The Book of Eels

0
The Book of Eels

Patrik Svensson
करिए ईल्स की मजेदार दुनिया की सैर

दो लफ्जों में
ईल्स एक तरह की मछलियां हैं। इनका अनोखा लाइफ साइकल हमेशा इंसानों और खास तौर पर वैज्ञानिकों को आकर्षित करता रहा है। ये किताब आपको ईल्स की रोमांचक दुनिया की सैर पर ले जाती है। न जाने कितने वैज्ञानिकों ने अपनी पूरी जिंदगी इनकी स्टडी में लगा दी ताकि उनको ये समझ आ सके कि ईल्स किस तरह इवॉल्यूशन के चैंलेज को सफलता से पार करती रही। इसमें अपनी आने वाली पीढ़ी को पैदा करने के लिए अटलांटिक तक हजारों माइल माइग्रेट करने जैसा बड़ा कदम भी शामिल है। ईल्स को समझना मुश्किल रहा है। आज भी हम इनके बारे में पूरी तरह नहीं जानते हैं। इन पर स्टडीज जारी हैं। 

ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• नेचर लवर्स 
• जिनको नई नई जानकारी इकट्ठी करने का शौक है
• जो लोग एनवायरनमेंट की परवाह करते हैं 

इस किताब को पढ़कर आप जानेंगे
• 19वीं सदी में ईल के टेस्टिकल को ढूंढने का क्रेज क्यों चला था
• ईल और इंसानों का समय को लेकर नजरिया अलग क्यों होता है
• ईल की सेक्स लाइफ ने फ्रायड को साइकोलॉजी में कैसे मदद की

लेखक के बारे में
पेट्रिक का बचपन स्वीडन में एक समुद्र के किनारे गुजरा है। उनके पिता ने उनको ईल पकड़ना सिखाया। अब वो स्वीडन से निकलने वाले एक अखबार Sydsvenskan में आर्ट और कल्चर के जर्नलिस्ट के तौर पर काम करते हैं और अपने परिवार के साथ माल्मो में रहते हैं।

ईल की लाइफ साइकिल में चार स्टेज होती हैं।
आपने ईल्स के बारे में सुना होगा। हो सकता है आपने उनागी या ईल सुशी खाई भी हो। लेकिन क्या आपने किसी ईल को अपने सामने देखा है? आमतौर पर इसका जवाब होगा नहीं क्योंकि ईल शर्मीले और रात को निकलने वाले जीव होते हैं। ये खुद को छिपाने में इतने माहिर होते हैं कि अगर आपने ईल पकड़ने की ट्रेनिंग न ली हो तो शायद ही कभी इनको पकड़ पाएं। लोग अक्सर इनको रेप्टाइल या ऐसे जीव भी समझ लेते हैं जो पानी और जमीन दोनों पर रह सकते हैं। असल में ईल की बनावट ही इस तरह की होती है। ऊपर से ये घंटों तक जमीन पर मौज मस्ती करते रहते हैं। लेकिन ये तो ईल की कहानी की शुरुआत भर है। अभी तक इनकी ब्रीडिंग कोई नहीं देख पाया है। इनका माइग्रेशन सही तरह समझ नहीं पाया है। हमें ये भी नहीं पता कि इनके शरीर में इतने बदलाव कैसे आते हैं। सालों तक स्टडी करने के बाद भी हम इनके बारे में कुछ खास नहीं जानते हैं। ये किताब एक खास तरह की यूरोपियन ईल पर फोकस करती है जिसे Anguilla anguilla कहा जाता है। एरिस्टॉटल से लेकर फ्रायड तक वैज्ञानिकों की एक लंबी लिस्ट है जो ईल की स्टडी करती आई। इस वजह से आज हम इनकी पहेली को कुछ हद तक तो सुलझा पाए हैं। 

