David Brooks
एक मीनिंगफुल,एक खुशहाल जिंदगी जीने के पीछे का राज क्या है?
दो लफ्जों में
साल था 2019 और उस साल एक किताब रिलीज हुई जिसका नाम था ‘सेकंड माउंटेन’,इस किताब में उसी सवाल का जवाब देने की कोशिश की गई है,जो सवाल हम कई सालों से खुद से पूछते हैं कि एक मीनिंगफुल,एक खुशहाल जिंदगी जीने के पीछे का राज क्या है? इस किताब के माध्यम से लेखक ‘डेविड ब्रुक्स’ ने इसी सवाल का जवाब देने की कोशिश की है, उन्होंने कहा है कि अपने आप को इस सोसाइटी में एडजस्ट करिए, सोसाइटी के अंदर जाइए और खुद का जो एक ईगो है, जो हमने पाला हुआ है उसे खत्म करिए और सोसाइटी के लिए काम करिए दूसरों के लिए काम करिए तब आपको खुशी मिलेगी.
यह किताब किसके लिए
- हर उस प्रोफेशनल के लिए जिसे लग रहा है कि कैरियर को आगे बढ़ाने में कुछ दिक्कत आ रही है।
- उस इंसान के लिए जिसके जीवन में खुशी की कमी है।
- ऐसे लोग जो सोचते हैं कि सोसाइटी से उनका कनेक्शन अच्छा नहीं है.
लेखक के बारे में
इस किताब के लेखक डेविड ब्रुक्स हैं, वो न्यूयॉर्क टाइम्स में एक सेंटर राइट लेखक भी हैं, जहां पर वह अपने कॉलम में पॉलिटिक्स के ऊपर, कल्चर के ऊपर, समाज के ऊपर, समाज में रहने वालों के ऊपर कॉलम लिखते हैं. लेखक ने कई अंतरराष्ट्रीय स्तर में बेस्ट सेलिंग किताब भी लिखी है. उन्ही किताबों में से एक है ‘द सोशल एनीमल: द हिडन सोर्स ऑफ़ लव,कैरेक्टर एंड अचीवमेंट’, लेखक येल विश्वविद्यालय में पढ़ाते भी हैं, इसी के साथ वो अमेरिकन अकादमी ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंस के मेंबर भी हैं.
‘इंडीविज्युलिजम’ हमारे सोशल रिलेशंस को कमजोर करता है
क्या आप कभी ऐसे इंसान से मिले हैं जो हमेशा खुश रहता हो? अगर मिले हैं तो क्या आपने सोचा है कि इसके पीछे का सीक्रेट क्या है? या फिर क्या आपने खुद से कभी यह सवाल किया है कि वह इतना खुश कैसे है? करीब 100 से भी ज्यादा लोगों से बातचीत के बाद फिलासफी और धर्म के ऊपर काम करने के बाद साइकोलॉजी और सोशलॉजी की रिसर्च के बाद और अपनी खुद की लाइफ में बीते एक्सपीरियंस के बाद, जिसमें उनका डाइवोर्स भी शामिल है, डेविड इस सवाल का जवाब ढूंढ कर ले आए हैं।
ऑथर ने इन सवालों के जवाब बहुत ही अलग ढंग से देने की कोशिश की है, इन सवालों का जवाब इस किताब में उन्होंने कुछ इस तरह दिया है कि जैसे दो पहाड़ों को चढ़ना ही जिंदगी हो जिसमें आपको पहला पहाड़ कुछ सीख देगा, आपको नीचे करेगा, आपको गिराएगा तो वहीं दूसरा पहाड़, जहां पर आपको आपकी जिंदगी का सीक्रेट मिलेगा एंड फाइनली इन्हीं दो पहाड़ों के बीच में खुशी का रास्ता भी है। इस किताब की इस समरी को आप जैसे-जैसे आप पढ़ते जाएंगे वैसे वैसे कुछ आप नया सीखते जाएंगे.
क्यों इंसान सिर्फ खुद के बारे में सोच कर खुश नहीं रह सकता? खुश होने का रास्ता अभी तक कोई क्यों नहीं खोज पाया? क्यों अधिकतर लोग प्यार के बारे में गलत परसेप्शन बनाकर रखे हुए हैं? आखिर क्यों ज़िन्दगी में खुश होना इतना कठिन हो गया है? यही सारे सवालों के जवाब आप को मिलने वाले हैं.
अपने ज़िन्दगी के सफ़र में लोग जो पहले पर्वत की चढ़ाई करते हैं, उसे समझने की शुरुआत करने से पहले हमे थोड़ा समाजिक ढाँचे को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि यहीं से इस पर्वत का उदय होता है. आसान भाषा में इसे व्यक्तिवाद या इंडीविज्युलिजम कहा जाता है.
