How Music Got Free

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How Music Got Free

Stephen Witt
मॉडर्न म्यूजिक का इतिहास

दो लफ्जों में
यह किताब MP3 फाइल्स की यात्रा के बारे में बताती है। किस तरह एक जर्मन ऑडियो लैब में काम करते हुए एक टीम इसकी शुरुआत करती है। इसके बाद नार्थ कैरोलीना के CD-Pressing प्लांट में काम करते हुए एक आदमी इसका महत्व समझता है। इतना ही नहीं आगे जाकर यही आदमी एक पायरेसी ग्रुप के साथ हाथ मिलाकर पूरी म्यूजिक इंडस्ट्री को झुका देता है। 

यह किताब किनको पढ़नी चाहिए
• म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े हुए और म्यूजिक सुनने वाले लोग
• जो भी कॉपीराइट लॉ के बारे में जानना चाहते हैं
• जो भी इंटरनेट फ्रीडम के बारे में जानना चाहते हैं 

लेखक के बारे में
इस किताब के लेखक स्टीफन उसी जनरेशन का हिस्सा हैं जिसने पायरेटेड फाइल्स और सॉफ्टवेयर के मजे लिए हैं। विट ने मैथ्स और जर्नलिज्म की पढ़ाई की है। वे इकोनॉमिक डेवलपमेंट और स्टॉक मार्केट की फील्ड में काम कर चुके हैं।CDs का इन्वेंशन म्यूजिक की दुनिया में एक रिवॉल्यूशन था। फिर भी कुछ लोग मानते थे कि इसका बेहतर आल्टरनेटिव हो सकता है।
आज से 20 साल पहले आपके पास कितनी म्यूजिक सीडी थीं? और अगर आज की बात करें तो अब ज्यादातर लोगों के पास शायद ही कोई सीडी बची हो। आप आसानी से ये बोल देंगे कि अब म्यूजिक इंडस्ट्री काफी बदल चुकी है। अब तो हम इंटरनेट की मदद से मोबाइल और लैपटॉप पर गाने आसानी से सुन और देख लेते हैं। 

लेकिन जरा सोचिए कि इसकी शुरुआत कैसे हुई? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? 

इस किताब में ऐसे ही सवालों के जवाब हैं। इसके अलावा आपको मॉडर्न म्यूजिक का इतिहास, MP2 और MP3 फार्मेट की शुरुआत और उनके बनाने वालों के बीच टकराव जैसी बातें पता चलेंगी। आप ये भी पढ़ेंगे कि किस तरह म्यूजिक पायरेसी और स्ट्रीमिंग के बढ़ते दौर में रिकॉर्ड कंपनियां अपना नुकसान बचाने के लिए एक के बाद एक केस ठोकती रहीं लेकिन उसका कोई नतीजा क्यों नहीं निकला। इसके अलावा आप इस समरी में जानेंगे कि MP3 और नेशनल हॉकी लीग का क्या कनेक्शन है? म्यूजिक की दुनिया में हो रहे बदलावों के बीच अपनी पोजीशन बनाए रखने के लिए यूनिवर्सल कंपनी ने कौन से तरीके आजमाए?; और CDs की चोरी करने के लिए बड़े बकल वाले बेल्ट किस तरह काम आए?

जब म्यूजिक स्टोर्स में CDs आने लगीं तो डाटा स्टोरेज की जानकारी रखने वाले लोगों को इनकी लिमिटेशन का अंदाजा हो गया। खास तौर पर जिन लोगों ने psychoacoustics यानि आवाज के साइकोलॉजिकल इफेक्ट्स की पढ़ाई की थी, उनको ये अच्छी तरह समझ आ गया था। 80s का दौर था। इन दिनों जर्मनी में एक टीम जो इम्पीरिकल psychoacoustics डाटा के पर काम कर रही थी, उसने म्यूजिक के डिजिटल कन्वर्जन पर प्रयोग करने शुरु किए। 

