The Advice Trap...... ___😁🪤

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The Advice Trap

Michael Bungay Stanier
हंबल रहिए, क्यूरियस रहिए और अपना लीड करने का तरीका हमेशा के लिए बदल दीजिए

दो लफ्जों में
एडवाइस ट्रैप (2020), अपने अंदर मौजूद एडवाइज मॉन्स्टर को कंट्रोल करने के लिये प्रैक्टिकल गाइड है, हममें से ज्यादातर लोग जबरदस्ती एडवाइज, इनसिक्योरिटी की वजह से देते हैं और अपनी सिचुएशन कंट्रोल करना चाहते हैं. लेकिन इसकी वजह से हम खुद को दूसरों से अलग कर लेते हैं, और वर्कप्लेस पर अपनी इन्नोवेशंस को रोकते हैं. सल्यूशन की तरफ भागने से पहले हमें अपने अंदर क्यूरोसिटी पैदा करने की और दूसरों को सुनने की जरूरत है.

किनके लिए है
- दूसरों को एक्सप्लेन करने वाले (मैनप्लेनर्स), जो बिना मांगे सलाह देना बंद करना चाहते हैं
- इनोवेटिव लीडर्स जो अपनी टीम को इंस्पायर करने के लिए नये तरीके सीखना चाहते हैं
- वह लोग जो यह जानना चाहते हैं कि कोचिंग तकनीक का इस्तेमाल रोजमर्रा की जिंदगी में कैसे किया जा सकता है.

लेखक के बारे में
माइकल बुंगे स्टैनियर को 2019 में कोचिंग का नंबर वन लीडर नामित किया गया था. उनकी पिछली किताब 700,000 कॉपियां बिकीं और अमेजॉन पर लगभग 1000 लोगों से 5 स्टार रिव्यू मिले. वह क्रेयॉन्स के बॉक्स की लर्निंग एंड डेवलपमेंट कंपनी के फाउंडर हैं और दुनिया भर में घूमकर कंपनियों को बेहतर लीडरशिप डिवेलप करने के तरीकों पर एडवाइस देते हैं.

बिन मांगी सलाह असल सल्यूशन के बीच रुकावट बन जाती है
जब लोग आपकी अच्छी सलाह नहीं मानते तो क्या आप फ्रस्ट्रेटेड फील करते हैं? या फिर बहुत सारे लोगों की मदद करके थक जाते हैं? ऐसा एडवाइज मॉन्स्टर के कंट्रोल में रहने से होता है, जो लोगों को लगातार यह बताना चाहता है कि उन्हें क्या करना चाहिए. इस समरी आप जानेंगे कि यह आवाज़ें कहां से आती हैं, और हर बार सल्यूशन की तलाश आपके रिलेशनशिप और लीडरशिप क्वालिटी को बर्बाद कर सकती हैं.

आप जानेंगे कि दूसरों को सुनने में महारत कैसे हासिल की जाए और क्यों सलाह देने से बेहतर सवाल करना है. और देखेंगे कि कैसे यह सारी चीजें आपको एंपैथी और ह्यूमैनिटी डिवेलप करने में मदद करती है, क्योंकि आपको एहसास होगा कि सिर्फ आपके पास अच्छे आईडियाज नहीं हैं. इसके अलावा आप जानेंगे कि क्यों लोगों को बचाने की कोशिशें उन्हें दूर ले जाती है? हमें इस स्ट्रेसफुल सिचुएशन से बचाने के लिए हमारा ब्रेन कैसे वायर्ड है, और क्यों लोग अपने खुद के कोचिंग सेशन को नाकाम करने की कोशिश करते हैं?

तो चलिए शुरू करते हैं!

जब कोई अपनी प्रॉब्लम के बारे में बताता है तो हम सब उसे एडवाइज देना चाहते हैं. इससे पहले कि हम इसे जानें, सलूशन के दिमाग में आते ही हम उसे शेयर करना चाहते हैं. तो हमें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? क्या दूसरों की प्रॉब्लम में हेल्प करना अच्छी बात नहीं है?

