Peter M. Senge
वर्किंग कल्चर को बदलने की ज़रूरत आ गयी है और लर्निंग आर्गेनाइजेशन को क्रिएट करने की भी
दो लफ्जों में
साल 1990 में रिलीज हुई किताब “The Fifth Discipline” एक कम्परहेनसिव गाइड की तरह है. जो ये बताती है कि वर्क प्लेस के अंदर इनोवेशन और पर्सनल ग्रोथ कैसे लेकर आनी है. इस किताब के ज़रिये से लेखक बताते हैं कि इस बदलती हुई दुनिया में कम्पनियां तभी सक्सेस की तरफ आगे बढ़ सकती हैं. जब वो अपने सोचने के तरीके में बदलाव लेकर आयें. जिस हिसाब से कम्पनियां प्रॉब्लम को सॉल्व करती हैं. उन्हें उस एप्रोच को बदलना पड़ेगा. उनके हिसाब से रिएक्टिव एप्रोच अब काम नहीं कर सकता है. बिजनेस को अब सिस्टम थिंकिंग मेथड को अडॉप्ट करना ही पड़ेगा. ये मेथड प्रो एक्टिव होती है. इससे इनोवेटिव सलूशन मिलने में आसानी होती है. लेकिन ये मेथड तभी काम आएगी जब आप अपने कर्मचारी को मोटिवेट करके रखेंगे.ये किताब किसके लिए है?
- ऐसे बिजनेस मैन जिन्हें इनोवेशन को समझना है
- ऐसे बिजनेस मैन जिन्हें ब्लाइंड स्पॉट ऑफ़ थिंकिंग को जानना है
- कर्मचारी जिन्हें जॉब सिक्यूरिटी और सैटिसफैक्शन चाहिए
- टीम मेम्बर्स जिन्हें अपने दिमाग को समझना है
लेखक के बारे में
“Peter Senge” एम.आई.टी स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में सीनियर लेक्चरर हैं. इसी के साथ वो सोसाइटी ऑफ़ एजुकेशनल लर्निंग के संस्थापक भी हैं. “The Fifth Discipline” इनकी पहली किताब है और इसकी 2 मिलियन से ज्यादा कॉपी बिक चुकी है.वर्क एनवायरनमेंट कैसा होना चाहिए?
आप अपने ऑफिस के काम को लेकर आखिरी बार कब पैशनेट हुए थे. अगर आप नॉर्मल ऑफिस वर्कर हैं तो फिर शायद ही इस सवाल का जवाब आपके पास होगा. लाइफ में ज़्यादातर लोग ऑफिस सिर्फ और सिर्फ मन्थ के लास्ट की सैलरी के लिए जाते हैं. इसी के साथ रोज़ दिन के खत्म होने के साथ ही साथ उनके काम का समय भी खत्म हो जाता है. बहुत सारे लोगों को तो ये भी पता नहीं होता है कि आखिर वो काम करते क्यों हैं? इसी के साथ लोगों को ये भी पता नहीं होता है कि जिंदगी में उनका मोटिव क्या है?
लेकिन क्या हो अगर आपको पता चले कि आप अपनी काम की जगह में रोज़ कुछ नया सीखने वाले हैं. अगर आपको पता चले कि रोज़ आपको काम में बहुत ज्यादा मजा भी आने वाला है. इसी के साथ अगर आपका काम आपके लिए बस एक रूटीन ना रहे. इस किताब के लेखक ने 100 से ज्यादा आर्गेनाइजेशन की मदद की है. जिसके कारण आज वहां का वर्किंग माहौल कुछ ऐसा ही है. इन कम्पनियों अब पता चल गया है कि कर्मचारी का दूसरा घर ऑफिस ही होता है. इसलिए अब ये उनको माहौल भी कुछ वैसा ही देने की कोशिश भी करती है. इस मेथड से फायदा ये हुआ है कि कम्पनियों के काम में भी बढ़त देखने को मिली है.
अब सवाल ये भी उठता है कि आपको इस किताब की इस समरी से क्या मिलने वाला है? इसका सबसे अच्छा जवाब ये है कि इस समरी के ज़रिये से आपको ऐसा ज्ञान मिलेगा जिसकी कीमत आप अदा भी नहीं कर सकते हैं. इस दावे की सच्चाई आपको इस समरी को पढ़ने के बाद ही पता चल जायेगी.