जर्मनी में 1987 में Karlheinz Brandenburg के नेतृत्व में एक टीम ने Fraunhofer Institute जॉइन किया। उनको डिजिटल ऑडियो फाइल का साइज कम करने का काम दिया गया। इसके लिए उनको म्यूजिक फाइल्स से उन बेहद धीमी आवाजों को हटाना था जो कानों तक पंहुचती ही नहीं थीं।  उनको एक 1.4 mb वाली CD को उसके बारहवें हिस्से जितना यानि लगभग 128,000 bit में बदलना था। 

सालों की मेहनत के बाद आखिरकार टीम ने ये टार्गेट पूरा कर ही लिया। अपने काम को अच्छी तरह पूरा करने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी। कम्प्रेशन का टेस्ट करने के लिए उन्होंने किसी तरह का साउंड नहीं छोड़ा। चाहे इंसानों की आवाज हो, पक्षियों की या मशीनों की, हर आवाज पर टेस्ट किए गए। और सबसे मुश्किल आई इंसानों की आवाज को कम्प्रेस करने में। मजेदार बात यह है कि इस टीम ने सुज़ैन वेगा के लिखे गाने Tom's Diner के acapella version से ये टेस्ट किया था। 

टीम अपना काम करती रही और 1989 में Brandenburg ने James Johnston के साथ कोलैबोरेट किया। James भी AT&T-Bell लैब में इंडिपेंडेंटली इसी तकनीक पर काम कर रहे थे। फाइनली कम्प्रेस्ड फाइल और सीडी की वॉइस क्वालिटी बिल्कुल एक सी हो गई।

MP3 फाइल को म्यूजिक स्टैंडर्ड कमेटी का अप्रूवल दिलाना कुछ खास काम नहीं आया।
अब Fraunhofer टीम को ये फाइल टेक्निकल स्टैंडर्ड कमेटी के सामने रखनी थी। इसमें AT&T ने फंडिंग की। और ये कमेटी थी द मूविंग पिक्चर एक्सपोर्ट्स ग्रुप। इसे आप MPEG के नाम से जानते हैं। कमेटी के जवाब का इंतजार करते हुए टीम को इस बात की भनक भी नहीं थी कि आगे चलकर उनको कितनी मुश्किलों का सामना करना है। इस दौरान म्यूजिकैम नाम का एक नया कम्प्रेशन फार्मेट आ गया। म्यूजिकैम को फिलिप्स जैसे ब्रांड का सपोर्ट था। फिलिप्स के पास सीडी बनाने का लाइसेंस भी था और उनसे टकराना बहुत मुश्किल था।  MPEG ने दोनों फार्मेट को मंजूरी दे दी। म्यूजिकैम फार्मेट को MPEG Audio Layer ll (MP2) और Fraunhofer के फार्मेट को MPEG Audio Layer lll (MP3) नाम दिया गया। हालांकि MPEG ने MP3 को इग्नोर करते हुए डिजिटल FM रेडियो, CD-ROMs और डिजिटल ऑडियो टेप के लिए MP2 को ही सलेक्ट किया। फिलिप्स ने MP2 फार्मेट को उसी तरह चलने दिया। MP3 में लगातार अपडेट होते रहे और हमेशा वह MP2 से स्टैंडर्ड के मामले में आगे रही। और फिर 1994 में फाइनली टीम ने 1/12 का कम्प्रेशन टार्गेट अचीव कर लिया। और इसकी साउंड क्वालिटी भी बनी रही। इन सबके बावजूद 1995 में जब MPEG ने DVDs के लिए भी MP2 फार्मेट को चुना तो MP3 बिल्कुल खत्म होने की कगार पर आ गई। 

लेकिन तभी एक उम्मीद नजर आई। Fraunhofer टीम ने नेशनल हॉकी लीग (NHL) के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट साइन किया। अब नार्थ अमेरिका के हर हॉकी स्टेडियम में MP3 Conversion Boxes लग गए। हालांकि ये कोई बहुत बड़ी डील नहीं थी लेकिन Fraunhofer टीम और MP3 के लिए बड़ा अचीवमेंट था। इससे टीम को इतना फाइनेंस तो मिल गया था कि वो अपना काम जारी रख सकें। 

