Emily Nagoski, PhD, Amelia Nagoski, DMA
तनाव का ताला खोलने का राज़।
दो लफ्जों में
बर्नआउट ( Burnout ) में हम देखेंगे कि किस तरह से आप खुद को बर्नआउट से बाहर निकाल सकती हैं। यह किताब उन महिलाओं के लिए हैं जो दूसरों की जरूरतों को पूरा करने में खुद की जरूरतों पर ध्यान देना भूल गईं हैं। यह किताब बताती है कि किस तरह से वे अपनी जिन्दगी को मजेदार बना सकती हैं।
यह किसके लिए है
-वे जो हर वक्त उदास और थका हुआ महसूस करते हैं।
-वे जो खुश रहने के तरीके जानना चाहते हैं।
-वे जो अपने तनाव को कम करना चाहते हैं।
लेखिका के बारे में
एमिली नागोस्की ( Emily Nagoski ) एक लेखिका हैं जो अपनी किताब कम ऐज़ यू आर ( Come As You Are ) के लिए जानी जातीं हैं। वे एक सेक्स एजुकेटर हैं जो महिलाओं को सिखाती हैं कि किस तरह से वे खुद को अपना सकती हैं और खुश रह सकती हैं।
अमेलिया नागोस्की (Amelia Nagoski) एक म्यूजिक प्रोफेसर हैं। वे एमिली नागोस्की की जुड़वा बहन हैं जो कि आर्ट और साइंस के फील्ड में काम करती हैं। उनके सेमिनार का नाम है - बियान्ड बर्नआउट प्रिवेंशन, जिसमें वे लोगों को बर्नआउट से निकलने के तरीके बताती है।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
महिलाओं को आज भी बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समाज उन्हें हमेशा सिखाता है कि उनका काम है किसी दूसरे व्यक्ति का घर बसाना। फिल्मों में भी महिलाओं का रोल सिर्फ इसलिए होता है ताकि हीरो को कोई प्यार करने के लिए मिल सके। इन सभी उम्मीदों को पूरा करने में वे कहीं न कहीं खुद का खयाल रखना भूल जाती हैं।
यह किताब उन्हें बताती है कि किस तरह से वे इन उम्मीदों से लड़कर खुद की जिन्दगी शुरू कर सकती हैं। यह किताब बताती है कि किस तरह से वे अपना तनाव कम कर सकती हैं, रात को अच्छी नींद पा सकती हैं, खुश रह सकती हैं और अपनी जिन्दगी का मकसद खोज सकती हैं।
-किस तरह से आप बर्नआउट को ठीक कर सकती हैं।
-किस तरह से आप अपने तनाव को कम कर सकती हैं।
-किस तरह से आप खुद को खुश रख सकती हैं।
हमें बर्नआउट तब होता है जब हम अपनी भावनाओं में उलझ जाते हैं।
कभी कभी हम सारा दिन काम करते जाते हैं लेकिन शाम को हमें लगता है कि हमने अभी तक कुछ नहीं किया। कभी कभी हमें लगता है कि हम जो कर रहे हैं उसका कुछ फायदा नहीं हो रहा है और शायद कोई फायदा हो भी ना। कभी कभी हमारे पास करने के लिए बहुत कुछ होता है लेकिन हमारा कुछ भी करने का मन नहीं करता।
इसी को बर्नआउट कहते हैं। 1975 में हर्बर्ट फ्र्यूडेनबर्गर ने बर्नआउट होने की 3 वजहों के बारे में बताया। उनमें से पहली वजह है किसी चीज़ की बहुत ज्यादा परवाह करना। दूसरी वजह है डीपर्सनलाइज़ेशन ( depersonalization ) , जिसमें हमें यह लगने लगता है कि अब हम पहले की तरह दूसरों की परवाह नहीं करते या फिर उनसे सहानुभूति नहीं जता पाते। और तीसरी वजह है यह महसूस करना कि चाहे जब जितना भी काम कर लें, हम कुछ भी हासिल नहीं कर पा रहे हैं।
अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह सारी भावनाएं हमारे अंदर क्यों पैदा होती हैं। इन सभी के पैदा होने की वजह सिर्फ एक ही है - अपनी भावनाओं में उलझ जाना। भावना एक सुरंग के जैसी होती है। एक सुरंग शुरू होता है, फिर काफी दूर तक एक जैसा ही दिखता है और अंत में जाकर खत्म हो जाता है। उसी तरह से एक भावना भी शुरू होने के बाद जब काफी समय तक आपके पास रहती है। तो आपको खुद में कोई बदलाव नहीं दिखता जिससे आप असंतुष्ट हो जाती हैं।