कभी किसी छोटे बच्चे को एक्शन में देखा है? अगर आप उसे देखेंगे तो आपको लर्निंग के महत्त्व का पता चलेगा. वो अपना दिन इसी में खर्च करता है कि कैसे दुनिया के नॉलेज को हासिल किया जाए? जिस भी चीज़ को वो देखता है. उसे वो सूंघकर और छू कर महसूस करने की कोशिश भी करता है. आपने गौर किया होगा कि वो हमेशा ही नयी स्किल्स को सीखने का प्रयास भी करता रहता है. अगर वो फेल हो जाता है तो वो उससे भी कुछ ना कुछ सीखने की ही कोशिश करता है.
अगर हम ध्यान दें तो हम सभी के अंदर एक छोटा बच्चा रहता है. जो पूरे वर्ल्ड से कुछ ना कुछ सीखना चाहता है.
यहाँ लेखक कहना चाहते हैं कि लर्निंग एक बहुत बढ़िया टूल है. हम सीखना चाहते हैं ये भी बहुत अच्छी बात है. लेकिन हमारे बीच में Working Enviornment आ जाता है.
क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी कंपनी का कर्मचारी आखिर कुछ नया सीखना बंद क्यों कर देता है? इसके पीछे का मुख्य कारण है नैरो जॉब डिस्क्रपशन. ये कर्मचारी को बस अपनी अटेंडेंस मार्क करने के लिए ही मोटिवेट कर सकता है.
इसी कारण जब कभी कंपनी में कुछ गलत होता है. तो फिर लोग एक दूसरे के ऊपर ही इल्जाम डालने में लग जाते हैं. कभी कोई ये कोशिश नहीं करता है कि आखिर हम कैसे प्रॉब्लम को सॉल्व कर सकते हैं? कोई ऐसी कोशिश करेगा भी क्यों? किसी ने कभी कुछ नया सीखने की कोशिश की ही नहीं है. उन्हें ऐसा करने से हमेशा ही कंपनी का वर्किंग माहौल ने रोका है.
इसी के साथ जैसे-जैसे कम्पनियों में काम रिएक्टिव होता जाता है. वहां कुछ सीखने के लिए बचता ही नहीं है. आपने देखा होगा कि लोग अपने टास्क को ही पूरा करने के लिए मरते रहते हैं. कुछ ज्यादा ही प्रेशर कर्मचारी के ऊपर डाला जाता है. इसलिए ये भी देखा जाता है कि किसी भी एम्पलोई के पास कभी भी क्रिएटिव सोल्यूशन नहीं रहता है. इसके पीछे भी रीजन प्रेशर ही है. उस सिस्टम को ऐसा तैयार ही नही किया गया है कि इंसान अपने डिपार्टमेंट के बाहर के बारे में भी सोच सके. आज कल अधिकत्तर काम डेड लाइन में किया जाता है. लेकिन उसके चक्कर में ये भूल जाया जाता है कि काम की कुछ गुणवत्ता भी होनी चाहिए.
अभी क्या हो रहा है? इस पर ध्यान ना देना ही बॉयल्ड फ्रॉग सिंड्रोम होता है. इसका मतलब होता है कि फ्रॉग ठंडे पानी के पॉट में है. लेकिन पानी धीरे-धीरे गर्म हो रहा है. फ्रॉग को पता भी नहीं चल रहा है और वो मौत के नज़दीक पहुँचता जा रहा है.
अगर कारपोरेशन भी रिएक्टिव मोड में बने रहे तो बहुत जल्द ऐसा देखने को मिलेगा कि उनके हाँथ से भी क्रिएटिविटी खत्म हो चुकी होगी. इससे सबसे ज्यादा घाटा आर्गेनाइजेशन को ही लगने वाला है.
इन सबके साथ एक अच्छी खबर भी है वो ये है कि कोई भी मुश्किल इतनी बड़ी नहीं होती है कि उसका हल ना निकाला जा सके. आगे के चैप्टर में आपको 5 मेन डिसीप्लींस के बारे में पढ़ने को मिलने वाला है. जिसकी मदद से किसी भी आर्गेनाइजेशन में बहुत कुछ बदला जा सकता है.
