The Loop Approach..... ___ ❤️➿

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The Loop Approach

Sebastian Klein, Ben Hughes
किस तरह से आप अपनी आर्गनाइज़ेशन को अंदर से बदल सकते हैं।

दो लफ्जों में 
द लूप एप्रोच ( The Loop Approach ) में हम देखेंगे कि किस तरह से आप अपनी आर्गनाइज़ेशन के स्ट्रक्चर को बदल सकते हैं। यह किताब हमें हीरैरकियल स्ट्रक्चर की खामियों के बारे में बताती है और यह बताती है कि किस तरह से हम लूप एप्रोच की मदद से इस हर पल बदलते वक्त में अपनी कंपनी को कामयाब बना सकते हैं।

यह किसके लिए है 
-वे जो अपने बिजनेस आर्गनाइज़ेशन में बदलाव लाना चाहते हैं।
-वे जो बदलते वक्त में अपनी कंपनी में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं।
-वे जो अपनी टीम को मैनेज करने का एक बेहतर तरीका खोज रहे हैं।

लेखक के बारे में 
सेबैस्टियन क्लीन ( Sebastian Klein ) एक आन्त्रप्रिन्योर, कंसल्टेंट, स्पीकर और लेखक हैं। वे कंपनियों को ऐसा बनाना चाहते हैं जहां पर कंपनी के लोगों को सबसे पहले रखा जाए। वे 5 कंपनियों के को-फाउंडर्स रह चुके हैं और इस समय अपनी "द डाइव" नाम की कंपनी पर फोकस कर रहे हैं।
बेन ह्यूग्स ( Ben Hughes ) भी एक लेखक, स्पीकर और आन्त्रप्रिन्योर हैं जिन्होंने सेबैस्टियन क्लीन के साथ मिलकर ब्लिंकिस्ट नाम की कंपनी की शुरुआत की थी। सेबैस्टियन के साथ काम कर के उन्होंने "द डाइव" में द लूप एप्रोच को बनाया था, जिस पर यह किताब लिखी गई है।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
क्या आप भी एक कंपनी चला रहे हैं और अपने लोगों को अच्छे से मैनेज करने के तरीके के बारे में जानना चाहते हैं। बहुत सी कंपनियां आज भी उसी तरीके से अपनी टीम को मैनेज कर रही हैं जिस तरह से वे 100 साल पहले किया करतीं थीं। जमाने के साथ ना बदलने की वजह से बहुत सी कंपनियां डूब जा रही हैं। मैनेजर्स समय के साथ तेजी से बदलाव नहीं ला पा रहे हैं और अगर वे कोशिश भी कर रहे हैं, तो बदलाव लाने की वजह से उनकी टीम को इतनी परेशानी हो रही है कि उनकी टीम अच्छे से काम कर ही नहीं पा रही।

यह किताब बताती है कि किस तरह से आप अपनी टीम को फ्लेक्सिबल बना सकते हैं। इस किताब की मदद से आप अपनी कंपनी के मैनेजमेंट की जड़ों पर काम कर के उसे अंदर से बदल सकते हैं। यह किताब बताती है कि किस तरह से आप अपने कर्मचारियों को फैसला लेने की ताकत देकर उन्हें जिम्मेदार बना सकते हैं। 

 

-हीरैरकियल स्ट्रक्चर में कमियां होने के बाद भी वह इतना पापुलर क्यों है।

-किस तरह से आप लूप एप्रोच की मदद से अपनी कंपनी को पूरी तरह से बदल सकते हैं।

-किस तरह से आप अपने कर्मचारियों को जिम्मेदार बना सकते हैं।

हीरैरकियल स्ट्रक्चर के हिसाब से काम करना आज के वक्त में कंपनियों के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है।
शायद आपको पहले से पता हो कि यह हीरैरकियल स्ट्रक्चर क्या होता है। इसमें सबसे ऊपर एक राजा बैठा होता है जो कि सारे अहम फैसले लेता है। राजा अपने मंत्रियों को आदेश देता है, मंत्री अपने से नीचे वाले लोगों को आदेश देते हैं फिर वे लोग मजदूरों को आदेश देकर उनसे काम करवाते हैं।

