Built to Last

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Built to Last

Jim Collins and Jerry I. Porras
विजनरी कम्पनियों की सफलता के गुर

दो लफ़्ज़ों में
बिल्ट टू लास्ट (1994) में लगभग दो शताब्दियों पुरानी अठारह जबर्दस्त सफल कम्पनियों की समीक्षा की गई है कि किस तरह से वे इतनी अमीर बनी. इस स्टडी को पढकर आप जान जायेंगे कि ये कम्पनियाँ अपने कम्पीटीटर्स से क्यों और कैसे ज्यादा सफल हुई? इसके टाइटल बिल्ट टू लास्ट से आप हर आर्गेनाइजेशन के प्रत्येक लेवल का का अर्थ समझ सकते हैं. सी ई ओ से लेकर रेगुलर एम्प्लोयीज तक और फार्च्यून 500 कम्पनियों से लेकर शुरूआती छोटे और चैरिटेबल फाउंडेशन तक.

ये किताब किन्हें पढ़नी चाहिये?
- जिन्हें ये जानने में रूचि है कि विजनरी कम्पनियाँ किस तरह लम्बे समय तक सफल बनी रहती है.
- वे जिन्हें अपनी कंपनी, संगठन व डिपार्टमेंट को और नये उद्देश्यों से लैस बनाना है.
- जिन्हें सफलता के कुछ नये पॉजिटिव चेंज और अपनी कंपनी की कम्युनिकेशन वेल्यूज को बढ़ाने के लिए वास्तविक टूल्स चाहिये.

लेखक के बारे में 
जिम कॉलिंस अमेरिका के एक प्रख्यात लेखक, लेक्चरर और कंसल्टेंट हैं. उन्होंने स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ बिजनेस में पढ़ाने के अलावा फार्च्यून, बिजनेस वीक व हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में भी अपना योगदान दिया है. 

‘गुड टू ग्रेट’ नामक उनकी किताब की तो चालीस लाख प्रतियाँ बिक चुकी है.जेरी आई पोर्रस एक बिजनेस एनालिस्ट और शिक्षाविद हैं. वे स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ बिजनेस में आर्गेनाइजेशनल बिहेवियर एंड चेंज के प्रोफेसर हैं. कंपनी के उद्देश्यों और मूल्यों के बारे में मेथड्स तैयार करने में उनकी प्रमुख रूचि है.विजनरी कम्पनियाँ भी अपनी सफलता से बहुत कुछ सिखाती हैं
हालाँकि इन्हें नाम विजनरी कंपनी मिला है पर लेकिन उनके पास सिखाने को काफी कुछ है. इनकी सक्सेस का ट्रैक रिकॉर्ड काफी अच्छा होता है और इन्हें अपनी इंडस्ट्री में बेहद खास मुकाम हासिल होता है. इसकी सफलता टिकाऊ होने के साथ ही ये फलती फूलती हैं. इन कम्पनियों की ठीक से स्टडी करके सीखने के लिये दोनों लेखकों ने पहले चुनिन्दा कम्पनियों के सी ई ओज का सर्वे करके उन कम्पनियों की पहचान की. उनमें से अठारह जानी-मानी फर्म्स को उन्होंने स्टडी में शामिल किया जिनमें वाल्ट डिज्नी, मैरियट होटल्स, मेर्क्क जैसे नाम शामिल है. इन विजनरी कम्पनियों को उन्हीं कम्पनियों के साथ पेयर किया गया जो हूबहू वही प्रोडक्ट बनाती थी. इस सर्वे में वे विजनरी कम्पनियाँ शामिल की गई जो पूरी तरह से पिछड़ी हुई नहीं थी.

कम्पनियों के ये दोनों ही ग्रुप उनके स्थापित होने के टाइम के अनुसार बनाए किये गए. दोनों ही ग्रुप्स में वह कम्पनियाँ शामिल की गई जो 1890 के आस-पास शुरू की गई थीं. उन्होंने इन कम्पनियों के इंटरव्यू, एन्युअल रिपोर्ट, फिनेंशियल स्टेटमेंट्स, न्यूज़ आर्टिकल व दूसरे सोर्सेज से बहुत-सा डेटा कलेक्ट करके इनके ओनरशिप स्ट्रक्चर व कल्चर की स्टडी की.

