Welcoming the Unwelcome

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Welcoming the Unwelcome

Pema Chödrön
टूटे हुए दिलों की इस दुनिया में दिल खोल कर कैसे जीयें?
दो लफ़्ज़ों में
वेलकमिंग द अनवेलकम, 2019 में आई ये किताब हमारा परिचय बौद्ध धर्म के कुछ ऐसे सिद्धांतों से करवाती है जो रोज़मर्रा की जिंदगी में आने वाली परेशानियों के साथ लड़ने में हमारी मदद कर सकते हैं. लेखिका पेमा चोड्रॉन नें इस किताब में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के साथ-साथ उन तकनीकों और कार्यों के बारे में भी बताया है जिनका इस्तेमाल हर कोई आसानी से कर सकता है और अपनी ज़िन्दगी आसान बना सकता है.ये किताब किसके लिए है?
- बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में रूची रखने वालों के लिए.
- चिंता और डिप्रेशन के शिकार उन लोगों के लिए जिन्हें सलाह की जरुरत है.
- जिंदगी की मुश्किलों से जूझ रहे लोगों के लिए.
लेखक के बारे में
लेखिका पेमा शोड्रॉन एक प्राइमरी स्कूल टीचर थीं, उन्होंने गुरु चोग्यम ट्रुंगपा रिनपोछे के साथ बौद्ध धर्म की पढाई की. हांगकांग में, 1981 में, उन्होंने खुद को पूरी तरह से बौद्ध धर्म को समर्पित कर दिया और एक बुद्धिस्ट नन बन गयीं. अब वह अमेरिका और कनाडा के मठों में तिबतन बौद्ध धर्म के बारे में पढ़ाती हैं.एनलाइटमेंट की खोज अपने दिल और दिमाग को जगाने के साथ शुरू होती है.
हर कोई दर्दभरी और अनचाही फीलिंग्स से दूर भागना चाहता है और जब परेशानी आती है तब सब अपने कम्फर्ट जोन में छुप जाना चाहते हैं. लेकिन ऐसा करना हमेशा सही नहीं खासतौर पर जब आप खुद को और इस दुनिया को गहराई से समझना चाहते हैं.

अपनों और दूसरों की मदद करने और एनलाइटमेंट की राह पर चलने के लिए सबसे पहले आपको अपने दिल और दिमाग को अच्छे से समझना होगा, जिसे बौद्ध धर्म में बौधिसित्ता (Bodhicitta) कहते हैं. ये सफ़र चंद लम्हों का नहीं बल्कि पूरी ज़िन्दगी का हैं, जिसमें चुनौतियाँ तो बहुत हैं लेकिन इसका इनाम भी बहुत बड़ा है. इस सफ़र पर चलकर आपके सोचने और जिंदगी जीने का तरीका बिलकुल बदल जायेगा.

बौधिसित्ता हमें आगे के बार में सोचना सिखाती है. ये हमें जजमेंट और पछतावे से दूर, दया और प्रेम से भरी ज़िन्दगी की तरफ लेकर जाता. आजकल के समय में जब लोग एकदूसरे से दूर होते जा रहे हैं ऐसे में बौद्ध धर्म की ये शिक्षाएं लोगों में प्रेम और विश्वास का बीज बोती है, जिससे हम एक  सुनहरे भविष्य की कल्पना कर सकते हैं.

चाहे सेल्फ-बेटरमेंट हो या एनलाइटमेंट, दोनों के लिए जरुरी है कि सबसे पहले आप अपना लक्ष्य अपने दिमाग में बैठा लें. इसके लिए आप बौद्ध धर्म की एक पारंपरिक राह यानी बौधिसित्ता का सहारा ले सकते हैं. बौधिसित्ता अपने दिल और दिमाग को गहराई से समझने में आपकी मदद करेगी ताकि न सिर्फ आप खुद की बल्कि दूसरों की ज़िन्दगी भी बेहतर बना सकें.

गौतम बुद्ध हमेशा कहा करते थे कि हर व्यक्ति में कहीं न कहीं कोई न कोई अच्छाई जरुर छुपी होती है. इन अच्छाईयों से वो अपनी और दूसरों की मदद कर सकता है. लेकिन डर, भ्रम और कुछ बुरी आदतों के कारण उनकी अच्छाई छुप जाती है. इसलिए, बौधिसित्ता की राह में सबसे पहला काम है खुद को उन सभी बातों से आज़ाद करना जो हमारी अच्छाई को बाहर नहीं आने देतीं और हमें दूसरों की मदद करने से रोकती हैं.

