Dr. Romy Block & Dr. Arielle Levitan
आपकी डाइट में विटामिन होना कितना जरूरी है?
दो लफ्जों में
यह किताब आपको समझाती है कि विटामिन आपके लिए कितने काम के हैं। विटामिनों के इस्तेमाल को लेकर बहुत से मिसकॉन्सेप्शन बने हुए हैं। लोग बिना सोचे-समझे कोई न कोई विटामिन सप्लीमेंट लेने लगते हैं क्योंकि उनको लगता है कि इससे उनकी हेल्थ इम्प्रूव होगी। अब वक्त आ गया है कि आप इस सोच से बाहर निकलकर यह समझें कि वाकई आपको किस विटामिन की कितनी जरूरत है ताकि उसके इस्तेमाल से आप एक हेल्दी लाइफ जी सकें।
यह किताब किनको पढ़नी चाहिए
- जिनको थकान, डिप्रेशन या नींद न आने की समस्या है
- मेडिकल प्रोफेशनल जो विटामिनों के बारे में अपनी नॉलेज बढ़ाना चाहते हैं
- एथलीट और स्पोर्ट्स पर्सन जिनके लिए फिट रहना बहुत जरूरी है
लेखकों के बारे में
एरियल मिलर लैविटान इंटर्नल मेडिसिन विशेषज्ञ हैं और रोमी ब्लॉक एन्डोक्राइनोलॉजिस्ट हैं। डॉक्टरी के सालों के अनुभव के आधार पर उन्होंने Vous ब्रांड नेम से विटामिन सप्लीमेंट लॉन्च किए हैं। उनका मानना है कि ये सप्लीमेंट आपको बेहतर रिजल्ट देते हैं।
विटामिनों के महत्व पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं लेकिन विटामिन वाकई बहुत जरूरी हैं।
स्पोर्ट्स पर्सन विटामिन इनटेक पर बहुत ध्यान देते हैं ताकि उनकी फिजिकल फिटनेस अच्छी रहे और वे फील्ड में अपनी बेस्ट परफार्मेंस दे पाएं। लेकिन ऐसे लोग जो कभी-कभार जॉगिंग या एक्सरसाइज करते हैं या हफ्तों में एक बार कोई स्पोर्ट्स एक्टिविटी कर लेते हैं, क्या उनको भी विटामिन सप्लीमेंट की उतनी ही जरूरत होती है? इसका जवाब ये है कि विटामिन सप्लीमेंट ऐसे लोगों के लिए जरूरी तो नहीं पर फायदेमंद जरूर हैं। अब तो स्टडीज से भी ये साबित हो चुका है कि अगर विटामिन इनटेक सही मात्रा में हो तो आपकी हेल्थ अच्छी रहती है।
इस समरी में आप पढ़ेंगे कि विटामिन सप्लीमेंट आपके स्वास्थ्य पर किस तरह पॉजिटिव असर डालते हैं। आप जानेंगे कि विटामिन क्योरेटिव और प्रिवेंटिव दोनों तरह का रोल प्ले करते हैं। इसके अलावा आप इस समरी में जानेंगे कि विटामिन किस तरह हैंगओवर ठीक करते हैं?, विटामिन किस तरह डिप्रेशन को रोक सकते हैं? और विटामिन सप्लीमेंट बिना डॉक्टर की सलाह के क्यों नहीं लेना चाहिए?