आप इन विजनरी कम्पनियों की सफलता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि अगर आपने 1926 में यहाँ एक डॉलर इन्वेस्ट किया तो 1990 में इसकी कीमत बढ़कर $6,356 हो गई. कम्पेरिजन कंपनी में इन्वेस्ट किये गए $955 से तुलना की जाये तो अगर आपने जनरल मार्केट में महज $415 ही लगाये है. इस तरह आप खुद देख सकते हैं कि विजनरी कम्पनीज का प्रदर्शन कितना जोरदार रहा है.

इस स्टडी में फार्च्यून 500 कम्पनियों की सफलता के सारे गुर वर्णित है. हम विजनरी कम्पनियों की सफलता से भी बहुत-कुछ सीख सकते हैं.

ज्यादातर लोग सोचते है कि विजनरी कम्पनियों की सफलता के पीछे महान आईडिया होते हैं जो कि एक गलत विचार है.

सोनी के फाउंडर को तो ये तक नहीं पता था कि वे कौनसे प्रोडक्ट बनायेंगे. उन्होंने कंपनी स्थापित करने के बाद बिजनेस आइडियाज की समीक्षा के लिए एक सेशन रखा; जहाँ स्वीट बीन पास्ता से लेकर गोल्फ इक्विपमेंट पर बिजनेस करने पर विचार हुआ.

Hewlett-Packard (HP) को स्थापित करते समय बिल हेवलेट और डेव पैकार्ड के दिमाग में भी कोई निश्चित विचार नहीं था. उन्होंने बहुत से विचारों पर एक्सपेरिमेंट किये जिनमें आटोमेटिक यूरिनल फ्लश से लेकर गेम्स में होने वाली फ़ाउल-लाइन इंडिकेटर पर विचार किया गया.

तो इस प्रकार आप देख सकते है कि कोई विजनरी कंपनी शुरू करने के लिए ग्रेट आइडियाज नहीं चाहिये.

इसी तरह इन कम्पनियों में हाई-प्रोफाइल और करिश्माई लीडर्स भी नहीं चाहिये. वहाँ जमीन से जुड़े, विनम्र और गंभीर लोगों की जरूरत होती है.

तो अब सवाल उठता है कि आखिर लम्बे समय तक सफल रहने का राज क्या है? बहुत-सी कम्पनियों में न बड़े लीडर्स की कमी होती है न ही ग्रेट आइडियाज की लेकिन वे विजनरी कम्पनियों से पीछे रह जाते हैं. आखिर क्या कारण है?

विजनरी कम्पनीज एक दमदार प्रोडक्ट और एक दमदार लीडर के बजाय बहुत-से ग्रेट विचारों और ग्रेट लीडर्स पर फोकस करती है तभी वे सफल होती है. वहाँ ‘मैं’ नहीं ‘हम’ को महत्व दिया जाता है. फाउंडर सिर्फ  प्रोडक्ट में नहीं उलझते बल्कि कंपनी पर फोकस करते हैं. वे एक प्रोडक्ट और व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहते.

आप जब भी दीवार पर टंगी घड़ी को देखते है, तुरंत ही आपको समय का पता चल जाता है. बस इसी तरह कोई भी शानदार विचार और विजनरी लीडर भी आपको तुरंत मोटिवेट करते हैं. इस तरह से किसी आर्गेनाइजेशन को बनाना वैसा ही है जैसा अपनी घड़ी बनाना जहाँ के शानदार आइडियाज की बदौलत आप जब चाहे अपना समय देख सकते हैं.