NHL से मिले सपोर्ट के बाद MP3 मार्केट में तो बनी रही पर टीम को ये एहसास था कि अपनी जगह बनाने के लिए इतना काफी नहीं होगा। उनको इस बात की वजह से पूरा आत्मविश्वास था कि उनका प्रोडक्ट बेहतर है। उनको बस कंज्यूमर अटेंशन की जरूरत थी। अब टीम ने एक खतरा उठाया और अनजाने में म्यूजिक पायरेसी की दुनिया में हलचल मचा दी। जब फिलिप्स के सपोर्ट से चल रहा MP2 फार्मेट, MP3 को बर्बादी की कगार पर ले आया तो इससे निपटने के लिए Fraunhofer टीम ने अपनी वेबसाइट पर MP3 Conversion Software (जिसे L3Enc कहा जाता था), और PC MP3 प्लेयर एप्लीकेशन (जिसे WinPlay3 कहा जाता था) को फ्री में अवेलेबल करा दिया। 

एक साल में ही लोग म्यूजिक शेयर करने के लिए इस सॉफ्टवेयर का जमकर इस्तेमाल करने लगे। ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन के दुनियाभर में फैलाव ने इस काम को और आसान बना दिया। अब तो #MP3 नाम से इंटरनेट चैट चैनल भी बनने लगे थे जिनसे बहुत से लोग जुड़ने लगे थे। 1997 में अमेरिका के एक लीडिंग अखबार यूएसए टुडे ने इस पर एक आर्टिकल छापा। इसका टाइटल था "Sound Advances Open Doors to Bootleggers." इसमें उन्होंने इंटरनेट पर बढ़ती हुई म्यूजिक पायरेसी के लिए MP3 को जिम्मेदार ठहराया था। 

Fraunhofer टीम के लीडर Brandenburg भी पायरेसी के खिलाफ थे। उन्होंने समझदारी और जिम्मेदारी दिखाते हुए म्यूजिक इंडस्ट्री को MP3 का copy-protected version ऑफर किया। लेकिन किसी ने भी इसमें इंट्रेस्ट नहीं दिखाया।  दो साल के अंदर MP3 इंटरनेट पर हर म्यूजिक यूजर की चॉइस बन गई। इस तरह MP2 को पछाड़कर फार्मेट वॉर में उसकी जीत हुई। 

लेकिन ये जर्नी यहां नहीं रूकी। अप्रैल 1997 में उटाह यूनिवर्सिटी के एक छात्र जस्टिन फ्रांकल ने WinPlay3 Application को अपडेट करते हुए इसमें प्ले लिस्ट फंक्शन एड कर दिया और इसे नाम दिया Winamp. एक साल में इसे 15 मिलियन लोगों ने डाउनलोड कर लिया। 

1999 आते-आते MP3 के लिए इन्वेस्टर्स की लाइन लग गई। बढ़ते हुए डॉट कॉम बिजनेस ने भी MP3 में पूरा विश्वास दिखाया और कई डील साइन कीं। Fraunhofer टीम ने एक साल के अंदर $100 मिलियन जैसी बड़ी रकम कमा ली।

एक सीडी बनाने वाला मामूली आदमी कैसे रईसों की गिनती में आ गया था।
अगर आपने भी इंटरनेट से 1998 से 2008 के बीच कभी MP3 फाइल डाउनलोड की होंगी तो नोटिस किया होगा कि उनमें से ज्यादातर का ओरिजन नार्थ कैरोलीना के छोटे से टाउन से हुआ है। आइये जानते हैं कि यह सब कैसे शुरु हुआ। डेल ग्लोवर जिसे दुनिया के सबसे बड़े सीडी पायरेट के नाम से जाना जाता है, उसने नार्थ कैरोलीना के पॉलीग्राम CD-Pressing प्लांट से अपना कैरियर शुरु किया था। एक दिन ग्लोवर का ध्यान इंटरनेट पर मौजूद पायरेटेड सॉफ्टवेयर ऑफर कर रहे चैनलों पर गया। वहां बोलचाल की भाषा में इनको "Warez" कहा जाता था। ग्लोवर को कुछ क्रैक्ड और इंस्टालेशन रेडी सॉफ्टवेयर नजर आए। इनमें से कुछ वीडियो गेम सॉफ्टवेयर थे जैसे कि Duke Nukem और कुछ फोटोशॉप जैसे हाई डिमांड सॉफ्टवेयर थे। 