इसी वजह से जो लोग बर्नआउट के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं, वे वो लोग होते हैं जो दूसरों की परवाह और उनकी मदद करने का काम करते हैं। एक्ज़ाम्पल के लिए डाक्टर, टीचर और पैरेंट्स। लगभग 20% से 30% टीचर्स ने और 52% डाक्टर्स ने इसे माना कि वे बहुत ज्यादा बर्नआउट महसूस करते हैं। साथ ही पैरेंट्स के लिए बर्नआउट महसूस करना एक आम बात हो गई है। लेकिन हम इस बर्नआउट से छुटकारा पा सकते हैं।
ज्यादा तनाव से आपके शरीर को नुकसान हो सकता है, इसलिए आपको इसे कम करने के तरीके अपनाने चाहिए।
इससे पहले हम यह समझें कि तनाव से हमें क्या नुकसान होता है, हम यह देखते हैं कि तनाव हमें क्यों होता है।
पहले के वक्त में तनाव हमें तब होता था जब हमें किसी तरह का खतरा महसूस होता है। इस खतरे को महसूस करने के बाद हमारे शरीर में तनाव पैदा होता था जो कि हमें भागने के लिए तैयार करता था। इसके लिए वो एपिनेफ्रीन नाम का हार्मोन पैदा करता था जो कि खून को हमारे मांसपेशियों में धक्का देता था। इस वजह से हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ जाता था और और दिल की धड़कन तेज हो जाती थी। हमारी साँसें तेज हो जाती थी ताकि हमें भागने के लिए ज्यादा ताकत मिल सके। साथ ही हमारे शरीर की दूसरी प्रक्रिया जैसे डाइजेशन, इम्यून सिस्टम और ग्रोथ सिस्टम धीरे हो जाते थे ताकि हम ज्यादा से ज्यादा एनर्जी को भागने में इस्तेमाल कर सकें।
आसान शब्दों में आज के वक्त में आपको गेंडे से बचकर भागना नहीं है। इसलिए जब आप हर वक्त तनाव लिए रहते हैं, तो आपका ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है, हर्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है, इम्यून सिस्टम कमजोर होने लगता है जिससे आप आसानी से बीमार हो जाते हैं और साथ ही आपका डाइजेशन भी कमजोर होने लगता है जिससे आपका खाना पचता नहीं है और आपको पेट की बीमारी होने लगती है।
यह सारी चीजें तब होती हैं जब आप वो काम नहीं करते जिसके लिए आपका शरीर आपको तैयार कर रहा है। तनाव हमें इसलिए होता है ताकि हम खतरे से भाग सकें, लेकिन क्योंकि आज हमें किसी चीज़ से खतरा नहीं है, हम भागते नहीं हैं और हमें यह सारी समस्याएं होने लगती हैं। लेकिन अगर आप कसरत करने की आदत डाल लें, तो आप अपना तनाव कम कर सकते हैं।
जब भी आपको तनाव हो तो आप 20 मिनट से एक घंटे तक जमकर कसरत कीजिए। या फिर आप पेंटिंग, म्यूजिक और डांसिंग भी कर सकती हैं। आप समय बिताने के लिए अपने दोस्तों के पास जा सकती हैं जिससे आपके शरीर को यह लगने लगे कि अब आप खतरे में नहीं हैं। इन सारे कामों से आपका तनाव कम हो सकता है।
तनाव और फ्रस्टेशन से बचने के और भी बहुत से रास्ते हैं।
इससे पहले आप अपने फ्रस्टेशन को खत्म करने के मिशन पर निकलें, आपको यह जानना होगा कि किन किन चीजों की वजह से आपको तनाव हो रहा है और उसमें से किसे किसे आप काबू कर सकते हैं। इसके बाद आप उन्हें खत्म करने का काम कर सकती हैं।