आपको अक्सर ऐसे लोग मिल जाएंगे जो दूसरों को विटामिन सप्लीमेंट के फायदे गिनाते रहते हैं और अपनी बात पर अड़े रहते हैं। अगर आप सच में विटामिन लेने की सोचते भी होंगे तो इस तरह के लोगों से मिलने के बाद चिढ़कर अपना मन बदल देते होंगे। यहां तक कि मेडिकल फील्ड में भी लोग इस बात को लेकर डाउट में हैं कि विटामिनों के क्या फायदे हैं। इसकी वजह हैं ऐसी स्टडीज जिनसे सही या पूरे रिजल्ट नहीं मिल पाते हैं।
उदाहरण के लिए वर्ष 2000 में हुई एक स्टडी ले लीजिए जिसे बायोलाॅजिस्ट पेट्रीज़िया मेकोकी ने ये जानने के लिए किया था कि क्या विटामिन लाइफस्पैन को बढ़ा सकते हैं? इस स्टडी का कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद बहुत सी ऐसी स्टडीज हुई जिनमें ये पाया गया कि लाइफस्पैन और विटामिन का तो कोई कनेक्शन ही नहीं है।
कुछ ऐसी स्टडीज हुई हैं जो ये कहती हैं कि विटामिन तो अपना असर दिखाते हैं पर रिसर्च में कमी रह जाती है क्योंकि जिन लोगों पर ये स्टडीज कंडक्ट की जाती है, वे विटामिन की सही डोज ही नहीं लेते हैं। इन स्टडीज में ये भी बताया गया है कि एक ही विटामिन का अलग-अलग लोगों पर असर भी अलग-अलग होता है। यानि अगर आप विटामिन C को लेकर एक रिसर्च करेंगे तो हर किसी पर इसका अलग प्रभाव पड़ेगा क्योंकि हो सकता है कि उनमें से बहुतों के शरीर में इसकी पर्याप्त मात्रा पहले ही मौजूद हो शायद उन्हें किसी और सप्लीमेंट की जरूरत हो।
लेकिन इन सब बातों के बावजूद इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि विटामिन सप्लीमेंट सही मात्रा में लिए जाएं तो आपको फायदा पंहुचाते हैं। आपकी डाइट चाहे कितनी भी हेल्दी हो उसमें किसी न किसी जरूरी पोषक तत्व की कमी रह ही जाती है। जो लोग वेजिटेरियन होते हैं उनके भोजन में विटामिन B12 और आयरन की कमी होती है। और जो लोग काफी मात्रा में मीट खाते हैं उनमें विटामिन A और C की कमी रह जाती है।
सिर्फ भोजन से ही परफेक्ट न्यूट्रीशन मिल पाना लगभग नामुमकिन है। विटामिन D3 जो हड्डियों के लिए बहुत जरूरी होता है सिर्फ वाइल्ड सैल्मन फिश में ही पाया जाता है और हर व्यक्ति के लिए भोजन में इसे शामिल करना तो बड़ा मुश्किल है।
जैसे इलेक्ट्रोलाइट डिहाइड्रेशन की वजह से होने वाले सरदर्द में बहुत फायदा करते हैं उसी तरह विटामिन हैंगओवर के लिए बहुत असरदार हैं।
सरदर्द बहुत कॉमन प्रॉब्लम है। काम का स्ट्रेस, रिलेशनशिप इशु, शोर-शराबा जैसी बहुत सी बातें सरदर्द की वजह बन सकती हैं। सप्लीमेंट आपकी हर बीमारी तो दूर नहीं कर सकते पर सरदर्द का इलाज जरूर कर सकते हैं। सरदर्द की एक बड़ी वजह होती है डिहाइड्रेशन और इसलिए इलेक्ट्रोलाइट इसमें फायदा पंहुचाते हैं। बॉडी को हाइड्रेटेड रखने के लिए ज्यादा पानी पीना अच्छा है पर हमें इलेक्ट्रोलाइट की भी उतनी ही जरूरत होती है। इनकी वजह से ही पानी शरीर में बना रहता है वरना आप जितना भी पानी पिएंगे वो फ्लश आउट हो जाएगा। आप भी मैग्नीशियम, सोडियम और पोटेशियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट लेते रहें। ये आपको मिनरल वॉटर, हेल्थ ड्रिंक से मिल जाते हैं आप इनकी टेबलेट्स भी ले सकते हैं।
हैंगओवर सही करने के लिए विटामिन हैं ना!