Warez Scene कम्यूनिटी जिसे The Scene भी कहा जाता था, ने ग्लोवर का ध्यान आकर्षित किया। उसने तुरंत Fraunhofer का सॉफ्टवेयर डाउनलोड किया और उसे ये समझने में बिल्कुल भी देर नहीं लगी कि CD इंडस्ट्री के लिए ये कितने काम की चीज है। 

1998 में ग्लोवर के पास 7 सीडी बर्नर थे और वो वीडियो गेम, फिल्मों और कंप्यूटर एप्लीकेशन की क्रैक्ड कॉपीज बेचने लगा था। वो ये सब अपने शौक पूरे करने के लिए करता था। लेकिन जहां वह काम करता था वहां से ओरिजनल CDs चुराना बहुत रिस्की था। उसके सामने ही वहां के कुछ लोगों को इसकी वजह से नौकरी से निकाल दिया गया था। लेकिन ग्लोवर ये मौका नहीं छोड़ना चाहता था। उसी साल ग्लोवर की मुलाकात क्रैकर्स के बड़े ग्रुप से हुई जिन्हें Rabid Neurosis (RNS) कहा जाता था। Kali इसका लीडर था। 

RNS के एंटरटेनमेंट की दुनिया में अच्छे कॉन्टेक्ट थे। इस वजह से उनको किसी भी म्यूजिक या फिल्म की सीडी मार्केट रिलीज से पहले ही मिल जाया करती थीं। जिसे वह कॉपी करके इंटरनेट पर लीक कर देते थे। लेकिन ग्लोवर उनके सबसे ज्यादा काम आ सकता था। 

पहले तो ग्लोवर उनके ऑफर को लेने में हिचकिचा रहा था। फिर उसे RNS ने अपने अल्ट्रा फास्ट सर्वर का एक्सेस दिया गया जिसमें ढेरों पायरेटेड फिल्में, म्यूजिक, टीवी शो और सॉफ्टवेयर थे। और इस तरह ये पार्टनरशिप शुरु हुई। अब ग्लोवर अपने प्लांट से सीडी स्मगल करने लगा। 

प्लांट की तगड़ी सिक्योरिटी भी ग्लोवर को रोक नहीं पाई। 1998 में जब ग्लोवर ने RNS से हाथ मिलाया, पॉलीग्राम और यूनिवर्सल म्यूजिक भी आपस में जुड़ गए थे और सीडी प्लांट की सुरक्षा और भी मजबूत हो गई थी। लेकिन ग्लोवर के लिए फायदे की बात ये थी कि अब उसके पास और ज्यादा सीडी का एक्सेस था। ग्लोवर ने खुद ही सीडी की चोरी नहीं की। वह अपने साथ काम करने वालों तक Kali की रिक्वायरमेंट पंहुचाता रहा। और इतने लोगों के शामिल होने की वजह से लाख कोशिश करने पर भी सीडी प्लांट से बाहर जाती रहीं। 

इस दौरान लोगों को ओरिजनल सीडी खरीदने के लिए इंस्पायर करने और इसकी हाई कॉस्ट समझाने के लिए कंपनीज ने सीडी की पैकिंग और बेहतर कर दी। लेकिन इसकी वजह से पैकेजिंग डिपार्टमेंट में और गलतियां होने लगीं। अब सीडी का स्टॉक इतना ज्यादा बढ़ गया कि इनको डिस्ट्रॉय किया जाने लगा। और इस वजह से सीडी चुराना और आसान हो गया। क्योंकि अब चुराई हुई सीडी को डिस्ट्रॉय करने वाली लिस्ट में दिखा दिया जाता था। जब कर्मचारी अपनी शिफ्ट खत्म करके बाहर निकलते तो सिक्योरिटी उनकी चेकिंग करती। लेकिन फिर भी उनके हाथ कुछ न लगता। ज्यादातर लोग बड़े बकल वाली बेल्ट पहनते थे। इसमें सीडी छिपा लेना बड़ा आसान होता था। सिक्योरिटी हर किसी से तो बेल्ट खोलने को नहीं कह सकती थी। इस तरह ये बकल बहुत से मास्टरपीस को छिपाने की जगह बन गए। लेकिन फिर RNS ने जल्दबाजी के चक्कर में अपना बहुत बड़ा नुकसान करा लिया। 2002 में ग्लोवर के प्लांट से लगभग 500 सीडी चोरी हुईं जिसे RNS ने उनकी रिलीज डेट से काफी पहले इंटरनेट पर लीक कर दिया।

अब RNS इंटरनेट पायरेसी की दुनिया में लीडर बन चुका था। Kali ने ओवर कांफिडेंस में आकर एक दिन रैपर Scarface की एल्बम The Fix को उसकी एक्चुअल रिलीज से 22 दिन पहले ही लीक कर दिया। लेकिन यूनिवर्सल ने अगले ही दिन उस सर्वर को ट्रैक कर लिया और उनको यह समझ आ गया कि इसमें ग्लोवर वाले CD-Pressing प्लांट का हाथ है।  RNS ग्रुप टूट गया फिर भी अभी काफी कुछ बाकी था।

2007 तक RNS ग्रुप सरकार को चकमा देकर आराम से अपना काम करता रहा।
RNS ग्रुप का टूटना उनके लिए एक बड़ा झटका था। लेकिन जल्दी ही सब पहले की तरह होने लगा। सात साल बाद अब ग्लोवर असिस्टेंट मैनेजर बन गया था। अब उसके लिए सीडी चोरी करना और आसान हो गया। लेकिन ग्लोवर और Kali दोनों ये अच्छी तरह से समझते थे कि अब उनको ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। द फिक्स वाली घटना के बाद ग्लोवर ने कुछ महीनों के लिए RNS से दूरी बना ली थी। लेकिन 2003 से उसने नई प्लानिंग के साथ काम करना शुरु किया। अब कोई भी सीडी, रिलीज डेट से सिर्फ दो हफ्ते पहले ही लीक की जाती थी। ऐसा इसलिए करते थे क्योंकि तब तक सीडी तैयार होकर प्लांट से बाहर निकल जाती थीं। इस तरह ग्लोवर या कंपनी के कर्मचारियों पर शक की गुंजाइश कम रह जाती थी।  2004 में FBI ने The Scene से जुड़े दूसरे नेटवर्क्स पर छापे शुरु किए। Kali ने समझदारी से काम लिया और RNS पब्लिक सर्वर के चैट चैनलों से एग्जिट हो गया। वरना FBI उन तक आसानी से पंहुच सकती थी। 

2007 आते-आते RNS, The Scene का टॉप ग्रुप बन गया। अब तक ग्लोवर करीब 2000 सीडी चुरा चुका था। RNS लगभग 20,000 सीडी लीक कर चुका था। जैसे-जैसे FBI, The Scene पर शिकंजा कसती जा रही थी, Kali का डर बढ़ता जा रहा था। फाइनली Kali और ग्लोवर ने तय किया कि अब इस काम को बंद कर दिया जाए। लेकिन उसी अप्रैल में Kanye West और 50 Cent नाम के दो जाने माने रैपर्स ने एक ही दिन अपनी एल्बम रिलीज करने की अनाउंसमेंट की। ग्लोवर खुद को रोक नहीं पाया। उसने Kanye की एल्बम Graduation को 50 Cent की Curtis से एक हफ्ते पहले ही लीक करवा दिया। इसके बाद वह पकड़ा गया।

म्यूजिक इंडस्ट्री टेक्नॉलॉजी में हो रहे बदलाव के लिए तैयार ही नहीं थी।
किसी समय Doug Morris म्यूजिक इंडस्ट्री का सबसे बड़ा नाम था। उसने बहुत से बड़े आर्टिस्टों को यूनिवर्सल कंपनी के साथ जोड़ा। इनमें  Marilyn Manson, Dr. Dre, Jay-Z और Eminem जैसे नाम शामिल थे।  इस वजह से जब यूनिवर्सल और पॉलीग्राम ने साथ में काम करना शुरु किया तो सबने ये उम्मीद जताई थी कि इनका मुनाफा बहुत बड़ा होगा। लेकिन किसी ने भी इस बात  पर ध्यान नहीं दिया था कि इंटरनेट पर बढ़ती पायरेसी इसको नुकसान पंहुचा सकती थी।  1998 तक एक सीडी बनाने की लागत एक डॉलर से भी कम थी। जबकि उसका एवरेज सेलिंग प्राइस $16.58 था। इस हिसाब से कंपनी का मुनाफा सोलह गुना से भी ज्यादा था।  लेकिन किसी भी रिकॉर्ड कंपनी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि न जाने कितने लोग इन सीडी की डुप्लीकेट कॉपी बनाकर बेच रहे हैं। जबकि यह कोई नई बात नहीं थी। ऑडियो कैसेट के जमाने में भी यही होता था। इंटरनेट पर बढ़ती हुई फाइल शेयरिंग के आंकड़ों को उन्होंने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया था। 2000 की शुरुआत में Napster और MP3 प्लेयर आ चुके थे। इनकी वजह से म्यूजिक इंडस्ट्री को बहुत झटका लगा। जो लोग टेक्नॉलॉजी को अच्छी तरह समझते थे उनके लिए लीक हुई MP3 फाइल्स को ढूंढना बहुत आसान था। Napster ने तो इसे सबके लिए आसान बना दिया। यह एक पीयर-टू-पीयर फाइल शेयरिंग नेटवर्क था। इसका मतलब ये था कि जब कोई एक यूजर लॉग इन करके फाइल डाउनलोड करता था तो उसके नेटवर्क के बाकी यूजर को भी इसका एक्सेस मिल जाता था। Napster को 20 मिलियन से भी ज्यादा लोग इस्तेमाल करते थे। और हर मिनट लगभग 14000 MP3 फाइल डाउनलोड की जाती थीं। 

अब मोबाइल MP3 प्लेयर इंडस्ट्री को भी मुंहमांगी चीज मिल रही थी। इसका नतीजा ये हुआ कि MP3 प्लेयर के खिलाफ रिकॉर्डिंग इंडस्ट्री असोसिएशन ऑफ अमेरिका (RIAA) vs. Diamond Multimedia System और Napster के खिलाफ A&M Records vs. Napster जैसे दो बड़े मुकदमे शुरु हो गए। लेकिन इस लड़ाई में म्यूजिक इंडस्ट्री की हार हुई। Napster पर भले ही रोक लग गई हो पर इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ क्योंकि इस तरह के कई और फाइल शेयरिंग नेटवर्क अपना काम करते जा रहे थे। 

म्यूजिक इंडस्ट्री ने आखिरकार काफी नुकसान उठाकर डिजिटल रिवॉल्यूशन का महत्व समझा। Napster भले ही खत्म हो गया पर इसने Pirate Bay जैसी पॉपुलर टॉरेंट साइट्स को जन्म दे दिया। इसकी वजह से  RIAA और कई बड़ी कंपनियों को मजबूरन बदलते हुए हालात को स्वीकार करना पड़ा। लेकिन यूनिवर्सल और कुछ कंपनियों ने कानूनी लड़ाई जारी रखी। Warner Brothers जैसी कुछ कंपनियों ने लगातार फाइल किए जाते केसेज का विरोध भी किया। इसी कड़ी में यूनिवर्सल ने 2003 में हबकैप नाम से एक कैम्पेन शुरु कर दिया। इसमें ऐसे 261 लोगों पर मुकदमे किए गए थे जो गैरकानूनी तरीके से Napster जैसे प्लेटफॉर्म से फाइल शेयर करते हुए पकड़े गए थे। हबकैप को BMG, EMI और Sony का सपोर्ट था। 

Warner Brothers इसमें शामिल नहीं थे। उनका मानना था कि इससे और ज्यादा नुकसान ही होगा। RIAA भी इससे दूर रही। यह मुकदमे 2007 तक चले। जो लोग दोषी पाए गए उनमें एक सिंगल मदर भी थी जिस पर 24 गाने डाउनलोड करने के लिए $222,000 का जुर्माना लगा दिया गया था। इससे म्यूजीशियन बहुत नाराज हुए और अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन ने इस फैसले के खिलाफ अपील कर दी। 2000 की तुलना में 2007 में सीडी की बिक्री में 50% गिरावट आ गई थी। इसी समय iTunes जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म की सेल, यूनिवर्सल से बस एक परसेंट कम थी। Dough Morris इस बात को समझते थे कि यूनिवर्सल को अपनी पॉलिसी बदलने की जरूरत है। तभी वो इस कांपिटीशन में टिक पाएंगे। और उनको इसका हल मिला अपने टीनएजर पोते के पास। 

Morris ने देखा कि उनका पोता यूट्यूब पर गाने देखता है। इन वीडियो पर एड भी आते थे। फिर क्या था, मॉरिस ने यूट्यूब से बहुत से वीडियो हटा दिए ताकि इनको यूनिवर्सल की तरफ से एड के साथ पोस्ट किया जाए। उन्होंने Vevo के नाम से एक वीडियो चैनल बनाया जो बहुत सक्सेसफुल हुआ। जस्टिन बीबर के सिर्फ एक गाने "Baby" से यूनिवर्सल ने $30मिलियन से ज्यादा की कमाई की।

अब यह बात साफ हो चुकी थी कि कानून की मदद से भी पायरेसी को नहीं रोका जा सकता।
कंपनियों की लाख मुकदमेबाजी के बावजूद पायरेटेड फाइल्स का इस्तेमाल बढ़ता रहा। बल्कि इसने कॉपीराइट कानून को ही एक नया रूप दे दिया। दुनिया भर में फाइल शेयरिंग को लोग बहुत आम बात समझने लगे। यूके में एक प्राइवेट टॉरेंट साइट Oink's पिंक पैलेस के ओनर को जे के रोलिंग की हैरीपॉटर सीरीज की ऑडियोबुक्स लीक करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। लेकिन कानून ने उसे दोषी न मानते हुए 2010 में रिहा कर दिया।  स्वीडन में तो बकायदा कॉपीराइट और पेटेंट कानूनों में सुधार की मांग को लेकर पायरेट पार्टी बनी। इसका यहां तक मानना था कि नॉन कमर्शियल फाइल शेयर करने से रोकने की कोशिश करना ह्यूमन राइट के खिलाफ है। यूरोपियन यूनियन में इसके पास दो सीटें हैं। और सिर्फ जर्मनी में ही इसके 30,000 सदस्य हैं। 

इसलिए जब ग्लोवर पकड़ा गया और उसने Kali के खिलाफ बयान देने के लिए हां कर दी तो उसे एहसास हुआ कि उसने जल्दबाजी कर दी है जबकि फैसला उसके हक में हो सकता था। Kali, जिसका असली नाम Adil R. Cassim था, उस पर 2010 में मुकदमा चलाया गया। RNS को सबसे बड़ा और सबसे बुरा पायरेसी ग्रुप कहा गया। अरेस्ट होने से पहले ग्लोवर ने कासिम से मुलाकात करके उसे सारे सबूत नष्ट करने के लिए कहा था। इस तरह कासिम और ग्लोवर के बीच कॉल रिकार्ड के अलावा पुलिस को कोई ठोस सबूत नहीं मिला। कॉल रिकार्ड के दम पर कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता था। 

ग्लोवर को तीन महीने की मामूली सजा हुई। कासिम रिहा हो गया। और RNS जैसा इतना बड़ा रैकेट, जिसने हर साल 3000 से ज्यादा फाइल लीक कीं, रिकार्डिंग इंडस्ट्री को इतना नुकसान पंहुचाया और जिसके पीछे FBI पांच साल लगी रही, बड़ी आसानी से बच गया। 

म्यूजिक स्ट्रीमिंग साइट्स की वजह से शायद अब MP3 की रिटायरमेंट का वक्त आ गया है। पिछले कुछ सालों में लोगों को  म्यूजिक सुनने के लिए नए-नए ऑप्शन मिलने लगे हैं। सीडी अब बीते जमाने की बात हो चुकी है। अब Spotify जैसी म्यूजिक स्ट्रीमिंग साइट्स का दौर है। स्टडी में ये पता चला है कि अब पायरेसी काफी कम हो गई है लेकिन म्यूजिक एल्बम्स की सेल भी गिर रही है। क्योंकि लोगों को इंटरनेट पर लीगल तरीकों से हर नया म्यूजिक तुरंत मिल रहा है। म्यूजीशियन के लिए भी अपना क्रिएशन तैयार करके उसे लाइव स्ट्रीमिंग पर ले आना बहुत आसान है। इस तरह से उनका काम सारी दुनिया तक मिनटों में एक साथ पंहुच जाता है। लोग अब रिकॉर्ड कंपनियों की जरूरत पर ही सवाल उठाने लगे हैं। 

रिकॉर्ड कंपनी से होने वाली कमाई भी इस सवाल का सही जवाब नहीं है। क्योंकि अब इनके साथ जुड़कर आर्टिस्ट कुछ खास कमा नहीं पा रहे। इसलिए वे भी नए-नए रास्ते ढूंढने में लगे रहते हैं ताकि जेन्युइन तरीके से वो म्यूजिक लवर्स से जुड़ पाएं और अच्छी कमाई भी कर पाएं। इस बारे में Beyoncé की विजुअल एल्बम, Thom Yorke का अपनी एल्बम BitTorrent पर पोस्ट करना और Taylor Swift का Spotify से अपना काम हटा देना जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं। 

म्यूजिक इंडस्ट्री में आ रहे इस बदलाव की वजह से किसी समय डॉमिनेटिंग पोजीशन पर रहने वाली MP3 भी अब आउट ऑफ फैशन होने लगी है। फोनोग्राफ के आने के बाद से पहली बार 2011 लोगों ने रिकॉर्ड की जगह लाइव म्यूजिक सुनने पर ज्यादा खर्च किया। 2012 में डिजिटल म्यूजिक की सेल ने सीडी को पछाड़ दिया। इसके एक साल बाद ही 2013 में लाइव स्ट्रीमिंग का बिजनेस $1 बिलियन के आंकड़े को पार कर गया। इनसे यही साबित होता है कि सीडी और डिजिटल ट्रेजर कही जाने वाली MP3 फाइल अब कल की बात बन चुकी हैं।

कुल मिलाकर
हमें म्यूजिक के हर नए प्लेटफॉर्म की जानकारी भले ही हो पर इस बात से अंजान रहे हैं कि रिकॉर्ड इंडस्ट्री में कितने उतार-चढ़ाव आए हैं। MP3 फाइल जिसने हमारे स्मार्टफोन में भी जगह बना ली उसकी एक इंट्रेस्टिंग जर्नी रही है। इसने जर्मनी की एक लैब से शुरु होकर CD-pressing प्लांट से चोरी होकर पायरेसी की दुनिया का सफर देखा है। यह म्यूजिक कंपनियों के ढेरों मुकदमों से भी गुजरी और म्यूजिक इंडस्ट्री में एक रिवॉल्यूशन देखा।

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Shoe Dog By Phil Knight

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