Why Don't We Learn From History

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Why Don't We Learn From History
B. H. Liddell Hart
किस तरह से इतिहास की हेल्प से हम अपने वर्तमान और फ्यूचर को बेटर कर सकते हैं।
दो लफ्जों में 
आखिर हम इतिहास से कुछ क्यों नहीं सीखते? 1944 में आई ये बुक हमें इतिहास की इम्पोर्टेन्स के बारे में बताती है। ये बुक सबसे पहले वर्ल्ड वॉर 2 के एंड में पब्लिश की गई थी। इस बुक में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जोकि आज के टाइम में भी हमारे लिए हेल्पफुल हैं। ये बुक किसके लिए है
- ये बुक फ्रस्ट्रेटेड हिस्टोरियंस के लिए है। 
- ये बुक उन लोगों के लिए भी है जो पास्ट में हुए मिलिट्री हमलों से कुछ लेसन लेना चाहते हैं। 
- ये बुक उन लोगों के लिए भी है जो कि सोसाइटी और उसके पास्ट के बीच मे रिलेशन फाइंड करना चाहते हैं। 
लेखक के बारे में 
इस किताब के लेखक B. H. Liddell Hart ब्रिटिश सोल्जर और इतिहासकार थे। उन्होंने इतिहास से रिलेटेड बहुत सी किताबें लिखी हैं जैसे कि scipio africanus: Greater than Napolean और द रेवोल्यूशन इन वारफेयर। इस बुक में मेरे लिए क्या है? 
आज से लगभग 2000 साल पहले ग्रीक इतिहासकार पॉलीबियस ने कहा था कि अगर आज की सोसाइटी में व्यक्ति को किसी चीज का सॉल्यूशन फाइंड करना है तो जरूरी है कि वो पास्ट में हुई चीजों से सीख ले। परन्तु आज भी लोग इतिहास से लेसन नहीं ले रहे हैं बल्कि उसको इग्नोर कर रहे हैं। आखिर हम ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए जरूरी है कि पहले हम अपने प्रेजेंट और पास्ट को कनेक्ट करें और अभी की सिचुएशन और पहले की सिचुएशन को कम्पेयर करें। इस बुक हम जानेंगे कि किस तरह से हम इतिहास से सीख ले सकते हैं। लेखक ने इतिहास में मिलिट्री एक्शन का एग्जमापल लेकर हमें कुछ लर्निंग प्रोवाइड करने की कोशिश की है। उन्होंने हमें बताने कि कोशिश की है कि किस तरह से हम इतिहास से चीजें सीख कर अपने वर्तमान और फ्यूचर को बेहतर कर सकते हैं। इस बुक में हम ये भी जान पाएंगे कि किस तरह से इतिहास के साथ लोग छेड़छाड़ कर देते हैं ताकि वो खुद को फ्यूचर जनरेशन के सामने अच्छा दिखा सकें। इस समरी में हम जानेंगे कि आखिर क्यों शांति को लेकर रोमन्स लोग गलत थे? किस तरह से बिहाइंड द सीन हुई चीजें इम्पोर्टेन्ट होती हैं? और वर्ल्ड वॉर 1 आखिर क्यों इतना ज्यादा खतरनाक हो गया था?
पढ़िएइतिहास के बारे में पढ़कर हम दुनिया के बारे में अपनी अंडरस्टैंडिंग को और ज्यादा बढ़ा सकते हैं।
अगर आपको इस दुनिया में कोई चेंज लाना है तो उसके लिए जरूरी है कि आप इतिहास से कुछ सीखें। बात करते हैं ओटो वोन बिस्मार्क की। 19वीं सदी के सबसे ज्यादा इम्पैक्टफुल राजनेता में इनका नाम शुमार है। उन्होंने बहुत कम समय में ऐसी उपलब्धियां हांसिल की जिनको हांसिल करना लगभग नामुमकिन था। उनकी शानदार डिप्लोमेसी और बढ़िया मिलिट्री एक्शन ने एक बड़ा जर्मन एम्पायर खड़ा किया था। अब आपके दिमाग में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि आखिर किस तरह से बिस्मार्क के अंदर इतनी शानदार क्वालिटी डेवलप हुईं। दरअसल बिस्मार्क खुद ये बात कहते थे कि ये सभी क्वालिटी किसी जादू की तरह उनके अंदर नहीं आईं और न हीं ये सब जन्म से उनके पास थीं। उन्होंने इतिहास पढ़के वहां से नॉलेज लेकर ये सब क्वालिटी अपने अंदर डेवलप की थीं। उनका मानना था कि जो व्यक्ति अपने एक्सपीरिएंस से लर्न करने के बारे में सोचता है वो बेवकूफ होता है। जो लोग अपनी लाइफ में अच्छे लीडर बनते हैं वो इतिहास से सीख लेते हैं। तो हमें इतिहास क्यों पढ़नी चाहिए?  अगर आप इतिहास पढ़ते हैं तो आपको समझ आएगा कि इतिहास में जो भी इवेंट हुए हैं वो आखिर क्यों हुए? उनके पीछे क्या कारण रहा? जो बढ़िया इतिहासकार होगा वो सभी चीजों को जोड़कर किसी भी घटना का सही कारण जानने की कोशिश करेगा। इतिहास हालांकि सिर्फ पढ़ने के  लिए नही है। इतिहास से सीख लेकर आप अपनी डिसीजन मेकिंग स्किल को बेटर कर सकते हैं। इतिहास से आपको वो नॉलेज मिलती है जो आप को अपनी डेली लाइफ से भी नहीं मिल सकती। इतिहास पढ़कर आप पिछले हजारों सालों में हुए इवेंट से सीख ले सकते हैं। 

