Heather Hanson Wickman
प्यार करना ही काम का भविष्य है।
दो लफ्जों में
द इवाल्व्ड एक्सेक्युटिव ( The Evolved Executive ) में हम देखेंगे कि किस तरह से एक कंपनी अपने कल्चर को पहले से बेहतर बना सकती है। यह किताब हमें बताती है कि डर का सहारा लेना किस तरह से एक कंपनी के लिए नुकसानदायक हो सकता है। यह किताब हमें कंपनी के कल्चर में प्यार का इस्तेमाल करने के फायदे के बारे में बताती है।यह किसके लिए है
-वे जो एक बिजनेसमैन हैं।
-वे जो अपनी कंपनी के कल्चर को पहले से बेहतर बनाना चाहते हैं।
-वे जो एक लीडर और लोगों से काम करवाने को लिए डर का इस्तेमाल करते हैं।
लेखक के बारे में
हेथर हैन्सन विकमैन ( Heather Hanson Wickman ) एक कर्मचारी थीं जो प्रमोशन के जरिए अपनी कंपनी में सबसे ऊपर पहुंची। इसके बाद वे दूसरे सीनियर लीडर्स को बेहतर बनाने के काम पर लग गईं। वे कंपनियों में बदलाव लाने का काम करती हैं एक्सेक्युटिव्स को कोचिंग देती हैं। यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
पुराने समय से ही कुछ लीडर्स लोगों से काम करवाने के लिए डर का इस्तेमाल करते थे। स्कूल के कुछ टीचर्स भी बच्चों से काम करवाने के लिए डर का इस्तेमाल करते हैं। कंपनियों में मैनेजर्स कर्मचारियों से समय पर काम पूरा कराने के लिए उनके ऊपर प्रेशर डालते हैं और उन्हें धमकाने की कोशिश करते हैं। यह स्ट्रैटेजी एक बार के लिए जरूरी और सही लग सकती है, लेकिन यह वो जहर है जो धीरे धीरे आपके कंपनी की जान लेती है।
डर का इस्तेमाल करना किसी भी कंपनी के लिए लम्बे समय में ठीक नहीं होता। इससे कल्चर में नेगेटिविटी फैलती है, कर्मचारी तनाव में रहते हैं और सही से काम नहीं कर पाते। साथ ही डर का इस्तेमाल करने से कर्मचारी मन लगाकर पैशन के साथ काम करने के बजाय प्रेशर में आकर काम करने लगते हैं।
यह किताब बताती है कि किस तरह से आप डर को हटाकर अपनी कंपनी में प्यार का कल्चर पैदा कर सकते हैं। यह किताब डर का इस्तेमाल करने के नुकसान, प्यार का इस्तेमाल करने के फायदे और उस तरह का कल्चर बनाने के तरीकों के बारे में बताती है।
-किस तरह से आप अपनी कंपनी के कल्चर को बदल सकते हैं।
-किस तरह से आप अपनी जिन्दगी का मकसद खोज सकते हैं।
-बदलाव लाने के लिए किस माइंडसेट को अपनाने की जरूरत होती है।
आज के वक्त में एक बिजनेस को आगे बढ़ने के लिए आपको पुराने बिजनेस मॉडल को छोड़ना होगा।
कंपनियां अक्सर हीरैरकियल मॉडल पर काम करती हैं, जहाँ पर कुछ जूनियर कर्मचारियों को मैनेज करने का काम सीनियर कर्मचारी करते हैं और सीनियर कर्मचारियों को मैनेज करने का काम मैनेजर्स करते हैं। इस तरह के बिजनेस मॉडल से आज के वक्त में कामयाब होना बहुत मुश्किल है।
सबसे पहले तो इस तरह के बिजनेस मॉडल में मैनेजर्स हमेशा कर्मचारियों के ऊपर प्रेशर बनाए रखते हैं। उनसे काम करवाने के लिए वे उन्हें डरा कर रखते हैं और डेडलाइन्स देते हैं। इस काम के तनाव की वजह से अमेरिका में हर साल 1,20,000 मौतें हो रही हैं।