लेकिन इस राह पर चलने से पहले कमिटमेंट का होना बहुत जरुरी है क्यूंकि इस राह में बहुत सी मुश्किलें आएँगी जिन्हें पार करते हुए आपको सबसे पहले खुद को समझना है और अपने अन्दर छुपे उस ज्ञान को जगाना है जो आपको अपनी अच्छाईयों से मिलवायेगा.

लेकिन बौधिसित्ता की राह बहुत कठिन है इस पर चलते हुए आपको अकेलापन, उदासी और दर्द जैसी अनचाही फीलिंग्स से होकर गुजरना होगा. ज्यादातर हम इन फीलिंग्स का सामना करने कि बजाये इनसे दूर भागने की कोशिश करते हैं, और इसके लिए हम कभी अपने काम में खुद को बिजी कर लेते हैं तो कभी एंटरटेनमेंट का सहारा लेते हैं. पर एनलाइटमेंट के रास्ते पर चलने के लिए आपको अपने दिमाग को दुबारा से ट्रेनिंग देनी होगी ताकि वो इन अनचाही फीलिंग्स से भागने कि बजाए उन्हें महसूस करना सीखे.

असफलता, नाकामी और दर्द जैसी भावनाओं से गुजर कर ही आपको बौधिसित्ता का वो दरवाज़ा मिलेगा जिससे आप अपने दिल और दिमाग को जगा सकते हैं. अपने पहले कदम की शुरुवात आप अभी से कर सकते हैं, बस किसी ऐसी घटना को याद करें जिसने आपका दिल तोड़ कर आपको दर्द और अकेलेपन से भर दिया हो.

लेखिका के शिक्षकों में से एक, चोग्यम ट्रुंग्पा रिनपोछे बताते हैं कि, ‘बौधिसित्ता का रास्ता एक टूटे हुए दिल से ही  होकर गुज़रता है.’ उन्हें हमेशा वो घटना याद आती है जब वो सात साल के थे और तिब्बत में रहते थे . एक दिन उन्होंने देखा था कि कुछ मनचले लड़कों नें एक कुत्ते को पत्थरों से मारते हुए मार डाला इस बात से वो पूरी तरह हिल गए. वो अक्सर  घटना को इसलिए याद करते थे ताकि वो दूसरों का दर्द महसूस कर उनकी मदद कर सकें.

अपनी दर्दभरी फीलिंग्स को छुपाने या उनसे दूर भागने में कोई समझदारी नहीं हैं क्यूंकि आगे चलकर यहीmm फीलिंग्स गुस्से और इमोशनल आउटबर्स्ट का रूप ले लेतीं हैं. अपने असल स्वभाव और अपनी आस-पास की दुनिया को समझने के लिए सुख और दुःख दोनों को महसूस करना जरुरी है.

नेगेटिव सोच से ऊपर उठ कर काइंडनेस को अपनाना ही बौद्ध धर्म की कुंजी है.
चाहे, जीवन में कितना कुछ भी पा लिया हो फिर भी हर इंसान कहीं न कहीं एक खालीपन और असंतोष जरूर महसूस करता है, क्यूंकि ये इंसान के स्वभाव का हिस्सा है. अपने इसी स्वभाव के कारण हम अपने आस-पास की चीज़ों को दोष देते रहते हैं, कभी मौसम को कभी खुद को तो कभी किसी और को. हर वो चीज़ जो हमारे हिसाब से नहीं है उसे हम बुरा या नाकारा का लेबल दे देते हैं. दुरभाग्य, की बात ये है कि आजकल हमने दुनिया की हर चीज़ को अपने आप से अलग समझना शुरू कर इस दुनिया को मैं और वो के लेबल में बदल दिया. इंसान सोचने लगा है कि एक मैं हूँ और बाकी सब वो है इसके बीच कुछ नहीं. और इस मैं वर्सेज वो की फीलिंग नें बीच के सारे रिश्तों और उम्मीदों को खत्म कर दिया है.

