Power of Two

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Power of Two

Joshua Wolf Shenk
क्यूँ कुछ बड़ा क्रिएट करने के लिए दो लोगों की जरुरत पड़ती है?

दो लफ़्ज़ों में
आज भी हम  ‘लोन जीनियस’ (Lone Genius) के कांसेप्ट को मानते हैं और सोचते हैं कि कुछ क्रिएटिव करने के लिए सोलीट्युड की जरुरत पड़ती है. लेकिन ये एक मिथ है, सच तो ये हैं कि जब आपके पास कोई क्रिएटिव पार्टनर होता है तो आपकी क्रिएटिविटी और बढ़ जाती है. इसी बात को लेखक नें अपनी इस किताब में जाने-माने जीनियस इनोवेशन पार्टनर्स की मदद से समझाया है जैसे ‘द बीटल्स’ के जॉन लेनन और पॉल मेकार्टनी, एप्पल कंप्यूटर के स्टीव जॉब्स और स्टीव वोज्नियाक और साउथ पार्क के ट्रे पार्कर और मैट स्टोन.

ये किताब किसके लिए है?
- हर वो क्रिएटर को क्रिएटिव कोलैबोरेशन की अहमियत को समझना चाहता है.
- जो कपल्स साइकोलॉजी और इनोवेशन में उसके रोल को समझना चाहते हैं.
- जो अपने प्रोजेक्ट के लिए किसी क्रिएटिव पार्टनर की तलाश में हैं.

लेखक के बारे में 
जोशुआ वुल्फ शेंक एक क्यूरेटर, एस्से राइटर और लेखक हैं. द अटलांटिक के लिए लिखा गया उनका आर्टिकल, "व्हाट मेक अस हैप्पी?"उस मैगज़ीन की हिस्ट्री में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ऑनलाइन आर्टिकल था. उनकी पहली किताब लिंकन मेलानकोली, को ‘द वाशिंगटन’ नें  2005 में बेस्ट सेलर का खिताब दिया था.

क्रिएटिविटी सेल्फ-टॉक और सोशल इंटरेक्शन के बीच बैलेंस से आती है.
हम सदियों से ‘लोन जीनियस’ (Lone Genius) की बात को मानते आये हैं. क्यूँ हमें ऐसा लगता है कि क्रिएटिविटी किसी खास जीनियस दिमाग वाले व्यक्ति से निकलती है? और क्यों कहा जाता है कि क्रिएटिविटी के लिए अकेला रहना जरुरी है? क्यूंकि आजतक हम दो क्रिएटिव लोगों के बीच की केमिस्ट्री को समझ नहीं पाए हैं. आईये जानते हैं कि आखिर ये केमिस्ट्री है क्या.

हमारी लाइफ में इंटरनेट के आ जाने से पार्टनरशिप और कोलैबोरेशन का दौर आ गया है और धीरे-धीरे हम इस बात को महसूस करने लगे हैं कि ‘लोन जीनियस’ वाली बात झूठी थी. इस किताब के जरिये लेखक इस बात को और डिटेल में सझायेंगे कि कैसे हिस्ट्री में कई ऐसे क्रिएटिव पार्टनर हुए जिन्होंने अपनी अंडरस्टैंडिंग और क्रिएटिव केमिस्ट्री से कई बड़े इनोवेशन किये और लोन जीनियस वाली बात को पूरी तरह से नकार दिया.

एक बड़ा आर्टिस्ट या म्यूजिक कंपोजर अपने मास्टर पीस को कैसे बनाता है? ज्यादातर लोग इस सवाल का यही जवाब देंगे कि अपने स्टूडियो में अकेले बैठ कर वो अपनी धुन या अपनी पेंटिंग पर तब तक काम करते हैं जब तक कि उनका मास्टर पीस तैयार ना हो जाए. 

