António R. Damásio
इमोशंस, रीज़न और इंसान का दिमाग़
दो लफ्जों में
डिस्कार्टस एरर (1990) इंसान के दिमाग के बारे में हमारी कंवेन्शनल जानकारी को पूरी तरीके से बदल देती है. न्यूरोसाइंस और ब्रेन डैमेज का सामना कर रहे मरीजों पर की गई स्टडी को कंबाइन करके यह समरी वेस्ट के दोहरे स्टैंडर्ड को एक्सपोज़ करती है कि वह स्क्रुटिनी पर खरा नहीं उतरता. इसकी वजह इमोशन और रीज़न, बॉडी और ब्रेन के आपस में जुड़े होने पर डिपेंड करती है.
किनके लिये है
- इमोशंस के बारे में गहराई से सोचने वालों के लिए
- वह लोग जो इमोशनल है और खुद के बारे में इंप्रैक्टिकल और बदअकल जैसे शब्द सुन कर थक गए है
- वह लोग जो जानना चाहते हैं कि न्यूरोसाइंस, साइकोलॉजी और फिलोसफी में क्या सिमिलैरिटीज़ हैं
लेखक के बारे में
एंटोनियो डोमासियो साउदर्न केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी, फिलॉसफी और न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर हैं, जहां पर वह ब्रेन और क्रिएटिविटी इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर भी हैं और न्यूरोलॉजी में डेविड डोर्नसाइफ का उहदा रखते हैं. उनकी पिछली किताबों में द फीलिंग ऑफ व्हाट हैपन्स, लुकिंग फॉर स्पिनोजा, सेल्फ कम्स टू माइंड और द स्ट्रेंज ऑर्डर ऑफ थिंग्स शामिल हैं, इन सभी किताबों को क्रिटीक ने काफी सराहा है और यह दुनिया भर की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जाती है. कई सिग्निफिकेंट्स के साथ उन्हे ग्रेमेयर अवार्ड, साइंस और टेक्नोलॉजी में अस्टुरियस और सिग्नेरेट प्राइज़ मिल चुका है.
ब्रेन डैमेज के नतीजे से हम ब्रेन के अलग-अलग हिस्से का फंक्शन समझ सकते हैं
माइंड और बॉडी. यह वेस्टर्न थॉट के पुराने ड्यूलिज्म यानि विरोधाभासों में से एक है. असल में इसकी जड़ें एशियंट ग्रीक से जुड़ी हुयी हैं, इसलिए 17th सेंचुरी के फ्रेंच फिलोसफर रेने डिस्कार्ट को इसका जिम्मेदार ठहराना नाइंसाफी होगी. लेकिन यह कार्टेसियन डुअलिज्म नाम से जाना जाता है इसलिए अब उनका नाम इसका सिनोनिम हो गया है. हिस्टॉरिकली, यह दूसरे डुअलिज्म के साथ आया है, रीज़न और इमोशन. हमें बताया गया है कि रीजन दिमाग का एक हिस्सा है जो लॉजिकल लेवल पर काम करता है. और इमोशन बॉडी के निचले हिस्से में रहता है, और यह इल्लॉजिकल आधार पर काम करता है. आज भी यह डुअलिज्म किसी न किसी रूप में बरकरार है. कई साइंटिफिक माइंडसेट रखने वाले लोग माइंड और बॉडी के डिवीजन में यकीन नहीं रखते उनका कहना है कि माइंड, ब्रेन का एक प्रोडक्ट है. लेकिन उनमें से कई ब्रेन को बॉडी से अलग करके देखते हैं और वह रीजन और इमोशन को भी अलग देखते हैं. हालांकि हम आगे जानेंगे इनमें से कोई भी डुअलिज्म साइंटिफिक प्रिंसिपल पर खरा नहीं उतरता. ब्रेन और बॉडी, रीज़न और इमोशन आपस में जुड़े हुये हैं. इस समरी में आप दिमाग के उस हिस्से के बारे में जानेंगे जो लॉजिकल डिसीजन लेता है, उन दो लोगों की कहानी जानेंगे जिन्होंने अपने ब्रेन का हिस्सा खो दिया था, और ब्रेन, बॉडी, रीज़न और इमोशन के हैरतअंगेज कनेक्शन के बारे में भी जानेंगे।
तो चलिए शुरू करते हैं!
इमेजिन कीजिए कि आप एक इंजीनियर है और आपको एक कॉम्प्लिकेटेड मशीन दे दी जाती है. आपका काम यह पता लगाना है कि यह मशीन काम कैसे करती है. जैसे-जैसे आप डीप में जाते हैं आपको समझ आता है कि इसके अलग-अलग हिस्से बड़ी खुफिया तरीके से आपस में मिलकर काम कर रहे हैं. तो आप इस बारे में क्या करेंगे? हो सकता है आप एक हिस्से को अलग करके यह देखने की कोशिश करें कि क्या होता है. अगर आप X नाम का कोई हिस्सा निकाल देते हैं और मशीन स्पार्क करना बंद कर देती है तो आप समझ जाएंगे की X पार्ट का काम मशीन में स्पार्क प्रोड्यूस करना है. अगर आप यही तरीका मशीन के दूसरे हिस्सों के साथ आज़माएंगे, तो आपको पता चल जाएगा कि मशीन कैसे काम करती है. यही काम करके आप अपने ब्रेन की मशीनरी समझ सकते हैं, लेकिन एक सावधानी बरतनी होगी.