हैंगओवर भी डिहाइड्रेशन की वजह से ही होता है। एल्कोहल के बहुत से साइड इफेक्ट्स में से एक यह भी है कि इससे शरीर और खास तौर पर ब्रेन में पानी की कमी हो जाती है। अगर आप ये नहीं चाहते कि रात को पार्टी एन्जॉय करने के बाद सुबह आपको भी सिरदर्द से गुजरना पड़े तो पार्टी वाले दिन पर्याप्त मात्रा में पानी और इलेक्ट्रोलाइट जरूर लें। कुछ विटामिन भी हैं जो इसमें आपको फायदा पंहुचाते हैं। बेड टाइम पर या सुबह उठकर आप विटामिन B1, मैग्नीशियम और फोलिक एसिड के कांबिनेशन वाला सप्लीमेंट लेते हैं तो आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा। ये ट्रायो भी एल्कोहल के साइड इफेक्ट्स को अच्छी तरह टैकल करता है। ये विटामिन आपके ब्रेन के रिसेप्टर्स को सेटल करके एल्कोहल के नुकसान से बचाते हैं। इनके इस्तेमाल से आपकी पार्टी के बाद की अगली सुबह काफी आरामदायक हो जाएगी।
आयरन सप्लीमेंट से आपको ताकत मिलती है पर इसकी ओवरडोज से बचना चाहिए।
एक स्वस्थ लगने वाला इंसान भी सुबह उठता है तो उसे बिस्तर छोड़ने का मन नहीं करता। जैसे-तैसे उठकर अपने काम निपटा भी लें तो शरीर में चुस्ती-फुर्ती नहीं होती। ऐसे में एक्सरसाइज का ख्याल तो दूर-दूर तक नहीं आता। आम तौर पर हम इसे आलस कहकर टाल देते हैं पर ये भी तो हो सकता है कि आपके अंदर वाकई कमजोरी हो या आपको आयरन की जरूरत हो। आयरन की कमी एक गंभीर समस्या है। इसे सीरियसली लेने की जरूरत है। इसकी वजह से डिप्रेशन तक हो सकता है। हमारी रेड ब्लड सेल्स (RBC) आयरन की मदद से शरीर तक ऑक्सीजन पंहुचाती हैं। इसलिए आयरन की कमी का मतलब है ऑक्सीजन की कमी और इसकी वजह से आपको थकान और सुस्ती महसूस होती है।
मेन्स्ट्रुअल साइकिल में होने वाले ब्लड लॉस की वजह से महिलाओं में पुरूषों की तुलना में आयरन की कमी ज्यादा पाई जाती है। लेकिन ऐसा नहीं है कि पुरूष इससे प्रभावित नहीं हैं। खास तौर पर ऐसे लोग जो वेजीटेरियन हैं उनमें आयरन की कमी होना बहुत आम बात है। क्योंकि आयरन का प्राइमरी सोर्स रेड मीट होता है।
आयरन की कमी से थकान के अलावा कॉन्सनट्रेशन में कमी, डिप्रेशन और बाल झड़ने जैसी समस्याएं भी होती हैं। अगर शरीर में आयरन की थोड़ी सी भी कमी होने लगे तो इसके लक्षण नजर आने लगते हैं। इसलिए अपना रूटीन चेकअप कराते रहना चाहिए ताकि आप सही समय पर सप्लीमेंट लेना शुरु कर सकें। लेकिन ये ध्यान रखिए कि आप कभी भी इसकी ओवरडोज न लें क्योंकि इसके अपने नुकसान हैं। इससे कॉन्स्टिपेशन और ड्राई कफ जैसी समस्या हो सकती है और कभी-कभी ये जानलेवा भी हो सकती है।
यहां हीमोक्रोमेटोसिस का जिक्र करना जरूरी है। इस कंडीशन में लोग आयरन इन्टॉलरेन्ट हो जाते हैं और आयरन शरीर के वाइटल ऑर्गन जैसे किडनी, लिवर, हार्ट में डिपॉजिट होने लगती है। यह कंडीशन बहुत सीरियस है। इसलिए डॉक्टर की सलाह लिए बिना कोई कदम न उठाएं।
आज के दौर में विटामिन डी की कमी होना बहुत आम समस्या है और यह सीजनल डिप्रेशन की वजह भी बनती है।
