George Mumford
जगाएं अपनी सुपरपावर
दो लफ्जों में
हम सबमें कोई न कोई ताकत छिपी रहती है। बस ज्यादातर लोग इसे पहचान नहीं पाते हैं। साल 2015 में आई ये किताब बताती है कि किस तरह माइंडफुल रहकर आप इस सुपरपावर को जगा सकते हैं। जब आप खुद में छिपी इस ताकत को सही तरह इस्तेमाल करना सीख जाते हैं तो किसी भी चीज में सबसे आगे पहुंच सकते है। फिर वो चाहे स्पोर्ट्स हो या फिर कोई भी दूसरी फील्ड।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• एथलीट्स जो अपना फोकस बढ़ाना चाहते हैं
• हर वो इंसान जो माइंडफुलनेस और मेडिटेशन की प्रेक्टिस करना चाहता है
• जो लोग खुद को बेहतर बनाना चाहते हैं
इस किताब को पढ़कर आप जानेंगे
• कोई अपनी असफलता में सफलता कैसे देख लेता है
• भटकते हुए दिमाग को कैसे शांत करना है
• 2006 के फीफा वर्ल्ड कप फाइनल में जिनेदिन जिदान ने साथी खिलाड़ी के साथ धक्का मुक्की क्यों कीअपनी सही ताकत को पहचानने के लिए आपको कभी कभार अपने सबसे कमजोर समय से गुजरना पड़ता है।
आपने कभी किसी एथलीट को ऐसी परफार्मेंस करते हुए देखा है जिसे देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा लें? ऐसा नहीं लगता कि ये किसी सुपर हीरो का काम है एक आम इंसान का नहीं। ऐसी परफार्मेंस के लिए शरीर की फिटनेस के अलावा और भी कुछ चाहिए होता है। वो खास चीज क्या है जो इनको दूसरों से अलग बनाती है? वो है दिमाग की ताकत। अपने दिमाग को अच्छी तरह ट्रेन करके और इसका भरपूर इस्तेमाल करके टॉप पर पहुंचा जा सकता है। इसे सिर्फ खेलकूद में ही काम लिया जा सके ऐसा भी नही है। चाहे ऑफिस हो, स्कूल या फिर घर की एक आम जिंदगी आपको ये ताकत हर जगह मदद कर सकती है जहां भी आप खुद को हर लेवल पर बेहतर बनाना चाहते हैं। इस किताब में दिए गए सुझाव अपनाकर आप भी इस रास्ते पर बढ़ सकते हैं।
लोग अपनी जिंदगी का मकसद खोजने के लिए बहुत कुछ करते हैं। कोई दुनियाभर की सैर को निकल पड़ता है। कोई योग और मेडिटेशन का सहारा लेता है। जबकि जॉर्ज को एक बहुत बुरे दौर से गुजरने के बाद माइंडफुलनेस का रास्ता समझ में आया और वहां से उनको अपनी सुपर पावर मिली। जरा उनकी कहानी पर एक नजर डालते हैं। मिडिल स्कूल के दौरान जॉर्ज, बास्केटबॉल के बढ़िया खिलाड़ियों में से एक थे। उनको आगे इसी में करियर बनाना था। लेकिन एक बार ट्रेनिंग के दौरान उनको चोट लग गई। फिर भी वे आराम करने की जगह लगातार खेलकूद में लगे रहे। इस वजह से शरीर को तो नुकसान हुआ ही उनका करियर भी खत्म हो गया। अब वो मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में फाइनेंस पढ़ने लगे। उनके पास हर तरह के दर्द का एक ही इलाज था शराब। चाहे शरीर में कोई तकलीफ होती या मन में वो बस इसी का सहारा लेते। वे सिगरेट को हाथ नहीं लगाते थे पर हेरोइन लेना जरूर शुरू कर दिया था।
1984 में उनको बड़ा इन्फेक्शन हुआ। ममफोर्ड के लिए ये बहुत तकलीफदायक समय था। वो इतना परेशान हुए कि उन्होंने एल्कोहल छोड़ने की ठान ली। उन्होंने इसके लिए 12 हफ्तों का एक प्रोग्राम जॉइन किया जिसका नाम था Alcohol Anonymic. इस प्रोग्राम में उनको पहली बार माइंडफुलनेस के बारे में पता चला। 80s के दौर में इसे स्ट्रेस मैनेजमेंट कहा जाता था। योग और मेडिटेशन की मदद से उन्होंने अपने शरीर की जरूरतों पर ध्यान देना शुरू किया बजाए ड्रग्स लेकर अपने दर्द को सुन्न कर देने के। अगले चार साल वो यहां माइंडफुलनेस की प्रेक्टिस करते रहे। आगे चलकर उन्होंने अपनी फाइनेंशियल एनालिस्ट की नौकरी भी छोड़ दी और लोगों को माइंडफुलनेस सिखाने लगे। इस तरह उनको पांच सुपरपावर्स का पता चला। माइंडफुलनेस, concentration, insight, effort और trust. आगे हम एक एक करके इनको समझेंगे।