यह तरीका इतना कामयाब है कि सालों से हर राजा- महाराजा ने इसी तरीके का इस्तेमाल कर के अपना राज्य चलाया है। आज के वक्त में भी बहुत सी कंपनियां हैं जो कि इसी हीरैरकियल स्ट्रक्चर के हिसाब से काम करती हैं। सबसे ऊपर सीईओ होता है, तो फैसले लेता है और उसे अपने से नीचे काम करने वाले एक्सेक्युटिव्स और मैनेजर्स को दे देता है। फिर वे मैनेजरर्स कर्मचारियों को सारा काम देकर उनसे वो काम पूरा करवाते हैं।

जब बहुत से लोगों को मैनेज करने की बारी आती है तो यह तरीका बहुत कारगर साबित होता है। यह बहुत ही आसान सा सिस्टम है जिसका एक नियम है - हर किसी को अपने से ऊपर बैठे व्यक्ति की बात माननी होगी।

लेकिन आज के वक्त में बदलाव बहुत तेजी हो रहा है और उसके हिसाब से कंपनियों को भी बहुत तेजी से बदलना पड़ रहा है। बिजनेस का माहौल बहुत ज्यादा मुश्किल हो गया है और यहां पर वही नई कंपनियां टिक पा रही हैं जो नए और बेहतर तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। ऐसे में बड़ी आर्गनाइज़ेशन इन छोटी नई कंपनियों से बहुत पीछे रह जा रही हैं क्योंकि वे इतनी से तेजी से नहीं बदल सकती।

हीरैरकियल स्ट्रक्चर का नुकसान यह है कि जब भी यहाँ पर कोई परेशानी आती है, तो उसे हमेशा नीचे के लेवल के लोग पकड़ते हैं और नीचे के लेवेल के लोग कोई भी फैसला खुद से नहीं कर सकते। वे अपने से ऊपर काम करने वाले लोगों के सामने बोलने से कतराते हैं जिस वजह से समस्या का पता ऊपर के लोगों को बहुत देर से लगता है। इससे जरूरी बदलाव करने में देरी हो जाती है और कभी कभी यह देरी कंपनी को ले डूबती है।

आज के वक्त में हमें तेज चलने की जरूरत है और हीरैरकियल स्ट्रक्चर हमें ऐसा करने नहीं देता। हमें एक बदलाव की जरूरत है।

लूप एप्रोच को अपनाने से पहले आपको अपने आर्गनाइज़ेशन के काम करने के तरीके पर फोकस करना होगा।
अगर आपको खूबसूरत फूल चाहिए, तो आप फूलों पर नहीं बल्कि उनकी मिट्टी और खाद पर काम करते हैं। ठीक उसी तरह से जब आप अपनी संस्था में अंदर से बदलाव लाने की कोशिश करते हैं तो आप छोटी परेशानियों को सुलझाने की कोशिश नहीं करते हैं। आप नीचे से काम करना शुरू करते हैं। आप अपने लोगों के काम करने और सोचने के तरीके बदलते हैं।

हीरैरकियल स्ट्रक्चर अंदाजा-लगाओ-काबू-करो वाली मानसिकता पर काम करते हैं। इसमें गोल कोई और तय करता है, उसे हासिल करने के लिए प्लान कोई और बनाता है और फिर उस प्लान पर काम कर के नतीजे कोई और लेकर आता है। सीईओ जब कहेगा कि उसे कंपनी की सेल्स बढ़ाने की जरूरत है, तो मैनेजर एक प्लान बनाएगा और मार्केटिंग टीम के लोग उस प्लान के हिसाब से काम कर के नतीजे पैदा करेंगे। 

लेकिन लूप माइंडसेट में आप हर एक व्यक्ति को यह ताकत देते हैं कि वो कुछ छोटे फैसले ले सके। इसमें आप हर कर्मचारी को यह ताकत देते हैं कि वो अपने लेवेल पर रहकर जो भी समस्या देखे, उसे सुलझाने के लिए काम करता रहे। इसमें आप हर कर्मचारी को एक सेंसर बना देते हैं जो कि परेशानियों को महसूस कर सकता है और उसका समाधान भी निकाल सकता है। इस तरह से बदलाव करने की ताकत सिर्फ ऊपर के लोगों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरी कंपनी में बँटी हुई है।

