Beethoven

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Beethoven

Laura Tunbridge
A Life in Nine Pieces

दो लफ्ज़ों में 
साल 2020 में रिलीज़ हुई किताब “Beethoven” एक ऐसे म्यूजिक कम्पोज़र की कहानी बयाँ करती है. जिसको दुनिया ने लिजेंड माना लेकिन काफी देर होने के बाद. आपको बता दें कि “दुनिया ने जिन्हें बीथोवन के नाम से जाना उनका पूरा नाम 'ल्यूडविग वॉन बीथोवन' था. जर्मनी की धरती पर जन्म लेने वाले इस म्यूजिशियन को बाद में पूरी दुनिया में सम्मान और नाम मिला. यहां एक मजेदार बात यह भी थी कि बीथोवन की बर्थ डेट को लेकर लोगों में हमेशा से कन्फ्यूजन रहा है और खुद बीथोवन भी इस कन्फ्यूजन से बच नहीं पाए थे. वैसे तो अधिकत्तर कांसेप्ट को लेकर मिथ फैले रहते हैं. लेकिन इस लीजेंडरी म्युज़िक कम्पोज़र के बारे में भी काफी मिथ फैले हुए हैं. इस किताब में ऑथर Laura Tunbridge ने उन सभी मिथ से पर्दा उठाने का बाखूबी काम किया है. ये किताब की कहानी किसी मूवी से कम नहीं है, इस सफर में आपको थ्रिल से लेकर म्युज़िक तक का एहसास होगा.

  ये किताब किसके लिए है? 
-ऐसे लोगों के लिए जिन्हें संगीत से प्रेम हो 
-ऐसे लोग जो अच्छी किताबें पढ़ना चाहते हों 
-ऐसे लोग जिन्हें जीनियस बनने की इच्छा हो 
-सभी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए 

लेखिका के बारे में 
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन ‘Laura Tunbridge’ ने किया है. ये लेखिका होने के साथ-साथ German Romanticism की स्कॉलर भी हैं. इन्होने 19वीं शताब्दी के म्युज़िक के बारे में काफी ज्यादा रिसर्च की है. इन्होने अपने राइटिंग करियर में तीन monographs का लेखन किया है. रिसर्च में बहुत ज्यादा काम करने की वजह से ये कहा जा सकता है कि लेखिका ने इस किताब के साथ पूरी तरह से न्याय किया है.“Early Recognition”
भले ही आप क्लासिक म्युज़िक ना सुनते हों, या फिर कभी-कभी सुनते हों, लेकिन फिर भी आपने कहीं ना कहीं तो बीथोवन के बारे में सुना ही होगा. ऐसा कहा जाता है कि कठिनाइयां बचपन से ही बीथोवन के साथ चलती रहीं. उनके पिता बेहद कठोर व्यक्ति थे. हालांकि बीथोवन के पहले संगीत गुरू भी उनके पिता ही थे लेकिन कहा जाता है कि वे इतनी कठोरता से व्यवहार करते थे कि बीथोवन की आंखें ज्यादातर समय आंसुओं से भरी रहती थीं. इसके बावज़ूद भी लोग बीथोवन को एकांत में रहने वाला, एक ऐसा जीनियस जो लोगों को पसंद नहीं करता था. कुछ ऐसा समझते हैं, लेकिन बीथोवन ऐसे बिल्कुल नहीं थे. उन्हें तो लोगों से प्रेम था, वो अपने संगीत की मदद से भी दोस्ती को बढ़ावा दिया करते थे. ऐसे म्युज़िक कम्पोज़र के संघर्ष की कहानी सभी के सामने आनी ज़रूरी है. इसलिए अगर आप संगीत से प्रेम करते हैं या फिर संगीत की दुनिया में करियर बनाना चाहते हैं. 

तो आपको भी बीथोवन की कहानी ज़रुर जाननी चाहिए. 

आपको इन चैप्टर्स में ये भी सीखने को मिलेगा 

-बीथोवन की जर्नी से क्या सीखना चाहिए? 

-संघर्ष क्या होता है? 

-म्युज़िक कम्पोजीशन के बारे में? 

तो चलिए शुरू करते हैं!

सात मई, 1824. वियना की एक संगीतमय शाम. उस शाम को जिसनें भी देखा था, फिर कभी वैसी शाम उसे नज़र नहीं आई. इसकी कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन एक सबसे बड़ी वजह बीथोवन थे. 

शाम धीरे-धीरे और भी ज्यादा संगीतमय होती जा रही थी. लोगों को अंदेशा लग चुका था कि आज तो कुछ ख़ास होने वाला है. 

शहर के बड़े-बड़े लोग और एलीट तबक़ा वियना के रॉयल कोर्ट थिएटर में आना शुरू हो गए थे. कई लोग तो काफी पहले से वहां आ चुके थे. सभी की आँखों में किसी का इंतज़ार देखा जा सकता था. सबको एक बेहद ख़ास मौक़े का इंतज़ार था. ये मौक़ा था ‘लुडविग वैन बीथोवन’ की नौवीं सिम्फ़नी के प्रीमियर का, जिसे संगीत की दुनिया में आज भी ऐसी घटना के तौर पर याद किया जाता है. जो फिर कभी नहीं दोबारा हो सकी.. वो पल उसी वक्त हमेशा के लिए दिव्य हो गए. 