मायो मेडिकल क्लीलिक के हिसाब से आपकी सेहत के लिए आपके डाक्टर से ज्यादा आपके बॅास जिम्मेदार होते हैं फार्ब्स मैगज़ीन के हिसाब से 58% कर्मचारी अपने बॅास पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करते।
हीरैरकियल मॉडल में सारा कंट्रोल ऊपर के लोगों के पास होता है और ऊपर के लोग नीचे के लोगों से का करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इस वजह से मैनेजर्स के ऊपर भी तनाव बढ़ता है क्योंकि हर समस्या को सुलझाने की जिम्मेदारी उनकी होती है। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि उन्हें सब कुछ पता हो। कभी कभी कोई जरूरी फैसला लेने से पहले वे पूरी तरह से कंप्यूज़न और डर से भरे होते हैं। वे दूसरों से मदद लेने से कतराते हैं और डरते रहते हैं कि कहीं उनका फैसला गलत ना हो जाए।
यह मॉडल 200 साल पुराना है और आज के बिजनेस इसे अपना कर जिन्दा नहीं बच सकते। 1955 के बाद से फार्च्यून 500 कंपनियों में से 90% कंपनियां खत्म हो गई हैं। आज सिर्फ वही कंपनियां जिन्दा बन रही हैं जो कि समय के साथ खुद को अपडेट कर रही हैं।
आज की कामयाब कंपनियां इस तरह से काम नहीं करती हैं, बल्कि वे बहुत फ्लेक्सिबल हैं और नई दुनिया में नए विज़न के साथ काम कर रही हैं। वे अपने कर्मचारियों का खयाल रखती हैं, उनकी बात भी सुनती हैं और उनके राय भी लेती हैं। इस तरह से हर कोई जिम्मेदारी ले पाता है और कंपनी तेजी से आगे बढ़ पाती है।
नए जमाने के लीडर्स को डर के सहारे लोगों से काम नहीं करवाना चाहिए।
पहले के वक्त के लीडर्स अपने कर्मचारियों से काम करवाने के लिए डर का सहारा लेते थे। वे ऐसा इसलिए करते थे ताकि उनके कर्मचारी उनकी पोजीशन के लिए खतरा न बनें। लेकिन आज के समय में डर का सहारा लेकर लोगों से काम करवाना बिल्कुल भी ठीक नहीं है। डर का सहारा लेने से आपके कर्मचारी गलतियों को छिपाने लगते हैं, दूसरों पर इल्जाम लगाने लगते हैं और कंपनी की इज्जत करना छोड़ देते हैं। डर एक ऐसी चीज़ है जो आपकी कंपनी के मैनेजमेंट में जहर घोल सकती है।
अगर आप डर का सहारा ले रहे हैं, तो आपको इसका सहारा हमेशा लेते रहना होगा। जिस दिन आप ने अपने कर्मचारियों को डराना छोड़ दिया, उस दिन वे अनुशासन में रहना भी छोड़ देंगे। इस तरह से आपको डर का सहारा लेते रहना होगा और इससे आपकी कंपनी में जहर फैलता जाएगा। लोग आपको 'ना'कहने से पीछे हटेंगे, कंपनी की गलतियों के बारे में आपके सामने बात नहीं करेंगे और खुद की गलतियों पर भी परदा डालने की कोशिश करेंगे।