5 Key-Disciplines जिससे लर्निंग को बढ़ावा मिलेगा
इंसान को किसी भी चीज़ में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है. तो वो है किसी भी पुरानी आदत को छोड़ने में, पूछिए किसी ऐसे इंसान से जिसने स्मोकिंग को छोड़ा हो? तो अब आप ही सोचिये कि आर्गेनाइजेशन इतनी पुरानी सभ्यता को कैसे छोड़ पायेंगे? वो कैसे फायर फाइटिंग माहौल से इनोवेटिव लर्निंग माहौल में ट्रान्सफर कर पाएंगे?
इस किताब के लेखक ने 100 से ज्यादा आर्गेनाइजेशन के साथ काम किया है. उन्होंने अपने अनुभव से 5 Key-Disciplinesको निकाला है. जिसकी मदद से ये बदलाव किये जा सकते हैं.
लेखक बताते हैं कि अगर कम्पनियों ने इन 5 फिलॉसफी को अपना लिया तो वो एक लर्निंग आर्गेनाइजेशन बन जायेंगे.
आपको बता दें कि ये डिसीप्लीन पूरी तरह से प्रैक्टिकल हैं. ये तभी काम करेंगे जब आर्गेनाइजेशन इन्हें डेली लाइफ में अपनाने की कोशिश करेंगे.
तो अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये की-डिसीप्लीन हैं क्या? चलिए इनके ऊपर नज़र डालते हैं.
पहला- कम्पनियों को पर्सनल मास्टरी को प्रमोट करना चाहिए.
ये क्या होता है? लेखक के हिसाब से इसका मतलब होता है कि आप पढ़िए और आगे बढ़िए. कम्पनियों को कर्मचारी के अंदर ऐसा एटीट्यूड लेकर आना चाहिए. इसी के साथ मास्टरी का ये भी मतलब होता है कि आप जब भी कोई भी काम करें तो ये निश्चित करें कि आप अपना बेस्ट करने वाले हैं. जब लोग ऐसे काम करने की शुरुआत कर देंगे तो उनके अंदर एक फुलफिलमेंट की फीलिंग का जन्म भी होगा. इसी के साथ इससे कर्मचारी मोटिवेटेड और उत्साहित भी रहेंगे.
दूसरा- किसी भी आर्गेनाइजेशन को अपने कर्मचारी के मेंटल मॉडल्स की तरफ भी ध्यान देना चाहिए.
आर्गेनाइजेशन को ये पता लगाना चाहिए कि कौन सा कर्मचारी किस दिमागी हालत के साथ काम कर रहा है. वो सिचुएशन को कैसे जज करता है. क्या किसी के पास सोल्यूशन का कोई और तरीका भी रहता है. ऐसा करने से कंपनी में काम करने वाले लोग ज्यादा ओपन माइंडेड होंगे.
जब एक बार लोग अपने मेंटल मॉडल को समझ जायेंगे तो उसके बाद तीसरे डिसीप्लीन की एंट्री होती है. इस डिसीप्लीन का नाम है टीम लर्निंग. टीम लर्निंग की शुरुआत होती है जब कर्मचारी एक दूसरे से बात करने की शुरुआत कर देते हैं. जब वो एक दूसरे से बात करते हैं तो फिर एक-दूसरे से सवाल भी करते हैं. उस दौरान वो एक दूसरे की दिक्कत से रूबरू होने की कोशिश भी करते हैं. इससे एक नए एप्रोच की शुरुआत होती है. इससे नई क्रिएटिविटी का जन्म होता है. इसी के साथ इससे वर्किंग माहौल भी काफी अच्छा रहता है.
टीम लर्निंग फोर्थ डिसीप्लीन का पिलर तैयार कर देती है. जिसका नाम है शेयर्ड विजन. ये चीज़ बस किसी लीडर के अंदर ही नहीं होती है. बल्कि ये हर कर्मचारी के अंदर भी आ सकती है. इसके आने से उनके अंदर एक ओनर शिप की भावना का जन्म होता है. वह खुद को एक एम्प्लोयी नहीं बल्कि कंपनी का मालिक समझते हैं, इससे उनको ये एहसास होता है कि वो कंपनी के लिए क्या नया कर सकते हैं? इसी के साथ उनके अंदर इस भावना का भी जन्म होता है कि उन्हें अपनी कंपनी के लिए कुछ ऐसा करना है जिससे कंपनी को फायदा हो सके.
इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण डिसीप्लीन की बारी आती है. इसका नाम है सिस्टम थिंकिंग. इसका मतलब होता है कि आप प्रॉब्लम को अलग नज़रिए से देखने की शुरुआत कर देते हैं. इसके आने से आपके अंदर एक प्रोब्लम सॉल्विंग तकनीक का भी जन्म हो जाता है. जब आपको कोई दिक्कत नज़र आती है. तो आप उसे दूसरे के ऊपर डालने की कोशिश नही करते हैं. अब आप खुद ही उसके हल की तरफ बढ़ते हैं. इसमें कोई दो राय भी नहीं है कि आप उस दिक्कत का समाधान भी ढूंढ लेते हैं.
इसी के साथ आने वाले चैप्टर्स में हम इन सबको और पास से देखने और समझने की कोशिश करने वाले हैं.
काम से लोग मोटिवेट होते हैं अगर उसमे आगे बढ़ने की उम्मीद हो
आखिरी बार आप कब मोटिवेटेड हुए थे? इस सवाल के जवाब में आपको आपकी गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड भी याद आ सकते हैं. या फिर आपको कोई ट्रिप याद आ रही होगी. लेकिन क्या इस जवाब में आपको आपका ऑफिस याद आ रहा है?
लेकिन इस सवाल के जवाब के साथ हमें इस सच्चाई से भी रूबरू होना ही पड़ेगा कि हम अपनी जिंदगी का ज्यादा तर समय ऑफिस में भी बिताते हैं. तो फिर हम काम ऐसा क्यों नहीं चुनते हैं जिससे हमारे अंदर पैशन आता हो या फिर हमको ख़ुशी मिलती हो. इसी के साथ अगर आपके नीचे लोग काम करते हैं तो क्या आप नहीं चाहते हैं कि वो अपना काम ख़ुशी-ख़ुशी और ईमानदारी से करने की कोशिश करें?
लेखक यहाँ सन्देश देना चाहते हैं कि काम मोटिवेट तो करता है लेकिन उसमें हमें आगे बढ़ाने की क्षमता भी होनी चाहिए.
यानी हमारा काम अगर हमें पर्सनल ग्रोथ का का मौका दे तो हमें मोटिवेट करता है. ये पर्सनल मास्टरी की फीलिंग किसी को किसी टास्क में हरा देने से नहीं आती है. ये फुल-फिलमेंट से आती है. फुल-फिलमेंट तब आती है जब हम अपने विजन के नज़दीक पहुँच जाते हैं.
ये भी लाज़मी है कि जब आप अपने विजन की तलाश कर लेते हैं. तो फिर वहां बस खड़े होने से आप मोटिवेट नहीं हो सकते हैं. आप मोटिवेट तभी होंगे जब आप अपने विजन की तरफ बढ़ते रहेंगे. बढ़ने के लिए ज़रूरी होता है कि आप सही राह की तलाश भी कर लें. जब सही राह पकड़ेंगे तो फिर मंजिल अपने आप ही मिल जाएगी.
किसी भी कंपनी में काम करने वाला पर्सनल मास्टरी को तभी अचीव कर सकता है. जब उसे काम करने वाली जगह में सुकून के साथ मजा भी आने लगे.
जब आप अपनी कहानी में खुद को हीरो की तरह पेश करेंगे तो खुद ब खुद ये महसूस करेंगे कि बहुत सारे बदलाव आपके अंदर आ रहे हैं. आप खुद सोचिये कि आप कोई मूवी देख रहे हों, और उस मूवी में हीरो की ज़िन्दगी में कोई बदलाव ना आ रहा हो तो सोचिये कि वो मूवी कितनी ज्यादा बोरिंग हो जाएगी, उसी तरह आपकी जिंदगी भी है, जिसमे बदलाव लाना आपका ही काम है.
