The Storytelling Edge

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The Storytelling Edge

Shane Snow and Joe Lazauskas
स्टोरी टेलिंग की मास्टर क्लास से कहानियाँ लिखना सीखिए

दो लफ्जों में
‘The Storytelling Edge’ 2018 में आई ये किताब कंटेंट स्ट्रेटेजी में माहिर दो लेखकों की कम्युनिकेशन के ऊपर की गयी एक स्टडी का सार है, जिसमें उन्होंने नेटिव अमेरिका की एक कहावत ‘जो कहानियाँ सुना सकते हैं वो दुनिया भी चला सकते हैं’ को सच होता हुआ दिखाया है. शेन स्नो (Shane Snow) और जोई लाज़ुस्कास (Joe Lazauskas) का कहना है कि चाहे आपकी पर्सनल लाइफ हो, बिज़नस हो, या फिर पॉलिटिक्स हो – अगर आज की दुनिया में आप खुद को कायम रखना चाहते हैं तो आपको अपनी कहानी कुछ इस तरह सुनानी होगी कि लोग उसपर विश्वास करें.

ये किताब किसके लिए है?
- मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग के एक्सपर्ट्स के लिए.
- नए आइडियाज की तलाश कर रहे इंटरप्रेन्योर्स के लिए. 
- ब्रांड मेनेजरों और कॉपी राइटरों के लिए.  

लेखक के बारे में 
जोई लाज़ुस्कास (Joe Lazauskas) कंटेंटली (Contently) के कंटेंट स्ट्रेटेजी डायरेक्टर और एडिटर इन चीफ हैं. कंटेंटली (Contently) एक ऐसी ग्लोबल टेक कंपनी है जिसने फार्च्यून 500 कम्पनीज को उनकी इंस्पायरिंग स्टोरीज बनाने में मदद की है. इस किताब के को-ऑथर शेन स्नो (Shane Snow) इस कंपनी के फाउंडर हैं. दोनों ही लेखक जर्नलिज्म के बैकग्राउंड से होने के कारण शब्दों के हेर-फेर में माहिर हैं.

इंसान के दिमाग की बनावट कुछ ऐसी है कि उसे शब्दों से ज्यादा कहानियाँ मजेदार और यादगार लगती है.
2012 में अमेरिकन म्यूजिशियन अमांडा पाल्मर (Amanda Palmer) नें मेलबोर्न के स्ट्रीट कार्नर पर खड़े होकर एक विडियो शूट किया और उसे किक स्टार्टर पर अपलोड कर दिया. उस विडियो में उन्होंने अपने फैन्स के साथ अपनी स्टोरी शेयर कि कैसे उन्होंने पुराने लेबल को छोड़ा और अब वो अपना खुद का म्यूजिक एल्बम निकालना चाहती हैं जिसके लिए उन्हें डोनेशन की जरुरत है. ये विडियो उनकी लाइफ का टर्निंग पॉइंट बन गया अगले 30 दिनों में उन्हें 1.2 मिलियन $ का डोनेशन मिल गया जिससे उन्होंने अपने इंडिपेंडेंट म्यूजिक करियर की शुरुवात की. हालाँकि ये कोई डोनेशन मांगने का स्टैण्डर्ड तरीका नहीं है लेकिन फिर भी इस उदाहरण से हम स्टोरी टेलिंग की ताकत का अंदाज़ा लगा सकते हैं. हिस्ट्री ऐसी कई उदाहरणों से भरी है जहाँ कहानियों नें लोगों को अच्छा या बुरा बनने पर मजबूर कर दिया है. बेहतरीन ढंग से कही गयी कहानियाँ किसी के भी दिमाग में घर कर सकती है और उससे वो करवा सकती है जो आप चाहते हैं. हर सक्सेसफुल लीडर एक अच्छा स्टोरी टेलर भी होता है जो अपनी कहानियों से लोगों को इंस्पायर करता हैं. अच्छी बात ये है कि स्टोरी टेलिंग कोई उपरवाले की दी नेमत नहीं है बल्कि एक स्किल है और आप चाहें तो आप भी इसे मास्टर कर सकते हैं. इस समरी में हम स्टोरी टेलिंग के न्यूरोलॉजिकल पहलुओं के बारे में जानेंगे साथ ही इतिहास के कुछ महान स्टोरी टेलर्स स्टोरीज जानेंगे.

