Khushwant Singh
एक ऐतिहासिक नॉवेल
दो लफ्जों में
1947 में जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान अलग अलग हुए थे। तब बहुत सारे लोगों को अपना घर छोड़ कर जाना पड़ा था। जो ट्रेन लोगों को लाना - ले जाना करती थी। उस ट्रेन का नाम भूतिया ट्रेन पड़ गया था। साल भर में कम से कम 1 करोड़ लोग अपना घर बदलने पर मजबूर हो गये थे।जिसमें से 10 लाख लोग मारे गए थे। इस कहानी में मनो माजरा में आम इंसान के साथ हुई गई घटनाएं बताई गई हैं । आज मनो माजरा में सुकून बरकरार है और इसका श्रेय जगत सिंह को जाता है । कहने को तो वह डाकू था
, लेकिन उसने जो काम किया था किसी हीरो सेकम नहीं था।यह किन लोगो के लिए है
यह कहानी उन लोगों के लिए है जो ऐतिहासिक कहानियां पढ़ना पसंद करते हैं।लेखक के बारे में
खुशवंत सिंह भारत के जाने-माने लेखक हैंवह 'योजना',"हिंदुस्तान टाइम्स"जेसी फेमस न्यूज़पेपरऔर मैगज़ीन के एडिटर रह चुके हैं वे 1980 से 1986 तक पार्लियामेंट के मेंबर भी रह चुके हैं। उन्होंने कई कहानियां लिखी। उन्हें 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और 2007 में उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।
Train to Pakistan by Khushwant singh
1947 की गर्मी कोई आम गर्मी नहीं थी। भारत में सूखा पढ़ने जैसे हालात पैदा हो गए थे । उस साल बारिश भी देर से हुई थी lभारत से टूट कर पाकिस्तान अलग हो गया था। लोगों को अपने घर छोड़ने पढ़ रहे थे ।और धर्म , जाति, समाज के नाम पर दंगे फसाद शुरू हो गए थे । कलकत्ता से दंगों की जड़शुरू हुई थी जिसमें कुछ ही हफ्तों में हजारों लोग मारे गए थे । हिंदू -मुस्लिम के आपस में दंगे हो रहे थे ।कलकत्ता से दंगे बढ़ते हुए बिहार तक आ गए जहां पर हिंदू लोगों ने मुसलमानों को मारा था और वहां से फैल कर बंगाल तक पहुंच गए जहां पर मुसलमानों ने हिंदुओं को मारा था। दोनों ही जाति के लोग दंगों के लिए एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे थे। मुसलमानबंगाल जा रहे थे, तो हिन्दू बिहार जा रहे थे। पूरे उत्तर भारत में अफरा तफरी मची हुई थी। जब तक बारिश का मौसम आया तब तक तो 10 लाख लोग मारे जा चुकी थे और दंगे पूरे उत्तर भारत में फैल चुके थे। बस कुछ छोटे-छोटे से गांव ऐसे बचे थे जिन में अमन और सुकून था ऐसा ही एक गांव मनो माजरा भी था।
मनो माजरा एक छोटा- सा गांव था। यहां के लोग आपस में प्रेम से रहते थे।यहां पर एक स्टेशन था। जिसमें दिन रात ट्रेन आना जाना करती थी ।मनो माजरा के लोगों की दिनचर्या ट्रेन की सीटी के हिसाब से चलती थी ।ट्रेन स्टेशन पर एक पुल से होती हुई आती थी। यह पुल ट्रेन के आने का इकलौता रूट था। स्टेशन की पूरी जिम्मेदारी स्टेशन मास्टर के ऊपर थी । स्टेशन मास्टर टिकट देने से लेकर ट्रेन के आने जाने तक सारे काम देखता था। यहां पर अक्सर डकैतीहो जाया करती थी। यहां लगभग 70 परिवार रह रहे थे।जिनमें से आधे मुसलमान और आधे सिख थे और सिर्फ एक ही हिंदू परिवार था। और वोथा लाला रामलाल का। लाला राम लाल एक जमींदार था।पूरे गांव में सिर्फ 3 ही पक्की बिल्डिंग थीं। जिनमें से एक गुरुद्वारा था जिसके पुजारी का नाम मीत सिंह था। एक मस्जिद थी जिस के इमाम का नाम इमाम बख्श था।और एक लाला रामलाल का घर था।