‘इंडीविज्युलिजम’ इसके नाम से ही पता चलता है कि ये एक बिलीफ सिस्टम है. यूएस में इसका काफी प्रभाव रहा है, इसलिए वहां इंडीविज्युलिजम सोसाइटी भी पायी जाती है. इंडीविज्युलिजम को बढ़ावा देने वाली सोसाइटी में पर्सनल फ्रीडम को इम्पोर्टेंस दिया जाता है, ऐसा नॉन इंडीविज्युलिस्टिक सोसाइटी में देखने को नहीं मिलता है. ‘इंडीविज्युलिजम’ का आधार ही ये है कि आपको दूसरों के हिसाब से जीना नहीं है, इन दूसरों में पोलिटिकल पार्टियाँ और सोसाइटी भी शामिल है.
‘इंडीविज्युलिजम’ आपको ये आज़ादी देता है कि आप वही सोचें और करें जो आप करना चाहते हैं, आपको बस अपने बारे में ही सोचना है, अपने फायदों के बारे में ही ध्यान लगाना है. आपको अपनी लाइफ में जो भी करना हो, वो आप करिए, जब तक आपका काम दूसरे को इफ़ेक्ट नहीं करता है, तब तक आप ‘इंडीविज्युलिजम’ के हिसाब से रह सकते हैं.
पूरी दुनिया में अगर देखा जाए तो सोसाइटी सभी को एक इंडीविजुअल के हिसाब से देखती है, अगर ‘इंडीविज्युलिजम’ को ना फॉलो करके कोई कम्युनिटी में जुड़ता है तो इसका मतलब ये होता है कि वो दूसरे इंसान से भी जुड़ रहा है, इस तरह जुड़ने उसे कई चीजों में समझौता भी करना पड़ेगा, उसके कुछ हितों को नकारा भी जा सकता है, उसे ऐसा भी लग सकता है कि उसकी पर्सनल फ्रीडम कम हुई है. वहीं इंडीविज्युलिजम में ये चीज आपको नजर नहीं आएगी क्योंकि कमिटमेंट वहां कम होता है.
पर्सनल फ्रीडम के लिए तो ‘इंडीविज्युलिजम’ काफी अच्छा साबित हो सकता है, लेकिन अगर आप इसे एक बड़े परिपेक्ष में देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि इससे समाज में कई समस्याओं का जन्म भी होता है.
ऐसा इसलिए होता है कि जब हम सिर्फ और सिर्फ अपनी तरफ ध्यान देने लगेंगे तो हम दूसरों को महत्त्व देना कम कर देगें, हम कुएं के मेढ़क की तरह हो जाएंगे, जिसकी दुनिया बस उस कुएं के अंदर ही है, इससे समाजिक भावनाओं को हम समझ नही पायेंगे इससे कई तरह की दिक्कतों का जन्म होगा. इसको आप यूएस में देख सकते हैं, कि लोगों ने वहां ‘इंडीविज्युलिजम’ को बढ़ावा दिया तो सोसाइटी में काफी बदलाव देखने को मिले.
एक स्टेटिक्स के अनुसार सिर्फ 8 परसेंट अमेरिकन अपने पड़ोसियों से बात करते हैं, इसका नतीजा क्या निकला है?
स्टेटिक्स के अनुसार 35 प्रेसेंट अमेरिकनस् को 45 साल की उम्र तक डिप्रेशन जैसी बीमारी हो जाती है. वहीं इस बीमारी का असर उन लोगों में देखने को नहीं मिला है जो किसी बड़े ग्रुप का हिस्सा रहे हैं, भले ही वो ग्रुप राजनीतिक हो या फिर धार्मिक.
अब और आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं. इसका मतलब है जब कोई 'इंडीविज्युलिजम’ को मानता है तो उसे फ्रीडम तो मिलती है, लेकिन एक स्टेज के बाद उसे समझ में आता है कि उसके आस पास उसे सुनने के लिए कोई बचा ही नही है, जब ये स्टेज आती है, तभी आता है अकेलापन. अकलेपन की एक खासियत है कि वो कभी अकेले नहीं आता बल्कि अपने साथ कई बीमारियाँ भी लेकर आता है, उन्ही बीमारियों में से एक का नाम है डिप्रेशन, इस बीमारी से लाखों लोग आत्म हत्या करने तक मजबूर हो जाते हैं.
डेटा देखें तो पता चलता है कि साल 2012 से 2015 के बीच में काफी बड़े स्तर पर युवा अमेरिकन्स डिप्रेशन का शिकार हुए हैं, परसेंटेज के हिसाब से ये 5.9 से 8.2 हो गया है.
स्थति और नाजुक बच्चों में देखने को मिली है, जहाँ 10 से 17 साल के बच्चे भी आत्महत्या जैसे कदम उठाते हुए नजर आते हैं.
