Brent Schlender and Rick Tetzeli
एक एडवेंचरस स्टार्ट्अप से विजनरी लीडर बनने तक का सफर
दो लफ्जों में
बिकमिंग स्पीवजॉब(2015) इस टेक जीनीयस की जिंदगी और काम के बारे में बात करती है. इस समरी में हम एप्पल की हिस्ट्री, जॉब्स के डेवलपमेंट, उनकी शुरूआती कामयाबी और नाकामियों के साथ ही, उन इनोवेशंस के बारे में जानेंगे जिन्होंने आईफोन जैसे एक रिवॉल्यूशनरी प्रोडक्ट को जन्म दिया.
किनके के लिए है
- एप्पल प्रोडक्ट और स्टीव जॉब्स को पसंद करने वालों के लिये
- हर जगह के कंप्यूटर लवर्स के लिए
- बिजनेस लीडर जो हिस्टोरिकल एंटरप्रेन्योर के बारे में जानना चाहते हैं
लेखक के बारे में
ब्रेंड श्लेंडर ने लगभग दो दशकों तक वॉल स्ट्रीट और फार्च्यून के लिए स्टीव जॉब्स को कवर किया है. पर्सनल कंप्यूटर के डेवलपमेंट के हिस्टोरियंस में से एक, उन्होंने कई बार स्टीव्स जॉब्स का इंटरव्यू लिया है.
रिक टेटज़लि ने टेक्नोलॉजी के बारे में 20 साल से ज्यादा लम्बे वक्त तक लिखा है. वह मौजूदा वक्त में फास्ट कंपनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, एंटरटेनमेंट वीकली के एडिटर और फार्च्यून के फॉर्मर डिप्टी एडिटर है.
स्टीव जॉब्स के अंदर शुरुआत से ही टैक्नोलॉजी की एक नैचुरल स्किल थी
स्टीव जॉब्स टेक इंडस्ट्री के एंटरप्रेन्योर्स के लिए डेयरिंग और क्रिएटिव एग्जांपल हैं. बहुत सारे लोगों के आइडियल होते हुए भी वह एक पहेली बन हुये हैं- इनोवेशंस और बेहतरीन डिजाइनों के लिए लड़ने वाला कोई नोबल इंसान. एप्पल के सीईओ रहते हुए जॉब्स ने दुनिया की सबसे वैल्युएबल कंपनियों में से एक की शुरुआत की, इसके साथ ही उन्होंने आईफोन सहित बहुत सारे कमाल के प्रोडक्ट्स बनाए.लेकिन असल में यह मिथ्स से भरा आदमी है कौन?बहुत सारी कहानियां बताई गई. किसी को जॉब्स एक विजनरी लीडर लगते हैं तो किसी को अड़ियल, सिंगल माइंडेड परफेक्शिनिस्ट या ज़िद्दी हाल्फ जीनियस, पागल भी. यह स्टीव जॉब्स के आज के स्टीव जॉब्स बनने की कहानी है.इस समरी में आप जानेंगे, किएप्पल का नाम "एप्पल" कैसे पड़ा? जॉब्स के एप्पल में वापस आने में पिक्सर ने क्या किरदार निभाया, औरकैसे जॉब्स ने मौत से लड़ते हुए अपने कुछ आखिरी बेहतरीन प्रोडक्ट बनाए?
तो चलिए शुरू करते हैं!
स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को सेनफ्रांसिस्को में हुआ था, उनके पैदा होने के बाद ही उनकी मां जोआना शीबल, उन्हें एडॉप्शन में दे देना चाहती थी. जिसके चलते वह एक वर्किंग क्लास कपल पॉल और क्लारा जॉब्स के बेटे के तौर पर बड़े हुए. जॉब्स में बड़ी तेजी से टेक्नोलॉजी की समझ बढ़ी, हो सकता है कि पॉल और क्लारा के अडॉप्शन ने स्टीव जॉब की प्रोग्रेस में काफी भागीदारी निभाई. उनके फादर कार मकैनिक और क्राफ्टमैन थे जो कि फर्नीचर बनाते थे उनके गेराज में एक वर्कबेंच थी जहां पर उनके फादर उन्हें चीजें बनाना, चीजों को अलग करना और फिर उन्हें दोबारा जोड़ना सिखाते थे. इस एजुकेशन ने उन्हें काफी बेहतर बनाया काफी वक्त बाद जब वह लेखक को अपना आईपॉड दिखा रहे थे तो उन्होंने बताया कि कैसे उनके फादर ने उन्हें समझाया था कि जितना काम तुम फर्नीचर के फिनिशिंग के लिए करते हो उतना ही बेहतर उसके अंदर की साइड पर भी करना चाहिए.जॉब्स भी काफी होशियार थे. उन्होंने छठी क्लास छोड़ दी थी और मैथ्स और साइंस की तरफ नेचुरली अट्रैक्टेड थे. इन सब्जेक्ट्स में अपनी स्किल की वजह से उन्हें हेवलेट पैकर्ड (hp) के कैंपस में इलेक्ट्रॉनिक प्रोजेक्ट पर काम करने वाले बच्चों के एक ग्रुप, एक्सप्लोरर क्लब में एक्सेप्ट कर लिया गया था. यहीं पर जॉब्स ने पहली बार कंप्यूटर यूज किया था.वह इंडस्ट्री के लिए एक ऐसेट थे, तो इसमें कोई सरप्राइज की बात नहीं है कि 21 साल की उम्र में ही उन्होंने स्टेफेन वोज़निएक के साथ "एप्पल" इस्टैबलिश्ड किया.
