John J. Ratey and Richard Manning
जी भर के खाओ, घूमो-फिरो और स्वस्थ रहो
दो लफ्जों में
2014 में आई ये किताब हमारी माडर्न लाइफस्टाइल को हमारे जेनेटिक मेकअप से पूरी तरह विपरीत बताती है। हमारे इवॉल्यूशन ने हमें आराम से बैठकर काम करने की हैबिट नहीं दी थी। लेकिन हमारी बदलती हुई लाइफस्टाइल और फूड हैबिट ने हमें प्रकृति से दूर करके बहुत सी बीमारियों की तरफ ढकेल दिया है।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए
- जिनको प्रकृति से लगाव है
- जो अपनी फिटनेस पर बहुत ध्यान देते हैं
- जो लोग अपनी लाइफस्टाइल बदलना चाहते हैं
लेखकों के बारे में
जॉन, हावर्ड मेडिकल स्कूल में साइकिएट्री के असोसिएट प्रोफेसर हैं। वे बेस्ट सेलिंग किताब Spark के को ऑथर भी हैं। रिचर्ड एक लेखक और पुरस्कार विजेता पत्रकार हैं। उन्होंने One Round River और Against the Grain जैसी किताबें लिखी हैं।हमारा इवॉल्यूशन मेहनतकश जीवन जीने के लिए हुआ है न कि आरामदायक जीवन जीने के लिए।
अगर आप शहर में रहते हैं तो आपको घुटन महसूस होती होगी। आपका मन भी करता होगा कि खुली हवा में घूमें, पहाड़ों की सैर करें या जंगलों में वक्त बिताएं। आपको अपने आस-पास के पार्क में बैठने का या किसी ऊंची बिल्डिंग की छत से शहर का नजारा देखने का मन तो करता ही होगा। इन सब चाहतों वजह है हमारा इवॉल्यूशन। हम प्राकृतिक वातावरण में रहने और एक्टिव लाइफस्टाइल के लिए इवॉल्व हुए हैं न कि बैठकर कंप्यूटर और मोबाइल पर लगे रहने के लिए। जबकि मॉडर्न लाइफस्टाइल ने हमें सुविधाओं का आदी और आरामतलब बना दिया है। लेकिन परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। कांक्रीट के जंगलों में रहते हुए भी आप हरे-भरे जंगलों वाला सुकून महसूस कर सकते हैं। इस समरी में आप जानेंगे कि आदिवासी समुदाय के लोग माडर्न लोगों की तुलना में ज्यादा हेल्दी क्यों रहते हैं? हम प्रकृति से इतना जुड़ाव क्यों महसूस करते हैं? और वेगन डाइट को बेस्ट क्यों नहीं कहा जा सकता?
तो चलिए शुरू करते हैं!
आप सुबह उठते हैं, काम पर जाते हैं। दिन भर एक जगह बैठे रहते हैं। लौटकर घर आते हैं, टीवी देखते हैं और खा पीकर सो जाते हैं। हममें से ज्यादातर लोगों की जिंदगी ऐसे ही चलती है। और हम इस रूटीन से ऊबकर पहाड़ों और जंगलों की तरफ भाग जाने का सोचते हैं। और ऐसा सोचना बिल्कुल सामान्य बात है। क्योंकि हम ऐसे ही माहौल में रहने के लिए बने हैं। असल में हमारा मूल स्वभाव जंगल में रहने वाले पशुओं की तरह ही है। जानवरों के बच्चे बढ़ते हुए अपने सर्वाइवल के तरीके सीखते जाते हैं। यानि अपने लिए खाना ढूंढना, बड़े जानवरों से खुद को बचाना, तैरना, छिपना, मौसम के साथ तालमेल बिठाना और जंगल के पथरीले रास्तों पर आसानी से दौड़ना-भागना। इंसान अपेक्षाकृत बहुत आसान और सुरक्षित वातावरण में रहता है। यही वजह है कि वो जानवरों की तरह प्रकृति के संकेतों को उतनी अच्छी तरह नहीं समझ पाता है और जीवन से तालमेल बिठाने में उसे परेशानी होती है। लेकिन आज भी ऐसे बहुत से समुदाय हैं जहां लोग प्रकृति के नजदीक रहकर अपना जीवन बिता रहे हैं। यानि