हालांकि, ऐसी बहुत सारी सिचुएशन है जिसमें एडवाइज देना हेल्पफुल हो सकता है. अगर कोई रेस्ट रूम के बारे में पूछता है, तो उस बारे में ना बताना वियर्ड होगा. लेकिन ज्यादातर हमारे अंदर पनप रही लोगों को यह बताने की कोशिश कि उन्हें क्या करना चाहिए उल्टा काम करती है.

चलिए इस बारे में थोड़ा सा जानते हैं. अक्सर जब लोग हमें अपनी प्रॉब्लम के बारे में बताते हैं तो हम उन्हें सलाह देने के लिए इतना डेसपरेट रहते हैं कि सुनते भी नहीं कि वह क्या कह रहे हैं. सामने वाले को मुद्दे की बात करने में वक्त लग सकता है. अगर हम उन्हें सलाह देने की जल्दबाजी करते हैं तो हो सकता है हम उन्हें गलत चीज पर सलाह दे दे, क्योंकि उनकी असल प्रॉब्लम के बारे में तो हमने सुना ही नहीं है.

और अगर हम उनकी सही प्रॉब्लम समझ भी लें, तो अक्सर आम सी एडवाइस ही दी जाती है. क्योंकि हम मे से बहुत सारे लोग इतना ध्यान से नहीं सुनते, ताकि जरूरी इंफॉर्मेशन पर बात की जा सके. इसके बजाय हम अपनी लिमिटेड नॉलेज और असम्पशन के आधार पर सलाह देते हैं. जल्दी से सल्यूशन ढ़ूंढ़ने की कोशिश में हम बेस्ट आइडिया की बजाए पहले आईडिया पर टिक जाते हैं.

जबरदस्ती एडवाइज देना भी हमारे हालचाल पर असर डालता है. हर वक्त दूसरों का काम करना और दूसरों की प्रॉब्लम सॉल्व करना बहुत थकाऊ हो सकता है. अगर आप एक बिजनेस लीडर हैं जो अपना पूरा वक्त दूसरों की प्रॉब्लम सॉल्व करने में लगा देता है तो इसका मतलब है आपके पास बड़ी तस्वीर पर ध्यान देने का वक्त नहीं है. बिना मांगे सलाह लेना भी कोई आसान बात नहीं है. इससे आपको लग सकता है कि सामने वाला आपको अपनी खुद की प्रॉब्लम सॉल्व करने के काबिल नहीं समझता.

जो लोग लगातार एडवाइज देते रहते हैं वह हमारे सबसे बड़े दुश्मन बन जाते हैं. अपने आसपास के लोगों में प्रॉब्लम सॉल्व करने की काबिलियत को नजरअंदाज करके हम इनोवेशन का गला घोटते और खुद को थका देते हैं. इस साइकिल को तोड़ने के लिए, हमें अपने अंदर मौजूद एडवाइज मॉन्स्टर का सामना करना चाहिए.

हम सब एक अंदरूनी एडवाइज मॉन्स्टर से दबकर रहते हैं, यह वक्त इसे कंट्रोल में करने का है
वह आवाज हमारे कान में भुनभुनाती रहती है और कहती है कि आपके इंटरनल एडवाइज मॉन्स्टर के पास सारे सल्यूशंस हैं. एडवाइज मॉन्स्टर आपकी पर्सनालिटी का एक अहम हिस्सा है जो तब डेवलप्ड होता है जब आप स्ट्रेस्ड होते हैं, और सिचुएशन के अंडर कंट्रोल होने का एहसास करना चाहते हैं. आमतौर पर यह मॉन्स्टर तीन तरह के पर्सोना पर आता है.

पहले वाले को "टेल इट" यानी इसे कह दो कहते हैं. यह मॉन्स्टर हमें कन्वेंस कर लेता है, कि हमेशा सही सल्यूशन रखकर, और लीडिंग अथॉरिटी बन कर ही सिचुएशन को बेहतर किया जा सकता है. इसे, अटेंशन का सेंटर होना और अपनी सलाह को बाकियों से बेहतर बताना बहुत पसंद है.