ईल कैसी दिखती है? लंबी सी, काली और इधर उधर फिसलती हुई है ना। लेकिन ईल इससे कहीं ज्यादा है। ईल ऐसी तब नजर आती है जब वो अपनी लाइफ साइकल की फाइनल स्टेज में होती है। यानि इस दौरान वो अपने आखिरी वक्त पर आ चुकी होती है। ये मछलियां अपनी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा इससे अलग तरह बिताती हैं। Sargasso Sea में अपने पैदा होने के दिन से लेकर वहां मरने तक ईल में चार बड़े बदलाव आते हैं। ईल की जिंदगी अटलांटिक ओशन के नॉर्थ वेस्ट इलाके Sargasso Sea से शुरू होती है। समुद्र की जमीन के किसी गहरे और अंधेरे गड्ढों में इनके लार्वा जन्म लेते हैं। इनको Leptocephalus larvae कहा जाता है। Leptocephalus larvae बड़े अजीब लगते हैं। ये पूरी तरह चपटे होते हैं और इनका शरीर ट्रांसपेरेंट होता है। इनका शरीर जितना बड़ा होता है सर उतना ही छोटा। पैदा होते ही ये ईस्ट के समुद्र की तरफ बढ़ने लगते हैं। पानी की धारा के साथ बहते हुए ये अटलांटिक और यूरोप की तरफ निकल जाते हैं। इसमें तीन साल तक का समय लग सकता है। जब ये लार्वा यूरोप पहुंचते हैं तो इनका शरीर फिर से बदलने लगता है। लार्वा से ग्लास ईल बनती है। पर ये अभी भी आकार में लगभग उंगली जितने रहते हैं। इनका शरीर भी ट्रांसपेरेंट ही रहता है। अब ईल खारे पानी से मीठे पानी की तरफ बढ़ने लगती हैं। यूरोप के समुद्रों से बहते हुए ये आगे फिर बदलाव से गुजरती हैं। अब इनका आकार बढ़ने लगता है और वजन भी। इनके फिन निकल आते हैं और शरीर में रंग भी आने लगता है। अब ग्लास ईल, यलो ईल बन जाती है। 

यलो ईल मीलों तैरकर अपने लिए ठिकाना ढूंढती हैं। आखिर में ये किसी झील या तालाब की तली में रहने लगती हैं। जब ईल को अपने लिए सही ठिकाना मिल जाता है तो वो यहां सालों तक रह सकती है। जब तक इनको अगली पीढ़ी पैदा न करनी हो। अब ये इशारा ईल को कैसे मिलता है फिलहाल वैज्ञानिकों के पास इसका कोई पक्का जवाब नहीं है। अब ईल फिर Sargasso Sea की तरफ जाने लगती हैं। इस दौरान उनमें आखिरी बदलाव आता है। यलो ईल अब सिल्वर ईल में बदल जाती है जो एडल्ट और सेक्सुअली मेच्योर ईल होती है। सिल्वर ईल कभी कुछ नहीं खाती। इनके शरीर में मौजूद फैट ही घुलकर इनको एनर्जी देती रहती है। अब ये Sargasso Sea में अपने अंडे देने की सही जगह ढूंढती हैं और अंडे देकर मर जाती हैं।

ईल के बारे में एरिस्टॉटल के जमाने से स्टडी की जाती रही है।
इंसानों के साथ ईल का रिश्ता पुराना है। इजिप्ट में ईल को शैतान का एक रूप समझा जाता था। इनकी ममी बनाकर भी रखी जाती थी। इसके काफी सालों बाद एरिस्टॉटल ने ईल पर साइंटिफिक तरीके से स्टडी की। वैसे तो हम एरिस्टॉटल को फिलॉसफी में किए उनके काम के लिए जानते हैं। लेकिन नेचर की स्टडी मे वो अपने समय से काफी आगे थे। उन्होंने Historia Animalium नाम की किताब लिखी जिसके ढेरों वॉल्यूम थे। इस किताब को zoology का पायोनियर माना जाता है क्योंकि इसमें पहली बार जीवों को क्लासिफाई करने की कोशिश की गई थी। इसमें ईल पर भी काफी कुछ लिखा गया था। एरिस्टॉटल ने खुद भी बहुत सी ईल को डिसेक्ट करके उनकी स्टडी की थी। इस वजह से उनकी किताब में ईल की बाहरी और अंदरूनी बनावट को लेकर बहुत डीटेल में और सही जानकारी मिलती है। 

