Alain de Botton and The School of Life
An Emotional Education
दो लफ्ज़ों में
साल 2019 में रिलीज़ हुई किताब ‘The School of Life’ इमोशनल इंटेलिजेंस के ऊपर प्रैक्टिकल गाईड है. इस किताब की मदद से ज़िन्दगी, प्यार, रिलेशनशिप और काम को बेहतर बनाया जा सकता है. अगर आप भी अपनी लाइफ में विस्डम को अचीव करना चाहते हैं? तो इस किताब की समरी को आपके लिए ही तैयार किया गया है.
ये किताब किसके लिए है?
-किसी भी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए
-ऐसा कोई भी जो मुश्किलों का सामना कर रहा हो
-ऐसा कोई भी जिसे अपनी लाइफ को बेहतर करना हो
लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन ‘Alain de Botton’ ने किया है. ये ब्रिटिश ऑथर होने के साथ-साथ फिलॉसफर भी हैं. साल 2008 में ‘Alain de Botton’ और कुछ राइटर्स ने मिलकर स्कूल ऑफ़ लाइफ की स्थापना की है.
इमोशनल पैटर्न्स का कनेक्शन बचपन से होता है
देश का विकास और उन्नति तब ही हो सकती है जब शिक्षा व्यवस्था सही हो. जीवन में सफल होने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है. जीवन की कठिन चुनौतियों को इसके जरिये कम किया जा सकता है. इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि मॉडर्न सोसाइटी में एजुकेशन के ऊपर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन फिर भी एक चीज़ है, जिसके ऊपर मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम ध्यान नहीं दे रहा है. वो है “Emotionalintelligence”. इस किताब में इसी पहलू के बारे में बारीकी से चर्चा की गई है. हम इस एक पहलू से अपनी लाइफ को कई गुणा बेहतर बना सकते हैं.
आपको इस समरी में ये भी सीखने को मिलेगा
-‘emotional issues’ के बारे में बहुत कुछ
-आर्ट को दोस्त कैसे बना सकते हैं?
तो चलिए शुरू करते हैं!
सबसे पहले हम इस बात को समझ लें कि हम ज्यादातर ज़िन्दगी अपने दिमाग में ही बिताते हैं. इतना होते हुए भी हमारे अंदर अज्ञान भरा हुआ है. ऐसा काफी समय होता है जब हम irritable, guilty, या furious महसूस करते हैं.
लेकिन फिर भी हमें उसके पीछे के कारणों के बारे में नहीं पता होता है. लगातार हमारे सारे रिश्ते खराब होते जा रहे हैं? लेकिन हमें पता नहीं चल पा रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसी के साथ हम लोगों में से कई लोगों ने गलत प्रोफेशन का चुनाव कर लिया है. और हमें पता भी नहीं है कि हमनें इस प्रोफेशन को क्यों चुना है?
इसी के साथ हमारा दिमाग लगातार चीज़ों को भूलता रहता है. कई बार हम सोचते है कि ये सब सिचुएशन की वजह से हो रहा है. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि आज हमारा दिमाग जैसा भी काम कर रहा है. उसका सीधा कनेक्शन हमारे बचपन से होता है.
एक फेमस psychological examination टेस्ट होता है, जिसका नाम Rorschach test है. इस टेस्ट की मदद से इमोशनल एंगल का पता लगाया जा सकता है. कई लोगों के ऊपर हुए इस टेस्ट से पता चला है कि हमारा बचपन पूरी तरह से हमारे करंट इमोशन को कंट्रोल करता है.
अब बात ‘Emotional maturity’ की होगी, इसका भी कनेक्शन past experiences से ही है
कई लोगों को अपने-अपने एडल्टहुड में ‘emotional imbalance’ का सामना करना पड़ता है.
इसका सीधा कनेक्शन उनके बचपन से हो सकता है. लेकिन फिर भी इन ‘emotional imbalance’ के सोर्स का पता लगाना मुश्किल हो सकता है.