अगस्त की एक अंधेरी रात को कुछ डाकू लाला राम लाल के घर आए। उन लोगों ने लाला राम लाल कोमार कर उसका सारा का सारा धन लूटलिया । फिर वे लोग जगत सिंह के घर गए और उन डाकुओं ने जगत केघर के दरवाजे के सामने कुछ चूड़ियां फेंक दिया और उसे बाहर आने के लिए ललकारा। जगत सिंह उस वक्त घर पर नहीं था।जब कोई घर से बाहर नहीं आया तो वह लोग हंसते हंसते चले गए।
जगत सिंह मनो माजरा का जाना माना डाकू था।उसका गांव से बाहर जाना मना था।जब डाकू जगत सिंह के घर आए तो वह उस वक्त अपनी प्रेमिका से मिलने गया था ।जिसका नाम नूरन था। नूरन मुस्लिम थी और इमाम बख़्श की बेटी थी।
नूरन और जगत सिंह गांव से बाहर रेत पर लेटे हुए थे तभी अचानक दोनों ने गोली चलने आवाज़ सुनी।नूरन डरने लगी और जगत सिंह को वापस जाने के लिए कहने लगी।जगत सिंह ने कहा कोई गोली नहीं चली ये तुम्हारा वहम है। तभी दो गोली और चलने की आवाज आई। नूरन रोने लगी और कहने लगी इस आवाज़ से सब उठ गए होंगे।अगर मैं अब्बा को इस वक्त घर पर नहीं मिली तो वह मुझे मार डालेंगे। मुझे जाने दो! खुदा के लिए! तभी जगत सिंह को किसी के आने की आहट महसूस हुई। उसने नूरन को चुप कराया और दोनों छुप गए तभी वहां से डाकू गुज़रे।उनमें से एक डाकू को जगत सिंह ने पहचान लिया और कहा 'ये तो मल्ली हैं कि यह वक़्त डाका डालने का नहीं है।' असल में मल्ली जगत सिंह का पुराना साथी था जिसके साथ वह डाका डाला करता था।
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पुल के पास ही एक बहुत खूबसूरत सा रेस्ट हाऊस था। रेस्ट हाऊस के बाहर ही एक छोटा सा बाग था। जिसमें कई सारे पौधे लगे हुए थे। यह घर कई दिनों से खाली था। लाला राम लाल के घर डकैती होने से एक दिन पहले यहां की खूब सफाई हो रही थी।बहुत से नोकरमिल कर इस घर को रहने लायक बनाने में लगे थे।
दूसरे दिन सुबह 11 बजे यहां रहने एक डेप्युटी ऑफिसर -मजिस्ट्रेट आया।जिसका नाम हुकुमचंद था। उसके साथ दो बड़े पुलिस अधिकारी और थे ।वे घर में गए और उन्होंने दिन होने तक शराब पी और साथ ही गांव के हालात भी डिस्कस किया। हुकुमचंद को यह जानकर हैरानी हुई की यहां मनो माजरा में कोई दंगा फसाद नहीं हो रहा था ।यहां पर तो सिख और मुसलमान आराम से रह रहे थे।हुकुमचंद ने सब-इंस्पेक्टर से पूछा के गांव में कोई ऐसा इंसान तो नहीं है जिस से गांव को कोई खतरा हो? तो ऑफिसर ने बताया कि जगत सिंह इस गांव का सबसे बड़ा डाकू है लेकिन फिलहाल हमें उससे कोई खतरा नहीं है क्योंकि उसका चक्कर एक मूल्ला की बेटी से चल रहा है। वह यहां हर हफ्ते हाजरीदेने आता हैं ।लंबे समय से उसकी कोई डकैती की खबर भी नहीं आई है। हुकुमचंद ने जगत सिंह पर नजर रखने का आदेश दिया। वह समझ गया था कि अभी तक इस गांव में कोई भी रिफ्यूजी पनाह लेने नहीं आया है और मनो माजरा के लोगों को यह भी नहीं पता है कि अंग्रेज हिंदुस्तान छोड़ कर जा चुके हैं।
उसके साथ केपुलिस ऑफिसर अपने दिल की बातें बता रहे थे। लेकिन हुकुमचंद ने उन्हें भी चुप रहने को कहा। उसने कहा कि गवर्नमेंट की तरफ से रोज कोई ना कोई नया कानून लागू हो रहा है ।थोड़े दिन में सब कुछ ठीक हो जाएगा । तब तक के लिए हमें कुछ नहीं करना चाहिए । बस जैसा गवर्नमेंट हमें बोलती है हमें वैसा करना चाहिए ।पुलिस वालों के लिए पुलिसस्टेशन में कोई काम आ गयाथा । तो इसलिए वह दोनों पुलिस अधिकारी हुकुमचंद से इजाजत लेकर जाने लगे। हुकुमचंद ने उन्हें रोककर पूछा कि मैंने तुम्हें जो काम बताया था वह हो गया क्या? तो उनमें से एक पुलिस ऑफिसर ने कहा के जी हां हो गया। अगर आपको कोई परेशानी हो तो मुझेबता दीजिएगा। मैं लड़की को बदल दूंगा और फिर वे दोनों चले गए।
शाम को हुकुमचंद खूब तैयार होकर बैठा था और अपने मनोरंजन के लिए बुलवाई गई औरतों का इंतज़ार कर रहा था। तभी दरवाज़ा खुला और वे आ गईं । वे गाना गा रही थीं और हुकुमचंद उन पर पैसे लूटा रहा था।इस तरह काफी रात हो गई।उन में से सबसे छोटी लड़की हुकुमचंद को अच्छी लगी।उसका नाम हसीना था।उसने उस लड़की को रोक कर बाकी सबको जाने के लिए कह दिया।जब हुकुमचंद ने गोली चलने की आवाज सुनी तब वह अपनी मौज मस्ती में लगा था तो उसने उठ कर तहकीकात करना जरूरी नहीं समझा।
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आज रेलवे स्टेशन पर रोजाना के मुकाबले ज्यादा भीड़ थी तब ही ट्रेन से एक हट्टा कट्टा नौजवान उतरा ।देखने से तो वह पढ़ा लिखा मालूम हो रहा था ।उसने station masterसे पूछा के यहां मुसाफिरखाना कहां मिलेगा? तो वहहंसकर बोला यहां कोई होटल या लॉज नहीं है , अगर आप सिख हो तो गुरुद्वारे में जाकर रहो या मुसलमान हो तो मस्जिद में जाकर रुको। जैसे ही उसने स्टेशन मास्टर को थैंक्यू कहा तो उसके आसपास के लोग उसे घूरने लगे ।उन लोगों के लिए किसी आदमी का थैंक्यू कहना यह इंडिकेशन था कि वह हिंदुस्तान का नहीं है।वहकोई एजेंट है याकोई रिफ्यूजी है या फिर किसी बड़े अधिकारी का बेटा है और वहां के लोग ऐसे इंसान को पसंद नहीं करते थे ।
वह एक गुरुद्वारे चला गया। वहां पर उसकी मुलाकात मीत सिंह से हुई जो वहां का पुजारी था। मीत सिंह ने उसे रहने के लिए कमरा दे दिया। मीत सिंह ने उससे उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि उसका नाम इकबाल सिंह है। सिंह सरनेम सुनकर मीत सिंह समझ गया कि यह सिख है। इकबाल ने मीत सिंह को बताया कि वह एक सोशल वर्कर है। उसके मां-बाप झेलममें रहते हैं जो अब पाकिस्तान बन गया है ।वह लंबे समय से विदेश में पढ़ाई करने गया था ।वहां उसे हिंदुस्तान केहालात मालूम पड़े तो वह यहां लोगों की मदद करने आ गया और वह इस गांव के हालात मालूम करने आया है कि कहीं यहां भी रिफ्यूजी तो नहीं हैं? दंगे फसाद तो नहीं हो रहे हैं? मीत सिंह उसकी बातें ध्यान से सुन भी नहीं रहा था। उसे तो सिर्फ विलायत की बातों में दिलचस्पी थी कि वहां लोग कैसे रहते हैं ?क्या करते हैं?मीत सिंह ने इकबाल को कल रात हुई डकैती के बारे में बताया और फिर वहां सेचला गया।
इक़बालसफर की वजह से बहुत थक गया था।उसकी आंख लग गईतभी वहां मीत सिंह आया और उसने इक़बाल को बताया कि लाला राम लाल की मौत का इल्जाम जग्गा पर है।जग्गा के घर के दरवाज़े पर से वह चूड़ियां मिली हैं जो लाला राम लाल के घर से लूटी गईं थीं। पुलिस जग्गा को ढूंढ रही है।इक़बाल ने मीत सिंह से पूछा कि बाहर घूमने के लिए कौन सी जगह अच्छी रहेगी?मीत सिंह ने कहा कि आप जहां चाहें चले जाए, बस अंधेरा होने से पहले वापस आ जाना। इक़बाल गांव देखने निकल गया।
जब वह वापस आया तो बहुत थक गया था । वह सीधा जाकर चारपाई पर लेट गया ।फिर वहां मीत सिंह आया और कहने लगा बाबू साहबआपके लिए खाना लगवा दूं?पर इक़बाल ने उसे बड़े प्यार से मना कर दिया। मीत ने उसे बताया के मैंने आपके लिए छत पर भी सोने का इंतजाम करवा दिया है।लंबरदार आपके लिए दूध लेने गया है। इमाम बख्श भी छत पर ही है। वे सब आपसे मिलने आए हुए है।इक़बाल भी छत पर चला गया और सबसे मिला।सबसे बातचीत करने पर उसे मालूम हुआ कि इस गांव के लोगों को तो इस बात का ज़रा सा भी अंदाजा नहीं है कि दुनिया में क्या हो रहा है।
दूसरे दिन सुबह के पहले पहर में पुलिस ने गुरुद्वारे आकर इक़बाल को गिरफ्तार कर लिया था।इक़बाल ने बहुत गुस्से मेंपुलिस वालों से पूछा कि , मेरा जुर्म क्या है? पुलिस वालों ने जवाब दिया कि बाबू साहिब हम तो सिर्फ हमारी ड्यूटी के रहें हैं। हमें आपको गिरफ्तार करने का ऑर्डर मिला है। पुलिस वाले उसे इज्जत से गिरफ्तार कर के ले गए।
उस ही सुबह कई सारे पुलिस वालों ने जाकर जगत सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस वालों ने जगत सिंह और उसकी मां को बताया कि जगत सिंह पर रामलाल को मारने और उसके घरडाका डालने का इल्जाम है । जगत सिंह की मां रोने लगी और कहने लगी जग्गा ने कोई डाका नहीं डाला। तभी पुलिस वालों ने उसे बताया कि जिस दिन रामलाल का खून हुआ था, उस दिन जग्गा गांव में नहीं था जबकि उसका गांव से बाहर जाना मना है। हमें शक है कि जग्गा ने ही डकैती की है । जग्गा की मां ने पुलिसवालों को लूटी गई चूड़ियों का बॉक्स दिखाया और बताया कि यह उस दिन डाकू हमारे दरवाजे पर फैंक कर गए थे ।परवे लोग नहीं रुके और जगत सिंह को गिरफ्तार करके अपने साथ पुलिस स्टेशन ले गए।
