The Twenty-four Hour Mind

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The Twenty-four Hour Mind

Rosalind D. Cartwright
नींद और सपने किस तरह हमें प्रभावित करते हैं।

दो लफ़्ज़ों में
यह किताब नींद, सपनों और नींद की समस्याओं से जुड़े रहस्यों के बारे में बात करती है। लेखिका का मानना है कि हमारी लाइफ में होने वाली हर नई घटना हमें किसी न किसी पुरानी बात की याद दिला देती है जो हमारी तकलीफ की वजह बनती है। नींद और सपने हमें इन परेशानियों से उभरने में मदद करते हैं। 

यह किताब किनके लिए है?
- जो लोग अपने सपनों का मतलब समझना चाहते हैं।
- जिन्हें अच्छी तरह नींद नहीं आती है।
- जिनको माइंड के फंक्शन जानने में इंट्रेस्ट है। 

लेखिका के बारे में
रोजालिंड डी कार्टलाइट ने नींद पर रिसर्च की है। वे इलिनॉय यूनिवर्सिटी के कालेज ऑफ मेडिसिन में साइकोलाजी डिपार्टमेंट की डायरेक्टर रह चुकी हैं। वहां उन्होंने सपनों और REM sleep पर स्टडी की है। उन्होंने स्लीप डिसऑर्डर वाले लोगों के लिए सर्विस सेंटर की शुरुआत भी की। वे Night Life: Explorations in Dreaming, A Primer on Sleep and Dreaming और Crisis Dreaming: Using Your Dreams to Solve Your Problems जैसी किताबें लिखी हैं।

एक अच्छी नींद आपका शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखती है।
क्या कभी आपने यह सोचा है कि सोते वक्त आपके दिमाग में क्या चल रहा होता है? आप जो सपनों देखते हैं उनके पीछे क्या वजह होती है? क्या आपने Jung या Freud जैसे मनोवैज्ञानिकों की किताबों के पन्ने पलटकर 

इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की है?

यह किताब आपके इन्हीं सवालों के जवाब देती है। इसको पढ़कर आप जानते हैं कि आपके वेकिंग और स्लीपिंग माइंड के क्या फंक्शन होते हैं और इन दोनों में  तालमेल बना रहना आपकी हेल्थ और लाइफ के लिए कितना जरूरी है। इसके अलावा इस समरी में आप जानेंगे कि किस तरह नींद की कमी वजन बढ़ने की वजह बनती है?  आपके सपने किस तरह आपकी पर्सनैलिटी को प्रभावित करते हैं? नींद पूरी न होने की वजह से आपको चिड़चिड़ापन क्यों महसूस होता है? और साउंड स्लीप आपके लिए कितनी जरूरी है?

जब आपकी नींद पूरी नहीं हो पाती है तो अगली सुबह आपको थकान महसूस होती है, आप चिड़चिड़े हो जाते हैं और किसी काम में मन नहीं लगता है। ये कोई अबूझ पहेली नहीं है। हम सब जानते हैं कि अगर नींद पूरी न हो तो ऐसा ही होता है। साइंस के पास इसका एक्सप्लेनेशन भी है। 

नींद का साइकिल दो स्टेज से मिलकर बनता है। इन्हें NREM (Non Rapid Eye Movement) और REM (Rapid Eye Movement) कहा जाता है। इन्हें आम बोलचाल में हल्की और गहरी नींद कहा जाता है। सुबह तरोताजा महसूस करने के लिए यह साइकिल पूरा करना जरूरी है। इसके लिए आपको लगभग सात से नौ घंटे की नींद चाहिए। 

जो लोग हल्की नींद लेते हैं यानि जिनकी नींद बहुत कच्ची होती है या जो कम सोते हैं वे REM stage में नहीं जाते। ऐसे लोगों में दूसरों की तुलना में ज्यादा तनाव पाया जाता है। उदाहरण के तौर पर जो लोग नाइट शिफ्ट में काम करते हैं और दिन में सोते हैं, एक अच्छी और गहरी नींद नहीं ले पाते। इस वजह से उनमें स्ट्रेस लेवल ज्यादा रहता है। भरपूर नींद लेने के और भी फायदे हैं। इससे हमारे नेगेटिव इमोशंस जैसे गुस्सा, डर, उदासी कम होते हैं। ऐसे 31 लोगों पर स्टडी की गई जो डाइवोर्स के फेज से गुजर रहे थे। उनमें से 20 लोगों को अच्छी नींद और सपनों के माध्यम से इस सदमे से उबरने में बहुत मदद मिली। दरअसल वे अपने सपनों में इस समस्या को सुलझा लिया करते थे और जागने के बाद भावनात्मक रूप से मजबूत महसूस करते थे। 