ऑथर कहते हैं कि हमारे करंट इमोशन का ओरिजिन ना पता होने की वजह से हमें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसी की वजह से कई बार हमें चाहने वालों की तरफ सिम्पथी नहीं मिल पाती है. इसी की वजह से हमारे दोस्त हमें spineless या कमज़ोर समझ लेते हैं. लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता है कि हमारी आज की कंडीशन के ज़िम्मेदार हमारा बचपन है. हमारा आज का नेचर बचपन की bullying की वजह से है.
हमारी इमोशनल कमज़ोरी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है. ऐसा क्यों होता है? इसका सिम्पल सा रीज़न ये है कि हम कभी भी खुद को इस कमज़ोरी को एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं कर पाते हैं. हम मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि गलत बचपन की वजह से हम इमोशनली कमज़ोर हो चुके हैं. हमें इस बात को एक्सेप्ट करना चाहिए कि बचपन के बिहेवियर एडल्टहुड को काफी मज़बूती से प्रभावित करते हैं.
हम हमेशा अपने पास्ट को happy nostalgia की तरह याद रखना चाहते हैं. हम कभी भी उसे चैलेंज नहीं करना चाहते हैं. लेकिन हमें अपने प्रेजेंट को सुधारने के लिए पास्ट को चैलेंज करना ही होगा.
ये भी सच है कि ऐसा कोई भी नहीं है, जिसका बचपन हर मायनों में emotionally healthy रहा होगा. लेकिन फिर भी हमें इतनी समझ तो रखनी चाहिए कि हम हेल्दी और अन-हेल्दी में अंतर समझने की कोशिश कर सकें.
इसलिए खुद का आंकलन करना बहुत ज़रूरी है, इमोशनल तौर पर मज़बूत बनने के लिए सेल्फ लव के कांसेप्ट को समझना भी बहुत ज़रूरी है.
हम दूसरों से तो आसानी से प्यार कर लेते हैं लेकिन शीशे के सामने खड़े होने पर जो चेहरा हमारी ओर ताकता है उसे प्यार करना आसान नहीं.
हम यह भी जानते हैं कि हमें खुद से मोहब्बत करनी चाहिए लेकिन अक़्सर हम ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पाते. कभी अपने चेहरे की बनावट तो कभी हमारे ग़लत निर्णय हमें खुद से नफ़रत करने पर मजबूर करते हैं.
हम अपनी काया से नफ़रत करने लगते हैं, अपनी कमज़ोर आत्मशक्ति से घबराते हैं, यहां तक ही इस बात से भी नफ़रत करने लगते हैं कि हम खुद को ही पसंद नहीं करते.
ये बातें बेहद घुमावदार हैं. आसानी से समझ में ना आने वाली, लेकिन हैं सच के बेहद क़रीब. ऐसा कोई इंसान नहीं जो इन बातों से इंकार कर सके. जो यह कह सके कि उसके भीतर असुरक्षा की भावना नहीं.
जनवरी के महीने में ये मुश्किलें और ज़्यादा बढ़ जाती हैं. लंबी रातें, नया साल, बहुत से ऐसे वादे जो हम ख़ुद से करते हैं और फ़िर सोचने लगते हैं कि क्या साल पूरा होने तक हम ये वादे पूरे कर पाएंगे.
इस तरह की सोच पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं में ज़्यादा होती है. साल 2016 में 48 देशों की लाखों महिलाओं व पुरुषों पर एक शोध किया गया और पाया कि पुरुष महिलाओं के मुक़ाबले खुद पर ज़्यादा भरोसा करते हैं.
यह जानना ज़रूरी है कि जब तक हम खुद से मोहब्बत नहीं करेंगे तब तक हम दूसरों से भी प्यार नहीं कर सकते.