2016 के पोल में यह पता लगा कि अगर काम करने की जगह अच्छी ना हो, तो सिर्फ 13% लोग अच्छे से काम कर पाते हैं और 24% लोग दूसरा काम खोजने की कोशिश करते हैं। 2005 में यूएस डिपार्टमेंट आफ लेबर स्टडी में पता लगा कि अगर काम करने की जगह अच्छी ना हो तो लोग ज्यादा छुट्टियां लेते हैं और ज्यादा डिप्रेशन के शिकार होते हैं। जिस कंपनी के कर्मचारी तनाव में होंगे, क्या वो कंपनी कभी कामयाब हो सकेगी? इससे कंपनी की आमदनी 22% से कम हो सकती है। जब कर्मचारी काम करने में मन नहीं लगाते तो कंपनी की पर्फार्मेंस 17% से कम हो जाती है।
इसलिए बेहतर होगा कि हम डर का नहीं, बल्कि प्यार और सहानुभूति का सहारा लेकर अपने कर्मचारियों से काम करवाएँ। हमें उन्हें अपनी मरज़ी से काम करने की आजादी देनी चाहिए कंपनी के बारे में बोलने के लिए उत्साहित करना चाहिए। साथ ही एक लीडर को भी कभी अपनी कमियां नहीं छिपानी चाहिए, बल्कि खुलकर उसके बारे में बात कर के लोगों को प्रेरित करना चाहिए।
इससे पहले कि आप अपने बिजनेस को बदलें, आपको खुद को बदलना होगा।
एक बिजनेस उतना ही अच्छा होगा जितना अच्छा उसका लीडर होगा। इसलिए अगर आपको अपने बिजनेस को कामयाब बनाना है, तो आपको सबसे पहले खुद के अंदर बदलाव करने होंगे। अगर आपको यह सीखना है कि किस तरह से आप डर से राज करना छोड़कर प्यार से राज कर सकते हैं, तो आपको सबसे पहले खुद को समझना होगा।
हम जो भी करते हैं उसके पीछे हमारा एक बिलीफ सिस्टम होता है, जो कि हमसे वो काम करवाता है। एग्ज़ाम्पल के लिए बहुत से लोग 'ना'नहीं कह पाते। अब देखा जाए तो 'ना'बोलना कोई बड़ी बात नहीं है। आपके पास कोई व्यक्ति अपनी रिक्वेस्ट लेकर आया है, तो आप उसका काम करने के बजाय उसे ना कह दीजिए। यह करना तो आसान है, लेकिन फिर भी बहुत से लोग हर काम करने की कोशिश करते रहेंगे और एक भी काम अच्छे से नहीं कर पाएंगे।
इसके लिए सबसे पहले आपको यह देखना होगा कि आपका बिलीफ सिस्टम क्या है। हो सकता है आप अंदर से लोगों की मदद करने चाहते हों और इस वजह से आप उन्हें ना नहीं बोल पाते। अगर आप सब कुछ खुद करने की कोशिश करते हैं, तो हो सकता है आपको यह लगता हो कि दूसरे लोग आपके जितने काबिल नहीं हैं और वो इस काम को अच्छे से नहीं कर पाएंगे।
एक बार आप अपने बिलीफ सिस्टम को जान जाएंगे, तो उसे बदलने में आपको आसानी होगी और उसे बदलकर आप अपने काम करने के तरीके को अपने आप बदल देंगे। अगर आपको डर का सहारा लेने की आदत है, तो हो सकता है आप लोगों को काबू कर के रखने की कोशिश करना चाहते हों क्योंकि आपको लगता है कि वे आपकी बात को सीरियसली लेना छोड़ देंगे। इसे बदलकर आप प्यार का सहारा लेना सीख सकते हैं।
अपने बिलीफ सिस्टम को जानने के लिए आपको वर्टिकल लर्निंग का सहारा लेना होगा। हारिजान्टल लर्निंग वो होती है जिसमें आप अपनी काबिलियत को बेहतर बनाते हैं, जैसे किसी ऐसे काम को करना सीखना जो आपको नहीं आता। जबकि वर्टिकल लर्निंग में आप अपनी सोच को बेहतर बनाते हैं। वर्टिकल लर्निंग की मदद से ही आप खुद को समय के साथ बदलकर नए तरीकों से काम करना सीख पाएंगे। इससे आप खुद के बारे में ज्यादा जान पाएंगे।
