When Einstein Walked with Godel

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When Einstein Walked with Godel

Jim Holt
किसी सोच को किस तरह से पूरी तरह जाना जा सकता है।

दो लफ्जों में 
2018 में आई ये बुक हमे हमारी साइंटिफिक इमेजिनेशन की लिमिट्स और रियलिटी के बारे में बताती है। फिजिक्स और मैथ्स को कम्बाइन करके इस बुक में हम कुछ बहुत इम्पोर्टेन्ट साइंटिफिक थ्योरी के बारे में पढेंगे। और ये भी जानेंगें कि उन थ्योरी को हमारे सामने पेश करने वाले साइंटिस्ट के साथ क्या हुआ। 

ये बुक किसके लिए है? 
- ये बुक उन लोगों के लिए है जो फिजिक्स और मैथ्स के बारे में जानना चाहते हैं। 
- ये बुक उन क्रिटिकल थिंकर्स के लिए भी है जो साइंस के पीछे की फिलॉसपी के बारे में जानना चाहते हैं। 
- ये बुक उन लोगों के लिए भी है जो किसी पार्टी में जाके अपनी नॉलेज से इम्प्रेशन जमाना चाहते  हैं। 

लेखक के बारे में 
Jim holt  एक अमेरिकन जर्नलिस्ट हैं जोकि पॉपुलर साइंस पर फोकस करते हैं। उनकी लिखी हुई चीजें न्यूयॉर्क टाइम्स, न्यूयॉर्क टाइम्स मैगज़ीन, द न्यूयॉर्कर और स्लेट में अपीयर हो चुकी हैं। उन्होंने बहुत सारी बुक्स भी पब्लिश की हैं जैसे की स्टॉप मी इफ यू हर्ड दिस, ए हिस्ट्री एंड फिलॉसपी ऑफ जोक्स और व्हाई डज द वर्ल्ड एग्जिस्ट। 

इस बुक में हमारे लिए क्या है? 
मिलते हैं उन ग्रेट साइंटिस्ट से जिन्होंने फिजिकल वर्ल्ड को लेकर हमारी अंडरस्टैंडिंग को नई दिशा दी। थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी हो या फिर प्राइम नंबर्स, मैथ्स और फिजिक्स में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जोकि हमारा ध्यान अपनी तरफ ले जाती हैं। इन सब चीजों को समझकर हम रियल वर्ल्ड के बारे में अपनी सोच को डेवलप कर सकते हैं। इस बुक में हम जानेंगे कि किस तरह से ऐसी लाजवाब चीज डेवलप करने वाले साइंटिस्ट की लाइफ का अंत दुखद हुआ। 
इस बुक में न सिर्फ हम मोस्ट इम्पोर्टेन्ट साइंटिफिक आईडिया के बारे में जानेंगे बल्कि उन साइंटिस्ट के बारे में भी जानेंगें जिन्होंने वो चीजें हमारे सामने रखीं हैं। कर्ट गोडेल की ईटिंग हैबिट से लेकर हम मॉडर्न हिस्ट्री में चेंज लाने वाले लोगों के बारे में इस बुक में सुनेगें।इस समरी में हम जानेंगे किअल्बर्ट आइंस्टीन और गोडेल क्वांटम मैकेनिक्स के बारे में क्या सोचते थे? मिलियन डॉलर अर्न करने का एक डिफिकल्ट तरीका क्या है?  और एलन टूरिंग की मौत आज तक मिस्ट्री क्यों है?

अपनी लाइफ के आखिरी कुछ सालों में आइंस्टीन लोजिशियनकर्ट गोडेल के काफी क्लोज हो गए थे।
अल्बर्ट आइंस्टीन को इस पूरी दुनिया में कौन नहीं जानता। दुनिया का लगभग हर व्यक्ति उनकी फोटो देखकर उनको पहचान सकता है। फिजिक्स की दुनिया में उनकी की हुई रिसर्च आज भी दुनिया भर के स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। 

बात है 1905 कि जब अल्बर्ट आइंस्टीन ने 4 पेज के नोट्स पब्लिश किये थे जिन्होंने पूरी दुनिया में कहर मचा दिया था और उसी की वजह से अल्बर्ट आइंस्टीन भी फेमस हुए थे। दरअसल उन चारों पेज में से पहले पेज पर उन्होंने ये शो किया था कि लाइट जो है वो किसी डिस्क्रीट पार्टिकल से होकर आती है जिसको बाद में फोटॉन का नाम दिया गया। दूसरे पेज पर उन्होंने ये प्रूव किया था कि एटम रियल होते हैं और ये बताया था कि किस तरह से हम उनके मूवमेंट को कैलकुलेट कर सकते हैं। तीसरे पेज पर उन्होंने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी लिखी थी और लास्ट पेज पर उन्होंने साइंस की दुनिया का सबसे फेमस फॉर्मूला E=mc^2 के बारे में लिखा था।