क्या आप भी उनमें से एक हैं जिसे ठंडा मौसम अच्छा नहीं लगता और बेसब्री से इसके बदलने का इंतजार करते हैं? क्या आपने कभी इसकी वजह सोची है? हो सकता है कि आपके शरीर को धूप की जरूरत हो जो उसे ठंड या बदली वाले मौसम में नहीं मिल पाती है और जैसे ही गर्माहट या धूप वाले दिन आते हैं, आपको अच्छा लगने लगता है क्योंकि अब आपकी जरूरत पूरी होने लगती है। सनलाइट न मिल पाने की वजह से शरीर में विटामिन डी की कमी होने लगती है। और अब ये एक ग्लोबल प्रॉब्लम बनती जा रही है।
पर पहले ब्रीफ में ये समझना जरूरी है कि विटामिन डी कैसे बनता है। सूरज की रोशनी में पाई जाने वाली अल्ट्रावायलेट बी रेज (UVB rays) हमारी स्किन के कॉन्टेक्ट में आती हैं और कोलेस्ट्राल से मदद से विटामिन डी का सिन्थेसिस (synthesis) करती हैं। यह इनएक्टिव फार्म में होता है जिसे किडनी एक प्रोसेस से एक्टिव फार्म में बदल देती है। इसलिए अगर आप ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां सनलाइट कम आती है या दिन भर ऑफिस में बैठकर काम करते हैं तो आपको विटामिन डी की कमी होने के चांस बढ़ जाते हैं।
एक और बड़ी वजह है सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल। इनकी कॉस्मेटिक इम्पार्टेंस अपनी जगह है। यह स्किन कैंसर को प्रिवेंट करते में भी मदद करते हैं पर इनके इस्तेमाल से विटामिन डी प्रोडक्शन पर नेगेटिव असर पड़ता है।
डार्क स्किन वाले लोगों में विटामिन डी की कमी ज्यादा पाई जाती है। क्योंकि उनकी स्किन ज्यादा सनलाइट एब्जार्ब नहीं करती है। यह एक सीरियस डिसआर्डर है।
बहुत से डॉक्टर ने अपनी प्रेक्टिस में ये देखा है कि विटामिन डी की कमी डिप्रेशन की वजह बनती है। विंटर डिप्रेशन जो ठंडी जगह पर रहने वाले लोगों में बहुतायत में देखा जाता है, उसके साथ तो इसका सीधा कनेक्शन है। अगर आप ये सोचें कि विटामिन डी की कुछ गोलियां लेकर ये ठीक हो जाएगा तो आप गलत हैं। विटामिन डी का प्रोडक्शन एक टाइम टेकिंग प्रोसेस है। यानि अगर किसी में इसकी कमी है तो सप्लीमेंट लेने के बाद भी शरीर में इसका नार्मल लेवल आते-आते छः महीने से एक साल तक लग सकता है। विंटर डिप्रेशन से बचने का सही तरीका ये है कि आप गर्मियों के मौसम में ही विटामिन डी सप्लीमेंट लेना शुरु कर दें ताकि सर्दियां आते-आते आपकी डेफिशिएंसी ठीक हो जाए।
मैग्नीशियम मसल्स और हड्डियों के लिए बहुत जरूरी होता है इसलिए एथलीट इसका बहुत इस्तेमाल करते हैं।
आपने मैग्नीशियम के हेल्थ बेनिफिट के बारे में सुना होगा। यह एक मिनरल है और माइक्रो न्यूट्रिएंट की कैटेगरी में आता है पर चाहे युवा हों या बुजुर्ग सबके लिए बहुत काम का है। यह मसल्स में होने वाले क्रैम्प को रोकता है और नींद न आने जैसी समस्या में भी असरदार है। यह सेल्स के फंक्शन को कंट्रोल करता है। न्यूरॉन के सिग्नल्स को शरीर की सारी मसल्स तक पंहुचाने में मदद करता है। यानि दिल के धड़कने में भी मैग्नीशियम का रोल है।