माइंडफुलनेस पाने के लिए आपको बस खुद पर अच्छी तरह ध्यान देने की जरूरत है।
सोचकर देखिए कि आप कोई प्रेजेंटेशन देने वाले हैं। आपका फोकस ही नहीं बन पा रहा क्योंकि आप ये सोचकर घबरा रहे हैं कि लोग क्या सोचेंगे? यहां माइंडफुलनेस आपकी मदद कर सकती है। पर कैसे? माइंडफुलनेस के लिए बाहर से कुछ नहीं करना है। ये आपके अंदर से उभरती है। हर किसी के पास ऐसी ताकत होती है। हम बस इसे पहचान नहीं पाते हैं। Jon Kabat-Zinn को माइंडफुलनेस का फादर कहा जाता है। उनका कहना था कि माइंडफुलनेस का मतलब है अभी इसी पल पर फोकस करना क्योंकि आपकी जिंदगी भी इसी तरह चलती है न कि बीते या आने वाले समय में। हालांकि इसे करना काफी मुश्किल होता है क्योंकि हमें भटकाने के लिए काफी चीजें होती हैं। हमारा दिमाग और इसमें चलने वाले ख्याल किसी बंदर से कम नहीं जो एक डाली से दूसरी डाली पर उछलता कूदता रहता है। बुद्धिस्ट इसे मंकी माइंड ही कहते हैं। ऐसे दिमाग को काबू में करना मुश्किल है लेकिन आप कोशिश करके इसे शांत जरूर कर सकते हैं। जब आप इस स्टेज में पहुंच जाते हैं तो समझिए कि सारा रास्ता पार हो गया। इसे Zone स्टेट या Zone experience कहा जाता है।
स्पोर्ट्स की बात करें तो जब कोई एथलीट अपनी सबसे बेहतर परफार्मेंस करता है तब उसे इस स्टेज का अनुभव होता है। साइकोलॉजिस्ट, Mihaly Csikszentmihalyi का मानना है कि ये Zone experience तब होता है जब आपकी स्किल और आपके सामने रखे चैलेंज दोनों ही बड़े और बराबर हों। इसे आप किसी तराजू का बैलेंस समझ लीजिए। यही बैलेंस किसी एथलीट को आज और अभी वाले पल से जोड़कर रखता है। आपको इस पल में चल रहे अपने विचार और भावनाओं का सही अंदाजा होना चाहिए। आप शांत रहकर, अपनी सांसों पर ध्यान देकर और अवेयरनेस बढ़ाकर माइंडफुलनेस मेडिटेशन की प्रेक्टिस कर सकते हैं। अवेयर रहने का मतलब बस इतना ही है कि आपके दिलो दिमाग में या आसपास इस समय क्या चल रहा है उसका ध्यान रखा जाए। लेकिन ध्यान तो हमेशा भटकता रहता है। हो सकता है मेडिटेशन करते हुए आपको कोई पुरानी बात याद आ जाए और आप उसमें डूब जाएं। खुद को एक वॉचर की तरह बनाकर आप ये कमी दूर कर सकते हैं। वॉचर किसी भी चीज को खुद पर हावी होने दिए बिना बस हर चीज को वॉच करता है। अपने ख्यालों के इंचार्ज बनिए न कि इनमें बहते रहिए।
फोकस बढ़ाने के लिए अपनी सांसों पर ध्यान दीजिए।