कुछ ऐसा हुआ था,स्टेफेन और जॉब्स की मुलाकात 1969 में हुई थी जब उनके एक म्यूच्यूअल फ्रेंड ने दोनों को मिलाया था, स्टेफेन लॉकहीड मार्टिन इंजीनियर के बेटे और एक इंजीनियरिंग जीनियस थे. उस वक्त, कंप्यूटिंग पर्सनल नहीं हुआ करता था और उसमें मॉनिटर और कीबोर्ड भी नहीं होता था. स्टेफेन ने इन कमियों को पहचाना और जॉब्स को पता था कि वह घर के इस्तेमाल के लिए एक बेहतर कंप्यूटर बना सकते हैं.उन्होंने जॉब्स के फादर के गैराज में अपना सेटअप बनाया और एप्पल-1 के मॉडल पर काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने आसपास के बच्चों को बुलाकर कंप्यूटर असेंबल करने के लिए कहा और बहुत जल्दी उनके पास एक छोटी असेंबली लाइन तैयार हो गई. उन्होंने इस नई कंपनी का नाम एप्पल रखा, यह ईडेन के गार्डन और अॉरिगन एप्पल अॉर्केड के लिए एक जेस्चर/ट्रिब्यूट था, जहां पर हाई स्कूल के बाद जॉब्स जाते थे.
जल्द ही एप्पल दूसरा कंप्यूटर बना लिया, कंपनी इतिहास में सबसे तेजी से ग्रो करने वाले स्टार्टअप्स में से एक बन गई
अपनी कंपनी बनाने और एप्पल-1 को डिजाइन करने के दौरान जॉब्स ने अपनी जिंदगी का मकसद पा लिया था. स्टेफिन के साथ मिलकर उन्होंने लोकल बिजनेस ओनर्स को अपनी मशीन बेचने के लिए मना लिया था. जल्द ही चंद हफ्तों में वह दर्जनभर कंप्यूटर बेचने लगे. इस मॉडल के 200 से कम यूनिट भेजे जा सके थे लेकिन यह कामयाबी भी जोश भरने के लिए काफी थी. अपनी इस पहली कोशिश की स्पीड को बढ़ाने और स्टेफिन की तरफ से अश्योरेंस मिलने के बाद कि वह इससे भी बेहतर मशीन बना सकते हैं, उन्होंने अपने दूसरे कंप्यूटर एप्पल-2 पर काम करना शुरू कर दिया.स्टेफिन के प्लान को सक्सेसफुल करने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी. और यह प्रॉब्लम जॉब्स द्वारा इंटेल के फॉर्मर एक्ज़क्युटिव मार्कुला को इन्वेस्ट करने के लिए मना लेने के बाद सॉल्व हो गई. मसीहा बनकर आए इस इन्वेस्टर ने अपने खुद के पॉकेट से 92,000 डॉलर दिया और इस नयी कंपनी के लिए $250,000 का टारगेट सेट किया.इसके अलावा, मार्ककुला ने मिशेल स्कॉटी स्कॉट को भी हायर किया, जो एप्पल के पहले प्रोफेशनल सीईओ बने और कंपनी जॉब्स के फैमिली गैराज से एक रियल ऑफिस में शिफ्ट हो गई.इस नये अॉफिस में, उन्होंने प्रोफेशनल असिस्टेंस और स्टार्टअप मनी की मदद से पर्सनल कंप्यूटर बनाने के अपने विजन पर फोकस किया. उनकी मेहनत 1970 में सफल हो गई और एप्पल-2 रिलीज हुआ. इस कंप्यूटर में कई खासियत थी इसमें तेज़ माइक्रोप्रोसेसर होने के साथ ऑडियो एंपलीफायर, स्पीकर और गेमिंग जॉयस्टिक के लिए इनपुट भी था.सबसे बेहतर यह था की पर्सनल कंप्यूटर होने के नाते इसमें से इंडस्ट्री वाली डरावनी आवाज नहीं आती थी और यह एक बॉक्स में पूरी तरह से पैक आता था. इसके साथ ही बाकी खूबियों ने इसे बहुत बड़ी कामयाबी बना दिया.