यकीनन, किसी का दिमाग लेकर उसके अलग अलग हिस्सा निकालकर यह देखना कि क्या होता है, बिल्कुल गलत होगा. अच्छी बात यह है, कि साइंस की वजह से, हमें ऐसा करने की भी जरूरत नहीं है. ब्रेन डैमेज करने वाली चोटें, ट्यूमर, और बीमारियां डिमाग़ के किसी खास हिस्से पर असर डाल सकते हैं. अगर यह सही तरीके से होता है तो किसी और पर असर डाले बगैर यह दिमाग के एक हिस्से को खराब कर सकता है- एकदम जैसे साइंटिस्ट ने छूरी से निकाल लिया हो. अगर विक्टिम सरवाइव कर जाता है तो उसका दिमाग काम करेगा लेकिन पहले से एकदम अलग. मिसाल के तौर पर दिमाग के थर्ड फ्रंटल गाइरस में चोट लगने की वजह से लैंग्वेज डिसअॉर्डर हो सकता है जिसे अफेसिया कहते हैं. इस बीमारी से जूझने वाले लोगों को बातों को समझने और कहने में बहुत दिक्कत आती है. जिससे पता चलता है कि थर्ड फ्रंटल गाइरस दिमाग में लैंग्वेज प्रोसेसिंग का काम करता है. इस तरीके से, दिमाग के किसी हिस्से में चोट लगने से पहले और उसके बाद दिमाग के काम करने के तरीके को कंम्पेयर करके हम यह जान सकते हैं कि ओवरऑल मशीनरी में पर्टकुलर पार्ट का क्या रोल है. कुछ इसी तरह न्यूरोसाइकोलॉजी भी ब्रेन स्टडी करती है. और हम आने वाले लेसन में इस स्टडी से हुई डिस्कवरीज के बारे में जानेंगे.
फिनियास गेज की स्टोरी से पता चलता है कि कैसे ब्रेन डैमेज साइंटिफिक क्लूज़ दे सकता है
न्यूरोसाइकोलॉजी के ज़रिए ब्रेन स्टडी करने से पहले हमें ऐसे किसी शख्स का एग्जांपल चाहिए जिसे ब्रेन डैमेज हुआ हो. ऐसी बहुत सारी कहानियां है लेकिन कुछ ही केसेस फिनियास गेज (Phineas Gage) की तरह भयानक और अलग हैं. गेज 19 सेंचुरी का रेलरोड कंस्ट्रक्शन सुपरवाइजर था, जो वरमाउंट में रट-लैंड और बर-मिन-टॉन रेलरोड कम्पनी के लिये काम करता था. काबिल होने के नाते गेज के कंधों पर कंपनी के सबसे डिमांडिंग और खतरनाक काम की जिम्मेदारी थी, उसका काम डिमोलिशन के लिए एक्सप्लोजंस चार्ज रखना था. अगर आप चार्ज को ढंग से नहीं रखते तो यह आपका चेहरा भी उड़ा सकते हैं. 1848 की गर्मियों में गेज के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जब वह व्हेल शार्क रेल ट्रैक क्लियर करने के लिए एक छोटा सा एक्सप्लोजन चार्ज रख रहा था तभी अचानक से एक्सप्लोजन ट्रिगर हो गया और उससे निकलने वाला रॉड उसके उलटे गाल से होता हुआ उसकी खोपड़ी को अंदर से तोड़ते हुए गुजर गया. जिसकी वजह से उसकी खोपड़ी का निचला हिस्सा फट गया और वह रॉड दिमाग के सामने वाले हिस्से से गुज़र कर 100 फीट दूर गिरा.
उसके बाद जो हुआ वह हैरत में डाल देने वाला था, ना सिर्फ गेज इस एक्सीडेंट में बच गया बल्कि कुछ मिनट बाद वह वापस बैठ कर बोलने भी लगा. एक डॉक्टर ने उसके जख्मों का इलाज किया और गेज एक्सीडेंट के बाद कम से कम एक दशक जिंदा रहा. इस दौरान उसका दिमाग याददाश्त, इंटेलिजेंस, लैंग्वेज, परसेप्शन जैसे कॉग्निटिव फील्ड में नॉर्मल काम कर रहा था. लेकिन उसके कुछ दोस्तों का माना था कि 'गेज पुराना गेज नहीं रह गया था.' उसने सोशल कंवेन्शन के लिये इज्ज़त खो दी थी और अब अपने फ्यूचर के लिए बहुत कम फिक्रमंद रहने लगा था. उसने कसम खाना, झूठ बोलना, सलाह को नजरअंदाज करना और बिना सोचे समझे एक्ट करना शुरू कर दिया था. वह एक के बाद एक स्कीम ले आता और उन्हें अधूरा छोड़कर अगले पर चला जाता. वह किसी प्लान या गोल पर ठहर नहीं पा रहा था, मतलब कंसिस्टेंट नेचर उसके लिए मुश्किल हो गया था. गेज को इसका खामियाजा चुकाना पड़ा उसे रेलरोर्ड कंपनी से निकाल दिया गया, और उसने कई हॉर्स फार्म में नौकरी की और आखिर में एक सर्कस में साइड शो बनकर रह गया. लेकिन साइंस के लिए गेज की स्टोरी काफी फायदेमंद रही क्योंकि इसने दिमाग की कई मिस्ट्री सुलझा दी थी. आगे हम जानेंगे, हमारे ब्रेन कॉग्निशन में हर पार्ट का अपना इंपॉर्टेंट रोल होता है.