कुछ साल पहले फ्रेंच पोएट जैकस प्रीवर्ट (Jacques Prévert) गली में खड़े एक अंधे भिखारी से मिले. जैकस नें उससे उसका हाल पूछा, उसनें कहा कि कुछ ठीक नहीं है पिछले कई दिनों से उसनें अपनी टोपी में सिक्कों की आवाज़ नहीं सुनी ना ही ढंग से खाना खाया है. बेचारे पोएट के पास उसे देने के लिए ज्यादा पैसे तो नहीं थे इसलिए उसनें एक कागज़ पर उस भिखारी की कहानी लिख कर उसकी टोपी पर चिपका दी. कुछ दिनों बाद जब वो दुबारा उस भिखारी से मिले तो उन्होंने देखा कि उसकी हालत अब पहले से काफी बेहतर है और उसकी टोपी भी सिक्कों से भर गयी है.

क्या आपको पता है जैकस नें उस भिखारी की टोपी पर क्या लिखा था? उसनें लिखा था कि ‘बहारों का मौसम आने वाला है लेकिन मैं उसे देख नहीं सकता’. आखिर इस सेंटेंस में ऐसा क्या छुपा था जिसनें लोगों के मन में उस भिखारी के प्रति दया को बढ़ा दिया. इंसानी दिमाग को सिंपल शब्दों के मुकाबले  कहानियाँ ज्यादा यादगार लगती है.

जरा अपने कॉलेज की क्लास को इमेजिन कीजिये जिसमें टीचर ड्रग्स से होने होने वाली मौतों का आंकड़ा बताकर ये समझाने की कोशिश करते हैं कि ड्रग्स लेना कितना खतरनाक हो सकता है. वहीं दूसरी टीचर नें बच्चों को समझाने का नया तरीका सोचा और क्लास को एक हैंडसम नौजवान की फोटो दिखाते हुए कहा कि ये है एक होनहार और हर चीज़ में अव्वल आने वाला जॉनी का आज से कुछ साल पहले का फ़ोटो है. कुछ साल पहले इसके घर में कुछ ऐसा हुआ कि वो अपनी परेशानियों को भुलाने के लिए ड्रग्स का सहारा लेने लगा. फिर दूसरी इमेज में एक बूढ़े और कमजोर से दिखने वाले लड़के की फोटो दिखाकर कहा कि ये हैं आज का जॉनी. इसलिए बच्चों ड्रग्स बहुत खतरनाक हैं.

अब आप ही बताईए कि अगर आपनें दोनों क्लासेज अटेंड की होती तो आप किसे याद रखते? यकीनन दूसरी वाली को. आईये देखते हैं क्यूँ?

न्यूरोसाइंटिस्ट के बीच एक बहुत मशहूर कहावत है कि ‘“Neurons that fire together, wire together” यानी जो न्यूरॉन साथ में एक्ट करते हैं वो कहीं न कहीं एक दुसरे से जुड़े होते हैं. इसका सीधा मतलब ये है कि हमारे इतने काम्प्लेक्स दिमाग में बहुत सी चीज़ें एक साथ काम करती हैं इसी के कारण हम कई चीज़ों को एक साथ याद रख पाते हैं.

लॉजिकल स्टेटमेंट जैसे ‘ड्रग्स का सेवन खतरनाक होता हैं’ ब्रेन के केवल दो हिस्सों को इंगेज करता है लैंग्वेज प्रोसेसिंग और कॉम्प्रिहेंशन (comprehension) वहीं अगर आप कहानी सुनाते हैं तो आपका ब्रेन किसी स्विचबोर्ड की तरह लाइट-अप हो जाता है. अचानक हमारे दिमाग में इमोशन और इमेजेज भी प्रोसेस होने लगती है, और सारी चीज़ें हमारे ब्रेन की कोगनिटिव प्लानिंग (cognitive planning) से जुड़ जाती हैं.

