Joel Fuhrmann, MD
किस तरह आप अपनी इम्यूनिटी बढ़ाकर एक लंबी और सेहतमंद जिंदगी जी सकते हैं।
दो लफ्जों में
यह किताब आपको सुपरफूड के बारे में बताती है। इसे पढ़कर आप जानते हैं कि इनके इस्तेमाल से आपका इम्यून सिस्टम किस तरह मजबूत होता है। इस किताब में मार्डन मेडिसिन की लिमिटेशन की बात भी की गई है। साथ ही यह भी बताया गया है कि न्यूट्रिएंट और फाइटोकेमिकल से भरे हुए प्लांट फूड कितने काम के होते हैं।
यह किताब किनके लिए है?
- जिनको अक्सर सर्दी-जुकाम या फ्लू होता रहता है।
- जो लोग दवाइयों और एन्टीबायोटिक का विकल्प चाहते हैं।
- जो लोग प्राकृतिक तरीकों से अपनी हेल्थ इम्प्रूव करना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
जोएल फहरमैन ने एमडी किया हुआ है। वे ऐसे फैमिली फिजिशियन हैं जो दवाइयों से ज्यादा प्राकृतिक तरीकों से इलाज और सेहत बनाए रखने पर जोर देते हैं। उन्होंने होल फूड की तरफ अवेयरनेस बढ़ाने के लिए हेल्थ स्टार्ट्स हियर के नाम से इनिशिएटिव शुरु किया था। वे नेशनल हेल्थ असोसिएशन के न्यूट्रिशनल रिसर्च प्रोजेक्ट में रिसर्च डायरेक्टर हैं।
लोग ये बात पुराने जमाने से जानते थे कि खान-पान का संबंध स्वास्थ्य से होता है। लेकिन आज की तारीख में इस बात का ध्यान रखना और भी जरूरी है।
आपको ऐसी ढेरों किताबें मिल जाएंगी जिसमें ये लिखा होगा कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए। कुछ में लिखा होगा कि कार्बोहाइड्रेट से परहेज करके प्रोटीन इनटेक बढ़ाएं। कुछ में बिल्कुल इसका उल्टा लिखा होगा। अब आपके सामने ये सवाल होता है कि कौन सी बात मानें? इस किताब में यह बताया गया है कि आपको इन सब बातों में न पड़कर ऐसा भोजन लेना चाहिए जिसमें शरीर के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व मौजूद हों। यानि सुपरफूड ताकि आप फिट और हेल्दी रहें। इसके अलावा आप जानेंगे कि किस तरह फ्लू की दवाएं आपका नुकसान करती हैं? आपको कौन से विटामिन सप्लीमेंट नहीं लेने चाहिए? और सुपरफूड किस तरह कैंसर से बचा सकते हैं?
अच्छा खाना शरीर को निरोगी रखता है। यह बात माडर्न मेडिसिन के फादर कहे जाने वाले हिप्पोक्रेट्स ने कही थी। तब से लेकर आज तक हमने इस बात को सही साबित होते हुए देखा है। इतिहास में झांकने पर यह पता चलता है कि ग्रीस और मिस्र के लोग अपने भोजन में कुछ हर्ब्स और ताकत देने वाली चीजों का इस्तेमाल सर्दी ठीक करने, स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और बीमारियों से बचने के लिए करते थे। बायोलॉजी की बढ़ती जानकारी ने हमें इसकी वजह समझाई है कि किस तरह भोजन हमारे शरीर पर असर डालता है।
इसकी वजह होते हैं फाइटोकेमिकल। ये पौधों में पाए जाने वाले ऐसे पदार्थ हैं जो पौधे की ग्रोथ के लिए जरूरी होते हैं। ये मनुष्यों में इम्यून सिस्टम के सही फंक्शन के लिए भी बहुत मदद करते हैं। फाइटोकेमिकल में जबरदस्त हीलिंग प्राॅपर्टी होती है। कुछ स्टडीज से यह भी पता चला है कि जिन लोगों की हेल्थ और न्यूट्रीशन लेवल अच्छा होता है, उनमें फाइटोकेमिकल, AIDS होने की संभावना बहुत कम कर देते हैं। आज की तारीख में तरह-तरह की बीमारियां और वायरस बहुत चैलेंजिंग ताकत बनकर उभरे हैं। अगर आप ये सोचते हैं कि आपके खाने का एक बड़ा हिस्सा प्लांट्स पर ही डिपेंड करता है और इस वजह से आप जरूरत के मुताबिक फाइटोकेमिकल कन्ज्यूम करके इम्यूनिटी बढ़ा रहे हैं तो आप गलत हैं। आपको दुबारा ध्यान देने की जरूरत है।