दिन भर हम अच्छे-बुरे बहुत से मनोभावों से गुजरते हैं। रात में हमारे सो जाने के बाद भी हमारा दिमाग उनसे डील करके उनको सुलझाने की कोशिश करता रहता है। यही वजह है कि आप दिनभर कितना भी परेशान रहे हों, अगर रात में अच्छी नींद ले पाते हैं, तो अगली सुबह आपको बेहतर महसूस होता है। 

पर्याप्त नींद लेने से हमारा एन्डोक्राइन सिस्टम भी सही ढंग से काम करता है। नींद, भूख को कंट्रोल करने वाले हार्मोन को भी मैनेज करती है। यही वजह है कि जो लोग 6 घंटे से कम सोते हैं, उनको भूख ज्यादा लगती है। स्टडीज से यह पता चला है कि जिनकी औसत नींद कम होती है, उनमें मोटापा होने की संभावना 7.5 गुना ज्यादा होती है।

हमारे सपने हमें इमोशनल परेशानियों से उभरने में मदद करते हैं।
सपनों के बारे में अलग-अलग तरह की धारणाएं प्रचलित हैं। बहुतों लोगों को लगता है कि सपनों की एक रहस्यमयी दुनिया है। वे सपनों का मतलब और उनका पैटर्न समझने में लगे रहते हैं। ऐसे लोगों का यह भी मानना है कि सपनों में भविष्य की घटनाओं के संकेत होते हैं। हकीकत यह है कि सपने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक रिफ्लेक्शन हैं और यह हमें हमारे इमोशनल डिस्टर्बेंस से निपटने में मदद करते हैं। हमारे साथ दिनभर में जो कुछ भी होता है, सपने उन्हीं के आसपास घूमते हैं। इनमें हमारे पुराने सिमिलर एक्सपीरियंस भी जुड़ जाते हैं और एक नई इमेज बनकर सपनों की तरह हमें दिखाई देती है। यानि सपने पुरानी यादों और वर्तमान अनुभव का मिला-जुला रूप होते हैं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए आज किसी दोस्त से झगड़ा होने की वजह से आपका मूड ऑफ हो गया। अब सपने में यह बात ऐसी ही किसी पुरानी घटना से लिंक हो जाएगी। (यह दूसरे किसी भी व्यक्ति के साथ हुआ वाद-विवाद हो सकता है)। आपका दिमाग इन नेगेटिव इमोशंस को फिल्टर कर देगा। इस तरह अगली सुबह जब आप सोकर उठेंगे तो कल की तुलना में ज्यादा शांत महसूस करेंगे और आपका रिएक्शन बदला हुआ होगा। यानि सपने हमारे बर्ताव को प्रभावित करने, विचारधारा को गढ़ने और सेल्फ रियलाइजेशन में मदद करते हैं। इसे थोड़ा डीटेल में समझते हैं। 

हमारी आइडेंटिटी कैसे बनती है? अपनी लाइफ में होने वाले अनुभव, उन पर हमारे विचार और रिएक्शन ये सब मिलकर हमारी इंडीविजुअल आइडेंटिटी फार्म करते हैं। यानि आप अपनी सोच और विचारधारा का एक रिफ्लेक्शन हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हर इंसान अपने एक स्टैंडर्ड सांचे में ढला हुआ है जिसमें छोटे-छोटे ब्लॉक्स हैं। हमें लाइफ में अच्छे-बुरे, खट्टे-मीठे जैसे भी अनुभव होते हैं वो या तो इन ब्लॉक्स में फिट होते चले जाते हैं या फिर अपनी एक नई जगह बनाने की कोशिश करते हैं। सपनों के माध्यम से ये एक्सपीरियंस इस सांचे में अपने लिए एक नया ब्लॉक बना लेते हैं और इस तरह हमारी आइडेंटिटी को प्रभावित करते हैं। 

जैसे कोई व्यक्ति किसी नई जगह पर रहने या जॉब करने जाता है तो उसे एडजस्ट होने की जरूरत महसूस होती है। वह अपनी तरफ से इस अजनबीपन से छुटकारा पाने की कोशिश करता है। लोगों से घुलता-मिलता है और अपनी जगह बनाता है। सपने भी इस अजनबीपन से निपटने का तरीका हैं। यानि नींद के बाद आप एक नई आइडेंटिटी के साथ जागते हैं। 