सबसे पहले उन हालात की बात करते हैं जिनसे आपका तनाव बढ़ता है और जिन्हें आप काबू नहीं कर पाते। इस तरह के हालात का सामना करने के बाद आप उन कामों को कीजिए जिनसे आपका तनाव कम होता है। एक्ज़ाम्पल के लिए आपको अगर अपनी नौकरी से तनाव होता है, तो आप कसरत करने का काम शाम के लिए रख दीजिए। इस तरह से जब आप तनाव से भरकर घर आएंगे, तो आप कसरत कर के उसे कम कर पाएंगे।
साथ ही आप पासिटिव सोचकर भी अपने तनाव को कम कर सकते हैं। अगर कोई काम मुश्किल है, तो आप यह देखिए कि उस काम को करने के फायदे क्या हैं। अगर एक काम से आपको बहुत फ्रस्टेशन हो रहा है, तो आप उस काम में छिपे मौके को खोजिए। लेकिन कभी भी अपनी परेशानियों से मुँह मोड़कर यह नाटक मत कीजिए कि वे हैं ही नहीं। खुद से झूठ मत बोलिए। आप यह सोचिए कि अगर कोई काम मुश्किल है, तो उसका फायदा ज्यादा होगा।
इसके बाद बहुत सी ऐसी चीजें भी हैं तो तनाव तो पैदा करती हैं, लेकिन आप उन्हें काबू कर सकते हैं। एक बार आपको पता लग जाए कि यह चीजें क्या हैं, तो आप प्लान बना कर उसे काबू कर सकते हैं। एक्ज़ाम्पल के लिए अगर आप हर रोज ट्रैफिक में फँसने की वजह से परेशान हैं, तो आप अपने GPS के जरिए कोई दूसरा रास्ता खोज सकती हैं। अगर आपको कोई दूसरा रास्ता नहीं मिलता, तो आप अपनी गाड़ी में कोई आडियोबुक सुनकर अपनी जानकारी को बढ़ा सकती हैं।
हमारे दिमाग में एक प्रक्रिया चलती है जिसे हम मानिटर कहते हैं। इसका काम होता है यह देखना कि हम इस समय कहाँ पर हैं, हमें कहाँ पर जाना है और जिस तरह से हमारे पास समस्याएं आ रही हैं उसके हिसाब से हम वहाँ तक कितनी देर में पहुंचेंगे। मानिटर का काम होता है यह पता लगाना कि हम कितनी मेहनत करने के बाद अपनी मंजिल को हासिल कर लेंगे। लेकिन यह उन समस्याओं से भी उतना ही परेशान होता है जिसे यह काबू कर सकता है, जितना उन समस्याओं से होता है जिसे यह काबू कर सकता है। एक बार अगर आप इन दो समस्याओं को अलग अलग तरह से सुलझाना सीख लें, तो आप मानिटर को शांत कर सकते हैं।
अपनी उम्मीदों को कम कर के आप अपने फ्रस्टेशन को कम कर सकते हैं।
बहुत से लोग किसी काम को करने से पहले सोचते हैं कि वो काम बहुत आसान होगा। इसलिए जब वे उसे करने जाते हैं और समस्या आने लगती है, तो वे फ्रस्टेट हो जाते हैं। लेकिन अगर आप पहले से ही यह समझ कर जाएंगे कि यह काम आसान बिल्कुल नहीं होने वाला, तो परेशानियाँ आने पर आपको उतना फ्रस्टेशन नहीं होगा।
इसलिए आप सबसे पहले खुद से बहुत ज्यादा उम्मीदें करना बंद कर दीजिए। यह मत सोचिए कि सब कुछ बहुत आसानी से हो जाएगा। आप जिन्दगी को जितना मुश्किल समझ कर उसके लिए तैयारी करेंगी, जिन्दगी आपके लिए उतनी आसान बन जाएगी। एक स्टडी में कुछ लोगों को एक असंभव सा काम करने के लिए दिया गया। जब वे लोग इसे नहीं कर पाए तो उन्हें बहुत खराब महसूस होने लगा। लेकिन फिर उन्हें बताया गया कि यह काम पूरी तरह से असंभव था। यह जान लेने के बाद उनका तनाव कम हो गया।
महिलाओं के साथ यह अक्सर होता है। किताबों में और मीडिया में अक्सर कहा जाता है कि महिलाओं को भी आज पुरुषों के बराबर हो गई हैं और उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। इस वजह से वे उम्मीदें करने लगती हैं कि जब वे समाज में जाएंगी तो समाज उनके साथ अच्छा बर्ताव करेगा। लेकिन जब ऐसा नहीं होता, तो वे फ्रस्टेट हो जाती हैं।