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट लिंडा ब्लेयर बताती हैं कि हमें ख़ुद से दोस्ती करनी चाहिए. ख़ुद से बातें करें. वे सलाह देती हैं, ''जिस तरह हम अपने दोस्तों का ख़्याल रखते हैं वैसे ही अपना ख़्याल रखना सीखें.''
मान लीजिए किसी दिन आपका ऑफिस में बुरा दिन गुज़रा. आप ख़ुद से नफ़रत करने लगे, आपको लगने लगा कि आप किसी काम में बेहतर नही. उस वक्त ऐसा सोचिए कि अगर आपका कोई दोस्त इन्हीं हालात में आपके सामने आता तो आप उसका हौसला बढ़ाने के लिए क्या कहते. बस उसी तरह खुद का हौसला बढ़ाइए और अपने लिए नए रास्तों की तलाश कीजिए.
जब हमें असुरक्षा की भावना घेरने लगती है तो हम अपनी कमियों पर नज़र डालने लगते हैं, हम अपने मन-मस्तिष्क में अपनी नेगेटिव छवि गढ़ने लगते हैं. हम उन लोगों से ख़ुद को तौलने लगते हैं जो हमारी नज़र में बेहद कामयाब हैं. ये तमाम बातें हमें और ज़्यादा निराश करने लगती हैं.
हमें यह समझने की जरूरत है कि इस दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं होता, हमारे वो दोस्त भी नहीं जो दिन-रात सोशल मीडिया पर अपनी खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट करते रहते हैं.
मेडीटेशन की मदद से इमोशन पर जीत हासिल की जा सकती है
दोस्तों, मरहूम शायर अकबर इलाहाबादी ने क्या ख़ूब कहा है कि “दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ,बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीद्दार नहीं हूँ..” मतलब साफ़ है कि आज के दौर में सभी ख़ुशियों को खरीदना चाहते हैं. लेकिन इस बाज़ार में आपको खरीद्दार नहीं बनना है. क्योंकि खरीदी हुई खुशियों की एक्सपायरी डेट होती है. इसलिए ऐसी खुशियों को अपने पास लाने की कोशिश करिए, जिसे कभी कोई आपसे छीन ना पाए.
योग या मेडिटेशन, ये शब्द सुनने में जितने आसान लगते हैं. इसके फायदे उतने ही ज्यादा हैं. आज कल योग के बारे में हम अपने चारों तरफ पढ़ते और सुनते रहते हैं.
सोशल मीडिया से लेकर बाहरी कैम्प तक में योग और ध्यान के फायदे बताये जा रहे हैं. ज्यादातर जगह बताया गया है कि योग से इंसान का दिमाग और शरीर बेहतर होता है. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि योग का रिश्ता बस हमारे शरीर से ही नहीं बल्कि हमारी प्रोफेशनल लाइफ से भी होता है. योग की मदद से हम हमारी निज़ी ज़िन्दगी से लेकर प्रोफेशनल लाइफ तक भी बेहतर कर सकते हैं.
इस बारे में ज्यादातर प्रोफेशनल्स का भी मानना है कि “personal development की ज्यादातर किताबों में सुनी सुनाई बातों को बताया गया है. लेकिन इस किताब में उन्होंने खुद के निजी अनुभवों को बताने की कोशिश की है. उनके जीवन को योग ने पूरी तरह से बदला है. जिसका अनुभव उन्होंने इस किताब में लिखा है.”
जब पहली बार ऑथर ने मेडिटेशन से मुलाकात की थी.. तो उन्हें भी कुछ अजीब सा ही लगा था. उन्होंने सोचा था कि "कितना अजीब सा है ये ध्यान? मैं इससे इतने प्यार से बात कर रहा हूं, और वो है कि मुझे समझ ही नहीं रहा है, मेरी ही गलती है, पता नहीं क्यों उसे देखते ही शराफत की सारी नदियां मेरे अंदर से बहकर बाहर आने की कोशिश करने लगीं.. अब से कोई दुआ-सलाम नहीं.."