जिस तरह आदिम जनजीवन था इनका रहन-सहन भी उसी तरह का बना हुआ है। रिसर्च ये बताती हैं कि ये लोग आधुनिक समाज के लोगों से ज्यादा खुशहाल और स्वस्थ हैं। खेतीबाड़ी और शिकार की मदद से न सिर्फ इनकी भोजन की जरूरत पूरी हो जाती है बल्कि इनको ताजा और शुद्ध भोजन भी मिल जाता है। शहरी आबादी से दूर रहने वाले ये लोग खुली और साफ हवा में सांस लेते हैं। यानि ये बिल्कुल उसी तरह रहतें हैं जिसके लिए इंसान बना है। कुछ एक्सपर्ट्स ये थ्योरी देते हैं कि माडर्न लाइफस्टाइल ही हमारे लिए बेहतर है लेकिन ये बिना सर पैर की बात से ज्यादा कुछ नहीं है। बल्कि सच तो ये है कि मोटापा, दिल की बीमारियां, ऑटिज्म और कैंसर जैसे न जाने कितने रोग इसी लाइफस्टाइल की देन हैं। साउथ अफ्रीका की San जनजाति को ले लीजिए। ये मेहनत करते हैं, प्राकृतिक तरीकों से भोजन जुटाते हैं और मिलजुल कर रहते हैं। इस समुदाय के लोग शारीरिक और मानसिक रूप से हमसे ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। इनसे और इनकी तरह जीवन जीने वाले लोगों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
सहानुभूति की भावना हमें बाकी प्रजातियों से अलग बनाती है।
इवॉल्यूशन ने मनुष्यों को एक अच्छा शिकारी बना दिया।लेकिन इसकी वजह सिर्फ शारीरिक या मानसिक ताकत नहीं बल्कि सहानुभूति की भावना भी थी। एक ऐसा गुण जो हमें बाकी प्रजातियों से अलग करता है। अपने शिकार का पीछा करते हुए इंसान उसके स्वभाव और रिएक्शन को समझने लगता है। इसलिए वो अच्छी तरह से जाल बिछाकर और घेराबंदी करके बड़े से बड़े जानवर को भी मार देता है। यहां उसकी ताकत और सूझबूझ ही काम आती है। लेकिन इतने बड़े जानवर के शिकार की वजह ये रहती है कि वो अपना और अपने परिवार का पेट भर सके। यानि कि परिवार के लिए चिंता और उनकी भूख को महसूस कर पाने की क्षमता। परिवार में रहने और सामाजिक जीवन जीने की वजह से ही मनुष्य इस ग्रह का सबसे ज्यादा empathetic प्राणी बन पाया है। हम परिवार में रहते हैं। हमें एक दूसरे की केयर और सपोर्ट की जरूरत पड़ती है। बचपन से टीनएज तक बच्चे ज्यादातर अपने माता-पिता पर निर्भर होते हैं। छोटे बच्चों को तो और भी ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। इसलिए हमारे मन में अपने बच्चों की देखभाल के लिए जिम्मेदारी और प्यार की भावना कि होना जरूरी है। यही भावना अपने माता-पिता, पति-पत्नी और सगे संबंधियों के लिए भी होती है। क्योंकि एक दूसरे की मदद के बिना हम कुछ नहीं कर सकते। हमारी शारीरिक बनावट भी हमें जंगलों में रहने के लिए ज्यादा योग्य बनाती है। हमारा शरीर बहुत फ्लेक्सिबल है। इसमें कई तरह के मूवमेंट हो सकते हैं। ये सब इसीलिए है कि शिकार या भोजन की खोज में चलते, दौड़ते, उठते-बैठते हुए हमें आसानी हो। हम औजार पकड़ सकें और पेड़ों पर झूल सकें। इन्हीं गुणों की वजह से हम आसानी से गुजारा कर लेते हैं। क्योंकि दूसरे जानवर घास और पत्तों पर भी जी लेते हैं लेकिन हमें जीने के लिए तरह-तरह के पोषक तत्वों की जरूरत होती है। इसलिए हमको अपने लिए खाना ढूंढना या उगाना पड़ता है। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने शिकार किया, मछली पकड़ी, फल और सब्जियां इकट्ठी कीं ताकि वो खुद भी जी सकें और अपने समुदाय का पेट भी भर सकें। इन सबको अच्छी तरह करने के लिए दिमाग और समझ की जरूरत थी। ताकि हम आसपास के वातावरण को अच्छी तरह समझ सकें और इनका अधिक से अधिक लाभ ले सकें। अब आप भी समझ पा रहे होंगे कि दिन भर कंप्यूटर के सामने बैठे रहने पर डिप्रेशन का खतरा क्यों बढ़ जाता है। क्योंकि न तो आपका शरीर और न ही आपका दिमाग इसके लिए ढला है।
फिजिकल एक्टिविटी हमारा दिमाग तेज करती हैं और हमारी नींद बेहतर बनाती हैं। दिन भर के काम के बाद आप जब घर आते हैं तो थके मांदे होते हैं। बस यही ख्याल रहता है कि अब आराम करना है। छुट्टी वाले दिन तो इतना आलस आता है कि बिस्तर छोड़ने का दिल ही नहीं होता। लेकिन खुद को एक्टिव रखने का सबसे बढ़िया तरीका है रनिंग। इसका सबसे ज्यादा फायदा लेना चाहते हैं तो ट्रेडमिल की जगह बाहर दौड़िए। यानि किसी पार्क या ऐसी खुली जगह जो दौड़ने के लिहाज से बढ़िया हो। क्योंकि जब आप खुली हवा में दौड़ते हैं तो शरीर के साथ-साथ दिमाग की भी कसरत हो जाती है। इतना ही नहीं इस तरह नए न्यूरल कनेक्शन भी बनते हैं। स्वीडन में हुई एक स्टडी बताती है कि जिन लोगों का हार्ट हेल्दी होता है उनका दिमाग भी तेज होता है। ये स्टडी जुड़वां लोगों की तुलना करते हुए की गई थी। इनका IQ लेवल दिल की सेहत ठीक रहने पर बढ़ने लगता था। आज की तारीख में अच्छी नींद के लिए बहुत लोग परेशान रहते हैं। अपने पूर्वजों के रहन-सहन से हम गहरी नींद लेने का तरीका भी सीख सकते हैं। पहले लोग बाहर खुले मैदानों में सोते थे। तब लकड़ियां जलाकर या दीयों की रोशनी से काम चलाया जाता था। उस वक्त खतरे की निगरानी के लिए कोई आदमी या वॉचडॉग भी रखा जाता था। इस तरह लोग निश्चिंत होकर गहरी नींद सो जाते थे। आज ये सब तो करना मुश्किल है। लेकिन आपकी परेशानी को दूर करने के कुछ उपाय जरूर हैं। अगर आप अकेले रहते हैं तो एक पैट एनिमल ले आइए। सोने से एक घंटे पहले कम्प्यूटर और मोबाइल जैसी चीजों से दूर हो जाइए। अपनी फिजिकल एक्टिविटीज बढ़ा लीजिए। इस तरह आप भी गहरी नींद ले सकेंगे।
प्रोसेस्ड फूड ने हमारे स्वास्थ्य को और बिगाड़ दिया है।
पुराने जमाने में टाइप 2 डायबिटीज और अस्थमा जैसी कोई बीमारी नहीं थी। ये सब अंधाधुंध विकास के नतीजे हैं। एक समाज बनाकर उसमें रहने के फायदे तो हुए लेकिन सभ्यता के विकास ने हमारे खान-पान को बहुत बदल दिया। और इस बदलाव ने हमें बीमारियों की सौगात दे दी। इसलिए इस तरह की बीमारियों को "diseases of civilization" कहा गया है। खेती-किसानी में भी बदलाव हुआ। हमारे शरीर को अलग-अलग चीजों से पोषण मिलता था। जैसे कि फल, सब्जियां, मेवे और मीट। लेकिन अब मक्का, चावल, गेहूं और आलू जैसी चीजें मुख्य आहार बन गईं। इस वजह से जरूरी पोषण में कटौती होने लगी। ओमेगा-3 फैटी एसिड का उदाहरण ले लीजिए। ये हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है। लेकिन इसे बॉडी खुद नहीं बना सकती। और इसका सोर्स फिश और मीट ही है। इसकी कमी से हम कमजोरी और