Life After Google

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Life After Google

George Gilder
The Fall of Big Data and the Rise of the Blockchain Economy

दो लफ्ज़ों में 


साल 2018 में रिलीज़ हुई किताब ‘Life After Google’बताती है कि दुनिया में ऑनलाइन डेटा और सेक्योरटी का फ्यूचर पूरी तरह से बदलने वाला है. एक कांसेप्ट है जिसका नाम “cryptocosm” इसे blockchain architecture भी कहा जाता है. इसी के इर्द गिर्द डेटा का फ्यूचर होने वाला है. मतलब साफ़ है कि दुनियाभर में डेटा और सेक्योरटी का असली मतलब ही पूरी तरह से बदल जाएगा. आने वाले समय में इंटरनेट की importance  और ज्यादा बढ़ने वाली है. जिसकी वजह से “cryptocosm” ही ऑनलाइन फ्यूचर डीसाइड करेगी. क्या आप इस बदलाव के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं? अगर आपको इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है तो ये किताब बताएगी कि गूगल के आगे की दुनिया कैसी होने वाली है?

  ये किताब किसके लिए है? 
- सभी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए 
- ऐसा कोई भी जिसे डेटा सेक्योरिटी में इंटरेस्ट हो 
- ऐसा कोई भी जिसे नई चीज़ें जानने में इंटरेस्ट हो 

लेखक के बारे में 
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन ‘George Gilder’ ने किया है. ये लेखक होने के साथ-साथ इकॉनोमिक और टेक्नोलॉजिकल थिंकर हैं. इन्हें इस फील्ड में 40 साल से भी ज्यादा का एक्सपीरियंस हो चुका है. इसी के साथ इन्होने 19 किताबों का लेखन भी किया है.

चलिए गूगल सिस्टम की दुनिया की बारीकी को समझने की कोशिश करते हैं
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गूगल की दुनिया से कोई बच नहीं सकता है. इसे लॉन्च हुए 20 सालों का समय हो चुका है. तब से इसनें ऑनलाइन इंट्रेकशन की दुनिया को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. लेकिन अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये अपनी पॉवर को फ्यूचर में भी बचाकर रख पाएगा.

आपको बता दें कि 27 सितंबर 1998 को गूगल की खोज आधिकारिक तौर पर Larry Pageऔर Sergey Brinद्वारा की गई थी. इसकी शुरुआत वास्तव में एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तौर पर हुई थी. ... तब ये दोनों स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स थे. इन स्टूडेंट्स ने लिखा था 'हमने अपने सिस्टम का नाम Google रखा है.. क्योंकि ये 10100 या GOOGLEके लिए कॉमन स्पेलिंग है और ये हमारे लार्ज स्केल सर्च इंजन बनाने के लिए लक्ष्य पर फिट बैठता है.

लेकिन अब कई लोगों के मन में सवाल आता है कि आखिर कभी ना कभी तो गूगल के क्रेज़ में कमी आएगी. और जब इसके क्रेज़ में कमी आएगी तो आखिर कौन सी चीज़ गूगल को रिप्लेस करेगी? अगर आपको भी इस सवाल का जवाब चाहिए, तो इस बुक को आपके लिए ही लिखा गया है. 

तो चलिए शुरू करते हैं!

आज की मार्केट में कई इनफार्मेशन जायंट्स बैठे हुए हैं, लेकिन गूगल की पोजीशन को कोई भी टच नहीं कर पा रहा है. गूगल की पहुँच आम इंसान से लेकर सरकारी तन्त्र तक सभी के कम्प्यूटर में है. 

अगर हम गूगल के विज़न की बात करें तो इसका विज़न डेटा की दुनिया के इर्द गिर्द घूमता है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गूगल नॉलेज की फील्ड में काम कर रही है. लेकिन ये ट्रेडिशनल मेथड का यूज़ नहीं कर रही है. शायद यही कारण है कि गूगल इतना ज्यादा सफल क्यों है? 

गूगल ने अपने आईडियाज़ पर प्रॉपर तरीके से काम किया है, हमेशा से उसका फोकस जानकारी को इकट्ठा करने में रहा है. इसके बाद गूगल उन जानकारियों को लोगों तक फिल्टर करके पहुंचाने का काम करता है. 

ये काम ना ही सुनने में आसान लगता है और ना ही करने आसान रहा है. इसके लिए गूगल को एक बड़ा डेटा बेस तैयार करना पड़ा था. 