वर्टिकल ग्रोथ का मतलब होता है खुद को अंदर से बदलकर नए माइंटसेट को अपनाना।
खुद को बदलने के लिए पहले खुद को समझना होगा। वर्टिकल लर्निंग कि मतलब होता है खुद के बारे में जानना। जब आप खुद को बेहतर तरीके से समझने लगते हैं तो आपको नए नजरिए मिलने लगते हैं और आप चीजों को बेहतर तरीके से देख और समझ पाते हैं।
कैरोलीन मिस नाम की लेखिका ने खुद को समझने के ऊपर बहुत सी किताबें लिखीं हैं। वे कहती हैं कि खुद को समझना बिल्डिंग के अलग अलग फ्लोर के जैसा है। जब आप खुद को बिल्कुल नहीं समझ रहे होते, तो आप पहले फ्लोर पर होते हैं जहां से आपको सिर्फ गार्डन दिखाई देता है। जब आप 20वें फ्लोर पर होते हैं तो आपको आधा शहर दिखाई देता है और जब आप 100वें फ्लोर पर होते हैं तब आपको शहर के पार का अनंत समुद्र भी दिखाई देता है।इस तरह से आप जितना ज्यादा खुद को समझते जाएंगे, उतनी ज्यादा दूर तक चीजों को देख और समझ पाएंगे।
लेकिन खुद को समझने के लिए आपको किस तरह का माइंडसेट अपनाना होगा? इसके लिए आपको इन 4 माइंडसेट्स को अपनाना होगा।साथ ही आपको अपने कर्मचारियों में और साथ काम करने वालों में भी इस माइंडसेट को डालना होगा।
सबसे पहले आता है कनेक्शन माइंडसेट। बहुत हे लोग दूसरों से ज्यादा घुलते-मिलते नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि धोखा खाने की सबसे बड़ी वजह है भरोसा करना। उन्हें लगता है कि हर कोई उनका फायदा उठाना चाहता है और इस वजह से वे किसी को अपने पास नहीं आने देते। आपको इस डर को छोड़कर कनेक्शन माइंडसेट को अपनाना होगा और लोगों से बेहतर रिश्ते बनाने होंगे।
इसके बाद आता है ग्रोथ माइंडसेट, जिसमें आप इस बात को समझते हैं कि लोग पहले से बेहतर बन सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी काम को बेहतर तरीके से नहीं कर पा रहा, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वो सारी उम्र ऐसा ही रहेगा। वो मेहनत कर के खुद को बेहतर बना सकता है।
इसके बाद आता है ट्रस्ट माइंडसेट, जिसमें आप इस बात को अपना लेते हैं कि कामयाबी की कोई गारंटी नहीं होती। आप इस बात को मान लेते हैं कि कभी कभी जिन्दगी से आपको बहुत से झटके मिल सकते हैं। कामयाबी कभी उन लोगों को मिलती ही नहीं जो सब कुछ पर्फेक्ट होने का इंतजार करते हैं और एक बार हारने पर रुक जाते हैं। इसलिए आपको नए तरीकों को खोजकर, रिस्क लेकर काम करना सीखना होगा।
अंत में आता है पर्पस माइंडसेट, जिसमें आप सिर्फ फायदा कमाने के लिए नहीं बल्कि किसी बड़ी वजह को दिमाग में लेकर काम करते हैं।
अपने मकसद को खोजने के लिए आपको माइंडफुलनेस प्रैक्टिस करना चाहिए।
पिछले सबक में हमने देखा कि आपको सिर्फ फायदे के लिए नहीं बल्कि कुछ बड़े मकसद के लिए काम करना चाहिए। अपने मकसद को खोजने के लिए आपको खुद से यह सवाल पूछना चाहिए - किस काम को करते वक्त मैं खाना, पीना और बाथरूम जाना भी भूल जाता हूँ?