ये बिल्कुल सही समय है, इसी वक्त आप अपने भूत काल और फ्यूचर को देख सकते हैं, आप खुद गणित लगाइए कि पिछले 10 सालों में आपके अंदर कितने बदलाव हुए हैं और आने वाले 10 सालों में आप कितना बदलने वाले हैं, इस गणित के हिसाब से आप अपने आपको जज करिए.
लेखक यहाँ सन्देश देना चाहते हैं कि हमें पता भी नहीं चलता है कि कब हम अपने बिलीफ को लिमिट करने लगते हैं.
गौर करियेगा कि अमेरिकन ऑटो इंडस्ट्री का क्या हुआ था? उसने समय के हिसाब से अपने आपको जापान की इंडस्ट्री की तरह एडाप्ट करने की कोशिश नहीं की थी. जिसके कारण उसे ताबाही का मुंह देखना ही पड़ा था.
इसलिए हमें मेंटल मॉडल्स को समझना चाहिए. इसी से इनोवेशन का जन्म होता है.
उदाहरण के लिए हम आयल कंपनी शेल को समझने की कोशिश करते हैं. वो उस इंडस्ट्री के टॉप पर पहुँच गयी. जब उसने अपने मैनेजर्स के मेंटल मॉडल को समझने की कोशिश कर ली थी. शेल के प्लानर्स ने मैनेजर्स को एक्स्ट्रा ट्रेनिंग देने का फैसला किया था. इससे हुआ ये था कि उन्हें अपने ऊपर ज्यादा भरोसा हो गया था. उन्हें ये पता चल गया था कि उनकी कंपनी को उनके ऊपर काफी भरोसा भी है.
इसलिए इस बात को अब आपको समझ लेना चाहिए की मेंटल मॉडल आपकी कंपनी का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
शेयर्ड विजन का अपना एक अलग महत्त्व है
जब जॉन एफ कैनेडी ने वादा किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका 1960 के दशक के अंत तक चन्द्रमा में इंसान के कदम रख देगा. तो ये वादा काफी ज्यादा आकर्षक लग रहा था. ये घोषणा साल 1961 में हुई थी. तब तक केवल राकेट ही ऐसा कर पाए थे.
लेकिन साल 1969 में इस कारनामे को अंजाम दे दिया गया था. तब नील आर्मस्ट्रांग ने ये करके दिखा दिया था. राष्ट्रपति का ये प्लान संभव ही इसलिए हो पाया था क्योंकि हजारों वैज्ञानिकों ने अपने विजन को लेकर उसके ऊपर काम किया था.
लेखक यहाँ सन्देश देना चाहते हैं कि शेयर्ड विजन से कुछ भी संभव हो सकता है.
शेयर्ड विजन से लर्निंग आर्गेनाइजेशन को एनर्जी मिलती है. इससे लोगों को काम करने की प्रेरणा मिलती है. इसी के साथ इसे लोगों के अंदर एक्सपेरिमेंट करने की भी ललक को बढ़ावा मिलता है.
चलिए एप्पल और फोर्ड जैसी कम्पनियों की बात करते हैं. ये कम्पनियां इतनी ज्यादा सफल क्यों हैं? इसके पीछे का एक ही कारण है. वो ये है कि कंपनी के विजन के पीछे कर्मचारियों की मेहनत और लगन है. एप्पल का विजन है कि ऐसा कम्प्यूटर बनाना जिसे यूज करने में मजा आये. फोर्ड का विजन है ऐसा कार का निर्माण करना जिसे हर अमेरिकी अफोर्ड कर सके. ये विजन शक्तिशाली हैं. क्योंकि इनके पीछे पॉजिटिव सोच भी है. इनका मकसद केवल पैसे कमाना ही नहीं है. ये जिंदगियों में बदलाव भी लाना चाहते हैं.
आज के दौर में भी करीब-करीब हर कंपनी के पास विजन है. लेकिन आपको बता दें कि शेयर्ड विजन तब तक मुमकिन नहीं हो सकता है जब तक वो सबके पास ना हो. अगर आप सोचते हों कि हायर अथोरिटी के होने से शेयर्ड विजन होता है. तो आप गलत फहमी के शिकार हो चुकें हैं.