दुनिया में सबसे बड़ा डेटा कलेक्शन के बाद, गूगल के विज़न के सामने एक चुनौती थी. वो ये थी आखिर वो आर.ओ.आई कैसे निकालेगा? इसके लिए गूगल ने एडवरटाईजिंग का सहारा लिया. आपको पता होना चाहिए कि गूगल 95 परसेंट ऑफ़ इन्कम एडवरटाइजिंग से कमाता है. 

भले ही आप डायरेक्ट गूगल को कोई पैसा नहीं देते हैं. लेकिन आप गूगल को अपना समय और अटेंशन तो देते हैं. आज के दौर में कम्पनियों के लिए पूरा खेल ही आपके समय और अटेंशन का है. गूगल भी आपके समय और अटेंशन की मदद से खुद के लिए पैसे कमाता है. 

आपको बता दें कि इस सभी डेटा और विज्ञापन के लिए आवश्यक ऑनलाइन आर्किटेक्चर को सुविधाजनक बनाने के लिए, Google ने द डेल्स, ओरेगॉन शहर के पास अपना विशाल डेटा सेंटर बनाया है.

गूगल के विशाल कम्प्यूटर सर्वर 3.5 बिलियन सर्चेस को हर दिन सम्भालने का काम करते हैं. इसका मतलब हर साल 1.5 ट्रिलियन से ज्यादा सर्च इसके सर्वर में किए जाते हैं. 

गूगल के नाम के पीछे भी एक कहानी है, जानकारी के मुताबिक, 1920 में गणितज्ञ Edward Kasner ने अपने भांजे Milton Sirotta को एक ऐसी संख्या के लिए नाम चुनने में मदद करने के लिए कहा, जिसमें 100 शून्य मौजूद हों.

ऐसे में Sirotta ने उन्हें ‘googo’ का नाम सुझाया, Kasner ने इस शब्द का इस्तेमाल करने का फैसला किया. यह शब्द साल 1940 में शब्दकोश में आ गया। Kasner ने उस साल मैथमेटिक्स एंड द इमेजिनेशन नाम से एक किताब लिखी और उस किताब में उन्होंने 100 जीरो के साथ नंबर के लिए googol शब्द का इस्तेमाल किया. 

1998 में जब कंपनी की शुरुआत की गई, तो को-फाउंडर लेरी पेज और Sergei Brin ने ‘गूगल’ नाम तय किया.

बिग डेटा और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का खेल
ऑथर कहते हैं कि साल 2017 की बात है, कैलिफोर्निया में एक सीक्रेट गैदरिंग रखी गई थी. उस गैदरिंग में इनफार्मेशन एज़ की बड़ी-बड़ी हस्तियों ने शिरकत की थी. उन हस्तियों में गूगल के को फाउंडर लैरी पेज का नाम भी शामिल था. 

उन सभी लोगों के मिलने का मकसद केवल आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के बारे में डिस्कशन करना ही था. उन्हें इस बात की आशंका थी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ने से कई तरह के रिस्क फैक्टर्स भी बढ़ने लगेंगे. 

लेकिन दिलचस्प बात ये थी कि उस मीटिंग में मौज़ूद ज्यादातर लोग सिलिकॉन वैली में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस को डेवलप करने में मदद कर रहे थे. अब ऐसे लोगों से ये उम्मीद कैसे की जा सकती थी? कि ये लोग लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों के बारे में बताएंगे? 

‘Silicon Valley pioneers’ इस बात पर विश्वास रखते थे कि यही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फ्यूचर की दिशा को तय करने वाली होगी. अगर वो इस टेकनोलॉजी को डेवलप नहीं करेंगे तो फ्यूचर में कोई और इस तकनीक को डेवलप करेगा. इसलिए अच्छा यही होगा कि इसका डेवलपमेंट भी चलता रहे और इससे जुड़े खतरों के बारे में भी लोगों को बताया जाए. 

लेकीन इसी बीच उन लोगों के मन में ये भी सवाल था कि क्या ये खतरे सही में हैं? तो चलिए समझने की कोशिश करते हैं कि गूगल को रिप्लेस करने वाले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से खतरा है भी या नहीं? 

सबसे पहले हमें समझना चाहिए कि सिलीकॉन वैली में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को डेवलप करने वाले लोग इसके खतरों को सही मानते हैं. 