पुलिस वाले इक़बाल और जगत सिंहको एक ही गाड़ी में बैठा कर रेस्ट हाउस की तरफ ले गए। वहां पर सब इंस्पेक्टर था । उसने पुलिस वालों को जग्गा और इकबाल को सर्वेंट क्वार्टर में छोड़ने का हुक्म दिया ।जब पुलिस वालों ने सब इंस्पेक्टर को बताया कि उन्होंने इकबाल को अरेस्टकर लिया है। तो सब इंस्पेक्टर बहुत नाराज हुआ ।असल में उसने पुलिस वालों को यह आर्डर दिया था कि जो भी नया इंसान दिख रहा है और गरीबों का मसीहा बन रहा है , उसे गिरफ्तार करके ले आओ पर जब उसे पता चलाकी यह तो वही इक़बाल है जो उनके साथ दिल्ली से मनो माजरा आया था ।तो उसने पुलिस वालों को डांटा।
सब इंस्पेक्टर ने हुकुमचंद को इक़बाल और जगत सिंह की गिरफ्तारी के बारे में बताया। हुकुमचंद ने इकबाल के मां-बाप और कास्ट के बारे में पूछा। सब इंस्पेक्टर के पास कोई जवाब नहीं था ।हुकुमचंद ने सब इंस्पेक्टर को डांटा और कहां कि तुम मुझसे खाली वारंट साइन करवा लेते हो और किसी को भी उठा कर जेल में बंद कर देते हो। किसी दिन तुम्हारी बेवकूफिओं की वजह से मुझे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। अब जाओ जाकर इकबाल के बारे में सब कुछ मालूम करो।
सब इंस्पेक्टर ने इकबाल को अकेले में ले जाकर उसकी पैंट उतरवा कर मालूम कर लिया कि वह मुसलमान नहीं है ।सब इंस्पेक्टर ने यह बात हुकुमचंद को बताया पर हुकुम चंद ने कहा एक फाइल बनाओ जिसमें इकबाल का नाम मोहम्मद इकबाल बताओ और उसके मां-बाप का नाम भी कुछ मोहम्मद करके लिख दो । अगर कल को गांव में कुछ ऊंच-नीच होती है तो हमें कार्रवाई करने में आसानी होगी और जगत सिंह से उस के साथियों के नाम को उगलवाओ।
जगत सिंह और इकबाल को चंदन नगर की जेल में बंद कर दिया गया ।इकबाल को तो पुलिस वाले ठीक से ट्रीट करते थे ।लेकिन जगत सिंह के साथ उनका बर्ताव ठीक नहीं था । जेल में सिर्फ वह दोनों ही कैदी थे ।पुलिस वाले जगत सिंहसे उसके साथियों के नामउगलवाने की हर मुमकिन कोशिश कर चुके थे पर कई हफ्ते बीत गए थे और उनके हाथ अभी तक कोई खबर नहीं लगी थी।
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सितंबर की शुरुआत में ट्रेन के आने जाने के वक्त का हिसाब गड़बड़ा गया। जिसका असर मनो माजरा के लोगों की दिनचर्यापर बहुत ज्यादा हुआ। सिख सिपाहियों की एक तुकड़ी आकर रेलवे स्टेशन के पास रहने लगी थी। उन लोगों ने रेलवे स्टेशन के आसपास की जगह पर 6 फुट ऊंची दीवार उठा दी थी। वे लोग वहां दिन रात पहरा देते थे। गांव वालों के स्टेशन के आसपास आने जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी।
मीत सिंह और इमाम बख्श दोनों की गांव में बहुत इज्जत थी।दोनों आपस में बहुत अच्छे दोस्त भी थे।दोनों ने मिल कर गांव वालों को एक सुबह मीटिंग के लिए बुलाया। मीटिंग गुरुद्वारे में रखी गई थी।पूरे गांव के लोग वहां मीटिंग के लिए आए अभी उन्होंने गांव के हालात के बारे में बातचीत शुरू ही की थी कि वहां एक पुलिस वाला आया और उसने पूछा तुम में से लंबरदार कौन है ?लंबरदार उठकर पुलिस वाले के पास गया और उसने पूछा - जी साहब क्या हुआ ?पुलिस वाले ने लंबरदार के कान में कुछ कहा और वहां से चला गया। लंबरदार ने मीटिंग में बैठे सब गांव वालों सेकहा कि तुम लोगों के पास जितना भी मिट्टी का तेल और लकड़ियां है वह लेकर रेलवे स्टेशन पहुंच जाओ। सब हैरान होकर लंबरदार की तरफ देखने लगे ।तो उसने कहा जल्दी करो नहीं तो पुलिस वाले हमें मारेंगे।