हमारा दिमाग हमेशा एक्टिव रहता है पर जागते और सोते हुए इसकी प्रोसेसिंग अलग-अलग होती है। ब्रेन का काम है इन्फॉर्मेशन को प्रोसेस करना और यह काम 24 घंटे चलता रहता है। लेकिन सोते और जागते हुए इसके तरीके में फर्क होता है। जागते हुए हम जो भी इन्फॉर्मेशन प्रोसेस करते हैं वह ज्यादातर ऑटोमेटिक ढंग से होती है। यानि एक बार डेवलप हो जाने के बाद हमारी आदतें, नजरिया, रिएक्शन इन सबके लिए हमें सोचना नहीं पड़ता। यह खुद ब खुद एक फ्लो में चलते हैं इनके लिए हमें एफर्ट नहीं करने पड़ते। इसका फायदा यह है कि इनसे हमारी प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। एक जैसी चीजों के लिए आपको बार-बार सोचकर अपना टाइम खराब नहीं करना पड़ता। आपने एक बार गाड़ी चलाना सीख लिया फिर यह स्किल उम्र भर आपके साथ रहती है। इसी तरह आपने एक बार ब्रश करना, सड़क पार करना, किसी शब्द का मतलब, खुशी में खुश होना और दुख में दुखी होना समझ लिया तो यह इन्फॉर्मेशन परमानेंटली स्टोर हो जाती है। इस वजह से आप दूसरी बहुत सी चीजों पर फोकस कर पाते हैं, कुछ नया सीखने का वक्त निकाल पाते हैं। जरा सोचकर देखिए कि ऊपर कही गई बातें अगर आपको रोज सीखनी पड़तीं और आप रोज भूल जाते तो आपकी लाइफ कितनी मुश्किल हो जाती। 

इसके उलट जब आप सो रहे होते हैं तो आपको इतना सब करने की जरूरत नहीं होती है। यानि आपका दिमाग अब इमोशनल बिहेवियर पर ज्यादा कांसनट्रेट कर सकता है। अब जितनी जरूरी बातें होती हैं वो आपकी मेमोरी में स्टोर हो जाती हैं और बाकी सब फिल्टर हो जाता है। 

अब आप समझ गए होंगे कि वेकिंग माइंड और स्लीपिंग माइंड की प्रोसेसिंग कैसी होती है। लेकिन इन दोनों का तालमेल बहुत जरूरी है। यानि स्लीपिंग माइंड जो मेमोरी स्टोर करता है, वेकिंग माइंड उसके आधार पर रिएक्ट करता है। यानि अच्छी नींद इस तालमेल के लिए भी जरूरी है। जरा सोचिए कि आपका वेकिंग माइंड तो काम कर रहा है पर नींद की कमी की वजह से स्लीपिंग माइंड डिस्टर्ब है तो क्या होगा?

सोने और जागने का रूटीन खराब होने की वजह से बहुत सी परेशानियां हो सकती हैं।
अभी तक आप नींद का महत्व अच्छी तरह समझ चुके हैं। आपने यह भी जान लिया कि किस तरह जागते और सोते हुए ब्रेन के फंक्शन का तालमेल बना रहता है। लेकिन अगर ये तालमेल बिगड़ जाता है तब बहुत सी समस्याएं होने लगती हैं। स्लीप साइकिल का बिगड़ना बहुत सी समस्याओं का इंडिकेशन हो सकता है। स्टडीज से ये साबित हुआ है कि डिप्रेशन की अर्ली स्टेज में नींद से जुड़ी समस्याएं नजर आती हैं। इसकी वजह से चिड़चिड़ापन होने लगता है। ऐसे लोग ज्यादातर REM mode में ही रहते हैं और उठने के बाद भी यही स्टेज बनी रहती है। यानि सोते वक्त उनका दिमाग जिस इमोशनल स्टेट में रहता है वह उससे बाहर ही नहीं आ पाते। लेखिका के अनुसार सिर्फ नींद में सुधार लाकर डिप्रेशन से लड़ा जा सकता है। वे कहती हैं कि तीन हफ्तों में ही इस तरह के 60% लोग बिना किसी मेडिकल हेल्प के ही ठीक हो सकते हैं। 

नींद पूरी न होने का एक और बड़ा नुकसान है नींद में चलने की बीमारी होना। इसमें लोग अनजाने में वह सब एक्टिविटीज करने लगते हैं जो जागते हुए की जाती हैं। यानि चलना, खाना, बोलना। यह बहुत नुकसानदायक स्टेज है। ऐसे लोग किसी का खून भी कर सकते हैं। स्कॉट फलाटर नाम के एक व्यक्ति ने ऐसा ही किया था। इस घटना ने इस विवाद को जन्म दिया था कि जो हरकत हम सोते हुए करते हैं उसके लिए हम कितने जिम्मेदार होते हैं? 