मिलिट्री इतिहास पढ़ना भी काफी इम्पोर्टेन्ट है। लोगों को सोसाइटी, इकोनॉमिकल चेंज के बारे में पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है लेकिन आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि इतिहास में जो भी बड़े इवेंट्स हुए है उनको आर्म्ड फ़ोर्स ने ही परफॉर्म किया है। जरा सोचिए कि इतिहास में जितनी भी लड़ाइयां हुई हैं अगर उनका रिजल्ट बदल जाता तो आज दुनिया कहाँ हो सकती थी। सोचिये अगर पाकिस्तान और भारत की जंग में पाकिस्तान जीत गया होता तो क्या होता? अकबर ने अगर महाराणा प्रताप को हरा दिया होता तो क्या होता? इन सवालों के बारे में सोचते वक्त जरूरी है कि आप अपनी सोच को बड़ा रखें। अगर आप किसी चीज के बारे में ज्यादा डीप जाने की कोशिश करेंगे तो आपको नुकसान हो सकता है। सभी लोग किसी न किसी चीज को लेकर थोड़े ज्यादा सेंसिटिव होते हैं चाहे वो इतिहास से ही क्यों न हो। इसलिए जब हम इतिहास के बारे में पढ़ते हैं तो जरुरी है कि हम एक स्टेप पीछे लें और साइंटिफिक अप्रोच अप्लाई करें। आइये जानते हैं कि ये कैसे करना है।