इन चार पेपर्स की वजह से ही अल्बर्ट आइंस्टीन दुनिया में एक जाना माना चेहरा बन गए। लेकिन क्या आपको पता है कि अपनी लाइफ के आखिरी कुछ साल अल्बर्ट आइंस्टीन ने अकेलेपन में गुजारे थे। 

दरअसल 1933 में अल्बर्ट आइंस्टीन जर्मनी से यूनाइटेड नेशंस चले आये थे। ये वो टाइम था जब उनकी थ्योरी को बहुत से लोग चैलेंज कर रहे थे। वो उस टाइम प्रिंसटन में रहा करते थे। प्रिंसटन कैंपस में रोज एक लांग वाक पर जाया करते थे और उसी दौरान उनकी मुलाकात कर्ट गोडेल से हुई। जीनियस लॉजिशियन गोडेल अपनी इनकम्प्लीटनेस थ्योरम को लेकर काफी फेमस थे जिसमें उन्होंने ये बताया था कि कोई भी लॉजिकल सिस्टम 100% राइट नहीं होता। 

ये वो टाइम था जब अल्बर्ट आइंस्टीन की पॉपुलैरिटी कम हो रही थी और गोडेल दुनिया में सबसे ज्यादा पॉपुलर व्यक्तियों में शामिल थे। अल्बर्ट आइंस्टीन काफी खुशमिजाज और बातें करने वाले व्यक्ति थे जबकि गोडेल काफी सीरियस रहा करते थे। 

उन दोनों में काफी डिफरेंस था लेकिन इसके बावजूद उनके बीच का कनेक्शन काफी अच्छा था। दोनों का मानना था कि मैथ्स सिर्फ सिम्बल्स का गेम नहीं है बल्कि उसके अंदर काफी फिजिकल रियलिटी छुपी हुई है। समरी में हम आगे जानेंगे कि किस तरह से गोडेल ने अल्बर्ट आइंस्टीन की रिलेटिविटी थ्योरी को आगे और एक्सपैंड किया था।

गोडेल ने अल्बर्ट आइंस्टीन की रिलेटिविटी थ्योरी पर वर्क किया और ये शो किया कि टाइम इम्पॉसिबल यानी कि नामुमकिन है। 

बीसवीं सदी की शुरुआत में फिजिसिस्ट दो चीजों को लेकर एकदम स्योर थे। पहली ये कि फिजिक्स के लॉ एब्सोल्यूट हैं यानी कि वो हर जगह हर चीज के लिए वैलिड हैं और दूसरी ये कि स्पीड ऑफ लाइट भी एब्सोल्यूट है मतलब की हर जगह हर पार्टिकल में लाइट की स्पीड  सेम रहेगी। लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन की रिलेटिविटी थ्योरी के एकॉर्डिंग अगर ये दोनों चीजें सही हैं तो फिर स्पेस और टाइम दोनों एक दूसरे से रिलेटेड होने चाहिए। अल्बर्ट ने ये बात सबसे पहले 1905 में बोली थी और फिर बाद में इसको थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के नाम से प्रूफ भी किया था। 

बहुत से साइंटिस्ट ने पहले उनकी इस थ्योरी को अपनाने से इनकार कर दिया था। और तो और जब 1921 में अल्बर्ट आइंस्टीन को फोटोइलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट पर वर्क के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था तो उनसे ये कहा गया था कि वो अपनी स्पीच में थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी का जिक्र नहीं करेंगे। 

आइए पहले थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी को समझने का प्रयास करते हैं। एग्जाम्पल के लिए सोचिये की आपके पास से कुछ दूर पर एक लाइट बीम जाती है जिसकी स्पीड है 100 माइल्स पर घण्टे। अब इमेजिन करिये कि आपका कोई दोस्त उस लाइट बीम को अपनी कार से 60 माइल्स पर घण्टे की स्पीड से चेस कर रहा है। आप जहां से देख रहे हैं वहां से आपको लगेगा कि लाइट बीम 100 माइल्स पर घण्टे की स्पीड से जा रही है और आपके दोस्त की कार से 40 माइल्स पर घण्टे की स्पीड से आगे है। जबकि आप के दोस्त के नजरिये से देखें तो उसको लगेगा कि लाइट बीम सिर्फ 40 माइल्स पर घण्टे की स्पीड से आगे जा रही है। 

लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन के एकॉर्डिंग स्पीड ऑफ लाइट सबके लिए सेम होती है। और अगर डिफरेंस आ रहा है तो वो इस वजह से हो सकता है कि शायद डिस्टेंस और टाइम में कुछ चेंज हो। इस बात को सही और गलत प्रूफ करने के लिए अब तक न जाने कितने एक्सपेरिमेंट किये गए हैं। 

गोडेल ने अल्बर्ट आइंस्टीन के इसी आईडिया को और एक्सपैंड किया। आइंस्टीन की इक्वेशन को सॉल्व करते हुए उन्होंने क्लेम किया कि यूनिवर्स एक्सपैंड नहीं होता बल्कि रोटेट करता है। और उन्होंने कहा कि थ्योरीटिकल बेसिस पर ये इमेजिन किया जा सकता है कि कोई टाइम ट्रेवल कर सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि अगर मैथेमेटिक्स के बेसिस पर टाइम ट्रेवल पॉसिबल है तो फिर इसका मतलब है कि टाइम कुछ होता ही हैं। गोडेल की लाइफ के आखिरी साल बड़ी कठिनाई में गुजरे। 1955 में अल्बर्ट आइंस्टीन की मौत के बाद वो काफी अकेले रहने लगे गए थे। उनको लगने लगा था कि कोई उनको जहर देकर मारना चाहता है और इसलिए उन्होंने खाना भी छोड़ दिया था। और न खाने की वजह से 1978 में उनकी भी डेथ हो गयी।

नंबर्स के पास उनका मैजिक होता और उस मैजिक को सुनने के लिए हमें स्पेशल कान चाहिए होंगे।
बहुत से लोगों के लिए मैथ्स काफी हार्ड होता है और शायद आप उन्हीं में से एक हों। न्यूरोसाइंटिस्ट  स्टेनिसलास ने 1980 के दसक में एक फ्रेंच आदमी के ऊपर स्टडी शुरू की जिसके ब्रेन के लेफ्ट साइड में कुछ इंजरी हो गयी थी। इंजरी की वजह से उस आदमी को नंबर्स समझने में प्रॉब्लम होती थी। जब भी उससे पूछा जाता था कि 2 प्लस 2 कितना होता है तो कभी वो 3 बोलता था तो कभी 5। स्टेनिसलास ने एक चीज नोटिस की और वो ये कि उस आदमी ने कभी भी उस सवाल का कोई बड़ा आंसर नहीं दिया। जैसे कि 2 प्लस 2 के के लिए उसने कभी 9 या फिर 20 जवाब नहीं दिया। अपनी इस रिसर्च से साइंटिस्ट ने ये बताया कि ब्रेन के पास एक स्पेशल नंबर सेंस होता है जिससे कि हम चीजों को देखकर उनके नंबर्स का अंदाजा लगा सकते हैं। बाद में उन्होंने उस ब्रेन सेल को भी लोकेट किया जिसकी हेल्प से हम ये कर पाते हैं। वहां पर एक स्पेशल 4 नंबर न्यूरॉन होता है जो तब एक्टिवेट होता है जब हम चार चीजों को एक साथ देखते हैं। इसी तरह हर नम्बर के लिए अलग अलग न्यूरॉन होते हैं।

वैसे अगर हाई लेवल मैथ्स की बात करें तो वो नंबर से नहीं चलती। उसमें हमारे ब्रेन के उस पार्ट का भी यूज़ होता है जो विजुअल और लिंगविस्टिक इन्फॉर्मेशन को प्रोसेस करता है। हालांकि हायर मैथ्स को समझने के लिए भी साइंटिस्ट अपनी गट फीलिंग  पर काफी विश्वास करते हैं। 

आइये एक एग्जाम्पल से समझते हैं। हायर मैथ्स की एक सबसे बड़ी मिस्ट्री है प्राइम नंबर्स का डिस्ट्रीब्यूशन। प्राइम नंबर वो होता है जो सिर्फ 1 से डिविजिबल होता है और खुद से जैसे कि 3, 5, 11 और 13। जैसे जैसे हम गिनती में आगे बढ़ते जाते हैं प्राइम नंबर्स के बीच का गैप बढ़ता जाता है। लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि दो बड़े प्राइम नंबर्स के बीच बहुत कम गैप होता है। 19वीं सदी में जर्मन मैथेमैटिशियन बर्नहार्ड रैमन ने एक फंक्शन डिसकवर किया था जिससे हम प्राइम नंबर्स के म्यूजिक को समझ सकें। हालांकि उनकी वो डिस्कवरी आज के टाइम में भी मैथ्स के दुनिया की सबसे बड़ी प्रॉब्लम बनी हुई है। अगर कोई उसको सही तरह से प्रूव करता है तो उसको मिलियन डॉलर का प्राइज भी दिया जाएगा। 