इसके अलावा लूप माइंडसेट में आप सिर्फ छोटे छोटे गोल्स पर काम नहीं करते हैं, बल्कि एक मकसद के लिए काम करते हैं। मकसद के होने से आपके आर्गनाइज़ेशन के हर व्यक्ति को यह पता होता है कि उसे किस तरह से काम करना है। साउथवेस्ट एयरलाइन्स का मकसद है दुनिया का सबसे सस्ता एयरलाइन बनना। अब उसके हर मैनेजर और हर कर्मचारी को यह पता है कि एक दिए गए हालात में उन्हें कौन सा फैसला लेना है और कौन सा नहीं। उन्हें वो फैसला लेना है जिससे वे दुनिया की सबसे सस्ती एयरलाइन बन सकें।

लूप माइंडसेट में हर कर्मचारी के पास एक जिम्मेदारी होती है। उसके पास यह अधिकार होता है कि वो अपने हिसाब से काम कर सके। इस तरह से काम करने से एक कंपनी बहुत फ्लेक्सिबल हो जाती है क्योंकि अब एक कर्मचारी एक समस्या को देखकर उसे अपने हिसाब से तुरंत सुलझा सकता है। उसे अपने मैनेजर से बात कर के उसकी इजाजत लेने की जरूरत नहीं होती है।

लूप एप्रोच की मदद से आप अपनी टीम को बेहतर तरीके से आर्गनाइज़ कर के उनके बीच के तनाव को कम कर सकते हैं।
अब जब आप हीरैरकियल स्ट्रक्चर को छोड़कर लूप एप्रोच को अपनी कंपनी में लागू करेंगे, तो इससे आपको बहुत परेशानी हो सकती है। लोगों को बदलाव बिल्कुल भी पसंद नहीं है। और जब इस तरह के बदलाव का सामना आपके हजारों कर्मचारियों को करना होगा, तो हर व्यक्ति को एक अलग समस्या हो सकती है।

लेकिन लूप एप्रोच के पास इस समस्या का भी समाधान है। बदलाव लाने के लिए आप सबसे पहले एक टीम को चुनिए। टीम से मिलकर ही आपकी कंपनी बनी है, तो आप अपनी टीम को एक एक कर के बदलने की कोशिश कीजिए। एक बार में एक टीम में एक छोटा सा बदलाव कीजिए और यह देखिए कि उससे लोगों को क्या परेशानियां आ रही हैं। जब लोग उस बदलाव को अपना लें, तो दूसरा बदलाव कीजिए। इस तरह से जब आपकी उस एक टीम में सारे जरूरी बदलाव हो जाएं, तो आप दूसरे टीम को पकड़ कर उसमें बदलाव लाना शुरू कीजिए।

साथ ही अपने कर्मचारियों के बीच के तनाव को कम करने की कोशिश कीजिए। हो सकता है कि नए बदलाव से किसी एक कर्मचारी के ऊपर दूसरे कर्मचारियों के मुकाबले ज्यादा काम आ जाए। ऐसे में आपको अपनी टीम का माहौल ऐसा बनाना होगा जहां पर लोग एक दूसरे से बात कर के अपनी समस्या का हल निकाल सकें। बात कर लेने से हर तरह के तनाव कम हो जाते हैं, इसलिए आपको अपनी टीम के लोगों को यह एक दूसरे से बात करने के लिए प्रेरित करना होगा।

इसके अलावा आप अपनी कंपनी में नौकरी को "रोल्स" से बदलने की कोशिश कीजिए। नौकरी और टाइटल का मतलब होता है कि एक खास व्यक्ति है जो कि सिर्फ एक खास तरह का काम कर सकता है। इससे बदलाव लाने में बहुत परेशानी हो सकती है क्योंकि एक कर्मचारी सिर्फ एक तरह के काम से चिपका हुआ है।

दूसरी तरफ रोल्स कुछ फिक्स नहीं होते। एक एक्टर जो एक मूवी में हीरो का काम कर रहा है, वो दूसरी मूवी में विलन का काम भी कर सकता है। इस तरह से जरूरत पड़ने पर हम अपने कर्मचारियों को अलग अलग रोल दे सकते हैं। लेकिन हम उन्हें हर बार जरूरत पड़ने पर अलग अलग नौकरियां नहीं दे सकते। इसलिए अपने कर्मचारियों को नौकरियां नहीं, बल्कि रोल दीजिए।