हमें समझना चाहिए कि ये इंसानी फितरत है. हम अगर किसी को महत्व देते हैं तो वापस उसी की उम्मीद करते हैं और उम्मीद तो उम्मीद है.. कब दगा दे जाए, किसे पता?
इसलिए ध्यान की दुनिया में सफल होने के लिए, आपको इससे बिना किसी उम्मीद के साथ दोस्ती करने की कोशिश करनी चाहिए.
“Pepperdine University School of Business” ने साल 2015 में एक RESEARCH की थी. इस RESEARCH के RESULT’S काफी चौकाने वाले थे. उन RESULT’S में ये बताया गया था कि किसी भी इंसान के concentration और FOCUS की शक्ति बस कुछ घंटे ध्यान या योग करने से बेहतर हो सकती है.
ऐसा इसलिए क्योंकि दिन भर में हमारे दिमाग का 50 प्रतीशत समय ध्यान भटकाने वाली चीज़ों में लगा रहता है. ऐसी बात बस हवा हवाई में नहीं कही जा रही है. बल्कि इस बात की पुष्टि HAWARD UNIVERSITY की रिसर्च करती है. ध्यान करने से हमारे दिमाग से ऐसे हॉर्मोन रिलीज़ होते हैं, जिनसे दिमाग को शान्ति मिलती है और हमारा फोकस भी बेहतर होता है.
इसी के साथ कई रिसर्च में बताया गया है कि रोजाना योग करने से दिमाग में शान्ति आती है. जिससे इंसान MINDFULLNESS की अवस्था में पहुँच जाता है. इस स्थति में पहुँचने के बाद इंसान के अंदर किसी भी काम को करने की क्षमता भी बेहतर होती है.
लेकिन किसी भी दोस्ती का पहला नियम ये होता है कि हमे दोस्त के बारे में सही जानकारी होनी चाहिए. इसलिए अब समय आ गया है कि हम योग और ध्यान के कुछ फैक्ट्स के बारे में चर्चा कर लें.
हमें दूसरों की तरफ भी दयालु रहना चाहिए
ऐसा माना जाता है कि सोसाइटी विनर्स को ही याद रखती है. मतलब साफ़ है कि अगर सोसाइटी से प्रेम और इज्ज़त चाहिए तो सफल होना होगा. लेकिन लूजर्स का क्या? क्या कोई उनके बारे में कुछ बता सकता है? इस सवाल को सुनते ही ज्यादातर लोग चुप हो जाते हैं.
कोई भी लूजर्स की लाइन में खड़ा नहीं होना चाहता है. Modern meritocracies के हिसाब से अपनी सफलता या फेलियर के केवल और केवल हम ही ज़िम्मेदार हैं. Modern meritocracies के हिसाब से हमारी असफलता और सफलता में किस्मत का कोई योगदान नहीं है? लेकिन हमें पता होना चाहिए कि इसी तरह की सोच की वजह से हमारे अंदर एंग्जायटी और डर बढ़ता जा रहा है.
हम लोगों ने सफलता को ही लाइफ का एक मात्र सोर्स मान लिया है. हम समझ चुके हैं कि अगर हमें ज़िन्दा रहना है तो हमें किसी भी तरह से सफल होना ही होगा. क्या इस तरह का अप्रोच सही है?
इसलिए अब समय आ गया है कि हम अपने नज़रिए को बेहतर करने की कोशिश करें. इतने ज्यादा दबाव में लाइफ को वेस्ट करने का कोई फायदा नहीं है. हमें लाइफ को हल्के-फुल्के अंदाज़ में एन्जॉय करने की कोशिश करनी चाहिए.
सोशल मीडिया का इस्तेमाल होशियारी से करें-
जो उस्मर ने बहुत सी सेल्फ-हेल्प किताबें लिखी हैं, उनकी एक किताब का नाम है 'दिस बुक विल मेक यू फ़ियरलेस'.
उस्मर कहती हैं कि सोशल मीडिया पर लोग एक-दूसरे से काफ़ी तुलना करते हैं. साल 2016 में लगभग 2000 युवाओं पर एक स्टडी की गई, जिसमें यह बात निकलकर आई की सोशल मीडिया के इस्तेमाल से डिप्रेशन बढ़ता है.
हमें सोशल मीडिया का इस्तेमाल होशियारी से करना चाहिए. हाल में हुई एक स्टडी के अनुसार दिन भर में लगभग पांच घंटे से ज़्यादा वक्त फ़ेसबुक को नहीं देना चाहिए. हमें सोशल मीडिया पर दूसरों के साथ अपनी तुलना करने से भी बचना चाहिए.
इसी के साथ ख़ुद से नफ़रत करने वाले कारणों में हमारा अपने शरीर के प्रति कम आकर्षण एक बड़ी वजह है. यह बात महिलाओं में बहुत ज़्यादा है.
ब्रिटेन में महज़ 20 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि वे अपने शरीर से ख़ुश हैं. डव सेल्फ एस्टीम स्टडी में यह बात निकलकर आई. इस स्टडी के लिए 13 देशों की 10,500 महिलाओं से बात की गई.
इस स्टडी में महिलाओं ने माना की शरीर के प्रति नाखुशी के चलते वे अपने भीतर मौजूद बाक़ी खूबियों को भी नज़रअंदाज़ करने लगती हैं.
अब बात politenessजैसी बेहतरीन ख़ूबी की होगी, जिसे शायद लोग भूल गए हैं
क्या आप कभी ऐसे इंसान से मिले हैं, जो बेहद polite रहा हो? क्या politeness की मदद से इंसान kindऔर civilized बन जाता है?
लेकिन पिछले कुछ दशकों से सोसाइटी का ट्रेंड काफी बदला है.. अब लोग फ्रैंकनेस को ज्यादा तवज़्ज़ो देने लगे हैं. लेकिन हमें समझना चाहिए कि politeness की तरफ लौटने का समय आ चुका है.
बात कुछ ऐसी है कि politeness का मतलब ही दूसरों के इमोशन्स का कद्र करना होता है. Polite लोगों की समझ काफी बेहतर हो चुकी होती है. उन्हें पता रहता है कि हर बात पर बहस करने से कोई फायदा नहीं हो सकता है. अगर आपके सामने वाले को लगता है कि हर बात पर वही सही है? तो एक बात समझाने के अलावा.. दोबारा उसके ऊपर टाइम वेस्ट मत करिएगा.
इसलिए ऑथर कहते हैं कि Politeness एक लॉजिकल response की तरह है. इससे सभी की मेंटल हेल्थ बेहतर हो सकती है. अगर हम स्कूल ऑफ़ लाइफ के बारे में चर्चा कर रहे हैं. तो हमें Politeness के बारे में ज़रूर समझने की कोशिश करनी चाहिए.
क्या मॉडर्न कांसेप्ट ऑफ़ लव को मिसगाईड किया जा रहा है?
Romanticism के कांसेप्ट की शुरुआत 1750 में यूरोप से हुई थी. इस फिलॉसफ़ी में spontaneity को इमोशन्स से बेहतर बताने की कोशिश की गई है.
लेकिन हमें पता होना चाहिए कि लव लाइफ में केवल Romanticism की ही बातें करना, प्रेम नहीं है. इसी वजह से मॉडर्न कांसेप्ट ऑफ़ लव को मिस गाईड किया जा रहा है.
Romanticism के कांसेप्ट की वजह से ही लोग शादी को लव अफेयर की तरह समझने लगे हैं. लोग चाहते हैं कि मैरिज का कांसेप्ट ही अफेयर की तरह हो जाए. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि शादी किसी भी अफ़ेयर से बड़ी चीज़ है.