गेज की स्टोरी से पता चलता है कि प्रैक्टिकल रीज़निंग में वेंट्रोमेडियल प्रिफ्रंटल कॉर्टेक्स का अहम किरदार होता है.
तो असल में फिनियास गेज के साथ हुआ क्या था? अगर टाइम मशीन की मदद का ऑप्शन छोड़ दिया जाए, तो हम कभी नहीं जान पाएंगे कि असल में हुआ क्या था. 1861 में गेज की मौत हो गई थी, और स्टडी करने के लिए हमारे पास उसका ब्रेन नहीं है. लेकिन हावर्ड यूनिवर्सिटी में उसका स्कल यानी खोपड़ी और उससे गूजरने वाली वह रॉड प्रिजर्व करके रखी गई है, उसकी स्टडी से कुछ अंदाजा लग सकता है.
कंप्यूटर सिमुलेशन टेक्नोलॉजी की मदद से रिसर्चर्स उस रॉड का रुट ट्रेस करने में कामयाब रहे हैं, जो गेज के सिर से होकर गुजरी थी. उस स्टडी के आधार पर हम यह कह सकते हैं की रोड ने दिमाग के उस हिस्से को पूरी तरीके से बर्बाद कर दिया था जिसे Ventromedial Prefrontal Cortex (VPC) कहते हैं, जबकि बाकी के हिस्से वैसे ही बरकरार रहे.
इस हाइपोथेसिस पर आगे बढ़ने के लिए हमें मॉडर्न दुनिया का ऐसा कोई केस चाहिए जो गेज से मिलता जुलता हो. लेखक ने अपने पेशेंट का उपनाम या निकनेम एंटर एलियट रखा है. अपनी 30 की उम्र में एलियट एक सक्सेसफुल बिजनेसमैन, हस्बैंड और फादर था. लेकिन सिर्फ उस दिन तक जब उसके VPC में डैमेज हो गया. एलियट का यह ब्रेन डैमेज ट्यूमर की वजह से हुआ था. लेकिन सिम्टम्स एकदम गेज की तरह ही थे.
लेखक की लेबोरेटरी में एग्जामाइन करने पर एलियट का दिमाग एकदम नॉर्मल था रिपोर्ट में उसके दिमाग में कोई कमी नजर नहीं आई यहां तक कि मेमोरी, एल्गोरिथ्म, फेस रिकॉग्निशन, जनरल इंटेलिजेंस जैसी चीज़ों में उसका ब्रेन लेवल एवरेज से बेहतर था. लेकिन उसकी प्रैक्टिकल रीजनिंग स्किल में कुछ कमी थी. वह अब अपने लिए फायदेमंद और अच्छे फैसले नहीं कर पाता था. काम पर उसे समझ नहीं आता कि किन कामों को प्रायोरिटी में रखा जाए और टाइम कैसे मैनेज किया जाए. मिसाल के तौर पर, अगर उसे कुछ डॉक्यूमेंट्स पर काम करना होता, तो वह उनमें से किसी एक को पढ़ने और ऑर्गेनाइजेशन सिस्टम बनाने में ऑब्सेस्ड हो जाता और भूल जाता कि उसका मेन टास्क क्या था और उसे कितने वक्त में करना था.
हां, हम में से हर किसी के साथ कभी कभी ऐसा हो जाता है लेकिन उसके साथ यह हमेशा होता था और वह इस प्रॉब्लम को सुलझा नहीं पा रहा था. नतीजतन वह गेज की तरह ही जॉब से निकाल दिया गया था. उसने अपने दोस्तों के मना करने के बावजूद गलत सलाह पर अमल करके मनी स्कीम से पैसे कमाने की कोशिश की. जिसके चलते उसकी जिंदगी पूरी तरीके से तबाह हो गई. VPC में ब्रेन डैमेज की वजह से बेरोजगार, बैंक्रप्ट होने के साथ उसका डिवोर्स भी हो गया था.
VPC के अलावा और भी चीजें प्रैक्टिकल रिजनिंग से जुड़ी हैं
चलिये, अभी तक हमने जो जाना उसे एक बार समराइज़ कर लेते हैं, अगर आपके VPC में कई डैमेजेस हो जाते हैं तो आप अपनी प्रैक्टिकल रिजनिंग की काबिलियत खो देते हैं. इसका मतलब प्रैक्टिकल रीज़निंग VPC पर डिपेंड करती है, है न? हां, इन दोनों के बीच के आपसी रिलेशन इस्टैबलिश्ड हो चुके हैं. लेखक और उनके कलीग ने ऐसे ही डैमेजेस और सिम्टम्स वाले 12 और पेशेंट पर स्टडी की. और क्योंकि दो चीजों में आपसी रिलेशन है इसका मतलब यह नहीं है कि एक की वजह से ही दूसरा है इसलिए किसी भी नतीजे पर आने से पहले हमें केयरफुल रहने की जरूरत है.