अमेरिकन्स सोशल कनेक्शन तो कम कर ही रहे हैं, साथ ही साथ ये भी देखने को मिल रहा है कि उनके बीच ट्रस्ट भी कम होता जा रहा है, अमेरिका में लोग पड़ोसियों पर भरोसा नही करते हैं, अगर हम 1952 से अब तक की बात करें तो ये ट्रस्ट 60 प्रतिशत से 32 प्रतीशत पर आ गया है. अमीरों में तो ये और कम है, उनके यहां 100 में से सिर्फ 18 लोग एक दूसरे पर भरोसा करते हैं.
जहाँ पहले 75 प्रतीशत लोग अपनी सरकार पर भरोसा किया करते थे अब ये आंकड़ा 25 प्रतीशत पर आ गया है, समाज की दृष्टि से बेहद डराने वाले आंकड़े हैं ये, आने वाले अध्याय में और समझने की कोशिश करते हैं कि इंसान कि सोच किधर जा रही है.
‘इंडीविज्युलिजम’ आपको बाजारवाद की तरफ ले जा रहा है
मानिए आप एक युवा हैं, जो यूएस की एक इंडीविज्युलिस्टिक सोसाइटी में रहता है, आप अभी अभी ग्रेजुएट हुए हैं, अब आप आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं, आपके पास एक अच्छी डिग्री भी है, लेकिन सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि अब आगे क्या? ये सवाल जितना आसान है इसका जवाब ढूंढना उतना ही कठिन.
इंडीविज्युलिजम से आप पर्सनल फ्रीडम सीखते हैं, लेकिन फ्रीडम का उपयोग आपने तब तक नहीं किया जब तक आपकी पढ़ाई चल रही थी, अभी तक आपकी ज़िन्दगी आपके स्कूल के आस पास ही थी, स्कूल पढ़ाई के साथ एग्जाम्स देने के अलावा आपने ज्यादा कुछ नही किया है.
अब आप ग्रेजुएट हो चुके हैं, लेकिन आपके आस पास कोई भी ऐसा एक शख्स नहीं है जो आपको बता सके कि अब आगे क्या करना है. ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि आज तक आपने कभी सोसाइटी से कोई मतलब ही नहीं रखा है. अब आपको जो करना है खुद ही करना है, ये एक एडवेंचर भी हो सकता है, लेकिन यहां आपको समझना होगा कि आपका सोशल कनेक्शन खत्म हो चुका है.
इंडीविज्युलिस्टिक सोसाइटी में रहने वाले कई युवा अपने आपको एक समुद्र में अकेला पाते हैं, इसलिए वो किसी ऐसे माध्यम की तलाश करते हैं जिसमे वो व्यस्त रहें. ये तलाश उनकी उनकी प्रोफेशनल लाइफ में आकर खत्म होती है, वो किसी भी कम्पनी में ऐसी पोजीशन चाहते हैं जो एक स्ट्रक्चर प्रोवाइड करती हो. उनको ऑफिस जाना, अपने बॉस को खुश रखना, प्रमोट होना, पैसे कमाना, कुछ इस तरह की ज़िन्दगी जीने लगते हैं. स्टेस्ट्स पाने की चढ़ाई में ही वो पहला पहाड़ यानी माउंटेन चढ़ते हैं, जिसे कहा जाता है माउंटेन ऑफ़ सक्सेस.
पहला माउंटेन उन्हें जिन्दगी की दिशा तो दे सकता है, लेकिन इस रास्ते का भरोसा नहीं किया जा सकता और इसके लिए भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है.
अब आप हाईकिंग के जूतें पहन लीजिये, अब हम पहले पहाड़ की चोटी में चढ़ना शुरू करने वाले हैं, इसके लिए आपकी तैयारी भी पूरी होनी चाहिए.
बेस्ट सिनेरियो से शुरू करते हैं- मान लेते हैं, कि आप बहुत सक्सेसफुल हो चुके हैं, एक अच्छी कम्पनी में नौकरी करते हैं, बड़ी पोस्ट भी है आपके पास, पैसे भी हैं, समान भी अपनी ज़रूरत के हिसाब से आप खरीद लेते हैं, लेकिन फिर भी आपको अपनी जिंदगी में किसी चीज की कमी लगती है, आखिर किस चीज की कमी आपको लगातार महसूस हो रही है? क्या आपने जानने की कोशिश की है?
हम थोड़ा पीछे चलते है, ऊपर वाले सवाल में हम लौटकर आयेंगे लेकिन पहले हम कुछ और देखते हैं, मान लीजिये पहाड़ की चोटी पर पहुँचने से पहले ही आपका पाँव फिसल जाता है, और आप वैली से नीचे गिरने लगते हैं, मतलब कुछ भी बुरा हो जाता है आपके साथ जैसे कि आपकी जॉब चली जाती है, या फिर कोई बीमारी लग जाती है या फिर फैमिली में कोई दिक्कत आ जाती है, अब आप उस वैली से लौट जाएंगे? या फिर ऊपर की तरफ फिर से चढ़ने की कोशिश करने लगेंगे? ये फैसला आपको ही करना है.