इसलिए अब हम इसे एक अलग एंगल से देखने की कोशिश करते हैं. ऐसा माना जा रहा है कि AI  एक कम्प्लीट सिस्टम होगा. अगर ये कम्प्लीट सिस्टम होगा, तो इसके पास पूरी दुनिया का डेटा बेस मौजूद होगा. जैसा कि गूगल में हम लोगों ने देखा है कि गूगल डेटा की मदद से ही खुद को अपडेट रखता है. और गूगल की मदद खुद इंसान अपने इनपुट से करता रहा है. मतलब साफ़ है कि गूगल को ह्यूमन पॉवर चला रही है. मतलब साफ़ है कि गूगल से बड़ी human intelligence रही है. 

कुछ इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ भी होने वाला है. कोई भी तकनीक human intelligence को मात नहीं दे सकती है. क्योंकि तकनीक को बनाने वाला दिमाग इंसान के पास ही है. इसलिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से होने वाले खतरों का केवल हाईप बना दिया गया है.

प्रोग्रेस की राह को अपनाने के लिए नई थिंकिंग को अपनाना ज़रूरी है
अब जब नई थिंकिंग की बात होगी तो नई करेंसी की भी बात होनी चाहिए, यानि cryptocurrency bitcoin के बारे में भी चर्चा होना ज़रूरी है. Guatemalan Universidad Francisco Marroquín पहली यूनिवर्सिटी बनी थी, जिसने साल 2013 में क्रिप्टो से पेमेंट को लीगल कर दिया था. 

इस मूव से पता चलता है कि एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स को भी प्रोग्रेस की तरफ बढ़ने की शुरुआत कर देनी चाहिए. इसकी शुरुआत बिना थिंकिंग में बदलाव लाए नहीं की जा सकती है. 

सबसे पहले हम समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्रिप्टो करेंसी क्या है? 

आपको बता दें कि क्रिप्टो करेंसी किसी मुद्रा का एक डिजिटल रूप है. यह किसी सिक्के या नोट की तरह ठोस रूप में आपकी जेब में नहीं होता है. 

यह पूरी तरह से ऑनलाइन होती है और व्यापार के रूप में बिना किसी नियमों के इसके ज़रिए व्यापार होता है.

इसी के साथ आपको बता दें कि इसको कोई सरकार या कोई अथॉरिटी जारी नहीं करती है. 2018 में आरबीआई ने क्रिप्टो करेंसी के लेन-देन का समर्थन करने को लेकर बैंकों और वित्तीय संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया था. लेकिन मार्च 2020 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आरबीआई के प्रतिबंध के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि सरकार को 'कोई निर्णय लेते हुए इस मामले पर क़ानून बनाना चाहिए.'

ग्लोबल बिटकॉइन एक्सचेंज फ़र्म ज़ेबपे के चीफ़ मार्केटिंग ऑफ़िसर विक्रम रंगाला कहते हैं, "बिटकॉइन और ईथर जैसी क्रिप्टो करेंसी एक सार्वजनिक संपत्ति है जिसको किसी राष्ट्र की मान्यता नहीं है या कोई मालिक नहीं है. अगर आपके पास इंटरनेट है तो आप क्रिप्टो करेंसी ले सकते हैं."

अभी तक हम लोगों ने इतना तो समझ लिया है कि ब्लॉक चैन तकनीक फ्यूचर को बदल सकती है. अब आगे के चैप्टर्स में इसी कांसेप्ट के बारे में बारीकी से चर्चा करते हैं.

बिटकॉइन और ब्लॉकचेन तकनीक न्यू ईरा की शुरुआत है
अक्टूबर 2008 की बात है, Satoshi Nakamoto ने पहली क्रिप्टोकरेंसी से दुनिया को रूबरू करवाया था. जिसका नाम the bitcoin है. इसी क्रिप्टो करेंसी ने दुनिया का परिचय एक नई करेंसी से करवाया था. 

Bitcoin को नाम से तो अधिकत्तर लोग जानते हैं, लेकिन इसके कांसेप्ट को अच्छे से समझने के लिए, हमें cryptocosm की नई दुनिया में दाखिला लेना होगा. 

आपको बता दें कि cryptocosm की दुनिया में किसी भी पर्सनल डेटा को ईज़ली टारगेटबल सेंट्रल हब में decentralized किया जाता है. जिसकी वजह से इसे कोई भी होल्ड कर सकता है. 