यही वजह है कि मैग्नीशियम की कमी का असर सबसे ज्यादा मसल्स पर दिखता है और दर्द और क्रैम्प महसूस होते हैं। इसके अलावा इसकी कमी से ऑस्टियोपोरोसिस और नींद न आना या बार-बार नींद टूटने जैसी समस्याएं होती हैं। अब खेतों में पेस्टीसाइड और केमिकल फर्टिलाइजर्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल होने लगा है जिससे जमीन से पोषक तत्व कम होते जा रहे हैं और फसलों की न्यूट्रीशनल वेल्यू घटती जा रही है। यह मैग्नीशियम डेफिशिएंसी की एक प्रमुख वजह है। केला, मेवे, हरी सब्जियों और साबुत अनाज में मैग्नीशियम पाया जाता है पर इनके नियमित इस्तेमाल से भी कई बार शरीर के लिए जरूरी वैल्यू नहीं मिल पाती है। इसलिए मैग्नीशियम सप्लीमेंट लेना जरूरी हो जाता है।
अगर आप स्पोर्ट्स एक्टिविटी से जुड़े हैं तब तो आपको खास ध्यान रखना चाहिए। पसीने और शारीरिक श्रम की वजह से एथलीट्स में मैग्नीशियम लॉस ज्यादा होता है। इससे परफार्मेंस प्रभावित होती है। मैग्नीशियम हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत और रीजनरेट भी करता है। इसलिए खिलाड़ियों के लिए तो ये बहुत जरूरी है। इन सबके अलावा मैग्नीशियम अच्छी नींद के लिए भी जरूरी है। यह बॉडी को रिलैक्स करने वाले ब्रेन रिसेप्टर्स को टार्गेट करता है। और अच्छी नींद तो सब चाहते हैं।
आयोडीन थायरॉइड ग्लैंड के फंक्शन के लिए बहुत जरूरी है पर हमारी डाइट में अक्सर इसकी कमी रह जाती है।
हम खाने में नमक का इस्तेमाल स्वाद के लिए करते हैं पर इसके हेल्थ बेनिफिट पर हमारा ध्यान नहीं जाता। हमारी हेल्थ में नमक की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। मजे की बात यह है कि जिस नमक को थोड़ा मॉडिफाई करके हेल्दी बताकर कमर्शियलाइज किया जाता है उसका कोई खास फायदा नहीं होता। नमक का इतना महत्व उससे मिलने वाले आयोडीन की वजह से है। आयोडीन का काम है थायरॉइड ग्लैंड के नार्मल फंक्शन को बनाए रखना ताकि इससे सही मात्रा में हार्मोन रिलीज हो सकें। आयोडीन की कमी की वजह से हार्ट रेट कम होना, थकान, किसी काम में मन नहीं लगना, ज्यादा ठंड लगना और कॉन्स्टिपेशन जैसे लक्षण दिखते हैं।
लेकिन आयोडीन का ज्यादा लेवल भी नुकसान पंहुचाता है। इसकी वजह से थायरॉइड ओवरएक्टिव हो जाती है और नर्वसनेस, हाथ कांपना, बहुत गर्मी लगना, डायरिया और नींद न आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं। इसलिए इसकी सही क्वांटिटी का ध्यान रखना जरूरी है। भोजन से उतनी आयोडीन नहीं मिल पाती है जितनी शरीर की जरूरत होती है और सप्लीमेंट बॉडी में इसका लेवल जरूरत से ज्यादा बढ़ा सकते हैं।
थायरॉइड की समस्या पहले इतनी कॉमन नहीं होती थी। लोग खाने में अच्छा खासा नमक इस्तेमाल करते थे जिसकी वजह से उनको आयोडीन मिल जाती थी। आज डॉक्टर आपको जो सबसे पहला परहेज बताते हैं वह होता है नमक और प्रोसेस्ड फूड का कम से कम इस्तेमाल करना। इस वजह से इनसे मिलने वाली आयोडीन भी कम हो जाती है। अब लोग सी सॉल्ट या हिमालयन सॉल्ट का इस्तेमाल ज्यादा करने लगे हैं जो वैसे तो हेल्दी ऑप्शन्स हैं पर इनमें आयोडीन नहीं होती।