डिप्रेशन की तरफ बढ़ने लगते हैं। इसकी कमी दिल की बीमारी और इन्फ्लामेशन की वजह भी बनती है। इसकी कमी की एक वजह ये भी है कि सही डाइट को लेकर आज भी एक यूनिवर्सल गाइडलाइन नहीं है। पिछले कुछ सालों में तरह-तरह की डाइट ट्रेंड में रही है। एक वक्त ऐसा भी आया जब लोगों ने अपनी डाइट से फैट हटा दिया था। और इस बात का ध्यान भी नहीं रखा कि फैटी टिशू में ही पोषक तत्व स्टोर रहते हैं। डाइट में इस तरह की चीजें शामिल हो गईं जो हमें और बीमार बनाने लगीं। इसमें सबसे ऊपर नाम आता है रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और चीनी का। जो प्रोसेस्ड फूड और सॉफ्ट ड्रिंक्स में भरपूर मात्रा में होती है। इतना ही नहीं बेबी फूड में भी इसकी भरमार होती है। रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट तो और भी ज्यादा नुकसान करती है। इसकी वजह से फैट बर्न नहीं हो पाती। और इनसे डिप्रेशन, मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। अगर आप इनसे बचना चाहते हैं तो जंक फूड को बाय-बाय बोल दीजिए और फल, सब्जियों और फिश की तरफ हाथ बढ़ा दीजिए।
मेडिटेशन और प्रकृति के नजदीक रहकर आप हेल्दी और खुश रहते हैं। उस पल की कल्पना कीजिए जब आपका दिल और दिमाग पूरी तरह शांत हो और आप सुकून महसूस कर रहे हों। मेडिटेशन आपको ऐसी ही स्टेट में ले जाता है। इसके और भी बहुत से फायदे हैं। यह हमारी सेहत पर अच्छा असर डालता है। लोगों से जुड़ना सिखाता है। दलाई लामा और उनके जैसे बहुत से भिक्षुओं पर की गई स्टडी इस बात को साबित करती है। साल 1992 में दलाई लामा के बुलावे पर न्यूरोसाइंटिस्ट रिचर्ड डेविडसन, तिब्बत में रहने वाले भिक्षुओं की स्टडी करने पंहुचे। वो ये देखकर हैरान रह गए कि जो लोग रोज मेडिटेशन करते हैं उनका मस्तिष्क एक सामान्य इंसान से बहुत अलग होता है। इन भिक्षुओं के मस्तिष्क किसी भी नए बदलाव को आसानी से स्वीकार कर लेते थे। ये प्रकृति से तालमेल बनाकर रहते थे। और इनके मन में दूसरे मनुष्यों और जीवों के लिए दया का भाव होता था। अगर आप रोज थोड़ी देर के लिए भी मेडिटेशन करते हैं तो आपको जल्द ही असर दिखाई देने लगता है। आप पहले से ज्यादा हैप्पी और हेल्दी रहने लगते हैं। प्रकृति के नजदीक आना भी बहुत फायदा करता है। खास तौर पर बड़े-बड़े शहरों के निवासियों के लिए। हम अंधेरे या अकेलेपन से दूर भागते हैं। इसलिए खुले-खुले घर हमें सुकून देते हैं। ऐसे घर जहां खिड़की खोलते ही हरियाली नजर आती हो वहां रहना कौन नहीं चाहता। लेकिन हर कोई तो इनको अफोर्ड नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी आप छोटे-छोटे गमले लगा सकते हैं। जापान में हुई एक स्टडी ये बताती है कि इतनी हरियाली से भी आपकी हेल्थ 40% बेहतर हो सकती है। तो देर किस बात की। आप भी आज ही कुछ पौधे ले आइए। हां उनको पानी देते रहना मत भूलिएगा।
मनुष्य स्वभाव से एक सामाजिक प्राणी है लेकिन इस हैबिट के कुछ नुकसान भी हैं।