जैसे बारिश को ही ले लीजिये अगर जिस दिन आपने पिकनिक का या घुमने का प्लान बनाया है उस दिन बारिश आ गयी तो आपको उस पर बहुत गुस्सा आएगा, लेकिन जब आप घर बैठे अपने सोफे पर आराम कर रहे हों तो इसी बारिश की आवाज़ आपको सुकून देगी.

इसका मतलब है कि बारिश अच्छी या बुरी नहीं होती बारिश तो बस बारिश होती है. उसी तरह पेड़, समुद्र या नदी ये सब बस एक नाम है जैसे हमारा और आपका नाम है, और किसी का नाम किसी व्यक्ति के बारे में नहीं बताता. उसी तरह किसी की उम्र, नागरिकता या उसकी जॉब भी उस व्यक्ति के बारे में बहुत थोड़ी सी ही जानकारी देती है. तो अगर देखा जाए तो इसी भी चीज़ को पूरी तरह समझाने के लिए शायद हजारों-लाखों शब्द भी कम पड़ जाएँ.

ये बात अलग है कि लेबल का इस्तेमाल हम दूसरों तक अपनी बात पहुंचाते समय भी  करते हैं, लेकिन इन लेबलों का खतरनाक और अमानवीय प्रभाव तब होता है जब इनके इस्तेमाल से हम किसी व्यक्ति को दूसरों से अलग बताने की कोशिश करने लगते हैं. आपको हैरानी होगी कि जो लोग दूसरों से बहुत भेदभाव करते हैं वो भी हमारी-आपकी तरह ही हैं, वो भी हम सबकी तरह अकेलापन, दुःख, डर और भ्रम को महसूस करते हैं.

सबसे अच्छी चीज़ जो आप कर सकते हैं वो है कि अगली बार जब भी आपको किसी व्यक्ति या किसी चीज़ से नारजगी महसूस हो तो खुद को रोकें और ये सोचने की कोशिश करें कि ये भावना आखिर आ क्यूँ रही है इसकी जड़ क्या है. ऐसे पलों में कोशिश करें कि क्या आप अपनी नाराज़गी की भावना को दया और अपनेपन में बदल सकते हैं?

दुसरे शब्दों में कहा जाए तो हमें अपने अन्दर छुपी दया और करुणा ढूंढनी चाहिए ताकि हम दूसरों की गलतियों को माफ़ कर सकें और ये समझ सकें कि दुनिया के सारे लोग एक जैसे हैं, बुनियादी तौर पर कोई भी इंसान दुसरे से अलग नहीं है. जब हम दुःख, अकेलापन और डर जैसी भावनाओं को अपना कर उन्हें महसूस करने लगेंगे तो हमें ये एहसास होगा कि दुनिया के हर कोने में हर व्यक्ति इन्हीं भावनाओं को महसूस करता है, इसलिए कोई किसी से अलग नहीं है. ये बात दूसरों को अपनाने में और उनकी फीलिंग्स और काम को समझने में हमारी मदद करेगी.

हमारी ईगो एनलाइटमेंट के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है, इसलिए अपनी गलतियों को अपनाएं और साधारण चीज़ों की भी तारीफ करना सीखें. जब आप ईगो के बारे में सोचते हैं तो आपके मन में क्या आता है? दरअसल, ईगो का मतलब हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकता है, लेकिन बौद्ध धर्म के अनुसार ईगो हमारे मन का वो हिस्सा है जो हमेशा असलियत के साथ संघर्ष करता रहता है.

ईगो को बदलाव नहीं पसंद उसे हर चीज़ में कंट्रोल और स्टेबिलिटी चाहिए. इसकी यही बात हमारी असल ज़िन्दगी से बिलकुल अलग है क्यूंकि यहाँ तो कुछ भी परमानेंट नहीं है रोज़ नए बदलाव आते हैं. आज, कल की तरह नहीं हो सकता यहाँ तक कि आप भी अब वो व्यक्ति नहीं है जो एक साल पहले  या एक हफ्ते या महज एक घंटे पहेल तक थे. हमारा और हमारे आस-पास की चीज़ों का लगातार विकास हो रहा है, और ये विकास तब तक चलेगा जब तक कि हमारा अंत ना आ जाए.