इसी के साथ-साथ Romanticism के कांसेप्ट में ये भी बताने की कोशिश की जाती है कि रियल लव में कभी भी कम्प्लेन या अनबन नहीं होनी चाहिए. लेकिन हमें समझना होगा कि प्यार का मतलब केवल एक दूसरे की वाह-वाही करना नहीं होता है. प्रेम तो एक दूसरे को प्रगति के मार्ग में आगे बढ़ाने का नाम है. इसलिए कभी भी अपने पार्टनर की गलतियों को सही करने में पीछे मत हटियेगा.
प्रेम एक ऐसी ज़िम्मेदारी है, जिसमें आपको अपने पार्टनर के साथ आगे बढ़ते जाना है. इस सफर में कई मुश्किलें आएँगी.. अन-बन भी हो सकती हैं. लेकिन एक दूसरे को ऊपर विश्वास बनाकर रखना है.
मॉडर्न कांसेप्ट ऑफ़ ‘Romanticism’ की वजह से ही कपल रियलिटी से दूर होते जा रहे हैं. ज्यादातर कपल्स ऑनलाइन बिकने वाली सीरीज़ या पोर्न को ही प्यार का दूसरा नाम समझ लेते हैं. लेकिन ये पूरी तरह से गलत है.
इसलिए याद रखिएगा कि हिंदी सिनेमा के अभिनेता आशुतोष राणा ने क्या ख़ूब कहा है कि “नज़र को बदलो, नज़ारे बदल जाएंगे, सोच को बदलो, सितारे बदल जायेंगे..कश्तियां बदलने की जरूरत नहीं, दिशा को बदलो किनारे बदल जायेंगे.. इंसान अपनी लाइफ की दिशा बदलकर पूरी ज़िन्दगी को पॉजिटिव दिशा की ओर मोड़ सकता है. इसी के साथ ये भी बताने की कोशिश की गई है कि किसी भी सिचुएशन के रिजल्ट को बदलने के लिए, बस नज़र को बदलने की ज़रूरत पड़ती है.
ज़िन्दगी को बेहतर से बेहतरीन बनाने के लिए हम लोगों को डिजिटल दुनिया में फैले PORN के जंजाल के बारे में पता होना ही चाहिए. ये एक ऐसा सच्चाई है जिसके बारे में सभी को मालुम है. लेकिन कोई भी इसके बारे में खुलकर बात नहीं करना चाहता है.
हद तो तब हो जाती है जब PORN में दिखाए जाने वाले ACTS को लोग सच मानने लगते हैं. इसलिए ये बताना बहुत ज़रूरी हो जाता है कि Fantasy of Pornography के पीछे कोई सच्चाई नहीं है. इसी के साथ इस कांसेप्ट में ऐसी कई बातें हैं, जिन्हें हम सच मानकर बैठ गए हैं. उन सभी बातों के ऊपर परत दर परत चर्चा होना बहुत ज़रूरी है.
अब बात प्यार की होगी क्योंकि लोगों ने सेक्स से प्यार को खत्म कर दिया है. लोगों ने मान लिया है कि सेक्स वही है, जो कि PORN वीडियो में दिखाया जाता है. लेकिन हमें समझना चाहिए कि ज्यादातर लोगों ने PORN की वजह से सेक्स को गाली समझ लिया है. वो समझते हैं कि दर्द और अब्यूसिव लैंग्वेज के बिना सेक्स हो ही नहीं सकता है? लेकिन ये सोच पूरी तरह से ग़लत है.
इस बारे में बात करते हुए ऑथर कहते हैं कि “आज के समय में युवा रोमांस या प्यार नाम का मतलब ही भूलते जा रहे हैं. वो सेक्स को सिवाय गाली के दूसरा कोई सम्मान भी नहीं देना जानते हैं. ज्यादातर लोग सेक्स की बात करते वक्त भी डरे हुए रहते हैं. लेकिन सच ये है कि सेक्स और प्यार काफी ख़ूबसूरत चीज़ है. बस फ़र्क इतना सा है कि हम PORNOGRAPHY को रियल सेक्स ना समझ लें.”