लूप एप्रोच को अपनाने के लिए आपको अपनी कंपनी में तीन माड्यूल्स पर काम करना होगा जिसमें से पहला है - क्लैरिटी।
जब तक आपको यह साफ साफ पता नहीं होगा कि आपका काम क्या है, आपकी खूबियां क्या हैं और उसके हिसाब से किस तरह का काम आपके लिए पर्फेक्ट होगा, उस वक्त तक आप कभी अच्छे से काम नहीं कर पाएंगे। इसलिए आपको सबसे पहले क्लैरिटी पर काम करना चाहिए।

लूप एप्रोच के तीन भाग होते हैं। हर एक भाग को माड्यूल कहा जाता है और आप एक माड्यूल पर दो दिन का एक वर्कशाप रखकर अपने लोगों को उसके बारे में बताते हैं। सबसे पहला माड्यूल क्लैरिटी का है और इसके चार हिस्से हैं।

इसमें आप सबसे पहले पर्पस प्लेआफ्स नाम का एक गेम खेलते हैं जिसमें आप अपनी हर टीम के लोगों से कहते हैं कि वे अपनी टीम के मकसद को एक लाइन में डिफाइन करने की कोशिश करें। हर एक व्यक्ति अपनी एक लाइन बना सकता है और अंत में वे लोग एक उन सारी लाइनों पर काम कर के उसमें से सिर्फ 2 लाइनें निकालेंगे जो कि उनके टीम के मकसद को बताएगी।

इसके बाद हम दूसरे पार्ट पर जाते हैं जिसका नाम है - पीपल पोटेंशियल। इसमें आप टीम के हर व्यक्ति की खूबियों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं और उसे एक जगह पर लिखते हैं। इससे आपको यह पता लगता है कि एक व्यक्ति किस काम को सबसे अच्छे तरीके से कर सकता है।

इसके बाद आप अगले एक्सरसाइज़ पर आते हैं, जिसमें आप हर व्यक्ति की खासियत के हिसाब से उसका एक प्रोफाइल बनाते हैं। आप यह लिखते हैं कि उस व्यक्ति को अपनी खुद की खूबियों के बारे में क्या लगता है और लोगों का उसके बारे में क्या कहना है। अंत में, टीम के हर व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की खास बातों के बारे में बताया जाता है ताकि हर किसी को यह पता लग सके कि वे अपने साथ काम करने वाले लोगों से क्या उम्मीदें रख सकते हैं।

माड्यूल 1 के अंत में आप यह तय करते हैं कि कौन सा व्यक्ति किस काम के लिए जिम्मेदार होगा। आप टीम के हर व्यक्ति से यह पूछते हैं कि वे हर रोज किस तरह का काम करता है। इससे आपको यह पता लग जाएगा कि किस व्यक्ति से किस तरह का काम करवाना सही होगा। आप इसके हिसाब से उन्हें उनका रोल और जिम्मेदारियां दे सकते हैं। इससे आपको यह भी पता लग जाएगा कि आपकी टीम में किस काम को करने के लिए कोई भी व्यक्ति नहीं है। फिर आप उस काम के लिए एक दूसरे व्यक्ति को ला सकते हैं। इस तरह से माड्यूल 1 की मदद से आपको क्लैरिटी मिलती है।

जीटीडी मेथड कि इस्तेमाल कर के आप अपने काम को पूरा कर सकते हैं।
एक बार सबके गोल्स और रोल्स क्लीयर हो जाएं, तो बारी आती है लोगों से काम करवाने की। यह हमारे लूप एप्रोच का दूसरा माड्यूल है, जिसका नाम है - रिजल्ट्स। इसमें आप दो दिन का वर्कशाप रखते हैं जिसमें आप अपने लोगों को यह बताते हैं कि किस तरह से वे अपने काम को पूरा कर सकते हैं। इसके लिए आप उन्हें गेटिंग थिंग्स डन ( जीटीडी ) मेथड के बारे में बताते हैं।

जीटीडी को डेविड एलेन नाम के एक प्रोडक्टिविटी कंसल्टेंट ने डिजाइन किया था। इस मेथड में आप सबसे पहले एक डब्बे में अपने सारे काम लिखकर डालते हैं। यह डब्बा एक कागज भी हो सकता है जिसपर आपके सारे काम लिखे हों। यह आपके घर के काम हो सकते हैं, आपके साथ काम करने वाले व्यक्ति की रिक्वेस्ट हो सकती है और आपके खुद के काम हो सकते हैं। 