हम किसी खास फंक्शन और दिमाग के किसी खास हिस्से के बीच में मेल नहीं बिठा सकते. जैसाकि हम जानेंगे, कोई भी एक ब्रेन फंक्शन दिमाग के कई हिस्सों के आपस में मिलकर काम करने की वजह से होता है. दिमाग के हिस्सों के आपस में मिलकर काम करने की वजह से ही हम प्रैक्टिकल रिजनिंग जैसे काम कर पाते हैं. हम यह कह सकते हैं कि दिमाग का अलग अलग हिस्सा अलग अलग काम करता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी हिस्सा अकेले काम नहीं कर सकता.
इससे हम एक और प्रिकॉशन की तरफ आते हैं, वह यह कि दो और तरह के ब्रेन डैमेज की वजह से गेज और एलियट जैसे सिम्टम्स सामने आते हैं. पहला डैमेज अमिगडाला और एंटीरियर सिंगुलेट का है, यह दोनों ही लिंबिक सिस्टम का हिस्सा है. दिमाग के यह हिस्से इमोशन प्रोसेस करने का काम करते हैं. और दूसरी चोट सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स के दाहिने हिस्से की है. दिमाग का यह हिस्सा कुछ भी छूने पर फिजिकल सेंसेशन, टेम्परेचर, दर्द ज्वाइंट पोज़िशन महसूस करने और विसेरल स्टेट में मदद करता है. विसेरल स्टेट में हमारे ऑर्गन में महसूस होने वाले हर तरह के सेंसेशन शामिल हैं, जैसे कि हर्ट, लंग्स, ब्लड वेसल, स्किन वगैरह.
तो क्या हम सिर्फ इस इक्वेशन को बढ़ा नहीं सकते? मतलब प्रैक्टिकल रीज़निंग=VPC+ लिंबिक सिस्टम+ सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स, बात खतम. सच कहें, तो नहीं कर सकते. क्योंकि हमें अभी तक नहीं मालूम कि यह चीजें किस चीज के साथ मिलकर हमारी प्रैक्टिकल रिजनिंग को जन्म देती हैं. वह इस कॉग्निटिव फंक्शन को परफॉर्म करने के लिए आपस में कैसे काम करते हैं? इसके साथ ही एक और सवाल हमारे सामने आ गया कि इमोशन और फिजिकल सेंसेशन का प्रैक्टिकल रीजनिंग से क्या लेना देना है? क्योंकि अगर इक्वेशन में लिंबिक सिस्टम और सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स को जोड़ते हैं, तो यह भी जुड़ जाते हैं.तो,दिमाग के इन तीन अलग-अलग हिस्सों के बीच में क्या नाता है?
जैसे-जैसे हम प्रैक्टिकल रीजनिंग की मिस्ट्री को सुलझाने के लिए आगे बढ़े हमारे पास अब एक के बजाए 3 मुद्दे हैं, VPC, लिंबिक सिस्टम और सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स. दिमाग के इन तीन अलग-अलग हिस्सों में एक जैसा क्या है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए एक बार फिर एलियट की कहानी पर चलते हैं. गेज की तरह एलियट भी VPC में डैमेज होने बाद, सही फैसले लेने, अपने मकसद पर बने रहने और प्लान पर अमल करने मे नाकाम हो रहा था. लेकिन गेज से अलग एलियट काफी जिंदादिल था. इसके बारे में पढ़ते वक्त लेखक के सामने एक हाइपोथेसिस आई, उन्होंने उसे टेस्ट किया. जैसा कि साइंस की हिस्ट्री में कई बार हुआ है एक सरप्राइजिंग और शॉकिंग मोमेंट ने लेखक की हाइपोथिसिस को लीड किया. रिट्रोस्पेक्ट के दौरान यह बहुत क्लियर था, लेकिन रियलाइज करने में थोड़ा वक्त लगा.
एलियट और लेखक की कई बातचीत में लेखक ने नोटिस किया कि जिस तरीके से एलियट अपनी जिंदगी के नैरेटिव्स को बताता है वह थोड़ा अजीब है. यह नौकरी, सेविंग यहां तक की शादी तबाह होने की एक गमजदा कहानी थी. एलियट ने यह सारी चीज़ें लेखक को बहुत डिटेल से बतायीं. लेकिन घण्टों भर अपनी बर्बादी की कहानी बताने के बावजूद एलियट एक बार भी इमोशनल नहीं हुआ, ना वह अपनी बदकिस्मती पर दुखी हुआ और ना ही लेखक के लगातार सवालों से चिढ़ा. और एलियट इस तरीके से सिर्फ लेबोरेटरी में बर्ताव नहीं कर रहा था लेखक ने उसके जानने वालों से बात की, तो उन्होंने बताया एलियट अपनी आम जिंदगी में भी वैसा ही है. लगभग हमेशा इमोशन के मामले में एकदम न्यूट्रल रहता. कभी-कभी थोड़ा गुस्सा करता लेकिन फौरन शांत हो जाता, और ऐसे बिहेव करता जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
यह चीज नोटिस करने के बाद लेखक ने एलियट को कुछ तस्वीरें दिखायीं जिन पर अक्सर लोग इमोशनल हो जाते हैं, जैसे कि जलता हुआ घर, चोट खाते हुए लोग वगैरह. इस मौके पर, एलियट ने खुद कह दिया कि वह पहले की तरह अपने अंदर इमोशन महसूस नहीं करता. ऐसा सिर्फ एलियट के साथ नहीं था, बल्कि उन 12 पेशेंट्स के साथ भी था जिन पर लेखक और उनके कलीग ने स्टडी की थी. प्रैक्टिकल रिजनिंग की कमी के साथ उन सभी में इमोशन लगभग खत्म हो गए थे. अब हमें एक और चीज मालूम है- इमोशन और प्रैक्टिकल रिजनिंग के को-रिलेशन के बारे में. और इसके साथ ही हमें एक नया क्लू मिलता है.
हमारे इमोशंस हमारे ब्रेन को इंपॉर्टेंट इंफॉर्मेशन और गाइडेंस देते हैं
सतही तौर पर एलियट के अंदर इमोशन की कमी और उसकी घटती प्रैक्टिकल रीजनिंग में को रिलेशन एक कॉन्ट्रैडिक्शन यानि विरोधाभास समझ आता है. आखिरकार, हमें लगता कि हमारे इमोशंस हमारे जजमेंट या कॉग्नेटिव फंग्शन को दबा देते हैं. अगर एलियट के अंदर इमोशंस की कमी थी तो उसकी प्रैक्टिकल रीजनिंग तो खराब होने के बजाय और बेहतर होनी चाहिए थी?
जैसा कि आपको आगे पता चलेगा हमारे इमोशंस की प्रैक्टिकल वैल्यू, जितना हम सोच सकते हैं उससे कहीं ज़्यादा होती है. इमोशंस को समझने के लिये हम इन्हें दो हिस्से में बांट सकते हैं. पहला आपकी बॉडी में होने वाले चेंजेस का कलेक्शन है. यह किसी मोमेंट में आपकी बॉडी का ओवरऑल एक्टिविटी पैटर्न है. आपके ऑर्गन, मसल्स और ज्वाइंट के साथ क्या हो रहा है? वह कैसे काम कर रहे है? आपका दिमाग लगातार ऐसे सवाल करता है और आपकी बॉडी केमिकल और इलेक्ट्रिकल सिग्नल में इन सवालों का जवाब देती है.
जब भी आपके अंदर कोई इमोशन पनपता है, तो अपने बॉडी स्टेट में एक पैटर्नड चेंज नोटिस करते हैं. मिसाल के तौर पर अगर आप खुश होते हैं तो आप देखेंगे कि आपकी स्किन ब्लश करने लगती है, आपके फेस मसल्स स्माइल करते हैं और बॉडी के दूसरे मसल्स रिलैक्स हो जाते हैं. अगर आप दुखी हैं तो उसके उल्टा हो सकता है आपका मुंह लटक जाता है और मसल्स सिकुड़ने लगते हैं. अगर आप अपनी बॉडी में हो रहे सारे सेंसेशन को जोड़ दें, तो इनसे इमोशन बनते हैं. जिसे हम इमोशनल बॉडी स्टेट कहते हैं, वह दरअसल आपके बॉडी स्टेट में हो रहे बदलावों का एहसास है.
आपके पास ऐसी मेंटल इमेजेस का कलेक्शन भी होता है जो कुछ ऐसा रिप्रेसेन्ट करती है जिससे आपका इमोशनल बॉडी स्टेट ट्रिगर हो सकता है. यह इमेजेस सिर्फ विजुअल नहीं, बल्कि साउंड, टेस्ट, स्मेल कुछ भी हो सकती हैं. यह इन सब चीज़ों की यादें भी हो सकती हैं. मिसाल के तौर पर, अपने दोस्त का चेहरा, उसकी आवाज, या सिर्फ उसके नाम की याद आपको खुशी से जुड़े इमोशन के बॉडी स्टेट में ले जा सकती है.
इन मेंटल इमेजेस के कलेक्शन को अपने बॉडी स्टेट से कंबाइन करिए और बस इमोशंस बन गये. आपके पास एक इंपॉर्टेंट इंफॉर्मेशन और गाइडेंस का पावरफुल सोर्स है. आपके पॉज़िटिव या नेगेटिव इमोशंस, दिमाग का कहने का तरीका है कि, "यह चीज़ अच्छी है, इससे मुझे बेहतर महसूस हो रहा है."
अगर किसी चीज के बारे में आपका ब्रेन अच्छा सोचता है तो आप पॉजिटिव इमोशंस महसूस करेंगे और उस चीज को पाना चाहेंगे ताकि वह इमोशन आप दोबारा हासिल कर सकें. अगर आपका दिमाग किसी चीज को लेकर नेगेटिव सोचता है, तो आप एकदम इसके उल्टा करेंगे. चाहे उस शख्स को नजरअंदाज करने के लिए आपको बाथरूम में ही क्यों ना बैठना पड़े, जिसे आप ना पसंद करते हैं. तो कुछ इस तरीके से हमारा इमोशन काम करता है, लेकिन यह समझने के लिए कि यह एलियट से कैसे जुड़ा है आपको कुछ और डिटेल्स जाननी होंगी.