हमें समझना चाहिए कि PORNOGRAPHY एक पूरी इंडस्ट्री है, जहाँ स्क्रिप्टेड कंटेंट तैयार किया जाता है. जिसके पीछे एक पूरी टीम लगी रहती है. और रियल सेक्स कभी भी टीम के साथ नहीं किया जाता है. सेक्स और रोमांस एक निज़ी प्रोसेस है, और इसकी ख़ूबसूरती भी इसके निज़ीपन में छुपी हुई है.
रिलेशनशिप्स क्यों ख़राब होते जा रहे हैं?
अब ऑथर ऐसी बातें करेंगे जो कई लोगों को अच्छी नहीं लगेगी. लेकिन ये बात बिल्कुल सच है और हमें किसी को भी उसकी सेक्स लाइफ के आधार पर जज नहीं करना चाहिए.
Romanticism, के कांसेप्ट की वजह से हम सेक्स को हेल्दी रिलेशनशिप का पिलर समझ लिए हैं. हमें बताया गया है कि कोई एक इंसान पार्टनर के सिवा दूसरे की तरफ आकर्षित नहीं हो सकता है. और अगर कोई हो गया तो हम सोसाइटी के नाम पर उसे चरित्रहीन घोषित कर देंगे.
इसलिए हमें समझना होगा कि सेक्स कोई कैरेक्टर सर्टिफिकेट नहीं है. ये जस्ट नॉर्मल थिंग है.. इससे कोई कैसा इंसान है ये डिसाइड नहीं हो सकता है.
और हाँ, हम पार्टनर के सिवा भी किसी और की तरफ आकर्षित हो सकते हैं. ये uncomfortable बात है लेकिन सच्चाई यही है कि लोग पार्टनर के सिवा भी दूसरों से आकर्षित हो जाते हैं.
ऐसा भी हो सकता है कि कोई किसी से प्यार करे और स्ट्रेंजर से सेक्स करना चाहे? लेकिन फिर भी उसे खुद से प्यार करने का हक है. ऐसा होने से भी कोई बुरा इंसान नहीं बन जाता है.
सेक्स की वजह से ही कई रिश्तें टूट जाते हैं. क्योंकि उनका इमोशनल कनेक्शन ही सही नहीं बन पाता है. इसलिए आज से ही इमोशनल कनेक्शन को मज़बूत बनाने की कोशिश करिए.
नए अप्रोच की मदद से ख़ुशी और समझदारी को पास लाइए
भले ही आपको एहसास ना होता हो, लेकिन आप हर दिन बहुत सारे फैसले लेते हैं. उनमें से कई फैसले पर्सनल लेवल के होते हैं तो कई प्रोफेशनल लेवल पर होते हैं. हर इंसान अपने ज्यादातर फैसलों में सही होना चाहता है. लेकिन वो कितने फैसलों में सच में सही रहता है. ये तो उसे अच्छे से पता होता है.
ये बात भी बिल्कुल सच है कि लगातार सही फैसले करना कोई आसान काम नहीं है. इसके पीछे सिम्पल सा रीज़न ये है कि ये दुनिया बहुत ही ज्यादा काम्प्लेक्स है. इसे आसानी से समझ लेना बिल्कुल आसान नहीं है. यही वजह है कि आपको अधिकत्तर ऐसे लोगों का सामना करना पड़ता है. जो कि आपको आसानी से नहीं समझ पाते हैं.
इसी वजह से कई बार आपको ऐसी सिचुएशन से भी रूबरू होना पड़ता है. जिसके लिए आप तैयार नहीं रहते हैं. आपके साथ सारी अनफैमिलियर चीज़ें इसी वजह से होती हैं. क्योंकि ये दुनिया बिल्कुल भी आसान नहीं है.
और इस दुनिया को समझने के लिए हमे अपने नज़रिए पर गौर करना चाहिए...