आज तक प्रूव नहीं होने के बावजूद आज के मैथेमेटिसियन उस फंक्शन का यूज़ करते हैं। वो उस फंक्शन का यूज़ करके काफी प्रेडिक्शन करते हैं। इसके बारे में समरी में हम आगे और जानेंगे।

प्योर मैथ्स यूज़फुल होने से ज्यादा ब्यूटीफुल यानी कि सुंदर है। 

आपको क्या लगता है कि आखिर मैथ्स क्या है? इस सवाल का जवाब अलग अलग एंगल्स पर डिपेंड करता है। अप्लाइड मैथ्स में नंबर, फंक्शन और कैलकुलेशन का यूज़ होता है जिससे हम रियल वर्ल्ड प्रॉब्लम सॉल्व करते हैं। जो लोग मैथ्स पढ़ते हैं वो अपनी नॉलेज को अलग अलग फील्ड में अप्लाई करते हैं जैसे कि फिजिक्स, बायोलॉजी, बिजनेस फाइनेंस। प्योर मैथ्स को पढ़ने में भी लोगों को काफी मजा आता है। प्योर मैथ्स में हम नंबर्स और कैलकुलेशन की हेल्प से रियल वर्ल्ड प्रॉब्लम सॉल्व नहीं करते बल्कि हम नंबर्स, फंक्शन के बीच में कुछ इंट्रेस्टिंग कनेक्शन फाइंड करने की कोशिश करते हैं। फेमस फिलॉस्फर लुडविग के एकॉर्डिंग प्योर मैथ्स एक लॉजिक गेम होता है जो हम नंबर्स के साथ खेलते हैं। लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन और गोडेल की तरह कुछ लोगों का मानना है कि रियल लाइफ में अब्स्ट्रैक्ट मैथ्स का भी रोल कुछ न कुछ जरूर है। प्योर मैथ्स वो लोग पढ़ते हैं जोकि सालों पहले जन्मी मैथ्स की प्रॉब्लम को सॉल्व करने की कोशिश करते हैं। अभी थोड़ी देर पहले हमने रैमन जेटा नाम की जिस प्रॉब्लम के बारे में बात की थी वो भी उन्हीं प्रॉबलम्स में से एक है। मैथ्स की फील्ड में सात प्रॉबलम्स का एक ग्रुप बनाया गया है जिनको मिलेनियम प्राइज प्रॉब्लम कहा जाता है। इन सातों प्रॉबलम्स को काफी सालों से सॉल्व करने की कोशिश की जा रही है। रैमन जेटा प्रॉब्लम उन सात प्रॉबलम्स में से एक है। 

जब भी मैथेमैटिशियन किसी भी चीज का प्रूफ ढूंढनेकी कोशिश करते हैं तो वो एक ब्यूटीफुल प्रूफ तक पहुंचना चाहते हैं। वो ये नहीं चाहते कि सिर्फ एक प्रूफ सबके सामने रख दिया जाए। उनके लिए ब्यूटी का मतलब होता है कि प्रूफ सिंपल हो और डिफरेंट हो। साइंस के साथ हम ब्यूटी जैसा वर्ड यूज़ कर रहे हैं तो ये शायद आपको अजीब लग रहा होगा लेकिन अगर हिस्ट्री को देखा जाए तो सच और ब्यूटी हमेशा साथ रहे हैं। 1940 में अपनी बुक में ब्रिटिश मैथेमैटिशियनGH HARDY ने लिखा था कि मैथ्स साइंस से ज्यादा एक आर्ट है। उनका कहना था कि मैथ्स का मतलब प्रॉब्लम सॉल्व करना नहीं होता बल्कि मैथ्स का मतलब होता है मैथ्स की भाषा में एक अच्छी पिक्चर तैयार करना। 