विजनरी कंपनी को प्रॉफिट से ज्यादा अपनी पहचान की फ़िक्र होती है, लेकिन फिर भी वे प्रॉफिट में होती है.
विजनरी कम्पनियों का उद्देश्य सिर्फ रूपये कमाना नहीं होता है. उन्हें अपनी वेल्यूज को मेंटेन रखते हुए मार्केट में टिके रहना होता है. इस तरह उनके सिद्धांत निश्चित हो जाते हैं और वे पीढ़ियों तक टिकी रहती हैं. आप इन्हें अमेरिकन डिक्लेरेशनऑफ़ इंडिपेंडेंस के “ट्रुथ”  भी कह सकते हैं. आप इससे मिलता-जुलता उदहारण जॉनसन एंड जॉनसन फार्मास्युटिकल कंपनी का ले सकते हैं. 1935 में इसके सीईओ रोबर्ट डब्ल्यू. जॉनसन ने कंपनी की कोर आइडियोलॉजी को “आर क्रेडो” (Our Credo) नामक डॉक्यूमेंट में लिखा था; जिन्हें कंपनी की जिम्मेदारियाँ माना गया. पहली जिम्मेदारी – कस्टमर्स के प्रति, दूसरी – एम्प्लोयीज के प्रति और आगे भी इसी तरह सबके प्रति. पांचवी और अंतिम जिम्मेदारी – शेयरहोल्डर्स के प्रति दिखाई गई. जॉनसन ने उन्हें उनका उचित रिटर्न देने की बात कही.

ज्यादातर विजनरी कम्पनियों के बारे में स्टडी में यही बात सामने आई कि उनका मुख्य लक्ष्य सिर्फ प्रॉफिट नहीं है. कुछ सिद्धांत लचीले तो कुछ कठोर – लेकिन लेकिन विजनरी कम्पनियों ने विनम्र रहकर निर्णय लिए. रूपये भी कमाये और अपने सिद्धांतों का भी पालन किया.

इस तरह के सिद्धांत सिर्फ प्रॉफिट कमाने में ही काम नहीं आते बल्कि उस समय भी आड़े आते हैं जब जब कंपनी किसी मुसीबत में हो. 1980 में जब फोर्ड को कठिन संकट का सामना करना पड़ा था तो उनकी मैनेजमेंट टीम ने जूझने के बजाय काम रोककर डिसकशन किया और ये स्पष्ट किया कि कंपनी किस सिद्धांत पर बनी है और किस तरह इसके फाउंडर – हेनरी फोर्ड के बनाये मूल्य कायम रह सकते हैं. जबकि इनकी प्रतिद्वंदी कंपनी – जनरल मोटर्स ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की.

हमने जितनी भी विजनरी कम्पनियों को स्टडी किया; सबका कंटेंट और सिद्धांत अलग-अलग मिला. वैसे कंटेंट का भी ज्यादा महत्व नहीं है. ज्यादा महत्वपूर्ण तो ये है कि वे किन सिद्धांतों पर काम करते हैं.

तो इस तरह हमने देखा कि रुपयों के पीछे न भागने पर विजनरी कम्पनियाँ अच्छा लाभ कमाती है.

अब जब कंपनी सिद्धांतो पर कायम भी रहेगी और ये बात नजर भी आयेगी तो सफलता तो लाजिमी ही है. साथ में प्रोग्रेस के लिए चेंज भी अपनाये जाते हैं. उदहारण के लिए वाल-मार्ट का सिद्धांत है – “कस्टमर सेटिस्फेक्शन को बढ़ाना”. वे इससे समझौता नहीं करते लेकिन एंट्रेंस पर कस्टमर्स को ग्रीट करना – केवल एक प्रयोग है जिसे वे जब चाहे चेंज भी कर सकते हैं.

जैसे मैकेनिकल फ्लाइट और एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री में बोईंग जाना-माना नाम है लेकिन जम्बो जेट बनाने के निर्णय को वे अपनी सुविधा से बदल सकते हैं.

इस तरह ये विजनरी कम्पनियाँ फ्लेक्सिबल होती है. किसी भी ऐसे निर्णय पर अडिग नहीं रहती जो इन्हें नये प्रयोग करने और डवलप होने से रोके. और यह अपना मूल सिद्धांत भी नहीं छोडती.