बहुत जल्द एप्पल हिस्ट्री में सबसे तेज ग्रो करने वाले स्टार्टअप्स में से एक बन गया. यहां पर एप्पल सेकंड के रिलीज होने के तुरंत बाद 1977 के जून से ही कंपनी ने 1 महीने में लगभग 500 कंप्यूटर भेजने शुरू कर दिए. यहां से उन्हें तेजी से कामयाबी मिली 1978 में उनकी बिक्री 7.8 मिलियन डॉलर से 1979 में 48 मिलियन डॉलर हो गई.हालांकि तेजी से बढ़ रही इस कमाई ने काफी परेशानियां भी बढ़ाईं, जिनके बारे में हम आगे जानेंगे.
कई प्रोडक्ट के लगातार फेल हो जाने की वजह से जॉब्स को जबरदस्ती निकाल दिया गया।1977 के आखिरी दौर में जॉब्स की जिंदगी roller-coaster सी हो गई थी, वह अपने ट्वेंटीज़ में थे और अपने आप को पूरी तरीके से करियर में झोंक दिया था, अपनी सोशल लाइफ को भुला बैठे थे और कभी-कभी बिना नींद के ही काम करते थे.बहुत सारे तरीकों से यह फायदेमंद भी रहा, जब एप्पल पब्लिक हुई तो उसमें जॉब्स की हिस्सेदारी लगभग 256 मिलियन डॉलर की थी. हालांकि, फर्नांडिज़ और डेनियल कोटके जैसे शुरुआती इन्वेस्टर्स को किनारे करके जॉब्स ने अपने आपको कंपनी के अंदर ही समेट लिया था. उसके बाद वह और स्टेफेन अलग-अलग ग्रो या काम करने लगे.जॉब्स फौरन ही कोई और बेहतरीन प्रोडक्ट बना लेना चाहते थे लेकिन कंपनी इसके लिए तैयार नहीं थी. सबसे पहले, 1980 में एप्पल-3 आया बाकी दो प्रोडक्ट्स के कंपैरिजन में यह पूरी तरीके से बर्बाद चीज था, इसके ऊपर $4,340 का टैग लगा हुआ था, लेकिन वह क्वालिटी नहीं थी यह कंप्यूटर बहुत ज्यादा हीट करता था.एप्पल-2 के बाद 1983 में बिजनेस के लिए बनाया गया कंप्यूटर "लीसा" रिलीज किया गया. ग्राफिकल यूजर इंटरफेस का इस्तेमाल करने वाला यह पहला कंप्यूटर था, इसका मतलब इसके डेक्सटॉप पर कुछ सिंबल होते थे जिसे यूजर्स फाइल और प्रोग्राम खोलने के लिए क्लिक कर सकते थे. जॉब्स का इंटरेस्ट पर्सनल यूज़ के लिए कंप्यूटर बनाने में था, तो बिजनेस के लिए बनाया गया यह कंप्यूटर एप्पल-3 से भी ज्यादा नाकाम रहा.फिर 1984 में कंपनी ने मेसिटोश रिलीज किया. शुरुआत में इसके ग्राफिक्स के लिए मीडिया ने इसे खूब सराहा लेकिन बहुत ज्यादा अंडर पावर होने की वजह से यह यूज़फुल साबित नहीं हुआ और इसकी सेल्स मार्जिन बुरी तरीके से गिर गई.नाकामियों ने जॉब्स के लिए काफी मुश्किल खड़ी कर दी. सिचुएशन इतनी खराब हो गई थी कि 1985 में उन्हें अपनी ही कंपनी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया. उस वक्त के प्रोफेशनल सीईओ स्कली ने जॉब्स को मैक डिवीजन के हेड के ओहदे से हटा दिया इसके बदले में जॉब्स ने स्कली को निकलवाने की कोशिश की. लेकिन उन्हें कंपनी के बोर्ड मेंबर से वह सपोर्ट नहीं मिला और खुद ही एप्पल से बाहर जाना पड़ा. इसके बावजूद जॉब्स कुछ नया बनाने के लिए पहले से भी ज्यादा डिटरमाइंड हो गये.