अब या तो जहाँ पर भी आपकी जॉब गई, या कोई दिक्कत आई है, ये वैली दोनों पहाड़ों के बीच की जगह है, ये डिपेंड करेगा कि आप अपने बुरे समय को किस नज़रिए से देखते हैं.
कुछ लोग इसका हल पैसिव तरीके में ढूँढने की कोशिश करने लगते हैं, जैसे कि ड्रिंक करना या फिर कुछ नशा करना लेकिन ये तरीका सही नही है, इससे हल नही निकलेगा, परमानेंट हल आपको अपने चाहने वालों के पास ही मिलेगा, वो परिवार, दोस्त, बीवी, गर्ल फ्रेंड या समाज, कोई भी हो सकता है.
अब अगर आप ये रास्ता लेते हो, कौन सा? अपने चाहने वालों के पास जाकर कुछ समय बिताते हो तो आपको पता चल जाएगा कि पहला पहाड़ चढ़ते समय आपकी जिन्दगी में जो मिस हो रहा था, वो क्या चीज है, वो प्यार था. ये भी आपको समझ में आएगा कि ज़िन्दगी का असल मतलब क्या होता है, लोगों से कनेक्ट होने के बाद कई सारे सवालों के जवाब मिल जाते हैं, ज़िन्दगी का मतलब चीज़ें खरीद लेने से बिल्कुल भी नहीं है, आगे के अध्याय में हम और करीब से ये सब देखने वाले हैं.
अल्टीमेट गोल ऑफ़ लाइफ
इंडीविज्युलिस्टिक सोसाइटी एक वादा करती है कि अगर आप उसका साथ अच्छे से पकड़ लेते हो तो वह आपको खुद के लिए एक आजादी देगी, लेकिन सवाल करियेगा उससे जब वो बोले कि खुद के लिए आज़ाद हो जाओ कि इतना खुद के बारे में सोचने की जरुरत ही क्यों है? क्यों हम सबके बारे में नही सोच सकते है? क्या इंसान के तौर पर पैदा होना ही ख़ुशी नही है? कि हम सेल्फिश भी हो जाएँ? ये सब सवालों को खुद से पूछना पड़ेगा, आप खुद के लिए आज़ादी पा जाओगे लेकिन आप असल में क्या चाहते हो? ये सवाल भी करना खुद से, जवाब आपको मिल जायेगा.
इंडीविज्युलिजम को लेकर देखा जाए तो जिन्हें इंडीविज्युलिजम में ख़ुशी मिलती होगी, समान्य भाषा में ज्यादातर लोगों को चाहे वो कोई भी हो उसे ख़ुशी ही चाहिए. लेकिन अब बात ये आती है कि इंडीविज्युलिजम में ख़ुशी कैसे मिलती है? इसका जवाब ये है कि जब आप अपना कोई गोल अचीव कर लोगे तब ख़ुशी मिलेगी, जब आपकी कोई इच्छा पूरी हो जाएगी तब आपको ख़ुशी मिलेगी, लेकिन क्या ये ख़ुशी परमानेंट है? नहीं ये ख़ुशी परमानेंट नही है क्योंकि इस ख़ुशी का जुड़ाव आपकी लालसा से जुड़ा हुआ है, और लालसा कभी परमानेंट नहीं हो सकती है.
जब तक आप अपनी ख़ुशी को किसी एक चीज़ या इंसान से बांधकर रखोगे, तब तक ये परमानेंट नही हो सकती है, अपने लिए जीना, सिर्फ और सिर्फ अपनी खुशियों के लिए जीना, बहुत आम और छोटी बात है. बल्कि जब आप दूसरों के लिए जीना शुरू करेंगे तब पता चलेगा कि जीवन आखिर है क्या, सेकंड माउंटेन इसी के ऊपर है, आगे हम और करीब से ज़िन्दगी को देखने की कोशिश करेंगे, इस सफर में साथ चलते रहिये.
अगर कोई अपनी ही बस ख़ुशी के अलावा अपनी ज़िन्दगी को दूसरों की सेवा के लिए लगाता है तो वो नोबल जिन्दगी भी है. ये जिन्दगी ज्यादा लोगों को समझ में नही आती है. दूसरों की सेवा में जीवन को व्यतीत करना सुनने में ही कितना कठिन लग रहा है, अब आप सोचिये ये सच में क्या ही होगा.
आप दूसरा पहाड़ चढ़ना शुरू करें, उससे पहले आपका सवाल आना चाहिए कि इसमें मेरे लिए ख़ास क्या होने वाला है?
सबसे पहले तो आपको बता दिया जाए कि इस रास्ते में ये नहीं कहा जा रहा है कि आप अपनी ख़ुशी को पूरी तरह से त्याग ही दीजिये, इसमें तो ये कहा जा रहा है कि आप सेटिस्फेक्शन को भी महसूस कीजिये, जो दूसरो की सेवा में मिलता है, ख़ुशी को ही बस अपने जीवन का लक्ष्य मत बना लीजिये, जिन्दगी को देखने का एक और चश्मा भी है.