इतिहास पढ़ने वाले को कभी भी सच से मुहं नहीं मोड़ना चाहिए, चाहे वो कितना भी अनकम्फ़र्टेबल क्यों न हो। 1917 में ब्रिटिश फील्ड मार्शल डगलस हैग के पास वर्ल्ड वॉर 1 खत्म करने का मौका था। उनका मानना था कि अगर वो जर्मन फ़ोर्स पर पूरी कैपेसिटी के साथ अटैक करेंगे तो शायद वॉर रुक सकता था। लेकिन यहां पर एक प्रॉब्लम थी। पेपर पर भी डगलस का प्लान कुछ ज्यादा कन्विंस करने वाला नजर नहीं आ रहा था। इसलिए उन्होंने प्लान को सबके सामने रखा लेकिन वो सभी चीजें उन्होंने किसी को नहीं बताईं जिसकी वजह से उनका प्लान फेल हो सकता था। और जब उन्होंने उस प्लान को अप्लाई किया यानी की जर्मन फ़ोर्स पर अटैक किया तो वो पूरी तरह से फ्लॉप रहे। फ्लॉप होने के बावजूद उन्होंने यही रिपोर्ट दी कि प्लान सक्सेसफुल तरीके से चल रहा है। बात सामने तब आयी जब 4 लाख लोगों ने अपनी जान गवां दी। डगलस ने सच छुपाने की कोशिश की थी लेकिन ऐसी सिचुएशन में असली इतिहासकार वही होगा जो पूरी तरह से सिचुएशन के बारे में जानने की कोशिश करेगा। कई बार लोग सोचते हैं कि इतिहास आर्ट है या फिर साइंस। असल में ये दोनों का मिक्स है। किसी भी इवेंट को अन कवर करने के लिए साइंटिफिक अप्रोच की जरूरत होती है। ऐसे टाइम कभी भी इमोशन बीच में नहीं आना चाहिए। हालांकि इतिहास पढ़ते टाइम क्रिएटिविटी और अपने अंदर की नॉलेज का भी रोल होता है। इनका रोल जब आता है जब आप इतिहास में हुए किसी इवेंट को लेकर अपना डिसीजन बनाने की कोशिश करते हैं। उन प्रॉबलम्स को कंसीडर करिये जोकि डॉक्यूमेंट की हेल्प से गवर्नमेंट और मिलिट्री के द्वारा हमारे सामने पेश की जाती है। अगर इतिहास के नजरिये से देखा जाए तो ये किसी भी इवेंट के बारे में स्टडी करने का सबसे बड़ा सोर्स होता है। लेकिन जरूरी नहीं कि उसमें सिर्फ सच ही हो। एक अच्छा इतिहासकार वही है जो इतिहास से रिलेटेड डॉक्यूमेंट में मिस्टेक फाइंड कर सके। किसी भी डॉक्यूमेंट को किसने लिखा है, किस परिस्थिति में लिखा है, कब लिखा है इस सब के बारे में नॉलेज लेकर हम उसमें खामियां ढूंढ सकते हैं। 

मिलिट्री इतिहास आमतौर पर फरेब से भरी होती है। जनरल, राजनेता और कभी कभी तो बड़े बड़े इंस्टिट्यूट भी इतिहास से छेड़छाड़ कर देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं सच देखकर लोगों के सामने उनकी और उनके देश की वीकनेस न आ जाये। लेकिन जो अच्छा इतिहासकार होगा वो गुमराह नहीं होगा। फैक्ट्स को अवॉइड करना और अन कम्फ़र्टेबल इवेंट्स को इग्नोर करना एक अच्छे इतिहासकार की निशानी नहीं है। एक बढ़िया इतिहासकार वही है जो हिस्टोरिकल इवेंट्स को अच्छे से एनालाइज करे और जो चीजें उसको गलत लगें उसको लेकर सवाल भी खड़े करे। बिना रुके किसी भी इवेंट के पीछे के कारण को जानने की कोशिश करे।