यही है लोन जीनियस का कांसेप्ट जो लगभग सत्रहवीं शताब्दी से हम सबके मन में चल रहा है. उस समय सोशल, कल्चरल और पोलिटिकल माहौल कुछ ऐसा था कि लोग मानते थे कि हर इंसान अपने आप में कम्पलीट हैं और उसे अपनी असली शक्तियों और हुनर का एहसास केवल सोलीट्युड में हो सकता है. यहीं से लोन जीनियस की बात शुरू हुई.

ये मिथ मॉडर्न समय में भी चलता रहा इसलिए लोग कुछ क्रिएटिव करने के चक्कर में अक्सर खुद को अकेला कर लेते थे. हमारी लाइफ में इंटरनेट के आ जाने से इस सोच में बदलाव आया. इंटरनेट नें हमारी सोशल और प्रोफेशनल लाइफ के साथ-साथ क्रिएटिविटी को लेकर हमारी सोच को भी बदल दिया.

सभी म्यूजिकल मैश-अप, फिल्मी पैरोडी, आर्ट और फोटोग्राफी के कलेक्शन जिन्हें आज हम ऑनलाइन देखते हैं वो सब किसी न किसी क्रिएटिव कोलैबोरेशन का ही नतीजा हैं. इन सबको देख कर हमारी आंखें खुल जाती है कि जब एक से ज्यादा लोग मिलकर काम करते हैं या महज़ एक दुसरे से इन्स्पीरेशन लते हैं तो क्रिएटिविटी का लेवल कितना बढ़ जाता है.

अब हम इस बात को समझ चुके हैं कि क्रिएटिविटी केवल अकेले बैठे रहने से नहीं आती बल्कि ये सेल्फ-रिफ्लेकशन और सोशल इंटरेक्शन के बीच के बैलेंस से आती है.

क्रिएटिविटी को जगाने के लिए हमें किसी न किसी से इंटरैक्ट करने की जरुरत पड़ती है फिर चाहे वो कोई और आर्टिस्ट हो, भगवान हो या हम खुद से हीं बात कर लें. जब तक आप एक तरह की कन्वर्सेशन को स्टार्ट नहीं करेंगे तब तक आप अपने आइडियाज को सच्चाई में नहीं बदल पाएंगे. अपनी कन्वर्सेशन को सही डायरेक्शन देने के लिए और उसे मीनिंगफुल बनाने के लिए सबसे जरुरी है कि आप अपने इनर वौइस् और सोशल इंटरेक्शन के बीच बैलेंस बना कर चलें.

दलाई लामा इस बैलेंस का परफेक्ट उदाहरण हैं वो सोलीट्युड का भरपूर मज़ा लेने के साथ-साथ दूसरों के साथ भी जुड़ते हैं. उनका दिन सुबह 3.30 बजे उठने के साथ शुरू होता है और वो सूरज उगने तक खुद के साथ समय बिताते हैं उसके बाद हीं किसी विजिटर के साथ डिस्कशन में शामिल होते हैं.

सोलीट्युड और सोशल इंटरेक्शन का ये कॉम्बिनेशन हीं एक क्रिएटिव और मीनिंगफुल लाइफ  जीने में उनकी मदद करते हैं.

जो लोग अलग होकर भी एक जैसे होते हैं उन्ही के बीच क्रिएटिव पार्टनरशिप हो सकती है.
सबसे पहले हम ये समझते हैं आखिर दो लोग एक दुसरे के साथ क्रिएटिव पार्टनरशिप क्यूँ करते हैं?

किसी भी क्रिएटिव पार्टनरशिप की शुरुवात दोनों के बीच की कॉमन बातों से होती है. जब हमें किसी में भी वही आदतें दिखती है जो हममें है तो हम उसके साथ फैमिलिअर महसूस करते हैं.  इसी एहसास को नीव बना कर दो लोग एक ऐसे क्रिएटिव रिश्ते से जुड़ जाते हैं जो उनके हुनर को और निखारती है. वो साथ मिलकर वो कर जाते हैं जो शायद वो अकेले कभी ना कर पाते.

अगला सवाल है कि अगर आप एक क्रिएटिव पर्सन हैं तो आप अपने क्रिएटिव पार्टनर को कहाँ ढूँढे?