आप जिस हैपीनेस के लिए जी रहे हैं उसे आप एक बार जॉय से रिप्लेस करके तो देखिए, एक अलग ही शन्ति आपको महसूस होगी, अब सवाल उठता है कि ये जॉय क्या है? आपको बता दें कि रूह के अंदर की स्टेट ऑफ़ माइंड है, जिसमे सेटिस्फेक्शन है. हैपीनेस की तरह इसमें बस सेल्फ सैटिसफैक्शन ही बस नही है, बल्कि पूरी ज़िन्दगी को जीने की कला भी शामिल है. मतलब खुद को भूल जाना और दूसरों का ख्याल रखना, दूसरो की जिन्दगी बेहतर बनाना. ये एक प्रोसेस है जो चलती जायेगी, इस प्रोसेस में अगर कोई चलना शुरू कर देता है तो वो अलग ही इंसान बन जाता है.
जॉयफुलनेस कुछ ऐसे समझने की कोशिश करते हैं, मान लेते हैं कि प्यार एक चीज़ है जो हम अपने अन्दर जमा करते जा रहे हैं, फिर हम उसे लोगों में बांटना शुरू करते हैं, अब सोचिये लोगों से आपको कितना स्नेह और प्यार मिलेगा, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल ही है.
दलाई लामा इसके प्रमाण रहे हैं, किताब के लेखक ने एक बार दलाई लामा के साथ डिनर किया था, उन्होंने ओब्सर्व किया कि वो बिना किसी कारण के भी हंसते हैं, उनकी हंसी से पूरा माहौल ही बदल जाता है, चारों तरफ पॉजिटिव माहौल रहता है. उनके जीवन में जॉय भरा हुआ है, इसका अंदाजा उन्हें देखकर ही लग जाता है. लेखक बताते हैं कि वो भी अपने आपको रोक ना सके और उनके साथ हंसते ही रहे.
ये जॉय की शक्ति है, अब अगले अध्याय में हम जानने की कोशिश करते हैं कि इसे पाया कैसे जा सकता है.
दूसरों के लिए जीना इतना भी आसान नही है
एक जॉयफुल जीवन, मतलब दूसरों के लिए जीना, आसान भाषा में प्यार बांटना, इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि चार लोग इकट्ठा हो गये और खाना खाते हुए, गाना गा रहे हैं. इतना आसान तो ये नही है.
दूसरे पहाड़ को चढ़ना है तो कई सीरियस पहलुओं से भी गुजरना पड़ेगा, इनमे से कुछ हैं कि जैसे समाज की गरीबी, मेंटल हेल्थ, बेरोजगारी, ऐसी समस्याओं का हल सोचना पड़ेगा. इन सबके साथ अपने चाहने वालों के साथ भी हमें एक अच्छा संबंध बनाना पड़ेगा, अब चाहे वो आपके परिवार के लोग हों, या फिर आपकी गर्ल फ्रेंड हो आपके पास सबके लिए समय होना चाहिए, सबको खुश रखना इतना आसान तो नही है.
इन सबके अलावा कई ऐसी दिक्कतें आएँगी जो आपकी निजी जिन्दगी की होंगी, उन दिक्कतों को भी आपको ही हल करना पड़ेगा, कोई दूसरा नही आने वाला उन दिक्कतों को हल करने के लिए.
अगर आपने फैसला किया है कि आपको अपनी जिंदगी में दूसरो के लिए समय रखना है तो दूसरों की दिक्कतों को भी आपको ही हल करने की कोशिश भी करनी होगी. उसमे से कई दिक्कत तो छोटी हो सकती है, लेकिन कई दिक्कतें काफी बड़ी भी रहेंगी. अब आप ये सब कैसे करोगे? इसका जवाब भी तो आपको ही तलाशना है, जब आप दूसरों की मदद करने की ठान लेते हो तो आपकी मदद खुदा भी करता है, बस ये बात मत भूलना, और अपने रास्ते के लिए निकल पड़िए अगर आपने सोच लिया है तो, डरिये मत भगवान आपके लिए राह बनाएगा.
अब एक और सवाल आपके सामने खड़ा होगा कि दूसरा पहाड़ चढ़ते समय जब आपके पास दिक्कत खुद आएँगी तो आपकी मदद कौन करेगा? या फिर आपको मोटिवेट कौन करेगा, इसका जवाब ये है कि जब समाज को आप ख़ुशी या प्यार दोगे, तो उधर से भी आपको बहुत कुछ मिलेगा, कुछ ऐसा भी मिलेगा जिसकी कीमत कोई नही लगा सकता है, अनमोल चीजें पानी हैं तो जीवन तो कठिन जीना ही पड़ेगा. आगे में हम इस पहाड़ को और अच्छे से समझने की कोशिश करेंगे.