इसी के साथ ब्लॉकचेन को हम अलग-अलग ब्लॉक्स की एक सीरीज़ कह सकते हैं, इन ब्लॉक्स में इनफार्मेशन इकट्ठा रहती हैं.

ब्लॉकचेन के इस्तेमाल का मकसद डिजिटल दस्तावेज़ों को एक खास समय पर फिक्स करना (Time Stamp) करना होता है ताकि उन्हें बैकडेट करना या उनके साथ छेड़छाड़ करना संभव नहीं हो सके.

आपको बता दें कि हाल के दिनों में पूरी दुनिया में ब्लॉकचेन चर्चा का विषय रहा है.

जबसे क्रिप्टोकरेंसी का दौर शुरू हुआ है ब्लॉकचेन और अधिक लाइमलाइट में आ गया है, क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी ब्लॉकचेन की तकनीक पर ही काम करती है.

पूरी दुनिया में जैसे-जैसे क्रिप्टोकरेंसी या एनएफटी (Non-Fungible Tokens) का प्रयोग बढ़ रहा है, ब्लॉकचेन तकनीक की महत्ता भी बढ़ती जा रही है.

ब्लॉकचेन की तकनीक अब आम आदमी की जिंदगी पर भी अपना असर डालने लगी है.

हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जिन सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं उनमें कई सेवाएं ब्लॉकचेन की तकनीक पर आधारित हो सकती हैं पर हमें इसके बारे में पता ही नहीं होता है.

ऐसे में आज के समय में ब्लॉकचेन क्या है और हमारी जिंदगी इससे किस तरह से जुड़ी हुई इस बारे में जानकारी होनी जरूरी है.

नए नज़रिए से देखने की कोशिश करें तो ब्लॉकचेन की तकनीक हमें सेंट्रल सर्वर का इस्तेमाल किए बिना दो रिकॉर्ड की समस्या से भी निजात दिला सकती है.  

ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल कर बैंक, सरकार या किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की आवश्यकता के बिना धन, संपत्ति, समझौते आदि वस्तुओं का आसानी से आदान-प्रदान किया जा सकता है.

इस तकनीक की खासियत यह है कि एक बार जब कोई डेटा एक ब्लॉकचेन के अंदर दर्ज हो जाता है, तो उसे बदलना मुश्किल ही नहीं लगभग-लगभग नामुमकिन ही हो जाता है.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि नए लोग नए नज़रिए के साथ बिजनेस करना सीख रहे हैं. और उन बिजनेसेज़ में इस तकनीक का रोल भी बढ़ता जाएगा. इस तकनीक को समझकर आप आसानी से फ्यूचर को भी समझ सकते हैं.

Ethereum और Blockstack अपने लिए ब्लॉकचेन तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं
इथेरियम ब्लॉकचेन के कॉन्सेप्ट को रशियन-कनाडियन प्रोग्रामर विटालिक बुटेरिन ने प्रस्तावित किया था. उन्होंने से क्रिप्टोकरेंसी की यूटिलिटी को आगे बढ़ाने के लिए इसे डिजाइन किया था. बुटेरिन चाहते थे कि डेवलपर इथेरियम के प्लेटफॉर्म पर अपनी खुद की स्पेशल एप्लिकेशन बनाएं.

इथेरियम पर आधारित एप्लिकेशंस स्मार्ट कॉन्ट्रैक्टस का इस्तेमाल करती हैं जिन्हें इथेरियम ब्लॉकचेन में स्टोर किया जाता है. 

कई और काम भी हैं जो इथेरियम ब्लॉकचेन का उपयोग करके पूरे किए जाते हैं, लेकिन इसका मुख्य उपयोग टोकन या क्रिप्टोकरेंसी में विनिमय की जाने वाली वैल्यू को स्टोर करने का है.

ये बात ध्यान रखने वाली है कि इथर भी एक विकेंद्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी है. या इसे ऐसे समझें कि ये इथेरियम पर आधारित नेटवर्क ब्लॉकचेन पर लेनदेन की जाने वाली क्रिप्टोकरेंसी है. ये दुनिया की सबसे बड़ी ऑल्टकॉइन है. 

अब मन में सवाल आ सकता है कि आखिर आल्ट कॉइन क्या है? 