फिर भी उनके बहुत से दावे सच से परे हैं। जैसे ये कहना कि ईल घास खाती है और जमीन पर पांच से भी ज्यादा दिन रह सकती है। एक और बात थी जो वैज्ञानिकों के लिए बहुत अजीब थी। एरिस्टॉटल का मानना था कि ईल बाकी मछलियों की तरह मेटिंग से अंडे नहीं देती बल्कि वो खुद ब खुद कीचड़ से पैदा होती है। अब जरा सोचकर देखिए कि किसी तालाब का पानी खत्म हो रहा हो और उसकी तली भी सूखकर चटकने लगे तो भला कौन सी मछली वहां रह पाएगी? और जैसे ही बारिश में पानी वापस भरता है वहां ईल ही ईल नजर आए। यानि ईल अपने आप पैदा हो जाती है। यही वजह थी कि उस वक्त भी बहुत से लोग एरिस्टॉटल से सहमत नहीं थे। लेकिन उनके पास एरिस्टॉटल से बेहतर कोई थ्योरी नहीं थी। न तो किसी ने ईल को ब्रीड करते देखा था और न ही उसके रिप्रोडक्टिव ऑर्गन देखे थे। ईल को लेकर एरिस्टॉटल के काम की सबसे अच्छी बात ये थी कि भले ही इसमें कुछ गल्तियां थीं पर उनके इस कदम ने आगे का रास्ता बना दिया था। अब लोग ईल में इंट्रेस्ट लेने लगे थे। अब इसे "the eel question" कहा जाने लगा था और एक समय ऐसा भी था जब ईल, zoology की सबसे बड़ी पहेली बन चुकी थी। एरिस्टॉटल के लगभग दो हजार साल बाद भी हमें ईल के बारे में काफी कुछ समझना बाकी है। ये मछली आज भी एक पहेली बनी हुई है।

सालों तक स्टडी करने के बाद ईल के रिप्रोडक्शन के तरीके का पता चला।
लंबे समय तक इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि ईल अंडे कैसे देती है। साल 1668 में इटालियन फिजिशियन फ्रांसेस्को रेडी ने एरिस्टॉटल की थ्योरी को चेक किया। वो इस बात को मानने को तैयार ही नहीं थे कि कोई भी चीज अपने आप पैदा हो सकती है। उस समय मक्खियों के बारे में भी यही माना जाता था कि अगर मीट या कोई चीज सड़ रही हो तो उसमें अपने आप मक्खियां पैदा होने लगती हैं। लेकिन रेडी ने एक्सपेरिमेंट करके ये साबित किया कि मीट पर पहले से मक्खियों के अंडे होना जरूरी है। ईल के बारे में जानकारी को अभी और सौ साल बाकी थे। इटली में ही साल 1777 में एनाटॉमी के प्रोफेसर कार्लो मोंडिनी ने एक सेक्सुअली मेच्योर फीमेल ईल का डिसेक्शन किया। इसके बाद उन्होंने एक जर्नल पब्लिश किया जिसे आज भी मील का पत्थर माना जाता है। इसमें पहली बार किसी फीमेल ईल के रिप्रोडक्टिव सिस्टम की जानकारी दी गई थी। इसने आधा काम तो कर दिया था। अब सिर्फ मेल ईल के रिप्रोडक्टिव सिस्टम को समझना बाकी था। इस जवाब ने फिर सौ साल का वक्त ले लिया। 1874 में एक ईल में कुछ ऐसा मिला जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। तब माना गया कि ये ईल का testicle हो सकता है। उस समय के जाने मानी मरीन जूलॉजिस्ट कार्ल क्लॉस ने अपने एक स्टूडेंट को इसकी पूरी जानकारी के लिए भेजा। ये स्टूडेंट था सिग्मंड फ्रायड। 

