Erin Rhoads
Make a Big Difference by Throwing Away Less
दो लफ्ज़ों में
साल 2019 में रिलीज़ हुई किताब “Waste Not” एक गाईड की तरह है. जो ये बताती है कि इंसान ‘consumption lifestyle’ से कैसे दूरी बना सकता है? इसी के साथ ये बुक सीख देती है कि मॉडर्न लाइफस्टाइल को बिना किसी बोझ के भी एन्जॉय किया जा सकता है. इसलिए अगर आप मॉडर्न लाइफ स्टाइल एन्जॉय कर रहे हैं? तो आपकी कोशिश रहनी चाहिए कि समाज और कल्चर को कम से कम नुकसान पहुंचाए.
ये किताब किसके लिए है?
-ऐसे लोग जो वेस्ट आउटपुट कम करना चाहते हों
-ऐसे लोग जिन्हें क्लाइमेट चेंज के बारे में पढ़ना अच्छा लगता हो
-किसी भी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए
लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन Erin Rhoads ने किया है. इन्हें इस दशक की बेस्ट eco-blogger के तौर पर भी याद किया जाता है. इन्होंने अपनी zero-waste lifestyle से लाखों लोगों को इम्प्रेस किया है.
कम कन्ज्यूम करिए तो वेस्ट भी कम तैयार होगा
क्या आपको कभी ऐसा लगा है कि मॉडर्न वर्ल्ड बहुत तेजी से प्लास्टिक में सिमटने लगा है? सबसे बुरी बात तो ये है कि पिछली शताब्दियों में भी जो प्लास्टिक्स प्रोडयूस हुई थीं. वो आज भी हमारे चारों तरफ मौज़ूद हैं. लेकिन फिर भी हम लोग इसको लेकर सचेत नहीं हुए हैं. हम लगातार वेस्ट तैयार करते जा रहे हैं. इसलिए अब बहुत ज़रूरी हो गया है कि हमें लेस वेस्ट प्रोड्क्शन की तरफ बढ़ना चाहिए. हमें सोचना होगा कि किस तरह इस दुनिया को आज़ाद किया जा सकता है? तो फिर अब सवाल ये उठता है कि क्या आपको इस दुनिया की फ़िक्र है? क्या आपको आने वाली जनरेशन की फ़िक्र है? अगर है, तो फिर इस बुक की समरी आपके लिए ही लिखी गई है. बिल्कुल देर ना करिए और दुनिया को बदलने की नॉबल कॉज में खुद को शामिल करिए.
आपको इस समरी में ये भी सीखने को मिलेगा
-रीसाइकिलिंग का कांसेप्ट क्या होता है?
-प्लास्टिक के ज़हर को समझिए
तो चलिए शुरू करते हैं!
कई लोगों को ज़ीरो वेस्ट कांसेप्ट ही मज़ाक लगता है. उनका तर्क रहता है कि पेड़ से भी तो पत्तें गिरते हैं? तो प्रक्रति ही ज़ीरो वेस्ट कांसेप्ट को नहीं मानती है. उन्हें मालुम होना चाहिए कि पेड़ से पत्तें गिरते हैं. और उन गिरे हुए पत्तों की वजह से कई microorganisms की जीविका चलती है. जिसके कारण गिरे हुए पत्ते अपने आप खत्म हो जाते हैं. ये बताता है कि पूरा Nature ही ज़ीरो वेस्ट कांसेप्ट पर चलता है.
लेकिन Industrial Revolution, के बाद से काफी कुछ बदलता जा रहा है. अब टॉक्सिक वेस्ट का प्रोड्क्शन होने लगा है. ह्यूमन के द्वारा बनाई गईं मशीनें फ्यूल और रॉ मटेरियल्स नेचर से लेती हैं. फिर वो नेचर को टॉक्सिक वेस्ट रिटर्न में दे देती हैं.
लेकिन अभी भी समय है जब हम इस नेचर को बता सकते हैं. हम इसके लिए solar panels और recycling प्रोसेस की मदद ले सकते हैं.
हमें पता होना चाहिए कि एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक होगी. पिछले साल अफ्रीकी देश केन्या ने भी प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है. इस प्रतिबंध के बाद वह दुनिया के 40 देशों के उन समूह में शामिल हो गया है जहां प्लास्टिक पर पूर्ण रुप से प्रतिबंध है. यहीं नहीं केन्या ने इसके लिए कठोर दंड का भी प्राविधान किया है.
प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल या इसके उपयोग को बढ़ावा देने पर चार साल की कैद और 40 हजार डालर का जुर्माना भी हो सकता है. जिन देशों में प्लास्टिक पूर्ण प्रतिबंध है उसमें फ्रांस, चीन, इटली और रवांडा जैसे मुल्क शामिल हैं. लेकिन भारत में इस पर लचीला रुख अपनाया जा रहा है. जबकि यूरोपीय आयोग का प्रस्ताव था कि यूरोप में हर साल प्लास्टिक का उपयोग कम किया जाए.
यूरोपीय समूह के देशों में हर साल आठ लाख टन प्लास्टिक बैग यानी थैले का उपयोग होता है. जबकि इनका उपयोग सिर्फ एक बार किया जाता है. 2010 में यहां के लोगों ने प्रति व्यक्ति औसत 191 प्लास्टिक थैले का उपयोग किया.
इस बारे में यूरोपीय आयोग का विचार था कि इसमें केवल छह प्रतिशत को दोबारा इस्तेमाल लायक बनाया जाता है. यहां हर साल चार अरब से अधिक प्लास्टिक बैग फेंक दिए जाते हैं. भारत भी प्लास्टिक के उपयोग से पीछे नहीँ है.
देश में हर साल तकरीबन 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है. जिसमें से लगभग 9205 टन प्लास्टिक को रिसाइकिल कर दोबारा उपयोग में लाया जाता है.
इसलिए ऑथर कहती हैं कि हमें हमारे उपयोग करने के तरीके पर लगाम लगानी चाहिए, इसी के साथ हमें इस ओर भी ध्यान देना चाहिए कि दिन भर में हम कितना वेस्ट क्रिएट कर रहे हैं? सिम्पल सी बात है कि अगर हम कन्ज्यूम कैपासिटी को कम कर दें. तो वेस्ट अपने आप ही कम हो जाएगा.
इस डेटा की ओर ध्यान दीजिए.. ये डेटा किसी और देश का नहीं है बल्कि आपके और हमारे भारत का है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली में हर रोज़ 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन के साथ मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है. अब ज़रा सोचिए, स्थिति कितनी भयावह है.
अगले चैप्टर में हम समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे अपनी लाइफ में छोटे-छोटे बदलाव करके, हम दुनिया में बड़े बदलाव कर सकते हैं? इसी के साथ हम समझेंगे कि इस दुनिया में हर चीज़ इंटर कनेक्टेड है.
अपने कनस्पशन को ट्रैक करने की कोशिश करिए
पर्यावरण का संकट हमारे लिए एक चुनौती के रुप में उभर रहा है. संरक्षण के लिए अब तक बने सारे कानून और नियम सिर्फ किताबी साबित हो रहे हैं. पारस्थितिकी असंतुलन को हम आज भी नहीं समझ पा रहे हैं. पूरा देश जल संकट से जूझ रहा है.
जंगल आग की भेंट चढ़ रहे हैं. प्राकृतिक असंतुलन की वजह से पहाड़ में तबाही आ रही है. पहाड़ों की रानी कही जाने वाले शिमला में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग तरस रहे हैं.
प्लास्टिक कचरे का बढ़ता अंबार मानवीय सभ्यता के लिए सबसे बड़े संकट के रुप में उभर रहा है.
ऑथर कहती हैं कि ज़ीरो वेस्ट सिस्टम को समझने के लिए, हमें समझना होगा कि ये पूरी तरह से सर्कुलर सिस्टम है, लेकिन ज्यादातर लोग इसे linear system समझते हैं और वही उनकी गलती होती है. वो चीज़ों को खरीदते हैं, यूज़ करते हैं, फेंकते है और फिर शॉपिंग करते हैं.
इसलिए ऑथर सलाह देती हैं कि अगर हम इस दुनिया में पॉजिटिव चेंज लाना चाहते हैं? तो हमें खुद के वेस्ट सिस्टम पर नज़र डालनी चाहिए. हमें ट्रैक करना चाहिए कि हम खुद कितना प्लास्टिक वेस्ट तैयार कर रहे हैं? इसके बाद देखिए कि आपका परिवार कितना प्लास्टिक वेस्ट तैयार कर रहा है? सिम्पल सी बात यही है कि हम खुद को और अपने परिवार को बदलकर इस दुनिया में बड़ा बदलाव ला सकते हैं.
इसलिए हमें छोटे-छोटे बदलावों को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए.. हमें समझना चाहिए कि छोटे-छोटे बदलावों से पूरी दुनिया बेहतर हो सकती है. इसलिए सबसे पहले अपने आपसे वादा करिए कि आज से आप प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करेंगे. इसकी शुरुआत आप unpackaged goods को खरीदने से कर सकते हैं.
इसी के साथ ये भी खुद को याद दिलाते रहिये कि आपको हर समय कुछ नया खरीदने की ज़रूरत नहीं है. हम जितना भी वेस्ट तैयार कर रहे हैं. इस दुनिया के ऊपर उतना बोझ बढ़ता जा रहा है. इसलिए अपनी शॉपिंग की आदत को कम करने की शुरुआत कर दीजिए.. कई लोग शॉपिंग बस इसलिए करते हैं कि उन्हें इससे ख़ुशी मिलती है? इसलिए आपको समझना होगा कि ख़ुशी कभी भी किसी समान की गुलाम नहीं हो सकती है. इसलिए शॉपिंग को लेकर अपने माइंडसेट को दुरुस्त करने का समय आ गया है.
कम वेस्ट क्रिएट करने के क्रम में एक टिप ये भी है कि खुद को sharing economy का हिस्सा बनाने की कोशिश करिए.. शेयरिंग ईज़ केयरिंग.
किचन में भी वेस्ट कम तैयार करिए, इसके लिए प्लानिंग की ज़रूरत पड़ेगी
किचन से आप क्या समझते हैं?
ये किसी भी परिवार का सेंटर होता है, इसी से परिवार का जुड़ाव भी होता है. यही वो जगह होती है कि जहाँ सबकी ख़ुशियाँ पकती हैं. इसलिए कई लोग इसे ईश्वर की कृपा भी कहते हैं.
लेकिन इन बातों से इतर अगर वेस्ट की बात करें, तो किचन में भी बहुत वेस्ट क्रिएट होता है. अगर आप अपने प्लास्टिक यूज़ पर नज़र डालेंगे तो आपको पता चलेगा कि इसमें किचन की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है.
किचन में ऐसी कई चीज़ें प्लास्टिक में पैक रखीं हुईं हैं. जिनकी वहां कोई ज़रूरत नहीं है.. इसलिए हमें किचन को मैनेज करने के लिए एडवांस प्लानिंग की ज़रूरत है.
इसलिए अगली बार किचन के लिए शॉपिंग करने जाइएगा तो ख्याल रखिएगा कि प्लास्टिक से दूरी बनाने की कोशिश करनी है. इसी के साथ शॉपिंग में प्लास्टिक पैकेजिंग से भी दूरी बनाने की कोशिश करिए.
इस डराने वाले डेटा पर भी नज़र डाल लीजिए.. वैज्ञानिकों के विचार में प्लास्टिक का बढ़ता यह कचरा प्रशांत महासागर में प्लास्टिक सूप की शक्ल ले रहा है. प्लास्टिक के प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिए आरयलैंड ने प्लास्टिक के हर बैग पर 15 यूरोसेंट का टैक्स 2002 में लगा दिया था. जिसका नतीजा रहा किं 95 फीसदी तक कमी आयी.
अगर आप चाहते हैं कि महासागर की पवित्रता बनी रहे चाहे इंसानी जीवन भी बना रहे.. तो आज से ही प्लास्टिक के उपयोग को पूरी तरह से मना कर दीजिए. अगर आप अपनी लाइफ से प्लास्टिक को बाहर कर देते हैं. तो आप दुनिया के लिए कुछ ज्यादा समय के लिए ज़िन्दगी को बचा सकते हैं.
अब ये फैसला हमारा है कि हम प्लास्टिक के रूप में ज़हर को रखना चाहते हैं. या फिर ज़िन्दगी को इस दुनिया में एक और मौका देना चाहते हैं?
वास्तव में प्लास्टिक हमारे लिए उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक की स्थितियों में खतरनाक है. इसका निर्माण पेट्रोलियम से प्राप्त रसायनों से होता है. पर्यावरणीय लिहाज से यह किसी भी स्थिति में इंसानी सभ्यता के लिए बड़ा खतरा है. यह जल, वायु, मुद्रा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है.
‘टेक केयर’ कांसेप्ट की मदद से कम वेस्ट प्रोड्यूस किया जा सकता है
अब ‘kitchen sink’ के अंदर झाकने का समय आ गया है, जहाँ आपको कई तरह की प्लास्टिक देखने को मिलेंगी.. साथ ही साथ कई तरह के केमिकल वेस्ट भी नज़र आएंगे. इनमें से कई केमिकल्स तो hormone disruptors,neurotoxins, और carcinogens की तरह खतरनाक भी बन चुके हैं.
लेकिन हम अपने पूर्वज़ों की तरह सोचकर इस तरह के वेस्ट से बाहर आ सकते हैं. हमें समझना चाहिए कि लाइफ को ख़ुशहाल बनाने के लिए हमारे पूर्वज़ों को कभी भी प्लास्टिक की ज़रूरत नहीं पड़ती थी. इसलिए हम भी बिना प्लास्टिक के खुश रह सकते हैं.
zero-waste lifestyle आपको सीखाती है कि कैसे केमिकल फ्री ज़िन्दगी को जीना चाहिए.. ये लाइफ स्टाइल हमें चीज़ों को सही ढ़ंग से मैनेज करना भी सीखाती है.
प्लास्टिक के मामले में एक्सपर्ट्स का कहना है कि सच तो यह है कि प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिये गम्भीर खतरा है.
वैज्ञानिक तो बरसों से इसके दुष्परिणामों के बारे में चेता रहे हैं. अपने शोधों, अध्ययनों के माध्यम से उन्होंने समय-समय पर इससे होने वाले खतरों को साबित भी किया है और जनता को उससे आगाह भी किया है.
जहाँ तक हमारे देश का सवाल है, हमारे यहाँ यह समस्या खासकर इसलिये और भयावह शक्ल अख्तियार कर चुकी है क्योंकि देश में जारी स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लास्टिक युक्त कचरे से क्या गाँव, क्या कस्बा, क्या नगर-महानगर, यहाँ तक कि इससे देश की राजधानी तक अछूती नहीं है.
इस मामले में देश की राजधानी की हालत और बदतर है. असलियत में यहाँ जगह-जगह प्लस्टिक बैग बिखरे पड़े रहते हैं. विडम्बना यह कि प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबन्दी है. लेकिन इसके बावजूद इसका इस्तेमाल बदस्तूर जारी है.
अपनी कपड़ों को लेकर भी सजग रहने की ज़रूरत है
विश्वास करिए या ना करिए.. लेकिन वेस्ट का एक सबसे बड़ा सोर्स clothing भी है..“fast fashion,” के चलन की वजह से लोग हर हफ्ते नए कपड़े खरीदते रहते हैं. लोगों को ये दिखाने में मज़ा आता है कि उनके पास कितने ज्यादा कपड़े हैं? लेकिन हमें पता होना चाहिए कि हम ना चाहते हुए भी “fast fashion,” लाइफस्टाइल के गुलाम बन चुके हैं.
इसलिए ऑथर सलाह देती हैं कि सबसे पहले तो इस बात को मान लीजिए कि लाइफ की ख़ुशी कभी भी गुलाम बनने में नहीं है. इस दुनिया में कोई भी गुलाम बनकर खुश नहीं रह सकता है. इसलिए खुद को हर उस गुलामी से आज़ाद करिए.. जिसने आपको जकड़कर रखा है. इसलिए किसी को भी इम्प्रेस करने के लिए शॉपिंग करना बंद कर दीजिए.
याद रखिए कि कोई भी लाइफ स्टाइल आपसे है.. आप किसी लाइफ स्टाइल से नहीं हैं.. इसलिए सबसे पहले खुद के मन के स्वामी बनिए.. ऐसा करने से आपको पता चलेगा कि शॉपिंग करना एक बीमारी की तरह है. जिसकी चपेट में हम सब आते जा रहे हैं. यहाँ बात हद से ज्यादा शॉपिंग करने की हो रही है.
‘zero-waste lifestyle’ बताती है कि अलमारी में कम से कम कपड़ों में भी आप ख़ूबसूरत दिख सकते हैं. क्योंकि ख़ूबसूरती इंसान के अंदर से आती है.. ना कि अलमारी में भरे कपड़ों से.. इसलिए आज से उतनी ही शॉपिंग करिए.. जितनी शॉपिंग इस दुनिया के उपार बोझ ना बने..
प्लास्टिक को लेकर साइंटिस्ट कहते हैं कि प्लास्टिक कचरे के दुष्प्रभाव से हमारे समुद्र भी अछूते नहीं हैं. समुद्र में जिस तेजी से प्लास्टिक कचरा जमा हो रहा है, उससे समुद्री नमक जहरीला होता जा रहा है.
ब्रिटेन सहित बहुतेरे यूरोपीय देशों, अमरीका, फ्रांस, मलेशिया और चीन में बाजारों में बिकने वाले समुद्री नमक में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण कहें या टुकड़े पाये गए हैं. वैज्ञानिक जाँच में खुलासा हुआ है कि समुद्र में पहुँच रहा प्लास्टिक का कचरा हमारे खाने में पहुँच रहा है. पूर्व में हुए शोध-अध्ययन प्रमाण हैं कि ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय मुल्कों के समुद्री तटों पर पकड़ी गई मछलियों के पेट में प्लास्टिक के कण पाये गए हैं.
इसलिए आज से ही हम लोगों को ‘zero-waste lifestyle’ के बारे में ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की शुरुआत कर देनी चाहिए. और इसे जल्द से जल्द अपनी लाइफ में उतारने की कोशिश भी शुरू कर देनी चाहिए.
ख़ुद से बहुत प्यार करिए और नेचुरल चीज़ों से दोस्ती करिए
सबसे पहले इस बात को जान लीजिए कि आशंका जताई जा रही है कि आर्कटिक सागर में प्लास्टिक के टुकड़ों का तेजी से बढ़ने के कारण आस-पास के देशों का समुद्री प्रदूषण हो सकता है. अब तक के अध्ययनों से यह साबित हो गया है कि दुनिया के महासागरों में साल 2010 तक तकरीब 80 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा मिल चुका है और दिन-ब-दिन इसमें बढ़ोत्तरी जारी है जो खतरनाक संकेत है.
इसमें दो राय नहीं कि धरती पर प्लास्टिक जितना कम होगा, उतना ही वह समुद्र में कम पहुँचेगा. इसलिये यदि समुद्र में प्लास्टिक कम करना है तो हमें धरती पर उसका इस्तेमाल कम करना होगा.
इन सभी बातों के साथ ये भी जान लीजिए कि जिस तरह किचन की सिंक के नीचे वेस्ट भर गया है. उसी तरह इंसान ने अपने शरीर को भी वेस्ट से भर लिया है. आज के समय में लोग केमिकल प्रोडक्ट्स का बहुत ज्यादा उपयोग करने लगे हैं. लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि ये प्रोडक्ट्स लॉन्ग रन के लिए आपके शरीर के लिए नुकसान दायक हैं. इसलिए खुद को केमिकल फ्री रखने की कोशिश करिए.
ऑथर सलाह देती हैं कि आज के दौर में आपको खुद से बहुत ज्यादा प्यार करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप केमिकल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल शुरू कर दें. खुद से प्यार करिए और साथ ही साथ में खुद की दोस्ती भी केमिकल फ्री प्रोडक्ट्स से करवाइए.
आपको शायद पता हो की प्लास्टिक की थैलियां जहरीले केमिकल्स से बनाई जाती हैं. इन्हें बनाने में जिन कैमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है उनसे बीमारियों के साथ साथ कई विकार भी हो सकते हैं. रंग बिरंगे प्लास्टिक के खिलौनोंमें कैमिकल वाले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो बच्चों लिए हानिकारक होता है.
इन खिलौनों में आर्सेनिक और सीसा मिला हुआ होता है, जिससे बच्चों को कैंसर होने का खतरा होता है. प्लास्टिक की थैलियां हों या फिर पानी की बोतलें, दोनों ही चीजें इंसान को कैंसर दे सकती हैं. गर्मी और धूप के कारण प्लास्टिक से विषैले पदार्थ निकलते हैं, जो कैंसर का कारण बनते हैं.
अगर आप प्लास्टिक का यूज़ कर रहे हैं तो ध्यान रखिएगा कि प्लास्टिक के डिब्बों में खाने पीने का सामान रखने से पहले उसे ठंडा रखना चाहिए वरना प्लास्टिक के रासायनिक पदार्थ खाने में मिल जाते हैं और शरीर के अंदर पहुंच कर कैंसर, आंत संबधी कई बीमारी पैदा कर सकते हैं.
ऑथर सलाह देती हैं कि अच्छी लाइफ जीने के लिए खुद को नेचर के करीब लाने की कोशिश करिए..अपने जीवन से केमिकल्स को बाहर कर दीजिए और खुद को नेचुरल बना लीजिए.
कुल मिलाकर
“zero-waste lifestyle” आपको खुशियों के पास भी लाएगी और अध्यात्म से भी मिलवाएगी, जिससे आप भी खुश हो जाएंगे और इस दुनिया को भी खुश कर देंगे. रिसर्च से ये बात सामने आई है कि प्लास्टिक के बोतल और कंटेनर के इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है. प्लास्टिक के बर्तन में खाना गर्म करना और कार में रखे बोतल का पानी कैंसर की वजह हो सकते हैं. इसलिए आज से ही ज़िन्दगी से प्लास्टिक को निकालकर बाहर फेंक दीजिए.
क्या करें?
“zero-waste lifestyle” को फॉलो करने की कोशिश करिए, खुद की ज़िन्दगी का हिसाब रखिए.. आपको पता होना चाहिए कि आप कितना वेस्ट क्रिएट कर रहे हैं. इसी के साथ आपको ये भी पता होना चाहिए कि कम वेस्ट कैसे क्रिएट करना है?
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