इतिहास के कुछ क्रूशियल मोमेंट बिहाइंड द सीन हुए हैं।
बेलियल ब्रेट जिनको लार्ड एशेर के नाम भी जाना जाता है, वो ज्यादा इतिहास बुक्स में दिखाई नहीं देते और शायद उनका इंटेंशन भी यही था कि उनको ज्यादा फेम न मिले। उनका जन्म एक अच्छे परिवार में हुआ था। लेकिन उन्होंने अपनी पॉलिटिकल पहचान बनाने के लिए कभी भी अपने परिवार का नाम नहीं इस्तेमाल किया। उनके परिवार की अच्छी पहुंच को देखते हुए उनको बहुत बार अच्छी पोजीशन ऑफर की गई जैसे कि सेक्रेटरी, वाइसराय ऑफ इंडिया। लेकिन उन्होंने कभी भी हां नहीं बोला। उनको पीछे से काम करना पसन्द था यानी कि वो चाहते थे कि वो कुछ अच्छा काम भी करें और लोग ज्यादा उनके बारे में न जाने। उन्होंने सारी इम्पोर्टेन्ट पोजीशन ठुकरा दीं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पॉलिटिक्स में उनकी बात की कोई वैल्यू नहीं थी। लार्ड एशेर किंग एडवर्ड 7 और किंग जॉर्ज 5 के बहुत करीबी माने जाते थे। उनकी लो प्रोफाइल के बावजूद भी ब्रिटिश पॉलिटिक्स में उनकी अलग पहचान थी। अगर आप ऑफिसियल इतिहास बुक्स देखेंगे तो पाएंगे कि उनका पूरा फोकस बड़े बड़े इवेंट्स और क्लियर चीजों पर रहता है। इसी वजह से बेलियट जैसे इम्पोर्टेन्ट लोगों का नाम ज्यादा नजर नहीं आता। इन बुक्स के एकॉर्डिंग दुनिया को कुछ चुनिंदा लोग ही चलाते हैं और शायद इस वजह से ये बुक्स उन लोगों पर फोकस नहीं कर पाती जोकि बिहाइंड द सीन रहकर काम करते हैं। जब भी आप किसी देश की इतिहास पढेंगे तो बुक्स के अंदर सिर्फ उन डिसीजन  के बारे में लिखा होगा जोकि गवर्नमेंट के द्वारा पार्लियामेंट में लिए जाते हैं। लेकिन क्या सच में यही होता है। ये तो आपको भी पता है कि पार्लियामेंट में लिया गया डिसीजन उन घटनाओं का रिजल्ट होता है जोकि बाहर की दुनिया में चल रही होती हैं। 

बात करते हैं वर्ल्ड वॉर 2 की। वर्ल्ड वॉर 2 से कुछ समय पहले तक लंदन में समुद्री राजाओं और ब्रिटिश सरकार के बड़े बड़े राजनेताओं के बीच काफी मीटिंग हो रही थीं। उन्होंने समुद्र में जहाज चलाने वालों को पैसे तो प्रोवाइड किये लेकिन जहाजों की जांच सही तरह से नहीं हुई और अंत मे हुआ ये कि जब युद्ध हुआ तो उनको काफी नुकसान सहना पड़ा। हालांकि ऐसा नहीं है कि सारी बिहाइंड द सीन चीजें हमेशा गलत ही होती हैं। पर ये बात भी ठीक है कि अगर किसी इम्पोर्टेन्ट डिसीजन को कुछ इम्पोर्टेन्ट लोगों के ऊपर छोड़ दिया जाए तो डिसीजन आमतौर पर ठीक ही होते हैं। जब  1940 में चर्चिल प्रधानमंत्री बने तो उनकी छोटी कैबिनेट  ने स्ट्रैटेजी डेवलप करने में उनकी काफी हेल्प की। हालांकि सिर्फ कुछ लोगों के हांथ में सारी पावर देना भी खतरा बन सकता है। इस चीज के बारे में हम अभी जानेंगे।डिक्टेटरशिप रिपीटिंग पैटर्न की वजह से बनती है और बिगड़ती है। बात करते हैं जून 1812 की। नेपोलियन की आर्मी ईस्टर्न यूरोप में नदी के किनारे डेरा डाले हुए थी। वजह ये थी कि वो रूस के यूनाइटेड किंगडम के साथ बढ़ते करीबी रिश्ते से नाखुश थे। आर्मी को लगता था कि अगर वो मास्को पे कब्जा कर लेंगे तो शायद इससे कुछ हल निकलेगा। 

