में पड़े हुए पैसों से नहीं नाप सकते हैं.
आज के समय में फिजिकल सेफ्टी तभी है. जब आपके पास फाइनेंशियल सेफ्टी है. अगर आपके पास पैसे नहीं हैं. तब आपका दिमाग या दिल प्यार में नहीं लग सकता है.
लेकिन यहां हमे इस बात को भी समझने की ज़रूरत है कि पैसा कमाना ही हमारा आखिरी गोल नहीं हो सकता है. एक पॉइंट ऐसा भी आएगा जब हमारे पास पैसा तो होगा लेकिन दिमागी सुकून नहीं होगा.
दिमागी सुकून और ख़ुशी को सिर्फ और सिर्फ पैसों के दम पर नहीं खरीदा जा सकता है. अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश भी हमारे साथ आगे बढ़े तो हमें पैसों से इतर वैल्यूज पर भी काम करना पड़ेगा.
आज वो समय आ गया है जब आपको अपने साथ वाले के बारे में भी समझना पड़ेगा. इसलिए हमेशा कोशिश करिए कि आप बेहतर इंसान बन सकें. जब आप बेहतर इंसान बनेंगे तभी बेहतर और अच्छे सामाज के जनक भी बन पायेंगे.
‘बेंटोईज्म’ क्या है? इससे आप तर्कसंगत फैसले लेने के काबिल बन सकते हैं
क्या आपको जापान के बेंटो बॉक्स के बारे में पता है? इस बॉक्स में कई सारे कम्पार्टमेंट्स होते हैं. सभी में अलग-अलग तरीके के फ़ूड आइटम्स रखे हुए होते हैं. जिसे आप ट्राय कर सकते हैं. इससे फायदा ये होता है कि आप कई सारी चीज़ खा भी लेते हैं. इसी के साथ ही साथ आपकी ओवर ईटिंग भी नहीं होती है.
ये कांसेप्ट बस आपके लंच के लिए ही परफेक्ट नहीं है. आप इस कांसेप्ट से अपनी लाइफ को भी मस्त बना सकते हैं.
इसलिए इस चैप्टर का सार भी यही है कि बेंटोईज्म की मदद से आपको तर्कसंगत फैसले लेने में मदद मिलती है.
लेखक बताते हैं कि आपकी लाइफ के बेंटोईज्म में 4 बॉक्स हैं. चारों बॉक्स में अलग-अलग वैल्यूज हैं. एक बॉक्स में सेल्फ इंटरेस्ट और वर्तमान समय है.
दूसरे बॉक्स में आपका फ्यूचर है. आप किस तरह बनना चाहते हैं. ये सब बातें आपको दूसरे बॉक्स में रखना है.
इसी के साथ ही साथ अन्य बॉक्सेस में आपकी जिम्मेदारियां और सामाज के प्रति आपका व्यवहार है.
इंसानियत और दया की खूबी को भी आपको एक बॉक्स में रखने की ज़रूरत है.
बेंटोईज्म की मदद से आप अपनी लाइफ की वैल्यूज को पूरी तरह से देख सकते हैं. बेंटोईज्म आपको जिंदगी जीने का एक अलग नज़रिया प्रदान करता है.
कल्पना कीजिए कि आपको एक ऐसी कंपनी में उच्च वेतन वाली नौकरी की पेशकश की गई है. जिसकी राजनीति से आप बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं.
अब आप नौकरी लेने के लिए बहस करेंगे - जरा सोचिए कि आप कितना पैसा कमा सकते हैं! लेकिन फ्यूचर इतना निश्चित नहीं है. क्या आप नहीं चाहते कि आपको ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाए जो अपने व्यक्तिगत सिद्धांतों पर अडिग रहे?
बेंटोइज़्म आपको इन सभी मूल्यों को ध्यान में रखने और उन्हें एक दूसरे के विरुद्ध तौलने की अनुमति देता है.
बेंटोइज़्म आपको ऐसी शक्ति देता है. जिसकी मदद से आप तर्क संगत सोच सकते हैं. अपनी जिंदगी को बड़े नज़रिए से देखने की शुरुआत कर दीजिये.
जब हमको पैसों के बजाए वैल्यूज गाइड करने लगते हैं, तब हमें जिंदगी की बड़ी तस्वीर दिखने लगती है
मान लीजिये कि आपका फेवरेट बैंड आपके शहर आ रहा है. उसके लिए टिकट की बुकिंग भी शुरू हो गई है. लेकिन क्राउड ज्यादा होने के कारण टिकट आपको नहीं मिलती है. अब आप क्या करेंगे? क्या ब्लैक से टिकट खरीदने की कोशिश करेंगे?