साल 2013 की नेशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप में LeBron James को स्टेडियम में आंखें बंद किए और ध्यान लगाते हुए देखा गया। माइंडफुलनेस की प्रेक्टिस में ये सबसे जरूरी हिस्सा है। आप सांसों को कंट्रोल करके खुद को रिलैक्स कर सकते हैं। उस गैप पर ध्यान दीजिए जो सांस लेने और छोड़ने के बीच होता है। इसे AOB यानि Awareness of Breath कहा जाता है। यहां वॉचर के रोल में आ जाइए। AOB आपको इसी पल में बनाए रखती है। आपने वो साइकिल तो देखी होगी जिसमें दो सीटें होती हैं और जिसे दो लोग एक साथ चलाते हैं। ब्रीदिंग भी autonomous nervous system के साथ मिलकर कुछ इसी तरह काम करती है। ये सिस्टम दिल की धड़कन और शरीर के बाकी फंक्शन को कंट्रोल करता है। पहला है sympathetic system जो डर, घबराहट या किसी तनाव की वजह से एक्टिवेट होता है। ये हमारे शरीर में स्ट्रेस हार्मोन भरने लगता है। इस समय ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और सासें हल्की और तेज हो जाती हैं। दूसरा है parasympathetic system. ये एसिटिलकोलीन नाम का न्यूरोट्रांसमीटर रिलीज करता है जो दिल की धड़कन कम करके हमें शांत करता है। जब आप सांसों की रफ्तार धीमी करते हैं तो parasympathetic system कमान संभाल लेता है।
दरअसल सांस लेना एक involuntary activity है यानि अपने आप होने वाला काम। लेकिन अगर आप ध्यान देते हुए यानि conscious रहकर सांस लें तो बहुत फर्क दिखता है। AOB की प्रेक्टिस करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि आप आंखें बंद करके बैठ जाइए और हवा को शरीर के अंदर जाते और आते हुए महसूस कीजिए। आप लेटकर भी इसे कर सकते हैं। यहां आप इसे किसी स्कैन की तरह प्रेक्टिस कीजिए। यानि ये महसूस कीजिए कि किस तरह सांस लेने पर हवा शरीर के हर हिस्से से होकर गुजर रही है। इस तरह आप एक बहाव में से गुजरने लगते हैं। लेकिन ये बहाव तभी महसूस होता है जब आप अपना ध्यान बनाकर रखें न कि इधर-उधर भटकते रहें। हमारा दिमाग एक ही समय पर काफी चीजों में लगा रहता है। जब आप इन चीजों की गिनती कम करते जाते हैं तो खुद ब खुद concentration बढ़ता जाता है और Zone का रास्ता खुलने लगता है। इसी तरह LeBron James अपनी सांसों पर फोकस करते हुए खुद को Zone की तरफ आगे बढ़ा रहे थे। ये तैयारी उनको मैदान में काम आई।
Insight का मतलब है कि आप अपने विचारों और उनसे खुद पर पड़ने वाले असर को समझें।
दुनिया में टैलेंटेड लोगों की कमी नहीं है पर इनमें से कुछ ही हैं जो बुलंदी तक पहुंच पाते हैं। क्योंकि ज्यादातर को खुद पर यकीन ही नहीं है। लोग इस बात को ही ठीक तरह नहीं समझते कि उनकी सोच या उनके विश्वास किस तरह उन पर असर डालते हैं। असल में ये सब बातें सिर्फ हमारे दिमाग तक ही नहीं रहतीं एक आदत बन जाती हैं। इसलिए अगर आप अपनी आदतें या बर्ताव बदलना चाहते हैं तो इन पर काम करना भी जरूरी है। ये कह लीजिए कि आपको अपना इमोशनल ब्लू प्रिंट समझ आ जाना चाहिए ताकि आप इसे सही कर सकें। और भी आसान शब्दों में कहा जाए तो आपको कार को देखते रहने की जगह उसका बोनेट खोलने की जरूरत है। ताकि आप इसकी गड़बड़ समझ सकें और कार सही तरह चला पाएं। हम सबके इमोशनल ब्लू प्रिंट अलग होते हैं। इसमें कई तरह की भावनाएं मिली होती हैं। इनसिक्योरिटी, वहम, डर, उलझन, नेगेटिव बातें और भी न जाने क्या क्या। जरूरी ये है कि आप इसे सही तरह समझ लें और हर बुरी बात इसमें से बाहर करते जाएं।