हालांकि, ऐसा भी कहा जाता है कि वहां मौजूद लोगों की उम्मीदें इस इवेंट से काफ़ी ज़्यादा थीं. सिम्फ़नी को कंपोज़ करने वाले ने लंबे समय से कोई सिम्फ़नी नहीं बनाई थी, लेकिन वे पूरी तरह से चूके नहीं थे. बीथोवन पिछले 12 सालों से स्टेज पर भी नहीं दिखाई दिए थे. लेकिन आख़िरकार वे स्टेज पर मौजूद थे. संगीत के इस महान दिग्गज ने पोडियम से अपने सबसे बड़े आर्केस्ट्रा के लिए मंच संभाला. यह एक ऐसा कंसर्ट था जो ना तो इससे पहले कभी हुआ था और ना ही बाद में हो पाया.

पहली बार सिम्फ़नी के फ़ॉरमैट में बदलाव किया गया ताकि उसमें मानवीय आवाज़ को भी शामिल किया जा सके. दर्शकों के सामने पीठ किए, बीथोवन ने संगीत को जादुई अंदाज़ में आगे बढ़ाया, उनका शरीर थिरक रहा था, संगीत के साथ उनके हाथ लहर में झूम रहे थे. वे एक तरह से संगीत में डूबे हुए थे, जब उनका शो पूरा हुआ तब भी उनके हाथ लहरा रहे थे, इसके बाद उनके समूह की अकेली महिला गायिका कैरोलिन एनगेर ने आगे बढ़कर उन्हें दर्शकों के सामने कर दिया ताकि वे तालियों की गड़गड़ाहट को देख सकें. दरअसल बीथोवन तब तक पूरी तरह बहरे हो चुके थे.

दोस्तों हम इस रात में फिर से लौटेंगे, लेकिन उससे पहले बीथोवन के बारे में कुछ और बातों के बारे में बारीकी से चर्चा कर लेते हैं. 

अब समय आ चुका है, साल 2020 का, मतलब वो दौर, जब रिमिक्स तैयार किए जाते हैं. और रातों रात किसी को भी शोहरत मिल जाती है. इसी साल बीथोवन की 250वीं बर्थ एनिवर्सरी भी थी. और इसी साल उनके ऊपर इस किताब को भी लॉन्च किया गया था. 'ल्यूडविग वॉन बीथोवन' संगीत की दुनिया में कोई ऐसा नाम नहीं है. जिसे आप नज़रंदाज़ करने के बारे में सोच सकें. 

खैर, 'ल्यूडविग वॉन बीथोवन' की बर्थ डेट की बात करें, तो इस बारे में किसी को कोई ख़ास जानकारी नहीं है. लेकिन ज्यादातर रिसर्च रिपोर्ट में December 17, 1770 का ज़िक्र होता है. इन रिपोर्ट्स के हिसाब से यही बीथोवन की बर्थ डेट है.

बीथोवन के पिता का नाम Johann van Beethoven और उनकी माता का नाम मारिया था. ऐसा बताया जाता है कि 18 साल की उम्र में बीथोवन ने अपनी मां को खो दिया और पिता भी तमाम जिम्मेदारियों से पीछे हट गए. तब दो छोटे भाइयों की जिम्मेदारी भी बीथोवन के ऊपर आ गई. 

'ल्यूडविग वॉन बीथोवन' के परिवार को लोग म्यूजिकल फैमिली के तौर पर याद करते हैं. क्योंकि बीथोवन के ग्रैंड फादर भी कोर्ट म्युज़िक के डायरेक्टर हुआ करते थे. वो एक वाइन मर्चेंट भी थे और लोग उन्हें एक दरबारी शराबी गायक के तौर पर भी जानते थे. बीथोवन के ग्रैंड फादर की मृत्यु के तीन साल बाद ही उनके पोते का जन्म हुआ था. बीथोवन को उनके पिता ने पाला था, लेकिन उनके पिता का व्यवहार भी गाली गलौज़ वाला ही हुआ करता था. बीथोवन के पिता उनको संगीत की दुनिया का बड़ा नाम बनाना चाहते थे. लेकिन पता ही नहीं चला कि कब बीथोवन और उनके पिता के बीच रिश्ता खराब हो गया, इसकी बड़ी वजह ये भी थी कि बीथोवन ने बहुत जल्द अपने पिता के टैलेंट को पछाड़ दिया था. 

बीथोवेन का परिवार अमीर घराने का नहीं था. लेकिन उनके नाम में एक कन्फ्यूजन छुपा हुआ था. दरअसल, जर्मनी और आस्ट्रिया में अगर किसी के नाम के साथ ‘वेन’ लगा हुआ होता है. तो लोग उसे अमीर घराने का समझ लेते हैं. लेकिन बीथोवेन के दादा जी बेल्जियम और फ्लेमिश के थे. उनके नाम में भी ‘वेन’ लगा हुआ था. लेकिन उनके परिवार का अमीर घराने से कोई लेना देना नहीं था.

नाम बड़ी चीज़ है, इसे बनाने में भी समय लगता है
इस चैप्टर में और आने वाले कुछ चैप्टर्स में हम बीथोवन की लाइफ के कुछ बेहतरीन म्यूजिक कम्पोजीशन के बारे में चर्चा करेंगे. इन म्यूजिकल कम्पोजीशन का बीथोवन की लाइफ में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 

पहला कम्पोजीशन जिनसे उन्हें शुरूआती सफलता मिली थी. उसका नाम ‘Septet’ था, इसका निर्माण 1800 में हुआ था. और उसी साल वियना के सबसे पॉपुलर थियेटर में परफॉर्म भी किया गया था. 

उस दौर में वियना में खुद के कॉन्सर्ट को ओर्गेनाइज़ करना बिल्कुल भी आसान काम नहीं था. लेकिन कॉन्सर्ट 2 अप्रैल 1800 को ओर्गेनाइज़ करवाया गया था. 