एप्पल छोड़ने के बाद जॉब्स लगातार टेक्नोलॉजी में रिवोल्यूशन लाने की कोशिश करते रहे, लेकिन उन्हें बहुत कम ही कामयाबी मिली
एप्पल से निकाल दिए जाने के बाद भी जॉब्स ने हार नहीं मानी. वह टेक्नोलॉजी में रिवॉल्यूशन लाने के लिए तैयार थे, इन्वेस्टर्स और मीडिया के उन्हें एक जीनियस के तौर पर बताए जाने से उन्हें यकीन हो गया कि वह एक बेहतरीन सीईओ बन सकते हैं. जॉब्स को यकीन था कि वह इकलौते ऐसे इंसान हैं जो बेहतरीन प्रोडक्ट बना सकता है.तो उन्होंने 1985 में कंप्यूटर कंपनी NEXT खोली, लेकिन यहां उन्हें इतनी आसानी से कामयाबी नहीं मिली जितना उन्होंने सोचा था.हायर एजुकेशन मार्केट की जरूरत के लिए कंप्यूटर बनाने के आईडिया के साथ एक फर्म खोली गई. जिन एकेडमिक्स से जॉब्स ने बात की उन्होंने बताया कि वह $3,000 से ऊपर एक रत्ती भी अफॉर्ड नहीं कर सकते. फिर भी जब NEXT ने अपना पहला कंप्यूटर रिलीज किया तो उसकी रिटेल कॉस्ट $65,00 थी. यह फंक्शनिंग NEXT सिस्टम की पूरी कोस्ट भी नहीं थी, पूरे काम के लिए, यूज़र्स लगभग $10000 की कीमत ही दे पा रहे थे, इस कीमत पर प्रोडक्ट बनाने का कोई चांस ही नहीं था.
प्रोडक्ट की नाकामी जॉब की जनरल टेंडेंसी का एक बेहतरीन एग्जांपल था, वह इनोवेशन में इस तरह खोए हुए थे कि ट्रेडऑफ को नोटिस करने में भी नाकाम रहे जो उनकी चॉइसेस के लिए जरूरी था.मिसाल के तौर पर, उन्होंने हार्ड ड्राइव की जगह स्टोरेज के लिए ऑप्टिकल डिस्क ड्राइव का इस्तेमाल किया. डिस्क ड्राइव के कई फायदे थे, इसमें 200 गुना ज्यादा इंफॉर्मेशन स्टोर की जा सकती थी और इसे कंप्यूटर से अलग भी किया जा सकता था. लेकिन ऑप्टिकल ड्राइव से इंफॉर्मेशन हटाना मुश्किल था और उस वक्त किसी को रिमूवेबल स्टोरेज सिस्टम चाहिए ही नहीं था.NEXT में चीजें बेहतर नहीं थी लेकिन जॉब्स के पास दूसरा प्रोजेक्ट भी था. वह पिक्सर में अच्छी खासी भागीदारी हासिल कर चुके थे. यह लुकस्सफिल्म का कंप्यूटर सब डिविजन था, स्टार ट्रेक 2 और यंग शरलॉक होम्स के स्पेशल इफेक्ट के पीछे यही था. 3D इमेज के मैनिपुलेशन के लिए कंपनी के हाई टायर सॉफ्टवेयर की वजह से इसे जॉब्स की अटेंशन मिली. यह पिक्सर में जॉब्स का एक्सपीरियंस ही था जिसने उन्हें एप्पल में दुबारा एंट्री दिलाई.
1990 के दौरान कंप्यूटर इंडस्ट्री में माइक्रोसॉफ्ट का दबदबा था, लेकिन पिक्सर के कामयाबी ने जॉब्स को दुबारा स्टैबलिश कर दिया।जहां एक तरफ पूरी तरह से तबाह हो रहे NEXT के विज़न को पूरा करने में जॉब्स को परेशानी आ रही थी, दूसरा टेक स्टार परवान चढ़ रहा था. और यह टेकस्टार माइक्रोसॉफ्ट फाउंडर बिल गेट्स थे. 1990 के दौरान इनकी कंपनी इंडस्ट्री को डोमिनेट करने लगी क्योंकि एप्पल और NEXT जैसी कंपनियां ढलान से नीचे की तरफ जाने लगी थीं.1991 में माइक्रोसॉफ्ट दुनिया की एक लीडिंग सॉफ़्टवेयर कंपनी बन गई थी. यह शायद इस वजह से भी था क्योंकि एप्पल और NEXT ने दुसरे मैनुफैक्चरर्स के लिए अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को लाइसेंस नहीं किया, वहीं दूसरी तरफ माइक्रोसॉफ्ट का ओपरेटिंग सिस्टम और विंडो एप्पल और NEXT द्वारा बनाए गए कंप्यूटर के अलावा सभी पर्सनल कम्प्यूटर के लिए स्टैंडर्ड बन चुका था. इस चीज ने गेट्स को सुपर एलिट रिच सर्कल में फेमस कर दिया, लेकिन उनके और जॉब्स के बीच के फंडामेंटल डिफरेंस को भी एकदम क्लियर कर दिया था. मिसाल के तौर पर, जॉब्स हमेशा कुछ नया, कोई इनोवेटिव मशीन बनाने की कोशिश करते, वहीं दूसरी तरफ गेट्स को कम्प्यूटर इंडस्ट्री में रिवॉल्यूशन लाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह बस धीरे-धीरे इंप्रूवमेंट करना और रिलायबिलिटी बढ़ाना चाहते थे, करोड़ों यूजर्स को भी इसी की चाहत थी.