अब जरा वापस कॉलेज की क्लास में चलते हैं, जहाँ एक ओर पहले उदाहरण में हमारा दिमाग केवल नंबर और अब्सट्रैक्ट (abstract) को बड़ी आसानी से प्रोसेस कर लेता है, लेकिन दिक्कत ये हैं कि इसे याद रखना मुश्किल हो जाता है. वहीं दुसरे उदाहरण में स्टूडेंट्स के ग्रे मैटर को थोडी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी क्यूंकि उनके दिमाग को इस बार एक इमेज प्रोसेस करनी पड़ेगी, कहानी सोचनी पड़ेगी और ये भी इमेजिन करना पड़ेगा कि अगर वो जॉनी की जगह पर होते तो क्या करते क्या वो भी ड्रग्स लेते. इतने सारे न्यूरॉन का मिलकर काम करना इस काम को थोडा मुश्किल बना देते हैं लेकिन इससे ये बातें ब्रेन की मेमोरी में लॉन्ग टाइम के लिए बैठ जाती हैं. इसलिए जब उन स्टूडेंट्स के सामने कभी ड्रग्स का ऑफर आएगा तो उनके दिमाग में एक बार तो जॉनी की कहानी जरुर आएगी.

ऐसी कहानि जिनसे लोग रिलेट कर पाएं उनके लिए टेंशन और नयापन क्रिएट करना जरुरी है.
जैक और जिल पडोसी होने के साथ-साथ बचपन के दोस्त भी थे. धीरे-धीरे उनमें प्यार हो गया और क्यूंकि उनके घर वालों को उनके रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था इसलिए जल्द ही उनकी शादी हो गयी और वो ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे.

ये कहानी आपको कैसी लगी? हालाँकि ये एक क्यूट स्टोरी है पर इसे पढनें में किसी को मजा नहीं आएगा क्यूंकि ये बहुत फीकी है. यानी एक यादगार कहानी बनाने के लिए नयेपन और टेंशन का तड़का लगाना जरुरी है.

सचाई तो ये है कि असल में हम सब एक नारसिस्ट (narcissists) हैं और हमें ऐसी हीं कहानियाँ पसंद आती है जो हमारे जैसी हो.

शायद इसलिए ज्यादातर लोगों को बज्जफीड (Buzzfeed) के सुपर-स्पेसिफिक (super-specific) टाइटलों वाले लिस्टिकल पसंद आते हैं जैसे ‘25 चीज़ें जो सिर्फ स्टैंडफोर्ड में पढ़ने वाले समझ सकते हैं’ या ‘25 बातें जो सिर्फ एशियाई पेरेंट्स समझ सकते हैं’ और इसीलिए लाखों लोग स्टारवार्स के फैन हैं. तो चाहे एक प्यारे से बच्चे की ‘तारे ज़मीन पर हों’ या फिर किसी सुपर हीरो की कहानी हर कोई वैसी ही फिल्मों को पसंद करता है जिसमें उसे किसी न किसी किरदार में अपने व्यक्तितिव की छाप मिले. इसलिए जैक एंड जिल की कहानी में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं होगी क्यूंकि असल ज़िन्दगी में चीज़ें इतनी आसान नहीं होती.

लेकिन रिलेटीविटी किसी को इंगेज करने के लिए अकेली काफी नहीं है. जैसे जो भी एक छोटे शहर का लड़का होगा या किसी सुपर मार्केट में चीज़ें जमाने का काम करता होगा वो स्टार वार्स सीरीज के ल्युक स्काईवॉकर (Luke Skywalker’s) से खुद को जोड़ सकता है. लेकिन क्या अपनी बिजी लाइफ से इतने घंटे देने के लिए बस इतना ही काफी है. नहीं इसके लिए कांसेप्ट में नयेपन की जरुरत है.