हमें 19TH CENTURY के जर्मन मैथमैटीशियन CARL JACOBI के बताए “इनवर्स थिंकिंग कांसेप्ट” को समझने की कोशिश करनी चाहिए.
ये कांसेप्ट बताता है कि अगर हम इनवर्स कांसेप्ट की मदद से किसी भी प्रॉब्लम को देखने की कोशिश करते हैं तो हम कई नए सोल्यूशन को अनलॉक कर सकते हैं. उदाहरण के लिए अगर हम इन्वेस्टमेंट के ही प्रोसेस को देखें तो ज्यादातर लोग इन्वेस्टमेंट को “पैसों से पैसा” कमाने के प्रोसेस के तौर पर देखते हैं. लेकिन अगर हम इसे इनवर्स अप्रोच के साथ देखें तो हम इन्वेस्टमेंट को “नॉट लूजिंग मनी” नज़रिए से भी देख सकते हैं. इससे हमारे अंदर इन्वेस्टमेंट को लेकर नया अप्रोच डेवलप होगा.
इस तरह के कई एग्जाम्पल हैं जिनमें आप इनवर्स थिंकिंग अप्रोच को लागु कर सकते हैं. ज्यादा सरल भाषा में कहें तो इनवर्स थिंकिंग अप्रोच की मदद से आपके फैसले बेहतर से बेहतरीन बन जाएंगे. इसलिए ऑथर कहते हैं कि इनवर्स थिंकिंग की मदद से आप गलतियाँ कम करने लगेंगे, जिसे आप “BEING WRONG LESS” के तौर पर भी याद रख सकते हैं. और इस एपिसोड का नाम “BEING WRONG LESS” इसलिए ही रखा गया है.
सुनने में तो “BEING WRONG LESS” यानि गलत फैसले कम लेना अच्छा लगता है. लेकिन क्या ये वाकई मुमकिन है? इसका जवाब भी बिल्कुल आसान से “हाँ” में छुपा हुआ है. जी हाँ, कम गलतियाँ करना मुमकिन है. बस इसके लिए आपको मेंटल मॉडल्स को एक टूल सेट की तरह इस्तेमाल करना होगा.
आर्ट और नेचर भी कमाल की चीज़ है
आज के समय में लोग कमज़ोर बनते जा रहे हैं. जी हाँ, कमजोर.. वो भी मेंटली और फिजिकली दोनों तौर पर.. यही वजह है कि एंग्जायटी ने भी करीब-करीब हर इंसान को अपने कब्ज़े में कर लिया है.
ये सिचुएशन बिल्कुल भी सही नहीं है और कोई दूसरा हमें इस सिचुएशन से बाहर नहीं निकालेगा. हमें खुद ही मज़बूत बनना होगा और एंग्जायटी को हराना होगा.
एंग्जायटी को हराने के लिए हम आर्ट और नेचर की मदद ले सकते हैं. हमें समझना चाहिए कि ये दोनों चीज़ें हमारे लिए वरदान की तरह हैं.
अब ये हमारे ऊपर है कि क्या हम इस वरदान को एक्सेप्ट करना चाहते हैं? या फिर नहीं..?
कुल मिलाकर
ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दुनियाभर की तमाम स्कूलें इंसान को इमोशन्स के बारे में सीखाने में ना-कामयाब रहीं हैं. इसलिए हमें स्कूल ऑफ़ लाइफ को समझने की ज़रूरत है. हमें समझना चाहिए कि इंसानी ज़िन्दगी जज़्बातों के बिना कुछ भी नहीं.. इसलिए अपने इमोशन को समझिए और उन्हें बेहतर करने की कोशिश करते रहिए.
क्या करें?
छोटी-छोटी ख़ुशियों में ख़ुश रहने की कोशिश करते रहिए.. ख़ुशियाँ छोटी ही होती हैं. ज़ज़्बात उन्हें बड़ा बना देते हैं. इसलिए इंसान बनिए और इंसानियत की पूजा करिए.
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