इसके बाद आप एक एक काम को उठाते हैं और यह तय करते हैं कि उस काम के साथ क्या किया जाना है। अगर वो काम जरूरी नहीं है, तो उसे काट निकालिए। अगर वो एक जानकारी है जिसे आपको याद रखना है, तो उसे कहीं पर लिख लीजिए। अगर वो कोई इवेंट है, तो उसे अपने कैलेंडर पर लिखिए। अंत में कुछ ऐसी चीजें बच जाएंगी जिसपर आपको काम करना होगा।

इन कामों में भी अलग अलग कैटेगरी बनाना शुरू कीजिए। सबसे पहले यह देखिए कि उस काम को करने में कितना समय लगेगा। अगर वो काम बहुत छोटा है और उसे करने में सिर्फ 2 मिनट लगेंगे, तो उसे उसी वक्त कर के निपटा दीजिए और अपनी लिस्ट से निकाल दीजिए। फिर जो काम बच जाएं, उन्हें टास्क या प्रोजेक्ट की कैटेगरी में रखना शुरू कीजिए।

टास्क वो होता है जो सिर्फ एक स्टेप में, यानी 1 घंटे के अंदर किया जा सकता है और प्रोजेक्ट वो होता है जिसे करने में हफ्ते लगें। इसके बाद आप यह तय कर सकते हैं कि आपको पहले कौन सा काम करना है और किस काम पर कितना समय देना है। अपने प्रोजेक्ट को छोटे छोटे भागों में बाँट दीजिए और एक बार में एक काम कीजिए ताकि आप अपनी मंजिल तक पहुंच सकें।

लोगों के साथ काम करने के लिए आपको तनाव को सुलझाना आना चाहिए।
माड्यूल 2 यानी नतीजों के माड्यूल में आप अपनी टीम को कुछ इस तरह से ट्रेन करते हैं जिससे वे एक साथ काम कर के अच्छे नतीजे पैदा कर सके। इसके लिए सबसे पहले आपको उन्हें यह सिखाना होगा कि किस तरह से वे आपस के तनाव को खत्म कर सकते हैं और मिल जुलकर काम कर सकते हैं।

सबसे पहले हम इस बात को साफ कर दें कि तनाव का मतलब किसी नेगेटिव चीज़ से नहीं है। इसका मतलब बदलाव की एक चाहत से है। अगर टीम का कोई एक व्यक्ति किसी वजह से अच्छे से काम नहीं कर पा रहा है, तो वहाँ पर तनाव पैदा होता है और टीम के लोगों को मिलकर उसे सुलझाना आना चाहिए। इसके लिए आपको टाम थोमिसन के बनाए गए तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए, जिसके हिसाब से तनाव चार जगहों पर पैदा हो सकता है।

सबसे पहली जगह जहां पर तनाव पैदा होता है वो है आपरेशनल स्पेस। यह वे काम होते हैं जो हर रोज किए जाते हैं। इसमें प्रोजेक्ट पर काम करने, जानकारी बाँटने जैसे काम आते हैं। दूसरा स्पेस होता है गवर्नेंस स्पेस, जिसमें रोल्स बाँटने और जिम्मेदारियां देखने जैसे काम आते हैं। इस स्पेस में यह देखा जाता है कि कौन सा व्यक्ति किस जिम्मेदारी को संभाल रहा है। यह दोनों स्पेस मिलकर "रोल-एशनल" स्पेस बनाते हैं।

इसके बाद जो दूसरा हिस्सा है, उसे हम रिलेशनल स्पेन कहते हैं। इसमें तीसरा स्पेस आता है जिसे हम इंडिविजुअल स्पेस कहते हैं। इसमें आप हर एक व्यक्ति से पूछते हैं कि उसके लिए जरूरी क्या है। उसके लिए टीम का कौन सा काम मायने रखता है? इसके बाद आखिरी स्पेस आता है जिसे हम ट्राइब स्पस कहते हैं। इसमें आप टीम के सारे लोगों की आपसी समस्या को देखते हैं। आप यह देखते हैं कि अगर किसी को दूसरे लोगों से परेशानी हो रही है तो वो क्यों हो रही है।

एक बार आपकी टीम के लोगों को यह सारे स्पेस समझ में आ जाएं, तो आप उन्हें बताते हैं कि किस तरह से वे एक सिंक मीटिंग कर के किसी भी तनाव को सुलझा सकते हैं। सिंक मीटिंग एक ऐसी मीटिंग होती है जिसमें सब लोग बैठकर यह तय करते हैं कि किस तरह से वे आपरेशनल स्पेस की समस्या को सुलझा सकते हैं। आप यह तय करते हैं कि कौन सा व्यक्ति किस प्रोजेक्ट पर काम करेगा। किस तरह से काम की प्लानिंग करनी होगी? किस जानकारी की जरूरत है? कहाँ से वो जानकारी मिलेगी?