साथ ही आज समाज में की जा रही मार्केटिंग हमें खुद से ज्यादा उम्मीदें रखने के लिए प्रेरित करती है। सेहत से संबंधित प्रोडक्ट में हमेशा एक पर्फेक्ट एब्स वाले व्यक्ति की फोटो होती है। महिलाओं के लिए जो भी प्रोडक्ट बनाए जाते हैं, उनके ऐड्स में हमेशा कुछ पर्फेक्ट दिखने वाली मॅाडल्स होती हैं। इस इंडस्ट्री को बिक्नी इंडस्ट्रियल काम्प्लेक्स कहा जाता है, जो कि हमें पर्फेक्ट बनाने के ख्वाब दिखा कर अरबों डॉलर का बिजनेस कर रहे हैं।
बहुत से लोग सेहतमंद रहने के लिए बाडी मास इंडेक्स का इस्तेमाल करते हैं, जिसका कहना है कि अगर आप पतले होंगी तो आप ज्यादा सेहतमंद होंगी और आपको बीमारियां कम होंगी। लेकिन 2016 की एक स्टडी में यह बात सामने आई कि जो लोग मोटे होते हैं, वे असल में पतले लोगों के मुकाबले ज्यादा सेहतमंद रहते हैं।
लेकिन महिलाओं को शुरुआत से बताया गया है कि पतला होना कितना अच्छा होता है। क्योंकि अगर उन्हें यह नहीं बताया गया होता तो वे दुनिया भर के प्रोडक्ट खरीद कर खुद को पर्फेक्ट बनाने की कोशिश नहीं करतीं और वो कंपनियां फायदा नहीं कमा पातीं। इसलिए आपको इस तरह की बातों पर यकीन कर कर खुद की तुलना उन मॅाडल्स से करने की कोई जरूरत नहीं है।
अपनी जिन्दगी का मकसद खोजिए और ह्यूमन गिवर सिन्ड्रोम को खुद पर हावी मत होने दीजिए।
क्या आप ने कभी सोचा है कि कैसे कुछ लोग हमेशा मुश्किलों से लड़कर वो हासिल कर ले जाते हैं जो वे पाना चाहते हैं? क्या आप ने कभी सोचा है कि वो क्या है जो लोगों को बदतर हालात में भी हौसला देता है?
वो चीज़ है उनकी ख्वाहिश। इस तरह के लोगों को हमेशा यह पता होता है कि वे हासिल क्या करना चाहते हैं और उसे हासिल कर लेने के बाद उनकी जिन्दगी किस तरह से बदल जाएगी। इस तरह के लोगों के पास आगे बढ़ते रहने की एक वजह होती है जो उन्हें मुश्किल वक्त में हौसला देती है। कुछ लोग इसे मकसद का नाम देते हैं और कुछ लोग इसे नियति कहते हैं।
अगर आपको भी इस तरह का हौसला चाहिए तो आपको भी यह पता होना चाहिए कि आपको क्या चाहिए। मार्टिन सेलिगमैन के हिसाब से एक व्यक्ति के जिन्दगी का मकसद ही उसे खुश रख सकता है। उसका मकसद ही उसकी जिन्दगी को मतलब देता है और जब वो उस मकसद को पूरा करने के लिए काम नहीं कर रहा होता, तो उसे लगता है कि उसकी जिन्दगी बेमतलब की है।
लेकिन किस तरह से आप अपने मकसद को खोज सकती हैं? वो कौन सी चीजें हैं जो आपको अपने मकसद को खोजने से रोकती हैं? महिलाओं के लिए यह चीज है - ह्यूमन गिवर सिन्ड्रोम।
अपनी किताब डाउन गर्ल में केट मैन बताती हैं कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं ह्यूमन गिवर और ह्यूमन बींग्स। ह्यूमन गिवर का काम होता है ह्यूमन बींग्स को वो साधन देना जिससे वे अपने मकसद को हासिल कर सकें।
महिलाओं को समाज ने हमेशा से ह्यूमन गिवर बना कर रखा है। उनका काम होता है घर परिवार को संभालना ताकि वे पुरुषों की मदद कर सकें उनके मकसद को पूरा करने में। उन्हें यह सिखाया जाता है कि एक महिला का काम होता है दूसरों के बारे में सोचना। उन्हें कभी खुद के सपने पूरा करने के बारे में नहीं सिखाया जाता।
इस वजह से बहुत सी महिलाएं अपनी जिन्दगी का मकसद नहीं खोज पाती क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका मकसद है किसी दूसरे के मकसद को पूरा करने में उसकी मदद करना। अगर आप अपना मकसद खोजना चाहती हैं, तो आपको ह्यूमन गिवर सिन्ड्रोम से बाहर निकलना होगा।