अगले एक महीने तक सिग्मंड फ्रायड बस ईल को काटते और माइक्रोस्कोप में उनकी स्टडी करते रहे। उन्होंने 400 से ज्यादा ईल काट दीं पर उनको कहीं भी ऐसा कुछ नहीं दिखा जिसे ईल का testicle कहा जा सके। वो निराश होकर वापस लौट आए। लेकिन हम ये नहीं कह सकते कि उनकी किस्मत खराब थी। दरअसल ईल में तब तक सेक्स ऑर्गन नहीं बनते जब तक उनको इसकी जरूरत न हो। अब ये बात भला फ्रायड को कैसे पता होती? उन्होंने जितनी भी ईल काटीं उनमें से कोई भी सेक्सुअली मेच्योर ही नहीं थी। लगभग बीस साल बाद सिसली में एक मेच्योर मेल सिल्वर ईल मिली। इसके बाद सालों की खोज पूरी हुई। लेकिन फ्रायड के लिए ये एक अच्छा अनुभव था क्योंकि वो इस बात को समझ पाए कि कोई जीव कितनी गहरी तरह अपनी सेक्सुएलिटी छिपा सकता है।

ईल की स्टडी में Johannes Schmidt को एक बड़ी सफलता हाथ लगी।
बीसवीं सदी आते आते ईल को लेकर सवाल बदल चुका था। अब हम ये जान चुके थे कि ईल ब्रीड करती है। अब सवाल ये था कि कहां। हालांकि इतना पता था समुद्र में। हर साल सर्दियों में मेच्योर ईल यूरोप की तरफ जाती और गर्मियों में ग्लास ईल वापस लौटती। कुछ लोगों ने कहा कि ईल मेडिटरेनियन में ब्रीडिंग करती है। उस वक्त सिर्फ वहीं पर ईल के लार्वा देखे गए थे। लेकिन इस थ्योरी में एक कमी थी। ये लार्वा काफी बड़े होते थे। यानि ईल अंडे जरूर कहीं और देती थी। दुनियाभर के वैज्ञानिक इसका जवाब ढूंढने में लगे थे। 1904 में डेनमार्क के बायोलॉजिस्ट Johannes Schmidt ने कमर कस ली। वो समुद्र के सफर पर निकल पड़े। पर उनको ये नहीं पता था कि उनको जवाब ढूंढने में बीस साल लग जाएंगे। उनका प्लान था कि वो उस रास्ते को फॉलो करेंगे जहां से ईल के लार्वा लौटते हैं। यानि उल्टी तरफ चलते जाने पर वो उस जगह पहुंच जाएंगे जहां से ये सफर शुरू होता है। वो रास्ते में मिलने वाले लार्वा का साइज देखते जाएंगे और जैसे जैसे उनको छोटे लार्वा मिलते जाएंगे उनकी मंजिल नजदीक होगी। ये प्लान तो अच्छा था पर था बहुत मुश्किल। अगले सात साल वो यूरोप के समुद्रों में आगे पीछे घूमते रहे। नॉर्थ सी से लेकर इजिप्शियन कोस्ट तक। फिर भी कोई सफलता हाथ नहीं लगी। उनको लार्वा तो मिलते पर उतने बड़े जितने मेडिटरेनियन में पहले ही देखे जा चुके थे। 

अब वो पश्चिम की तरफ मुड़कर अमेरिका के रास्ते पर निकल गए। अब उनकी किस्मत बदलने वाली थी। वो यूरोप से जितना दूर होते गए उनको उतने छोटे लार्वा मिलते गए। उनको फिर भी किसी नतीजे तक पहुंचने में और 9 साल लगे। हजारों लार्वा को नापने के बाद उनको अटलांटिक में Sargasso Sea नाम की जगह मिली। यहां लार्वा इतने छोटे थे जितने अपने पैदा होने पर होने चाहिए थे। उनको ईल पैदा होने की जगह मिल गई थी। इनकी हिम्मत को दाद देनी चाहिए जिसकी वजह से आज हमको ये पता चल पाया कि ईल कहां ब्रीड करती है। हमें ये भी पता चला कि वो इसके लिए यूरोप से लगभग पांच हजार मील तैरकर Sargasso Sea तक आती है। ब्रीडिंग के लिए इतना लंबा सफर करने वाले जीव बहुत कम हैं। लेकिन हम ये फिर भी नहीं जान पाए कि ईल ऐसा क्यों करती है।

ईल को शायद कुछ खास तरह के सिग्नल मिलते हैं।
ईल अंडे कहां देती है इसका जवाब मिलने पर अगला सवाल था कि वो इतनी दूर जाती कैसे है। एक जवाब ये था कि ईल को कुछ सिग्नल मिलते हैं जिनको फॉलो करके वो ये दूरी पार कर जाती है। एक जवाब ये था कि उनके दिमाग में इस रास्ते की यादें होती हैं। वैसे ये दोनों बातें सही हो सकती हैं। ईल की स्मेल करने की ताकत लाजवाब होती है। ईल किसी झील में गुलाब जल की एक बूंद का पता लगा सकती है। इस बात की काफी संभावना है कि यही सुपरपावर ईल को इस बड़े और लंबे सफर के लिए तैयार करती है। या तो वो Sargasso Sea की महक ढूंढ सकती है या फिर दूसरी ईल्स को ढूंढकर उनके पीछे चल पड़ती है। लेकिन ईल के लिए स्मेल कोई नेविगेशन टूल नहीं है। वो जमीन से उठने वाली मेग्नेटिक वेव को भी महसूस कर सकती हैं। बिल्कुल वैसे जैसे परिंदे कर लेते हैं। आप ये कह सकते हैं कि ईल के अंदर एक कम्पास बना होता है जो उसे रास्ता दिखाता है। खैर जो भी हो ये तो तय है कि ईल रास्ता समझने के मामले में बहुत कमाल की हैं। लेकिन क्या इससे ये साबित हो जाता है कि यही ताकत उनको इतनी दूर Sargasso Sea तक पहुंचा देती होगी। क्या ये नहीं हो सकता कि ईल के दिमाग में इस रास्ते का नक्शा पहले से बना होता हो? यानि इनके इवॉल्यूशन के दौर से। 

साल 2016 में एक रिसर्च टीम ने इसका पता लगाने की कोशिश की। ये ईल के माइग्रेशन को लेकर अब तक की सबसे बड़ी और मुश्किल स्टडी थी। 700 ईल्स में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमीटर लगाकर उनको पानी में छोड़ा गया। जब ईल आगे बढ़ती गई तो ये ट्रांसमीटर खुलकर पानी के ऊपर आ गए पर अपने साथ बहुत सी जानकारी इकट्ठी कर लाए। नतीजे हैरान कर देने वाले थे। इन सब ईल्स ने अलग अलग रास्ते चुने थे। सारे रास्ते उलझे हुए थे। कोई भी ईल सीधा रास्ता चुनकर  Sargasso Sea की तरफ नहीं गई थी। लेकिन जैसे ही उन्होंने Azores तक पहुंचकर आधा रास्ता पार किया वो इकट्ठी हो गईं। इससे यही समझ आता है कि ईल कोई न कोई नक्शा तो फॉलो कर रही थीं। लेकिन ये तभी इस्तेमाल होता है जब वो अपनी मंजिल के नजदीक आने लगती हैं। एक लंबी दूरी तक उनको अपने senses का ही सहारा लेना पड़ता है न कि अपनी instinct का।

ईल की बनावट बाहरी वातावरण के साथ बदलती है न कि उनकी उम्र के साथ।
अभी आपने पढ़ा कि ईल, ब्रीडिंग के बाद जल्द ही मर जाती है। यानि जब उनका काम पूरा हो गया तो उनके जीने का कोई मतलब नहीं रह जाता। लेकिन अगर किसी वजह से ईल, ब्रीडिंग के लिए Sargasso Sea तक न पहुंच पाए तो ये लंबे समय तक अपनी एजिंग और खुद में होने वाले बदलाव रोक सकती है। साल 1859 में स्वीडन के एक बच्चे ने किसी कुएं में ईल डाल दी। इसके लगभग 150 साल बाद जानवरों पर टीवी प्रोग्राम बनाने वालों ने इसे ढूंढ निकाला। तब देखा गया कि ये न तो सिर्फ जिंदा थी बल्कि इसकी ग्रोथ भी नहीं हुई थी। कुएं के अंधेरे में खुद को ढालने के लिए इसकी आंखों में जरूर बदलाव हो गए थे। जिन ईल्स को फिश टैंक में रखकर घरों में पाला जाता है उनमें भी न तो ज्यादा ग्रोथ दिखती है और न ही सेक्सुअल मैच्योरिटी। यानि जब उनको किसी अलग वातावरण में रख दिया जाए तो उनकी जिंदगी की रफ्तार थम जाती है। इंसानों के हिसाब से ये काफी अजीब बात है। इंसानों की ग्रोथ तो उनकी उम्र के साथ ही होती है। जैसे प्यूबर्टी का एवरेज समय तय है। लेकिन ईल्स की कहानी अलग है। 1980 के दौरान आयरलैंड के वैज्ञानिकों ने मेच्योर सिल्वर ईल्स की स्टडी की। उन्होंने देखा कि ईल की उम्र आठ से 57 साल तक हो सकती है। भले ही वो अपने डेवलपमेंट के एक ही स्टेज पर क्यों न हों। यानि ईल का बदलाव उनकी उम्र पर निर्भर नहीं करता। तो फिर किस पर करता है? ईल को ये कैसे समझ आता है कि अब Sargasso जाने और ब्रीडिंग का वक्त आ गया है। 

वैसे ईल की मिस्ट्री जितनी ज्यादा है उसके हिसाब से आपको ये जानकर हैरानी नहीं होगी कि इस सवाल का कोई साफ जवाब हमारे पास नहीं है। हम फिलहाल तो ये कह सकते हैं कि ईल की ग्रोथ इसके आसपास के वातावरण के हिसाब से तय होती है। जैसे फिलहाल इनका वजन कितना है वगैरह। ऐसे और भी फैक्टर होते होंगे पर फिलहाल हम इनके बारे में ज्यादा नहीं जानते। इस बदलाव को लाने की जो भी वजह हो लेकिन ईल का सफर अपने शरीर और इसकी अलग स्टेज के वक्त से तय होता है न कि समय और कैलेंडर के हिसाब से।

इंसानों की एक्टिविटीज की वजह से ईल्स खतरे में आ रही हैं।
अब धीरे-धीरे ईल्स की गिनती कम होती जा रही है। ईल्स पूरे यूरोप में अचानक कम होने लगीं और ये कमी अभी भी जारी है। ताजा स्टडीज कहती हैं कि ईल की ये घटती हुई गिनती चिंता की बात है। 1970 में जितनी ग्लास ईल यूरोप आती थीं आज उसका बस 5% ही आ रही हैं। चलिए अब इस पहेली का हल ढूंढने की कोशिश करते हैं। जाहिर है ईल से जुड़े किसी सवाल का जवाब इतना आसान नहीं रहा है। लेकिन एक बात जरूर पता है कि इसके पीछे भी इंसानों का हाथ है। जरूरत से ज्यादा फिशिंग इसकी एक बड़ी वजह है। यूरोप और खास कर फ्रांस के खाने में ग्लास ईल की बहुत डिमांड होती है। इस वजह से उनको बहुत बड़ी तादाद में पकड़ा जाता रहा है। लेकिन फिशिंग, ईल्स के इतनी तेजी से घटने की इकलौती वजह नहीं हो सकती। ईल्स को बीमारियों और पैरासाइट्स से भी चुनौती मिलती रहती है। हम इंसान भी ईल्स को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते रहे हैं और इसकी वजह से भी बीमारियां फैली हैं। ऊपर से इंसानों के बनाए डैम, पानी पर लगाए तरह तरह के बैरियर जैसी चीजों ने ईल के आने जाने का रास्ता भी रोका है। हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट और भी खतरनाक हैं क्योंकि इनसे गुजरने वाली लगभग 70% ईल मर जाती हैं। ईल के लिए क्लाइमेट चेंज भी बहुत नुकसानदायक साबित हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पानी के बहाव पर उल्टा असर पड़ रहा है। 

पहले सदियों तक पानी की धार ईल को अटलांटिक की तरफ ईस्ट में ले जाती थी। लेकिन जैसे जैसे पानी का बहाव बदला ईल को यूरोप तक जाने में मुश्किल होने लगी। इसका सीधा मतलब था न तो ब्रीडिंग होगी और न ईल की गिनती बढ़ेगी। साल 2018 में EU ने सख्त कदम उठाए। अब इसके हर देश को अपने डैम और पावर प्लांट के आसपास "fish bridges" बनाना जरूरी हो गया है। जो कोई भी फिशिंग करेगा उसे पकड़ी हुई ग्लास ईल में से कुछ वापस डालनी होंगी। इतनी कोशिशों के बाद भी ईल पर मंडराता खतरा कम नहीं हुआ है।

कुल मिलाकर
ईल की पहेली ने सदियों तक वैज्ञानिकों को उलझाए रखा। ईल के सवाल इतने मुश्किल हैं कि इनको "the eel question" जैसा नाम दे दिया गया है। लेकिन जैसे ईल समय के साथ इवॉल्यूशन से गुजरी वैसे ही ये सवाल भी बदलते रहे। जहां पहले सवाल होते थे ईल क्या है, ये ब्रीडिंग कैसे करती है और फिर सवाल होता था ईल के रिप्रोडक्टिव ऑर्गन कहां हैं? उसके बाद सवाल आया कि आखिर ईल ब्रीडिंग के लिए इतने मीलों का सफर क्यों तय करती है। और ये रास्ता उनको मिलता कैसे है। अब ये सवाल परेशान कर रहा है कि ईल की गिनती क्यों घट रही है और हम इनको बचाने के लिए क्या कर सकते हैं। अगर इस सवाल का जवाब नहीं मिला तो शायद हम ईल से हाथ धो बैठेंगे।

 

क्या करें

ग्लास ईल को खाना बंद कर दें।

अगर आप सच में ईल की परवाह करते हैं और ये नहीं चाहते कि ईल पानी से गायब हो जाएं तो ग्लास ईल खाना छोड़ दीजिए। ईल को किसी भी स्टेज में पकड़ा जाना सही नहीं है पर ग्लास ईल का खात्मा सबसे बुरा है। जरा सोचिए एक इंसान की भूख मिटाने के लिए कितनी सारी ग्लास ईल की जरूरत पड़ती होगी। EU अब ग्लास ईल की फिशिंग पर पूरी तरह रोक लगाने की सोच रहा है। ये तो जब होगा तब होगा लेकिन तब तक हम अपनी तरफ से जो बन पड़े वो तो कर ही सकते हैं ना। 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Book of Eels By Patrik Svensson. 

 

ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com  पर ईमेल करके ज़रूर बताइये. 

आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे. 

अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं. 

और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें. 

Keep reading, keep learning, keep growing.


Post a Comment

0Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

YEAR WISE BOOKS

Indeals

BAMS PDFS

How to download

Adsterra referal

Top post

marrow

Adsterra banner

Facebook

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Accept !