पूरे गांव वालों ने बिना कोई सवाल पूछे मिट्टी का तेल ले जाकर रेलवे स्टेशन वाले ऑफिसर्स को दे दिया। लकड़िया ट्रक में चढ़ाते वक्त इमाम बख्श ने ऑफिसर से पूछा कि साहब सब कुछ ठीक तो है ना,कोई परेशानी तो नहीं है? जिस पर पुलिस वाले ने बहुत बदतमीजी से इमाम बख्श को जवाब दिया कि तुम अपने काम से काम रखो ।गांव वालों को यह बात बहुत बुरी लगी थी क्योंकि वह लोग इमाम बख्श की बहुत इज्जत करते थे ।पुलिस वाले गांव वालों को कुछ नहीं बता रहे थे।इसलिए सब गांव वाले जाकर लंबरदार से शिकायत करने लगे और पूछने लगे कि आखिर बात क्या है? इमाम बख्श ने गांव वालों को समझाया कि इस सब में लंबरदार की कोई गलती नहीं है। वह सच में कुछ नहीं जानता।अगर हम लोगों कोमालूम करना है कि रेलवे स्टेशन में क्या हो रहा है तो हमें अपने घरों की छतों पर चढ करदेखना चाहिए।सब गांव वालों ने इमाम बख्श की बात मान लीऔर ऐसा ही किया,पर किसी को कुछ भी साफ साफ नहीं दिख रहा था। बस रेस्ट हाउस की तरफ से आग की लपटें उठती हुई दिख रहीं थीं और पूरे गांव में अजीब सी बदबू आ रही थी।
दूसरे दिन गांव वालों को मालूम पड़ा कि कल पाकिस्तान से जो ट्रेन आई थी उसमें एक भी इंसान जिंदा नहीं था।किसी ने उस ट्रेन में आग लगाकर सब लोगों को मार दिया था।
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हुकुमचंद ने जब ट्रेन के अंदर के यात्रियों को इस तरह मरा हुआ देखा तो उसके दिमाग ने थोड़ीदेर के लिए तो काम करना ही बंद कर दिया। 2 घंटे बाद वो थोड़ा नॉर्मल हुआ था। सुबह से लेकर रात तक उसने कई लाशें ठिकाने लगवाई थीं । उनमें बूढ़े, बच्चे , औरतें , आदमी सभी लोग शामिल थे।उसे यह सब देख कर ट्रेन के पैसेंजर्स के लिए बहुत बुरा लग रहा था, बहुत दुख हो रहा था। वह जैसे-तैसे काम खत्म करवा कर घर आ गया था
हुकुमचंद ने बचपन में अपनी आंटी को मरते हुए देखा था पर इस वाक्ये ने उसकी आत्मा को झंझोड़ कर रख दिया था। इतनी सारी लाशों के ढेर को देखने के बाद उसका दिल हिल गया था। उसे किसी चीज का होश नहीं था ।उसे उल्टियां हो रहीं थी ।कुछ खाने का भी मन नहीं था। उसने जब सोने की कोशिश की तो उसे अपने सपने में ट्रेन का अंदर का वह मंज़र दिखा जब वह ट्रेन के अंदर तहकीकात करने गया था ।ट्रेन के अंदर के सारे यात्री जलकर मर चुके थे ।उन्हें बहुत बेरहमी से मारा गया था । वह चिल्ला कर उठ गया । जब उसकी नींद खुली तो एक नौकर उसके पास खड़ा था । नौकर ने पूछा की क्या मैं आपकी कोई मददकर सकता हूं? तो हुकुमचंद ने नौकर से कहकर हसीना को अपने पास बुलवा लिया । हसीना पूरी रात हुकुमचंद के साथ ही थी पर हुकुमचंद ने उस रात उसके साथ कुछ नहीं किया। वह बस ऐसे ही चुपचाप बैठा हुआ था । उसे बस कोई चाहिए था जिसके साथ बैठकर वह कुछ बात कर सके और अपने दिल का हाल उसे बता सके।वह उस दिन के बाद से धीरे धीरे हसीना से प्यार करने लगा था।