दूसरे तरह के एडवाइज मॉन्स्टर को "सेव इट" कहते हैं. हम इसके ज्यादा कंट्रोल में होते हैं इसलिए इसे पहचानना मुश्किल होता है. इस तरह के लोग अपना आईडिया बताने के लिए कूदते नहीं हैं लेकिन वह अपने आप में कन्वेंस होते हैं कि उन्हें हर प्रॉब्लम का सल्यूशन मालूम है. इससे भी ज्यादा कि इन्हें लगता है सिर्फ यही सिचुएशन को बेहतर कर सकते हैं, और ऐसा करना अपनी जिम्मेदारी भी समझते हैं.

तीसरी तरह के एडवाइज मॉन्स्टर को "कंट्रोल इट" कहते हैं. इस तरह के इंसान सोचते हैं कि उन्हें हर सिचुएशन पर कंट्रोल रखना चाहिए, चाहे उसके लिए अपना सुकून ही क्यों ना बर्बाद हो जाए. ऐसे लोग बाकियों को यकीन करने लायक नहीं समझते, और सारी चीजें अपने हाथ में ही रखते हैं.

यह समझने के लिए बहुत सोचने की ज़रूरत नहीं है कि कैसे यह इंटरनल एडवाइज मॉन्सटर्स हमारी जिंदगी को लिमिटेड कर देते हैं. ऐसी सोच रखने वाले दूसरों की सलाह से बचते हैं, और दुनिया को एक ही नज़रिए से देखते हैं. यह इंटरनल एडवाइज मॉन्स्टर हमारे कंधे पर बहुत सारी जिम्मेदारियां लाद देते हैं, और हमें ऐसे भ्रम में डालते हैं कि हम दुनिया के सुपर हीरो हैं, जिसका काम सलाह देकर दुनिया को बचाना है. तो हम इन मॉन्स्टर्स से कैसे बच सकते हैं? दरअसल हम इससे नहीं बच सकते, यह हमारी पर्सनालिटी का हिस्सा हैं. यह इमोशन से डील करने में हमारी मदद करने के लिए डिवेलप होते हैं. इनसे बचना अपनी पर्सनालिटी के एक इंपॉर्टेंट हिस्से को नजरअंदाज करना होगा.

अच्छी बात यह है कि हम इनसे बच नहीं सकते, लेकिन इन्हें कंट्रोल कर सकते हैं, और हमारे सलाह के बजाय हमारे साथ काम करने के लिए इन्हें तैयार कर सकते हैं. लेकिन उससे पहले हमें मॉन्सटर्स को अच्छे से जानना होगा.

स्ट्रेसफुल सिचुएशन हमारे एडवाइज मॉन्स्टर को ट्रिगर कर सकती हैं। 

जैसे कार के गुजरने पर कुत्ते भोंकने लगते हैं, वैसे ही कुछ चीजें, हमारे एडवाइज मॉन्स्टर को ज़्यादा एक्टिव कर देती हैं. अपने मॉन्स्टर को कंट्रोल में करने के लिए आपको अपने पर्सनल ट्रिगर्स पहचानने होंगे. कौन से लोग और कैसे सिचुएशन आप की सलाह देने वाली आदत को बंद कर देते हैं?

ऑथर  के साथ ऐसा तब होता है जब वह अपने भाई के साथ होते हैं, ऑथर चाहे जितना माइंडफुल रहने की कोशिश कर ले लेकिन जब वह अपने भाई बहनों के साथ होते हैं तो उनका माइन्ड “कंट्रोल इट परसोना” बाहर आ जाता है और वह सिचुएशन मैनेज करने लगते हैं.

मिसाल के तौर पर अनजाने लोगों के आसपास रहना लोगों के एडवाइज मॉन्स्टर को एक्टिवेट कर सकता है. या फिर ऐसे लोगों के करीब होना जो कम एक्सपीरियंस लगते है. एक बार आप ऐसे लोगों को पहचान लें तो उन सिचुएशंस को पहचानना शुरू कीजिए जिनकी वजह से आपका एडवाइज मॉन्स्टर एक्टिवेट हो जाता है. क्या काम पर आपके अंदर एडवाइस देने की ख्वाहिश जगती है? शायद पॉलीटिकल डिबेट के दौरान? या फिर तब जब आप अपनी पर्सनालिटी में डेप्थ ना महसूस कर रहे हों? यह ट्रिगर यूनिक, और एक इंसान से दूसरे इंसान में अलग होते हैं.