इसी फर्क की वजह से बिल गेट्स दुनिया के सबसे ज्यादा इम्पॉर्टेंट बिजनेसमैन बन गए वही जॉब्स साइडलाइन कर दिए गए थे.लेकिन यह सब तब बदल गया जब पिक्सर की कामयाबी ने जॉब्स को एक नया कॉन्फिडेंस दिया, दरसल,कुछ ऐसा हुआ था-1995 में पिक्सर ने डिज्नी की पहली एनिमेटेड फिल्म, टॉय स्टोरी बनाने के लिए इसके साथ पार्टनरशिप की, जोकि बहुत ज्यादा कामयाब हुई. पिकसर की कामयाबी के बाद 80% की हिस्सेदारी रखने वाले जॉब्स रातों-रात बिलेनियर बन गए.
एक अजीब बात यह थी, कि इस एनिमेटेड फिल्म के बच्चों के लिए रिलीज होने की वजह से ही गुम हो चुके जॉब दुबारा लाइमलाइट में आ गए. उनका कॉन्फिडेंस बढ़ गया और पिक्सर के उनके एक्सपीरियंस ने उन्हें मैनेजमेंट इंर्पोटेंस के बारे में भी बहुत कुछ सिखाया. अपने काम के दौरान उन्होंने लैसेस्टर और एड कैडमल से बहुत कुछ सीखा, दोनों पिक्सर में माइक्रोमैनेजमेंट हैंडल करते थे, उन्होंने अपने एंपलॉयज़ को फ्रीडम के साथ काम करने की इजाजत दे रखी थी.
1997 में एप्पल में आने के बाद, जॉब्स ने एक बार फिर कंपनी को ट्रैक पर ला दिया
टॉय स्टोरी के रिलीज से जॉब्स दुबारा स्पॉटलाइट में आ गए थे. NEXT अभी भी कामयाब नहीं थी. कंपनी के प्रोडक्ट अभी भी नहीं बिक रहे थे और जॉब्स का यह ख्वाब कि यह कंपनी अगला सबसे बेहतरीन प्रोडक्ट बनाएगी टूट गया था. कई हद तक यह उनके करियर का लो पॉइंट था.हालत इतनी खराब थी किस जॉब्स ने प्रोडक्शन ही रोक दिया, उन्होंने सॉफ्टवेयर खास तौर पर ऑपरेटिंग सिस्टम NEXTstep बनाने पर फोकस किया जो कम से कम थोड़ा सा कामयाब हुआ. अगर NEXT की सिचुएशन खराब थी तो यह भी जान लीजिए कि एप्पल में क्या चल रहा था. 1990 के मिड तक कंपनी डूबने के कगार पर आ गई थी. इसके पास कोई भी प्रॉमिसिंग प्रोडक्ट्स नहीं थे और यह ऑपरेटिंग सिस्टम भी को मॉडर्नाइज़ करने में भी नाकाम हो रहा था.इसके अलावा, एप्पल के पास बहुत ज्यादा एंपलाएज़ थे जिन्हें वह अफॉर्ड ही नहीं कर सकता था. नतीजतन 1996 के पहली छमाही में कंपनी को 750 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ.एप्पल में जॉब्स के साथ जो कुछ भी हुआ था उसके बाद जॉब्स भी कंपनी की बर्बादी देखना चाहते थे लेकिन फिर भी जब यह असल में होने लगा तो यह उनके लिए दर्दनाक था. उसके बाद जॉब्स को एक अपॉर्चुनिटी मिली, एप्पल ज्यादा एडवांस ऑपरेटिंग सिस्टम और अपनी क्राइसिस से बचने के लिए सॉफ्टवेयर कंपनी खरीदने की कोशिश कर रहा था. जॉब्स ने भी हाथ आजमाया और 1996 में एप्पल ने NEXT में खरीद ली.कुछ इस तरीके से जॉब्स एप्पल में वापस आ गए.