आज हम जो खाते हैं उसमें ज्यादातर एनिमल फूड, प्रोसेस्ड फूड, कॉर्न फ्लेक्स, व्हीट फ्लेक्स जैसे कोल्ड सीरियल, चीनी, तेल और मैदे की बनी चीजें होती हैं। सब्जियां, फल, बीन्स, मेवे जैसी हेल्दी चीजें अमेरिका में हर व्यक्ति की डाइट का सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्सा बनती हैं। इसमें भी ज्यादातर आलू की बनी चीजें होती हैं। इस तरह जरूरी फाइटोकेमिकल नहीं मिल पाते और इम्यून सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है।
अब अगर हम सही भोजन नहीं लेंगे तो स्वास्थ्य की देखभाल के लिए दवाइयों का सहारा ही लेना पड़ेगा। ये सच है कि मेडिकल साइंस ने आज बहुत तरक्की कर ली है पर इसका मतलब ये तो नहीं कि हम हर उस चीज के लिए भी दवाइयों की तरफ देखना शुरु कर दें जो हमें प्राकृतिक तरीकों से मिल सकती है। आगे इसे और अच्छी तरह समझाया गया है।
माडर्न मेडिसिन बीमारी की वजह के बदले उसके लक्षणों को टार्गेट करती है।
आज की तारीख में किसी इमरजेंसी या ट्रामा जैसी क्रिटिकल कंडीशन में मेडिकल साइंस चमत्कार से कम नहीं है। लेकिन अगर इसे एक तरफ रखकर सोचें तो ये भी सच है कि बाकी ज्यादातर बीमारियों में दवाइयां सिर्फ लक्षणों पर ही फोकस करती हैं न कि बीमारी की जड़ पर। टाइप 2 डायबिटीज को ही ले लीजिए। डॉक्टर इसके लिए कुछ दवाइयों का सहारा लेते हैं। लगभग 90,000 पेशेंट्स पर की हुई स्टडीज से ये पता चला है कि इनमें से दो दवाइयां ऐसी हैं जिनसे कंजस्टिव हार्ट फेलियर का रिस्क बढ़ जाता है। ये दो दवाइयां बहुत चलन में हैं। ये स्टडी परेशान तो करती है पर इन दवाइयों की जरूरत से इन्कार भी नहीं किया जा सकता।
बहुत सी लाइफस्टाइल डिसआर्डर की तरह टाइप 2 डायबिटीज के लिए भी फिजिकल एक्टिविटी की कमी, हाई कैलोरी और पूअर न्यूट्रीशन वाला खाना जिम्मेदार है। जाहिर है कि दवाइयां इन कारणों को तो ठीक नहीं कर सकतीं। ये सिर्फ शुगर लेवल को मेन्टेन रखने की कोशिश करती हैं। दूसरी परेशानी ये है कि जब ये दवाएं शुरु हो जाती हैं तो पेशेंट के लिए अपना खान-पान ठीक करना और मुश्किल हो जाता है क्योंकि दवाओं की वजह से भूख बहुत लगने लगती है।
दवाइयों की तरह वैक्सीन को भी मेडिकल फील्ड में मील का पत्थर कहा जाता है। लेकिन क्या वैक्सीन उतनी सुरक्षित हैं जितना बताया जाता है? लेखक इसे डाउटफुल मानते हैं। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल यानि CDC कहता है कि 6 महीने की उम्र के बाद हर किसी को एक फ्लू की वैक्सीन लगनी चाहिए। बहुत से डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि हर साल फ्लू का एक टीका लगवा लेना चाहिए जिससे न केवल आपका बचाव हो बल्कि आप यह इन्फेक्शन दूसरों तक भी न पंहुचाएं। लेकिन वैक्सीन के अपने नुकसान हैं।
फ्लू फैलाने वाले लगभग 200 अलग-अलग वायरस हैं। और वैक्सीन इनमें से सिर्फ 10 प्रतिशत को ही कंट्रोल कर सकती है। यानि ये 100% प्रोटेक्शन नहीं दे सकती। फ्लू की वैक्सीन में 25 माइक्रोग्राम thimerosal होता है जिसमें मर्करी जैसा नुकसानदायक तत्व होता है। यानि अगर आप फ्लू से बचने के लिए हर साल वैक्सीन लेते हैं तो मर्करी से होने वाले ब्रेन और नर्वस सिस्टम के डैमेज होने का रिस्क बढ़ता जाता है। हकीकत ये है कि अपनी हेल्थ मेंटेन करके रखना बहुत मुश्किल है। इसके लिए दवाइयों या वैक्सीन के अलावा भी दूसरी चीजों पर ध्यान देना होता है। और वो हैं सुपरफूड!