आप हर तरह की बातों पर गौर कर के यह तय करते हैं कि टीम को आगे कौन से काम किस तरह से करने हैं। इस तरह से आप टीम के बीच के तनाव को खत्म करते हैं।

एक कंपनी को कामयाब होने के लिए ऐसी आदतें अपनानी होंगी जिससे वो समय के साथ खुद को बदल सके।
अब हम अपने आखिरी माड्यूल की बात करेंगे जिसका नाम है - इवोल्यूशन। हालात बहुत तेजी से बदल रहे हैं और इसलिए आपको अपनी टीम को इस तरह से तैयार करना होगा जिससे वे लोग खुद को समय और जरूरत पड़ने पर आसानी से बदल सकें। इसमें हम यह देखते हैं कि किस तरह से आप अपनी टीम को समय और जरूरत के हिसाब से नए स्ट्रक्चर, रोल्स और नियम बनाना सिखा सकते हैं।

इसके लिए हम सबसे पहले गवर्नेंस मीटिंग के बारे में जानेंगे। यह गवर्नेंस स्पेस का एक हिस्सा है जिसमें आप यह तय करते हैं कि कौन सा व्यक्ति किस रोल पर काम करेगा और कौन सी जिम्मेदारी उठाएगा। इस मीटिंग को कर के आप यह तय कर सकते हैं कि नए हालात के हिसाब से आपको किस तरह के रोल्स की जरूरत होगी और कौन सा व्यक्ति उस रोल के लिए सबसे सही होगा।

इस मीटिंग में सबसे पहले आप एक एजेंडा तय करते हैं और उसमें सारे तनाव के बारे में लिखते हैं। आप यह पता लगाइए कि किस तरह से नए रोल्स को बनाने हैं, टीम के किस पहलू को बेहतर बनाने की जरूरत है। अपनी टीम के हर एक व्यक्ति से पूछिए कि वो किस तनाव से परेशान है और उन सभी तनावों को अपने एजेंडा मे लिखिए।

एक बार आपको इन तनावों के बारे में पता लग जाए, तो आप इंटेग्रेटिव डिसीज़न मेकिंग ( आईडीएम ) का इस्तेमाल कर के सही फैसले ले सकते हैं। आईडीएम एक सात स्टेप का प्रासेस है।

सबसे पहले आप टीम के हर व्यक्ति से कहते हैं कि वे अपने तनाव के बारे और उसे सुलझाने के तरीके के बारे में लिखें।

इसके बाद आप हर व्यक्ति से सवाल करते हैं कि उसे वो तनाव क्यों आ रहा है।

फिर आप यह पूछते हैं कि उसके हिसाब से उसका समाधान किस तरह से कारगर है। 

इसके बाद टीम का हर व्यक्ति उस तनाव के बारे में अपनी राय और फीडबैक देता है।

पाँचवें स्टेप में टीम का हर व्यक्ति समस्या को समझ कर उसके समाधान में सुधार करने की कोशिश करता है।

अगले स्टेप में टीम के लोग समाधान की कमियों पर सवाल उठाते हैं ताकि वे उसे बेहतर बना सकें।

और आखिरी स्टेप में आप उस समाधान में जरूरी बदलाव कर के उसे लागू कर दिया जाता है।

इस तरह से गवर्नेंस मीटिंग की मदद से आपकी टीम हर तरह की समस्या को सुलझा सकती है।

अपने आपसी मतभेद को सुलझाने के लिए आपको अपनी टीम को यह सिखाना होगा कि किस तरह से वे फीडबैक ले सकते हैं।
अब तक हमने देखा कि किस तरह से आप "रोल-एशनल" स्पेस की तरफ काम कर के अपनी टीम के काम से संबंधित तनाव को सुलझा सकते हैं। अब हम "रिलेशनल" साइड की तरफ एक नजर डालेंगे और यह देखेंगे कि किस तरह से आप उनके आपस के तनाव को कम कर सकते हैं।