इसलिए आपको बता दें कि बिटकॉइन के अलावा बाकी सभी क्रिप्टोकरेंसी को ऑल्टकॉइन कहा जाता है. मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से बिटकॉइन के बाद इथर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी है. इथेरियम नेटवर्क पर काम करने वाली इथर में क्रिप्टोकरेंसी के सभी गुण हैं. इसे अगर सही से समझा जाए तो इथेरियम नेटवर्क इसके लिए ईंधन का काम करता है.

लेकिन इथेरियम केवल एक कंपनी नहीं है जिसने ब्लॉकचेन तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया है. बल्कि कम्प्यूटर साइंटिस्ट मुनीब अली की कंपनी Blockstack ने भी इस फील्ड में काबिले तारीफ़ काम किया है. 

ब्लॉक चेन टेकनोलॉजी के हार्डवेयर में भी काफी बदलाव चल रहे हैं. इसके पीछे का रीज़न गूगल से इसकी निर्भरता को कम करना है. अब ये तो फ्यूचर ही बताएगा कि क्या ब्लॉक चेन तकनीक गूगल के बिना भी सर्वाइव कर सकती है? या नहीं.

क्या हार्डवेयर निर्माण की वापसी हो सकती है?
कम्प्यूटर साइंस में Moore’s Law बताता है कि हर दो सालों के अंदर सर्किट की लागत डबल हो जाती है. इसी के साथ हमें समझना चाहिए कि जैसे कम्प्यूटर 70 के दशक में बनते थे, वैसे कम्प्यूटर 90 के दशक में नहीं बन रहे थे. 

मतलब साफ़ है कि कम्प्यूटर की दुनिया में बड़ी तेजी से टेकनोलॉजी बदलती रही है. क्या अब फिर से एक नई तकनीक का समय आ रहा है? क्या गूगल क्लाउड की जगह भी जाने वाली है? 

सिलिकॉन वैली में हार्डवेयर का रीबर्थ देखने को मिल रहा है. ऐसा देखा जा रहा है कि कई वैली कम्पनियां अब सिलिकॉन चिप का निर्माण नहीं कर रही हैं. उन कम्पनियां का फोकस डिफरेंट डायरेक्शन की तरफ मूव करने का है. और काफी हद तक वो अपनी कोशिश में कामयाब होते हुए भी नज़र आ रही हैं. 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कम्प्यूटर जगत की कम्पनियां टेकनोलॉजी के मामले में काफी आगे बढ़ती जा रहीं हैं. इसी को टेकनोलॉजिकल शिफ्ट भी कहा जाता है. निश्चित तौर पर ये टेकनोलॉजिकल शिफ्ट सेक्योरिटी और कैपाबिलिटी को इम्प्रूव करेगा. 

ये सब बातें साफ़ तौर पर ईशारा करती हैं कि आने वाले समय में दुनिया गूगल क्लाउड से आगे का सोच रही है. मतलब साफ़ है कि भले ही अभी गूगल के बाद की ज़िन्दगी साफ़ तौर पर नज़र ना आ रही हो, लेकिन उसकी झलक तो दिखने ही लगी है. जिन लोगों ने इस बात को मान लिया था कि गूगल के बाद कुछ नहीं.. उन्हें पता चल गया है कि अभी गूगल के बाद भी बहुत कुछ देखना बाकी है. 

हमें समझना चाहिए कि इन्वेंशन कभी भी खत्म नहीं होने वाले हैं. इंसान समय के साथ तकनीक के मामले में बेहतर ही होता जाएगा. इसलिए किसी भी मुकाम को आखिरी मुकाम नहीं समझना चाहिए. और हमें विश्वास रखना चाहिए कि बहुत जल्द हमारे सामने गूगल के आगे की ज़िन्दगी भी आएगी. अब सवाल यही उठता है कि क्या हम नए इन्वेंशन के लिए पूरी तरह से तैयार हैं? या फिर अभी हम गूगल को ही पूरी तरह से समझ नहीं सके हैं.

चलिए फिर से एक नज़र बिटकॉइन पर मारते हैं
जैसा ज्यादातर लोगों को मालुम है कि अठारहवीं शताब्दी में, British physicist आइजैक न्यूटन ने स्वर्ण मानक की स्थापना की थी. आने वाले 200 सालों तक तमाम सरकारें इकॉनोमिक स्टेबिलिटी को बनाने के लिए सोने के मूल्य के मुकाबले अपनी मुद्राओं की गारंटी देती रहीं. 

कई लोगों के मन में सवाल उठता रहता है कि आखिर उस समय गोल्ड को ही क्यों चुना गया था? इसका सीधा सा कारण यही था कि लोग गोल्ड को सबसे कीमती मेटल मानते रहे हैं. उनका मानना था कि ये कभी खराब या गायब नहीं हो सकता है. 

लेकिन 2008 का दौर आते-आते बाज़ार ने बहुत बड़ा फाइनेंसियल क्राइसिस भी देखा, तभी से दुनिया भर की सरकारों ने करेंसी की वैल्यू के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड को मानना बंद कर दिया. सरकारों का कहना था कि अब से मार्केट ही करेंसी की वैल्यू को डिसाइड करेगा. 

लेकिन तभी Nakamoto ने ये वादा किया कि आने वाले समय में bitcoin नया और शक्तिशाली गोल्ड स्टैण्डर्ड बनेगा. ये दावा सुनने में ही बहुत बड़ा लगता है. आखिर कैसे डिजिटल करेंसी रियल वैल्यू ऑफ़ मनी की वैल्यू को डिसाइड कर सकती है? 

लेकिन जिस तरह से बाज़ार में बदलाव देखने को मिल रहे हैं. इसका 1 परसेंट चांस है कि कुछ देशों में Nakamoto की बात सही भी हो जाए? 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बिटकॉइन को लेकर लोगों का क्रेज़ दिन बा दिन बढ़ता ही जा रहा है. इसके और अच्छे से समझने के लिए आपको एक डेटा पर नज़र डालनी चाहिए. 

आपको बता दें कि साल 2021 में क्रिप्टोकरेंसी के बाजार में 2020 की तुलना में साढ़े 15 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली थी. जहां 2020 में भारतीय निवेशकों ने क्रिप्टोकरेंसी में महज 28.10 मिलियन यूएस डॉलर का निवेश किया था वहीं साल 2021 में यह बढ़कर लगभग 438.18 मिलियन यूएस डॉलर हो गया था.

साल 2022 के बीते छह महीनों में क्रिप्टोकरेंसी में लगभग 139.9 मिलियन डॉलर का निवेश देखने को मिला है. 

इसी के साथ-साथ आपको बता दें कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में क्रिप्टोकरेंसी सेक्टर में टोटल मार्केट कैपिटलाइजेशन में 187.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली थी. पूरे क्रिप्टोबाजार में सिर्फ बिटकॉइन ने ही लगभग 60 प्रतिशत (59.8%) रिटर्न दिया था.

ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि भले ही वर्तमान में ग्लोबल बाजारों की अस्थिरता के कारण निवेशक डरकर क्रिप्टो बाजार से पैसे निकाल रहे हैं पर बाजार जैसे ही संभला इसमें दोबारा रंगत लौटने की उम्मीद बनी हुई है.

बात अगर मेटावर्स की करें तो भारतीय बाजार अब तक इसके शॉपिंग और लेन-देन के लिए वर्जुअल हब नहीं बन पाया है.

इसी के साथ इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि पिछले कुछ सालों से डिजिटल मुद्राओं की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है जिन्हें ब्लॉकचेन सॉफ़्टवेयर के ज़रिए इस्तेमाल किया जाता है. ये डिजिटल मुद्रा इनक्रिप्टेड यानी कोडेड होती हैं इसलिए उन्हें क्रिप्टोकरेंसी भी कहते हैं. 

इन सभी छोटी छोटी बातों से हमें समझना चाहिए कि मार्केट में लाइफ आफ्टर गूगल ने दस्तक दे दी है. क्या हम इस आहट को समझ पा रहे हैं? अगर हम सही समय में इस आहट को समझ लें, तो हम अपने आपको फ्यूचर के लिए जल्दी से जल्दी तैयार कर सकते हैं.

कुल मिलाकर
अगर हम क्रिप्टो की बात करें तो भारत, चीन और अमेरिका जैसे देशों के विपरीत दक्षिण अमेरिका के देश अल सल्वाडोर ने अब इसके इस्तेमाल पर क़ानूनी मुहर लगा दी है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गूगल ने डिजिटल वर्ल्ड में एक तरफा राज़ किया है. लेकिन ये बात भी सच है कि कभी ना कभी हर किसी का राज़ खत्म ज़रूर होता है. बात सिर्फ इतनी सी है कि हमें फ्यूचर के लिए तैयार रहना चाहिए. फ्यूचर चेंज होने वाला है और वो भी बहुत तेजी से.. 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Life After Google By George Gilder. 

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