अगर आपने ध्येय बना लिया है कि आपको दूसरा पहाड़ चढ़ना ही है तो जान लीजिये कि इसमें आपको कमिटमेंट की सख्त ज़रूरत पड़ने वाली है. बिना कमिटमेंट के समाज के काम नही किये जाते हैं. शुरुआत तो आप प्यार से करिए, जी हां प्यार, लोगों में प्यार बांटिये, लेकिन जान लीजिये कि ये बस शुरुआत ही है, और कुछ नही. इस शुरुआत के आगे का सफर काफी कठिन भी है, लेकिन ऐसा सफर है कि आप उस सफर को पसंद भी करेंगे, लेकिन उस सफर की एक बात जो सबसे ज़रूरी है, वो ये है कि आपको खुद से कमिटमेंट करना पड़ेगा कि मुझे ये करना है और रेगुलर करना है.
आपको खुद से एक वादा करना पड़ेगा कि मेरा जन्म बस मेरे लिए नही हुआ है, मैं दूसरों की ज़िन्दगी बेहतर बना सकता हूँ, इस सफर की शुरुआत में ही आपको कई ऐसे लोग मिलेंगे जो शायद आपका मनोबल भी तोड़ने की कोशिश करें, लेकिन आपको अपने संकल्प को याद रखना है.
जब आप दूसरों की सेवा करने की कमिटमेंट करोगे तो उसमे कई मौके आयेंगे जब आपको दूसरों के रीति रिवाजों को भी मानना पड़ेगा, याद रखिये आपका कमिटमेंट ऐसा नहीं होना चाहिए कि जब मन किया तोड़ दिया, बल्कि ऐसा होना चाहिए जैसा एक पति और पत्नी का शादी के समय होता है, ऐसा कमिटमेंट आपको करना पड़ेगा खुद से, कि आप दूसरों के लिए जीना चाहते हैं.
एग्जाम्पल के तौर पर क्रिस्चियन मैरिज को ले सकते हैं, उसमे सबके सामने कपल एक दूसरे से हमेशा साथ रहने का वादा करते हैं, और कहते हैं कि मैं आपको पार्टनर के तौर चुन रहा हूँ, मुझे इस दुनिया में आपसे बेहतर कोई नही लगता है, कुछ वैसा ही कमिटमेंट आपको अपनी जिन्दगी से करना पड़ेगा.
अगले अध्याय में हम और बारीकी से देखेंगे कि इसे आखिर कैसे करें?
‘लाइफ ऑफ़ सर्विस’ का ये भी एक तरीका है
दूसरों के लिए जिन्दगी जीना या फिर लाइफ ऑफ़ सर्विस में जब आप होते हो तो इसमें आपके अंदर एक पैशन होना चाहिए, क्योंकि ये काम आप पैसों के लिए नहीं कर रहे होते हो, इसमें आप अपना समय दूसरे को देते हो, और समय किसी पैसे से ज्यादा कीमती होता है.
अगर आप इसे पेशा बनाना चाहते हो तो सबसे पहले आपको इस पेशे से इश्क करना पड़ेगा. ये कुछ भी हो सकता है, जिससे किसी के जीवन में बदलाव लाने में मदद कर रहे हैं, ये स्पीकर के तौर पर भी आप कर सकते हैं, लेखक के तौर पर भी कर सकते हैं, जर्नलिस्ट के तौर पर भी कर सकते है, और भी कई तरीके हैं, सबसे पहले पहचानिए कि आप कौन हैं? और कैसे आप लोगों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं.
जब आप ने पहचान लिया कि आपको किस तरह लोगों की मदद करनी है, फिर आप एक कमिटमेंट कीजिये और अपने आपको उस तरफ लगा दीजिये, जब आप एक लक्ष्य की तरफ अपना ध्यान लगायेंगे और वही आपका पेशा भी होगा, यकीन मानिए उस फील्ड में आप कुछ बड़ा कर जाएंगे, इतना बड़ा कि आपने कभी सोचा भी नहीं होगा, जरुरत है तो बस पहचान कर उस एक लक्ष्य में लग जाने की, जिससे आप दूसरों की जिन्दगी में भी बदलाव ला सकें.
अपने इस पेशे पर ध्यान देने से पहले कुछ सवाल हैं जो आपको खुद से पूछने पड़ेंगे, खुद की काउंसलिंग आपको ही करनी पड़ेगी, कि आपका इंटरेस्ट किस फील्ड में है? आपकी ताकत क्या है? आपकी कमजोरी क्या है? इस तरह के कई सवाल आपको खुद से पूछना चाहिए, जवाब के लिए खुद को थोड़ा समय भी दीजिये, जल्दबाजी में हमें कुछ भी नहीं करना चाहिए, जब आप खुद को समय देंगे, तो आपका दिमाग आपके लिए एकदम सटीक जवाब लेकर आएगा, एक बार जावाब मिल जाए, उसके बाद एक रोड मैप तैयार करिए कि कैसे मैं लोगों की जिन्दगी बदल सकता हूँ? सोसाइटी में कैसे कोई बड़ा इम्पैक्ट छोड़ सकता हूँ? ये रोड मैप आपको सही दिशा में काम करने के लिए इनकरेज करेगा.