तो अब ये सवाल उठता है कि आपकी कंपनी के पास शेयर्ड विजन कैसे आयेगा? इसके लिए आपको एक ऐसे सिस्टम का निर्माण करना होगा. जिससे कंपनी के सभी कर्मचारी से विजन को लेकर बात की जा सके. इसी के साथ उन्हें खुली ओनेरशिप भी दी जाए. जिससे वो कंपनी को आगे बढ़ाने में खुद का योगदान दे सकें.
आपको ये कोशिश करनी चाहिए कि आपके कर्मचारी को ये पता चले कि कंपनी को उसकी बहुत ज्यादा कद्र है. इसी के साथ उसके अंदर इतनी काबिलियत भी है कि वो कंपनी को आगे ले जाने में अपना योगदान दे सकता है.
कहा जाता है कि पहाड़ की खोदाई अकेले नहीं की जाती है. लेकिन अगर आपके पास एक अच्छी टीम है तो आप कोई भी पहाड़ को खोदकर उसमे सड़क का निर्माण कर सकते हैं.
इस अध्याय से लेखक ये समझाना चाहते हैं कि टीम का महत्त्व बहुत अधिक होता है. हमें टीम के साथ काम करना चाहिए.
टीम लर्निंग की कला को कैसे सीखा जा सकता है? कैसे हम एक दूसरे के स्किल्स को पहचान सकते हैं? अगर आप अपने साथ काम करने वाले की स्किल्स को जानते हैं तो उसे बताइए कि वो शानदार काम करता है.
इसके लिए सबसे अच्छा साधन है कम्युनिकेशन का, हमें आपस में संवाद को बढ़ाने की कोशिश करते रहना चाहिए. जितना हम एक दूसरे से बात करेंगे. हमको एक दूसरे के बारे में उतना ज्यादा पता चलेगा.
हार्वर्ड के रिसर्च में भी ये बात निकलकर सामने आई थी कि जिन कम्पनियों में टीम के साथ ताल-मेल बनाकर काम किया जाता है. वहां पर वर्किंग वातावरण के साथ ही साथ अचीवमेंट भी अच्छा रहता है.
इसलिए अगर आप बिजनेस की शुरुआत करने वाले हैं तो सबसे पहले कोशिश करिए कि आपके पास एक अच्छी टीम होनी ही चाहिए.
आर्गेनाइजेशन में क्रिएटिव कम्युनिकेशन की तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी के साथ डीप लिसनिंग तकनीक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
डीप लिसनिंग तकनीक में हमें समय देना पड़ता है और सुनना पड़ता है कि हमारी टीम क्या कहना चाहती है. इस तकनीक के माध्यम से हम अपनी टीम के हर एक सदस्य तक पहुँच सकते हैं.
इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि कभी-कभी सबसे क्रिएटिव सलाह वहां से मिल सकती है. जहाँ से हमें एक भी उम्मीद नहीं होती है. इसलिए हमें अपनी टीम को सुनना ही चाहिए.
एबिलिटी टू थिंक राईट
इस अध्याय में लेखक बताना चाहते हैं कि किसी भी लर्निंग आर्गेनाइजेशन के लिए सही सोचने का महत्त्व कितना ज्यादा होता है.
इसको सिम्पल करके समझने की कोशिश करते हैं. मान लीजिये कि किसी भी कंपनी के तीन डिपार्टमेंट हैं. तीनों डिपार्टमेंट के हेड काफी ज्यादा समझदार हैं. उन्हें अपना काम अच्छे से आता है. लेकिन तीनों को दूसरे डिपार्टमेंट के बारे में कुछ भी नहीं पता है. तो फिर क्या इस तरह की चीज़ कंपनी के हित में है? इसका जवाब है कि नहीं, ये कंपनी के हित में नहीं है.
इसके पीछे का रीजन ये है कि अगर आर्गेनाइजेशन में कभी कोई रियल समस्या होती है. तो फिर उसका हल इसके हेड नहीं निकाल पायेंगे. सिस्टम थ्योरी हमें कॉज और उसके इफेक्ट को भी सीखने को बोलती है. लेकिन कई सारे लोग समस्याओं के लिए काफी ज्यादा लीनियर एप्रोच को अपनाने की कोशिश करते हैं. ये एप्रोच किसी भी कंपनी के हित में नहीं हो सकता है.