लेकिन ईगो को ये बदलाव और मौत ही सबसे बड़ा सच है जैसी बातें हजम नहीं होती क्यूंकि इससे उसे असुरक्षा का भाव महसूस होता है. लेकिन ये असुरक्षा हीं ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सच है और इसे नज़रंदाज़ करने की जगह हमें इस सच्चाई को अपना लेना चाहिए.

इसी तरह जब हमसे कोई गलती हो जाती है, हम किसी काम में असफल हो जाते हैं या हम अपनी कोई कमजोरी किसी को बताते हैं तो ऐसी हीं असुरक्षा और शर्म जैसी अनचाही फीलिंग्स को महसूस करते हैं. इन्हीं फीलिंग्स से बचने के लिए हम अपनी गलतियों और कमियों को अक्सर छुपाते रहते हैं. लेकिन इन अनचाही फीलिंग्स को अपने अंदर दबा कर रखना, आगे चलकर हमें गुस्से और नाराज़गी से भर देता है.

बौधिसित्ता का रास्ता अपनी इसी आदत को छोड़ने से शुरू होता है मतलब अपने अन्दर की अनचाही फीलिंग्स और  असुरक्षा को अन्दर दबाने कि बजाये उसे अपना कर उसके साथ शांति से रहें. दुनिया की हर चीज़ की तरह ये फीलिंग्स भी परमानेंट नहीं है आज नहीं तो कल बदल जाएँगी, लेकिन इन्हें अपना कर आप एनलाइटेनमेंट की ओर जा सकते हैं और अपने और दूसरों के हर अच्छे-बुरे पहलुयों को अपनाना सीख सकते हैं.

आप कुछ मिनट अपनी असुरक्षा और अनचाही फीलिंग्स के साथ बितायिये, उनसे होने वाले दर्द को महसूस कीजिये, धीरे-धीरे आपको इसकी आदत हो जाएगी और आप महसूस कर पाएंगे की इन्हीं फीलिंग्स से दया और बहादुरी जैसी भावनाओं का भी जन्म होता है.

हमारे पास क्या नहीं है या किसकी गलती है ये सब सोचने की बजाये आप उन चीज़ों पर फोकस करें जो आपके पास हैं. इसे करने के लिए आपको थोड़ी प्रैक्टिस की जरुरत होगी ताकि आप हर पल को अपने आप में पूरा महसूस कर सकें. अगर आप हर चीज़ में कमियाँ निकालना छोड़ देंगे तो आपको हर साधारण चीज़ भी खूबसूरत लगने लगेगी चाहे वो आपका रोज़ का ब्रेकफास्ट हो या किसी अजनबी की दी हुयी एक छोटी सी स्माइल.

इसके लिए आप एक मन्त्र अपने दिमाग में बैठा लीजिये कि जो जैसा है वो वैसा ही पूरा है और खूबसूरत है. और मैं भी जैसा हूँ अपने आप में पूरा हूँ.  इससे आपका मन कमियों के बारे में सोचना छोड़ देगा और जो जरुरी है उसपर फोकस करना शुरू कर देगा.

चूंकि ज़िन्दगी लगातार बदल रहती है, इसलिए खालीपन का एहसास आपके लिए विकास का अवसर भी हो सकता है.
ज़िन्दगी का सबसे बड़ा फैक्ट यही है कि वो एक पल में बदल सकती है. एक शाम, लेखिका जोन डिडियन और उनके पति रोज़ की तरह डिनर कर रहे थे, तभी अचानक उनके पति को कार्डियक अरेस्ट हुआ और कुछ ही सेकंडों में उनकी मौत हो गई. उन्होंने एक किताब द ईयर ऑफ मैजिकल थिंकिंग लिखी, जिसमें बताया गया कि कैसे उसके पति की मौत के बाद उनकी दुनिया में अचानक सब कुछ बदल गया.

ये किसी के साथ भी हो सकता है और कभी भी हो सकता है कि आज तक आप जिस चीज़ पर काम करते आये थे और जो आपके लिए सबकुछ था वो ही चला जाए और उसके बाद आपको ज़िन्दगी का हर कम बेमतलब सा लगने लगे. ऐसे में आपको अपनी ज़िन्दगी में खालीपन का एहसास होने लगता है, हो सकता है आपके किसी खास की मौत हो जाए या आपको अचनक पता चले कि आपको अडॉप्ट किया गया था या ये भी हो सकता है किसी दिन आपका पति आके बोले कि वो किसी और को पसंद करने लगा है इसलिए आपसे तलाक देना चाहता है कुल मिला कर देखा जाए तो ज़िन्दगी में ऐसा कुछ भी हो सकता जिसके बाद आपको ज़िन्दगी में कोई आधार हीं नही नज़र आएगा.

क्रोनिक डिप्रेशन के पेशेंट को भी उसकी जिंदगी बेमतलब लगने लगती है क्यूंकि जिन कामों को करने में उसे पहले ख़ुशी मिलती थी वह अब उसके लिए कोई मायने हीं नहीं रखते. लेकिन, ऐसे ही बेमतलब और खालीपन का एहसास हमें एनलाइटमेंट की तरफ ले जा सकता है. बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में इस खालीपन की स्टेज को शुन्यता का नाम दिया है. इस स्टेज में आप उन सारी चीज़ों और इमोशंस के बोझ से आज़ाद हो सकते हैं जो आपको बौधिसित्ता के रास्ते पर चलने से रोकते आये हैं.

जब आप शुन्यता के एहसास को खुद महसूस करेंगे और उसे अच्छे से समझ लेंगे तो आप दूसरों के दर्द को भी समझ पाएंगे और आपको एहसास होगा की वो किस दुःख से गुज़र रहे हैं.

लेकिन, दुःख और खालीपन के एहसास को दर्द को आराम में बदलना इतना आसान नहीं  होता. इसके लिए हमें पहले ये समझना होगा कि ये सारी फीलिंग्स टेम्पररी है आज हैं शायद कल नहीं रहेंगी. इसलिए आप इन फीलिंग्स को महसूस करने में जितना समय बिताएंगे आपको  उतनी ही इनकी आदत होती जाएगी और जब अगली बार ये फीलिंग्स आपको सताएंगी तो आप आराम महसूस करेंगे.

थोड़ी प्रैक्टिस से आप इस खालीपन के एहसास को पॉजिटिव बदलाव में बदल सकते हैं. हर पल कोई जन्म लेता है तो कोई मरता है और फिर वो एक याद बन कर रह जाता है. इसलिए आपका काम बस इतना है कि जो आज आपके पास है आप उसकी ख़ुशी मनाएं और इस बदलती और बढती ज़िन्दगी के पहिये को चलते रहने दें.

ज़िन्दगी में ज्यादा आराम का अनुभव करने के लिए अपने कांफोर्ट जोन का दयारा बढ़ा दें. हर किसी का अपना एक कांफोर्ट जोन होता है, वो जगह जहाँ उसे आराम मिलता है वो काम जिन्हें वो आसानी से कर लेता है ये सब उसके कम्फर्ट जोन का हिस्सा होते हैं. लेकिन मुश्किल ये है कि जितना ज्यादा समय आप उन्ही कामों को करने में बीतायेंगे जो आपको आसान लगती है उतना ही आपके कम्फर्ट जोन का दायरा छोटा होता चला जायेगा. इसलिए अगर आप अपने कम्फर्ट को बढ़ाना चाहते हैं तो अपनी सीमाओं को बढाएं धीरे-धीरे आपका कम्फर्ट जोन भी बढ़ जायेगा.

ज़िन्दगी में तीन जोंस होते है सबसे सेंटर में कांफोर्ट जोन उसके बाद लर्निंग जोन और सबसे बाहर रिस्क जोन. इसे उदाहरण से समझते हैं अगर आप स्विमिंग सीखने गए और आपने सीधे गहरे पानी में छलांग लगा दी तो हो सकता है आपको डूबने का खतरा महसूस हो और अगली बार आप स्विमिंग सीखने हीं न जायें. इसलिए हमें कम्फर्ट जोन से सीधा रिस्क जोन में नहीं जाना बल्कि धीरे धीरे एक –एक कदम आगे बढ़ाते हुए लर्निंग जोन को कम्फर्ट जोन में बदलना है. आपको आगे चलकर महसूस होगा कि अब आप हर वो काम आराम से कर पा रहे हैं जिनसे आप घबराते थे.

जैसे अगर आपको चीज़ें इक्कठा करने की आदत है और आप सामान से छुटकारा नहीं पा सकते, तो आप आज से ही कोई भी एक छोटी चीज़ डोनेट करना शुरू कर दें. रोज़ एक सामान डोनेट करें, हो सकता है शुरू में आपको थोडा बुरा लगे और आप दुखी महसूस करें लेकिन उस एहसास से बचना नहीं है आपको उसे महसूस करना है. ऐसा करते हुए आप देखेंगे कि कैसे आप अपनी इस आदत को बदलने में कामयाब हो जाते हैं और आपको अब चीज़ें देने में बुरा भी नहीं  लगता.

अपनी ईगो से छुटकारा पाने का भी सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप अपने कम्फर्ट जोन को बढाएं और सभी अनचाहे एहसासों को महसूस करना सीखें. इस प्रैक्टिस को ‘टोंगलेन’ कहते हैं जो कि एक तिबेतन शब्द है जिसका मतलब है ‘भेजना और लेना’.

टोंगलेन एक मेंटल एक्सरसाइज है जिसमें आप वो चीज़ें जो आपको पसंद नहीं उसे अपने अन्दर समा लेते हैं और जो आप चाहते हैं उसे दुनिया में वापस भेजते हैं. इस एक्सरसाइज से आप अनचाहे एहसासों को नज़रंदाज़ करने की अपनी आदत को भी बदलते हैं. इस एक्सरसाइज में आप अपने दिमाग और अपनी साँसों को एक लय में लाते हैं और फिर जब आप सांस अन्दर लेते हैं तो आप महसूस करते हैं कि इस सांस के साथ आप अपने सारे डर, दुःख और अनचाही फीलिंग्स को भी अन्दर ले रहे हैं. इन फीलिंग्स को अंदर लेने का मतलब है कि इन्हें आप अपने शरीर और दिल का हिस्सा बना रहे हैं. 

इन फीलिंग्स को अपने दिल का हिस्सा बनाने के बाद आप आपने दिल को इतना बड़ा महसूस करें कि जैसे इसके अन्दर सारी दुनिया का दुःख और तकलीफ समा जाए. साँसों को बहार छोड़ते समय महसूस करें के आप अपने आस-पास के लोगों के लिए दया और प्यार बहार भेज रहे हैं.

अनचाहे एहसासों के साथ भी शांति और सुकून महसूस करने के लिए आपको उन एहसासों के साथ थोडा समय बिताना होगा ताकि आप अपने मन में उन्हें रीफ्रेम कर सकें और इस काम में टोंगलेन आपकी मदद कर सकता है.

एक अच्छा सेंस ऑफ़ ह्यूमर, अच्छे टीचर और बेसिक सिटींग मैडिटेशन ये तीनों आपकी ज़िन्दगी को बदलने के लिए जरुरी टूल साबित हो सकते हैं.
एनलाइटमेंट के सफ़र पर चलते हुए सबसे पहले आपको खुद में और दूसरों में कमियाँ निकालना छोड़ना होगा. खुद के बारे में गलत जजमेंट करने से बचना थोडा मुश्किल हो सकता है लेकिन अच्छे दोस्त इस काम को काफी आसान बना देते हैं.

सबसे पहले एक अच्छा दोस्त किसी अच्छे टीचर की तरह होता है जो आपकी कमियों को कम करके आपकी खुबीयों को बढ़ाता हैं. अगर आपका दोस्त सच में एक अच्छा टीचर है तो वो आपको समय-समय पर उदाहरण के साथ बताएगा कि कैसे आप अपने अन्दर छुपे टैलेंट को जगा सकते हैं. आपका दोस्त आपको खुद के साथ अच्छे से पेश आना भी सिखाता है. लेकिन, अगर आपके पास ऐसा दोस्त है तो क्या आप उससे अच्छे से पेश आते हैं या आप उसकी छोटी सी गलती पर उसे बुरा भला कहने लगते हैं? क्या उसके गुस्से पर आप और भी गुस्सा हो जाते हैं या उसे मनाते हैं? क्या आप छोटी-छोटी बातों पर उसे एक बुरा व्यक्ति समझने लगते हैं या आप इन छोटी बातों को भुला कर आप उसे समझने की कोशिश करते हैं? इस बात का ध्यान रखिये कि एक अच्छा और सच्चा दोस्त अगर आपके पास है तो उसका साथ कभी न छोडें.