उसके बाद यह नोटिस करना शुरू कीजिए कि ऐसे सिचुएशंस में आप कैसे बिहेव करते हैं. आप क्या करते हैं? क्या आप अपने टीममेट्स को बिन मांगी सलाह देते हैं? या फिर डेट पर होने वाले सन्नाटे को भरकर कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं? यह एक्सरसाइज आपको क्रिंज महसूस करा सकती है, लेकिन खुद के साथ ईमानदार होना बहुत जरूरी है. कुछ खास तरह की नॉलेज आपको इस एडवाइज गिविंग साइकिल से बाहर निकाल सकती है.

एक बार आपको कुछ अच्छे एग्जांपल मिल जाएं, तो आप अपने एडवाइज गिविंग बिहेवियर की कीमत और नतीजों के बारे में सोचना शुरु कर सकते हैं. हम इसलिए सलाह देते रहते हैं क्योंकि इसके बदले हमें छोटे-मोटे रिवॉर्डस मिल जाते हैं. मिसाल के तौर पर, जब आप सल्यूशन देते हैं तो अपने आप को मददगार और स्मार्ट महसूस करते हैं या फिर मीटिंग में डोमिनेट करके आपको यह अपने कंट्रोल में महसूस होती हैं. लेकिन आपको इसकी कीमत भी अदा करनी होगी.

लगातार एडवाइस देना आपके रिलेशनशिप पर असर डाल सकता है, हो सकता है कि आप अकेलेपन और घबराहट के शिकार हो जाएं. खुद को बेहतर बनाने और बदलने के लिए, आपको वक्ति ग्रैटिफिकेशन में नहीं पड़ना चाहिए और अपने आपको फ्यूचर के लिए तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए, जो डर या किसी और वजह से जबरदस्ती सलाह नहीं देता. सोचिए अगर आप सिचुएशन को कंट्रोल करने की कोशिश ना करें या लोगों के साथ किसी खास मकसद से नहीं बल्कि ऐसे ही रहें, तो क्या हो सकता है.

सल्यूशन सामने रखने के बजाय हमें ज़्यादा और बेहतर सवाल करने चाहिए
बच्चों के बारे में कहा जाता है कि वह दुनिया को लेकर सवाल बहुत करते हैं. लेडीबग्स लाल क्यों होती हैं? हम लंच में पीनट बटर सेंडविच क्यों खा रहे हैं? उस क्लासमेट की दो मदर्स क्यों है?

बच्चे फ्रैंक, खुले मिजाज़ के और क्यूरियस होते हैं. बड़े होने के साथ ही हम सवाल पूछने की आर्ट खो देते हैं, इसके बजाय हम सबको अपनी सोच के बारे में  बताना चाहते हैं. अगर हम एक अच्छा लीडर बनना चाहते हैं तो हमें बेसिक्स पर वापस जाना होगा. 

तो हम सही सवाल करना कैसे सीखे? इस मामले में सबसे इंपोर्टेंट सवाल का छोटा और सिंपल होना है आपको यह इंश्योर करना चाहिए की सवाल ओपन एंडेड हो, ताकि सामने वाला अपने हिसाब से जवाब दे सके. मिसाल के तौर पर जब आप पूछते हैं, "तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?" तो सामने वाला इसका जैसे चाहे वैसे जवाब दे सकता है. वही "तुम भी मानोगे..."  या "क्या तुम्हें नहीं लगता.." जैसे फ्रेज़ेज़ से शुरू हुए सवाल असल में स्टेटमेंट हैं जो सवाल जैसे लगते हैं. यह कन्वर्सेशन को खत्म करते हैं.