जिनेदिन जिदान को कौन नहीं जानता? वो दुनिया के टॉप फुटबॉलरों में से एक हैं। लेकिन 2006 के वर्ल्ड कप में वो अपना आपा खो बैठे थे। उन्होंने सामने वाली टीम के एक खिलाड़ी Marco Materazzi के साथ हाथापाई की। इस तरह की बातें आपको आगे बढ़ने से रोकती हैं। जबकि माइंडफुल होकर रहना आपको हर बंधन से आजाद करता है। बस इतना मान लीजिए कि आपके अंदर कुछ ऐसे इमोशन हैं जिनको बदलने की जरूरत है और अच्छी बातों की जगह खुद ब खुद बनती जाएगी। अपनी गलतियों और असफलताओं को भी इसी तरह देखिए। आपकी पर्सनालिटी आपकी गलतियों से नहीं बनती है। हर असफलता कुछ न कुछ नया सिखाकर जाती है। अपने समय के बेहतरीन बास्केटबॉल खिलाड़ी रहे माइकल जॉर्डन ने इस सोच को Nike के लिए किए गए एक कैंपेन में ही उतार दिया। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी जिंदगी में 9000 शॉट मिस किए। लगभग 300 गेम हार गया। बार बार फेल होता रहा लेकिन यही वजह थी जिससे मुझे सफलता भी मिली।
जो हो गया उसे भुलाकर आगे के सफर पर ध्यान दीजिए।
ग्रीक माइथोलॉजी में Sisyphus का नाम लिया जाता है। वो एक झूठा और धूर्त राजा था जिसे भगवान ने सजा दी। उससे कहा गया कि वो एक भारी पत्थर, पहाड़ तक लेकर जाए। जैसे ही वो पहाड़ तक पहुंचता पत्थर लुढ़ककर नीचे चला जाता और उसे वापस चढ़ाई करनी पड़ती। बार-बार यही हुआ और राजा को पूरी जिंदगी यही सफर करना पड़ा। असल में भगवान ने राजा को ऐसे गोल पर फोकस करने की सजा दी थी जो पूरा ही नहीं होने वाला था। आपका हाल Sisyphean जैसा न हो इसके लिए आपको ये ध्यान रखना होगा कि आपकी कोशिश सही दिशा में हो ताकि आपका सफर आसान रहे। सही कदम रखने वाला किसी spiritual warrior की तरह होता है। ब्रूस ली को उनकी इसी खासियत ने पहचान दिलाई। उनकी तरह मार्शल आर्ट की प्रेक्टिस करने वाले इस क्वालिटी का इस्तेमाल करके खुद को Zone में जोड़ देते हैं। वो अपने सफर पर ध्यान देते हैं न कि मंजिल पर।
जाने माने anthropologist, Carlos Castaneda ने एक बार कहा था कि spiritual warriors को जीत इसलिए हासिल होती है क्योंकि वो दीवार पार करने के लिए इसके ऊपर सिर नहीं मारते बल्कि इसे कूदकर पार कर देते हैं। जब आपकी कोशिश में प्यार, दया, अपनापन, करुणा और दूसरों की भलाई जुड़ जाती हैं तो आपकी कोशिश खुद ब खुद सही रास्ते की तरफ बढ़ जाती है। अपनी बेस्ट परफार्मेंस तक पहुंचने का एक रास्ता ये भी है कि आप अपने आसपास फैली उलझनों को ऐसा ही छोड़ दें। कई बार इनको ठीक करने के चक्कर में हम और उलझ जाते हैं। वैसे भी माइंडफुलनेस का मतलब है खुद को समझना और अभी के पल पर फोकस करना। लेकिन आपको किसी मुश्किल से निकलने के लिए कभी कभी स्टिल रहना पड़ता है। इसका ये मतलब भी नहीं है कि आप इसका शिकार बन जाएं। आपको बस इतना करना है कि किसी वॉचर की तरह इसे ऑब्जर्व कर लीजिए जैसे आप कहीं दूर खड़े होकर बिना फंसे तूफान को आता और जाता देख रहे हों। Shaun White ने स्नोबोर्ड में 2010 का गोल्ड मेडल इसी तरह जीता था। उनका कहना था कि वो गेम तो पूरे फोकस से खेल रहे थे पर साथ ही साथ खुद को इससे अलग भी कर रखा था।
खुद पर भरोसा रखकर अपनी छिपी ताकत को बाहर ले आइए।