यानी ऑडियंस का ध्यान बनाये रखने के लिए ल्युक स्काईवॉकर (Luke Skywalker’s) को किसी न किसी एडवेंचर पर निकलना होगा. और ऐसा क्यूँ है? इसका कारण हमारे एवोल्यूशन की प्रोसेस में छुपा है. जब भी हम कुछ नया देखते या सुनते हैं तो अचनक हमारे दिमाग की बत्ती जल जाती है. ये गिफ्ट हमें हमारे पूर्वजों से मिला है जो कि ऐसे एनवायरनमेंट में रहते थे जहाँ उन्हें रोज़ खतरों का सामना करना पड़ता था और अगर आप अलर्ट नहीं रहे तो आप अपनी जान से हाथ धो बैठोगे. सदियों बाद आज जब हम स्क्रीन पर आँखें गडाए किसी बाहरी दुनिया के एलियन की फिल्म देखते हैं तब भी वही इंस्टिंक्ट काम करती है.

उसके बाद बारी आती है टेंशन के तडके की. ग्रीक फिलोसोफेर एरिस्टोटल (Aristotle) का कहना कि बेहतरीन कहानियाँ ‘क्या है?’ और ‘क्या हो सकता है?’ के बीच के गैप को भरकर एक रोमांचक एहसास दिलाती है. एक अच्छा स्टोरी टेलर हर बार इस गैप को खोलता और बंद करता है, जिससे टेंशन क्रिएट होता है. नहीं समझे आईये समझाते हैं. आपने शकेस्पेयर की मशहूर कहानी रोमियो जूलिएट तो पढ़ी होगी, एक तरफ हमारी जैक एंड जिल वाली कहानी है जहाँ सब अच्छा है इसलिए वो बोरिंग है वहीं शकेस्पेयर के नॉवेल में दोनों प्रेमियों को अलग करने के लिए दुनिया ने उनके साथ ना जाने क्या-क्या किया. वो मिले, फिर बिछड़े और फिर मिले यानी उनकी ज़िन्दगी में रुकावटें आती गयी और वो अपने प्यार के लिए उसे पार करते गए, बस यही तो है टेंशन का तड़का. यही तड़का ऑडियंस को बाँध कर रखता है ताकि वो बेसब्री से अंत का इंतज़ार करते रहे.

अच्छे स्टोरी टेलर कॉम्प्लेक्सिटी (complexicity) से ज्यादा कहानी के फ्लो पर ध्यान देते हैं.

अगर आप अर्नस्ट हेमिंगवे (Ernest Hemingway’s) की किताब को रीडिंग-लेवल कैलकुलेटर की मदद से देखते हैं तो आपको पता चलेगा कि उनकी English किसी 10th क्लास के बच्चे जितनी है. हाँ ये सच है कि नोबेल प्राइज विजेता और इंग्लिश के महान राइटर इतनी सिंपल लैंग्वेज में लिखते हैं. आप यही एक्सरसाइज जे.के.रोलिंग (J.K. Rowling) और कोर्मक मैककार्थी (Cormac McCarthy) की किताबों के साथ भी कर सकते हैं वहाँ भी आपको यही रिजल्ट मिलेगा. लेकिन ऐसा क्यूँ है कि इतने महान लेखकों की भाषा एक 13 साल के बच्चे जैसी.

इसका जवाब है कि महान स्टोरी टेलर कॉम्प्लेक्सिटी (complexcity) से ज्यादा फ़्लूएंसी (fleuncy) पर जोर देते हैं.

इस किताब के लेखकों को ये एक्सपेरिमेंट इतना पसंद आया कि इन मशहूर किताबों के बाद जो भी मिला उसे अपने कैलकुलेटर से देखा फिर चाहे वो साइंटिफिक राइटिंग हो या बेस्ट सेल्लिंग फिक्शन बुक. उन्होंने पाया कि ज्यादातर महान माने जाने लेखकों नें अपनी कहानियों में अपने साथियों से ज्यादा आसान लैंग्वेज का इस्तेमाल किया है.