इसमें मोजार्ट और हेडन के काम भी शामिल था. यही वो समां था जब दुनिया के सामने बीथोवन का डेब्यू हुआ था और लोगों ने पहली सिम्फनी को भी सुना था. 

हालाँकि, अधिकत्तर लोगों का कहना है कि बीथोवन कोई ऐसी शख्सियत नहीं थे. जिन्हें रातों रात सफलता मिली हो, इसी के साथ उनकी कम्पोजीशन भी तुरंत सुपरहिट नहीं हो गईं थीं. और ना ही उनकी तारीफ में क्रिटिक्स लतीफ़े पढ़ा करते थे. 

ये सब बातें सुनने में अजीब लग सकती हैं, लेकिन पूरी तरह से सच हैं. इन बातों में किसी भी तरह की मिलावट नहीं है. 

आज के समय में लोग बीथोवन की लाइफ की सिम्फनीज़ को याद करते हैं, लोग ये भी याद करते हैं कि बीथोवन जैसी सिम्फनीज़ उन्हें दोबारा सुनने को नहीं मिलेगी. यकीन आश्चर्य वाली बात ये है कि जब बीथोवन ज़िन्दा थे, तब उनके द्वारा तैयार की गई सिम्फनीज़ की ज्यादा चर्चा नहीं होती थी. 

लेकिन फिर भी बीथोवन की सिम्फनी जिसका नाम ‘Septet’ था, उसने ऑडियंस के दिमाग पर गहरा असर छोड़ा था. जब ये परफॉरमेंस चल रहा था तो इसे कई बार केवल इसलिए रोक दिया गया था. क्योंकि लोगों की भीड़ कुछ ज्यादा ही मग्न हो गई थी. पूरा ईलाका इस सिम्फनी के गूंज से चमक उठा था. 

इसलिए आज भी लोग ‘Septet’ को ही बीथोवन की पहली सफलता मानते हैं. इसके म्युज़िक ने कई सौ सालों तक राज़ किया है.

A Man with Connections
अगर आपके दिमाग में बीथोवन की कोई ईमेज है. तो हो सकता है कि उस तस्वीर में बीथोवन मुस्कुराते हुए नज़र ना आ रहे हों. इनकी सबसे पॉपुलर ईमेज को फ्रांज क्लेन ने बनाया था. 

उस तस्वीर को देखने वालों को भी लगता है कि बीथोवन को अकेल रहना ज्यादा पसंद था. लेकिन अगर आप बीथोवन के लेटर्स को पढ़ने की कोशिश करेंगे, या फिर उन्हें जानने वालों के लिखे को पढ़ेंगे. तो आपको पता चलेगा कि बीथोवन ना ही हमेशा चिल्लाते रहते थे. और ना ही उन्हें अकेले में रहना अच्छा लगता था. 

वो पूरी तरह से सामाजिक इंसान थे, उन्हें लोगों के साथ रहना और उनसे बातें करना बहुत पसंद था. कई लोग इस मिथ को भी मानते हैं कि जो लोग जीनियस होते हैं, वो कुछ ज्यादा ही सीरियस होते हैं. 

लेकिन इस बात में बिल्कुल सच्चाई नहीं है, ख़ासकर बीथोवन के केस में तो बिल्कुल नहीं, बीथोवन को उनके जानने वाले मैन विथ कनेक्शन के नाम से भी जानते हैं. 

उन्हें जानने वालों ने लिखा है कि बीथोवन के पास मज़ाक करने की गज़ब की क्षमता थी. उनके पास एक ऐसा ह्यूमर भी था, जिससे वो लोगों के दिलों में एक अलग जगह बना लिया करते थे. बीथोवन की दूसरी कम्पोजीशन दिखाती है कि वो फ्रेंडशिप की कितनी कद्र किया करते थे? उनकी दूसरी म्यूजिकल कम्पोजीशन को लोग “Kreutzer,” के नाम से भी जानते हैं. 

बीथोवन के बारे में बात करते हुए ऑथर कहती हैं कि “आगे चलकर वह असीम कल्पना, जुनून और ताक़त भरी धुनों के संगीतकार बने, जो उनके जटिल और विरोधाभासी शख़्सियत से मेल खाने वाला रहा. जब वे संगीतकार बनने के दौर से गुज़र रहे थे तब नेपोलियन के युद्ध का दौर था, राजनीतिक तौर पर यूरोप उथलपुथल के दौर से गुज़र रहा था.”

कई लोगों का ऐसा भी मानना है कि बीथोवन का जन्म हालांकि जर्मनी में हुआ था लेकिन उन्हें वियना के एक प्रसिद्ध संगीतकार परिवार ने गोद ले लिया. वे उस शहर में पहुँच गए जहां से वुल्फगेंग एमत्योस मोत्जार्ट, जोसेफ हायडन, फ्रांच सुबर्ट और एंटोनियो विवाल्डी जैसे संगीत दिग्गजों का रिश्ता रहा है.

सच कुछ भी हो, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बीथोवन ने इस दुनिया को बहुत ही अच्छे संगीत से नवाज़ा है.

“Defying Conventions”
अब समय बदलने वाला था, 1804 आते-आते बीथोवन के कैरियर की हवा बदलने लगी थी. बीथोवेन चुनौतीपूर्ण रचना के लिए बदनाम होने की राह पर थे. 

क्रिटिक्स ने उनकी रचना ‘Kreutzer sonata’ को ये कहते हुए नकार दिया था कि ये संगीत अभिमानी और दिखावटी है. 

