Neuro-linguistic Programming for

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Neuro-linguistic Programming for

Dummies
Romilla Ready, Kate Burton
NLP सीखिए!

दो लफ्ज़ों में
Romiila और kate ने यह किताब 2015 में लिखी थी. किताब हमें न्युरो लिग्युस्टिक प्रोग्रामिंग के बेसिक प्रिंसपल्स से इंट्रोड्यूज़ कराती है. बिज़नेस, एजुकेशन, स्पोर्टे्स, कोचिंग, काउंसलिंग और रिलेशनशिप जैसे फील्ड्स में न्युरो लिंग्युस्टिक प्रोग्रामिंग टेक्निक का खूब इस्तेमाल होता है. अगर आप अपने दिमाग में चल रही बातें शेयर करने में स्ट्रगल करते हैं तो NLP की टेक्नीक्स आपके लिए बहुत बेनिफीशियल हो सकती हैं. इस समरी में आप ऐसे ह्युमन ट्रेट्स के बारे में जानेगें जो एक दूसरे को समझने मे हेल्पफुल हो सकते हैं और आप कुछ ऐसे मैथड भी जानेंगे जो क्लियर और इफेक्टिव कम्युनिकेशन में आपकी मदद कर सकते हैं.

यह समरी किनके लिए है
उन रीडर्स के लिए जो पढ़ते तो बहुत हैं लेकिन क्लियर कम्युनिकेशन में फेल हो रहे हैं, न्युरोसाइंस और लिंग्युस्टिक्स के स्टुडेंट्स के लिए और अगर आप खुद को इम्प्रूव करने के लिए नये आइडियाज़ और टेक्नीक्स जानना चाहते हैं तो आपके लिए लिए भी
ऑथर्स के बारे में जानते हैं
Romilla, रेडी सॉल्युशंस लिमिटेड की डायरेक्टर और एक स्पीकर हैं जो बेहतर रिश्ता बनाने के लिए लोगों को ट्रेन करती हैं. इसके अलावा वह एक इंटरनेशनल बेस्ट सेलिंग ऑथर हैं, कहती हैं कि उनका मकसद लोगों को उनकी पर्सनल और प्रॉफेशनल लाइफ सवारने में मदद करना और इम्पैक्टोफुल बनाना है. 
Kate Burton न्योरो लिग्युस्टिक प्रोग्रामिंग की एक एक्पर्ट कोच हैं. उनकी वर्कशॉप्स ने दुनिया भर के लोगों को बेहतर ज़िंदगी जीने और लाइफ में प्रोडक्टिव होना सिखाया है.

न्योरो लिंग्योस्टिक प्रोग्रामिंग हर किसी के अलग होने की बात करती है और सबकी खासियत के हिसाब से उनके कम्युकेशन को बेहतर करने की कोशिश करती है
बातें करना बहुत आसान है मुँह खोलिए और बोलते चले जाइए जो भी आपके मन में आए. लेकिन आपके दिमाग में क्या चल रहा है उसे दूसरे के दिमाग तक उसी मीनिंग के साथ पहुँचान यानि कम्युनिकेट करना बहुत मुश्किल है. आपने कम्युनिकेशन को समझने वालों से यह भी सुना होगा कि इफेक्टिव कम्युनेकिशन का मतलब है मिसकम्युनिकेशन अवॉइड किया जाए. कम्युनिकेट करते वक्त हम अक्सर सामने वाले को सुनते नहीं है बस वही सुनते हैं जिसका जवाब देने के लिए हम तैयार हों या जो हम सुनना चाहते हों, यह समझ ही नहीं पाते कि सामने वाले को हमारी बातें कैसी लग रही होंगीं जोकि किसी और के लिए हमारी बातों को समझना बहुत टफ बना देता है.

लेकिन NLP हमे यह समझने में हेल्प करता है कि दुनिया को लेकर हर किसी का अपना अलग पर्सेप्शन है, इस प्रोग्राम से हमें ऐसे तरीके भी मिलते हैं जिससे हम दुनिया को लेकर दूसरों के पर्सेप्शन को समझ सकें.

इस समरी में आप तीन बड़ी चीज़े जानेंगे, नींबु अपने इस्तेमाल किए जाने के हिसाब से कैसे बदलता है, लोगों के एक्सपीरियंस को बेहतर तरीके से समझने के लिए आप उनसे कैसे सवाल कर सकते हैं. और तीसरा यह कि लोगों के साथ स्ट्रॉग कनेक्शन कैसे बनाया जाए.

 

चलिए शुरू करते हैं, न्योरोलिंगयुस्टिक प्रोग्रामिंग को समझने से!

हम अपने आस पास के महौल को अपने आस पास की दुनिया को जिस तरह से समझते और एक्सपीरियंस करते हैं NLP उस अंडर्स्टैंडिंग और एक्सपीरियंस की स्टडी है. इस दुनिया में हर शख्स अलग होता है आपके बगल में बैठा हुआ या आपसे हज़ार किलो मीटर दूर, लेकिन कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो हर किसी में मौजूद हैं. वह है पांच सेंसेज़ जिनका इस्तेमाल हम अपने आस पास की दुनिया को समझने और एक्सपीरियंस करने के लिए करते हैं. यहां पर जो दुनिया वर्ड का इस्तेमाल है उसमें सिर्फ बाहरी दुनिया नहीं बल्कि आपके आस पास के लोग और चीज़ों के साथ आपकी अपनी बॉडी और वह हर चीज़ शामिल है जिसे सुना, देखा, सूँघा और छुआ जा सकता है. 

हमारा पर्सपेक्टिव सबसे यूनिक और सबसे अलग होता है क्यों हमारे एक्सपीरियंस को बहुत सारी चीज़ें इफेक्ट करती हैं. हमारा एक्सपीरियंस हमारी पर्सनल वैल्यूज़, सोशल और कल्चरल बैकग्राउंड, पास्ट एक्सपीरियंस से फिल्टर होकर बनता हैं और एक पर्सपेक्टिव फॉर्म करती हैं. जिन फिल्टर्स की अभी हमने बात की कि सोशल वैल्यूज़ वगैरह वह सबके अलग होते हैं और इसको इंटर्नेल रिप्रेज़ेंटेशन भी कहते हैं. यह जो फिल्टर है यही NLP का सेंट्रल कॉन्सेप्ट है

फॉर एग्ज़ाम्पल आप और आपके एक फ्रेंड ने किसी पार्टी में सेम खाना खाया सेम म्युज़िक सुना और सेम महौल में रहे लेकिन वापस आने के बाद आपका दोस्त कहता है, क्या बकवास पार्टी थी जबकि आपको महुत मज़ा आया. आप दोनों के एक्सपीरियंस अलग रहे क्योंकि आप दोनों के फिल्टर्स अलग हैं.

NLP के ज़रिए आप यह समझ जाते हैं कि सबके फिल्टर्स अलग हैं और यहीं से कम्युनिकेशन और अंडरस्टैंडिंग को बेहतर करने की शुरूआत होती है. NLP का मकसद हमें अलग अलग लोगों के साथ कम्युनिकेट करने के लिए तैयार करना और उन्हें समझने के लिए रेडी करना है.

यह कुछ दूसरों के शूज़ में खुद को रखकर देखने जैसा ही है. अब हम उन तरीकों के बात करेंगे जिनका इस्तेमाल NLP में किया जा सकता है.

मैचिंग और मिररिंग का इस्तेमाल कर नॉनवर्बल कम्युनिकेशन करने से अच्छा रेपो बनाया जा सकता है
अच्छे रेपो और रिलेशन का बेस्ट एग्ज़ाम्पल वह इंसान है जिसके कम्युनिकेशन से आप बहुत इम्प्रेस हुए हों. आपके ज़ेहन में इस वक्त वह इंसान आ गया होगा जो अपने आइडियाज़ को बहुत ईज़िली सिम्पल शब्दों में कहकर सामने वाले को समझा देता है और आपका मुँह खुला रह जाता है कि यार मुझसे यह क्यों नहीं हो पाता. अच्छी रेपो से कम्युनिकेशन आसान होता है और इसी वजह से रिसर्चर इस मोस्ट वांटेड क्वलिटी के बारे में अपनी समझ बेहतर करना चाहते हैं.

अच्छे कम्युनिकेशन या रेपो के लिए नॉन वर्बल कम्युनिकेशन बहुत ज़रूरी है. दुनिया नॉनवर्बल कम्युनिकेशन के बारे में 1960 से जानती है जब UCLA के प्रॉफेसर Albert Mehrabian ने फेस टु फेस कम्युनिकेशन के तीन एलिमेंट को आइडेंटिफाई किया था. वर्ड्स, आवाज़ की टोन और नॉन वर्बल कम्युनिकेशन जैसे की फेश एक्सप्रेशन, हैंड जिस्चर या आई कॉन्टैक्ट. प्रॉफेसर का कहना है कि अगर कम्युनिकेशन के तीनों एलिमेंट को सौ पर्सेंट में से रेट किया जाए तो एक इफेक्टिव कम्युनिकेशन में 55% रोल नॉन वर्बल कम्युनिकेशन का, 38% रोल आवाज़ की टोन का और बोले गये वर्ड्स का रोल महज़ 7% होता है.

तो किसी कम्युनिकेशन में नॉन वर्बल और वर्ड्स बराबर तौर पर इम्पॉर्टेंट होते हैं. तो अगली प्रेज़ेंटेशन में टीम के सामने स्टैच्यु की तरह खड़े होकर रोबोट जैसे बोलते नहीं चले जाइएगा या फिर नॉन वर्बल कम्युनिकेट करने के चक्कर में आई कॉन्टैक्ट की जगह किसी को घूरने मत लगिएगा. काल्म और कॉन्फिडेंट आवाज़ और जस्टिफाइड एक्सप्रेशन का इस्तेमाल करते हुए अपने कम्युनिकेशन में जान डालने की कोशिश करिएगा.

अच्छे कम्युनिकेशन का दूसरा तरीका है मैचिंग एण्ड मिररिंग मतलब आप जिससे बात कर रहे उसके कम्युनिकेशन का रिदम पकड़ने की कोशिश कीजिए और उसी के साथ एक लय मेनटेन कर लीजिए. इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनको कॉपी करने लग जाए. हल्का सा कुछ समय के डिफ्रेंस पर उनके किसी जेस्चर को कॉम्लिमेंट करना कम्युनिकेश को इफेक्टिव बना सकता है मिसाल के तौर पर अगर सामने वाले ने ड्रिंक का ग्लास रख दिया है तो एक सिप लेने के बाद आप भी अपना ग्लास टेबल पर रख दीजिए. सामने वाले की मूवमेंट और एनर्जी लेवल पर फोकस करिए. इससे आप इफेक्टिव कम्युनिकेशन स्टैबलिश कर पाएंगे और सामने वाले में एक सेंस ऑफ इम्पॉर्टेंस डेवलप होगा जिससे वह खुलकर बातें करने लगेगा.

आपका दिमाग पॉज़िटिव और नेगेटिव एक्सपीरियंस से एक लिंक फॉर्म कर सकता है जोकि आपके फायदे की चीज़ हो सकती है
अपने दिमाग को नज़रअंदाज़ करना आपकी सबसे बड़ी गलतियों में से एक है. आपका दिमाग पास्ट में हुए असर दार एक्सपीरियंस और मोमेंट से बहुत जल्दी लिंक क्रिएट कर लेता है. हमारी यह खासियत नुकसान और फायदे दोनो दे सकती है. मतलब कभी हमारी अलर्टनेस हमें बचा सकती है कभी यह अनवांटेड इमोशंस और रिएक्शन को इनवाइट करती है जिससे चीज़ें खराब भी हो सकती हैं

खूशबू का इग्ज़ाम्पल ले सकते हैं, हो सकता है किसी खास तरह के पर्फ्यूम की स्मेल से आपको अपने किसी खास के साथ बिताए अच्छे वक्त की याद आ जाती हो या पहला किस याद आ जाता हो क्योंकि सामने वाला बंदा वही पर्फ्यूम लगाता था यहां पर यह स्मेल आपके दिमाग में पहले से सेट कनेक्टर का रोल करती है जो आपको हैप्पी मेमोरी से कनेक्ट करती है. यह लिंक बुरी यादों के साथ भी क्रिएट हो सकती है. मान लीजिए कि आपके पैरेंट का डिवोर्स फादर के एल्कोहॉलिक होने की वजह से हुआ अब अगर किसी पार्टी में या किसी इवेंट में आप एल्कोहॉल देखती हैं या किसी को कंज्यूम करते देखती हैं तो आपकी यह बुरी यादें ताज़ा हो जाती हैं. यहां पर एल्कोहॉल कनेक्टर का रोल अदा करता है लेकिन वह आपको किसी बुरी याद के साथ लिंक करता है.

NLP के ज़रिए आपको ऐसी थ्री स्टेप टेक्नीक मिलती है जो नए पॉज़िटिव एंकर डेवलप करने में आपकी मदद कर सकती हैं. 

इस टेक्नीक का पहला स्टेप है अपना इमोशनल स्टेट चूज़ करना मतलब आप किसी पर्टिकुलर टाइम में खुश रहना चाहते हैं, एनर्जेटिक या फिर शांत. किसी एक इमोशनल स्टेट को चुनिए और उसे अपने दिमाग में रखिए.

मिसाल के तौर पर आप बहुत खुश महसूस करना चाहते हैं तो इसका दूसरा स्टेप है पास्ट में हुई उन सभी चीज़ों को याद करना जब आप बहुत खुश हुए थे हो सकता है वह आपकी शादी रही हो या फिर पहली जॉब. किसी एक मोमेंट को चूज़ कीजिए और उसपर स्टिक कीजिए.

तीसरा स्टेप है किसी इमोशनल स्टेज को चूज़ करने के बाद आपको यह डिसाइड करना है कि आप इस वक्त उस इमोशनल स्टेज में होते तो आपके इर्द गिर्द किस तरह का साउंड होता या आप किस तरह के मूवमेंट कर रहे होते. मिसाल के तौर पर आप आपका हैप्पी मोमेंट किसी डांस परफॉर्मेंस से जुड़ा हुआ है जिसमें आप तालियां बजा रहे थे तो आप कोई डांस परफॉर्मेंस लगाकर उसके लिए तालियां बजा सकते हैं. 

एक बार आप सक्सेसफुली खुदको  अपने हैप्पी मोमेंट तक ले गये तो आप इसका इस्तेमाल कभी भी कर सकते हैं जब भी आपको ज़रूरत हो सिस्टम पर  कोई बढ़िया सा डांस लगाइए अपने लिए बढ़िया सी मॉकटेल ऑर्डर कीजिए और तालियों से उस डांस परफॉर्मेंस को एप्रिशिएट करिए.

NLP के लॉजिकल-लेवल्स मॉडल आने वाली प्रॉब्लम्स का सही सल्यूशन निकालने में काफी हेल्पफुल साबित हुआ है
लाइफ में बहुत सारी प्रॉब्लम्स आती हैं कुछ ईज़िली हैंडल हो जाती हैं और कुछ अपने साथ सेल्फ डाउड, एंग्ज़ायटी, प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ पर बुरा असर साथ ले आती हैं.रियल प्रॉब्लम का पता चल जाए तो आधी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती है, प्रॉब्लम्स को थोड़ा बेहतर तरीके से एक्सप्लेन करने के लिए NLP फाइव लॉजिकल लेवल को इंट्रेड्यूज़ करता है. जो यह समझने में आपकी हेल्प करते हैं कि आखिरकार आपकी लाइफ में चैलेंजेज़ कहां से आते हैं- यह आपका महौल, बिहेवियर, स्किल्स, बिलीफ, वैल्यूज़, आइडेंटिटी कुछ भी हो सकता है.

मसलन कॉलेज में आपकी क्लास मेन वॉशरूम के बिल्कुल बगल में है इससे आप अनकर्टेबल हो जाती हैं तो यह महौल यानि इनवायरमेंट की कैटेगरी में आएगा. इस चैलेंज को सॉल्व करने के लिए आपको खुदमें कोई बदलाव करने की ज़रूरत नहीं है. कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन से बात करके आपकी यह प्रॉब्लम सॉल्व हो सकती है.

आपने इंजीरियरिंग की पढ़ाई की आप एक अच्छी कम्पनी में सॉफ्टेयर इंजीनियर हैं लेकिन काम करते हुए आपको रियलाइज़ होता है कि आप यह काम करना ही नहीं चाहते. असल चैलेंज यही आता है. यह प्रॉब्लम आपके बिलीव और वैल्यूज़ से रिलेटेड है. आपके इंटर्नल डिलेमा से ज़ुडे चैलेंजेज़ काफी कॉम्लिकेटेड होते हैं. 

सिचुएशन चाहे जो भी हो आप थ्री स्टेप लॉजिकल लेवल्स की हेल्प से किसी भी प्रॉब्लम की तह तक जा सकते हैं. सबसे पहला स्टेप तो इस बात को पहचानना ही है कि प्रॉब्लम एक्ज़िस्ट करती है.

दूसरा स्टेप है प्रॉब्लम की वजह जानना और उसकी कैटेगरी को डिटरमाइन करना कि यह प्रॉब्लम इंवायरमेंट से रिलेटेड है वैल्यु से या बिहेवियर से. मसलन कोई प्रॉब्लम पड़ोसी की वजह से हो रही है तो यह इंवायरमेंट कैटेगरी में आएगा वहीं किसी इश्यु में कोई तीसरी पार्टी इंवॉल्व्ड है तो वह बिहेवियर से जुड़ी प्रॉब्लम हो सकती है वहीं अगर आप और आपका पार्टनर लाइफ को लेकर अलग अप्रोच रखते हैं जिसके चलते प्रॉब्लम्स आ रहीं है तो यह वैल्यूज़ से रिलेटेड है.

और जब एक बार प्रॉब्लम की जड़ का पता लग जाए तो उसके लिए क्या कदम उठाना है यह बहुत ईज़िली पता किया जा सकता है और आप ज़रूरी कदम उठा सकते हैं. 

हो सकता है प्रॉब्लम बिहेवियर में हो और यह आप  दोनों का अप्रोच नहीं बल्कि आपका ज़रूरत से ज्यादा काम में लगा रहना आपको और आपके पार्टनर को अलग कर रहा हो. इसका सल्युशन यह हो सकता है कि आप एक्सट्रा आवर ऑफिस में बिताने से बचें और हफ्ते में दो बार अपने पार्टर के साथ बाहर डिनर करने या लॉग वॉक पर ज़रूर जाएं.

सही सवाल पूछने से कंवर्ज़ेशन कामयाब और मीनिंगफुल होती है, मेटा मॉडल सही सवाल करने में आपकी हेल्प कर सकता है
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कभी न कभी अपने आपको एक्सप्रेस करने के लिए अपने वर्ड्स की शॉर्टेड का सामना करना पड़ता है लेकिन खुदको एक्सप्रेस करने का नाता सिर्फ वर्ड्स से नहीं है. जब हम अपना कोई एक्सपीरियंस शेयर करते हैं तो हम तीन प्रोसेस से गुज़रते हैं- डिलिटेशन, जर्नलाइज़ेशन और डिस्टॉर्शन. अभी हम तीनों वर्ड्स को एक्सप्लेन भी करेंगे.

डिलिटेशन का मतलब यह है कि जब हम अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हैं तो काफी कुछ स्किप कर देते हैं, फॉर इग्ज़ाम्पल आपने अपने कोवर्कर से पूछा कि उसने वीकेंड पर क्या किया और वह जवाब देता है कि कुछ नहीं बस एक मूवी देखी जो ठीक ठाक थी. अब ऐसा तो नहीं है कि उसने सिर्फ मूवी ही देखी होगी बस उसने बाकी सारी चीज़ें डिलीट कर दी.