एक ऐसा एरिया भी है मैथ्स का जिसकी हर कोई तारीफ करता है वो है फ़्रैक्टल ज्योमेट्री। बेनोइट नाम के पोलिश-फ्रेंच-अमेरिकन साइंटिस्ट ने 1970 की सदी में ये आईडिया हम सब के सामने रखा था कि कुछ रफ़ फिजिकल स्ट्रक्चर सिमिलर होते हैं या फिर कहें फ़्रैक्टल होते हैं। एग्जाम्पल के लिए सोचिये की जब आप गोभी के फूल के अलग अलग छोटे छोटे हिस्से करेंगे तो आपको नजर आएगा कि सभी हिस्से सिमिलर हैं। उसी तरह फिजिकल स्ट्रक्चर भी होते हैं। बादल, ब्लड वेसल, गैलेक्सी का ग्रुप ये सब चीजें उन फिजिकल स्ट्रक्चर के एग्जाम्पल है।

इनफिनिटी सिर्फ एक साइज में नहीं आती।
साइंस की फील्ड में या फिर कहें मैथ्स की फील्ड में एस्पेसिली इनफिनिटी हमेशा से एक चर्चा का विषय रहा है। चाहे वो न खत्म होने वाले नंबर न हों, न खत्म होने वाला टाइम हो या न खत्म होने वाली दुनिया ही क्यों न हो। इनफिनिटी हमें हर जगह सुनने को मिल जाता है। न सिर्फ साइंटिस्ट बल्कि आम लोग भी इनफिनिटी को लेकर काफी एक्साइटेड रहते हैं। लोगों का मानना है कि इनफिनिटी दो वर्जन में आती है। इनफाइनाइट स्माल और इनफाइनाइट बिग यानी कि हद से ज्यादा छोटी चीज या फिर हद से जैसा बड़ी चीज। इनफिनिटी को लेकर अलग अलग साइंटिस्ट ने अलग अलग थ्योरी हमारे सामने रखीं हैं। कुछ लोग इसको रहस्य की ओर ले जाते हैं और कुछ का मानना है कि इनफिनिटी का कनेक्शन भगवान के साथ है। इनफिनिटी या तो बड़ी होती है या छोटी। जितना ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड इनफाइनाइट बड़ी चीज को समझना है उतना ही मुश्किल इनफाइनाइट छोटी चीजों को समझना भी है। एग्जाम्पल के लिए मैथ्स में हर नंबर को बहुत छोटे छोटे पार्ट्स में डिवाइड किया जा  सकता है। हम किसी भी नम्बर को अनगिनत पार्ट में डिवाइड कर सकते हैं।

पुराने टाइम से ही मैथेमैटिशियन ने स्माल फ्रैक्शन्स का यूज़ कुछ जियोमेट्रिक फॉर्म्स और वॉल्यूम कैलकुलेट करने के लिए। लेकिन उतने ही लंबे समय से बहुत से  साइंटिस्ट इस बात को मानने से इनकार करते आ रहे हैं कि स्माल फ्रैक्शन इस रियल दुनिया में  एग्जिस्ट भी करता है। उनका मानना था कि इस दुनिया में जो सबसे छोटी चीज है वो है एटम और एटम को हम और छोटे पार्ट में डिवाइड नहीं कर सकते। 

फ्रेंच मैथेमैटिशियन ब्लेज़ पास्कल ने इनफाइनाइट स्माल चीजों को यूज़ करके करविलीनियर फॉर्म्स के अंडर आने वाले एरिया को कैलकुलेट किया था। करविलीनियर मतलब वो एरिया जो कर्व लाइन और शेप से बनते हैं। इसाक न्यूटन ने भी जब सूरज के आसपास के ऑर्बिट को कैलकुलेट किया था तो उन्होंने भी ऐसे ही इनफाइनाइट स्माल चीजों की हेल्प ली थी। न्यूटन का भी यही मानना था कि इनफाइनाइट स्माल चीजें और कुछ नहीं बल्कि मैथ्स की नजर से एक फ्रैक्शन ही होते हैं। यानी कि वो यूज़ फुल होते हैं लेकिन रियल नहीं। उसके बाद काफी टाइम तक इनफाइनाइट स्माल चीजों पर से लोगों का ध्यान हट गया और साइंटिस्ट भी ये सोचकर उससे दूर जाने लगे कि ऐसी किसी भी चीज की हेल्प क्यों लें जो रियल वर्ल्ड में एग्जिस्ट ही नहीं करती। लेकिन 1960 के दशक में मैथेमैटिशियन अब्राहम रॉबिन्सन ने फिर से इस टॉपिक को जान दी। रॉबिन्सन ने गोडेल की थ्योरम को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि हम इनफाइनाइट स्माल चीज की रियलिटी पर बिलीव न करें लेकिन उसके पीछे एक लॉजिकल कैलकुलेशन होती है ये हमें मानना होगा। 