लोगों की मदद लेने से आप कमजोर नहीं बल्कि ताकतवर बनते हैं।
बहुत से लोगों का मानना है कि एक काबिल व्यक्ति वो होता है जिसे किसी की जरूरत ना पड़े। एक काबिल व्यक्ति खुद का काम खुद से करना जानता है। लेकिन सच्चाई यह है कि आप अकेले रहकर कभी भी काबिल नहीं बन सकते। आपको जानकारी लेने के लिए, अपनी भावनाओं को जाहिर करने के लिए दूसरों की जरूरत हमेशा महसूस होगी।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको हमेशा दूसरों के साथ रहना चाहिए। आपको कुछ समय अकेले भी बिताना चाहिए ताकि आप खुद के साथ बातें कर के खुद को अच्छे से समझ सकें।
अलग अलग लोगों की अलग अलग जरूरतें होती हैं। इसके हिसाब से कुछ लोग ज्यादा समय अकेले रहना पसंद करते हैं और दूसरों के साथ कम समय बिताना चाहते हैं। इन्हें हम इंट्रोवर्ट कहते हैं। दूसरी तरफ कुछ लोग दूसरों के साथ ज्यादा समय बिताना पसंद करते हैं और अकेले नहीं रह पाते। इस तरह के लोगों को एक्ट्रोवर्ट कहा जाता है।
सिर्फ दूसरों के साथ रहना ही मायने नहीं रखता। यह भी मायने रखता है कि उनके साथ रहने पर हम कितना अच्छा महसूस कर रहे हैं। अगर आप उन लोगों के साथ रह रहे हैं जिन्हें आप पसंद नहीं करते, तो आपकी सेहत खराब रहेगी और आप खुद का खयाल अच्छे से नहीं रख पाएंगे।
इस तरह से अकेले रहने से आप ताकतवर नहीं बल्कि कमजोर बन जाते हैं। दूसरों की मदद से ही आप प्यार करना सीख पाते हैं। कभी कभी दूसरे हमारे अंदर की वो बातें हमें बता जाते हैं पो हम खुद से कभी नहीं जान पाते। दूसरे लोग कभी कभी हमें कुछ ऐसा सिखा जाते हैं जो हम खुद से कभी नहीं सीख पाते। इसलिए कभी भी मदद माँगने से या लोगों से अच्छे रिश्ते बनाने से पीछे मत हटिए।
आराम करना और सोना आपके लिए बहुत जरूरी है।
बहुत से लोग अपने अंदर की आखिरी बूँद की एनर्जी को भी निकाल कर उसे अपने काम में लगाने की कोशिश करते हैं ताकि वे एक टूथपेस्ट के ट्यूब की तरह खाली हो जाएं। वे सोते नहीं हैं क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा कर के वे खुद को मजबूत बना रहे हैं। लेकिन ऐसा करना आपकी सेहत के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।
आपको यह समझना होगा कि ज्यादा काम करने का मतलब अच्छा काम करना नहीं होता। अगर आपको अच्छा काम करना है तो आपको अपने काम के बीच में थोड़ा आराम करना होगा। जब आप आराम कर रहे होते हैं, तो आपका दिमाग असल में अपने कुछ दूसरे हिस्सों का इस्तेमाल कर के उस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश करता है। जब हम कुछ काम कर रहे होते हैं तो हमारा दिमाग इन हिस्सों का इस्तेमाल अच्छे से नहीं कर पाता। इसलिए कभी कभी आराम करते वक्त हमारे दिमाग में अचानक से आइडियाज़ आ जाते हैं।
अगली बार जब आप किसी काम में फँस जाएं, तो खुद को जबरदस्ती उस काम को करने पर मजबूर मत कीजिए। बल्कि अपने घर को साफ करने का या फिर अपने कपड़ों को समेटने का काम कीजिए। इससे आपको समाधान खोजना नहीं होगा बल्कि वो खुद आपके पास आ जाएगा।
साथ ही आपको एक काम लगातार नहीं करना चाहिए। आपको समय समय पर काम बदल लेने चाहिए क्योंकि दो अलग काम करने में हमारे दिमाग के दो अलग हिस्सों का इस्तेमाल होता है। इस तरह से जब हम दूसरा काम कर रहे होते हैं तो हमारे दिमाग का वो हिस्सा आराम कर रहा होता है जो पहला काम कर रहा था।