हम आपको दो ऑप्शन देते हैं। या तो अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर चले जाइए, मौज करिए झूमिए, नाचिए या फिर चिप्स का पैकेट लीजिए, कमरे में जाइए और रात भर कम्प्यूटर चलाइए। आप इनमें से कौन सा ऑप्शन चुनेंगे। ज्यादातर लोगों का जवाब होगा पहला। क्योंकि अकेले रहना हमारे जीन्स में है ही नहीं। हमारे शरीर में पाया जाने वाला ऑक्सीटोसिन नाम का हार्मोन हमें सोशल बनाता है। अगर ये हार्मोन न होता तो एक दूसरे का ख्याल रखने की भावना मनुष्यों में विकसित ही न होती। यानि ये हमारे सर्वाइवल के लिए जरूरी था। ऑक्सीटोसिन, फैमिली बॉन्डिंग को भी मजबूत करता है। यह बात अमेरिका के मैदानी इलाकों में पाए जाने वाले चूहों में बहुत आसानी से देखी जा सकती है। अपने पार्टनर से मिलने पर इनका ऑक्सीटोसिन लेवल बढ़ जाता है। इसके बाद ये साथ मिलकर अपना बिल बनाते हैं और अपने बच्चों की परवरिश भी मिलजुलकर ही करते हैं। इतना ही नहीं जब परिवार पर किसी तरह का संकट आता है तो इन छोटे से चूहों में गजब का साहस आ जाता है। लेकिन फैमिली बॉन्डिंग का एक दूसरा पहलू भी है। फैमिली बॉन्डिंग की वजह से हमारा बाहरी लोगों पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। हर वो इंसान जो हमें अपने पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ लगता है, हम उसके खिलाफ हो जाते हैं। होमोसेक्सुअल लोगों के विरोध के पीछे ये भी एक वजह है। घरेलू हिंसा के लिए भी यही स्वभाव जिम्मेदार है। अगर आदमी को ऐसा लगता है कि उसकी पार्टनर उसे छोड़ देगी तो उसके मन में ख्याल आता है कि इस तरह उसकी रेप्युटेशन खराब हो जाएगी। यहां वो उसी पार्टनर के खिलाफ हो जाता है जिसे बचाना उनकी जिम्मेदारी होनी चाहिए। इन सबसे यही समझ आता है कि इवॉल्यूशन की वजह से हमारा बर्ताव भी कभी-कभी अजीब हो जाता है। लेकिन फिर भी हमारी दूसरी बहुत सी समस्याओं को समझने और सुलझाने में इसकी स्टडी बहुत मदद करती है।
कुल मिलाकर
सभ्यता के विकास ने हमें सुरक्षित जीवन जीने में बहुत मदद की है लेकिन बीमारियों के रूप में इसके नुकसान भी कम नहीं हैं। अगर हम जीवन के पुराने तरीकों पर लौटने लगें तो ज्यादा खुशहाल और स्वस्थ रह सकते हैं। बड़े शहरों में रहकर भी आप खुद को 6 I 5प्रकृति के नजदीक रख सकते हैं। आपके छोटे-छोटे कदम एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
क्या करें
अपने रूटीन में रनिंग को शामिल कर लें। अगर आप किसी जंगल या पहाड़ी इलाके में दौड़ सकें तो बहुत ही अच्छा है। इस तरह endorphins (जिन्हें हैप्पी हार्मोन भी कहा जाता है) का प्रोडक्शन बढ़ जाता है। ये मत सोचिए कि इससे कोई नुकसान हो सकता है या आपको चोट लग सकती है। क्योंकि हमारा दिमाग डेंजर सिग्नल पहचान जाता है और शरीर को प्रोटेक्शन के लिए तैयार कर देता है। जैसे कि अगर आप किसी बारिश वाले दिन दौड़ते हैं तो आपकी स्पीड कम हो जाती है। किसी पथरीले या घुमावदार रास्ते पर दौड़ते हुए आपके कदम सपाट रास्तों से ज्यादा मजबूती के साथ जमते हैं। आप बस शुरुआत कीजिए। बाकी बातें खुद ब खुद मैनेज हो जाएंगी।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे Go Wild by John J. Ratey and Richard Manning
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing