The Element

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Ken Robinson, with Lou Aronica
अपने जूनून को हासिल करो और दुनिया बदलो

दो लफ़्ज़ों में
2009 में लिखी गयी द एलिमेंट नाम की इस किताब के जरिये लेखक नें पाठकों को अपने अन्दर छुपे तत्व  को पहचानने का रास्ता दिखाया है। लेखकों का मनना है कि इस दुनिया में हर एक इंसान के अन्दर कोई न कोई खूबी जरुर है और ये खूबी हीं उसका तत्व है। जब व्यक्ति अपनी खूबी को पहचान कर उसे अपना जूनून बना ले तो उसकी ज़िन्दगी में बहुत हीं खुशनुमा बदलाव हो सकता है।

ये किताब किसके लिए है?
- जो लोग अपने सपनों को जीवन की सच्चाई बनाना चाहते हैं।
- जिनके अन्दर कुछ पाने का जूनून हो।
- ऐसे पालक जो अपने बच्चे की प्रतिभा को समझने में असमर्थ है।

लेखक के बारे में
केन रोबिनसन (Ken Robinson) वार विक यूनिवर्सिटी (Warwick university) के बहुत हीं प्रतिष्ठित प्रोफ्फेसर हैं, अपने लेखन और वक्तव की कला से वो सुनने वालों को काफी प्रभावित करते है। उनके लेखन का मुख्य रुझान शिक्षा और युवा रोजगार के क्षेत्र में है। उन्होंने कई ऐसी किताबें लिखी है जो युवायों को अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं।
वहीँ दूसरी ओर लोउ अरोनिका (Lou Aronica) एक जानी मानी प्रकाशक हैं। वो अपने लेखन का हुनर कई बेस्ट सेलर किताबों में दिखा चुकीं है उदहारण स्वरुप द कल्चर कोड (The Culture Code) को हीं ले लीजिये, ये किताब युवायों के बीच काफी मशहूर है।

आपको ये किताब क्यूँ पढनी चाहिए?
ज़िन्दगी का सबसे कठिन फैसला होता है ये समझने का कि हम अपने जीवन को किस राह पर लेकर जाना चाहते हैं। यूँ तो हम जीवन में कई चीज़ों को पसंद करते हैं कभी लगता है कि हमें डाक्टरी में दिलचस्पी है कभी लगता है संगीत और कला का क्षेत्र ज्यादा दिलचस्प है तो कुछ समय बाद हमें फोटोग्राफी का शौक चढ़ जाता है। लेकिन ये सभी चीज़ें बस हमारे शौक को दर्शाती हैं हमारे जूनून को नहीं, तो शौक और जूनून के बीच के फर्क को समझने के लिए इस किताब को जरुर पढ़ें। लेखक नें इस किताब के जरिए युवायों को अपने जूनून को पहचान कर अपने जीवन में सफलता हासिल करने का मार्ग दर्शाया है।

 

· क्यूँ कहा जाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती?

· योग्यता और जूनून में क्या फर्क है?

· जीवन में सफलता हासिल करने के लिए कौनसा रास्ता चुनना चाहिए?

योग्यता और जूनून से मिलकर बनता है जीवन की सफलता का तत्व।
यूँ तो हम सब अपना गुज़र बसर करने के लिए किसी न किसी क्षेत्र में काम कर हीं रहे हैं लेकिन अक्सर काम करते हुए आपने कई बार एक अजीब से खालीपन और असंतोष को महसूस किया होगा। एक अच्छा औदा अच्छी तनख्वाह फिर भी ये खालीपन आखिर क्यूँ है? लेखक का कहना हैं कि जब तक हम अपने तत्व में नहीं रहेंगे यानी कि उस काम को नहीं पहचानेंगे जो हमारी आत्मा का हिस्सा है तब तक हम अपने काम से प्यार नहीं कर पायेंगे।

हमारे अन्दर का ये तत्व दो चीज़ों से मिलकर बना है जूनून और योग्यता। योग्यता यानी किसी कार्य को करने की कुशलता उदहारण स्वरुप हो सकता ही कोई बहुत अच्छी तस्वीरें बनता हो तो कोई नृत्य में माहिर हो। लेकिन ये कार्य कुशलता कहाँ से आती है इसके लिए जरुरी है निरंतर अभ्यास की और अभ्यास के लिए जरुरी है जूनून क्यूंकि जब तक आप किसी कार्य के लिए जज्बाती नहीं होंगें तब तक आप उसका अथक अभ्यास नहीं कर पायेंगे।

लेखक का कहना है कि जब आप उस कार्य को करते हैं जिसके लिए आप बनें है और जो आपके अन्दर किसी तत्व की तरह बसा हुआ है तब आपको एक अलग हीं ख़ुशी का एहसास होता है इसलिए आप देखते हीं देखते उसमें महारत हासिल कर लेते हैं। वहीँ दूसरी ओर अगर आप किसी कार्य को जबरदस्ती करते हैं तो आपका मन उसमें कभी नहीं लगेगा और ऐसे में उस कार्य में कुशलता हासिल कर पाना बहुत हीं मुश्किल हो जाएगा।

कत्थक के महान नृत्यक पंडित बिरजू महाराज जी को कौन नहीं जानता ये नृत्य के प्रति उनका जूनून हीं तो था जिसनें उन्हें चार साल की नाजुक उम्र में घुँघरू बंधवा दिए, तब से लेकर आजतक उन्होंने सफलता के नित नए आयामों को हासिल किया हैं। उनका कहना था कि नृत्य उन्होंने सीखा नहीं बल्कि वो तो उनके अन्दर हीं बसा था उन्होंने बस उसे तराशा है।

बिरजू महाराज की तरह हमें भी अपने अन्दर बसे तत्व को पहचानने की जरुरत है ताकि हम भी वो कर सकें जो हमें मात्र महीने की तनख्वाह हीं नहीं बल्कि आन्तरिक ख़ुशी भी दे सके।

अपने तत्व को तलाशने के लिए पर्याप्त अवसर के साथ साथ सही रवैया भी चाहिए।
हम अक्सर अपनी हर हार के लिए तकदीर को दोषी मानते हैं लेकिन कभी ये नहीं सोचते कि तकदीर का काम तो बस अवसर प्रदान करना है, उस अवसर को सही समय पर पहचान कर सफलता प्राप्त करने का दायित्व तो हमारा है। इस दायित्व को निभाने के लिए सबसे जरुरी है सही रवैये की, क्यूंकि जब तक हमारा रवैया सकारात्मक और प्रगतिशील नहीं होगा तब तक हम अपनी प्रतिभायों को पहचान नहीं पाएंगे।

दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने रवैया और आत्मविश्वास से असंभव को संभव बना कर दिखाया है, जाने माने कैंसर विशेषज्ञ डॉ.सुरेश अडवाणी को हीं ले लीजिये जिन्होंने कभी भी अपनी शारीरिक कमियों को अपने लक्ष्य और जूनून के आड़े नहीं दिया। मात्र 8 महीने की उम्र में पोलियो ग्रस्त हो जाने के  कारण उन्हें अपना पूरा जीवन व्हील चेयर पर बिताना पड़ा लेकिन इसके वाबजूद डॉक्टर बनने के अपने सपने को उन्होंने कभी मरने नहीं दिया। अपने दिल में बसी अत्मविश्वास की आग के सहारे उन्होंने जीवन की हर कठिनाई को पार किया और आज वो कैंसर पीड़ित व्यक्ति में सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने वाले दुनिया के पहले डॉक्टर बन गए। अपनी इस उपलब्धि के लिए उन्हें भारत रत्न के सम्मान से नवाजा गया। ऐसी हीं कई प्रेरक कथाएँ विश्व के हर कोने में मौजूद हैं, आप भी उनमें से एक बन सकते हैं बस जरुरत है अपने ऊपर विश्वास कर सही रवैया रखने की।

लेखक का कहना है कि अगर रवैये और जूनून को अवसर का साथ मिल जाए तो सफलता का मार्ग और आसान हो जाता है क्यूंकि कई बार अवसर के अभाव में कई प्रतिभायों को आगे आने का मौका हीं नहीं मिलता। हमारे देश के कई गाँव में ना जाने कितने खिलाडी बसते हैं जो देश के लिए विभिन्न खेलों में स्वर्ण पदक लाने का मादा रखते हैं, लेकिन पर्याप्त अवसर न मिल पाने के कारण उनके सपने टूट जाते हैं। 

इस अवसर के खेल को समझाने के लिए लेखक नें अपने जीवन का एक उदहारण देते हुए बताया है कि पोलियो के कारण अपने पैर से न चल पाने के कारण लेखक को अपनी पढाई दिव्यागों के स्कूल में करनी पड़ी जिसके चलते उन्हें किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिल पा रहा था, तभी उनकी मुलाकात मिस्टर स्टाफोर्ड (Stafford) से हुई जिन्होंने न सिर्फ उनका दाखिला अच्छे कॉलेज में कराया बल्कि उनके गुरु बनकर हमेशा उनका साथ दिया।

बुधिमत्ता का सही आंकलन कर पाना बहुत मुश्किल है।
इस दुनिया में ज्यादातर लोगों के लिए बुधिमत्ता का मतलब महज कागजों में 100 में से 90 या उससे ज्यादा  नंबर लाना है, ये समाज आज भी उसे हीं तेज़ समझता है जो किसी बड़े स्कूल से पढ़ कर पटर-पटर अंग्रेजी बोले। जबकि असल में जिस तरह दो लोगों के हाथ के निशान यानी फिंगर प्रिंट एक जैसे नहीं हो सकते ठीक उसी तरह उनके सोचने की शक्ति भी अलग होती है, उपरवाले नें हर एक को अलग-अलग प्रतिभा से नवाज़ा है।

इस दुनिया की सोच से परे बुधिमत्ता तो एक ऐसा गतिशील और विविध गुण है जो हर व्यक्ति में तो है लेकिन उसका रूप हर किसी में अलग है। अलग चंद किताबें ज्यादा पढना या हर परीक्षा में ज्यादा नंबर लाना हीं बुधिमत्ता होती तो हाई स्कूल की हिस्ट्री एग्जाम में फेल होने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन सदी के सबसे बड़े वैज्ञानिक नहीं बन पाते और नाहीं स्कूल से निकाल दिए जाने वाले थॉमस अल्वा एडिसन बिजली की सौगात इस जगत को दे पाते। इन उदाहरणों से ये साफ़ है कि हर व्यक्ति अपने हिसाब से सोचता है और हर व्यक्ति की दिलचस्पी का क्षेत्र अलग होता है और वही क्षेत्र उसके अन्दर का तत्व है।

यही नहीं लेखक का तो ये भी कहना है की एक हीं बात को सीखने का तरीका भी हर व्यक्ति के लिए  अलग हो सकता है, जैसे किसी व्यक्ति को काम के बीच कोई भी विघ्न पसंद नहीं होती है जबकि अल्बर्ट आइंस्टीन जब भी किसी सवाल में फंस जाते थे तो वो वायलिन बजाया करते थे जिस से उनके दिमाग में एक नयी उर्जा उत्पन्न हो जाया करती थी। 

हो सकता है कोई व्यक्ति किसी बड़े कॉलेज से फैशन डिजाईनिंग सीख कर बेहतरीन कपडे बनाये जबकि किसी को उसके खून में हीं ये सौगात मिली हो और वो मात्र देख देख कर अपने प्रयासों से उतने हीं बेहतरीन कपडे बना सके। तो चाहे कोई बड़े स्कूल में मोटी किताबें पढ़ा हो या कोई अनपढ़ हो, मात्र उसके सैक्षनिक योग्यता के माध्यम से हम उसकी बुधिमत्ता का अनुमान नहीं लगा सकते हैं।

जिन लोगों की बातों से आप खुद को जोड़ पाते हैं वही आपके तत्व को पहचान सकते हैं।
अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी को अपने सपने और विचार आसानी से समझा सकते हैं वहीँ कई लोग  हमारे विचारों को सुन कर हम पर हँस भी देते हैं। इस बात को कह कर लेखक ये समझाना चाहते हैं कि हर वो इंसान जो एक जैसे तत्व को दिल में रखते हैं वो एक दुसरे की भावनाएं समझ कर उनके विचारों की कद्र कर सकते हैं। इसलिए अपने तत्व को पहचानने के लिए आपको जायदा से ज्यादा लोगों के जुड़ना चाहिए क्यूंकि इससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वो कौनसे लोग हैं जो हमारी बातों से खुद को जोड़ पा रहे हैं और हो सकता हैं ऐसी हीं किसी वार्तालाप के दौरान आपको अपने तत्व का अंदाज़ा लग जाए।

महान क्रिकेट खिलाडी सचिन तेंदुलकर का कहना था कि जब वो क्रिकेट का अभ्यास करते थे तो उन्हें पता हीं नहीं चलता था कि कब दिन से रात हो गयी ना भूख की चिंता होती थी न प्यास की बस दिल में खेलने का जूनून होता था। अगर आपके अन्दर भी किसी काम को लेकर ऐसा हीं जूनून है तो समझ लीजियेगा बस आप उसी के लिए बने हैं क्यूंकि लेखक का भी यहीकहना है कि अगर आप किसी काम को वाकई में पसंद करते हैं तो उसे करने के दौरान आप मंत्र मुघ हो जाते हैं आपको आपने आस पास के वातावरण का कुछ अंदाज़ा नहीं होता ना आपको समय का पता चलता है। लेकिन अपने काम के प्रति जुनूनी होने का ये मतलब भी नहीं है कि आप अपना सबकुछ छोड़ कर उसे हीं करते रहे क्यूंकि कुछ सामजिक जिम्मेदारियाँ भी होती है और स्वस्थ जीवन के निर्वहन के लिए उन्हें निभाना भी जरुरी है। 

इसलिए इस सबक के अंत में लेखक यही कहना चाहते हैं कि जिस काम को करते हुए ऐसा न लगे कि आपको कुछ जबदस्ती करना पड़ रहा है और जिसे करने का हर एक पल आपको आनंदमय लगे वो है आपका तत्व।

अपने तत्व को पाने के रास्ते में आपको बहुत सी रुकावटों को पार करना पड़ सकता है।
आपने तत्व को ढूंड निकालना जितना मुश्किल है उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है उस तत्व को अपने जिंदगी का हिस्सा बनाना क्यूंकि कभी समाज तो कभी आपके अन्दर असफलता डर या आपकी कोई मानसिक या शारीरिक मजबूरी इनमें से कोई भी आपके रास्ते का रोड़ा बन सकते हैं। लेकिन अगर दिल में सच्चा जोश और सही सोच लेकर आगे बढ़ने की ठान लें तो आपको दुनिया की कोई भी ताकत अपने तत्व को पाने से नहीं रोक सकती  है।

लेखक नें सबसे पहले शारीरिक रुकावटों की बात की है, कई बार ऐसा होता है की किसी दुर्भाग्यवश हम अपना कोई अंग खो बैठते हैं और फिर दुनिया हमारे लिए पूरी तरह बदल जाती और अपने सपने को हासिल कर पाना इतना आसान नहीं रह जाता। कुछ ऐसी हीं घटना अरुणिमा श्रीनिवासन के साथ भी हुआ था 23 साल की उम्र में कुछ मनचलों द्वारा ट्रेन से फेंकने के बाद उन्होंने अपन दायाँ पैर खो दिया लेकिन उन्होंने अपनी इस शारीरिक कमी को अपने सपनों के रास्ते में नहीं आने दिया और अपने दृढनिश्चय के साथ माउंट एवेरेस्ट की चोटी पर भारत का झंडा लहराने वाली पहली एशियाई महिला हैं। अरुणिमा श्रीनिवासन नें एक बात साफ़ कर दी है कि जब इरादों में मजबूती हो तो बड़े से बड़े पर्वत को पार करना भी आसान हो जाता है।

शारीरिक रुकावटें पार कर हम खुद से तो लड़ सकते हैं लेकिन कभी कभी ये समाज और परिवार सब हमारे तत्व के आड़े आ जाते हैं। कई बार हम किसी ऐसे काम को करना पसंद करते हैं जो शयद डॉक्टर इंजिनियर वाले इस समाज को पसंद नहीं आती यहाँ तक कि हमारे अपने परिवार के लोग भी ऐसे में हमारा साथ नहीं देते इसके चलते दुनिया में कई लोग अपनी प्रतिभायों का गला घोट बस सफ़ेद कालर वाली जॉब में लग जाते हैं, लेकिन वो लोग जो समाज के मुँह पर तमाचा मार कर आगे बढ़ते हैं उन्हें सफलता के साथ साथ सच्चा सुकून भी मिलता है।

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तानों का नाम लेते हीं सबसे पहला नाम माही यानी महेंद्र सिंह धोनी का आता है लेकिन उनका ये सफ़र आसान नहीं था क्यूंकि एक माध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारन उनके पिताजी चाहते थे कि वो चुप चाप रेलवे में मिली अपनी नौकरी करें और क्रिकेट की तरफ से अपना ध्यान हटा  लें लेकिन उन्होंने अपने सपनों को चुना इसके लिए उनके घरवालों नें काफी समय तक उनसे बात नहीं की लेकिन अपने तत्व को जीवन में लाकर आज उन्होंने सफलता की बुलंदियों को छु लिया।

ऐसी हीं ना जाने कितनी कहानियाँ हैं जो ये दर्शाती हैं की जहाँ चाह हैं वहां राह खु-ब-खुद मिल जाती है।

सपनों को जीने का कोई समय नहीं होता, जब जागो तभी सवेरा है।
कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती ठीक इसी प्रकार खुश होने और अपने तत्व को पहचान कर उसका आनंद लेने की भी कोई उम्र नहीं होती। कई बार अपने तत्व को पहचानते-पहचानते आधी उम्र निकल जाती है लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं कि तब आप कुछ नहीं कर सकते आप उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपने तत्व को जी सकते हैं।

एक सच ये भी है कि उम्र के साथ कुछ शारीरिक सीमायें हैं जैसे कि आप 80 की उम्र में दौड़ के ओलिंपिक खिलाडी तो नहीं बन सकते है, लेकिन आप आपनी ख़ुशी के लिए तो दौड़ सकते हैं न उम्र के ऐसे पड़ावों पर भी अपने तत्व को पहचान कर काफी लोगों नें सफलता प्राप्त की है उदहारण स्वरुप आपमशरूर आर्टिस्ट बोमन ईरानी को ले लीजिये अपनी जिन्होंने अपनी पूरी जवानी ताज होटल में वेटर के तौर पर बितायी, जब पहली बार उनके अभिनय के हुनर को सराहा गया तब उनकी उम्र 42वर्ष की थी। इसलिए जब भी आप जीवन के तत्व को समझ लें बस उसे जीना शुरू कर सकते हैं।

 

दूसरी बात ये हैं की अपने तत्व को जीने के लिए जरुरी नहीं है कि आप उसे अपना प्रोफेशन बनाएं आप इसे सुकून दायक काम की तरह भी कर सकते हैं आखिर ये आपके अन्दर का तत्व है जो आपको ख़ुशी देता है।

उदाहरन के तौर पर देखें तो मशहूर कलाकार दीपिका पादुकोण यूँ तो एक बेहतरीन अदाकारा है लेकिन उन्हें अपने पापा की तरह बैडमिंटन खेलने का भी बहुत शौक है, लेकिन उसे करियर की तरह न चुन पाने केबावजूद भी उन्हें जब शांति और सुकून की तलाश होती है वो बैडमिंटन खेल लेती हैं।

कुल मिला कर
लेखक इस किताब के जरिये दुनिया के युवायों को ये महत्वपूर्ण सन्देश देना चाहते हैं कि जिंदगी बहुत छोटी है और सपने बहुत बड़े इसलिए जल्द से जल्द उन्हें पहचाने और उसे अपने अन्दर के तत्व की तरह जीवन में लाकर जीयें ताकि आपका काम मात्र काम नहीं बल्कि आपका प्यार बनकर रहे।


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