अगर आपको पहले से पता है कि किस काम को करने में आप इतने खो जाते हैं, तो आपको अपने मकसद के बारे में भी पता है। लेकिन अगर आपको इसके बारे में नहीं पता है, तो आपको इन स्टेप्स को फालो करना चाहिए।
सबसे पहले अपने बचपन को याद कीजिए। यह सोचने की कोशिश कीजिए कि आपको बचपन में किस चीज़ को लेकर सबसे ज्यादा दुख हुआ था या फिर सबसे ज्यादा खुशी हुई थी। जब आप खुद से यह पूछेंगे, तो शायद आपको यह पता लगेगा कि जब जब आप ज्यादा खुश हुए थे, तब तब आप ने एक खास काम किया था। आपको एक पैटर्न देखने को मिल सकता है। हो सकता है आप तब सबसे ज्यादा खुश हुए हों जब आप ने किसी की मदद कर के उसे ऊपर उठाया हो।
इसके बाद दूसरों से अपने बारे में पूछिए। उनसे पूछिए कि उन्हें आपकी पसंद-नापसंद के बारे में क्या पता है। कभी कभी लोग आप में वो देख लेते हैं जो आप कभी खुद में नहीं देख पाते।
इसके बाद आपको इन दो कामों से जो कुछ भी पता लगे, उसे ज्यादा से ज्यादा पाँच पाइंट्स में लिख लीजिए। एक बार आप ने खुद के बारे में सब कुछ लिख लिया, तो आप उस में से वो एक लाइन निकालने की कोशिश कीजिए जिसे सुनने के बाद आपको लगे कि आप सारी उम्र बस यही करना चाहते हैं। हो सकता है आपकी वो एक लाइन हो - लोगों की मदद कर को उन्हें जिन्दगी में कामयाब बनाना।
अगर आपको अब भी यह पता ना लगे कि आपका मकसद क्या है, तो आप माइंडफुलनेस प्रैक्टिस कीजिए। आप चाहें तो हर रोज ध्यान भी कर सकते हैं। इससे आप हर रोज खुद के अंदर झाँकने का मौका मिलेगा और आप दिन भर के शोर को साइड में रखकर खुद को कुछ समय के लिए शांति भी दे सकते हैं।
अपनी कंपनी को बदलने से पहले आपको अपनी कंपनी के कल्चर को बदलना होगा।
कंपनी के कल्चर को बदल देने से आप एक ऐसा माहौल बना देते हैं जिससे लोग उसमें खुलकर साँस ले सकें और अपनी बात को आजादी से कह सकें। कंपनी का कल्चर उसके डीएनए के जैसा होता है और कंपनी के काम करने का तरीका उसके शरीर के अंग। जैसा कि आपको पता होगा, कि जब किसी व्यक्ति की किडनी खराब होती है, तो हमें उसे दूसरी किडनी लगानी होती है। लेकिन वो दूसरी किडनी वही किडनी हो सकती है जो कि उसकी किडनी से मैच खाए। किसी दूसरी तरह की किडनी उस व्यक्ति के शरीर में कभी काम नहीं करेगी।
ठीक उसी तरह से, अगर आपको अपनी कंपनी के काम करने का तरीका बदलना है, तो सिर्फ तरीका बदलना कभी भी काम नहीं करेगा। बेहतर तरीके को अपनाने के लिए आपको सबसे पहले अपनी कंपनी का डीएनए, यानी कि उसका कल्चर बदलना होगा। एग्ज़ाम्पल के लिए, अगर आपकी कंपनी का कल्चर डर है और लोग गलतियां करने से पीछे हटते हैं, तो इस तरह के कल्चर में क्रिएटिविटी लाने की कोशिश करना बेकार है। वो लोग नई चीजें कभी ट्राई नहीं करने वाले क्योंकि वो गलतियां करने से डरते हैं।
अगर आपको यह जानना है कि आपकी कंपनी का कल्चर इस समय क्या है, तो खुद से पूछिए कि लोग किस तरह से बात कर रहे हैं। क्या लीडर्स और कर्मचारियों के बीच में आराम से बात हो पाती है? क्या कर्मचारी लीडर्स के सामने खुलकर बोल पाते हैं?