अगले कुछ सालों में उन्होंने एप्पल को कम्प्यूटर इंडस्ट्री की एक प्रॉफिटेबल लीडर कंपनी बनाने के लिए जी जान से मेहनत की. यह काम उस वक्त के सीईओ गिल अमेलियो के जबरदस्ती रेजिग्नेशन के बाद शुरू हुआ जिन्हें जॉब्स ने "बोज़ो" कहकर डिस्क्राइब किया था. जॉब्स को यह पोजीशन ऑफर की गई और उन्होंने एक बार फिर अपने एंपायर को संम्भाल लिया. दुबारा एप्पल में आने के बाद भी जॉब्स फैसला नहीं ले पा रहे थे कि उनके लिए क्या पहले हैं. असल में पिछले कुछ सालों में उन्होंने जल्दबाजी में फैसला लेने की जगह सोच समझ कर फैसला लेना सीख लिया था. और फाइनली उनकी एक कन्फ्यूजन खत्म हुई और 2000 तक एप्पल आईमैक और एप्पल मैक जैसे बहुत सारे बेहतरीन प्रोडक्ट मार्केट में अवेलेबल हो गये थे. इसने कंपनी को एक बार फिर बना दिया था और कंपनी खतरे से बाहर आ गई थी.आगे आप जानेंगे कि जॉब्स ने यह सब कुछ कैसे किया
आईट्यून और आईपॉड डेवलप करके एप्पल मास मार्केट में पहुंची, और एक बार फिर से अपने आप को खड़ा किया।
जॉब्स एप्पल को एक डूबती हुयी कंपनी से लीडिंग कंपनी बनाने में कामयाब हो गए, लेकिन कैसे? सबसे पहले, उन्होंने रिसोर्स के हिसाब से फर्म को छोटा किया, इस दौरान बहुत सारे एंपलॉयज़ को जाना पड़ा, लेकिन जो इंप्लायज़ रह गए थे जॉब्स उन्हे इंस्पायर करके बेहतरीन प्रोडक्ट बनाने के लिए मोटिवेट करने में कामयाब रहे.ऐसा उन्होंने कंपनी को एक क्लियर डायरेक्शन में खड़ा करके किया, 4 बेसिक प्रोडक्ट के अलावा किसी और चीज पर फोकस नहीं किया. कंपनी ने कंप्यूटर पीसी और लैपटॉप के दो मॉडल तैयार किए दोनों ही प्रोडक्ट के एक मॉडल कंज्यूमर के लिए और एक प्रोफेशनल्स के लिए है.
ऐसे फोकस से कंपनी अपने पुराने अवतार में वापस आ गई थी. लेकिन असल इनोवेशन 2001 में हुआ जब कंपनी ने आईट्यून नाम का प्रोडक्ट बनाया, इससे यूज़र्स अपनी डिजिटल म्यूजिक आर्काइव कर और सिंपल और इजी टू यूज पर्सनल प्लेलिस्ट बनाने सकते थे.लेकिन आईट्यून के साथ जो ज्यादा बेहतर बात थी वह यह कि इसने आईपॉड के डेवलपमेंट की नींव रखी., 2001 के आखरी में इंट्रोड्यूस्ड हुआ, MP3 प्लेयर इलेक्ट्रॉनिक कंज्यूमर के मास मार्केट में एप्पल का पहला लाॉन्च था. उस वक्त पॉकेट साइज MP3 प्लेयर अवेलेबल थे लेकिन उनकी डिजाइन बेकार की और अपना फेवरेट म्यूजिक ढूंढ पाना बहुत मुश्किल था.
आईपॉड ने यह सब बदल दिया. यह अपने यूजर इंटरफेस और यूनीक "थम्ब वील" की वजह से यूजर्स के एक बड़े हिस्से में काफी सराहा गया, जिसकी मदद से यूजर अपने फेवरेट म्यूजिक कलेक्शन को स्क्रॉल करके ढूंढ सकते थे. कंज्यूमर्स को यह प्रोडक्ट बहुत पसंद आया और बड़ी तेजी से इसकी सेल्स बढ़ी.उसके बाद 2003 में, कंपनी ने सॉफ्टवेयर में आईट्यून म्यूजिक स्टोर बनाया जिसे बाद में विंडोज़ यूज़र्ज के लिए भी खोल दिया गया, जो मार्केट कैप्चर करने के लिए दूसरा कदम बना. म्यूजिक स्टार का ऐडिशन एक बहुत बड़ी कामयाबी बना. इसमें यूजर्स को सिंपल और कम कीमत में एक ऐसा ऑप्शन प्रोवाइड किया, जिससे वह अपना ऐल्बम और सिग्नल खरीद सकते थे, जिन्हे उन्हें इल्लीगली डाउनलोड करना पड़ता था. यह इतना कामयाब हुआ कि 2003 तक कंपनी ने 25 मिलीयन सॉग्स बेच लिए थे कंपनी एक बार फिर टॉप पर आ गई थी.