आज हम ये तक जान गए हैं कि एटम को भी आगे डिवाइड किया जा सकता है। इलेक्ट्रान, न्यूट्रॉन, प्रोटोन एटम के ही और छोटे पार्ट हैं। इन सभी को भी और छोटे पार्ट्स में डिवाइड किया जा सकता है जिसे हमें क्वार्क कहते हैं और अभी ये भी पता चला है कि क्वार्क को भी आगे डिवाइड किया जा सकता है। इसलिए ये पॉसिबल है कि अगर यूनिवर्स इनफाइनाइट बिग नहीं है तो इनफाइनाइट स्माल तो है।

एलन टूरिंग की डेथ स्टोरी भी एक मिस्ट्री बन के रह गयी। 

साइंस की हिस्ट्री में बहुत सी ऐसी चीजें हुई हैं जोकि स्ट्रेंज हैं। और ऐसी बहुत सारी डेथ भी हुई हैं जिनके पीछे का कारण आज तक नहीं पता चल पाया। एलन टूरिंग की डेथ भी कुछ ऐसी ही थी। मॉडर्न कंप्यूटर साइंस के फादर कहे जाने वाले एलन टूरिंग की मौत जून 1954 में एक सेब खाने से हुई थी जिसपे साइनाइड  नाम का जहर लगा हुआ था। इस मौत को सुसाइड कहा गया लेकिन बहुत से लोगों ने इस चीज को मानने से इनकार कर दिया था कि ये सुसाइड है। वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान जर्मन लोगों के द्वारा यूज़ की जाने वाली कम्युनिकेशन डिवाइस एनिगमा मशीन का कोड एलन ने ही क्रैक कर लिया था। इसकी वजह से ब्रिटिश फ़ोर्स को काफी हेल्प मिल गयी थी। और उन्होंने एंड में युद्ध जीत भी लिया था। उनकी मौत से कुछ टाइम पहले ही उनके ऊपर ये आरोप लगे थे कि एलन गे हैं। अब अगर उन्होंने सुसाइड किया तो क्यों किया? 

1937 में टूरिंग ने प्रिंसटन से मैथ्स में पीएचडी कम्प्लीट की थी। प्रिंसटन में ही उन्होंने मॉडर्न कंप्यूटर का ब्लूप्रिंट रेडी किया था। वो जो भी मशीन डेवलप करते थे उसको टूरिंग मशीन बोला जाता था।जब उन्होंने नाज़ी का कोड क्रैक किया था फिर उसके बाद ही उन्होंने अपने कंप्यूटिंग आइडियाज का भी टेस्ट करना स्टार्ट किया। एनिगमा मशीन रोटेटिंग व्हील्स का कॉलेक्स सिस्टम यूज़ करके  एक ऐसा मैसेज रेडी करती थी जिसे सिर्फ वही मशीन रीड कर सकती थी लेकिन एलन टूरिंग ने रिपीट होने वाले पैटर्न को एनालाइज करके एनिगमा के पीछे का लॉजिक क्रैक किया था। उन्होंने एक काउंटर कोडिंग मशीन डेवलप की थी जिसका नाम था बोम्बी। बोम्बी को आज कंप्यूटर के हिस्ट्री में एक माइलस्टोन के रूप में देखा जाता है। 

टूरिंग ने युद्ध के टाइम जो किया था उसका पता लोगों को 1980 के दशक में चला। उनके मरने के बहुत सालों बाद। युद्ध के बाद वो मैनचेस्टर में रहने लगे गए थे। और वहीं पर उनका एक आदमी के साथ अफेयर शुरू हो गया था। जब उस आदमी ने उनके घर चोरी की तो उसकी शिकायत लेकर एलन पुलिस के पास गए लेकिन उनको न्याय नहीं मिला बल्कि उल्टा उनको गे होने के लिए निंदा सहनी पड़ी और उनको जेल हुई। ये घटना उनकी मौत से दो साल पहले की थी। क्या ये वजह थी जिसकी वजह से उन्होंने सुसाइड कर लिया? या फिर कोई उन्हें परेशान कर रहा था? 2013 में वैसे इंग्लैंड की रानी ने टूरिंग को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था लेकिन उनकी मौत आज भी एक रहस्य है।