उदाहरण के लिए, लेखक जॉर्ज ऑरवेल एक कट्टर सोशलिस्ट थे, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि उनका पेशा उन्हें लेखक के तौर पर ईमानदारी और पत्रकारिता के मूल्यो पर चलने के लिए कह रहा है. इसलिए जब उन्होंने स्पेनिश गृहयुद्ध में लड़ने के अपने अनुभवों के बारे में लिखा,ये युद्ध साल 1930 में हुआ था, इसके बारे में जब लेखक ने लिखा तो उनका लेखन ऑब्जेक्टिव स्टाइल में था, जो कि उनके नेचर के खिलाफ था. ऐसा उन्होंने सिर्फ इसलिए किया क्योंकि उनको एहसास हुआ कि उन्हें अपने पेशे के प्रति ईमानदार होना चाहिए. बस यही ईमानदारी है जो आपको भी अपने पेशे के प्रति रखनी है, और याद रखना है कि आप इस पेशे में क्यों आए थे? जब आप ये याद रखेंगे तो आपको ये भी याद आएगा कि आपको दूसरों का जीवन बेहतर बनाना है, यही आपका पेशा भी है.
कई लोगों के लिए धर्म या अध्यात्म का जीवन लाइफ ऑफ़ सर्विस की तरह होता है, अगर हम यहूदी और इसाई धर्म पर फोकस करें तो लेखक को लगता है कि यहां उनके अनुयायी को काफी लाभ मिलता है. एक जीवन शैली भी उन्हें सीखने को मिलती है.
धर्म के अंदर ही आता है रीति रिवाज, आप भी याद कर लेना कि कमिटमेंट का मतलब ही ये होता है कि हम किसी भी चीज को सही तरीके से करें. दूसरों को प्यार देना है तो उसका भी एक तरीका और प्रोटोकॉल होता है, जिसका पालन करना चाहिए, धर्म के रीच्युल्स भी यही कहते हैं.
उदाहरण के लिए यहूदियों का लेते हैं, उनके यहाँ 613 कमांडमेंट होते हैं, उनमें से अधिकतर इसीलिए हैं कि रीच्युल्स को कैसे किया जाए, कि जैसे शब्बत को मनाना, कैंडल्स जलाना, शांति के साथ प्रे करना शामिल है. यहूदी लोग अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में भी इस तरह का रीति रिवाज फॉलो करते हैं, इन रीतियों को मानने से उनके अंदर सोसाइटी में सभी लोग काफी प्रेम से रहते हैं.
धर्म अपने अनुयायी को ये भी बताता है कि जीवन को प्रेम पूर्वक कैसे जीना है. मूसा और जीसस जैसी महान हस्तियों की बाइबिल कहानियों के माध्यम से, आप जीवन जीने का तरीका काफी बेहतर ढ़ंग से सीख सकते हैं. लेखक बताते हैं कि उनके जीवनकाल दोनों ही समुदाय के साथ बड़े ही प्रेम से बीता है, उन्होंने जीवन के जॉय का अध्यात्म के सहारे से अनुभव किया है. धर्म शांति की सीख देता है, वो आपको एहसास दिलाता है कि आपको दूसरों के साथ कैसा बर्ताव करना है? क्या अच्छा है? लोगों को ख़ुशी कैसे देनी है? इसकी राह भी धर्म दिखाता है, ये अब हमारे ऊपर है कि हम धर्म या अध्यात्म को कैसे लेते हैं, क्या हम उनको एक शक्ति के रूप में लेंगे, जिससे हम काफी कुछ सीख सकें, या फिर हम किसी आडम्बर में फंसने का प्लान बना रहे हैं. लेखक के अनुसार धर्म को आप अपनी काबिलियत बढ़ाने के लिए उपयोग में ला सकते हैं, इसी के साथ ज्ञान का भंडार तो है ही अध्यात्म में, चुनाव आपका था और आपका ही रहेगा.
अब तक अगर आप धर्म को लेकर नकारात्मक या फिर उदासीन थे, तो अब आपके मन में सवाल आया होगा कि क्या धर्म से हमें इतने लाभ हो सकते हैं? ये भी आप सोच रहे होंगे कि क्या मै किसी समुदाय का हिस्सा बन सकता हूँ?
इसका जवाब है हां, लेकिन पूरा जवाब आपको अगले अध्याय में मिलेगा.
सेकुलरिज्म और लाइफ ऑफ़ सर्विस
हमने इन समरी की शुरुआत की थी कि कैसे लोग हैपीनेस के पीछे भाग रहे हैं, अब हम इस आखिरी अध्याय में सबको याद करते हुए देखेगे कि आखिर कैसे एक जॉयफुल जीवन जिया जाए, क्या करना चाहिए?