जर्नलाइज़ेशन मतलब जब आप अपना कोई एक्सपीरियंस एक्सप्लेन करते हुए उसे बहुत सतही तरह से बताते हैं और बहुत हल्का कर देते हैं. किसी ने आपसे पूछा क्यों इतना स्ट्रेस्ड हो आप जवाब में कहते हैं कि यार मैं एक इवेंट में गयी थी पता नहीं आज कल के लोग इतने इनसेंसिटिव क्यों हो गये हैं. या फिर आप कह देते हैं कि एग्ज़ाम अच्छा नहीं हुआ बस और कुछ नहीं.

डिस्टॉर्शन मतलब अपने आस पास की चीज़ों को गलत समझना. दो दिन से आपका पार्टनर ऑफिस से आकर थोड़ी बहुत बातें करके जल्दी सोने चला जाता है और सुबह ऑफिस निकल जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने आपको प्यार करना बंद कर दिया है हो सकता है कि ऑफिस में ज्यादा काम हो और वह थक जाते हों.

डिलिटेशन को एड्रेस करने के लिए अपने कोवर्कर से खासतौर पर सवाल करिए उनसे पूछिए कि उन्होंने और क्या किया या किसके साथ. जर्नलाइज़ेशन के मसले में अपनी दोस्त से वह सवाल कीजिए जो उसके पर्सपेक्टिव को चैलेंज करें फॉर एक्ज़ाम्पल उससे उसके एक्पीरियंस के बारे में डिटेल से पूछिए और बताइए कि हर कोई इनसेंसिटिव नहीं होता हो सकता है कि सामने वाला किसी प्रॉब्लम में रहा हो. जहां डिस्टॉर्शन की बात आती है तो यहां आपको ऐेसे सवाल करने हैं जिनसे सामने वाला डिटेल दे सके. मतलब उनसे पूछिए कि उन्हें क्यों लगता है कि उनका पार्टनर अब उनसे प्यार नहीं करता.

हम में से हर कोई यूनीक है लेकिन हर किसी में कुछ ऐसे ट्रेट्स होते हैं जो सेम होते हैं और अक्सर यह ट्रेट्स कम्युनिकेशन के बीच भी आ जाते हैं. न्युरो लिंग्युस्टिक प्रोग्रामिंग की मदद से हम मीनिंगफुल और इफेक्टिव कम्युनिकेशन की तरफ ज़रूर बढ़ सकते हैं.

कुल मिलाकर
न्योरो लिग्युस्स्टिक प्रोग्राम कोई अटॉमिक साइंस नहीं है. लाइफ और अपने आस पास की चीज़ों को हम जिस तरीके से एक्सपीरियंस करते हैं यह उसकी बात करता है. सही जानकारी और सही तरीके का इस्तेमाल करके यह समझा जा सकता है हम किस तरह से यूनिक और कौन से ट्रेट्स हमारे अंदर एक जैसे हैं.

 

क्या करें

स्टोरीज़

एक अच्छे कम्युनिकेटर की तौर पर आपकी इमेज बनाने में स्टोरीज़ एक बड़ा रोल अदा करती हैं. लोग स्टोरीज़ को लेकर अलग रिएक्ट करते हैं. ऑर्ग्युमेंट हो सकता है उनके ज़ेहन में न घुसे लेकिन स्टोरीज़ उनके मेमोरी और इमोशंस को टच करती हैं. इसलिए अगर आप किसी ऑर्ग्युमेंट में हैं तो सामने वाले को कोई ऐसा स्टोरी बताइए जो आपके प्वाइंट को एक्सप्रेस कर सके. फॉर एग्ज़ाम्पल बिज़नेस ओनर्स अपने इम्पलॉय को मोटिवेट करने के लिए अपने बिज़नेस की ग्रोथ शेयर कर सकते हैं कैसे यह कम्पनी एक छोटे से कमरे से निकली और आज यहां है. आप किसी ऐसे पुराने इम्पलॉय की खूबियों के बारे में भी बात कर सकते हैं जिसकी वजह से कम्पनी को यहां पहुँचने में काफी हेल्प मिली.

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Neuro-linguistic Programming for Dummies by Romilla Ready, Kate Burton

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आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे. 

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