स्ट्रिंग थ्योरी या तो सब कुछ एक्सप्लेन कर सकती है या फिर कुछ नहीं।
अगर फिजिक्स में कुछ ऐसा है जो सबसे अलग यानी कि यूनिक है तो वो है थ्योरी ऑफ एवरीथिंग। एक ऐसी पावरफुल थ्योरी जोकि नेचर में होने वाली छोटी से छोटी चीज एक्सप्लेन कर सकती है। सबसे पहले आयी आइंस्टीन की रिलेटिविटी थ्योरी ने गैलेक्सी, मास, ग्रेविटी स्पेस और टाइम के बीच का रिलेशन हम सब के सामने पेश किया था। उसके कुछ समय बाद क्वांटम थ्योरी ने ये एक्सप्लेन किया कि किस तरह से सब एटॉमिक पार्टिकल माइक्रो लेवल पर बिहेव करते हैं यानी कि सबसे छोटे पार्टिकल सबसे छोटे लेवल पर कैसे बिहेव करते हैं। ये दोनों ही थ्योरी सही साबित हो चुकी हैं। लेकिन ऐसी कोई थ्योरी नहीं थी जोकि इन दोनों थ्योरी के बीच कोई रिलेशन स्थापित कर सके। और फिर आती है स्ट्रिंग थ्योरी। 

स्ट्रिंग थ्योरी का मेन मतलब ये है कि नेचर जिन छोटे छोटे पार्टिकल से बनता है वो कोई पार्टिकल नहीं होते बल्कि एनर्जी की स्ट्रिंग होती है जोकि वाइब्रेट करती है। स्ट्रिंग का मतलब होता है कड़ी यानी कि जुड़ाव। अलग अलग तरह की स्ट्रिंग के वाइब्रेशन होने से अलग अलग चीजें घटित होती हैं। 

स्ट्रिंग थ्योरी की हेल्प से रिलेटिविटी थ्योरी और क्वांटम थ्योरी दोनों को ही सही तरह से एक्सप्लेन किया जा सकता है। लेकिन सभी साइंटिस्ट ऐसा नहीं मानते की ये स्ट्रिंग थ्योरी इतनी यूज़ फुल है। 

हालांकि काफी साइंटिस्ट इसको एक सुंदर थ्योरी के रूप में देखते हैं और उनका मानना है कि इस थ्योरी की वजह से काफी कुछ सही तरह से एक्सप्लेन किया जा सकता है। लेकिन जब कोई साइंटिस्ट इस थ्योरी को ज्यादा डिपली स्टडी करता है तो उसको इस थ्योरी से रिलेटेड प्रॉबलम्स फेस करनी पड़ती हैं। 

एग्जाम्पल के लिए अगर किसी को स्ट्रिंग थ्योरी के पीछे की मैथ्स जाननी है तो उसको ये एज्यूम करना होगा कि दुनिया में नौ डाइमेंशन हैं। लेकिन रियलिटी में तो हमको यही पता है कि सब कुछ तीन डाइमेंशन में होता है। तो आखिर वो एक्सट्रा 6 डाइमेंशन कहाँ से आये? स्ट्रिंग थ्योरी के एकॉर्डिंग ये डाइमेंशन बहुत ज्यादा छोटे हैं। 

बिना किसी सरप्राइज के इन 6 डाइमेंशन ने बहुत सारी नई प्रॉब्लम को जन्म दिया है। 1980 के दशक में फिजिसिस्ट एडवर्ड विटेन ने स्ट्रिंग थ्योरी में आ रही प्रॉबलम्स पर वर्क करना शुरू किया था और उन्होंने कुछ चीजें सबके सामने रखीं और उसे M थ्योरी का नाम दिया। साल 2006 में फिजिसिस्ट पीटर वोइट ने एक किताब पब्लिश की थी जिसमें उन्होंने ये बताया था कि किस तरह से उन साइंटिस्ट के आवाज को दबाया जा रहा है जो स्ट्रिंग थ्योरी को सपोर्ट नहीं करते। 

पीटर के एकॉर्डिंग आवाज इसलिए दबाई जा रही है क्योंकि आज भी स्ट्रिंग थ्योरी को पूरी तरह से सही प्रूव कोई नहीं कर पाया है। स्ट्रिंग थ्योरी में इतने सारे वेरिएशन हैं कि या तो ये थ्योरी सब कुछ प्रूव कर सकती है या फिर कुछ नहीं। 

2006 में ही दो फ्रेंच भाई इगोर और ग्रिचका ने कुछ पेपर्स पब्लिश किये थे स्ट्रिंग थ्योरी के ऊपर जिसको बाद में लोगों ने कोई वैल्यू नहीं दी। और वैल्यू इसलिए नहीं दी क्योंकि आजतक उससे बेटर कोई सोच ही नहीं पाया है।