लेकिन शायद नेपोलियन को अंदाजा नहीं था कि वो एक बड़ी गलती कर रहे हैं। कुछ ही महीनों में ठंड बढ़ गयी और नेपोलियन और उनकी आर्मी को नुकसान सहना पड़ा। बहुत से आर्मी वालों ने सर्द मौसम की वजह से अपनी जान गवां दी। 130 साल बाद हिटलर ने भी यही गलती करी। 1941 में जब उन्होंने रूस पर हमला करने की कोशिश की तो उनको हार का सामना करना पड़ा। इन दोनों घटनाओं से हमें इतना तो पता चल ही गया कि अगर हम इतिहास से कुछ सीखेंगे नहीं तो हमें वही परिणाम दोबारा भुगतने पड़ सकते हैं। इतिहास के एकॉर्डिंग डिक्टेटर और कुछ गवर्नमेंट पावर में आने के लिए सेम पैटर्न को फॉलो करती हैं जोकि इतिहास में हो चुके हैं। पहले वो लोगों की प्रॉब्लम और उनकी फ्रस्ट्रेशन का पता लगाते हैं और फिर उसी को लेकर लोगों को मौजूदा सरकार के खिलाफ भड़काने का प्रयास करते हैं। वो उन चीजों को सॉल्यूशन लोगों के सामने रखकर उनका विश्वास जीतने की कोशिश करते हैं। और एंड में डिक्टेटर लोग, लोगों के मन में चीजें ठीक करने का भ्रम पैदा कर देते हैं और नेतृत्व अपने हांथ में ले लेते हैं। डिक्टेटरशिप का किसी भी जगह पर कब्जा करने का ये सिलसिला काफी सालों से चलता चला आ रहा है। 

लेकिन टाइम के साथ लोगों को इस बात का पता चल जाता है कि उनको झूठी होप दी गईं थीं। और जब लोगों को ये बात पूरी तरह से रियलाइज होती है तब डिक्टेटरशिप का अंत स्टार्ट हो जाता है। जब लोगों को लगता है कि उनका फायदा उठाया जा रहा है तो फिर वो उसके खिलाफ आवाज उठाने लगते हैं। 

बहुत सारी गवर्नमेंट इन सब चीजों को रोकने के लिए कभी कभी लोगों को उनकी चाह के अगेंस्ट आर्मी में भर्ती करने लगती हैं। लेकिन ये स्ट्रैटेजी भी फ्लॉप हो जाती है क्योंकि लोग किसी भी चीज के लिए पूरी तरह से समर्पित तभी होते हैं जब उनका मन होता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर क्यों कुछ आजाद देश शांति के टाइम में आर्मी भर्तियों पर फोकस करने लगते हैं? और आखिर ऑथर के एकॉर्डिंग ये चीज परेशान करने वाली क्यों है? कुछ राजनीति के जानकार लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि देश सबसे पहले अपनी सीमाओं को सुरक्षित करना चाहते हैं इसलिए ऐसा करते हैं। लेकिन देश की जनता से सर्विस की मांग करना भी उनकी फ्रीडम का उलंघन करना ही होता है। मिलिट्री में भर्तियां करना लिबर्टी यानी कि स्वतंत्रता इन्सयोर करने का कोई तरीका नहीं होता है। इससे हट के लोगों को उनकी पर्सनल फ्रीडम एन्जॉय करने का मौका देना चाहिए।