फेथ शब्द सुनकर आपको क्या याद आता है? आमतौर पर इसे हम किसी धर्म के साथ जोड़कर देखते हैं। जैसे इस्लाम या बुद्धिज्म में फेथ रखना। माइंडफुल एथलीट का फेथ दूसरी तरह का होता है। इनका फेथ खुद में होता है। भले ही फेथ शब्द भगवान पर यकीन रखने जैसी बात के साथ सबसे ज्यादा जुड़ा हो पर इसके मायने सबके लिए अलग होते हैं। यहां divine power को लेकर आइडियाज अलग हो सकते हैं। जैसे किसी बाहरी नहीं बल्कि अपने अंदर छिपी डिवाइन पावर पर फेथ रखना। आपको गॉड शब्द को सही तरह समझना होगा तभी आप अपनी सुपरपावर जगा पाएंगे। जानी मानी लेखिका Anne Lamott का कहना है कि आप अपने विश्वास को मनचाहा नाम दे सकते हैं। आप इसे force कह लीजिए, कुदरत कह लीजिए या हार्वर्ड जैसा कोई अजीब नाम रख दीजिए ये और कुछ नहीं बस आपकी अंदरूनी ताकत है। इसके पार चले जाना इंसानों के बस की बात नहीं है।
जॉर्ज इसे बुद्ध नेचर कहते हैं। ये हम सबमें है और हमारे पास इसे जगाने की ताकत भी है। ये बाहरी तौर से नहीं मिलता। इसके लिए अपने अंदर झांकना पड़ता है। यही वजह है कि Sheldon Kopp ने अपनी किताब का नाम रखा "If You Meet a Buddha on the Road, Kill Him!" इसका मतलब है कि अगर कोई खुद को भगवान या दूसरों से अलग डिवाइन फिगर कह दे तो उससे दूर ही रहें क्योंकि वो झूठा है। ये सोचने की जगह कि कोई दूसरा आपको राह दिखाएगा आपको खुद पर यकीन करना होगा। माइंडफुलनेस आपको कांशसनेस की बहुत ऊपरी सीढ़ी पर ले जाती है। आप प्रेक्टिस करके अपना spiritual foundation बहुत मजबूत बना सकते हैं। बदले में आपको बहुत सफलता मिलती है भले ही आप कोई भी काम करें या कोई भी स्पोर्ट्स खेल रहे हों। ये दौर आपका सबसे ताकतवर दौर होता है। इसलिए ये पांचवीं सुपरपावर यानि ट्रस्ट, कॉन्फिडेंट रहने और नए विचारों को खुले दिल से स्वीकार करने से जुड़ी है। जब आप खुद पर पूरा भरोसा करते हैं तो माइंडफुलनेस आपके लिए एक नियम या आदत बन जाती है। अब आपको पता चल जाता है कि चाहे जो भी मुश्किल आए आप उसे पार कर ही लेंगे।
कुल मिलाकर
आज में जीना सीखिए। जो समय बीत चुका और जो आया ही नहीं उसे सोचकर कुछ नहीं मिलेगा। जबकि हम दिनभर बीते या आने वाले समय में भटकते रहते हैं। जब आप बाकी सब चीजों से अलग अपना ध्यान अपने शरीर, सांसों और अंदरूनी ताकत पर लगाना शुरू करते हैं तो आप अपनी सुपर पावर पा सकते हैं और कांशसनेस के बहुत ऊंचे लेवल पर पहुंच जाते हैं। माइंडफुलनेस इस ताले की चाबी है। फिर चाहे आप खेल के मैदान में हों या जिंदगी के मैदान में।
क्या करें
एक मिनट के लिए सिर्फ किसी एक चीज पर ध्यान लगाएं।
एक दिन आप जो खास करना चाहते हैं उस पर ध्यान लगाएं। कुछ न समझ आता हो तो अपनी सांसों पर या अपने चलने पर ही ध्यान दें। आपको लगेगा ये तो बड़ा आसान है पर इसमें कुछ मुश्किल आएगी। जब आप पूरे एक मिनट तक उसी एक चीज पर फोकस करना सीख लेंगे तो समय बढ़ाकर दो, तीन और चार मिनट करते जाइए। आपको बस अपना फोकस ज्यादा से कम चीजों की तरफ लेते आना है। यानि एक समय पर दस चीजों की जगह बस एक ही चीज पर फोकस हो। इसमें "How Champions Think by Dr. Bob Rotella and Bob Cullen" नाम की किताब भी आपकी बहुत मदद करेगी। साल 2015 में आई ये किताब बिजनेस और स्पोर्ट्स की दुनिया के कुछ सफल लोगों की कहानी आपके सामने लाती है। इसमें रीयल लाइफ के शानदार उदाहरण तो हैं ही पर कुछ ट्रिक्स भी दी गई हैं जो आपको अपने maximum potential तक ले जा सकती हैं और वो भी हर रोज।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Mindful Athlete By George Mumford.
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