फिजिक्स हमें इस बात का आईडिया देती है कि किस तरह से एक दिन सब खत्म हो जाएगा। 

आजकल साइंटिस्ट एक बात मानते हैं और वो भी बिग बैंग थ्योरी की वजह से की आखिर यूनिवर्स का जन्म कैसे हुआ था। साइंटिस्ट ये भी मानते हैं कि यूनिवर्स लगातार एक्सपैंड हो रहा है। एक चीज जिस पर साइंटिस्ट एकमत नहीं हुए हैं वो ये कि आखिर इस यूनिवर्स का अंत कैसे होगा। यूनिवर्स के अंत को लेकर तीन थ्योरी हम सभी के सामने आई हैं। पहली ये कि लगातार एक्सपैंड हो रहा यूनिवर्स एक दिन इतना ज्यादा एक्सपैंड हो जाएगा कि सभी पार्टिकल एक दूसरे से काफी दूर हो जाएंगे और उसकी वजह से यूनिवर्स का अंत हो जाएगा। 

फिजिसिस्ट के एकॉर्डिंग इस चीज में एक ट्विस्ट भी है। उनके एकॉर्डिंग ये एक्सपैंड होता हुआ यूनिवर्स इतना ज्यादा बड़ा है कि हर एक बिलियन ईयर में बचे हुए पार्टिकल्स एक दूसरे के साथ आएंगे और कुछ नया प्रोड्यूस करेंगे। हालांकि सिर्फ यही एक थ्योरी नहीं है जोकि यूनिवर्स के अंत को लेकर मौजूद है। दूसरी एक और थ्योरी ये है कि एक टाइम आएगा जब यूनिवर्स का एक्सपैंड होना रुक जाएगा। और उसका रिजल्ट ये होगा कि यूनिवर्स कोलैप्स हो जाएगा। इस थ्योरी में भी कुछ एक्सेप्शन है। फिजिसिस्ट फ्रैंक तिपलेर ने एक बात उठाई थी और वो ये जब यूनिवर्स कोलैप्स होगा तो इतनी ज्यादा एनर्जी प्रोड्यूस होगी कि उससे अनगिनत कंप्यूटर चलाये जा सकते हैं और उसकी वजह से जो कुछ सेकण्ड्स का जीवन बचा होगा यूनिवर्स में वो भी इनफाइनाइट टाइम तक चलेगा। 

साइंटिस्ट यहां भी नहीं रुके उन्होंने अभी हाल में ही एक और थ्योरी हमारे सामने रखी है। द बिग क्रैक अप थ्योरी। इस थ्योरी के एकॉर्डिंग यूनिवर्स सिर्फ एक्सपैंड नहीं हो रहा बल्कि बहुत ज्यादा तेजी से एक्सपैंड हो रहा है। उनके एकॉर्डिंग 10 से 20 बिलियन सालों में फोटोन्स खत्म हो जाएंगे जिसकी वजह से दुनिया में मौजूद सारे पार्टिकल खत्म हो जाएंगे। थ्योरी कितनी भी आएं लेकिन हम सभी को इस बात के लिए एकदम स्योर रहना चाहिए कि अभी फिलहाल कुछ टाइम तक इंसानियत खत्म नहीं होने वाली है। कॉपरनिकन प्रिंसिपल के एकॉर्डिंग अगर आप कोई मूवी देख रहे हैं तो ये जरूरी नहीं  है कि आप उस मूवी को देखने वाले पहले 2.5%लोग में शामिल हों या फिर आखिरी 2.5% में शामिल हों। उसी तरह से अगर कभी दुनिया खत्म होगी तो ये स्योर है कि हम न पहले 2.5% में होंगे और न ही आखिरी 2.5%। 

अब शायद आपको कॉन्फिडेंस आया होगा। इंसानियत पिछले 2 लाख सालों से चलती चली आ रही है। और अभी लगभग 7.8 मिलियन सालों तक तो यूनिवर्स खत्म नहीं होने वाला। और अगर कभी खत्म होता  भी है तो हम उसको देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे।

कुल मिलाकर
मैथ्स और फिजिक्स दोनों ही सब्जेक्ट इस दुनिया को समझने के लिए बहुत जरूरी है। पिछले कुछ सालों में टाइम, स्पेस, ग्रेविटी, गैलेक्सी को लेकर हमारी सोच में लगातार बदलाव आए हैं क्योंकि अल्बर्ट आइंस्टीन, कर्ट गोडेल जैसे साइंटिस्ट ने टाइम टू टाइम अलग अलग डिसकवरी करके चीजों को और ज्यादा क्लियर करने की कोशिश की है। ये भी सच है कि साइंटिस्ट भी इंसान ही होते हैं और कई बार उनका अंत काफी दुखद होता है।

 

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