अगर ये बात आपकी समझ से परे लग रही है कि तो बस इतना याद रखिये कि एक अच्छी कहानी में कॉम्प्लेक्सिटी से ज्यादा फ्लो होना जरुरी है.

फ़्लूएंट स्टोरी टेलिंग का मतलब है आप अपने ऑडियंस को तेज़ी से अपनी कहानी के उतार चड़ाव से लेकर गुजरें ताकि उनका रोमांच बरक़रार रहे और ऐसा करने के बीच में जो भी आये उसे आप हटाते जायें फिर चाहे वो लैंग्वेज के कठिन शब्द ही क्यूँ न हों. और सिर्फ राइटर ही नहीं करते बल्कि सिनेमा में भी ऐसा ही होता है. आपने देखा होगा कि आजकल हर फिल्म में चीज़ें पहले के मुकाबले ज्यादा तेज़ी से दिखाई जाती है फिर चाहे वो स्टोरीलाइन हो या एक्शन सीक्वेंस वहीं 1970 के दौर में हर चीज़ को स्लो मोशन में शूट किया जाता था खासकर फिक्शन मूवीज में. इस नये कांसेप्ट का श्रेय जाता है स्टार वार्स के एडिटर्स को जिन्होंने जॉर्ज लुकास (George Lucas’s ) की कहानी को फ़ास्ट कट शॉट्स की मदद से एकदम डायनामिक दिखाया था. ये नया बदलाव दर्शकों को काफी पसंद आया.

इसलिए हेमिंगवे की आसान शब्दों में लिखी बातें पढने वालों को इतनी पसंद आती है. फ्लो बनाकर रखने से ऑडियंस का ध्यान वहीँ जाता है जो जरुरी है यानी आपकी कहानी पर ना कि आपकी लैंग्वेज स्किल्स पर. जब आप एक फ़्लूएंट स्टोरी पढ़ते या देखते हैं तब आपका दिमाग कठिन शब्दों को, ग्रामर को या वोकाबुलारी के इस्तेमाल को समझने में बिजी नहीं होता बल्कि उस कहानी के किरदारों को, उनकी लाइफ की प्रॉब्लम को और स्टोरी की थीम को समझने की कोशिश में रहता है. इससे उनके लिए कहानी को समझना और उस से खुद को जोड़ पाना आसान हो जाता है और आपको तो याद होगा कि आप उसी कहानी को पसंद करते हैं जिससे आप खुद को जोड़ पाते हैं.

और यही तो स्टोरी टेलिंग का मकसद है. चाहे आप एक ब्लॉग पोस्ट लिख रहे हो, या कोई टीवी स्क्रिप्ट या एक नॉवेल अगर आप कहानी के एक पार्ट को दुसरे से स्मूथली जोड़ पाते हैं तो पढने वाले को आपकी कहानी जरुर पसंद आएगी. ये कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसके लिए लोग आपको कॉम्प्लीमेंट करें क्यूंकि इसे कोई नोटिस नहीं करता लेकिन एक अच्छी कहानी लिखने का ये सबसे जरुरी पॉइंट है.

कहानियाँ हमें अपने लोगों की परवाह करना सीखाती हैं.
कुछ सालों पहले साइंटिस्टों नें लोगों के एक ग्रुप को जेम्स बांड की मूवी दिखाई. जब लोग ये फिल्म देख रहे थे तब एक डिवाइस की मदद से साइंटिस्ट उनके ब्रेन की एक्टिविटी, पर्सपिरेशन लेवल और हार्ट रेट नाप रहे थे. जब-जब फिल्म का हीरो किसी मुसीबत में पड़ता तब-तब लोगों की धडकनें बढ़ जाती और हाथ से पसीना निकलने लगता. आप सोच रहे होंगे कि ये तो एक्सपेक्टेड हैं लेकिन इन बदलावों के साथ-साथ साइंटिस्ट नें एक बहुत अजीब बात नोटिस की. उन्होंने देखा कि जेम्स बांड को मुसीबत में देख उनके ब्रेन से ऑक्सीटोसिन (oxytocin) नाम का न्यूरोकेमिकल निकलने लगा, ये वही केमिकल है जो हमारे अन्दर दया और केयर की फीलिंग डेवेलप करता है.