सोशियोलोगिस्ट माइकल फैरेल का कहना है आपको आपका क्रिएटिव पार्टनर किसी भी मैगनेट प्लेस पर मिल जायेगा जैसे किसी इवेंट में, ऑफिस में, स्कूल, कॉलेज या शादी जैसी सोशल गैदरिंग्स में. जैसे साउथ पार्क क्रिएटर मैट स्टोन और ट्रे पार्कर और कोरियोग्राफर बोस्को और सीजर एक स्कूल में मिले थे जो की एक क्लासिक मैगनेट प्लेस है.

पार्टनरशिप की शुरुवात के लिए कुछ कॉमन बातों का होना जरुरी है, लेकिन इसे आगे बढ़ने के लिए कुछ फंडामेंटल डिफरेंस की भी जरुरत पड़ती है. जैसे अगर सिमिलरिटी नीव का काम करती है तो डिफरेंस इस पार्टनरशिप को नया रूप देते हैं. इसके कारण दोनों के आइडियाज में एक नयापन आता है और दो लोग मिलकर कुछ ऐसा इनोवेट कर जाते हैं जो उन्होंने सोचा भी ना था.

एक कमयाब रिलेशनशिप में जरुरी नहीं कि दोनों पार्टनर के बीच आइडियाज और पर्सनालिटी को लेकर परफेक्ट समानता हो. कई बार आपका पार्टनर आपको आपके कम्फर्ट जोन से बाहर  आने को मजबूर करेगा और आपको अपने हीं आइडियाज को दुसरे तरीके से देखने को कहेगा. ऐसे में  आपको कभी-कभी मुश्किल भी हो सकती है लेकिन इसका रिजल्ट हमेशा कुछ बेहतरीन निकल कर आता है.

20वीं सदी के सिंगर्स की मशहूर जोड़ी जॉन लेनन और पॉल मेकार्टनी कई मायनों में एक दुसरे से अलग थे. जहाँ एक ओर पॉल मेकार्टनी खुशहाल परिवार का हिस्सा थे और म्यूजिक में पूरी ट्रेनिंग हासिल की थी. वहीँ दूसरी ओर जॉन लेनन नें अपना बचपन अपनी आंटी के साथ बिताया और उनकी पूरी लाइफ ब्रेकअप्स और अकेलेपन से भरी थी. 

जब ये दोनों साथ आये तो जॉन नें पॉल से संगीत सीखा और पॉल नें उनके कभी हिम्मत ना हारना. दोनों नें साथ मिलकर अपना क्रिएटिव सफ़र शुरू किया और लगभग 180 सुपरहिट  गानें लिखे.

अंडरस्टैंडिंग, भरोसा, विश्वास और फेथ जब आप एक क्रिएटिव जोड़ी के तौर पर काम करते हैं तो आपको इन सबकी जरुरत पड़ती है.

किसी भी क्रिएटिव जोड़ी का इंटरेक्शन तीन शुरुवाती स्टेजों से होकर गुजरता है. सबसे पहला है एक दुसरे को समझना, दूसरा है एक दुसरे को लेकर कॉंफिडेंट होना , तीसरा है ट्रस्ट. जब कोई भी रिश्ता इन तीनों स्टेजों को पार कर लेता हैं तो फाइनल स्टेज आती है फेथ की जो उनके रिश्ते को हमेशा के लिए पक्का कर देती है.

सबसे पहली स्टेज यानी एक दुसरे के साथ समय बिताना और एक दुसरे को समझना. ये स्टेज  किसी भी रिश्ते की नीव की तरह है. जब आप फिजिकली और मेंटली एक दुसरे के साथ प्रेजेंट रहते हैं तो आपको अपने पार्टनर की खुबीयाँ, उसकी कमियाँ, उसके सुख-दुःख का पता चलने लगता है. धीरे-धीरे आप उसके साथ कम्फ़र्टेबल महसूस करने लगते हैं और आपका पार्टनर आपकी पर्सनल स्पेस का हिस्सा बन जाता हैं .