इस चैप्टर का सार यही है कि हमें पैसों से आगे बढ़कर वैल्यूज को महत्त्व देना सीखना है.
फेमस गीतकार एडेले के कॉन्सर्ट की टिकटें अधिकांश बड़ी मुश्किल से मिलती हैं. 2015 के बाद से गीतकार ने एक कम्पनी को हायर करके एक ऐसी व्यवस्था बनाई कि उनके सबसे मुख्य फैन्स के लिए टिकट की खिड़की पहले खुला करे. इसके बजाए वो ज्यादा पैसा कमाने के लिए रेट्स बढ़ा भी सकती थीं. लेकिन उन्होंने वैल्यूज को महत्त्व देते हुए ऐसा नहीं किया था.
ऐसा कदम उठाने से टिकट की कमी में 2 प्रतीशत की कमी भी देखने को मिली थी.
जब भी हम छोटे से समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के बारे में सोचने लगते हैं. तभी हम बड़ी पिक्चर को मिस कर देते हैं.
याद रखिये कि जिंदगी एक गेम की तरह है. इसे हमें अपनी वैल्यूज के साथ-साथ बड़ी ही ईमानदारी से खेलने की ज़रूरत है.
अगर हम वैल्यूज़ को साथ में रखकर काम करेंगे तो फिर हमारी लाईफ भी काफी ज्यादा आसान हो जाएगी.
इसी के साथ ही साथ हमें वैल्यूज के नए-नए फॉर्म्स को भी डिसकवर करते जाना है. अपने अंदर की जिंदगी को हमेशा जिंदा रखिए.
वैल्यूज़ स्पेक्ट्रम को बदलने में काफी ज्यादा समय लगता है
अगर आप 1960 के दौर में रह रहे होते और आप सोचते कि सुबह-सुबह रनिंग शुरू कर देते हैं. तो फिर आपको पुलिस गिरफ्तार कर लेती क्योंकि उस समय वो इतना ज्यादा अनयूजअल था कि लोग जॉगर्स को देखते ही पुलिस को बुला लेते थे. क्या आपने पॉइंट को समझा?
एक्सरसाइज की वैल्यूज को नॉर्मल होने में भी काफी ज्यादा समय लग गया है. आपको याद रखना चाहिए कि अच्छी चीज़ों में काफी ज्यादा समय भी लग जाता है. आपने तो सुना ही होगा कि ‘गुड थिंग्स टेक्स टाइम’.
इस चैप्टर का सार भी यही है कि वैल्यूज़ स्पेक्ट्रम को बदलने में काफी समय और मेहनत भी लगती है.
साइंटिफिक रिसर्च में ये बात निकलकर सामने आई है कि सोसाइटी में कोई भी पॉजिटिव चेंज आने में 30 सालों तक का भी समय लग जाता है. इसलिए आपको समय को लेकर तसल्ली से रहना चाहिए.
यहां तक कि ग्रेट ब्रिटिश इकोनॉमिस्ट “John Maynard Keynes” ने भी ये कभी नहीं सोचा था कि कैपिटलिस्ट सोच इतने दिनों तक टिकी रहेगी. जैसे-जैसे समय बीतता हुआ चला गया, वैसे-वैसे ही ये थॉट भी आगे बढ़ता हुआ चलता रहा.
वैल्यूज के साथ-साथ जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते रहेंगे. वैसे-वैसे आपको भी पता चलेगा कि जिंदगी में पॉजिटिव चेंजेस सिर्फ और सिर्फ पैसों से नहीं आ सकता है. उन चेंजेस के लिए वैल्यूज़ की भी ज़रूरत पड़ती है.
कुल मिलाकर
भले ही ये दुनिया इस समय पैसों के पीछे भाग रही है. लेकिन आपको ध्यान रखना है कि पैसों के अलावा भी वैल्यूज़ भी होते हैं. वैल्यूज़ के साथ ही साथ अपने सच्चे रिश्तों का भी ख्याल रखना आपकी ही ज़िम्मेदारी है.
क्या करें?
अपने बेंटो बॉक्स की पैकिंग आप खुद करिए, आपको खुद तय करना है कि आपके बॉक्स में क्या-क्या चीज़ें होने वाली हैं. पैसा कमाने के लिए आगे बढ़िए लेकिन वैल्यूज़ का साथ कभी नहीं छोड़ियेगा.
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