एक बार हमें पहले सवाल का जवाब मिल जाए तो हमारे अंदर उमड़ रही सलाह देने की ख्वाहिश को दबाकर हमें आगे "और बाकी सब?" जैसे सवाल करने चाहिए. यह सवाल बहुत पावरफुल है क्योंकि यह लोगों को तह में जाकर दबे हुए चैलेंजेज़ को ज़ाहिर करने के लिये फोर्स करता है.

दूसरा फॉलो-अप क्वेश्चन "यहां पर आपको किन चैलेंजेज़ का सामना करना पड़ रहा है?" हो सकता है. यकीनन पहले सवाल का जवाब मिलने के बाद आपके अंदर का एडवाइज मॉन्स्टर जगने लगेगा और आपसे एक परफेक्ट सल्यूशन देने के लिए कहेगा, लेकिन ऐसा मत कीजिए. इसके बजाय सामने वाले से और ज्यादा सवाल कीजिए. उन्हें खुद के और अपने फ्यूचर एक्शन के बारे में सोचने के लिए इंकरेज कीजिए. मिसाल के तौर पर आप उनसे सवाल कर सकते हैं, कि "आप क्या चाहते हैं?" या "अगर आप उसके लिए हां कह रहे हैं, तो किसको ना कहेंगे?"

आप अपनी कन्वर्सेशन खत्म करने के लिए, "यहां आपके लिए सबसे ज्यादा यूज़फुल और वैल्युएबल क्या था?" जैसे सवाल कर सकते हैं. किसी को अपनी प्रॉब्लम का सल्यूशन खुद सोचने में मदद करना लेक्चर देने से कहीं ज्यादा बेहतर है.

बेहतरीन सवाल पूछना शुरू करके आप अपने अंदर लीडर की क्वालिटी बढ़ाते हैं, जिसे क्यूरियोसिटी कहते हैं. दूसरों की बातें सुनकर आप उन्हें खुद के अंदर झांकने और अपना मकसद क्लियर करने में मदद करते हैं.

लोग वल्नरेबल कन्वर्सेशन अवॉइड करने के लिए कुछ भी करने की कोशिश कर सकते हैं। 

सवाल करके आप नोटिस करेंगे कि कुछ इंपॉर्टेंट बदलाव होने लगा है, बजाए अपने एडवांस मॉन्स्टर के द्वारा और हुई किए जाने के, आप कोचिंग हैबिट अडॉप्ट करने लगेंगे. मतलब आप परफेक्ट आंसर देने के बजाए,  चैलेंज पहचानने में दूसरों की मदद करने की कोशिश करेंगे. लेकिन कभी-कभी, बहुत कोशिशों के बावजूद आप ऐसी कन्वर्सेशन में फंस जाएंगे जिसका कोई नतीजा नहीं होता. आप सही क्वेश्चन पूछते हैं लेकिन चैलेंज को नहीं पहचान पाते. तो हो सकता है आप "फॉगी फायर" के शिकार हो गए हों. "फॉगी-फायर" कन्वरसेशनल शॉप है, जिसके धुंध में आप समझ नहीं पाते कि चल क्या रहा है. अच्छी बात यह है कि जितनी जल्दी आप ही ने पहचान सकेंगे और दे जल्दी से छुटकारा मिल जाएगा.

कभी-कभी बातचीत बनावटी नहीं रह जाती है क्योंकि कोई भी वल्नरेबल यानी हेल्पलेस नहीं फील करना चाहता. इसलिए आप ऐसे किसी टॉपिक पर चुप हो जाते हैं जो आप दोनों के लिए कंफर्टेबल हो. चाहे चैलेंजिंग हो या ना हो.

या हो सकता है जिस इंसान को आप कोच कर रहे हो वह अनजाने में आपको असर मुद्दे से भटका रहा हो. मिसाल के तौर पर वह सेशन में आकर के किसी ऐसे शख्स के बारे में खूब बातें करते हैं जो उन्हें इरिटेट करता है. अगर आप ध्यान नहीं देंगे तो आप मिस कर देंगे कि आपको "कोचिंग द घोस्ट" की तरफ डाइवर्ट किया जा रहा है, किसी ऐसे शख्स को एनालाइज करने लगना जो मौजूद ही नहीं है, अगर ऐसा होता है, तो आपको जेंटली अपने फोकस को वापस लाकर सामने वाले से पूछना चाहिए, तो "इससे तुम्हें क्या फर्क पड़ता है?"