सोते वक्त हमारे शरीर का हर अंग खुद को रिपेयर कर रहा होता है। साथ ही सोते वक्त हमारा दिमाग जानकारी को अच्छे से स्टोर करता है ताकि हम उसे अच्छे से याद रख सकें। इसलिए कभी भी अपनी नींद से समझौता मत कीजिए।
अपने अंदर की बुरी आवाज को काबू कर कर और खुद के साथ सहानुभूति जता कर आप खुद खुश रख सकती हैं।
हम सभी के अंदर के आवाज होती है जो हमें हमेशा फटकारती रहती है। क्योंकि बहुत सी महिलाओं को सिखाया जाता है कि वे अपनी जिन्दगी दूसरों की मदद करने में बिताएँ और खुद से पहले दूसरों की जरूरतों को रखें, इसलिए जब भी उनसे कोई गलती होती है, वो आपको डाँटने लगती है और आपको बताने लगती है आप किसी लायक नहीं है।
इसलिए बहुत सी महिलाएं जब भी कुछ नया काम शुरू करने जाती हैं, वे बहुत जल्दी हार मान लेती हैं क्योंकि उनका एक हिस्सा हमेशा पर्फेक्ट बनने की कोशिश करता है। जब वो पर्फेक्ट नहीं बन पाता, तो वो सोचता है कि वो किसी लायक नहीं है। खुद को कामयाब बनाने के लिए आपको इस आवाज पर काबू पाना होगा।
ऐसा करने के लिए आप उस आवाज को एक नाम दे दीजिए। आप अपने दिमाग में उस आवाज को एक दूसरे इंसान की तरह देखिए ताकि जब भी वो आवाज आपको बुरा कहे, आपको लगे कि कोई दूसरा व्यक्ति आपको बुरा कह रहा है। इस तरह से आप उसे खुद से अलग कर पाएंगी और उसपर काबू पा सकेंगी।
इसके बाद खुद को मजबूत बनाने के लिए आपको खुद से सहानुभूति जताना सीखना होगा। खुद से सहानुभूति जताना एक तरह से खुद के जख्मों का इलाज करना है। इसमें शायद आपको थोड़ा दर्द हो सकता है, लेकिन अगर आप इसे काफी समय तक करती रहेंगी, तो आप अपने अंदर के उन हिस्सों को राहत पहुंचा पाएंगी जो किसी वजह से टूट गए हैं।
इस तरह से आप खुश रह सकती हैं। बहुत से लोगों को लगता है कि खुशी एक मंजिल है जिसे हम हासिल कर सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। खुशी एक लम्हा है जो बीत जाता है और हमें इस फिर से लाना सीखना होगा। हमें खुद की खुशी बनाना सिखना होगा, क्योंकि आप चाहे जितनी भी कोशिश क्यों न कर लें, आप हमेशा खुश नहीं रह सकतीं।
कुल मिलाकर
बर्नआउट से बचने के लिए हमें उस काम को खोजना होगा जिसे करना हम पसंद करते हैं। हमें दूसरों के बारे में सोचना बंद कर के खुद के बारे में सोचना होगा और यह देखना होगा कि वो क्या है जो हमें खुशी देता है। हमें कसरत करने की आदत डालनी चाहिए क्योंकि ऐसा कर के हम अपना तनाव करते हैं। साथ ही अच्छे से सोना और खुद से सहानुभूति जताना भी हमारे लिए जरूरी है क्योंकि इससे हम खुद को रिपेयर कर पाते हैं।
आप कुछ एक्सरसाइज़ कर सकती हैं।
अगर आपके शरीर में कहीं पर दर्द है या किसी बीमारी की वजह से आप कसरत नहीं कर पा रहे हैं, तो आप डीप ब्रीथिंग एक्सरसाइज़ कर सकती हैं। सबसे पहले 5 सेकेंड तक धीरे धीरे साँस अंदर खींचिए। फिर उसे 5 सेकेंड तक रोक कर रखिए। और अगले 10 सेकेंड में उसे धीरे धीरे बाहर निकालिए। इसके बाद 5 सेकेंड का ब्रेक लीजिए और फिर से यह एक्सरसाइज़ तीन बार दोहराइए।
इसके अलावा आप यह कसरत भी कर सकते हैं। अपने शरीर की हर मांसपेशी को एक एक कर के 10 सेकेंड के अंदर टाइट कर लीजिए और फिर उसे छोड़ दीजिए। आप यह काम बैठकर भी कर सकती हैं और लेटकर भी कर सकती हैं।