तीसरे माड्यूल का यह हिस्सा फीडबैक पर फोकस करता है। इसमें आप यह देखते हैं कि टीम के हर व्यक्ति को कौन सी समस्या है और किस तरह से आप टीम को नजर में रखते हुए उसकी समस्या को सुलझा सकते हैं। आप अपनी टीम को नानवाइलेंट कम्युनिकेशन ( एनवीसी ) करना सिखाते हैं, जिसकी मदद से वे बातें कर के सबकी समस्या को सुलझा सकते हैं। एनवीसी में टीम का हर व्यक्ति अपनी जरूरत के हिसाब से बातें करता है, ना कि दूसरों पर इल्जाम लगाकर। इसमें फीडबैक देने के 4 स्टेप्स होते हैं

सबसे पहले आप यह देखते हैं कि किस बात से आपको परेशानी हो रही है। इसके बाद आप यह बताते हैं कि आपको उससे कैसा महसूस हो रहा है। तीसरे स्टेप में आप बताते हैं कि उस चीज़ से आपको किस तरह से परेशानी हो रही है और आखिरी स्टेप में आप बताते हैं कि किस तरह से वो परेशानी सुलझाई जा सकती है।

एनवीसी की मदद से आपकी टीम के लोग बिना किसी पर इल्जाम लगाए यह बता सकते हैं कि उनके किस काम की वजह से उन्हें तकलीफ हुई और किस तरह से वे उसे सुलझा सकते हैं। एक बार जब हर किसी को एनवीसी का इस्तेमाल कर के बिना किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए फीडबैक देना आ जाए, तो आप ग्रुप का फीडबैक लेने के लिए तैयार हैं।

ग्रुप का फीडबैक लेने के लिए आप सबसे पहले एक व्यक्ति को "हॅाट सीट" पर बैठा देते हैं और टीम के दूसरे लोगों को उसके चारों तरफ बैठा देते हैं। इसके बाद आप टीम के हर व्यक्ति से पूछते हैं कि उसका हॅाट सीट पर बैठे व्यक्ति के बारे में क्या कहना है। उसे उस व्यक्ति में क्या अच्छा लगता है? उससे भविष्य में किस तरह की उम्मीदें की जा सकती हैं? एक बार जब एक व्यक्ति को सारे लोग फीडबैक दे दें, तो कोई दूसरा व्यक्ति आकर हॅाट सीट पर बैठता है।

इस तरह से आपकी टीम इन 3 माड्यूल्स की मदद से अपनी क्लैरिटी, रिजल्ट और इवोल्यूशन पर काम करती रहती है और खुद से सही फैसले लेते रहती है।

कुल मिलाकर
हीरैरकियल स्ट्रक्चर में बदलाव करना बहुत मुश्किल होता है जिस वजह से आज के वक्त में वो तरीका कारगर नहीं है। लूप एप्रोच एक बहुत ही फ्लेक्सिबल तरीका है जिसकी मदद से आप समय और हालात के साथ आसानी से बदलाव ला सकते हैं। फैले लेने की ताकत को अपने कर्मचारियों में बाँट दीजिए और उन्हें नौकरी के बजाय रोल्स देना शुरू कीजिए। अपनी टीम को सिखाइए कि उनका काम क्या है, किस तरह से वे आपस के तनाव को सुलझा सकते हैं और किस तरह से वे समय और हालात के साथ जरूरी बदलाव ला सकते हैं।

 

अपने काम को छोटे छोटे हिस्से में बाँट दीजिए।

अगली बार जब आपको एक प्लान या प्रोजेक्ट पर काम करने को दिया जाए, तो सबसे पहले यह पता लगाइए कि आपको किस नतीजे तक पहुंचना है। इसके बाद आप अपने प्लान को छोटे छोटे स्टेप्स में बाँट दीजिए। हो सकता है आपको तुरंत यह समझ में ना आए कि आपको कौन कौन से एक्शन लेने हैं, लेकिन स्टेप्स के बारे में सोचने से आपको काम करने की प्रेरणा मिलती है क्योंकि इससे वो काम आपको छोटा लगने लगता है।


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