इंडियन फिल्म इंडस्ट्री की जानी मानी कोरियोग्राफर जोड़ी बोस्को और सीजर की पार्टनरशिप भी इन्हीं स्टेजों से होकर गुजरी थी. जब बोस्को नें अपने स्कूल में सीजर को कमाल का डांस करते देखा तो क्रिएटिव पार्टनरशिप में आने से पहले दोनों नें दोस्ती की. बोस्को नें पहले सीजर को समझा उसके बराबर का डांस सीखा उसके बाद दोनों पार्टनरशिप में आये. उनकी ऐसी कमाल की  केमिस्ट्री बनी कि उन्होंने 2000 से ज्यादा अवार्ड विनिंग कोरियोग्राफी की.

अगला स्टेज है कॉन्फिडेंस का. जब पार्टनर एक दुसरे को लेकर कॉंफिडेंट होते हैं तो वो एक दुसरे की रिस्पेक्ट कर पाते हैं. और बिना रिस्पेक्ट के कोई भी रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चल पता इसलिए ये स्टेज बहुत जरुरी है. कॉन्फिडेंस बनाने के लिए डिसिप्लिन, टाइम का ध्यान रखना और पॉजिटिव ऐटीट्युड जैसी बेसिक खुबीयाँ चाहिए.

अगला स्टेज है ट्रस्ट का. ट्रस्ट यानी एक दुसरे पर भरोसा होना कि चाहे जैसे भी सिचुएशन आये सामने वाला हमें और हमारे आइडियाज को बचाएगा. जब किसी की पार्टनरशिप इस स्टेज पर आ जाती तो दोनों अपने ड्रीम्स और आइडियाज को अपने पार्टनर पर छोड़ देते हैं. उन्हें भरोसा  हो जाता है कि सामने वाला उनके सपनों और आइडियाज का ख्याल रखेगा. इस स्टेज के बाद दोनों को यकीन हो जाता है कि वो सही रास्ते पर हैं.

आखरी स्टेज जो इस पार्टनरशिप को अल्टीमेट लेवल तक लेकर जाती है वो है फेथ. जब ट्रस्ट फेथ में बदल जाता है तो इसका मतलब है कि दोनों एक दुसरे के आइडियाज और सुझावों पर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. यही फेथ इस क्रिएटिव कोलैबोरेशन को आसमान की बुलंदियों को छुने के पंख देता है.

क्रिएटिव पार्टनरशिप को मजबूत करने के लिए नयी आदतों को अपनाना पड़ता है.
अपने रिश्ते को एक नया रूप और मजबूती देने के लिए क्रिएटिव पार्टनर कई नयी आदतों को अपनाते हैं जिसे लेखक नें रिचुअल (Ritual) का नाम दिया है. जैसे कुछ पार्टनर एक साथ रहना शुरू कर देते हैं, ताकि वो एक दुसरे के साथ ज्यादा समय बिता पाएं. कुछ रोज़ मिलने का दिअली रूटीन बना लेते हैं तो कोई साथ काम करने के लिए कोई खास जगह चुन लेता है.

लेखक का कहना हैं कि जब आप किसी के साथ क्रिएटिव पार्टनरशिप में आते हैं तो आपको उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए. चाहे आप साथ ना भी रहते हो लेकिन आपकी रेगूलर मीटिंग्स होनी चाहिए आप एक दुसरे के टच में रहने चाहिए. फिर धीरे-धीरे आप देखेंगे कि दोनों नें एक दुसरे की आदतों को अपना लिया और वो अलग होकर भी एक जैसे लगते हैं. जैसे दोनों की बॉडी लैंग्वेज, बोलने और सोचने का तरीका एक जैसा हो जाता है. 

इस फेनोमेनन को साइंटिस्ट ‘सोशल कांटेजिअन (social contagion)’ यानी सामाजिक छुआछूत कहते हैं. जैसे जाने-माने इन्वेस्टर वारेन बफेट (warren buffet) और उनके पार्टनर चार्ली मुनगर को हीं ले लीजिये जो सियामीज़ ट्विन्स के नाम से जाने जाते हैं. आप अक्सर इन्हें एक जैसे कपड़ों में देख सकते हैं. यहाँ तक कि इनकी चाल, बोलने का अंदाज़ और आँखों की चमक भी एक जैसी है.