साथ ही आप अपनी कंपनी के डिजाइन को भी देखिए। अगर सारे कर्मचारी एक तरफ साथ में काम करते हैं और मैनेजर के लिए एक अलग केबिन किसी दूसरे फ्लोर पर है, तो यह अच्छे कल्चर की निशानी नहीं है क्योंकि ऐसे कल्चर में दोनों लोगों से अच्छे से बात नहीं हो पा रही है। साथ ही आप यह भी देखिए कि कंपनी के सबसे आम कर्मचारियों के साथ, जैसे रिसेप्शनिस्ट और गार्ड के साथ किस तरह का बर्ताव किया जाता है। कंपनी का कल्चर अक्सर इन्हीं छोटी छोटी बातों में छिपा होता है।
कंपनी में बदलाव लाने के लिए आपको सबसे पहले लोगों को बातचीत करने के लिए प्रेरित करना होगा।
बदलाव लाना आसान होता है, लेकिन उस बदलाव को बरकरार रखना मुश्किल काम है। इसलिए आपको अपनी कंपनी के स्ट्रक्चर को कुछ इस तरह से बदलना होगा ताकि हर कर्मचारी उसे अपना सके और उसमें सुकून से काम कर सके।
इसके लिए सबसे पहले आपको लोगों के बीच और डिपार्टमेंट के बीच में बातचीत शुरू करानी होगी। बहुत सी कंपनियों में हर डिपार्टमेंट अपने हिसाब से काम करता है। मार्केटिंग की टीम अपने हिसाब से मार्केटिंग करती है और कभी कभी वो उन फीचर्स को भी ऐड में दिखा देती है जिसे इंजीनियरिंग की टीम ने प्रोडक्ट में डाले ही नहीं।
इसलिए आपको सबसे पहले एक ऐसे व्यक्ति को काम पर रखना होगा जो कि एक डिपार्टमेंट की जानकारी को दूसरे डिपार्टमेंट में पहुंचा सके ताकि हर डिपार्टमेंट को यह पता लगता रहे कि कंपनी के दूसरे हिस्सों में क्या हो रहा है। इस कर्मचारी को लीड लिंक कहा जाता है।
इसके अलावा आप अपने कर्मचारियों को खुद से टीम बनाकर और खुद से प्लान बनाकर काम करने की आजादी दे सकते हैं। अगर एक नया प्रोजेक्ट हाथ में आया है, तो आप अपने कर्मचारियों को यह आजादी दीजिए कि वो उन लोगों को अपनी टीम में लें सकें जो कि उस काम के लिए काबिल हैं। उन्हें आप खुद से अपनी टीम का लीडर चुनने की आजादी दीजिए। वे खुद से प्लान बनाएंगे और जरूरत पड़ने पर खुद से उसमें बदलाव भी करेंगे।
इस तरह से काम करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे आपके कर्मचारियों के बीच में खुलकर बातचीत हो पाती है और उन्हें आजाद होकर काम करने में मजा आता है। इससे वे काम करने के लिए बहुत ज्यादा प्रेरित हो जाते हैं और खुद से जिम्मेदारी लेना सीखकर अच्छे नतीजे पैदा कर पाते हैं।
लेकिन इस तरह से काम करने का नुकसान यह है इससे यह नहीं पता लग पाता कि कौन सा कर्मचारी सबसे अच्छा काम कर रहा है और किसे इनाम देना चाहिए। साथ ही आपके कर्मचारी ऐसा तभी कर पाएंगे जब वे खुद से इसे करने के लिए तैयार होंगे। हर कोई जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता और किसी को जबरदस्ती जिम्मेदारी देने का मतलब खुद का नुकसान कराना होता है।
लेकिन इस काम को करने का फायदा इस काम को करने के नुकसान से बहुत ज्यादा है।