ऑक्सीटोसिन हमें बताता है कि हमें किसी की केयर करनी है. ये एक एवोल्यूशन से चली आ रही प्रक्रिया है जो हमारे पूर्वजों को ये पहचानने में मदद करती थी कि सामने वाला दोस्त है या दुश्मन यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो ऑक्सीटोसिन हमें अपने जाती और समूह के लोगों की पहचान करने में और उनकी केयर करने में मदद करता है.

तो आखिर जेम्स बांड को एक ग्लोबल कांस्पीरेसी का शिकार होता हुआ देख हमारा दिमाग ऑक्सीटोसिन क्यूँ बनाने लगता है. क्यूंकि हम उसे अपने साथ रिलेट करने लगते हैं. जैसे-जैसे हम फिल्म देखते हैं, हम जेम्स बांड के किरदार के साथ जुड़ जाते हैं और हमें ये चिंता सताने लगती है कि अब उसके साथ क्या होगा. ये जानने के लिए हम और ध्यान से फिल्म को देखने लगते हैं. यानी देखा जाए तो कहानियाँ हमें एक दुसरे की केयर करना सीखाती है.

ये इनसाइट केवल फिल्मों के लिए ही नहीं है बल्कि लाइफ के हर फील्ड में सच साबित होती है. चाहे आप निर्भया केस ले लीजिये जहाँ उसकी कहानी सुनकर हर कोई दहल गया था और उसके लिए इंसाफ की मांग में ना जाने कितने ही कैंडल मार्च और प्रोटेस्ट हुए. अगर हम पॉलिटिक्स की बात करें तो हमारे देश में जब भी कोई जाती या धर्म के नाम पर कहानी सुनाता है तो हम आसानी से उस पर विश्वास कर के उसे सपोर्ट करने लगते हैं.

अगर बात बिज़नस कि करें तो जब फोर्ड के बुरे दिन चल रहे थे और वो इंटरनेशनल मार्केट से लगभग ख़त्म होने वाली थी तब उनकी टीम को एक आईडिया आया उन्होंने अपने शुरुवात से लेकर डाउनफाल तक की एक डाक्यूमेंट्री बनायीं जिसमें उन्होनें दिखाया कि कैसे उनकी कंपनी जिसनें दुनिया की पहली कार बनायीं वो आज बर्बादी के मुकाम पर है. इस डाक्यूमेंट्री को देखने के बाद लोगों के मन में इतनी सहानुभूति आई कि कुछ ही महीनों में फोर्ड की सेल्स बढ़ गयी.

देखा आपने कहानियाँ हमारे मन पर कितना असर डाल सकती है.

कैसे पब्लिश करना है ये सोचना भी उतना ही जरुरी है जितना कि क्या पब्लिश करना. 16th सेंचुरी में इटली बहुत ही अशांत जगह थी. अमीर परिवार पॉवर और पैसे के लिए एक दुसरे से कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ते थे. हर किसी को एक-दुसरे की बुराई करना और गॉसिप करना पसंद था इसी बीच जन्म हुआ दुनिया के पहले मास मीडिया बिज़नस का जिसका नाम था, Avvisi यानी ऐसी मैगजीन जिसमे अफवाहें छती होती थीं. इनके रिपोर्टर रोज़ मिलान जैसे बड़े शहरों की गलियों में घूमते लोगों से खबरें और गॉसिप कलेक्ट करते फिर शाम को उसे अपने प्रिंटिंग प्रेस में खूबसूरत अंदाज़ में छाप कर सुबह जगह-जगह उसे पेस्ट कर देते. उनका बिज़नस काफी अच्छा चल रहा था बस एक ही दिक्कत थी कि अगर उनके राइटर हाथ से लिखते तो खबर लोगों तक जल्दी पहुंचा सकते थे.