सुपरफूड न सिर्फ कैंसर से बचाते हैं बल्कि आपको फ्लू से निपटने में भी मदद कर सकते हैं।
सुपरफूड कोई एक या दो आइटम नहीं हैं। इनकी एक बड़ी रेंज है। इसमें कई तरह की सब्जियां, फल, अनाज शामिल हैं। यानि वे सब चीजें सुपरफूड हैं जिनमें भरपूर पोषक तत्व और फाइटोकेमिकल होते हैं। जो हमारे शरीर के डिफेंस मैकेनिज्म को मजबूत बनाते हैं।
रिसर्च से ये साबित हुआ है कि अगर हम अपने भोजन में सुपरफूड शामिल कर लें तो कैंसर का खतरा कम हो जाता है। लेकिन ये होता कैसे है? इसके लिए थोड़ी कैमिस्ट्री समझनी होगी। ये तो आप जानते ही होंगे कि कैंसर तब होता है जब कोशिकाओं (सेल्स) का डिवीजन और ग्रोथ अनकंट्रोल्ड तरीके से होता है। इसके लिए methylation नाम की प्रोसेस जिम्मेदार होती है। इसमें कार्बन का एक और हाइड्रोजन के तीन एटम से मिलकर बने methyl ग्रुप के कंपाउंड, जीन में एड हो जाते हैं। और methylated जीन सेल डिवीजन के प्रोसेस को प्रभावित करती है। इससे सेल्स अनियंत्रित होकर बढ़ने लगती हैं।
सुपरफूड methylated कोशिकाओं को इनएक्टिव कर देते हैं। Collard greens जैसे कि केल, ब्रॉकली, फूलगोभी, पत्तागोभी, कोहलरबी, Brussels sprouts, बोक चॉय खास तौर पर फायदेमंद हैं। सुपरफूड में isothiocyanates (ITCs) होते हैं जो इम्यूनिटी बढ़ाते हैं।
सुपरफूड बाकी सब्जियों से अलग होते हैं। हावर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में हुई एक स्टडी से पता चला है कि अगर भोजन में सुपरफूड की मात्रा 20 प्रतिशत बढ़ा दी जाए तो कैंसर होने का खतरा 20 प्रतिशत कम हो जाता है। और कुछ ख़ास सब्ज़ियां फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रॉकली जैसी सब्जियां इसे 40 प्रतिशत तक कम कर देती हैं।
सुपरफूड सिर्फ कैंसर से ही नहीं बचाते। बहुत से इन्फेक्शन, वायरस इत्यादि से भी सुरक्षित रखते हैं। Cruciferous vegetables में पाए जाने वाले ITCs हमारी रेजिस्टेंस पावर बढ़ाकर इम्यून सिस्टम को बैक्टीरिया और वायरस जैसे पैथोजन से लड़ने में मदद करते हैं। अगर किसी वजह से antibodies अपना काम नहीं कर पातीं तो भी ITCs हमारी रक्षा करते हैं। ये उन बैक्टीरिया को भी खत्म कर सकते हैं जिन पर दवाइयों का असर नहीं होता।
एन्टीबायोटिक और सर्दी-जुकाम की दवाएं तुरंत फायदा पंहुचा देती हैं पर इस छोटे फायदे के पीछे बड़े नुकसान छिपे हैं।
ज्यादातर डॉक्टर और फार्मासिस्ट एन्टीबायोटिक को इफेक्टिव बताकर इनका सपोर्ट करते हैं। एन्टीबायोटिक बैक्टीरिया पर असरदार हैं पर वायरस पर इनका जोर नहीं चलता। और लगभग 95 प्रतिशत एक्यूट बीमारियों के पीछे वायरस का ही हाथ होता है। यहां एन्टीबायोटिक का कोई काम ही नहीं होता है। और ये फायदे की जगह नुकसान करने लगते हैं।
जब जरूरत न होने पर भी एन्टीबायोटिक लिए जाते हैं तो ये हमारे डाइजेस्टिव ट्रैक्ट में पाए जाने वाले उन बैक्टीरिया को भी खत्म करने लगते हैं जो हमारे लिए बहुत काम के होते हैं। ये बैक्टीरिया न सिर्फ डाइजेशन को इम्प्रूव करते हैं बल्कि हमारे इम्यून सिस्टम का भी एक मेजर पार्ट होते हैं। इस वजह से डाइजेशन और इम्यूनिटी पर बुरा असर पड़ता है। एन्टीबायोटिक की तरह ही सर्दी-जुकाम की दवाओं को भी "मिनटों में राहत दिलाए" जैसी बातों कहकर ग्लोरिफाई कर दिया जाता है। इनके भी ऐसे ही नुकसान हैं। कुछ दवाएं हैं जिन्हें बिना डॉक्टर के पर्चे सीधे केमिस्ट से खरीदा जा सकता है। लेकिन ये सर्दी दूर नहीं करती सिर्फ उसके लक्षणों को दबा देती हैं। इस तरह असल में आप जल्दी ठीक नहीं होते बल्कि लंबे समय तक बीमार रहते हैं।
खांसी आपके शरीर का एक हीलिंग मैकेनिज्म है। जब हम खांसते हैं तो हवा की नली के माध्यम से डेड सेल, वायरस, म्यूकस जैसी चीजें बाहर निकल जाती हैं। अगर दवाइयों या कफ सिरप से खांसी को दबा दिया जाए तो ये मामूली वायरल इन्फेक्शन, निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी का रूप ले सकते हैं। सर्दी और खांसी की दवाइयों से स्लीप साइकिल और डाइजेस्टिव सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है।
इसलिए एन्टीबायोटिक और सर्दी-जुकाम की दवाइयों का सहारा लेने की जगह हमें हेल्दी खान-पान की मदद से खुद को ठीक रखना चाहिए। अब जानते हैं कि इनमें कौन सी चीजें शामिल हैं।
एक हेल्दी डाइट का मतलब यह नहीं कि आप फैट, कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन पूरी तरह स्किप कर दें।
आपको क्या खाना चाहिए और क्या नहीं इस पर न जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं। और ज्यादातर इन्हीं तीन चीजों के इर्द-गिर्द बात करती हैं। लेकिन हेल्दी डाइट में इन तीनों का होना जरूरी है। सिर्फ इनकी सही मात्रा पर ध्यान देना जरूरी है। इनके अलावा भी ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनसे हमें पोषण मिलता है।
एक हेल्दी डाइट का बड़ा हिस्सा न्यूट्रिएंट से ही बनता है। और इसमें कैलोरी कम होती है। कई तरह की सब्जियां खास तौर पर हरी सब्जियों को न्यूट्रीशन का अच्छा सोर्स माना जाता है। क्योंकि इनसे हमें जरूरत के मुताबिक फाइबर, विटामिन, मिनरल और फाइटोकेमिकल मिलते हैं।
वहीं ब्रेड और पास्ता जैसी चीजें हैं जिनमें कैलोरीज की भरमार है पर न्यूट्रीशन के नाम पर कुछ खास नहीं मिलता। इनको खाने से सेल्स में वेस्ट प्रोडक्ट जमने लगते हैं। इनसे हम समय से पहले एजिंग और दिल की बीमारियों समेत कई अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सबसे पहले कार्बोहाइड्रेट की बात करते हैं। ज्यादातर लोग इनको अनहेल्दी समझते हैं। लेकिन आपके पास बीन्स, मटर, टमाटर, बेरीज, कद्दू, क्विनोआ, वाइल्ड राइस और आलू के रूप में कार्बोहाइड्रेट के बहुत से हेल्दी और टेस्टी ऑप्शन भी मौजूद हैं। फैट इनटेक से भी दूर भागने की जरूरत नहीं है। आपकी डाइट में 10 प्रतिशत फैट जरूरी है। इससे कम फैट लेना नुकसानदायक होता है। यहां तक कि 15 से 30 प्रतिशत फैट वाली डाइट भी हेल्दी हो सकती है अगर आप बाकी न्यूट्रिएंट पूरी तरह से ले रहे हों।
इसी तरह प्रोटीन के बारे में फैली गलतफहमी को भी दूर करना चाहिए। प्रोटीन के दो मेन सोर्स होते हैं। एनिमल और प्लांट। जहां तक प्लांट प्रोटीन की बात है वह हमें हेल्दी रखती है। लेकिन ज्यादा एनिमल प्रोटीन खाने से कैंसर, पूअर इम्यूनिटी और एजिंग जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
एक कम्प्लीट डाइट जिसमें सभी जरूरी न्यूट्रिएंट शामिल हों, हमारी हेल्थ के लिए बहुत जरूरी है। इनमें से अधिकतर खान-पान से मिल जाते हैं। लेकिन आजकल सप्लीमेंट का चलन भी बढ़ता जा रहा है। आपको इनका इस्तेमाल बहुत सोच समझकर करना चाहिए।
विटामिन सप्लीमेंट शब्द सुनने में बहुत आकर्षक लगता है पर इसका फायदा तभी है जब आप इसे सही मात्रा में लें।
ये तो सच है कि हम रोज एक बैलेंस्ड डाइट नहीं ले सकते। यानि हमें विटामिन और मिनरल्स की कमी होने के बहुत चांस हैं। इसलिए सप्लीमेंट हमारी बहुत मदद कर सकते हैं। लेकिन फायदा तभी मिलेगा जब इनका सही इस्तेमाल होगा। विटामिन D, विटामिन B12, ज़िंक और आयोडीन कुछ ऐसे विटामिन और मिनरल हैं जिनका सही लेवल बनाकर रखना बड़ा मुश्किल होता है। अगर हम नमक खाना कम कर देते हैं तो आयोडीन की कमी होने लगती है। ज़िंक और विटामिन B12 की अधिकतर मात्रा मीट से मिलती है। इसलिए शाकाहारियों में इसकी कमी हो जाती है। और आज की तारीख में हमारा ज्यादातर काम इनडोर या ऑफिस के अंदर होता है तो धूप न मिलने की वजह से विटामिन D की कमी भी बहुत लोगों में मिलती है। ये सारे कारण ऐसे हैं जिनसे निपटना काफी मुश्किल है।
जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको सबसे पहले नमक और चीनी जैसी चीजों की कटौती करने की सलाह ही देते हैं। इसी तरह न तो एक वेजीटेरियन मीट खाएगा और न ही हमारा डेली रूटीन कुछ खास बदलेगा जिससे धूप मिल पाए। इन सबकी वजह से सप्लीमेंट एक उम्मीद जगाते हैं। न्यूट्रीशन का नाम लेते ही लोग मल्टीविटामिन की तरफ दौड़ पड़ते हैं। लेकिन मल्टीविटामिन तो सभी विटामिन का एक पैकेज होता है। जरूरी नहीं कि आपको हर विटामिन की जरूरत हो। इस वजह से इनसे नुकसान भी होता है। हमने हमेशा विटामिन A के फायदे सुने हैं। लेकिन अगर जरूरत न होने पर भी इसे लेते रहें तो ये नुकसान करेगा। बीटा कैरोटीन हमारे शरीर में विटामिन A में बदल जाता है। अब ये पता चला है कि इससे कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। विटामिन A ज्यादा होने पर हड्डियों से कैल्शियम निकलता रहता है। नतीजा हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। फोलिक एसिड की भी यही कहानी है। ज्यादातर लोग इसे फोलेट समझकर धोखा खा जाते हैं। फोलेट विटामिन B ग्रुप का तत्व है और यह प्लांट फूड में पाया जाता है। गर्भवती महिलाओं को इसकी जरूरत होती है।
लेकिन फोलिक एसिड सिंथेटिक होता है। यह प्राकृतिक तरीकों से नहीं मिलता। महिलाओं में होने वाले ब्रेस्ट कैंसर, पुरुषों के कोलोरेक्टल कैंसर और बच्चों में जन्मजात दिल की बीमारियों में इसका बड़ा हाथ है। फोलेट तो हरी सब्जियों से आसानी से मिल जाता है। इसलिए फोलिक एसिड का सप्लीमेंट लेने की जरूरत ही नहीं है।