स्टीव जॉब्स को कैंसर हो जाने के बावजूद, एप्पल ऊंची उड़ान भरता रहा
अपने 49 सालों में, जॉब्स को कभी कोई सीरियस बीमारी नहीं हुई थी. लेकिन 2003 में उन्हें पेनक्रिएटिक न्यूरोइंडॉक्टराइन ट्यूमर हो गया. अच्छी बात यह रही कि जैसा सोचा गया वैसा नहीं हुआ ट्यूमर बहुत धीरे से बढ़ रहा था और इसका इलाज किया जा सकता था.स्टैंफोर्ड के डॉक्टर्स, जिन्हें जॉब्स ने हायर किया था उन्होंने फौरन सर्जरी की बात कही पर जॉब्स श्योर नहीं थे. उनकी सलाह को नजरअंदाज करके जॉब्स ने दूसरा अॉप्शन, अॉर्गयूमेंटेड डाइट का रास्ता चुना. लेकिन यह काफी नहीं था 2004 में उन्हें सर्जरी के जरिए अपने ट्यूमर को हटाना पड़ा. ऑपरेशन काफी बड़ा था और जॉब्स को पूरा 1 दिन ऑपरेशन टेबल पर गुजारना पड़ा. उन्हें सर्जरी के बाद ऑफिस आने में पूरा एक महीना लग गया, हालांकि सर्जरी कामयाब रही लेकिन इसने एक और बीमारी को पैदा कर दिया, सर्जन्स ने कैंसरस मेटास्टेट्स नोटिस किया, लीवर में पल रहा दूसरा ट्यूमर.2003 और 2004 के इसी वक्त के दौरान एप्पल भी आगे बढ़ती रही. आईट्यून और आईपॉड से सेल्स बढ़ती रही. आइट्यून के लॉन्च को सिर्फ 3 साल हुए थे लेकिन इसके जरिए बनाया गया पैसा एप्पल की अब तक की कमाई का 19% था. 2004 में ही कंपनी ने 4.4 मिलियन आईपॉड बेचे जिससे उसे 276 मिलियन डॉलर की कमाई हुई, यह पिछले साल की 69 मिलियन डॉलर की कमाई से एक बहुत लंबी छलांग थी.सिर्फ इतना ही नहीं, लैपटॉप और डेस्कटॉप सहित एप्पल मेंसभी प्रोडक्ट इन 2 सालों के दौरान अपग्रेड किए गए. जल्द ही एप्पल ने अपना इंटरनेट ब्राउज़र "सफारी" और एक कूल एप्लीकेशन "गैराजबैंड" जिसे सिंपली म्यूजिक रिकॉर्डिंग और एडिटिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था, लॉन्च किया गया.
जब जॉब्स ऑफिस में लौटे तो उन्होंने ने चीजों को बेहतर और इनोवेट करना शुरू कर दिया. इसमें कोई हैरत की बात नहीं थी कि इस इनोवेशन ने एप्पल के अब तक के सबसे बेहतरीन प्रोडक्ट को जन्म दिया, वह प्रोडक्ट था- आईफोन. आगे हम जानेंगे कि यह game-changing प्रोडक्ट वजूद में कैसे आया.
आईफोन के रिलीज ने टेक्नोलॉजी को हमेशा के लिए बदल दिया
2007 में पहले से ही एक ऐसी डिवाइस मौजूद थी, जिसे स्मार्टफोन कहा जाता था जैसे ब्लैकबेरी और पाम ट्रियो. यह सभी ईमेल, कांटेक्ट और कैलेंडर चेक करने के लिए अच्छे थे. लेकिन जब मार्केट में आई फ़ोन आया तो इसके पास ऑफर करने के लिए कुछ अलग था.यह हकीकत में पहला स्मार्टफोन था।
जो चीज आईफोन को अलग बनाती थी वह इसका फुल साइज टचस्क्रीन था, जिसकी मदद से कॉल करना टच करने जितना आसान हो गया था. फुल स्क्रीन की वजह से यूजर्स फुल फीचर वेबसाइट, फोटो और वीडियो वगैरह देख सकते थे जो कि पिछले स्मार्टफोंस में नहीं था.दूसरी चीज है कि पहले के स्मार्टफोंस में फिक्स्ड कीबोर्ड होते थे लेकिन आईफोन में ऐसा कुछ नहीं था, इसके बजाय जब भी जरूरत होती आप एक टच की मदद से कीबोर्ड को स्क्रीन पर ला सकते थे.यह बेहतरीन प्रोडक्ट वजूद में कैसे आया?
एप्पल 2002 से ही टचस्क्रीन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा था, लेकिन उनका मकसद कुछ अलग था. वह सिर्फ कीबोर्ड और माउस के बजाय यूजर्स के लिए कंप्यूटर से इन्ट्रैक्ट करने का ज्यादा इनोवेटिव तरीका ढूंढ रहे थे. जब उन्होंने इस मल्टीटच नाम के टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरू किया तो उन्हे समझ में आया यह इफेक्टिव होने के साथ मजेदार भी है.दूसरी तरह कहें तो, आईफोन- कंप्यूटर, आईपॉड और फोन को मिलाकर बहुत बेहतरीन और खूबसूरती से डिजाइन किया गया प्रोडक्ट था.फोन में शुरुआती दिक्कत नहीं थी, चूंकि एप्पल ने सारे डेवलपर्स को ऐप बनाने के लिए मना कर दिया था इसलिए चूज़ करने के लिये बहुत सारे एप्लीकेशन नहीं थे. 2007 में जाकर एप्पल ने अपनी सॉफ्टवेयर डेवलपर किट तैयार करने की नियत को दुनिया के सामने रखा, जोकि शायद इस प्रोडक्ट के लिए एक बेहतरीन डेवलपमेंट थी, इस किट के जरिए कोई भी ऐप बना सकता था जिसने एप्पल को बहुत वर्सेटाइल बना दिया.