वहाँ लोग एक दुसरे की गॉसिप के लिए इतने बेताब थे कि उसे पढ़ने के लिए अगले दिन का इंतज़ार उन्हें मुश्किल लगता था. प्रिंटिंग में 1 दिन तो लगता ही इसलिए Avvisi के राइटरों नें ख़बरों को हाथ से लिखना शुरू किया जिसके कारण वो उसी दिन शाम को उसे पेस्ट करने में कामयाब होने लगे.

अब यहाँ हमें ये सीख मिलती है कि कैसे पब्लिश करना है ये भी उतना ही जरुरी है जितना कि क्या पब्लिश करना है. ऑडियंस बेस बनाने के लिए आपको पब्लिशिंग का एक पैटर्न फॉलो करना होगा जिसकी तीन स्टेप हैं.

सबसे पहला स्टेप है अपना कंटेंट क्रिएट करना जैसे इटली के बड़े शहरों में घूमकर Avvisi की टीम मसालेदार खबरें इक्कठा करती थी. अगर 21st सेंचुरी की बात करें तो ब्लॉग पोस्ट लिखना. 

दूसरा स्टेप है अपनी ऑडियंस के साथ कनेक्ट करना फिर चाहे वो रेंनैसंस (Renaissance) के समय में लैंप पोस्ट और फेमस बिल्डिंग की दीवारों पर पोस्ट चिपकाना हो या आज के ज़माने में अपने पोस्ट को अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शेयर करना.

और आखरी स्टेप है ऑप्टिमाइजेशन की जिसमें आपको ऑडियंस के रिएक्शन को समझना है कि उन्हें क्या पसंद आ रहा है. जैसे Avvisi ने काम्प्लेक्स प्रिंटिंग मीडिया से स्विच करके हाथ से लिखने शुरू कर दिया. वैसे ही आज आप ऑडियंस के फीडबैक से ये पता लगा सकते हैं कि उन्हें कम और लम्बे पोस्ट पसंद आ रहे हैं या छोटे लेकिन बहुत सारे.

इसके लिए आपको अपनी ऑडियंस पर थोडा रिसर्च भी करना होगा जैसे Upworthy नें किया. Upworthy 2012 में लांच हुयी एक कंटेंट शेयरिंग साईट हैं जो आज दुनिया कि सबसे तेजी से बढ़ने वाली मीडिया कंपनी बन चुकि है.

Upworthy का कांसेप्ट काफी सिंपल था. वो दूसरों के क्रिएट किये इंस्पिरेशनल कंटेंट उठाकर उसे और फैंसी ढंग से लिखते और दुबारा उसे फेसबुक पर शेयर करते. उन्होंने कंटेंट लिखने और पब्लिश करने के काफी तरीके अजमाए और देखा कि ऑडियंस किसे पसंद करती है. आखिरकार उन्हें अपना बेस्ट वर्शन मिल गया जिसपर काम करते हुए उन्होनें बाकी कंपनियों के मुकाबले अपना बिज़नस 5 गुना ज्यादा बढ़ा लिया.

जब कंटेंट हर जगह मौजूद हो तो ऑडियंस का दिल जीतने के लिए थोडा डीप में जाना जरुरी है.
19 वीं सेंचुरी में दुनिया कहानियों और ख़बरों से भरी हुई थी. मार्केट में इतने सारे न्यूज़पेपर थे कि उन्हें सर्वाइव करने के लिए कुछ नया सोचना पड़ा। शुरुवात में उन्होंने सनसनीखेज़ हेडलाइंस का सहारा लिया. लेकिन ये तरीका लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचनें के लिए तो ठीक था लेकिन उनका विश्वास जीतने के लिए नहीं.