ये सब पढ़कर शायद आप ये सोचें कि अपनी पार्टनरशिप को मजबूत करने के चक्कर में कहीं आप खुद को हीं ना खो दें. आपके मन में डर आएगा कि किसी के साथ इस कदर जुड़ने से कहीं आपका अपना वजूद खतरे में तो नहीं पड़ जायेगा.

हालांकि, ऊपर-ऊपर से देखने में ऐसा लगता है, लेकिन सच इसके बिलकुल उलट है आप खुद को अपने रिश्ते में जितना ज्यादा सरेंडर करेंगे एक इंसान के तौर पर आप उतना सुकून महसूस करेंगे और उतने हीं मजबूत बनेंगे.

लेखक और कवी पैटी स्मिथ नें अपनी किताब ‘जस्ट किड्स’ में अपने क्रिएटिव पार्टनर और फोटोग्राफर रॉबर्ट मैपलथोरपे के बारे में बताते हुए लिखा है कि जितना ज्यादा समय वो एक दुसरे के साथ बिताते थे उन्हें सामने वाले के साथ-साथ अपने आप को भी समझने का उतना हीं मौका मिलता था. उन्हें ऐसा लगता तय कि अपने पार्टनर से मिलने से पहले वो शायद खुद को इतनी गहरायी से नहीं समझते थे.

यानी आप सेल्फ की फीलिंग को जितना सरेंडर करते हैं आपका कॉन्फिडेंस उतना बढ़ता है. आप अपने आइडियाज और ड्रीम्स को समझ पाते हैं और आपको एहसास होता है कि असल में अब आप अपनी लाइफ का सबसे बेहतरीन काम कर रहे हैं.

क्रिएटिव जोड़ियाँ कई तरह की हो सकती हैं. हर क्रिएटिव रिलेशनशिप अपने आप में खास और एक दूसरे से अलग होती है. किसी जोड़ी का एक पार्टनर स्टार होता और दूसरा दुनिया से छुपा रहता है. जबकि कहीं दोनों बराबर तौर पर मशहूर होते हैं.

स्टार-शैडो वाली पार्टनरशिप को असिमेट्रिकल पार्टनरशिप (asymetrical partnership) कहते हैं. इस तरह की पार्टनरशिप में एक हीं पार्टनर को दुनिया आमतौर पर जानती है और उसे हीं दोनों के काम का क्रेडिट मिलता है. चाहे दुसरे पार्टनर नें कितना भी जरुरी रोल निभाया हो लेकिन लोग एक को हीं याद रखते हैं. ऐसी पार्टनरशिप ज्यादातर टीचर और स्टूडेंट के बीच देखने को मिलती है. जहाँ या तो टीचर इतना फेमस होता है कि उसके स्टूडेंट को भी लोग उसी के नाम से जानते हैं. या कई बार स्टूडेंट इतना फेमस हो जाता है कि लोग उसे सिखाने वाले के बारे में जानते हीं नहीं. लेकिन क्रिएटिव पार्टनरशिप किसी फेम की मोहताज़ नहीं क्यूंकि दोनों  पार्टनर एक दुसरे से भरोसा करते हैं.

अगली तरह की पार्टनरशिप है ओवर्ट पार्टनरशिप (overt partnership) जहाँ दोनों को पब्लिक स्पॉटलाइट मिलती है और दोनों फेमस होते हैं. जैसे ‘द बीटल्स’ के जॉन लेनन और पॉल मेकार्टनी की जोड़ी.

एक और तरह की पार्टनरशिप होती है डिस्टिंक्ट पार्टनरशिप (distinct partnership) जिसमें दोनों पार्टनर अलग-अलग फ़ील्ड्स से आते हैं. वो कभी एक दुसरे से डायरेक्ट कोलैबोरेशन तो नहीं करते पर एक दुसरे के गाइड के तौर पर हमेशा उनके काम को और लाइफ को सही डायरेक्शन देते हैं.

जैसे पैटी स्मिथ और रॉबर्ट मैपलथोरपे की पार्टनरशिप यूँ तो उन्होंने कभी एक दुसरे से डायरेक्टली कोलैबोरेट नहीं किया लेकिन दोनों एक दुसरे के इस्पीरेशन और गाइडेंस पर बहुत भरोसा करते थे. इसी पार्टनरशिप का नतीजा था स्मिथ की फेमस कविता ‘कोरल सी’ और मैपलथोरपे की पोट्रेट ‘द हॉर्सेज’. 

जैसे पार्टनरशिप कई तरह की हो सकती है वैसे हीं पार्टनर्स भी अलग-अलग हो सकते हैं. कुछ होते हैं ड्रीमर यानी सपने देखने वाले कल्पनायों की ऊँची उड़ान भरने वाले. ऐसे में वो कुछ बड़ा काम शुरू तो कर देते हैं पर अक्सर उसे ख़त्म नहीं कर पाते.

दुसरे होते हैं डोएर (Doer) टाइप के जो काम करने में विश्वास करते हैं. वैसे तो ये काफी  प्रोडक्टिव और भरोसेमंद होते हैं पर ये भी अक्सर ओरिजिनल आइडियाज और इमेजिनेशन के लिए परेशान रहते हैं.

यानी एक सक्सेसफुल क्रिएटिव पार्टनरशिप एक डोएर और एक ड्रीमर के मिलने पर बनती है है. जो लोग अकेले में स्ट्रगल कर रहे थे वही साथ मिलकर कमाल का काम कर जाते हैं.

पार्टनरशिप को स्मूथली चलाने के लिए नजदीकियों के साथ-साथ थोड़ी दूरियां भी जरुरी है.
अभी तक हमने देखा कि पार्टनरशिप को मजबूत करने के लिए एक दुसरे के साथ रहना कितना जरुरी है, लेकिन बाकि सभी रिश्तों की तरह इसमें भी नजदीकियों के साथ-साथ थोड़ी दूरियां भी जरुरी  है ताकि हर पार्टनर अपनी पर्सनल स्पेस और टाइम एंजॉय कर सके. जैसा कि हमने पहेले पढ़ा कि क्रिएटिव प्रोसेस सेल्फ-टॉक और सोशल इंटरेक्शन के बीच का एक बैलेंस है. इसलिए इस बैलेंस को बनांये रखने के लिए थोडा पर्सनल टाइम भी जरुरी है. 

अब ये टाइम कितना होना चाहिए ये दोनों पार्टनर्स के लाइफस्टाइल और पसंद पर डिपेंड करता है. कई बार अपने मन को शांत करने के लिए कुछ देर अकेले रहने का मन करता है. ये एक मैडिटेशन की तरह जिसकी जरुरत समय-समय पर सबको पड़ती है ताकि वो बाहरी चीज़ों को भुला कर खुद को शांत और रिचार्ज कर सके. फिर कुछ समय के बाद उसे दुबारा अपने पार्टनर की जरुरत पड़ती है. इसलिए एक मजबूत रिश्ता नजदीकियों और फासलों का सही बैलेंस करने से हीं बनता है.

तो आईये देखते हैं कि कैसे ये दूरियाँ और नजदीकियां क्रिएटिविटी को बढाती है.

जब हम अकेले होते हैं तो हमें अपने अनकॉनशिअस माइंड के अन्दर झाँकने का मौका मिलता हैं. बहुत से लोगों का मानना है कि उन्हें ज्यादातर क्रिएटिव आइडियाज सेमी-आटोमेटिक एक्टिविटी को करते हुए आते हैं जैसे स्विमिंग या वाकिंग. क्यूंकि इन एक्टिविटीज के दौरान कॉनशिअस माइंड का केवल कुछ हीं हिस्सा काम करता है बाकी हम अनकॉनशिअस माइंड के साथ होते हैं जहाँ कि क्रिएटिविटी का भंडार है.

साइकोलोजिस्ट ग्रेग फिस्ट का मानना है कि सबसे अच्छा क्रिएटिव प्रोसेस हैं कि पहले आप अपने सोलीट्युड में आइडियाज खोज लें और फिर अपने पार्टनर के साथ मिलकर उसे साकार करने का रास्ता ढूँढें.

पार्टनर्स के बीच थोड़ी कम्पटीशन और थोड़ी नोक-झोंक भी जरुरी है. यूँ तो क्रिएटिव रिलेशनशिप काफी खुशनुमा और मजेदार होती है लेकिन अगर इसमें थोडा कम्पटीशन का तड़का मिल जाये तो क्रिएटिविटी और बढ़ जाती है. आईये देखते हैं कैसे?

इसमें कोई शक नहीं है कि हर इंसान दुसरे से बेहतर करना चाहता है. कम्पटीशन की भावना हमें बेहतर से बहतर काम करने के लिए मोटीवेट करती है. इसमें कोई बुयाई नहीं है जब तक ये एक लिमिट में रहे. जैसे जब जॉन लेनन नें ‘द स्ट्रॉबेरी फ़ील्ड्स फॉरएवर’ लिखी तो उसके बदले बदले पॉल नें ‘पैनी लेन’ जैसा बेहतरीन गाना लिखा.

कभी-कभी कम्पटीशन की भावना दोस्ती में इतनी छुप जाती है कि हमें एहसास भी नहीं होता कि हम कम्पटीशन में हैं जैसे जब नॉवेलिस्ट शीला हेती से ये पूछा गया कि क्या वो अपने पार्टनर, पेंटर और फिल्म मेकर मारगौक्स विलियमसन से कम्पटीशन करती हैं तो उन्होंने कहा नहीं क्यूंकि हमारा काम अलग है, पर हाँ अगर किसी हफ्ते वो ज्यादा काम कर लेते हैं तो मैं अगले हफ्ते ज्यादा काम करके उसे बैलेंस करने की कोशिश जरुर करती हूँ.

कम्पटीशन की भावना एकदम नेचुरल है और कभी-कभी ये नोक-झोंक में भी बदल जाती है. पर ये नोक-झोंक क्रिएटिविटी के लिए अच्छी साबित होती है क्यूंकि जब दो लोग एक दूसरे से आगे निकलने के लिए लड़ रहे होते हैं तो वो अनजाने में क्रिएटिविटी को अलग हीं लेवल तक ले जाते हैं.

कभी-कभी एक पार्टनर खुद को पावरफुल समझ कर दुसरे पर हक़ जताता है और दुसरे को उसकी बात माननी पड़ती है और खुद को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर पुश करना पड़ता है. जिसके कारण एक पार्टनर मास्टर और दूसरा सबओर्डीनेट बन जाता है. ऐसा अक्सर टीचर और स्टूडेंट पार्टनरशिप में होता है. स्टूडेंट अपने मास्टर को खुश करने के लिए बहुत मेहनत करता है जिसके करना वो कम समय में ज्यादा से ज्यादा चीज़ें सीख जाता है.

जिस बात से रिश्ता शुरू हुआ था कभी-कभी उसी से खत्म भी हो जाता है.
‘अपोजिट अट्रैक्ट’ ये कहावत सच है शायद इसलिए कभी-कभी अपने पार्टनर की जो बातें शुरू में हमें अच्छी लगती थी वही रिश्ते के अंत का कारण बनती है. शुरुवात में हमें अपने पार्टनर की कोई क्वालिटी अच्छी लगती है जो हमें इंस्पायर करती है लेकिन जब वही चीज़ हद से ज्यादा बढ़ जाए तो उसे सहना मुश्किल हो जाता है जैसे ओवर डिसिप्लिन या ओवर सेंसिटिविटी जैसी बातें.

अपनी एक स्टडी के दौरान सोशियोलोगिस्ट डायने फेल्मेली नें कुछ लोगों से पूछा कि उन्होंने रिलेशन स्टार्ट क्यूँ किया था और उसके ख़त्म होने की वजह क्या थी. वो ये देखकर हैरान हो गयीं कि लगभग 30% लोगों नें दोनों सवालों का एक हीं जवाब दिया.

उदाहरण के तौर पर हो सकता है कि शुरुवात में आपको अपने पार्टनर का स्वीट और सेंसिटिव होना अच्छा लगे लेकिन बाद में आपको उसका हद से ज्यादा शरीफ होना पसंद ना आये. पहले आप अपने पार्टनर के सेंस ऑफ़ ह्यूमर पर फ़िदा हो गए थे बाद में आपको उसका हर बात में मजाक करना अच्छा लगे, जिस पार्टनर के स्ट्रोंग विल पॉवर को आप अट्रैक्टिव समझते थे अब आपको वही आपको डोमिनेटिंग लगता हो.

साइकोलोजिस्ट के हिसाब से पार्टनरशिप टूटने का दूसरा कारण है सक्सेस और पैसा. जब इंसान के पास पैसा आ जाता है तो वो सेलफिश हो जाता है वो इसे किसी और के साथ बाँटना नहीं चाहता. इसलिए उसका खुद से और अपने आस-पास के लोगों से कनेक्शन टूट जाता है.

कई लोग इस ट्रैप में फँस कर सबकुछ खो देते हैं और जो समय रहते इसे समझ पाते हैं वो अपनी क्रिएटिविटी और करैक्टर दोनों को जिन्दा रखने में कामयाब हो जाते हैं.

पार्टनरशिप के टूटने बाद भी उसे भूलना इतना आसान नहीं होता. लेखक कहते हैं कि लाइफ किसी ड्रामा की तरह नहीं होती जहाँ बस पर्दा गिरा और सब ख़त्म. लोग सबकुछ भूल कर अपने घर चल देते हैं.

असल ज़िन्दगी में जब रिश्ते टूटते हैं तो उसका दर्द पूरी उम्र परेशान करता है. खासतौर जब आप किसी के साथ क्रिएटिव पार्टनरशिप में होते हैं तो आप एक दुसरे में इतना खो जाते हैं कि एक दुसरे के बिना लाइफ इमेजिन करना थोडा मुश्किल होता है. कई लोग इस सिचुएशन से हेल्थी तरीके से आगे बढ़ जाते हैं तो कई अपना सबकुछ खो देते हैं.

जैसे जब बोस्को और सीजर अलग हुए तो दोनों के रिश्ते में बहुत कडवाहट आ गयी थी जब उसे सहना मुश्किल हो गया तो उन्हें लगा कि अलग हो जाना हीं बेहतर रहेगा. अलग होने के बाद भी दोनों नें आपस में कम्पटीशन करना नहीं छोड़ा और सोलो कोरियोग्राफर के तौर पर दोनों नें एक दुसरे को कड़ी टक्कर दी.

लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता कई बार पार्टनरशिप के साथ-साथ जीने की उम्मीद और सक्सेस की राह भी छुट जाती है. जैसे कई सालों जब सुजैन फैरल और बैलनचिन नें साथ काम किया. पर जब बैलनचिन इतने बीमार हो गए कि उन्होंने कोरियोग्राफी से संन्यास लेने का फैसला किया तो उनके साथ सुजैन नें भी डांसिंग को अलविदा कह दिया और दुबारा का कभी बैले करते हुयी नहीं दिखी.

कुल मिलाकर
सदियों से हम ये मानते आये हैं कि वही लोग क्रिएटिव होते हैं जो केवल सोलीट्युड में अपने काम में डूबे रहते हैं. लेकिन अब साइंस भी ये मानता है कि हर क्रिएटिव चीज़ के पीछे दो लोगों की पार्टनरशिप होती है. कुछ भी नया और इनोवेटिव करने के लिए दो लोगों के बीच आइडियाज और इमोशन का एक्सचेंज होना जरुरी है. हम ये कह सकते हैं कि ‘पॉवर ऑफ़ टू’ नें ‘लोन जीनियस’ के कांसेप्ट को ख़त्म कर दिया है.

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