जब लोगों के मोरल फेल हो जाते हैं तो वॉर की सिचुएशन पैदा होती है लेकिन उसको अवॉइड किया जा सकता है।
क्या आपको पता है कि वर्ल्ड वॉर 1 का रीजन क्या था? कुछ लोगों का मानना है कि जब ऑस्ट्रिया में 1914 में आर्चड्यूक फर्डीनांड को सर्बियन नेशनलिस्ट ऑर्गेनाइजेशन ने मार दिया तो उस घटना ने वर्ल्ड वॉर को शुरू किया। हालांकि उस घटना ने वर्ल्ड वॉर के ओपनिंग के लिए प्लेटफार्म दिया लेकिन वॉर के पीछे असल रीजन कुछ और था। इस मर्डर से काफी टाइम पहले से ही वर्ल्ड वॉर 1 की रूप रेखा तैयार की जा रही थी। बहुत से इतिहासकार इस वॉर के पीछे इकोनॉमिक फैक्टर्स को मानते हैं। उनका मानना है कि इकॉनमी की वजह से कुछ देश एक साथ जुट गए और अपने दुश्मन देशों के खिलाफ लड़ाई शुरू की। हालांकि ये भी कोई ठोस रीजन नहीं है जिसकी वजह से वॉर स्टार्ट हुआ। कुछ लोगों का मानना है कि वॉर इसलिए शुरू हुआ क्योंकि उस टाइम यूरोप में जो लोग रूल करते थे उनकी नीतियों में खामी थी। बात करते हैं आर्चड्यूक के मर्डर की। उनकी मौत के बाद ये जरूरी नहीं था कि वॉर शुरू कर दिया जाए। लेकिन कुछ ऐसी शख्शियत थी जिन्होंने इसको हवा दी। ऑस्ट्रिया के लीडर्स नहीं चाहते थे कि उनको कमजोर समझा जाए इसलिए उन्होंने सर्विया के ऊपर हमला कर दिया। जर्मन को अपने साथ लेकर ऑस्ट्रिया ने सर्विया पर हमला किया। सर्बिआ पर हमला रूस को पसन्द नहीं आया। रूस को लगा कि ऑस्ट्रिया उनको कमजोर समझ रहा है और इसलिए ऑस्ट्रिया के इस हमले का जवाब रूस को देना पड़ा। जैसा जैसे वॉर बढ़ता गया और भी देश इसमें शामिल होने लगे। जर्मनी के मिलिट्री लीडर्स ने काफी समय से वॉर से रिलेटेड तैयारी करी थी और प्लान बनाये हुए थे, उनको तो अपना जौहर दिखाने का मौका मिल गया। जर्मनी काफी टाइम से रूस के खिलाफ अपने प्लान बना रहा था और यही मौका था उन सभी प्लान को एग्जीक्यूट करने का।

सिचुएशन को समझने की बजाए जर्मन जनरल ने सब तरफ से वॉर स्टार्ट कर दिया। ये एक मिलिट्री ब्लंडर था। धीरे धीरे ही सही पर वॉर बढ़ता गया। इंसानों की उनकी खुद की मानसिकता यानी कि थिंकिंग उनके डाउन फॉल का कारण बनी। हालांकि वर्ल्ड वॉर 1 बहुत पहले ही खत्म किया जा सकता था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राइवल गवर्नमेंट के पास ऐसे बहुत से मौके थे कि वो सामने वाली गवर्नमेंट के साथ मिलकर समझौता कर लें। बड़े बड़े लीडर्स सिर्फ एक ग्लोरियस विक्ट्री के लिए इस वॉर को लड़ रहे थे। अंत में किसी को कुछ नहीं मिला। हुआ बस इतना कि हजारों लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि क्या हम सब मिलकर किसी बड़े वॉर को रोक सकते हैं? आइये जानते हैं।