बीथोवेन की तीसरी सिम्फनी की शुरुआत, जिसे आमतौर पर "एरोइका" के रूप में जाना जाता है. 

इसे symphonic rule-breaking रचना भी कहते हैं. इसकी शुरुआत ही दो अटेंशन ग्रैबिंग कॉरड से होती है. 

जैसा कि हम लोगों ने पहले ही बात कर ली है कि जब बीथोवन संगीतकार बनने के दौर से गुज़र रहे थे.

तब नेपोलियन के युद्ध का दौर था, यही कारण है कि उन्होंने अपनी तीसरी सिम्फनी को Napoleon Bonaparte को डेडीकेट भी किया था. 

उन्होंने अपनी तीसरी सिम्फनी को नेपोलियन को डेडीकेट किया था, तो इसका मतलब ये नहीं है कि बीथोवन नेपोलियन को आयडल मानते थे. 

बल्कि इतिहास के पन्नों में बीथोवन का नेपोलियन की तरफ रवैया काफी डिबेटेबल रहा है. हिस्ट्री के इन दो प्रमुख अंगों के ऊपर काफी डिबेट्स भी हो चुकी हैं.

और ज्यादातर डिबेट्स में पता नहीं चला है कि आखिर बीथोवन की सोच नैपोलियन को लेकर कैसी थी? 

बीथोवन के बारे में चर्चा करते हुए ऑथर कहती हैं कि "उन्होंने कई तरीक़ों से संगीत में क्रांतिकारी बदलाव किए ख़ासकर साउंड और वोल्यूम के हिसाब से. 

उनका विचार था कि संगीत के ज़रिए भी विचार और मनोभावों को व्यक्त किया जा सकता है. उनका यह भी मानना था कि संगीत शुद्ध मनोरंजन भर नहीं है बल्कि यह कहीं गहरा एहसास है."

ल्यूडविग वॉन बीथोवन' की शख्सियत हमेशा समय से आगे की थी
'ल्यूडविग वॉन बीथोवन' की शख्सियत हमेशा समय से आगे की थी 

1808 के दौर में ऑर्केस्ट्रा तो हुआ करता था, लेकिन ऑर्केस्ट्रा में भाग लेने वाले म्यूजीशियन प्रोफेशनल नहीं हुआ करते थे.

उस दौर में अधिकांश लोग म्यूजिक को करियर बनाने के बारे में सोचा भी नहीं करते थे. 

ऑर्केस्ट्रा में जो म्यूजीशियन नज़र भी आते थे, उन्हें आप पार्ट टाइम संगीतकार कह सकते हैं, मतलब हफ्ते भर वो लोग अलग-अलग काम किया करते थे. 

और छुट्टी के दिन शौक के लिए संगीत का सहारा ले लेते थे. इसलिए उस समय के ऑर्केस्ट्रा में कई लोगों को टैलेंट की कमी भी नज़र आती थी. 

लेकिन बीथोवन काफी ज्यादा फ्यूचर ओरिएंटेड और महत्वाकांक्षी टाइप की पर्सनालिटी थे. जिस समय लोग संगीत को पार्ट टाइम काम भी नहीं माना करते थे. 

उस समय में बीथोवन ने कई सिम्फनीज़ को लिखने का काम किया था. 

बीथोवन को पता था कि आज नहीं तो कल दुनिया में संगीत राज़ करेगा. इसलिए उन्होंने अपनी ज़िन्दगी का ज्यादातर समय संगीत को दिया था. 

बहुत सारे लोग तो ये भी मानते हैं कि 'ल्यूडविग वॉन बीथोवन' की शख्सियत हमेशा समय से आगे चलती थी. उन्हें मालुम था कि आने वाले समय में कैसी ऑडियंस होने वाली है?

“Unrequited Love”
बहुत लोगों के मन में सवाल रहता है कि आखिर बीथोवन जैसे जीनियस की दिनचर्या कैसी रहती होगी? अब आपको इस सवाल का जवाब इस चैप्टर में मिलने वाला है. 

आपको बता दें कि ऑथर बताती हैं कि “बीथोवन के दिन की शुरुआत जल्दी हुआ करती थी. सुबह की पहली कॉफ़ी के बाद वो अपने काम में लग जाया करते थे. जिस काम को वो दोपहर तक करते थे और फिर लंच करने के लिए काम से उठते थे.” 

लंच के बाद बीथोवन एक लंबी सैर पर निकल जाया करते थे. उनकी एक आदत थी कि वो जब भी वॉक के लिए जाते थे, अपने साथ एक नोट बुक ज़रूर लेकर जाया करते थे. इसी के साथ उनकी एक आदत और थी, वो ये थी कि डिनर से पहले वो कॉफ़ी हाउस ज़रूर जाया करते थे. 

वहां जाकर वो डेली का न्यूज़ पेपर पढ़ते थे. फिर रात को 10 बजे तक वो सोने के लिए अपने बेड रूम आ जाते थे. 

बीथोवन एक शानदार कम्पोज़र होने के साथ-साथ बेहतरीन पाठक भी थे. उन्हें किताबें पढ़ने का काफी शौक हुआ करता था. वो उस समय के ऑथर Goethe की लिखी किताबें ज़रूर पढ़ा करते थे. 

ऑथर बीथोवन के बचपन का किस्सा शेयर करते हुए बताती हैं कि बचपन में बीथोवन वायलिन बजाने की कोशिश करते थे. इसमें वे अपने मन से सुरों की कल्पना किया करते थे, बजाय म्यूजिकल नोट्स फॉलो करने के..

इस बात को लेकर उनके पापा ने उन्हें टोका भी लेकिन असल में तो यही बीथोवन का यूनिक स्टाइल था जिसने उन्हें आइकॉन बनाया..

बाद में पियानो ने उन्हें आकर्षित किया और एक महान पियानो वादक के रूप में उन्होंने बहुमूल्य कंपोजिशन संगीत जगत को दीं.

बीथोवन ने बहुत कम उम्र में ही पियानो पर जो धुनें बजाईं वे उस जमाने के हिसाब से एकदम नई और बेहद डिफिकल्ट थीं.

उनकी कुछ सिम्फनीज ने तो क्लासिकल म्यूजिक की दुनिया का रूख ही बदल कर रख दिया. बीथोवन की नाइंथ सिम्फनी इन्हीं में से एक है. लगभग 25 साल की उम्र में बीथोवन की सुनने की क्षमता कमजोर होने लगी थी. हालात ऐसे थे कि बीथोवन अपने दोस्तों या मिलने-जुलने वालों के लिए अपने साथ एक कॉपी रखा करते थे और उनसे कहते थे कि- जो भी कहना हो, लिखकर कहो.. ताकि मैं समझ सकूं..

एक शानदार म्यूजिशियन होने के साथ ही बीथोवन जिंदगी को खुले दिल से जीने वाले भी थे. यही नहीं उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी गजब था.

वे अक्सर खुद के बीमार होने पर भी हंसी-मजाक से खुद का मन बहला लिया करते थे.

बताया जाता है कि उनकी मृत्यु से कुछ ही दिन पहले जब एक पब्लिशर उनके लिए कुछ वाइन की बॉटल्स भेंट में लेकर पहुंचा तो बीथोवन के शब्द थे-'पिटी, पिटी, टू लेट'..

खैर, ये सब तो बीथोवन की ज़िन्दगी के कुछ पहलू हैं, जो कि आपको बीथोवन को समझने में मददगार साबित होंगे. लेकिन बीथोवन इन सभी पहलू से बहुत बड़ी हस्ती थे. ऑथर बार-बार कहती हैं कि हम भले ही बीथोवन को शब्दों में समेटने की कितनी ही कोशिश कर लें? लेकिन इन कोशिशों में हम कभी कामयाब नहीं होंगे. क्योंकि बीथोवन खुद में एक दुनिया की तरह थे. जिनके अंदर कई तरह के रंग मौजूद थे. उन्होंने उन रंगों को अपनी सिम्फनीज़ के माध्यम से जनता के सामने पेश करने की कोशिश की है. 

लेकिन फिर भी मेरा मानना तो यही है कि बीथोवन किसी भी सिम्फनीज़ से बेहतर म्यूज़िक कम्पोज़र थे. उन्हें दर्शकों के नब्ज़ को टटोलते आता था. उनके बिना इन सिम्फनीज़ को कोई दूसरा नहीं तैयार कर सकता था.

“A Banner Year”
साल 1814 के ऑटम के सीज़न में खुशियाँ मनाने की कई वजहें थीं. उसमें से एक वजह नेपोलियन की हार भी थी. इसी के साथ बीथोवन की लाइफ में भी ये साल ख़ुशियों के साथ ही बीत रहा था. 

शहर के अंदर बीथोवन का फैन बेस तैयार हो चुका था, लोगों को पता चल चुका था कि उन्हें बीथोवन के रूप में बेहतरीन म्युज़िक कम्पोज़र मिल चुका है. इस साल सुनने वालों ने बीथोवन के संगीत को बहुत ज्यादा प्यार दिया था. इतना प्यार उनके संगीत पहले के सालों में नहीं मिला था. 

ऑथर कहती हैं कि "उन्होंने कई तरीक़ों से संगीत में क्रांतिकारी बदलाव किए ख़ासकर साउंड और वोल्यूम के हिसाब से. उनका विचार था कि संगीत के ज़रिए भी विचार और मनोभावों को व्यक्त किया जा सकता है. उनका यह भी मानना था कि संगीत शुद्ध मनोरंजन भर नहीं है बल्कि यह कहीं गहरा एहसास है."

इसी के साथ ऑथर ये भी बताती हैं कि संगीत को कलात्मक प्रारूप का दर्जा दिलाने में बीथोवन की भूमिका अहम रही. हालांकि इसी दौर में उनकी पहचान ग़ुस्सैल, स्वार्थी, आत्ममुग्ध, लोगों से मिलने जुलने में दिलचस्पी नहीं रखने वाले, ज़िद्दी, रोमांटिक तौर पर हताश, कुंठित, कंजूस, अपने स्वास्थ्य के प्रति ज़्यादा चिंता करने वाले और शराब के नशे में डूबे रहने वाले संगीतकार की भी बनती गई.

"यह बीथोवन से जुड़े रोमांटिक मिथकों का हिस्सा है. लेकिन हमलोग उस कलाकार की छवि को पसंद करते हैं जो अपने आंतरिक दुष्टताओं और शारीरिक बीमारियों से पीड़ित रहा."

उनकी पहचान उस दिग्गज कलाकार के तौर पर ही बनी जिन्होंने अपना पूरा जीवन कला को समर्पित कर दिया, जिनमें हमारी कल्पना से परे जाकर संगीत रचने की क्षमता थी और यही बात उन्हें अलौकिक बनाती है.