अपने नए स्ट्रक्चर को संभालने के लिए आपको कुछ नए तरीकों को भी अपनाना होगा।
जैसा कि हमने पिछले सबक में कहा, बदलाव को लाना तो आसान होता है लेकिन उसे बरकरार रखना मुश्किल। जब आप अपनी कंपनी के काम करने पुराने तरीकों को छोड़ेंगे तो उसके साथ आपको बहुत सी चीजों को छोड़ना होगा।
इसमें सबसे पहले आपको नौकरी के टाइटल को हटाना होगा। कंपनी में अक्सर यह पहले से तय होता है कि कौन सा कर्मचारी क्या काम करेगा। उसके काम के हिसाब से उसे एक टाइटल दे दिया जाता है। इस तरह से कंपनी की फ्लेक्सिबिलिटी खत्म हो जाती है और नए हालात के साथ बदलाव लाना मुश्किल हो जाता है।
इसलिए आपको टाइटल को हटाकर रोल को अपनाना होगा। एक प्रोजेक्ट पर काम करते वक्त एक व्यक्ति अपनी काबिलियत के हिसाब से अपना रोल निभाएगा। प्रोजेक्ट के हिसाब से उस व्यक्ति के रोल भी बदल सकते हैं।
इस तरह से वो व्यक्ति सिर्फ एक तरह का काम नहीं कर रहा है बल्कि जरूरत के हिसाब से खुद को बदल रहा है। बहुत बार जब आप किसी कर्मचारी से कोई दूसरा काम करने के लिए कहते हैं, तो वो आपको जवाब देता है - वो मेरा काम नहीं है। टाइटल को हटाकर लोगों को रोल देने से आप उन्हें अलग अलग जगह पर काम पर लगा सकते हैं। इससे बदलाव लाने में आसानी होती है। आप कंपनी के इस समय की जरूरतों को देखते हुए अपने लोगों को नए काम और नई जिम्मेदारियां दे सकते हैं। इससे आपके कर्मचारी आपस में ज्यादा बात कर पाएंगे और बदलाव को अपना पाएंगे।
इसके बाद आप सिर्फ ऊपर के लोगों को जरूरी फैसले लेने से रोकिए। एक लीडर हर तरह के हालात में सही फैसले नहीं ले सकता। उसे हर सवाल का जवाब पता हो यह जरूरी नहीं है। इसलिए आप अपने कर्मचारियों को यह आजादी दीजिए कि दे खुद से कुछ फैसले ले सकें। इसके लिए आप एडवाइस प्रासेस को अपनाना होगा।
इसमें जब भी एक कर्मचारी किसी परेशानी को देखता है, तो वो अपनी टीम के लोगों से उसके बारे में बात करता है। इसके बाद वो एक प्रपोसल डालते हैं और फिर पूरी टीम मिलकर उसका एक समाधान निकालती है। अगर उससे उनकी परेशानी सुलझ जाती है, तो वो उस तरीके को बिना किसी से पूछे अपना लेते हैं।
या फिर अगर आप चाहें तो अपने कर्मचारी से कह सकते हैं कि वे खुद से समाधान निकाल लें लेकिन उसे लागू करने से पहले अपने मैनेजर से एक बर बात कर लें। इस तरह से आपके कर्मचारी भी कुछ जरूरी फैसले ले पाएंगे। इस तरह से फैसले लेना भी ज्यादा बेहतर भी होता है क्योंकि अब समाधान वो व्यक्ति निकाल रहा है जो कि उस परेशानी से परेशान है, ना कि वो जो कि सारा दिन अपनी केबिन में रहता है।
जिन कंपनियों के लीडर्स प्यार का सहारा लेकर लोगों को प्रेरित करते हैं, वो कंपनियां बहुत कामयाब होती हैं।
हमने अब तक जिन जिन तरीकों की बात की, क्या उन तरीकों को कोई कंपनी इस्तेमाल कर रही है या यह सिर्फ किताबी बाते हैं? इन तरीकों को स्क्राइब नाम की कंपनी इस्तेमाल कर रही है और उसे इससे बहुत फायदा होता है।
