Guy Leschziner
नींद की दुनिया के कुछ राज़
दो लफ्जों में
मेडिकल साइंस ने चाहे जितनी भी तरक्की कर ली हो पर इंसानी दिमाग से जुड़े न जाने कितने रहस्यों से पर्दा उठना अभी बाकी है। अभी तो हम पूरी तरह नींद और सपनों को ही नहीं समझ पाए हैं। जब हम सो रहे होते हैं तब हमारा दिमाग क्या कर रहा होता है? इसमें किस तरह के बदलाव आते हैं और इसका हम पर क्या असर पड़ता है? साल 2019 में आई ये किताब ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हम तक लाने की कोशिश करती है। हालांकि सवालों की तरह जवाब भी मुश्किल और परेशान करने वाले हैं। रीयल लाइफ की कुछ घटनाओं और न्यूरोसाइंस की मदद से ये किताब नींद से जुड़ी परेशानियों की वजह और इनके हम पर पड़ने वाले असर पर रोशनी डालती है। इसमें नींद न आने जैसी आम और हल्की समझे जाने वाली बात से लेकर स्लीप पैरालिसिस और hallucinations तक शामिल हैं।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• जिनको नींद में चलने की बीमारी है
• जिनको नींद नहीं आती है
• न्यूरोसाइंस की फील्ड से जुड़े लोग
इस किताब को पढ़कर आप जानेंगे
• हम एक ही समय में जागते और सोते कैसे रह सकते हैं
• खर्राटे किसी खतरे की तरफ इशारा कर सकते हैं
• अगर कभी अचानक घबराकर आपकी नींद खुल जाए और आपके हाथ पैर न चलें तो आपको घबराने की जरूरत क्यों नहीं है
लेखक के बारे में
डॉक्टर लेसचजीनर एक जाने माने न्यूरोलॉजिस्ट और स्लीप कंसल्टेंट हैं। वे लंदन के बड़े अस्पतालों में अपनी सर्विस देते हैं। उन्होंने BBC और Britain’s Channel 4 की उन रेडियो और टीवी सीरीज में भी में भाग लिया है जिनमें नींद और इसके मेकेनिज्म पर फोकस किया गया है।
24 घंटे वाले साइकल को फॉलो करना अच्छी सेहत के लिए जरूरी है।
हम अक्सर नींद को हल्के में ले लेते हैं। कभी जल्दी सो गए तो कभी रात भर जागते रहे। कभी पूरी दोपहर सोने में बिता दी तो कभी लगातार हफ्तों तक नींद में कटौती कर ली। हम बस ये सोचकर बिस्तर में घुस जाते हैं कि दिन भर की थकान के बाद अब सोने की बारी है क्योंकि कल टाइम से ऑफिस या अपने रोजमर्रा के काम पर लग जाना है। नींद क्या है? इसके आने का क्या प्रोसेस है? इस तरह की बातें तो हम कभी सोचते ही नहीं। ज्यादा से ज्यादा कभी सोचा भी होगा तो बस इतना कि नींद दिमाग और शरीर को शांत करने का एक तरीका है।
जबकि कुछ लोगों के लिए नींद उनकी शांति या सुकून बर्बाद करने वाली चीज के सिवा कुछ नहीं है। कुछ लोगों के लिए रात का वक्त काफी डरावना हो सकता है। जिनको स्लीप पैरालिसिस या नींद में चलने की बीमारी हो, जिनको डरावने सपने आते हों या जिनको नींद ही ना आती हो भला ऐसे लोगों के लिए नींद और सुकून एक साथ कैसे चल सकते हैं?
तो चलिए शुरू करते हैं!