कुछ प्रिंसिपल्स को फॉलो करके वॉर को रोका जा सकता है। रोमन एम्पायर में हमेशा एक स्लोगन यूज़ किया जाता था और वो ये कि अगर आपको शांति चाहिए तो युद्ध के लिए तैयार रहना होगा। और इसलिए रोमन आर्मी हमेशा वॉर के लिए रेडी रहती थी। या कहें कि वो हमेशा वॉर में ही रहते थे। अभी तक हालांकि इंसानों की युद्ध रोकने के सारे तरीके फेल ही हुए हैं। जब भी किसी बड़े युद्ध का चांस बना है तो हम उसे रोकने में असफल रहे हैं। हालांकि टेक्नोलॉजी में काफी चेंज हुआ है। न्यूक्लियर वेपन आज दुनिया के हर देश के पास मौजूद हैं। इसलिए शायद आज उतने वॉर देखने को नहीं मिलते क्योंकि नुकसान होने का डर अब पहले से ज्यादा है। ऑथर के एकॉर्डिंग शांति इन्सयोर करने के बेस्ट तरीका ये है कि उसको समझा जाये नाकि वॉर के लिए प्रीपेयर रहें। फिलॉस्फर सुन तज़ु ने 500 BC में इतिहास का सर्वे किया था और ये जानने की कोशिश की थी कि वॉर से कैसे बचा जा सकता है। और उन्होंने अपने सर्वे में कुछ बेसिक प्रिंसिपल्स के बारे में पता लगाया। आइये उनके सर्वे की एक समरी देखते हैं। उनके एकॉर्डिंग किसी भी देश को अपनी इंटरनल स्ट्रेंथ और स्टेबिलिटी को सबसे पहले स्ट्रांग करना चाहिए। देश के लीडर्स को एक शांति भरा माहौल बना के रखना चाहिए। अगर किन्ही दो देश के बीच दिक्कत चल रही है तो मजबूत देश को अपने अपोनेंट को सरेंडर करने का पूरा मौका देना चाहिए। हो सकता है कि सुन तज़ु की एडवाइस वॉर को रोकने में काम न आये लेकिन ये पक्का है कि इससे नुकसान कम होगा। अगर कोई देश इंटरनल स्टेबिलिटी स्ट्रांग करता है तो इस बात के चांस काफी कम हैं कि वो देश किसी फालतू के जंग में इन्वॉल्व हो। इंटरनेशनल अग्रीमेंट तभी सबसे बेस्ट होते हैं जब सभी पार्टियां अपने स्ट्रेंथ पर नेगोसिएशन करती हैं। कोई भी देश तभी अच्छे से कॉपरेट करता है जब वो सक्सेसफुल और सिक्योर फील करता है। और अगर कोई स्ट्रांग देश किसी दूसरे देश पर प्रेसर डालने की कोशिश करता है तो यही आगे चलके वॉर का कारण बन सकता है। इस सब के बावजूद भी अगर कॉन्फ्लिक्ट हो जाये तो क्या करना चाहिए? कुछ लोगों का मानना है कि बैटल फील्ड में मॉडर्न चीजों का कोई यूज़ नहीं लेकिन इतिहास कुछ और ही कहती है। हजारों साल पहले तक वॉर बहुत दिन तक चला करते थे और उन लोगों पर कभी हमला नहीं किया जाता था जोकि आर्मी का पार्ट नहीं होते थे। आज के टाइम में ऐसा कुछ नहीं है। बहुत से लोगों का मानना है कि अगर सब लोग एक ही देश और एक ही रूल को फॉलो करें तो शायद वॉर कभी न हो। लेकिन ऐसा करने से डाइवर्सिटी खत्म हो जाएगी और प्रोग्रेस रुक जाएगी। हालांकि अगर सभी देश एक ही चीज पर कॉपरेट करें तो शायद वॉर को टाला जा सकता है।

कुल मिलाकर
इतिहास पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के पर्सनल एक्सपीरिएंस से काफी कुछ सीख सकते हैं। पास्ट में हुए मिस्टेक्स से हम फ्यूचर को बेटर करने के बारे में लर्न कर सकते हैं। हालांकि इतिहास को भी लोगों ने अपने हिसाब से हमारे सामने पेश किया है इसलिए जरूरी है कि हम पहले सभी चीजों को सही से एनालाइज करें और फिर किसी चीज को लेकर अपना डिसीजन लें। इतिहास के लेसन से हम वॉर और देशों के बीच हो रहे कॉन्फ्लिक्ट को भी रोक सकते हैं।

 

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