आप खुद को भी अपना एक अच्छा दोस्त समझें और अपने आप को हर बात में दोष देकर तकलीफ न दें. खुद को सज़ा देने से अच्छा है कि आप वो करें जो बौद्ध धर्म सिखाता है, यानी ‘अपने घबराये हुए दिमाग को काइंडनेस के पालने में सुला दें.’

एक अच्छे दोस्त के बाद बेसिक सिटींग मैडिटेशन भी जीवन के बारे में आपका नजरिया बदलने का एक असरदार जरिया साबित हो सकता है. इसके लिए सबसे पहले आप एक आरामदायक कुर्सी पर बैठें आपने हाथ आपनी थाई पर रखें, पैर क्रॉस्ड और आँखें खुली. अपनी साँसों पर फोकस करें और हर आती हुयी सांस के साथ आपने मन के दरवाजे खोलें और जब सांस छोडें तो खुद को अपने वातावरण के हिस्से के रूप में महसूस करें.

जब आप इस एक्सरसाइज को करेंगे तो कई बार आपका ध्यान आपकी साँसों से हट कर  आपके विचारों पर चला जायेगा लेकिन आपको इन विचारों को बुरा या अनचाहे का टैग नहीं देना है. जब भी कोई विचार मन में आये तो बस उसे लेबल दिए बिना एक विचार के रूप में महसूस करें और जाने दें फिर अगली सांस पर अपना फोकस बनाने की कोशिश करें.

अपने विचारों के साथ आराम से पेश आयें और अगर ये बार-बार आपके मन में आयें तो इनसे परेशान होने की बजाये आप अपना ध्यान दुबारा अपनी एक्सरसाइज की ओर लायें. अपने बुरे से बुरे विचारों को भी अपनाने में ये मैडिटेशन आपका बहुत साथ देगा. जितना ज्यादा आप इन विचारों को महसूस करेंगे उतना ज्यादा आपको इन्हें वेलकम करने में मदद मिलेगी. जब आप अपने दुखों और तकलीफों के साथ भी कम्फ़र्टेबल महसूस करने लगेंगे तब आप दूसरों के दुखों को आसानी से समझ पाएंगे और उनकी भी मदद कर पाएंगे.

कुल मिलाकर
जिन ख्यालों और फीलिंग्स को हम बुरा और अनचाहा मानते हैं असल में वो हमारी पर्सनल ग्रोथ और एनलाइटमेंट का जरिया साबित हो सकते हैं. बौद्ध धर्म द्वारा बताई गयी बौधिसित्ता नाम की राह इन्हीं फीलिंग्स का इस्तेमाल कर के हमें खुद को और दूसरों को बेहतर तरीके से समझने में मदद करती हैं ताकि हम अपने और दूसरों के दुःख दूर करते हुए एनलाइटमेंट की ओर बढ़ सकें.

 

अनचाही चीज़ीं का भी स्वागत करने के लिए आप LESR  टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.

LESR यानी locate (पता लगायें), embrace (अपनाएं), stop (रुकें), remain (वहीं बने रहे). जब भी कभी आप खुद को अनचाही फीलिंग्स से घिरा हुआ महसूस करें तो इस तकनीक का इस्तेमाल करें. सबसे पहले आप पता लगायें की वो फीलिंग आपके शरीर के कौनसे हिस्से में रहती है, ये वो हिस्सा होगा जहाँ आप एक अजीब सा तनाव महसूस कर रहे होंगे. उसके बाद शरीर के उस हिस्से की ओर अपने पुरे दिल से प्यार और गर्माहट भेज कर उस फीलिंग को अपनाएं.

उसके बाद जो कहानी आपके मन में चल रही है जिसके कारण ये फीलिंग आई उसे रोकें. और अंत में उस अनचाही फीलिंग को भुलाने की जगह महसूस करें और खुद को याद दिलाएं कि दुनिया का हर इंसान इसी तरह की फीलिंग्स को महसूस करता है. ऐसा करने से आप खुद को दुनिया के सभी जीवों से जोड़ कर देख पाएंगे और धीरे-धीरे आप इन अनचाहे ख्यालों से घबराना छोड़ देंगे.

 

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