इसलिए लेखक बताते हैं कि आपको अपनी थिंकिंग को मास्टर करने की ज़रूरत है. जब कोई भी ऐसा कर लेता है. तो फिर उसे दिक्कतें अलग नज़रिए से दिखने लगती हैं. इसलिए किसी भी आर्गेनाइजेशन के लिए ये बहुत ज़रूरी है.
इस तरह के एप्रोच से आपको अपने एक्शन के इफेक्ट्स नज़र आने लगेंगे. इससे कंपनी और आपको लॉन्ग टर्म में काफी ज्यादा फायदा होने वाला है. इसको लेकर सिस्टम थ्योरी भी आपकी मदद कर सकती है.
इस बात को समझना होगा कि लर्निंग आर्गेनाइजेशन के लिए सिस्टम थ्योरी बहुत ज्यादा ज़रूरी है. इससे आपके आर्गेनाइजेशन के अंदर समझ पैदा होती है. जिससे आपको पूरी इंडस्ट्री से कम्पटीशन करने में भी मदद मिलती है. इससे लीडर्स अपने कर्मचारी के स्वभाव को भी अच्छे से समझ पाते हैं. जिससे उन्हें काम को बेहतर ढ़ंग से पूरा करने में मदद मिलती है.
क्या आपने कभी सोचा है कि लीडर का मतलब क्या होता है? आप सोचते होंगे कि किसी भी कंपनी के बड़े अधिकारी को लीडर बोला जाता है. लेकिन आपको बता दें कि लर्निंग आर्गेनाइजेशन में ऐसा नहीं होता है.
इसमें कंपनी के निचले स्तर में काम करने वाला आदमी भी लीडर हो सकता है. इसलिए इस अध्याय में लेखक बताना चाहते हैं कि लर्निंग आर्गेनाइजेशन में लीडर की परिभाषा अब बदल चुकी है.
अब राजा वाही बनेगा जिसके अंदर काबिलियत होगी. बस इसी एक थ्योरी से लर्निंग आर्गेनाइजेशन को चलाया जाता है.
अब समय आ गया है. जब लीडरशिप को हमें और पॉजिटिव ढ़ंग से देखना चाहिए. कई कम्पनियां ये बोलती हैं कि उनके यहाँ कोई बॉस नहीं है. इसका मतलब ये नहीं होता है कि उनके यहाँ कोई मैनेजमेंट ही नहीं है.
लेखक बोलते हैं कि आज के दौर में ऐसे लीडर्स की ज़रूरत है. जो अपने साथ पूरी टीम को लेकर चलना जानते हों. जिन्हें टीम से फीड बैक लेने में शर्म ना आती हो. जिन्हें लोगों को अवसर देने में मजा आता हो.
आज के समय में ऐसे ही लीडर की ज़रूरत है. जिसके अंदर लीडर बनाने की भी काबिलियत होनी चाहिए. जिसे खुद सीखना और दूसरों को सिखाना अच्छा लगता हो.
लेखक बताते हैं कि लर्निंग आर्गेनाइजेशन में माहौल कुछ ऐसा होना चाहिए कि लोगों को अपने काम से इश्क हो जाए. सभी को ये लगे कि उनके अंदर अपार क्षमता है. उनके होने से कंपनी को फायदा होता है. मैनेजर्स को ऐसे ट्रेंड करना चाहिए कि वो अपने कर्मचारी को मोटिवेट कर सकें. मोटिवेशन के पीछे कंपनी को आगे ले जाने का विजन होना ही चाहिए.
कुल मिलाकर
लर्निंग आर्गेनाइजेशन को क्रिएट करने के लिए एक्सपेरिमेंट को एन्जॉय करना सीखिए. अपने साथ काम करने वालों को मोटिवेट करने की कोशिश करिए.
कंपनी के अंदर स्पार्क लाने की कोशिश करिए. कांफ्रेंस हॉल में मीटिंग का तरीका पुराना हो चुका है. कोशिश करिए किसी नए तरीके से मीटिंग की जा सके. इससे लोगों के अंदर ख़ुशी के माहौल का जन्म होगा.
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