अपने मार्गदर्शन के लिए इनके पास अपने ही सिद्धांत होते हैं लेकिन अपने प्रोडक्ट, बिजनेस और आर्गेनाइजेशन को इम्प्रूव करने के लिए ये स्ट्रिक्ट होती हैं. वहाँ ये कोई समझौता नहीं करती. मैरियेट कारपोरेशन के फाउंडर – जे. विलार्ड मेरियट का सिद्धांत था – जब तक मौत न आये हमेशा कुछ क्रिएटिव करते रहो. हर दिन को अपना अंतिम दिन समझो.” लगातार प्रोग्रेस करने के लिए ऐसा ही कमिटमेंट चाहिये.

विजनरी कम्पनियाँ इसी तरह के सिद्धांतों पर चलकर अपने लक्ष्य निर्धारित करती हैं और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए ठोस काम करती हैं. इस तरह वे बेहतर होती जाती है.

इस तरह विजनरी कम्पनियाँ मूल सिद्धांतों पर कायम रहती है और बेहतर व सफल होने के लिये छोटे-छोटे परिवर्तनों को अपनाती है.

प्रोग्रेस के लिए विजनरी कम्पनियों का लक्ष्य लॉन्ग टर्म होता है.
सफलता को स्थाई बनाने के लिए ये कम्पनियाँ काफी साहसिक लॉन्ग टर्म लक्ष्य निर्धारित करती हैं. सिर्फ निर्धारित ही नही; वे उन्हें पूरी तरह से लागू भी करती हैं. ये लक्ष्य कभी-कभी इतने महत्वाकांक्षी होते हैं कि अनरियलिस्टिक भी लगते है. लेकिन आर्गेनाइजेशन के लिए वे स्पष्ट, फोकस करने लायक और ऊर्जा से भरे होते हैं.

कॉर्पोरेट से हटकर ऐसा ही लॉन्ग टर्म विजन 1961 में जॉन ऍफ़ केनेडी ने देखा था. उन्होंने दावा किया कि अमेरिका एक व्यक्ति को चाँद पर भेजेगा और दशक के अंत तक वापस ले आयेगा. उस समय ये एक बहुत ही साहसिक घोषणा थी.

बोईंग के लक्ष्य भी काफी साहसिक थे जिसमें 747 जेट को डवलप करना भी शामिल है. उन्होंने नतीजे की परवाह किये बिना इस पर काम किया. सीईओ ने यहाँ तक सोच लिया कि जेट बनाने में अगर पूरी कंपनी को जुटना पड़े तो भी वे पीछे नहीं हटेंगे. ऐसा समय भी आया जब इनके 86,000 लोग –60% कर्मचारी बेकार बैठे रहे क्योंकि प्लेन की सेल्स बहुत कम हुई.

इसी तरह से कम्प्यूटर टेब्युलेटिंग रिकॉर्डिंग कंपनी के फाउंडर; थॉमस जे वाटसन ने अपनी कंपनी का नाम ही बदल देने का खतरा उठाया. ये कंपनी कॉफ़ी ग्राइंडर व बूचर स्केल्स बेचती थी. इन्हें पूरे विश्व में अपनी पहचान बनानी थी. आज इन्हें इंटरनेशनल बिजनेस मशीन्स (आईबीएम) के नाम से सब जानते हैं.

कभी कभी ये लक्ष्य इतने लम्बे समय तक चलते हैं कि लोगों कि जान चली जाती है. लेकिन ये कम्पनियाँ इतनी समर्पित रहती हैं कि नये सीईओ, डायरेक्टर्स आते हैं–चले जाते है पर इस पर काम चलता रहता है. केनेडी के मरने के बाद भी स्पेस प्रोग्राम चलता रहा.

तो निष्कर्ष है कि सफलता का रहस्य है लॉन्ग टर्म गोल्स बनाना और उन पर निरंतर काम करना हैं.

कभी-कभी ये अपने लक्ष्य के लिए बेहद जूनून दिखाती हैं. उनका कॉर्पोरेट कल्चर भी अलग हो जाता है. नये एम्प्लोयीज जल्दी-से अपने कलीग्ज से घुल-मिल जाते हैं. उन्हें समझाया जाता है कि वे कंपनी केअंदरूनी कामकाज के तरीके किसी को न बताएं.

ये एम्प्लोयीज भी पूरी निष्ठा से इस संकल्प को पूरा करने में जुट जाते हैं. अब आई बी एम का ही उदहारण ले लीजिये. यहाँ जब नए मैनेजर्स को ट्रेनिंग दी जाती है तो वे दोहराते हैं:

“आईबीएम के साथ आगे बढ़ो,

साथ मिलकर मेहनत करो…”

इसी तरह वाल्ट डिज्नी के कर्मचारियों से भी उम्मीद की जाती है कि वे कंपनी के सिद्धांतों का दिल से पालन करें. यहाँ के थीम पार्क में वे ढाढ़ी-मूंछ वालों को नहीं रखते और वाल्ट डिज्नी की मौजूदगी में कोई भी अभद्र शब्द नहीं बोल सकता था, ऐसा होने पर उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया जाता था.

कंपनी के ऐसे नियमों का पालन नहीं करने वाले कर्मचारियों के लिए वहाँ कोई जगह नहीं है. नये कर्मचारी खुद ही परख लेते है कि वे वहां टिक पायेंगे या नहीं. ऐसे में तुरंत वहाँ से निकल जाते हैं. इस तरह विजनरी कम्पनियों में किसी तरह का समझौता नहीं किया जाता है.

नए एम्प्लोयीज को एक्सपेरिमेंट करने की आजादी भी मिलती है जिससे उनमें आत्मविश्वास आता है कि वे कम्पनी के सिद्धांतों का पालन कर पायें. इससे विकास को बढ़ावा मिलता है और कंपनी में जड़ता नहीं आती.

हालाँकि विजनरी कंपनी को हम व्यक्तित्व विकास का केंद्र नहीं कह सकते क्योंकि ये किसी सी ई ओ व फाउंडर पर ही केन्द्रित न होकर कंपनी के सिद्धांतों पर आधारित होती है.

विजनरी कम्पनियों को हम कल्ट भी कह सकते हैं क्योंकि यहाँ नये रीक्रूट्स या तो टिकते है या चले जाते हैं.

विजनरी कम्पनियों से लगातार प्रतिभाशाली लीडर्स निकलते हैं.
अक्सर स्टडी में ये बात सामने आती है कि विजनरी कम्पनियों में काम करने वाले सी ई ओ बेहद टैलेंटेड हो जाते हैं. काम के साथ उनकी प्रतिभा भी निखरती है.

ये आर्गेनाइजेशन प्रबंधन का टैलेंट निखारने पर काफी मेहनत करते हैं. ताकि आने वाले नये लीडर्स कंपनी के सिद्धांतो को समझकर उसके अनुसार काम कर सके. अगर कोई अनहोनी होने की आशंका भी हो तो ये कम्पनियाँ लीडरशिप को एक के बाद एक आगे बढ़ाती रहती है.

अगर जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी (जीई) का उदहारण लें तो पता चलेगा कि इसके सीईओ जैक वेल्श ने रिटायर होने के सात साल पहले सक्सेशन का प्लान बनाया था. कंपनी खुद सीईओ सक्सेशन व इंटरनल मैनेजमेंट ट्रेनिंग को महत्व देती थी इसलिए जनरल इलेक्ट्रिक को पूरी शताब्दी तक वेल्श जैसे टैलेंटेड सी ई ओ मिलते रहे. जीई के बहुत-से अल्युमिनि ने अमेरिका की अलग-अलग कम्पनियों में काम किया और उन्हें बहुत तारीफ मिली. इसी तरह मोटोरोला के सीईओ बॉब गल्विन ने भी नेकस्ट जेनेरेशन के लिए प्लान करना शुरू कर दिया.

अब अगर प्रतिद्वंदी कम्पनियों की बात करें तो वहाँ बाहर से सीईओ को हायर किया जाता है जो कंपनी के साथ ज्यादा जुड़े नहीं होते. वे अक्सर इसे अपने तरीके से चलाने की कोशिश करते हैं. इसे पूरी तरह से गलत दिशा में ले जाते हैं. इस तरह के बाहरी सीईओ अपनी तानाशाही चलाते है और उन्हें आगे भी अच्छे लीडर्स तैयार करने की परवाह नहीं होती. इससे उनके जाने के बाद कंपनी की लीडरशिप में कमियाँ रह जाती हैं. कुछ सीईओ तो इतने अजीब होते हैं कि वे सक्सेशन प्लानिंग को बिगाड़ देते हैं और आगामी कैंडिडेट्स को परेशान करते हैं. ऐसे सीईओ जब पोजीशन छोड़ते हैं तो कंपनी लड़खड़ा जाती है.

चार्ल्स डार्विन की ये खोज तो हम सभी को पता ही है कि सफल एक्सपेरिमेंट्स की सीरिज ही विकास है जिसमें अलग-अलग प्रजातियाँ होती है, जो प्रजाति सबसे मजबूत होती है, वही जीवित रहती है. इसी तरह हमने जिन विजनरी कम्पनियों की स्टडी की तो पता चला कि उनका भी बिजनेस में ऐसे ही क्रमिक विकास हुआ है. उन्होंने अपने मैनेजमेंट और एम्प्लोयीज को नये विचारों, प्रोडक्ट्स पर एक्सपेरिमेंट करने की छूट दी. जिनमें से कुछ बहुत-ही सफल साबित हुए.

आप जॉन्सन एंड जॉन्सन का उदहारण लीजिये. वे बैंड एड बनाने के लिए प्रसिद्ध है. इसकी शुरुआत होने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. एक एम्प्लोयी की पत्नी कीअंगुली किचन में काम करते समय जख्मी हो गई. उसने तुरंत पट्टी लगाकर उस पर सर्जरी वाली टेप लगा दी. उसने ये आईडिया जब कम्पनी के मार्केटिंग डिपार्टमेंट को बताया तो बैंड एड का निर्माण हुआ जो आगे चलकर कंपनी का बेस्ट सेलिंग प्रोडक्ट बना.

इसी तरह 3M ने भी अपने एम्प्लोयीज को अपना 15 पर्सेंट वर्किंग टाइम अपने पसंदीदा पेट् प्रोजेक्ट पर लगाने को कहा. इस तरह दो एम्प्लोयीज के प्रोजेक्ट्स को जब मिलाया गया तो प्रसिद्ध Post-It Notes का निर्माण हुआ. अगर कंपनी इस तरह के एक्सपेरिमेंट की अनुमति नहीं देती तो ये प्रयोग कभी सफल नहीं होता. वहीँ 3M की प्रतिद्वंदी कंपनी - नॉर्टन ने कभी इस तरह के प्रयोग की अनुमति नहीं दी.

वैसे जरूरी नही कि सभी वेरिएशन सफल ही हो क्योंकि जॉन्सन एंड जॉन्सन को भी असफलता का मुँह देखना पड़ा था.  उन्होंने एक ऐसा प्रोडक्ट लांच किया जिससे वह बच्चे जिनकी हड्डी टूट गई थी, हॉस्पिटल की बेडशीट को रंग कर अपने हाथ पर लगे प्लास्टर पर लगा सकते थे. लेकिन इससे अस्पताल की लांड्री का काम बढ़ गया और यह चला नहीं.

लेकिन विजनरी कम्पनियों ने विकास के लिए इन असफल एक्सपेरिमेंट्स को जरूरी माना. उन्होंने इन्हें जारी रखा.

विजनरी कम्पनियाँ डींगे न हाँककर, वास्तव में काम करती है.
ज्यादातर कम्पनियाँ ये दावा तो करती है कि वे आदर्शों को व्यवहार में लागू करती है लेकिन वास्तव में ऐसा देखने को कम ही मिलता है. लेकिन स्टडी में ये साबित हुआ है कि विजनरी कम्पनियाँ वास्तव में ऐसा करती हैं. एम्प्लोयीज के हित में मैकेनिज्म क्रिएट करती हैं.