September को शुरू हुए कई दिन बीत गए थे और अभी तक बारिश नहीं हुई थी। अब गांव में पानी की आफत हो शुरू हो गई थी।आखिरकार बारिश आ गई । जिस दिन बारिश आई, उस दिनहुकुमचंद से मिलने सब इंस्पेक्टर आया और उसने हुकुमचंद को बताया कि आस पास के गांवों से मुसलमान पाकिस्तान चले गए हैं और पाकिस्तान से करीब 50 सिख मनु माजरा की तरफआ रहे हैं ।अगर पानी अच्छे से आया तो सतलज नदी भर जाएगी और गांव से आने जाने का रास्ता सिर्फ वह पुल ही रह जाएगा । जिस पर से ट्रेन आती जाती है ।
हुकुमचंद ने सब इंस्पेक्टर से राम लाल के मर्डर के बारे में पूछा कि क्या हुआ? उस जगत सिंह ने अपने साथियों का नाम बताया कि नहीं? उसने अपना जुर्म कबूला या नहीं ?तो सब इंस्पेक्टर ने उसे बताया कि हांजगत सिंह ने हमें बताया कि उन डाकूओं में से दो डाकू उसके पुराने साथी थे। उनमें से एक का नाम मल्ली है और वह लोग कानपुर केहैं। हुकुमचंद ने यह पूछा कि क्या वह लोग मुस्लिम है । सब इंस्पेक्टर ने बताया कि नहीं वह सब तो सिख हैं। हुकुमचंद ने कहा कि काश वह लोग मुसलमान होते तो हम उनका नाम लिस्ट में चढ़ा कर मनो माजरा के सारे मुसलमानों को शांतिपूर्वक पाकिस्तान पहुंचा देते । सब इंस्पेक्टर ने हुकुमचंद से पूछा साहब क्या जगत सिंह और शहरी बाबू को रिहा कर दें? तो हुकुमचंद ने मना कर दिया और कहा कि यह लोग हमारे काम आ सकते हैं ।मल्ली और उसके साथियों को अभी के लिए छोड़ दो । हम उन्हें बाद में अरेस्ट करेंगे । उन पर नजररखो। असल में हुकुमचंद इकबाल को मुस्लिम रिफ्यूजी साबित करना चाहता । इससे उसकी नौकरी भी बच जाएगी और मुसलमान आसानी से और सुकून से मनो माजरा छोड़ कर चले जाएंगे। हुकुमचंद ने सब इंस्पेक्टर को ऑर्डर दिया कि जाकर मुस्लिम रिफ्यूजी कैंप के कमांडर से कहो कि हम मनो माजरा के मुसलमानों को यहां से पाकिस्तान भेजने के लिए तैयार हैं ।आप ट्रेन का बंदोबस्त कर दीजिए।
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जबसे लोगों को मालूम पड़ा था कि पाकिस्तान की ट्रेन में से सब लोग मरे हुए आए थे, तब से गांव का वातावरण बहुत बदल गया था ।अब लोग आपस में दोस्ती करने में सोचने लगे थे और लोगों ने एक दूसरे पर यकीन करना भी कम कर दिया था। उनके दिलों में एक दूसरे के लिए शक पैदा होने लगा था।इतनी बारिश हो रही थी लेकिन वे लोग रोज अपनी छतों पर चढ़कर रेलवे स्टेशन की तरफ देखते थे कि कहीं फिर से कोई ऐसी ट्रेन तो नहीं आई है जिसमें लाशें हैं ।हालांकि उसके बाद से ऐसा कुछ नहीं हुआ था।हुकुमचंद से यह बात छुपी नहीं थी और वह चाहता था कि मुसलमान जल्द से जल्द मनो माजरा छोड़कर पाकिस्तान चले जाएं ताकि मनो माजरा में सुकून बना रहे इसीलिए उसने पूरे गांव में यह एलान करवा दिया थाकि मुसलमानों को अब कुछ दिनों के लिए पाकिस्तान में जाकर रहना होगा ,ताकि किसी की भी जान माल का नुकसान ना हो। उन्हें यह कहा गया था कि वे थोड़े दिन बाद वापस आ सकते हैं।
मुसलमानों ने ऑर्डर्स फॉलो करने का फैसला किया। नूरन जग्गा सिंह के बच्चे से प्रेग्नेंट हो गई थी ।वह गांव छोड़कर नहीं जाना चाहती थी इसलिए वह जगत सिंह के घर उसकी मां से मिल कर बात करने गई ।उसने जगत सिंह की मां को बताया कि मैं जगत सिंह से प्यार करती हूं और शादी करके उसके साथ यही रहना चाहती हूं। वह भी मुझसे प्यार करता है। दोनों की कास्ट अलग होने की वजह से जगत सिंह की मां ने नूरन और जग्गा सिंह की शादी से मना कर दिया। फिर नूरन रोने लगी। नूरन ने जगत सिंह की मां को अपने और जगत सिंह के बच्चे के बारे में बताया। इस पर उसकी मां ने कहा कि मुझे सोचने के लिए कुछ वक्त चाहिए , पर नूरन के पास वक्त ही तो नहीं था।उन्हें अगली रात पाकिस्तान के लिए निकलना था।
पुलिस वालों ने मुसलमानों की गैरमौजूदगी में उनके घरों की देखरेख की जिम्मेदारी मल्ली और उसके साथियों के हाथ में दे दी जो कि डाकू थे।
मल्ली और उसके साथियों ने मिलकर गांव वालों को भड़काया। उन्होनें कहा कि उन लोगों ने हमारे सिख भाई बहनों को मार दिया । उन्होनें हमारी बहनों की इज्जत लूट ली । अब हमारी बारी है।हम भी उनसे बदला लेंगे। उसने पुल के ऊपर एक मोटी सी रस्सीबांध दी थीकि जब ट्रेन पुल पर से होकर गुजरेगी तो अंधेरे में वह रस्सी किसी को दिखेगीनहीं और उस रस्सी की वजह सेट्रेन के ऊपर बैठे हुए लोग नदी में गिर जाएंगे और मर जाएंगे । वे लोग दूर खड़े हो कर ट्रेन के आने का इंतजार करने लग गए । इस बात की खबर पुलिस को लग गई थी और खबर हुकुमचंद तक भी पहुंच गई थी।
हुकुमचंद बहुत ज्यादा खून खराबा देख चुका था। उसने उन लोगों के दर्द को करीब से महसूस किया था और वह नहीं चाहता था कि अब और कोई उस तकलीफ से गुजरे। हसीना भी उसी ट्रेन में बैठकर जा रही थी और अब हुकुमचंद को अफसोस हो रहा था कि मुझे उसे जाने ही नहीं देना था। आखिरकार वहीहोने जा रहा था जिसका उसे डर था। ट्रेन आधे घंटे में स्टेशन से निकलने वाली थी।
हुकुमचंद ने इकबाल और जग्गा सिंह को रिहा कर दिया।जग्गा सिंह को अपने गांव और उसके लोगों से बहुत प्यार था। वह बस अपने गांव में अमन बना कर रखना चाहता था ।उसे जब मल्ली की चाल के बारे में पता चला तो जगत सिंह ने जाकर वो रस्सी काटना शुरू कर दिया । रस्सी बस कट ही गई थी कि उसके हाथ से छुरी गिर गई ।ट्रेन बहुत पास में आ गई थी।उसनेरस्सी का आखिरी सिरा अपने दांत से काटा और पटरी पर गिर पड़ा और ट्रेन उसके ऊपर से होती हुई निकल गई।
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