लेकिन न्यूयॉर्क वर्ल्ड के मालिक जोसफ पुलित्ज़र (Joseph Pulitzer) बस ऐसे ही दुनिया के हजारों न्यूज़पेपर्स में से एक के मालिक नहीं बनना चाहते थे. उनका सपना था कि लोग ना केवल उनके न्यूज़पेपर्स को खरीदें बल्कि उसपर उन्हें इतना विश्वास हो कि वो और किसी को पढ़ने का सोचें भी न. इसके लिए पुलित्ज़र को अपना प्रोडक्ट बाकियों से अलग बनाना पड़ता. लेकिन कैसे?

इस सवाल का जवाब उन्हें एक यंग फीमेल रिपोर्टर नेली ब्लाय (Nellie Bly) के रूप में मिला. उस ज़माने नें जर्नलिज्म और रिपोर्टिंग आमतौर पर लड़कों का काम माना जाता था लेकिन इस बात नें नेली के विश्वास को हिलने नहीं दिया. एक दिन उसने पुल्तिज़र के ऑफिस में खड़े होकर अपनी केस रिपोर्ट उन्हें दिखाई, वो रीडरों द्वारा काफी पसंद की गयी और पुलित्ज़र नें उसे काम पर रख लिया. नेली की रिपोर्टिंग न्यू यॉर्क वर्ल्ड के लिए एक गेम चेंजर साबित हुयी.

अपने बाकि साथियों की तरह नेली को सुसाइड और शूट आउट जैसी सनसनीखेज़ वारदातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उसे कुछ और चाहिए था जो लोगों की जिंदगियों से जुड़ा हो. जैसे 1887 उसनें पागलपन का नाटक करके न्यू यॉर्क के एक पागलखाने का स्टिंग ऑपरेशन किया और वहाँ से करप्शन और लापवाही की कहानी लोगों के सामने लाई.

उसकी ये कहानी एक सनसनी बन गयी जिसनें अमेरिका में मेंटल हेल्थकेयर फैसिलिटी को पूरी तरह से बदल कर रख दिया. इस कहानी के बाद वो हुआ जो अमेरिका में कभी नहीं हुआ था लोग एक ही न्यूज़ पेपर को पढने लगे और यहीं से सब्सक्रिप्शन जर्नलिज्म की शुरवात हुयी. सीरियस टॉपिक की गहराईयों में जाकर नेली नें जर्नलिज्म की तस्वीर बदल दी.

उसी तरह से फेसबुक के इस ज़माने में सुपरफिशिअल कंटेंट की भरमार है. इसलिए आज के कंटेंट क्रिएटर्स को भी नेल्ली से सीखना चहिये कि जब लोग क्वांटिटी पर फोकस कर रहे हों तो उनसे आगे निकलने के लिए आपको क्वालिटी पर फोकस करना चाहिए.

कुल मिलाकर
हम सबका दिमाग कुछ इस तरह डिजाईन है कि हमें फैक्ट्स और डाटा से ज्यादा कहानियाँ याद रहती हैं. ऐसा इसलिए क्यूंकि लैंग्वेज के मुकाबले कहानियाँ हमारे दिमाग के ज्यादा हिस्सों से होकर गुजरती हैं. फिर चाहे वो स्टार वार्स हो या हेमिंगवे की सनसनीखेज नॉवेल कहानियाँ अपनी रीलेटेब्लिटी, टेंशन और नयेपन की मदद से हमारे मन के तारों को छेड़ जाती हैं. पर इफेक्टिव स्टोरी टेलिंग का मतलब सिर्फ शब्दों को कागज़ पर लिखना या स्क्रीन पर दिखाना ही नहीं बल्कि इसके लिए इस बात का ध्यान रखना बहुत जरुरी है कि आप अपना मेसेज किस तरह से डिलीवर कर रहे हैं. इनफार्मेशन से भरी इस दुनिया में क्वांटिटी (quantity)से ज्यादा क्वालिटी (quality) के ऊपर ध्यान देना जरुरी है. 

 

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