Evil Geniuses

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Evil Geniuses

Kurt Andersen
The Unmaking of America: A Recent History

दो लफ़्ज़ों में 
साल 2020 में रिलीज़ हुई किताब ‘Evil Geniuses’ ऐसे लोगों के बारे में बताती है, जिन्होंने अमेरिका के इतिहास में इकॉनोमिक पॉलिसीज़ बनाई थीं. आपको इस किताब को पढ़ने के बाद पता चलेगा कि 1960 के बाद बनाई गई पॉलिसी का असर आज के अमेरिका में किस तरह से पड़ रहा है. इसलिए अगर आपको हिस्ट्री में इंटरेस्ट है. तो इस किताब को ज़रूर पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए. 

ये किताब किसके लिए है? 
-ऐसे लोगों के लिए जिन्हें हिस्ट्री पसंद हो 
-ऐसे लोग जिन्हें अमेरिका पसंद हो 
-स्टूडेंट्स के लिए 
-ऐसे लोग जिन्हें रिसर्च बेस्ड रिपोर्ट्स पसंद हो 

लेखक के बारे में 
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन Kurt Andersen ने किया है. ये पेशे से पत्रकार और काबिल लेखक हैं. इस किताब के अलावा भी इन्होने कई बेस्ट सेलिंग किताबों का लेखन किया है.

इन्होने अपने सालों के अनुभव के सार को इस किताब में लिख दिया है.20वीं शताब्दी के बाद के अमेरिका की तस्वीर के बारे में बात करते हैं
कई लोग अमेरिका को अवसरों का देश मानते हैं. उन्होंने इस देश को ‘land of opportunity’ का तमगा दे दिया है. दुनिया के नक़्शे में अमेरिका एक ऐसे देश के रूप में जाना जाता है. जिसके बारे में सभी बात करते हैं. इस देश की डेमोक्रेसी के बारे में भी काफी लिखा गया है. लेकिन इस देश में भी बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके सपने पूरे नहीं हो पा रहे हैं. उन्हें ऐसा लग रहा है कि उनका अमेरिका इकॉनोमिक रिफोर्म्स में पीछे की तरफ जा रहा है. इस किताब के चैप्टर्स में इतिहास की ही बात की गई है. कई political figures और economic ideologies के ऊपर चर्चा की गई है. जिससे ये साफ़ होता है कि इस देश में भी कई “Evil Geniuses” ने जन्म लिया था. 

इन चैप्टर्स में हमें ये भी सीखने को मिलेगा 

- अमेरिकन्स के बारे में बहुत कुछ 

- अमेरिका के बारे में कुछ सीक्रेट बातें 

- liberals के बारे में कुछ फैक्ट्स 

तो  चलिए शुरू करते हैं!

एक दौर ऐसा था जब अमेरिका को ‘land of tomorrow’ के नाम से भी जाना जाता था. वो दौर कुछ ऐसा था जब अमेरिका, यूरोप की पुरानी मान्यताओं को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहा था. उसी दौर में अमेरिका में कई नई तरह की तकनीक भी पैदा हों रहीं थीं. 

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि 20वीं शताब्दी अमेरिका में नए और बड़े बदलाव लेकर आ रही थी. ये बदलाव हर एक फील्ड में देखने को मिल रहे थे. भले ही बात ट्रेवल की हो या फिर सिविल राईट मूवमेंट की, हर फील्ड में प्रोग्रेस साफ़ तौर पर नज़र आ रही थी. हालाँकि इस शताब्दी के खत्म होते-होते प्रोग्रेस की रफ्तार भी धीमी पड़नी शुरू हो गई थी. 

Author Kurt Andersen ने इस बात को सबसे पहले साल 2007 में नोटिस किया था. एक दिन अचानक उनकी नज़र न्यूज़ पेपर में छपी एक तस्वीर पर पड़ी, ये तस्वीर कई दशक पुरानी थी. उस तस्वीर में कई स्टाइलिश लुकिंग लोग यूएस की सिटी स्ट्रीट में खड़े हुए थे. उस फोटो को देखकर ऑथर को लगा कि उस दौर में भी लोग कितने एडवांस हुआ करते थे? उस फोटो में दिखने वाले लोग साल 2007 के लोगों से ज्यादा संपन्न और एडवांस नज़र आ रहे थे. 

न्यूज़ पेपर में छपी तस्वीर को देखकर ऑथर को एहसास हुआ कि सन 1987 के बाद से डेवलपमेंट के लिहाज़ से कुछ ज्यादा बदलाव नहीं हुए हैं. अगर कम्प्यूटर और मोबाइल फोन को छोड़ दिया जाए तो 2000 के दशक में आपको कुछ ज्यादा नया देखने को नहीं मिलेगा. 

वहीं अगर 20वीं शताब्दी की बात करें तो उस दौर में अमेरिका ने काफी तरक्की देखी थी. ऑथर मानते हैं कि ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि अमेरिका को बीसवीं शताब्दी ने एक के बाद एक मौलिक रूप से नए सांस्कृतिक युग की शुरुआत दी, उसनें हर फील्ड में तरक्की की थी. 

लेकिन फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि विकास की रफ्तार धीमी पड़ गई? इसी सवाल की तलाश करने की कोशिश हम इस समरी के आगे के चैप्टर्स में करेंगे. 

इसका एक सीधा सा जवाब ये भी है कि 20वीं शताब्दी के बाद से अमेरिकन्स ने इन्वेशन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि उन्होंने पिछले 100 सालों में काफी अच्छा काम किया है. जिसकी वजह से वो बाकी दुनिया से काफी आगे निकल चुके हैं. 

इस वजह से अमेरिकन्स के अंदर कम्फर्ट ज़ोन में रहने की आदत आ गई. लेकिन हम सभी को पता है कि कम्फर्ट में ज़ोन में रहकर किसी का भी पूरी तरह से विकास नहीं हो सकता है. भले ही वो अमेरिका जैसी बड़ी शक्ति ही क्यों ना हो? इसलिए अभी भी अमेरिकन्स को समझना चाहिए कि पूर्वजों की मेहनत का फल खाने का समय बीत चुका है. अगर उन्हें दुनिया के लिए मिसाल कायम करनी है. तो उन्हें फिर से समय के आगे की सोच को अपनाना होगा. 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अमेरिकन्स की ग्रोथ रेट कम हुई है. इसका सबसे बड़ा रीज़न ये भी है कि ज्यादातर अमेरिकन्स nostalgia में रहते हैं. उन्हें पुरानी सुहानी यादें काफी अच्छी लगती हैं. इसके पीछे बड़ा योगदान टीवी सीरियल और मूवीज़ का भी है. ऐसी बहुत सारी मूवीज़ हैं, जिनमें 1950 के पहले के अमेरिका को दिखाया जाता है. 

जिन्हें देखकर ये एहसास होता रहता है कि अमेरिका हर फील्ड में बाकी दुनिया से बहुत आगे चल रहा है. लेकिन अब इस वक्त ये बात पूरी तरह से सही नहीं है. इसके पीछे का रीज़न ये है कि बाकी दुनिया कि ग्रोथ रेट अमेरिका के मुकाबले बेहतर है. 

ये बात पूरी तरह से सच है कि हमें अपने पूर्वजों पर गर्व होना चाहिए, लेकिन हम दिन भर ये सोचते रहें कि अब हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है? ये बात और इस तरह की सोच पूरी तरह से ग़लत है. इसलिए अमेरिका को भी अब 21वीं शताब्दी में कदम रख देना चाहिए.

अमेरिकन्स नॉस्टैल्जिया के शिकार हो चुके थे, इसी वजह से उन्हें इकॉनमी बेहतर नज़र आती थी
अमेरिकी राष्ट्रपति Franklin D. Roosevelt ने 1932 में एक न्यू डील लॉन्च की थी. इस डील के बाद से यूएस काफी मॉडर्न और सेंटर लेफ्ट कंट्री बन गया था. न्यू डील की मदद से लोगों को रोज़गार और पेंशन मिलने की शुरुआत हो चुकी थी. 

जिसकी वजह से अमेरिका में गरीबों की संख्या में भी काफी कमी देखने को मिली थी. 

इस पॉलिसी का असर 1960 के दशक में भी देखने को मिल रहा था. उस दौर के बड़े राजनेता ‘Lyndon B. Johnson’ उसी पॉलिसी की तर्ज़ पर चुनाव लड़ना चाहते थे. तब ‘Lyndon B. Johnson’ की मानसिकता में नॉस्टैल्जिया को साफ़ देखा जा सकता था. 

लेकिन उन्हें समझना चाहिए था कि अब 1930 का दौर नहीं चल रहा है. अब वोटर्स बदल चुके हैं, उनकी ख्वाइश और ज़रूरतें भी बदल चुकीं हैं. 

इसी नॉस्टैल्जिया की सोच का फायदा राईट विंग ने नेताओं ने उठाने की कोशिश की थी. और काफी हद तक उन्हें सफलता भी मिल गई थी. 

ideological फ्रंट में राईट विंग को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा था. इसी वजह से वो जल्द से जल्द कम बैक करना चाहते थे. अमेरिका की राजनीति में 1960 का दशक कुछ ऐसा हो चुका था कि कट्टरपंती सोच का बोल बाला चल रहा था. इसी सोच के आधार पर कई राजनेता अपनी राजनीति चमकाना चाहते थे. 

उस दौर में अमेरिका की राजनीति में दो धरे दिखाई देते थे, एक कट्टरपंती विचारधारा के और दूसरे कई दशक पीछे की विचारधारा के.. यही कारण है कि ऑथर ने उस दौर के राजनेताओं को “Evil Geniuses” कहा है. जिनके पास टैलेंट तो बहुत था लेकिन उन्होंने उस टैलेंट को नॉस्टैल्जिया की पॉलिसी में बर्बाद कर दिया था. 

इसी के साथ अमेरिकन्स भी नॉस्टैल्जिया में ही बिलीव करने लगे थे. इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 1980 के राष्ट्रपति चुनाव में Republican पार्टी के Ronald Reagan की जीत हुई थी. तब उन्होंने जनता के सामने 1932 की न्यू डील पॉलिसी को फिर से लागु करने की बात कही थी. जिसके आधार पर उन्हें चुनाव में जीत हासिल हुई थी. 

इस तरह की बातें साफ़ तौर पर दर्शाती हैं कि तब के अमेरिकन्स राजनेताओं के पास विज़न ज़ीरो हुआ करता था. उन्होंने पुराने विज़न की मदद से जीत हासिल की थी. जिसका नुकसान पूरे देश को आज भी उठाना पड़ रहा है.

अब पिक्चर में Milton Friedman और Lewis Powell आने वाले हैं
जैसा कि हम जान चुके हैं कि अमेरिका की राजनीति में 1960 के दशक में राईट विंग वापसी की कोशिश कर रही थी. उस वापसी में दो लोगों का बड़ा योगदान होने वाला था. 

पहले इंसान का नाम Milton Friedman है, ये University of Chicago में इकॉनोमिक के प्रोफेसर हुआ करते थे. इन्हें इकॉनोमिक्स की फील्ड में महारत हासिल थी. न्यू यॉर्क टाइम्स मैगजीन में इनका एडिटोरियल पब्लिश्ड होता था. जिसका नाम “A Friedman doctrine – The Social Responsibility Of Business Is toIncrease Its Profits,”हुआ करता था. 

इनके लिखे आर्टिकल को तब के बड़े-बड़े बिजनेस मैन भी पढ़ा करते थे. और वो इनकी बातों से पूरी तरह से सहमत भी नज़र आते थे. Milton Friedman की सोच से Republican President Ronald Reagan भी काफी ज्यादा प्रभावित नज़र आते थे. 

अब सेकंड इम्पोर्टेन्ट फिगर की एंट्री हो रही है, ये थे Lewis Powell, जो कि Virginia के टॉप लॉयर हुआ करते थे. 

ऑथर कहते हैं कि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उस दौर में Milton Friedman और Lewis Powell किसी जीनियस से कम नहीं थे. लेकिन इन्होने जो सुझाव सरकार को दिए थे. उन सुझावों की वजह से अमेरिका की राजनीति बुरी तरह से प्रभावित हुई थी. 

 इसलिए आज के दौर में भी आपको पता होना चाहिए कि अमेरिका की राजनीति के लिए Milton Friedman और Lewis Powell जैसे लोगों ने Evil Geniuses का काम किया है. इन्होने ने ही अमेरिकी सरकार को मीडिया और जर्नलिस्ट को खरीदने के सुझाव दिए थे. इन्हें नहीं पता था कि मीडिया में दखल देने से किसी भी देश का लोकतंत्र बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है. 

मीडिया और जर्नलिस्ट के अलावा भी इन्होने कई ऐसे सुझाव दिए थे, जिसकी वजह से अमेरिका की ग्रोथ रेट कम हुई थी. इसलिए अमेरिका के नागरिकों को इन दो Evil Geniuses को याद रखना चाहिए.

राईट विंग की स्ट्रेटजीज़ पर नज़र डालनी ज़रूरी है
जब भी कोई 1960 के अमेरिका को याद करता है, तो उसके दिमाग में कुछ तस्वीरें आती हैं. उन तस्वीरों में उस दौर का अमेरिका नज़र आता है. जिसमें हिप्पीस होते हैं, स्टूडेंट्स होते हैं, आंदोलनकारी होते हैं, या फिर ऐसे स्टूडेंट्स भी होते हैं जिनका काम ही प्रोटेस्ट करना होता था. साथ ही उस दौर में अमेरिका की गलियों में बैनर और स्लोगन भी नज़र आया करते थे. 

वो एक ऐसा दौर था, जब राईट विंग की पॉलिटिक्स अमेरिका में पाँव जमाने की कोशिश कर रही थी. राईट विंग के लीडर्स ओल्ड फैशंन सोच से अलग राजनीति करने की कोशिश कर रहे थे. उनका विज़न ultra-individualism की तरफ था. 

उन्होंने अपनी राजनीति की प्रेरणा hippies से ली थी. Hippie’s भी अपनी आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ने में भरोसा रखते थे. 

कुछ इसी तरह की सोच वाले राईट विंगर Milton Friedman भी थे. उन्होंने भी अपने आर्टिकल्स की मदद से रीडर्स के अंदर एटीट्यूड पैदा करने की कोशिश की थी. उनका मानना था कि इंसान को सोसाइटी से केवल उतना ही नहीं लेना चाहिए, जितना उसे मिल रहा है. बल्कि उसे अपनी प्रोग्रेस के लिए हमेशा लड़ाई करनी चाहिए. जब तक आप सोसाइटी से चीज़ें लेने की हिम्मत नहीं दिखायेंगे तब तक आपको कुछ भी नहीं मिलेगा. 

Milton Friedman हमेशा अपने रीडर्स से कहते थे कि कभी भी अमीर बनने से पीछे नहीं हटना चाहिए. अमीर बनने और अमीर कहलाने में किसी भी तरह की बुराई नहीं है. इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा था कि हमें hippies से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है. वो लोग वही करते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है.

क्या अमेरिका के राईट विंग को सफलता मिली थी?
हमेशा से ऐसा देखा गया है कि अमेरिकन लिब्रल्स को राइट विंग की अपेक्षा में ज्यादा सफलता मिलती थी. वो लोग अधिकत्तर political arguments को भी जीत लिया करते थे. 

पहले ही लिबरल्स को न्यू डील पॉलिसी के रूप में बड़ी सफलता मिल चुकी थी. इसलिए 1960 के दशक में लिबरल्स काफी ज्यादा आत्म संतुष्ट नज़र आया करते थे. 

हालाँकि इस समरी में हम लोगों ने पहले भी नॉस्टैल्जिया का ज़िक्र किया है. साथ ही साथ ये भी जाना है कि किस तरह अमेरिकन्स ने नॉस्टैल्जिया की वजह से खुद की प्रोग्रेस को कम किया है? 1980 के दशक में लिबरल्स भी यही गलती कर रहे थे. वो अधिकत्तर समय नॉस्टैल्जिया की ही सफलता में गुम नज़र आते थे. 

इसी बात का राईट विंग ने फायदा उठाया था.
जब लिबरल्स नॉस्टैल्जिया में खोकर अपना समय बर्बाद कर रहे थे. तब अमेरिका में राईट विंग अपनी पॉलिटिक्स को आगे बढ़ाने का काम कर रहा था. राईट विंग के लीडर्स समझ चुके थे कि अगर 21वीं शताब्दी के अमेरिका पर राज़ करना है. तो वहां के युवाओं को अपने साथ लेकर आना ही होगा. 

उन्होंने बड़ी बारीकी से इस काम को अंजाम दिया था और अमेरिका के हर शहर में युवाओं को जोड़ने की मुहीम शुरू कर दी थी. और इसी मुहीम की वजह से अमेरिका में राईट विंग को सफलता भी मिली थी. 

दोस्तों, इस समरी में आपको कई बार राईट विंग और लेफ्ट विंग के बारे में सुनने को मिल रहा है. इसलिए एक नज़र में जान लेते हैं कि आखिर राईट विंग और लेफ्ट विंग क्या होता है? 

दरअसल, आपको बता दें कि किसी भी देश की राजनीति दो तरह के लोगों के बीच बंटी हुई होती है, वामपंथी (Left Wing) और दक्षिणपंथी (Right Wing). 

दोनों में ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ और सिर्फ विचारधारा का फर्क है. हालांकि, कई जानकार ऐसा भी बोलते हैं कि राजनीति में हमेशा से ऐसा कुछ नहीं था. जैसे हर चीज़ की कभी ना कभी शुरुआत होती है, इसकी भी शुरुआत हुई थी... एक्सपर्ट्स कहते हैं राजनीति की विचारधारा की शुरुआत अमेरिका से नहीं बल्कि फ्रांस से हुई थी. 

फ्रांस की नेशनल असेंबली में संविधान को तैयार करने के लिए पहुंचे नेताओं ने ऐसा निर्णय लिया जिससे लेफ्ट विंग और राइट विंग का जन्म हुआ है. धीरे-धीरे ये शब्द विचार से ऐसे जुड़े कि राजनीति दो धड़ों में बंट गई और भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में इन शब्दों का इस्तेमाल होने लगा.

आज के समय की राजनीति में भी इन दोनों विचारधाराओं का ज़िक्र बड़ी ही बेबाकी से किया जाता है.

1980 के दशक में हुए राजनीति बदलाव पर नज़र डाल लेते हैं
1980 का दशक ही वो दौर था, जब अमेरिका में capitalism यानि पूँजीवाद को पूरी तरह से फैलाया जा रहा था. उस दौर के पॉलिसी मेकर्स का मानना था कि इससे अमेरिका की इकॉनमी को काफी ज्यादा फायदा होगा. 

ऑथर कहते हैं कि उस दशक में अमेरिका की इकॉनमी में कई बदलाव किए गए थे. जिनके असर, आज के समय में भी हमको देखने को मिल रहे हैं. इसलिए किसी भी अमेरिकन को 1980 का दशक नहीं भूलना चाहिए. 

हमें नहीं भूलना चाहिए कि 1980 के दशक में ही Reagan ने चुनाव जीता था और राष्ट्रपति चुने गए थे. यही वो दौर था जब Milton Friedman के विचारों को मेन स्ट्रीम में जगह मिली थी. कई चीज़ें रातों रात पूरी तरह से बदल दी गईं थीं. अमेरिका इकॉनोमिक रिफ़ॉर्म से गुज़र रहा था. 

अचानक से अमेरिकन्स को capitalism पसंद आने लगा था, उन्हें बिजनेस के लिए लालची होने में कोई बुराई नज़र नहीं आती थी. उन्होंने Milton Friedman की विचारधारा को सही मान लिया था. 

Milton Friedman की प्रसिद्धि बताती है कि किसी भी देश के भविष्य में वहां की मीडिया का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहता है. क्योंकि Milton Friedman की popularity  न्यू यॉर्क टाइम्स में छपे उनके आर्टिकल्स के बाद से ही बढ़ी थी. 

अगर आप अमेरिकन हैं या फिर आपको अमेरिका के इतिहास को जानना है. तो आपको 1980 का दशक ज़रूर पढ़ना चाहिए. इस दशक में अमेरिका के अंदर बहुत तेजी से बदलाव हुए थे. हालाँकि, कई बदलाव बोरिंग भी थे, लेकिन अमेरिका के इतिहास में उनका इफ़ेक्ट आज भी देखने को मिलता है.

अमेरिका में हुए “Birth of Financialization” को भी समझने की कोशिश करते हैं
1980 के दशक में ही अमेरिका में “Wall Street shark’s” का भी जन्म हो रहा था. मतलब ऐसे बड़े बिजनेसमैन जिनके लिए पैसों से बढ़कर कुछ भी नहीं होता था. इन्हीं “Wall Street shark’s” को 1987 की film Wall Street, में भी दिखाया गया था. 

“Wall Street shark’s” के लिए लालच बुरी बात नहीं हुआ करती थी. बल्कि ये कहा करते थे कि “Greed isgood.” मतलब लालच से अच्छा कुछ भी नहीं.. 

इन्हीं की वजह से तब अमेरिका के इकॉनोमिक स्ट्रक्चर में बदलाव भी देखने को मिल रहे थे. इसके पहले जिस देश का फोकस चीज़ों को बनाने में हुआ करता था. अब उसका फोकस चीज़ों को अच्छे से अच्छे दाम में बेचने में होने लगा था. 

हालाँकि, इस बात पर लंबी बहस हो सकती है कि मेकिंग पर फोकस होना चाहिए या फिर सेलिंग पर? लेकिन उस दौर के अमेरिका का फोकस सेलिंग पर हो चला था. 

और इस फोकस के पीछे सबसे बड़ा योगदान “Wall Street shark’s”  का था. इनका मोटिव साफ़ था कि इस देश को वही चलाएगा जिसके पास सबसे ज्यादा पैसा होगा. मतलब साफ़ है कि शक्ति उसी के पास होगी, जो अमीर होगा. 

अब ये सोच कितनी सही थी? ये तो कोई नहीं कह सकता है. लेकिन इस सोच के बारे में आपको पता होना ज़रूरी है. 

जहाँ एक दौर के अमेरिका की सोच लिबरल की तरफ झुकी हुई थी, वहीं उसी अमेरिका की सोच देखते-देखते ही पूँजीवादी होने लगी थी. मतलब साफ़ था कि अमेरिका अमीरों का देश बनना चाहता था. और ऐसा चाहने वाले और कोई नहीं बल्कि तब के पॉलिसी मेकर्स थे. 

यही वो दौर भी था, जब अमेरिका में “Financialization” का जन्म हो रहा था. हालाँकि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस अप्रोच का फायदा बड़े-बड़े बिजनेसमैन को ज़रूर हुआ था. इसी अप्रोच की मदद से अमेरिका में इंडस्ट्रीज़ का पैसा भी आया था. लेकिन इस बात को भी कोई गलत नहीं ठहरा सकता है कि इसी अप्रोच का नुकसान एक आम अमेरिकन्स को भुगतना पड़ रहा है. 

सोसाइटी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आज के समय में एक आम अमेरिकन के ऊपर बहुत ज्यादा कर्ज़ चढ़ चुका है. आज ऐसा समय आ गया है जब अमेरिका का आम आदमी कर्ज़ में डूबता जा रहा है. ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि बाज़ारवाद की महिमा आम आदमी को खाती जा रही है. इसलिए अब आज के पॉलिसी मेकर्स को सोचना चाहिए कि क्या हम पुराने अमेरिका को फिर से ज़िन्दा कर सकते हैं?

अमेरिका को बदलने की ज़रूरत है और उसे बदलना ही होगा नहीं तो फ्यूचर भयानक हो सकता है
ऑथर कहते हैं कि आज के समय अमेरिका के सामने चुनौती है कि वो कैसे आम लोगों की ज़िन्दगी को बेहतर करेगा? 

क्या इसके लिए अमेरिका फिर से अपने गोल्डन पास्ट को याद करते हुए अपनी पीठ थप-थपाएगा, या फिर रियलिटी चेक की तरफ जाएगा? अगर गोल्डन पास्ट की यादों में खोया रहेगा तो याद रखिए कि अमेरिका का फ्यूचर मनहूस भी हो सकता है. 

अब समय आ गया है कि अमेरिका रियलिटी चेक की तरफ ध्यान दे, उसे पता होना चाहिए कि आम लोगों के ऊपर क़र्ज़ का भार बढ़ता जा रहा है. अमेरिका की ये ज़िम्मेदारी है कि वो अपनी इकॉनमी को इस तरह से डिज़ाइन करे कि लोगों को अपनी ज़िन्दगी बेहतर करने के लिए क़र्ज़ ना लेना पड़े? 

सबसे पहले अमेरिका को समझना होगा कि वो जिस रास्ते में बढ़ रहा है, यानि पूरी पॉवर ताकतवर कारपोरेशन के हाथों में, ये रास्ता बिल्कुल भी सही नहीं है. इस रास्ते में चलकर सिर्फ और सिर्फ मनहूस फ्यूचर ही मिलने वाला है. 

आज के अमेरिका में लोगों के अंदर कर्ज़ लेने का ट्रेंड सा चल रहा है. जो कि बिल्कुल ग़लत है, क़र्ज़ लेकर किसी की भी लाइफ बेहतर नहीं हो सकती है. 

लाइफ को बेहतर करने के लिए, आपको खुद के लिए और अपने परिवार के लिए पैसों के साथ-साथ समय की ज़रूरत पड़ेगी. इसलिए अपने सीमित समय को क़र्ज़ को खत्म करने में ना लगाइए. इस समय को अपने परिवार के साथ बिताने में खर्च करने की कोशिश करिए. 

आप ओब्सर्व करेंगे कि आप अपने समय से खुशियों को खरीद लेंगे, आपको कभी भी इतनी ख़ुशी किसी भी सामान को खरीदने में नहीं मिलेगी. 

इसलिए ऑथर कहते हैं कि आज के अमेरिका के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या वो पीछे देखना चाहता है? या फिर अपने नए भविष्य की कल्पना करना चाहता है? नए फ्यूचर के लिए नई सोच की ज़रूरत पड़ेगी. और नई सोच के ऊपर नई विचारधारा की मदद से काम किया जा सकता है.

कुल मिलाकर
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि 1960 के दशक में अमेरिका की पूरी सोसाइटी ही nostalgic हो गई थी. उसे पुरानी यादों में रहने की आदत पड़ गई थी. यही वजह थी कि अमेरिका की ग्रोथ रेट में साफ़ तौर पर कमी देखने को मिली थी. हमें आज के अमेरिका को देखकर ये समझ में आ रहा है कि 1960 के बाद बनाई गई पॉलिसी का असर आज के अमेरिका में किस तरह से पड़ रहा है? 

 

 

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