स्क्राइब एक पब्लिशिंग कंपनी है जो कि किताबें छापने का काम करती है। इस कंपनी में वे उन लोगों को गाइड करते हैं जो कि एक लेखक बनना चाहते हैं। स्क्राइब के एक प्रोग्राम का नाम है होल सेल्फ प्रोग्राम, जो कि हर 6महीने पर एक बार होता है। इसमें कंपनी के सारे लोग इकठ्ठा होते हैं ताकि वे एक नए कर्मचारी के बढ़ने और बेहतर काम कर सकने के तरीके के बारे में बात कर सकें।
इस प्रोग्राम की शुरुआत में सबसे पहले इस बारे में बात की जाती है कि उनकी टीम के उस व्यक्ति में कौन कौन सी खास बात है। वो उसकी कमियों और उसकी खूबियों के बारे में बात करते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं उसे कहाँ पर आगे बढ़ने में रुकावट का सामना करना पड़ रहा है। एक बार उसकी कमियां पकड़ में आ जाए, तो कंपनी उसे एक मेंटर देती है जो के उसके साथ काम कर के उसे बेहतर बनाने की कोशिश करता है।
इसके अलावा उनके यहाँ एक प्रीकोलैब होता है जिसकी मदद से वे अपनी कंपनी के लोगों को अच्छे से समझने की कोशिश करते हैं। इस प्रोग्राम की मदद से कर्मचारी एक दूसरे को अच्छे से जानकर उनसे बेहतर तरीके से बात करना सीखते हैं जिससे उनके बीच का भरोसा बढ़ता है।
इसके बाद ही उनके यहाँ ओपेन टीम मीटिंग भी होती है जिसमें कंपनी के कर्मचारियों के रिश्तेदार, घरवाले और परिवार वाले साथ मिलते हैं। इस मीटिंग के दौरान कर्मचारी एक दूसरे के परिवार को भी अच्छे से जान जाते हैं और उन्हें उनके घर के हालात के बारे में भी पता लगता है, जिससे कंपनी के अंदर ट्रांसपैरेंसी बढ़ती है। प्रीकोलैब में इससे कंपनी को अपने लोगों के बारे में बहुत सारी जानकारी हासिल होती है और वो इसकी मदद से उन्हें बेहतर तरीके से ट्रीट कर पाते हैं।
कुल मिलाकर
डर का सहारा लेने से आपकी कंपनी का कल्चर खराब हो जाता है जबकि प्यार कि सहारा लेने से आप अपने कर्मचारियों को प्रेरित कर के उनसे पहले से बेहतर तरह से काम करवा सकते हैं। कंपनी के कल्चर को पहले से बेहतर बनाने को लिए आपको उसे स्ट्रक्चर में और उसके काम करने के तरीके बदलाव करना होगा। ऐसा कर के ही आप इस नए बदलाव को बरकरार रख पाएंगे।
अगली बार जब आप एक गलत आदत को बदलने की कोशिश कर रहे हों, तो सोचिए कि उसका उल्टा करने के क्या नतीजे हो सकते हैं।
अगली बार जब आप किसी मीटिंग में हों, किसी की बात से सहमत ना हों और बोलने में कतरा रहे हों, तो सोचिए कि अगर आप बोल देंगे तो क्या हो जाएगा। आप खुद से यह पूछ सकते हैं - किस डर की वजह से मैं यह काम नहीं कर रहा हूँ? हो सकता है कि आपको लग रहा हो कि अगर आप उनसे सहमत नहीं होंगे तो वो आपको पसंद नहीं करेंगे। एक बार आपको यह पता लग जाए कि आप किस वजह से वो काम नहीं रहे हैं, तो आपको उस काम को करने में आसानी होगी।