एक पड़ोसी ने फलाटर को एक डेडबॉडी को स्विमिंग पूल में फेंकते हुए देखा था। वह फलाटर की वाइफ की बॉडी थी जिसे उसने फेंकने से पहले 44 बार चाकू मारा था। फलाटर को उसके घर से गिरफ्तार किया गया था। उसके हाथ और कपड़े खून से सने थे। उसका कहना था कि वह तो पुलिस के सायरन की आवाज सुनकर जागा और उसे यह याद ही नहीं था कि उसके सोने के बाद और उठने से पहले के बीच के वक्त में क्या हो गया था। जांच में यह सामने आया कि फलाटर को नींद में चलने की बीमारी थी। उस रात भी वह नींद में चलते हुए स्वीमिंग पूल तक पंहुचा और उसी हालत में एक पंप ठीक करने लगा। उसकी वाइफ ने उसे वापस कमरे में ले जाने की कोशिश की। फलाटर ने यह समझे बिना ही कि वह कौन है, उस पर अटैक कर दिया। 

नींद की कमी की बहुत सी हेल्थ प्राब्लम्स को जन्म देती है। लाइफस्टाइल डिसआर्डर के लिए खान-पान और फिजिकल एक्टिविटी में कमी को जिम्मेदार ठहराया जाता है पर यह बात अक्सर इग्नोर कर दी जाती है कि नींद भी इनकी वजह बनती है। इससे सबसे बड़ा नुकसान होता है मोटापा। पश्चिमी देशों में तो यह एक महामारी की तरह फैलती जा रही है। इसके लिए एक स्टडी की गई। जो लोग इसमें शामिल थे उनको सिर्फ कुछ घंटे सोने दिया गया। उनका स्लीप साइकिल बिगड़ गया। इसकी वजह से हार्मोनल इम्बैलेंस होने लगा। इससे उनको भूख ज्यादा लगने लगी। और एक ही हफ्ते में उनका वजन बढ़ गया। अगर आप भी अपनी नींद के साथ समझौता करते हैं तो इस बात के बहुत चांस हैं कि आप भी वजन बढ़ा लेंगे। 

नींद की कमी से डायबिटीज भी हो सकती है। 11 लोगों पर एक स्टडी की गई जिसमें उनको चार घंटे से भी कम समय सोने दिया गया। 6 दिनों के अंदर उनमें डायबिटीज के शुरुआती लक्षण दिखने लगे थे। जो लोग भरपूर नींद नहीं लेते उनमें डायबिटीज होने की संभावना 2.5 गुना ज्यादा होती है। नींद की कमी जानलेवा साबित हो सकती है। इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलेंगे जहां अपने दुश्मनों को सताने या किसी को सजा देने के लिए उन्हें लगातार जगाए रखा जाता था। 

यह प्रयोग चूहों पर भी किया गया था जिसमें उनको सोने नहीं दिया जाता था। जल्द ही उनका वजन घटने लगा, उनकी स्किन और पूंछ खराब होने लगी और उनका बर्ताव आक्रामक होने लगा। तीन हफ्तों के अंदर उनकी मौत हो गई। इसकी वजह बॉडी टेम्परेचर का इम्बैलेंस भी हो सकता है। दिन भर की भागदौड़ में हमारे शरीर में गर्मी पैदा होती है। रात को सोने पर हमारा तापमान कम होता है और शरीर में ठंडक आती है। इस तरह बैलेंस बना रहता है। यदि नींद ही पूरी न हो तो यह गर्मी नुकसानदायक होने लगती है। एक मशीन भी जब चलते हुए गर्म हो जाती है तो उसे बंद कर दिया जाता है ताकि वह ठंडी हो सके। हमारा शरीर भी तो एक मशीन ही है। इसलिए रात को समय पर सोइए और खुद को फिट रखिए।

कुल मिलाकर
सपने सिर्फ नींद में नजर आने वाली तस्वीरें नहीं हैं। यह हमें स्वस्थ रखते हैं और भावनात्मक रूप से स्थिर बनाने में मदद करते हैं ताकि हम जागते हुए एक आसान जिंदगी जी सकें। 

 

सपनों की दुनिया उस तरह से रहस्यमयी नहीं है जैसा हम सुनते आए हैं। बड़ी-बड़ी किताबों में इनका मतलब ढूंढना समय की बर्बादी से ज्यादा कुछ नहीं है। दिन भर काम कीजिए और रात को समय से सो जाइए। यह सपने देखने के लिए सबसे जरूरी बात है। आप अच्छी नींद और सपनों की मदद से बहुत सी परेशानियों से अनजाने में ही निपट सकते हैं। सपनों का यही काम है। भरपूर नींद लेकर उनको इस काम में लगा रहने दीजिए।

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