अगर आप सच में इंट्रेस्टेड हो जॉयफुल जिंदगी के लिए तो आप लकी हो, सोसाइटी को आपकी जरुरत है. उसमे भागीदारी करने का आपका समय आ गया है. हमारे ढहते हुए समाज को अब जरुरत है बुनकर की, जी हां लेखक, आपको बुनकर कह रहे हैं, क्योंकि आपके कंधो अब जिम्मेदारी आ चुकी है इस अलग अलग टुकड़ों में फटे हुए इस समाज को फिर से सीने की. अगर आप कुछ करेंगे तो आप बुनकर ही हुए ना, जो अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पूरे एक समुदाय को फिर जीवंत करने जा रहा है, इसलिए लेखक आपसे अनुरोध करते हैं कि अपना पाँव पीछे मत हटा लीजिएगा, कई लोग मिलेंगे, जो आपको गिराने का प्रयास भी करेंगे लेकिन आपको खड़े रहना है, अपना किये हुए खुद से वादे को याद रखना है कि मुझे समाज के लिए कुछ करना है.
उदाहरण के लिए याद करते हैं, आशिया बटलर को. शिकागो के एक उबड़-खाबड़ इलाके एंगलवुड में बड़ी हुईं, बचपन से ही गरीबी और हिंसा देखीं जिसने उसके समुदाय को त्रस्त कर दिया था, वो मदद करने के लिए स्वयंसेवक के तौर पर काम करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने पाया कि मौजूदा संगठनों में ही कमी थी, आखिरकार उन्होंने अपना खुद का संगठन बना लिया जिसका नाम रेजिडेंट एसोसिएशन ऑफ ग्रेटर एंगलवुड रखा. अपने संगठन की मदद से वह सभी क्रिएटिव लोगों को एक प्लेटफोर्म पर ले आईं. वह रोजगार के लिए, भुखमरी के लिए कई सारे इवेंट्स करती रहती हैं.
उन्होंने अपने इस प्रयास से लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया है, अब इसी को जॉय कहते हैं, जिसका जिक्र हम ऊपर कर रहे थे, काम मुश्किल हो सकता है, लेकिन नामुमकिन तभी तक है जब तक आप उसे करने के लिए आगे नही आ रहे हैं. दूसरों की मदद करने से ज्यादा ख़ुशी किसी चीज में नही मिल सकती है.
एक बार आप शुरुआत करके तो देखिए, अपने पड़ोस में ही देखिए क्या पता उन्हें आपकी मदद की जरुरत होगी, जब आप किसी प्रोजेक्ट को लेकर उतर जाएंगे, तो फिर आपको आपके लक्ष्य तक ले जाने वाले रास्ते अपने आप आपके सामने आने लगेंगे, लोग मदद लेने भी आयेंगे, और आपकी मदद करने भी आयेंगे, आईडिया की भी इस समाज में कोई कमी नहीं है, आईडिया भी आपको अपने अगल-बगल ही मिल जाएगा.
बस, फिर देर किस बात की, आईडिया ढूंढिए, काम शुरू करिए और उसे रियलिटी में तब्दील करिए, इस समाज को, इस सोसाइटी को आपकी जरुरत है.
कुल मिलाकर
सोशल भागीदारी को भूलकर लोग इंडीविज्युलिजम के चक्कर में पड़ते हैं, इससे क्या होता है? इससे बहुत सी दिक्कतों का जन्म होता है, डिप्रेशन जैसी बीमारियों का जन्म होता है. फिर उससे निजात पाने के लिए लोग मटेरियल सक्सेस या फिर हैपीनेस के पीछे भागते हैं, उससे भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि परमानेंट इलाज वो भी नही है. असल रास्ता है लाइफ ऑफ़ सर्विस, दूसरों के लिए जीना और उनकी मदद करना, लोगों से लगाव बनाकर रखना, उनको प्यार देना, उनकी दिक्कतों को दूर करने का प्रयास करते रहना, ये मार्ग जिस दिन आप पकड़ लिए उसी दिन जिन्दगी का असली मतलब आप समझ जाएंगे.
समस्याओं की जगह अवसर को देखिए, हर समस्या के पीछे एक अवसर छुपा होता है, जब आप अवसर को पहचानना शुरू कर देंगे, समस्या अपने आप खत्म हो जायेगी. अगर आप अपने समुदाय में भाग लेना चाहते हैं तो एक तरीका है कि वहां की बेसिक दिक्कत क्या है, इसका आपको पता लगाना होगा. या फिर आप दूसरे नज़रिए से देखिए कि आपके समुदाय की ताकत क्या है? आपके समुदाय के पास क्या-क्या है? आप इसमें कैसे अपना योगदान दे सकते हैं. दूसरा तरीका ज्यादा बेहतर है, इसमें लोग आपको सुनेंगे भी और आपकी इज्जत भी करेंगे. एप्रोच का खेल भी आपको सीखना चाहिए, हर चीज को जब आप एक अवसर के तौर पर देखने लगेंगे तो आपके पास होगी जॉयफुल लाइफ.