VPC डैमेज होने के बावजूद लोग प्राइमरी इमोशन महसूस कर सकते हैं. VPC डैमेज होने के बाद एलियट की इमोशनल लाइफ खराब हो गई थी,लेकिन यह पूरी तरह बर्बाद नहीं हुयी थी. जैसा कि हमने ऊपर जाना उसे कभी-कभी गुस्सा आ जाता था. लेकिन वह आसमान में चमकने वाली बिजली जैसा था, आता और फौरन चला जाता.
ऐसा इसलिए होता था क्योंकि अभी भी एलियट प्राइमरी इमोशंस एक्सपीरियंस कर सकता था. यह वह बेसिक इमोशंस हैं जो हमारे अंदर जन्म से हैं. इनमें कुछ देर की खुशियां, गुस्सा, दुख, डर वगैरह शामिल हैं. बाकियों के तरह एलियट भी इन्हें महसूस कर रहा था. अगर आप दरवाजे के पीछे छुप जाते हैं और अचानक से उसके सामने आ जाते हैं तो वह भी डर जाता. इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए, एक एग्जाम्पल लेते हैं. इमैजिन कीजिए कि आप हाइकिंग रूट पर चल रहे हैं, अचानक से आपके सामने सांप आ जाता है. आपका दिमाग स्लिथरिंग इमोशन महसूस करता है और प्रोसेसिंग के जरिए इसे लिंबिक सिस्टम की तरफ आगे बढ़ाता है. याद है जब हम प्रैक्टिकल रीज़निंग की बात कर रहे थे तो वहां पर लिंबिक सिस्टम भी आया था. अब हम इसके काम के बारे में जानेंगे.
बेसिकली आपका लिंबिक सिस्टम आपके स्लिथरिंग इमोशन को यह कह कर रिस्पांन्ड करता है, "यह डरावना है, फियर रिस्पांस एक्टिवेट करो." उसके बाद यह न्यूरोलॉजिकल और बायोलॉजिकल सीरीज़ प्रोसेस करता है जो आपकी बॉडी को डर के स्टेट में ले जाते हैं. आपके दिल की धड़कन तेज हो जाती है और सांस फूलने लगती हैं.
और यहीं से हम अपने दूसरे सस्पेक्ट ब्रेन के दूसरे हिस्से सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स पर पहुँचते हैं. दिमाग के इस हिस्से की वजह से आप वहीं खड़े नहीं रहते. आप जल्दी से एक्ट करने की कोशिश करते हैं और उस खतरे से अपने आप को दूर ले जाते हैं. यह एक्ट करने का प्राइमरी इमोशन है. आपने नोटिस किया होगा इस पूरे इक्वेशन में VPC नहीं आया. और इसी वजह से VPC डैमेज होने के बावजूद एलियट प्राइमरी इमोशंस एक्सपीरियंस कर पा रहा था. जिन लोगों के लिंबिक सिस्टम में डैमेज होता है वह प्राइमरी इमोशन नहीं महसूस कर पाते. लेकिन सेकेंडरी इमोशंस अलग चीज है, जो थोड़ा सा कॉन्प्लिकेटेड है. इसके बारे में हम अगले लेसन में जानेंगे.
सेकेंडरी इमोशंस वक्त के साथ आते हैं और VPC पर डिपेंड करते हैं
अब इमेजिन कीजिए एक बार फिर आप का सामना सांप से होता है, लेकिन आप एक हर्पिटोल्जिस्ट हैं, हर्पिटोल्जिस्ट, किसी ऐसे शख्स को कहते हैं जो रेप्टाइल्स और एमफीबियंस पर स्टडी करता हो. आप अपनी पूरी जिंदगी सांपों के करीब रहे हैं, और इस बार भी उनके साथ पूरी तरह कंफर्टेबल हैं. आपके सामने जो सांप आया है वह नुकसान नहीं पहुंचाता और बचपन से आपका फेवरेट जानवर रहा है. उस वक्त आप क्या महसूस करेंगे, आप डरे हुए बिल्कुल नहीं हैं, बल्कि बहुत खुश होंगे और इसी इमोशन को सेकेंडरी इमोशन कहते हैं. यहां पर हमें बहुत कुछ जानने की जरूरत है. चलिये एकदम बेसिक से शुरू करते हैं. कोई भी इमोशन आपके इमोशनल बॉडी स्टेट और उस मेंटल इमेजेस का कॉम्बिनेशन है जो इसे ट्रिगर करती है. हमारे एग्जाम्पल में बहुत सारी इमेजेस हैं जो दिमाग में चल रही होंगी. आपके सामने सांप की विजुअल इमेज है, आपके दिमाग में वह पुरानी यादें ताजा हो रही होंगी जब आप इस जानवर से पहले मिले होंगे और साथ ही वह सारी इनफार्मेशन भी चल रही होंगी जो आपने इसके बारे में कलेक्ट की हैं.
आप अपनी जिंदगी में कई तरह की चीजों की इमेजेस का भारी कलेक्शन बना लेते हैं, जिनसे आप पहले मिले या जिनके बारे में आपने पहले से जान रखा हो, इस एग्ज़म्पल में वह मेमीरीज़ सांप की है. लेकिन यह कुछ भी हो सकता है जैसे की जगह, लोग, कोई चीज़, कोई इवेंट वगैरह. वक्त के साथ आपके दिमाग में यह इमेजेस अलग-अलग इमोशन से एसोसिएट होने लगती हैं. हो सकता है सांपों से आपका इंट्रोडक्शन आपके फेवरेट टीचर ने ज़ू ट्रिप के दौरान कराया हो. और तभी से सांप को लेकर एक खुशी का बीज आपके मन में पड़ गया हो. हो सकता है दोबारा आपने सांप तब देखा हो जब आप अपने फादर के साथ पेट स्टोर गये रहे हो और आपके मन में पढ़ा वह बीज थोड़ा ग्रो कर गया. अगर आपके लाइफ एक्सपीरियंस उस बीज को पानी देना जारी रखेंगे तो आपकी खुशी और सांप के बीच में एक गहरा एसोसिएशन डिवेलप हो जाएगा. और यहां पर आपको एक सेकेंडरी इमोशन हासिल हो गया, आपकी खुशियाँ सांप से जुड़ गयीं.
इस इमोशन को महसूस करने के लिये भी आपको सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स की ज़रुरत पड़ेगी, ताकि आप अपने इमोशनल बॉडी स्टेट में बने रहें. और इस स्टेट को क्रिएट करने में लिंबिक सिस्टम की भी जरूरत होगी. आपको यहां एक और चीज की जरूरत पड़ेगी जो आपके दिमाग में आ रही इमेजेस और मेमोरीज को कलेक्ट कर के लंबित सिस्टम और सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स से आ रहे सिग्नल से कम्बाइन करे. आपको क्या लगता है, वह क्या चीज़ हो सकती है?
आपका VPN, यह काम करता है, प्रैक्टिकल रीज़निंग की मिस्ट्री.
हम लगभग इस पज़ल के किनारे पर ही हैं. हमने अभी जाना कि कैसे सेकेंडरी इमोशन क्रिएट करने के लिए लंबित सिस्टम, सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स और VPN साथ में काम करते हैं. और हम यह भी जान चुके हैं कि कैसे इमोशन हमें इंपॉर्टेंट इंफॉर्मेशन और गाइडेंस प्रोवाइड करते हैं. अब बस पज़ल के अलग-अलग हिस्से को एक साथ रखकर स्टोरी सॉल्व करनी है. एक इंपोर्टेंट सवाल यह है कि सेकेंडरी इमोशन हमारी प्रैक्टिकल रीज़निंग में क्या रोल अदा करता है.
एक दिन एलियट के साथ सेशन के खत्म होते वक्त लेखक नेक्सट अपॉइंटमेंट शेड्यूल करने की कोशिश कर रहे थे. लेखक ने उसे 2 दिनों के अंदर की दो अलग-अलग तारीख दी एलियट अपना कैलेंडर निकालकर अपनी प्लानिंग चेक करने लगा और दोनों ही तारीखों पर सेशन करने के नुकसान और फायदे गिनाने लगा.
यह देखने के लिए एलियट कितनी देर तक इसी तरह बात कर सकता है लेखक ने उसे नहीं टोका. आधे घंटे बाद तक एलियट बोलते चला जा रहा था, वह अगले महीने के मौसम से लेकर सभी तरह की पॉसिबिलिटी की बात कर रहा था. उसका इतना बोलते रहना लेखक अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे, इसीलिए उन्होंने 1 तारीख दे दी और एलियट ने जवाब में सिर्फ इतना कहा, "ठीक है." और चला गया. उसके साथ प्रॉब्लम यह थी कि वह अपना मन नहीं बना पा रहा था. प्रैक्टिकल रीज़निंग का कुल मतलब यही है. इसका मतलब पूरे प्रोसेस के बारे में सोच कर अपने लिए बेस्ट फैसला लेना है. एलियट प्रोसेस के बारे में सोच तो पा रहा था, लेकिन कोई भी फैसला ले पाना उसके लिये नामुमकिन था.
इसमें कुछ गलत नहीं है कि आप आधा घंटा सोचने के लिए लेते हैं. अगर आप किसी बड़े फैसले के बारे में सोच रहे हैं तो इससे भी डाला वक्त लिया जा सकता है. लेकिन अगर 2 तारीख के बीच में से चुनना है और वह कोई डिफरेंस क्रिएट नहीं करते तो यह वक्त बर्बाद करना ही हुआ. हमें छोटे-मोटे फैसले तुरंत लेने के काबिल होना चाहिए, जैसे कैश या क्रेडिट, दाहिने या बायें, हां या ना?
जल्दी और बेहतर फैसले लेने के लिए आपके दिमाग को एक रास्ता चाहिए, और यही वह जगह है जहां से सेकेंडरी इमोशंस आते हैं. जिसके बारे में हम आगे जानेंगे.
द सोमैटिक मेकर हिपोथेसिस प्रैक्टिकल रीज़निंग में सेकेंडरी इमोशन का रोल एक्सप्लेन करती है
चलिए एक आखरी सवाल के साथ यह गुत्थी सुलझा लेते हैं, प्रैक्टिकल रीज़निंग में सेकेंडरी इमोशन का क्या रोल होता है? हम ब्रेन डैमेज से जुड़ी एक मिस्ट्री सॉल्व कर रहे हैं जिसमें हमारे मेन टारगेट दिमाग के तीन हिस्से लिंबिक सिस्टम, सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स और VPC हैं. हमारा जवाब हेपोथेसिस में है जिसे सोमैटिक मेकर हिपोथेसिस कहते हैं, यह अपने नाम से कहीं ज्यादा इंटरेस्टिंग है.
सोमैटिक मेकर एक खास सेकेंडरी इमोशन है जो डिसीजन मेकिंग प्रोसेस में इंपॉर्टेंट रोल अदा करता है. जब आप अपने सभी ऑप्शंस और उनके नतीजे के बारे में सोच रहे होते हैं तो आप उनके बारे में सेकेंडरी इमोशन का भी एहसास कर रहे होते हैं. इस इमोशन के पॉज़ेटिव या नेगेटिव होने के आधार पर आप उन ऑप्शंस से करीब या दूर जाते हैं. यह इमोशंस फैसला लेने में आपकी मदद करते हैं. चलिए मान लेते हैं कि आपके सामने एलियट जैसी ही सिचुएशन आ जाती है, आप अपनी अपॉइंटमेंट मंडे और वेनज़डे इन दोनों में से किसी एक दिन रखना चाहते हैं. अब इमेजिन कीजिए कि आप मंडेस को अपॉइंटमेंट पसंद नहीं करते. शायद इसलिए क्योंकि मंडे को ही काम पर वापस जाना होता है और उसी दिन अपॉइंटमेंट अटेंड करना आपको स्ट्रेस कर देता है.
यह सारे एक्सपीरियंस मिलकर आपके मन में मंडे को लेकर नेगेटिव सेकेंडरी इमोशन क्रिएट करते हैं. अगर आप अनलाइज़ करते है तो आपको खुद के और क्वेश्चन में दिए गए ऑप्शन के बारे में कुछ इंफॉर्मेशन मिलेगी. लेकिन आपको उस इंफॉर्मेशन के बारे में ज़्यादा सोचकर वक्त नहीं बर्बाद करना पड़ता. इसके बजाय, आप बस मंडे को अपॉइंटमेंट अटेंड करने के बारे में नेगेटिव सोचते हैं. और कुछ सेकेन्ड के बाद आप अपने ऑप्शंस में से वेनज़डे को चुन लेते हैं और आपका फैसला पूरा हो जाता है.
वहीं जब एलियट फैसला लेने की कोशिश करता है तो सोमैटिक मेकर इसमें उसकी मदद नहीं करता. नतीजतन वह ऑप्शंस के बारे में बारीकी से सोचता ही रह जाता है. अगर मंडे को बारिश हो गई तो? वेनज़डे को ट्राफिक मिल गया तो? उसके सवाल जारी रहते हैं. जिंदगी हमारे सामने ऑप्शन पेश करती रहती है, और हमारे दिमाग का काम जायज़ वक्त में सही फैसले लेना है. ऐसा करने के लिए ब्रेन को सेकेंडरी इमोशन द्वारा प्रोवाइड किए गए सोमेटिक मेकर की हेल्प की जरूरत पड़ती है.
सही फैसले लेने के लिए हमारे दिमाग को हमारी बॉडी और इसके द्वारा एक्सप्रेस किये जा रहे इमोशंस को सुनना पड़ता है. रीज़न और इमोशन. ब्रेन और बॉडी. एक दूसरे पर डिपेंड करते हैं. इन्हें एक साथ काम करना होता है अगर यह एक साथ काम नहीं करेंगे तो हमारी हालत भी एलियट के जैसे ही हो जाएगी. हम अपनी पॉसिबिलिटीज में खो जाएंगे और फैसला नहीं कर पाएंगे.
कुल मिलाकर
सोमैटिक मेकर प्रोवाइड करके हमारे इमोशंस हमारी प्रैक्टिकल रीज़निंग में इम्पॉर्टेंट रोल अदा करते हैं. यह हमें प्रोवाइडेड ऑप्शंस में से चूज़ करके जिंदगी के फैसले लेने में मदद करते हैं. लिंबिक सिस्टम, सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स और VPC का एक साथ काम करना इस प्रोसेस का इंपॉर्टेंट हिस्सा है. क्योंकि हमारे इमोशंस हमारी बॉडी स्टेट का रिफ्लेक्शन हैं, इमोशन और रीजनिंग के बीच का कनेक्शन बताता है कि हमारी बॉडी और ब्रेन के बीच में भी बहुत करीबी नाता है. यह दोनों या इनका काम अलग बिल्कुल नहीं है.
येबुक एप पर आप सुन रहे थे Descartes' Error by António R. Damásio
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