अगर आपने कभी अलग टाइम जोन में सफर किया हो तो ये बात अच्छी तरह समझते होंगे कि इससे कितनी परेशानी आती है। जेट लेग का मतलब सफर की मामूली थकान से कहीं गहरा होता है। फिर भी आप कुछ दिनों में इससे उभर आते हैं। पर लंदन में रहने वाले 16 साल के विंसेंट के लिए ये रोज की बात थी। पहले उसकी नींद गड़बड़ हुई। वो अक्सर सुबह 3 बजे उठ जाता। फिर दिन के 11 बजते बजते उसे तेज नींद आने लगती। वो शाम को फिर जाग जाता। उसका स्कूल जाना मुश्किल होने लगा। सब उसकी माँ पर उंगली उठाने लगे कि उसे अपने बच्चे पर ध्यान देना चाहिए। दो साल तक लगातार तरह-तरह के टेस्ट करने के बाद आखिरकार उसकी परेशानी समझ में आई। उसका शरीर 24 घंटे की जगह 25 घंटे वाली घड़ी के हिसाब से चल रहा था। इस वजह से वो बाकी दुनिया के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहा था।
धरती का हर जीव 24 घंटे के साइकल के हिसाब से ही चलता है। इसे सर्केडियन रिदम कहा जाता है। आसान शब्दों में कहें तो सूरज के उगने और ढलने के हिसाब से चलना। मेलाटोनिन नाम का हार्मोन इस रिदम को मेंटेन करता है। यही हमारे दिमाग को बताता है कि अब सोने का समय हो गया है और अब जागने का। अगर आपकी नींद का पैटर्न सही है तो शाम की शुरुआत में मेलाटोनिन का लेवल बढ़ने लगता है। रात होते होते ये पीक पर आ जाता है और सुबह फिर घट जाता है। लेकिन ये तालमेल बिगड़ भी सकता है। जैसे अगर आप शाम के समय तेज रोशनी में रहें तो मेलाटोनिन लेवल भी कम रहेगा और नींद आने की संभावना भी। यही वजह है कि सोने के वक्त मोबाइल या किसी तरह का गैजेट चलाने से मना किया जाता है। क्योंकि इनसे निकलने वाली रोशनी नींद पर बुरा असर डालती है।
स्टडी से इस बात के खतरे भी सामने आए हैं। नाइट शिफ्ट या किसी वजह से रात भर जागने वाले लोगों में तरह-तरह की परेशानियां नजर आती हैं। साल 1996 में नॉर्वे में हुई एक स्टडी बताती है कि अलग-अलग शिफ्टों में काम करने वाले रेडियो और टेलीग्राफ ऑपरेटरों में ब्रेस्ट कैंसर के बहुत ज्यादा मामले सामने आए। ये स्टडी और भी कई जगह हुई और नतीजे एक समान रहे। WHO ने सर्केडियन रिदम की गड़बड़ को कैंसर की एक वजह माना है। अब देखिए कि विंसेंट पर कितना बुरा असर पड़ा। उसे हर रोज एक घंटा देर से नींद आती थी। इस वजह से दोपहर दो बजते बजते वो काफी थक जाता था या रात के एक बजे बिल्कुल तरोताजा होकर उठ जाता था। उसकी पढ़ाई पर तो असर पड़ा ही पर उसकी सोशल लाइफ भी बिगड़ने लगी क्योंकि वो अपने दोस्तों से मिलजुल भी नहीं पाता था। सर्केडियन रिदम सेहत के लिए तो जरूरी है ही पर हमारी सोशल लाइफ के लिए भी उतना ही मायने रखती है। जरा सोचकर देखिए कैसा लगता है जब आधी रात को सारी दुनिया सो रही हो पर आपकी नींद खुल जाए। इस वक्त आप क्या करेंगे? इवॉल्यूशन के दौरान भले ही सर्केडियन रिदम ने हमें सूरज के साथ तालमेल बनाने के हिसाब से तैयार किया पर एक इंसान होने के नाते ये हमारे सोशल सर्कल पर भी असर डालती है।
एक ही वक्त पर सोना और जागते रहना संभव है।
एक सुबह जैकी नाम की लड़की से उसकी मकान मालकिन ने सवाल किया - "तुम कल रात कहां गई थी?" जैकी हैरान थी। तब मकान मालकिन ने कहा कि उसने जैकी को हेलमेट पहनकर मोटरसाइकिल पर कहीं जाते हुए देखा था। जैकी को तो कुछ याद ही नहीं था। आप भी हैरान होंगे। पर ऐसा सच में हो सकता है। हम सोने और जागने को किसी ऑन और ऑफ बटन वाली एक्टिविटी की तरह समझते हैं। यानि या तो आप सो रहे होंगे या जाग रहे होंगे। लेकिन कुछ समय पहले वैज्ञानिकों ने ये पता लगाया है कि दिमाग के कुछ हिस्से एक ही वक्त पर सो और जाग सकते हैं। साल 2000 में स्वीडन के रिसर्चर्स नींद में चलने वाले एक लड़के की स्टडी कर रहे थे। उन्होंने देखा कि जब वो नींद में चलता था तो उसके दिमाग का एक हिस्सा बहुत ज्यादा एक्टिव होता था जबकि दूसरा हिस्सा गहरी नींद में होता था। यानि जो हिस्से इम्पल्स या मूवमेंट के लिए जिम्मेदार थे वो एक्टिव रहते थे और सोच विचार, प्लानिंग वाले हिस्से नींद में रहते थे। यानि नींद में चलना या जैकी की तरह मोटरसाइकिल चलाना दिमाग के सोने और जागने वाले हिस्सों के बीच एक तरह की खींचतान है।
इस खींचतान की वजह से बहुत हैरान कर देने वाली बातें सामने आती हैं। डॉ. लेसचजीनर का एक मरीज था डॉन। उसे अपने फ्रिज में ताला लगाकर सोना पड़ता था क्योंकि वो नींद में उठकर काफी कुछ खा लिया करता था। ये आधी नींद और आधी जागने वाली घटना दिन के वक्त भी हो सकती है। चूहों पर हुई एक स्टडी ये बताती है कि जब उनको लंबे समय तक जगाए रखा गया तो उनके दिमाग के कुछ हिस्से शांत हो गए जैसा कि नींद के दौरान होता है। अगर हम भी लंबे समय तक सही तरह से न सो पाएं तो हमारे दिमाग में भी इस तरह के बदलाव नजर आने लगते हैं जैसे कि उसका कुछ हिस्सा सो गया हो। लेकिन हम जागे हुए भी रहते हैं। अगर टेक्नीक के हिसाब से बात करें तो जब आप काफी थके होते हैं तो आप एक तरह से थोड़ी नींद वाली स्टेज में ही होते हैं। पर कोई नींद में कैसे चलना शुरू कर देता है? एक थ्योरी कहती है कि ऐसे लोग दूसरों की तरह गहरी नींद में सोते ही नहीं हैं। जैसे ही कोई बाहरी वजह मिले जैसे सड़क से तेज आवाज से गुजरती कार या बिस्तर की खटपट, ये अधूरी नींद में चल पड़ते हैं। जबकि दूसरी थ्योरी पूरी तरह उलट है। इसके हिसाब से नींद में चलने वाले लोग दूसरों से कहीं गहरी नींद सोते हैं इसलिए ऐसी कोई भी बात जो हमें पूरी तरह से जगा दे उनको बस इतना जगाती है कि वो चलने लगें। वैसे तो दिमाग की काफी पहेलियों को सुलझा लिया गया है पर नींद में चलने वाली बात आज भी पहेली बनी हुई है।
Sleep apnea एक महामारी बनती जा रहा है।
एक दिन मारिया नाम की लगभग चालीस साल की महिला डॉ. लेसचजीनर के पास आई। उसे हमेशा थकान बनी रहती थी। वो ऑफिस में काम तो कर लेती थी पर उसे कॉफी और खुद को चिमटी काटने जैसी चीजों का सहारा लेना पड़ता था ताकि वो किसी मीटिंग के दौरान सो न जाए। उसका वजन ज्यादा था, उसे इतनी थकान होती थी कि वो कसरत का सोच ही नहीं सकती थी। उसकी कोई सोशल लाइफ भी नहीं थी। किसी दिन जब वो घर पर होती तो बच्चों को स्कूल छोड़कर आने के बाद दुबारा सो जाती और तब तक बिस्तर से नहीं उठती जब तक बच्चों को घर लाने का वक्त नहीं हो जाता। उसके हिसाब से तो वो भरपूर नींद ले रही थी तो उसे ये बात समझ नहीं आती थी कि वो हमेशा नींद में क्यों भरी रहती है? हां एक बात थी कि उसे इतनी तेज खर्राटे आते थे कि उसके पति को दूसरे कमरे में जाकर सोना पड़ता था।
खर्राटे लेने वाले की नींद तो नहीं बिगड़ती भले ही उसके आसपास के लोग परेशान हो जाते हों पर मारिया के लिए ये खतरे की निशानी थी। उसे sleep apnea था। अब जरा इसे समझते हैं। जब कोई आम इंसान सोता है तो नींद में भी आराम से सांस लेता रहता है। पर जब sleep apnea वाले लोग सोते हैं तो उनकी airway मसल्स इस तरह ढीली पड़ जाती हैं जिससे इस रास्ते में रुकावट आ जाए। इस वजह से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। दिल की धड़कन बढ़ जाती है और नींद खराब होने लगती है। और तो और ये एक घंटे में बीस, पचास या सौ बार तक भी हो सकता है। यानि मारिया के हिसाब से तो वो सही तरह सो रही थी पर असल बात कुछ और थी जिसका उसे अंदाजा भी नहीं था। डॉक्टर लेसचजीनर ने ऐसे बहुत से मरीजों को देखा है जिनके sleep apnea का पता तब चला जब वो ड्राइव करते हुए सो गए।
आज के दौर में sleep apnea के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। स्विट्जरलैंड में हाल में हुई एक स्टडी कहती है कि 25% महिला और 50% पुरुष नींद के दौरान सांस लेने की परेशानी से गुजर रहे होते हैं। ज्यादातर इसकी वजह होती है मोटापा। जब सीने और गर्दन पर ज्यादा फैट जमा हैती है तो airway पर ज्यादा दबाव पड़ता है। Sleep apnea के बढ़ते केस खतरे की घंटी हैं। ये आपकी सेहत को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इससे ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां और स्ट्रोक के चांस बढ़ जाते हैं। मारिया के लिए इलाज का एक ही तरीका था कि वो सोते हुए खास तरह से बना मास्क पहने जिससे उसके airway पर दबाव कम रहे। बाकी लोगों के लिए वजन कम करना एक अच्छी शुरूआत हो सकती है।
डरावने सपनों का इतिहास पुराना है।
नींद से जुड़ी कुछ परेशानियां अजीब हैं। जैसे इवलिन नाम की स्टूडेंट का उदाहरण ले लीजिए। उसे हर रात अजीब से वहम होते। उसकी नींद अचानक खुल जाती और उसे लगता कि उसके सामने शैतान या फिर उसकी जान पहचान के ही कुछ लोग खड़े हैं। कभी उसे लगता जैसे हजारों आंखें बस उसकी तरफ देख रही हैं। उसकी परेशानी यहीं तक खत्म नहीं होती। वो इस तरह के hallucinations दौरान paralyze भी हो जाती थी। वो सांस भी नहीं ले पाती थी। न तो हिल डुल पाती और न कुछ बोल पाती। वो बस डरती रहती। इवलिन की तरह sleep paralysis और hallucinations से गुजरने वाले और भी कई लोग हैं। पुराने जमाने से इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं। इनके बारे में पुराने scriptures में भी काफी कुछ लिखा मिल जाता है। जैसे 2400 BC मेसापोटामिया की किताबों में लिखा है की रात के वक्त शैतान धरती पर आते हैं। उस वक्त तो विज्ञान की बातें नहीं थीं पर आज हम इसकी क्या वजह जानते हैं?
इसके पहले जरा नींद की स्टेज समझ लें। नींद की दो स्टेज होती हैं। REM और NREM. Sleep paralysis और hallucinations वो वक्त है जब जागने और REM sleep के बीच की लकीर धुंधली पड़ जाती है। REM वो स्टेज है जहां हम सपने देखते हैं जो उस वक्त हकीकत की तरह नजर आते हैं। इस दौरान हमारी ज्यादातर मसल्स paralyzed रहती हैं। इवलिन का दिमाग थोड़ा जाग तो जाता है पर वो REM sleep की स्टेज में भी रहता है। यानि वो जागती तो होगी पर paralysis और REM sleep के नजारे भी दिखते रहेंगे।
इसकी सही और पूरी वजह तो अभी तक पता नहीं चल पाई है। लेकिन नींद की गड़बड़ एक वजह हो सकती है। क्योंकि तब हम REM स्टेज तक बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं। इवलिन को भी hallucinations तब शुरू हुए जब उसका रूटीन गड़बड़ हुआ था। लेकिन इस बात से भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं समझ आता है कि ये घटनाएं पुराने समय में क्यों होती रहीं? जबकि उस वक्त लाइफस्टाइल इतनी भागदौड़ वाली नहीं थी। यानि ये भी दिमाग की अनसुलझी पहेलियों में एक है। कैलीफोर्निया के जाने माने न्यूरोसाइंटिस्ट वी एस रामचंद्रन ने एक मजेदार हाइपोथीसिस दी है। इनका कहना है कि दिमाग, हमारे शरीर का एक representation बनाता है जिसे homunculus कहा जाता है। ये representation ही शरीर इस बात की इजाजत देता है कि वो कमांड दे। यानि जब आप चलना चाहें तो वो पैरों को चलने को कहे। रामचंद्रन की थ्योरी के हिसाब से जब इवलिन जैसे लोग रात को उठकर अजीब तरह के फिगर देखते हैं तो शायद उस वक्त ये अपने दिमाग के बनाए homunculus ही देख रहे होते हैं। यानि अपना ही कोई रूप। लेकिन नींद या दिमाग की किसी गड़बड़ की वजह से ये उनको डरावनी चीजों की तरह नजर आते हैं। रात के अंधेरे और हिल डुल न पाने की वजह से दिमाग को ये किसी खतरे की तरह महसूस होते हैं। इवलिन को तो ये परेशानी रात में होती थी। पर हम आगे देखेंगे कि नींद की गड़बड़ आपके दिन के कामों पर भी असर डाल सकती है।
नेक्रोलेप्सी भी बहुत परेशान करने वाली बीमारी है।
डॉक्टर लेसचजीनर का एक और मरीज है दो बच्चों का पिता और 39 साल का एड्रियन। वो सेहत के हिसाब से काफी फिट है। लेकिन जब कभी वो हँसता है, गिर जाता है। एक बार किसी दोस्त के जन्मदिन की पार्टी में उसने कोई जोक सुनाया। एड्रियन के साथ बाकी लोग भी हँसने लगे। अचानक एड्रियन की पीठ में झुनझुनाहट होने लगी और उसे कमजोरी सी महसूस होने लगी। जब उसे होश आया तो वो अपने दोस्त की गोद में लुढ़का हुआ था। अगली बार वो अपनी बेटी के साथ किसी पिकनिक पर गया था। वहां हँसते हुए अचानक मुँह के बल गिर पड़ा। उसके साथ हर बार ऐसा ही होता था। वो होश में तो रहता पर ऐसा लगता जैसे किसी ने उसे कंट्रोल कर लिया है और रिमोट का बटन दबाकर उसकी ताकत खींच ली है जिसकी वजह से वो लुढ़ककर गिर पड़ता है। मानो जैसे किसी को अचानक खड़े खड़े नींद आ जाए और वो गिर पड़े। जबकि वो तो होश में रहता है।
एड्रियन को नेक्रोलेप्सी है। ये एक तरह की न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसमें सोने की बहुत तेज इच्छा होती है। एड्रियन की बीमारी में cataplexy भी जुड़ी हुई है जिसमें मसल टोन खत्म हो जाती है जिसकी वजह से शरीर सीधा खड़ा नहीं रह पाता। नेक्रोलेप्सी की वजह है posterior hypothalamus नाम के दिमाग के एक हिस्से के कुछ न्यूरॉन्स का ग्रुप डैमेज होना। न्यूरॉन्स का ये छोटा ग्रुप hypocretin बनाता है जो हमें एलर्ट रखता है और जागने से सोने, सोने से REM और REM के दौरान होने वाले body paralysis की स्टेज को रेग्युलेट करता है। लेकिन नेक्रोलेप्सी के मरीजों में hypocretin या तो नाम का बनता है या बिल्कुल नहीं बनता। इस वजह से वो नींद से जागते और सोते रहते रहते हैं जिस पर कोई कंट्रोल नहीं होता। जब REM में जाना और उससे बाहर आने पर कोई कंट्रोल ही नहीं रह जाता तो वही होने लगता है जो एड्रियन के साथ हुआ। एड्रियन के लिए ये घटना हँसने से ट्रिगर होती है। कुछ लोगों के लिए ऐसा कोई ट्रिगर भी नहीं होता। कुछ लोग गाड़ी के हॉर्न या किसी से बातचीत करते हुए भी इस स्टेज में जा सकते हैं। हालांकि हँसना इसकी सबसे आम वजह है। कुछ लोग बहुत ज्यादा हँसने पर ये महसूस करते हैं कि उनकी मसल्स कमजोर पड़ गई हैं। ऐसे लोग एड्रियन की परेशानी को बहुत आराम से समझ सकते हैं।
डॉक्टर लेसचजीनर के हिसाब से नेक्रोलेप्सी यानि दिमाग के एक बहुत छोटे से हिस्से की गड़बड़ हमें इस बात की झलक दिखाने के लिए काफी है कि दिमाग कितनी ताकत रखता है। Hypocretin किस तरह हमें जागे रहने में मदद करता है इसकी जानकारी नींद की दवा तैयार करने में बहुत काम आ रही है। जैसे नींद न आने से परेशान लोगों में अगर hypocretin को ब्लॉक कर दिया जाए तो उनको थोड़ा आराम मिल सकता है। आगे हम इस पर बात करेंगे।
दुनिया की एक बड़ी आबादी नींद न आने की परेशानी से गुजर रही है पर इसे बहुत अच्छी तरह ठीक किया जा सकता है।
पुराने समय में लोगों को टॉर्चर करने के लिए उनको जगाए रखने का तरीका अपनाया जाता था। ये बात 15वीं सदी की किताबों में भी लिखी मिल जाती है। आज की तारीख में हममें से कितने लोग इस बात से परेशान हैं कि हमें नींद नहीं आती और दिमाग लगातार चलता ही रहता है। हर दस में से एक एडल्ट chronic insomnia का शिकार है। इसकी वजह से दिन भर थकान, ध्यान भटकना, चिड़चिड़ापन और काम में मन न लगने जैसी परेशानियां आती हैं। आम तौर पर रात के समय हमारा दिमाग, दिन की तुलना में थोड़ा शांत पड़ जाता है पर insomnia वाले लोगों में ये ज्यादा एक्टिव और एलर्ट होने लगता है। यानि नींद आना भी मुश्किल है और सोते रहना भी। इनमें से भी कुछ लोग ऐसे हैं जो रोज बस कुछ ही घंटे सोते हैं और इनमें hyperarousal देखा जाता है। ये ऐसी कंडीशन है जहां दिमाग और शरीर ज्यादा एलर्ट रहते हैं, नर्व्स में झनझनाहट होती रहती है, दिल बहुत तेजी से धड़कता है और हमेशा एलर्टनेस बनी रहती है। एड्रीनलीन और कॉर्टिसोल जैसे हार्मोन का लेवल बढ़ा रहता है। Hyperarousal का सेहत पर बुरा असर पड़ता है। सोते हुए हमारा बीपी कम नहीं हो पाता। यानि ऐसे लोगों में हाई बीपी और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। इतना ही नहीं नींद न आने पर दिमागी परेशानियां भी हो सकती हैं और कोई दिमागी परेशानी भी नींद न आने की वजह बन सकती है। डिप्रेशन के दस में से नौ मरीज insomnia से परेशान होते हैं। Insomnia के लगभग आधे मरीजों को एंजायटी या दूसरी कोई साइकोलॉजिकल परेशानियां होती हैं।
इसे दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है? इसके इलाज में दवा से भी अच्छे नतीजे cognitive behavioral therapy से मिलते हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो ये insomnia वाले दिमाग को reprogram करने का तरीका है। नींद की कमी को दूर करने के लिए ऐसे लोग काफी समय तक बिस्तर पर पड़े रहते हैं। लेकिन बिस्तर पर पड़े रहने और सोने में फर्क है। Cognitive behavioral therapy में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि मरीज अपने रूटीन में बदलाव लाएं। इस बात को एक नियम बना लिया जाता है कि थोड़ी देर बिस्तर पर पड़े रहने के बाद आपको उठ जाना है। इस तरह आलस तो दूर हो जाता है पर नींद खराब नहीं होती। जिनको नींद न आती हो ऐसे किसी भी इंसान से पूछकर देखिए देखिए कि वो कितना परेशान रहता है तो आपको अंदाजा हो जाएगा कि नींद हमारे लिए कितनी जरूरी है। भले ही नींद की बहुत सी बातें आज भी एक मिस्ट्री बनी हुई हैं पर ये तो साफ है कि नींद हमारी सेहत, मूड, एनर्जी लेवल और कॉग्निटिव फंक्शन पर बहुत असर डालती है। यानि ये हमारी जिंदगी का बहुत जरूरी हिस्सा र है।
कुल मिलाकर
अच्छी नींद हमारे दिमाग और शरीर की सेहत के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन बहुत से लोग नींद की बीमारियों से जूझ रहे होते हैं। इनमें नींद न आना, hallucinations और slepp paralysis से लेकर sleep apnea जैसी बीमारियां शामिल हैं। इनको अच्छी तरह समझकर हम इंसानी दिमाग की काफी परतें खोल सकते हैं और बहुत सी उलझनें सुलझा सकते हैं।
क्या करें?
अपना स्लीप ट्रैकर फेंक दें।
अब स्लीप ट्रैकर काफी चलन में हैं। लेकिन ये उतने सही भी नहीं हैं जितना दावा किया जाता है। अगर आप एक साथ 5 ट्रैकर लगाकर सो जाएं तो सबमें अलग-अलग रिजल्ट दिखेंगे। आप सही तरह सोते हैं या नहीं इसका पता लगाना बहुत आसान है। अगर दिन में आपको थकान महसूस होती है तो आपकी नींद पूरी नहीं हो रही। अगर दिन भर काम करते हुए आपको नींद या आलस महसूस न हो तो आप नींद पूरी कर रहे हैं।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Nocturnal Brain By Guy Leschziner.
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