नतीजतन आईफोन हिस्ट्री में सबसे ज्यादा सक्सेसफुल कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बन गया. 2007 से लगभग 0.5 बिलियन आईफोन बेचे जा चुके हैं, और यकीनन एप्पल को इसका बहुत फायदा हुआ.
आईपैड और मैकबुक एयर स्टीव जॉब्स की आखिरी अकंप्लिशमेंट्स थी। एप्पल अपने बहुत बेहतरीन दौर से गुजर रहा था, लेकिन जॉब्स के साथ ऐसा नहीं था. उनका कैंसर कभी खत्म नहीं हुआ और उनकी सेहत बिगड़ती चली जा रही थी. इसके बावजूद उनकी बीमारी ने कभी भी एप्पल की कामयाबी पर नेगेटिव असर नहीं डाला. जहां एक तरफ बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स आगे के प्लांस बना रहे थे, वहीं दूसरी तरफ एप्पल में ज्यादातर लोगो के लिए जॉब्स की बिगड़ती सेहत मिस्ट्री बनी हुई थी.सेहत के खराब होने के बावजूद जॉब्स ने हार नहीं मानी क्योंकि उन्हें पता था उनके पास बहुत कम वक्त बचा हुआ है. उनकी डेडीकेशन की वजह से ही कंपनी ने 2008 में मैकबुक और 2 साल बाद आईपैड रिलीज किया. उस वक्त मैकबुक एप्पल का "न्यु इट" डिवाइस मतलब पुराने प्रोडक्ट को रिफॉर्म किया हुआ प्रोडक्ट था. यह पहले के किसी भी लैपटॉप से ज्यादा पतला था, इसकी इफेक्टिवनेस किसी सुपर मॉडल कंप्यूटर की तरह थी.2010 में आईपैड ने एक बार फिर से टेक्निकल इंडस्ट्री को रेवोल्यूशनराइज़ किया. अगर आईफोन एक छोटा कंप्यूटर था तो आईपैड एक इनलार्ज आईफोन था. जॉब्स ने एक काउच पर बैठकर इस प्रोडक्ट को रिलीज किया और इसके फंक्शन दुनिया के सामने रखे. काउच पर बैठकर ऐसा करने का मकसद यह बताना था कि यह प्रोडक्ट इस्तेमाल करने में कितना आसान है. आईपैड का एक्सपीरियंस पर्सनल कंप्यूटर से भी ज्यादा अच्छा था, इसके चलते पूरा कंप्यूटिंग का काम ही लिविंग रूम में शिफ्ट हो गया था.यहां पर यह कैजुअल प्रेजेंटेशन प्रोडक्ट और जॉब्स की हेल्थ दोनों हिसाब से जरूरी थी, उनका काफी ज्यादा वजन कम हो गया था और उनके मौत की पॉसिबिलिटी को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. 2009 में उनका लिवर ट्रांसप्लांट हुआ लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ 5 अक्टूबर 2011 को स्टीव जॉब्स इस दुनिया से चले गए.आपको लग गया होगा कि उनकी फ्यूनरल सेरिमनी बहुत भीड़ रही होगी. जब उन्हें 8 अक्टूबर को दफनाया गया तो उनके फ्यूनरल में फैमिली, फ्रेंड और एप्पल के कुछ कलीग ही मौजूद थे. दूसरी सेरिमनी 17 अक्टूबर को स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी कैम्पस के मेमोरियल चर्च में हुयी. उसके बाद लगभग 10000 लोगों की मौजूदगी में 20 अक्टूबर को क्युपरिटो के एप्पल हेड क्वार्टर में भी एक सेरेमनी हुई.जॉब्स की मौत के बाद उनके लंबे वक्त के कलीग और दोस्त टिम कुक ने एप्पल के सीईओ का पद संभाला और जॉब्स की लैगसी कंटिन्यू की, ग्रोथ, सक्सेस और इनोवेशन की लैगसी.
कुल मिलाकर
स्टीव जॉब्स की जिंदगी ग्रोथ, सक्सेस और इनोवेशन की एक कहानी है. बहुत कम उम्र से ही उन्हें टेक्नोलॉजी में दिलचस्पी थी लेकिन जब उन्होंने अपने ट्वेंटीज़ में अपने एक दोस्त के साथ एप्पल को स्टैबलिश किया तो उनका विजन क्लियर था कि कंप्यूटर में क्या कुछ बन जाने की काबिलियत है. कभी-कभी फौरन फैसला ले लेते थे लेकिन फिर भी वह एक ड्रीमर और इनवेंटर थे, उनकी जिंदगी करोड़ों के लिए इंस्पिरेशन है
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