अब फिर से साल 1814 में लौटते हैं, आपको बता दें कि इसी साल बीथोवन ने देश भक्ति कम्पोजीशन की भी शुरुआत की थी. उस कम्पोजीशन को उन्होंने “Wellingtons Sieg, oder Die Schlacht bei Vittoria.” के नाम से रिलीज़ किया था. जिसे “Wellington’s Victory, or the Battle at Vittoria.” नाम से ट्रांसलेट किया गया था. 

कई लोगों के मन में बीथोवन के हेल्थ को लेकर भी कई सारे सवाल रहते हैं? उन सवालों का जवाब देते हुए ऑथर कहती हैं कि “वैसे तो दुनिया बीथोवन की पर्सनालिटी को मज़बूत समझने लगी थी. उनकी छवि ही एक ठेठ संगीतकार की बन चुकी थी. जो अपने संगीत की टीस से किसी को भी घायल कर सकता था. लेकिन अगर बीथोवन की लाइफ को बारीक नज़रों से देखा जाए, तो ये समझ में आता है कि उन्हें हमेशा ही खराब हेल्थ से दो-दो हाँथ करना पड़ा था. 

कई बार कठिन उपचार के दौर का सामना भी किया. हालाँकि बीथोवन किन स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे?

ये एक मौंजू सवाल भी रहा है और इसका पता लगाने की कोशिश आधुनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी की है?

कुछ सवालों का जवाब ढूंढना बहुत ज़रूरी था कि उनकी बीमारियों का उनके बहरेपन से क्या संबंध था?इस पर भी खोजबीन हुई है. इतना ही नहीं उनकी बीमारियों ने उनकी शख़्सियत और संगीत की दुनिया पर कैसा असर डाला, इसकी भी विशेषज्ञों ने पड़ताल की है.

कई रिसर्च में ये भी बताया गया है कि महान संगीतकार बीथोवन आंत और पेट की समस्या से परेशान रहा करते थे. 

उनकी आंतों में सूजन थी, पाचन तंत्र ठीक नहीं था, तेज़ दस्त, पोषक तत्वों को पचाने में मुश्किल, साथ ही साथ चौकाने वाली बात ये भी है कि बीथोवन गंभीर डिप्रेशन के शिकार भी थे. उन्हें चिंता के साथ न्यूरो सिस्टम में भी गड़बड़ी थी.

बीथोवन की लाइफ के इस एंगल को भी जानना ज़रूरी है
1818 के दौर को जो भी याद करता है, उसे याद आता है कि उस दौर में बीथोवेन की प्रसिद्धि और फैल गई थी.  

लंदन की रॉयल फिलहारमोनिक सोसायटी ने उन्हें आमंत्रित किया था. सोसाइटी उनसे मिलना चाहती थी. साथ ही साथ उन्हें पियानो भी गिफ्ट में देना चाहती थी. 

बीथोवन को समझने वाले कई जानकारों ने कहा है कि “बीथोवन ने किसी आम सी दुनिया में जन्म नहीं लिया था. जब उनका जन्म हुआ था तो सामाज में शान्ति का माहौल नहीं था. 

उन्होंने जिस दुनिया में जन्म लिया था वो उथल-पुथल से भरी थी, समाज संक्रमण से गुजर रहा था. युद्ध, क्रांति, प्रतिक्रांति से गुजरते हुए बीथोवन ने अपने संगीत को आकार दिया.”

उन्होंने उस दौर में ऐसे संगीत की कल्पना की थी, जिसका तोड़ आने वाले 500 सालों में भी नहीं निकाला जा सकता है. 

अब आप समझ सकते हैं कि बीथोवन किस तरह के जीनियस हुआ करते रहे होंगे. 

बीथोवन को लेकर कई लोगों के मन में सवाल रहता है कि आखिर वो बहरे कैसे हुए होंगे? 

इसको लेकर ऑथर इतना ही कहना चाहती हैं कि “ऐसा मज़ाक किसी भी क़ाबिल इंसान के साथ तो क्या किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए?

जिंदगी ने मानो उनके साथ क्रूर मजाक किया था. 1796-97में वो गंभीर रूप से बीमार हो गए, उन्हें मेनिजिाइटिस हो गया जिसने उनके सुनने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित कर डाला.

उस वक्त बीथोवन मात्र 28 वर्ष के थे और अपने कैरियर की उंचाइयों को छू रहे थे. 

जब वो अपने कैरियर के पीक में पहुँच ही रहे थे, तभी उनके सुनने की शक्ति कमजोर पड़ने लगी थी. 

इस बारे में कई जर्नल्स ये भी अनुमान लगाते हैं कि हो सकता है कि बीथोवन के बहरेपन का संबंध उनकी पाचन संबंधी समस्याओं से रहा हो, क्योंकि दोनों समस्याओं की शुरुआत एकसाथ हुई थी.

इसी के साथ आपको बता दें कि पूरी लाइफ बीथोवन को बुखार और सर दर्द की शिकायत भी लगातार बनी रहती थी. 

मैरीलैंड स्कूल ऑफ़ मेडिसीन यूनिवर्सिटी के डॉ. फ़िलिप मैकाविएक के मुताबिक़ जन्मजात संक्रामक रोग सिफ़लिस के साइड इफ़ेक्ट के चलते भी बीथोवन के सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.

सिफ़लिस बीमारी अमेरिकी महादेश से यूरोप पहुंची थी और यूरोप में हज़ारों लोगों को इसने अपनी चपेट में ले लिया था. 

इस बीमारी को लेकर यूरोप में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई थी और बड़ी आबादी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई थीं.

जैसा कि हम लोगों ने डिस्कस किया है कि साल 1797 से लेकर 1798 ही वो दौर था, जब बीथोवन को सुनने में दिक्कत की शुरुआत हो चुकी थी. इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें 1802 तक में वियना छोड़ने के लिए भी कह दिया था.

अब बात बीथोवन की गेम ऑफ़ स्पिरिट की भी होगी
आपको बता दें कि ऐसा माना जाता है कि बीथोवन को निज़ी ज़िन्दगी में भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. कई लोग ऐसा भी आरोप लगाते रहे हैं कि बीथोवन धनी व कुलीन लोगों की पत्नियों व पुत्रियों के प्रेम में पड़ पाजे थे. 

और इसी वजह से उन्हें कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा था. यहीं से उन्हें डिप्रेशन नामक मानसिक बीमारी भी लग गई थी. 

अवसाद के ऐसे ही एक दौरे के दौरान उन्होंने लिखा- “कला, और सिर्फ कला ही है, जिसकी वजह से मैं ज़िन्दा हूँ, अगर कला और मेरे अंदर स्किल नहीं होती तो मैं भी इस दुनिया में नहीं रह पाता. 

इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा था कि इंसान को अपने समय और ज़िन्दगी का ज्यादातर हिस्सा अपने अंदर छुपी कला को निखारने में लगाना चाहिए. यही एक ऐसी चीज़ है, जिसे आपसे कोई नहीं छीन सकता है. 

इसी के साथ आगे बोलते हुए बीथोवन ने लिखा था कि “ऐसा लगता है मेरे लिए इस दुनिया को तब तक छोड़ना मुश्किल होगा जब तक कि जो कुछ मेरे अंदर पनप रहा है उसे संसार के समक्ष अभिव्यक्त न कर दूं..” और उसी अभिव्यक्ति की शक्ति को देखने के लिए मुझे लगातार सीखते रहना होगा. अगर मैंने सीखना बंद कर दिया तो मुझे मेरे दिमाग के अंदर बैठी डिप्रेशन नामक बीमारी खा जाएगी. 

बीथोवन की इस बात से आज के दौर के हम जैसे लोग भी बहुत कुछ सीख सकते हैं. हम सीख सकते हैं कि लाइफ की बड़ी-बड़ी दिक्कतों को भी खुद के ऊपर काम करके खत्म किया जा सकता है. और इसी के साथ हम ये भी सीख सकते हैं कि डिप्रेशन जैसी चीज़ें जीनियस लोगों को भी हो जाती हैं. इसलिए उनसे हार कर ज़िन्दगी से निराश नहीं होना चाहिए. 

जानकार बताते हैं कि बीथोवन ने डिप्रेशन से लड़ते हुए ही इरोइका की रचना की शुरुआत कर दी थी. आपको बता दें कि अवसाद से उबरने के बाद बीथोवन ने खुद को नये संगीत के सृजन में खुद को झोंक डाला.

इसी दरम्यान 1802में उन्होंने अपनी महान कृति इरोइका की रचना की थी.

बीथोवन के जीवन और संगीत के पश्चिमी संगीत के विकास में भी उनकी तीसरी सिंफनी इरोइका एक निर्णायक मोड़ की तरह सामने आता है.

ऑथर बताते हुए कहती हैं कि बीथोवन के आर्केस्ट्रा ने ऐसी धुनों को सामने लाना शुरू किया जो इससे पहले कभी सुनी नहीं गईं थी. इसने वियना के लोगों को चकित कर डाला.

डिप्रेशन के दौर में बीथोवन ने लिखा है, "मुझे समाज से कहीं दूर रहना चाहिए. अगर मैं लोगों के बीच जाता हूं तो मुझे भयानक पीड़ा महसूस होती है, लोग मेरी स्थिति को नोटिस करने लग जाते हैं." इससे आप समझ सकते हैं कि बीथोवन किस तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे थे?

ये कारवाँ “ग्रैंड फिनाले” में पहुँच चुका है
बीथोवन के बारे में लिखने वाले लोग बताते हैं कि “1826 आते-आते बीथोवन काफी अन हेल्दी हो चुके थे. उनकी सेहत में बुरी तरह से गिरावट देखी जा सकती थी.” 

कई लोग ऐसा भी कहते हैं कि मौत को अपने सामने देखकर भी वो जीनियस हंसते हुए अपना काम कर रहा था. उनका शरीर साथ नहीं दे रहा था, लेकिन उन्होंने म्युज़िक के साथ अपने रिश्ते को कमज़ोर नहीं होने दिया था. 

उन्हें जानने वाले लोगों ने तो यहाँ तक कहा है कि अगर बीथोवन के पास कुछ और समय और अच्छी सेहत होती. तो वो म्युज़िक की मदद से भगवान को भी स्टेज में बुला सकते थे. मतलब साफ़ है कि बीथोवन की टीस से भरे संगीत ने जो ज़ादू पैदा कर दिया है. उसका 10 परसेंट भी आने वाले समय में नहीं पैदा होने वाला है. 

वैसे तो 1822 के बाद से ही उनकी सेहत खराब होने लगी थी. लेकिन फिर भी उन्होंने 1822 से 1826 तक 5 बेस्ट कम्पोजीशन तैयार कर दिए थे. उन्हीं कम्पोजीशन में से एक “String Quartet, op.130” भी था. 

संगीत को लेकर बीथोवन कहा करते थे कि ये विद्रोह की आवाज़ है, जिसे संगीत के रूप में सजाया गया है. इस संगीत को किसी को खुश करने के लिए नहीं बनाया गया है. बल्कि दुनिया को असलियत दिखाने के लिए तैयार किया गया है. इसे मनोरंजन का साधन मत समझिए, ये तो आत्मा को जगाने का काम करेगा. 

इस बारे में ऑथर कहती हैं कि “बीथोवन के संगीत में क्रांति की जड़ें संगीत में नहीं बल्कि समाज के बाहर समाज व इतिहास में हैं. बीथोवन अपने समय की पैदाइश थे और यह समय फ्रांसीसी क्रांति का समय था. संगीत में बीथीवोन द्वारा की गयी क्रांति असली जीवन में फ्रांसीसी कांति की अभिव्यक्ति थी. उन्होंने अपनी सभी महान रचना का सृजन क्रांति के दौरान किया था, इसलिए उनसे बड़ा क्रांतिकारी संगीतकार को इस दुनिया ने ना ही पहले देखा था और ना ही उनके जाने के बाद देख पाई है.” 

आगे बोलते हुए ऑथर कहती हैं कि “आप बीथोवन के बारे में जितना जानते जाएंगे, उतना ही कम लगने लगेगा, इसका कारण यही है कि बीथोवन कोई आम इंसान तो कत्तई नहीं थे. इसका मतलब ये नहीं है कि वो आम इंसान की तरह नज़र नहीं आते थे. बल्कि वो बिल्कुल आम से ही दिखते थे. लेकिन उनकी आत्मा दिव्य थी. उनके अंदर लोगों को लेकर एक अजीब सी पीड़ा थी. जिसे वो अपने संगीत के माध्यम से समाज के सामने रखा करते थे.” 

जानकार मानते हैं कि ये पीड़ा शायद उनके संघर्षों और हताशा की वजह से आई थी. एक समय उन्हें शादी ना कर पाने की हताशा भी थी. लेकिन बाद में अब कुछ नहीं सुन पाने की हताशा भी हो गई. लेकिन संगीत कंपोज़ करने का काम उन्होंने जारी रखा. इसी दौर में उन्होंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ, सशक्त अभिव्यक्ति वाला प्रयोगधर्मी संगीत रचा.

उन्होंने एक ऐसे संगीत से दुनिया को नवाज़ा था, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. बीथोवन ऐसा मानते थे कि संगीत की ज़रूरत इस समाज को बहुत ज्यादा है. और इसी संगीत में इतनी ताकत है, जो कि उन्हें ज़िन्दा रख सकती है. इसलिए भी उन्होंने बीमार होने के बाद भी लगातार काम करने को प्राथमिकता दी थी. 

भले ही आज लोग ये कहें कि बीथोवन से अच्छा पियानों कोई नहीं बजा सकता, या फिर बीथोवन की सबसे बड़ी ताकत ही उनका पियानो था. लेकिन सच कुछ और ही है, सच ये बताता है कि बीथोवन के पास कमाल का दिमाग था. और यही दिमाग उनकी सबसे बड़ी शक्ति भी था. क्योंकि "यह ध्यान रखना होगा कि संगीतकार अपनी कल्पनाओं पर निर्भर होते हैं. वे अपने दिमाग़ की आवाज़ सुनते हैं और बीथोवन तो बचपन से ही संगीत की कल्पना कर रहे थे और बाद में उस संगीत को अपने पियानो की मदद से दुनिया को सुना भी रहे थे."

इसी के साथ हमें ये भी समझना चाहिए कि बीथोवन जो संगीत बना रहे थे उसे ही सुनने में सक्षम नहीं थे. ऐसी मुश्किलों ने बीथोवन की कला को निखारा ही. वे अपने संगीत में नयी ऊर्जा और शारीरिक हाव भाव को शामिल करने लगे, जो पहले कभी नहीं किया गया था.

बीथोवन उम्मीद से भरे हुए संगीतकार थे, यही वजह है कि उन्होंने पने सबसे मुश्किल पलों के दौरान बीथोवन ने 'ओड टू जॉय' का संगीत रचा था. 

खैर, फिर 27 मार्च, 1827 की तारीख़ भी आई, इस तारीख़ को कोई संगीत प्रेमी नहीं भुला सकता है. क्योंकि बीथोवन का निधन 27 मार्च, 1827 को हुआ था. उस वक़्त के मशहूर फ़िज़िशियन जोहानेस वेगनर ने उनकी ऑटोप्सी की. इस जाँच में उन्होंने बीथोवन के पेट में सूजन और लीवर को क्षतिग्रस्त पाया था. ऐसा कहा जाता है कि बीथोवन लीवर सिरोसिस की समस्या से भी जूझ रहे थे. 

बीथोवन एक ज़िन्दादिल और उम्मीद से भरे हुए जीनियस संगीतकार थे. जिन्होंने इतिहास को बदलने और अपने नाम के इतिहास को बनाने का बाखूबी काम किया है. ऐसे संगीतकार के सामने दुनिया हमेशा नतमस्तक होती रहेगी.

कुल मिलाकर
'ल्यूडविग वॉन बीथोवन' जिनका संगीत की दुनिया में नाम ही काफी है. इनके काम को सभी संगीतकार नज़ीर मानते हैं. संगीत प्रेमियों का मानना है कि बीथोवन बन जाना किसी के बस की बात नहीं है. और बीथोवन को मानने वालों को उनके जैसा बनने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए. क्योंकि बीथोवन खुद ट्रेंड सेटर बनने में भरोसा रखते थे. उनका मानना था कि आपके अंदर कुछ अलग होना चाहिए. तभी दुनिया आपकी सफलता को सफलता मानेगी. 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Beethoven By Laura Tunbridge 

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