हेल्दी रहने के लिए अपने खाने में नमक कम कर दीजिए और ओमेगा-3 फैटी एसिड ज्यादा लीजिए। बाजार में मिलने वाले तरह-तरह के स्नैक्स भला किसे अच्छे नहीं लगते? मनुष्य का स्वभाव ऐसा ही है कि वो नमक वाली चीजों की तरफ खिंचता है। चिप्स को भला कौन ना कहेगा? ऐसा कोई घर नहीं होगा जहां खाने की मेज पर टेबल सॉल्ट की शीशी न रखी जाए। और उसे उतना ही ज्यादा इस्तेमाल भी किया जाता है। लेकिन हमारे पूर्वज जो भोजन करते थे उसमें एडेड सॉल्ट या ऊपर से नमक छिड़कने का कोई चलन ही नहीं था। हमें नमक से सोडियम मिलता है पर ज्यादा नमक खाना भी नुकसानदायक होता है। आज हम रोजाना 3500 मिलीग्राम नमक खा रहे हैं। जबकि हमारे पूर्वज 600-800 मिलीग्राम नमक खाया करते थे। नमक के बढ़ते इस्तेमाल ने पेट के कैंसर, ऑस्टियोपोरोसिस और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ा दिया है।
ये एक फैक्ट है कि ज्यादा नमक खाने से ब्लड प्रेशर बढ़ता है। स्ट्रोक के लगभग 62 प्रतिशत मामले और कोरोनरी हार्ट डिजीज के 49 प्रतिशत मामलों में हाई बीपी एक मेजर रोल प्ले करता है। नगरों में रहने वाले बुजुर्ग लोगों में हाई बीपी कॉमन है जबकि उनकी उम्र के लोग जो गांव में रहते हैं उनका बीपी सही रहता है। क्योंकि ये खाने में एक्स्ट्रा नमक नहीं डालते। जिस तरह नमक के इतने नुकसान हैं, कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो बहुत फायदेमंद होती हैं। ओमेगा-3 फैटी एसिड इन्हीं में से एक हैं। ये हमारी बॉडी में नहीं बनते पर ये इन्फ्लामेशन रोकने, ब्रेन के सही फंक्शन और कैंसर से बचाव के लिए जरूरी हैं। इसलिए हमारी डाइट में इनका होना जरूरी है।
हेम्प, चिया सीड, अखरोट, फिश और हरी सब्जियों से हमें ओमेगा-3 फैटी एसिड मिलता है। यह प्रोसेस्ड फूड में भी पाया जाता है पर उतना ज्यादा फायदेमंद नहीं होता। इसलिए इनके सप्लीमेंट लेना भी जरूरी हो जाता है। फिश ऑइल कैप्सूल बहुत लोग इस्तेमाल करते हैं लेकिन अगर सही तरह से इनको रिफाइन और स्टोर न किया जाए तो इनमें मर्करी की बहुत ज्यादा मात्रा रह जाती है। घर में ही कल्टीवेट किया एल्गी इसका अच्छा और हेल्दी आल्टरनेटिव है।
नमक का इस्तेमाल कम करना और ओमेगा-3 फैटी एसिड के सप्लीमेंट लेना स्वस्थ रहने के बहुत से तरीकों में एक है। अगर आपको लगता है कि आप फिट नहीं हैं, आपमें स्टेमिना की कमी है या आप अपनी हेल्थ को लेकर जागरुक हैं तो अपनी डाइट पर ध्यान दीजिए। इस समरी को पढ़कर आपने काफी कुछ सीखा और समझा होगा। तो अब वक्त है कि अपनी नॉलेज का सही इस्तेमाल करें।
कुल मिलाकर
अपनी हेल्थ और इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए दवाइयों से ज्यादा न्यूट्रीशन और फाइटोकेमिकल इनटेक पर ध्यान दीजिए। ये बात सदियों से चली आई है कि खान-पान का सेहत से सीधा संबंध होता है। अपने खाने में सुपरफूड शामिल कीजिए ताकि आप फ्लू और कैंसर से बच सकें।
क्या करें?
खाने में कई तरह के एक्सपेरिमेंट करके उसकी न्यूट्रीशनल वेल्यू बढ़ाई जा सकती है। आप सिर्फ खीरे और टमाटर के सलाद की जगह उसमें अनार, अखरोट, सेब और लेट्यूस एड कर सकते हैं। आप इनको स्मूदी की तरह भी बना सकते हैं। ऐसे छोटे-छोटे बदलाव करने पर खाने का टेस्ट भी बढ़ेगा और बेनिफिट भी।
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