इनकी वजह से अब आयोडीन की कमी और हाइपोथायरॉइडिज्म बहुत कॉमन हो गई है। इसकी वजह से गॉयटर हो सकता है। थायरॉइड की कमी से बच्चों का शारीरिक और दिमागी विकास प्रभावित होता है। इसलिए आयोडीन सप्लीमेंट लेना बहुत जरूरी है। लेकिन जैसा आपने पढ़ा कि इनकी ओवरडोज बहुत नुकसानदायक होती है। ज्यादातर सप्लीमेंट ऐसे होते हैं जिनमें आयोडीन बहुत ज्यादा होती है और ये थायरॉइड के फंक्शन को बढ़ा देते हैं। इसकी वजह से आप हायपरथायरॉइडिज्म का शिकार बन सकते हैं।
अगर आप सही मात्रा में B12 लेते रहें और लाइफस्टाइल में थोड़े-बहुत बदलाव कर लें तो न्यूरोलॉजिकल बीमारियों को टैकल किया जा सकता है।
दिमागी बीमारियों के बारे में सोचकर ही डर लगता है। आज तक ब्रेन के कई रहस्य अनसुलझे हैं पर साइंस ने इतनी तरक्की जरूर कर ली है कि बहुत से ब्रेन डिसआर्डर को समझकर उनका इलाज और बचाव ढूंढ लिया गया है। आज की तारीख में मेमोरी लॉस और कॉग्नीटिव डीजनरेशन की समस्या बहुत बढ़ती जा रही है। बढ़ती उम्र के साथ-साथ डिमेन्शिआ और अल्जाईमर जैसी बीमारियों के चांस भी बढ़ने लगते हैं। राहत की बात यह है कि इस फील्ड में बहुत रिसर्च हो रही है और यह देखा गया है कि जो लोग अपनी लाइफस्टाइल में थोड़ा बदलाव ले आते हैं वो इन बीमारियों का अच्छी तरह सामना कर लेते हैं।
ये उपाय बहुत आसान हैं जैसे कि ब्रेन को एक्टिव रखने के लिए पजल सॉल्व करना और सोशल सर्कल में अपनी भागीदारी बढ़ाना। इनका पूरा इलाज ढूंढने के लिए स्टडीज की जा रही हैं पर विटामिनों की मदद से इनके लक्षण को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है विटामिन B12 जो कि मेमोरी लॉस में बहुत फायदा करता है। जिन लोगों को मेमोरी या अटेंशन से जुड़ी समस्या है उनमें इस विटामिन की कमी पाई जाती है जो B12 और न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर के सीधे कनेक्शन को बताता है। यह विटामिन सिर्फ बुजुर्गों में ही नहीं बल्कि ऐसे बच्चों को भी फायदा करता है जिनमें लैक ऑफ कॉन्सनट्रेशन या वीक मेमोरी की वजह से एकेडमिक परफार्मेंस पूअर होती है।
इस विटामिन के इनटेक के बहुत से तरीके हैं। यह टेबलेट फार्म में तो मिलता ही है इसके अलावा इंजेक्शन और नेजल स्प्रे के माध्यम से भी इसे लिया जा सकता है। हालांकि B12 न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर को टैकल करने में बहुत कारगर साबित हुआ है पर ऐसी कोई स्टडी नहीं है जिससे ये पता चले कि हेल्दी ब्रेन के फंक्शन को यह किस तरह इम्प्रूव करता है।
तो आपने देखा कि विटामिन आपके लिए कितने फायदेमंद होते हैं। आपको बस सही विटामिन और डोज लेनी है। इसके लिए अपने डॉक्टर से जरूर सलाह करें।
कुल मिलाकर
विटामिन सप्लीमेंट आपको हेल्दी रखते हैं लेकिन बिना सोचे-समझे कोई भी सप्लीमेंट नहीं लेना चाहिए वरना इससे फायदे की जगह नुकसान ही मिलेगा। आपको वही विटामिन लेना चाहिए जिसकी आपको जरूरत हो और इसकी डोज और ड्यूरेशन पर ध्यान देना भी जरूरी है।
अपने डॉक्टर या हेल्थ एडवाइजर से कंसल्ट करके ही कोई सप्लीमेंट लेना शुरु करें। इसके लिए आप अपनी बॉडी में विटामिन लेवल का टेस्ट करा सकते हैं। इससे आपको ये समझ आ जाएगा कि आपके शरीर में किस विटामिन की कमी है और डॉक्टर आपको सप्लीमेंट की सही डोज भी दे पाएंगे।
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