3M यूँ ही तो नहीं कहते कि वे अपने एम्प्लोयीज को बहुत इनोवेटिव बनाना चाहते हैं. इस विचार को लागू करने के लिए वे बहुत से तरीके अपनाते हैं. उनके एम्प्लोयीज इसी के तहत अपना 15 पर्सेंट समय पेट् प्रोजेक्ट को देते हैं और हर डिविजन की एन्युअल सेल्स का 30 पर्सेंट चार साल से कम समय वाले प्रोडक्ट्स से होनी चाहिये.

ये कम्पनियाँ सिर्फ बात ही नहीं करती बल्कि वे बेहतर होने के लिए मैकेनिज्म क्रिएट करती है. वालमार्ट ने लगातार ग्रोथ हासिल करने के लिए “बीट यस्टरडे” का सहारा लिया जिसमें हर दिन की सेल्स की पिछले साल की ग्रोथ से तुलना करनी होती थी. 

विजनरी कम्पनियों ने लंबी दौड़ में ठोस कदम उठाये. उन्होंने नई तकनीक और बिजनेस प्रैक्टिस क्रिएट करने में, ट्रेनिंग और डवलपमेंट में, रिसर्च और डवलपमेंट में काफी अच्छा इन्वेस्ट किया.

जब मेर्क्क (Merck) मेडिकल रिसर्च के फील्ड में मजबूती से स्थापित होना चाहती थे तो उन्होंने एकेडेमिक पर अपनी लैब्स शुरू कीं. उन्होंने अपने रिसर्चर्स को अपनी खोजों को एकेडमिक जर्नल्स में पब्लिश करने की छूट दी जो उन प्राइवेट कम्पनीज के लिए काफी असामान्य बात थी. उन्होंने प्रोडक्ट डवलपमेंट प्रोसेस को मार्केटिंग के बजाय रिसर्च पर आधारित किया. इसी वजह से चौटी के वैज्ञानिक मेर्क्क लैब्स की ओर आकर्षित हुए.

कुल मिलाकर
विजनरी कम्पनियाँ हमेशा अपने सिद्धांतों पर कायम रहकर सफल होती हैं. कंपनी के मूल सिद्धांतों में मूल्यों के साथ इनका उद्देश्य और लाभ , शेयरहोल्डर वेल्यू से परे जाकर टिके रहना शामिल है. ये लगातार सफल इसलिए होती है क्योंकि ये न सिर्फ लॉन्ग टर्म लक्ष्य बनाती हैं बल्कि अपनी पालिसी को लागू करने के लिए ग्राउंड लेवल पर काम करती है.

 

इस किताब की समरी में आपको इन सवालों के जवाब मिले 

हमें विजनरी कम्पनियों की स्टडी क्यों करनी चाहिये? 

- ये कम्पनियाँ हमें अपनी टिकाऊ सफलता से बहुत-कुछ सिखाती है.

 

कामयाब होने के लिए विजनरी कम्पनियाँ कौनसे सिद्धांत अपनाती है?

- विजनरी कम्पनियाँ उन मशीनों के जैसी है जो लगातार महान लीडर्स और प्रोडक्ट्स बनाती है.

- विजनरी कम्पनियाँ प्रॉफिट के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करती.

- विजनरी कम्पनियाँ सिद्धांतों पर टिके रहकर ही बेहतर और समृद्ध होती जाती है.

 

विजनरी कम्पनियाँ ऐसी कौनसी पालिसी और मैकेनिज्म अपनाती है जिससे उनके सिद्धांत भी कायम रहते हैं और वे सफलता भी प्राप्त करती है?

- विजनरी कम्पनियाँ सफलता के लिए साह्स भरे निर्णय लेने में नहीं हिचकिचाती.

- विजनरी कम्पनियाँ उस कल्ट की तरह होती है जहाँ नये रीक्रूट्स या तो रुकते है या निकल जाते हैं.

- विजनरी कम्पनियाँ उच्च क्षमता वाले लीडर्स की जन्मदाता होती है.

- विजनरी कम्पनियाँ हमेशा नये प्रयोगों को प्रोत्साहन देती हैं.

- विजनरी कम्पनियाँ सिर्फ डींगे नहीं हाँकती बल्कि अपनी वेल्यू को लागू करने के लिए ठोस काम करती है.

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Thinking in New Boxes By Luc de Brabandere and Alan Iny

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