या कभी-कभी कोईअन रिलेटेड प्रॉब्लम्स की एक लंबी लिस्ट लेकर सेशन में आता है,  एक फिनोमिना जिसे ऑथर पॉपकॉर्निंग कहते हैं. यहां पर आपको सामने वाले से इंपॉर्टेंट चैलेंजेस सिलेक्ट करने और उसकी बातें करने को कहना चाहिए.

एक और डिस्ट्रक्शन तब होती है जब लोग इमैजिनेशन के आधार पर बातें करने लगते हैं मतलब वह असल मुद्दा ना बता कर ऐसी बातें करते हैं जो सिर्फ सोच का हिस्सा होती हैं, ऑथर इसे "बिग पिक्चर" कहते हैं. या फिर स्टोरी इतना डिटेल में बताना कि समझ ही ना आए, ऑथर इसे "यार्निंग" नाम देते हैं. हम सब एक अच्छी स्टोरी या थ्यूरॉटिकल कन्वर्सेशन इंजॉय करते हैं, लेकिन यह तरीका गलत है क्योंकि यह असल काम से भटका देता है. कोच के तौर पर आपको असल मुद्दे पर फोकस करना, और दोबारा ज़रूरी सवाल उठाना चाहिए.

चैलेंजिंग और वल्नरेबल बातचीत से बचने के लिए लोग "फॉगी फायर" का इस्तेमाल करते हैं. सही सवाल करके आप उन्हें खुद के ब्लॉक को पहचानने और कन्वर्सेशन को अगले लेवल तक ले जाने का चांस देते हैं. हम अगले लेसन में इस बारे में और जानेंगे.

एक असरदार और फायदेमंद कन्वर्सेशन के लिए आपको सामने वाले को सेफ महसूस कराना होगा
इंसानों का दिमाग हमेशा अलर्ट मोड पर रहता है, अपने आसपास खतरे की पॉसिबिलिटीज को स्कैन करता रहता है. जब कुछ हार्मफुल आता हुआ महसूस होता है तो यह हमारे सर्वाइवल मकैनिज्म ट्रिगर कर देता है.

जब हम अनकंफरटेबल कन्वर्सेशन में होते हैं उस दौरान भी ऐसा ही होता है, हमारा दिमाग एक्शन में आकर, सर्वाइवल मोड को अलर्ट कर देता है. नतीजतन हम फाइट मोड में चले जाते और डिफेंसिव हो जाते हैं, या फिर शांत हो जाते हैं और फ्रीज़ मोड में चले जाते हैं.

यकीनन, डिफिकल्ट कन्वर्सेशन की कोशिश के दौरान आप सामने वाले से ऐसा रिएक्शन नहीं चाहते.

किसी को सेफ फील कराने के लिए आप 4 तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं. पहला उनकी तरफ होना है. सहानुभूति रखिए और वह जो भी कहें उनकी बातों में पॉजिटिव लैंग्वेज के साथ हामी भरिये. "मैं" की जगह "हम" शब्द का इस्तेमाल करके सामने वाले को दिखाइए कि आप दोनों प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए एक ही टीम में हैं. अगर सामने वाला सपोर्टेड फील करता है तो उसके डिफेंसिव होने के चांसेस कम हो जाएंगे.

दूसरी चीज आप जो कर सकते हैं वह अपने आप को उसी सिचुएशन ने बता कर के सामने वाले के लिए रिस्पेक्ट दिखा सकते हैं. ह्यूमन रिलेशनशिप में बहुत सारे पावरप्ले होते हैं लोग अपने आप को ऊंचा दिखाते हैं ताकि ज्यादा ताकतवर का फैसला हो सके. एक कोच की तौर पर आपको पावरफुल और कंट्रोलिंग होने की चाहत छोड़नी होगी, और अपने आपको सामने वाले से कमतर जाहिर करना होगा. अपनी इनसिक्योरिटी शेयर कीजिए और उन्हें बताइए कि आप उनके ओपिनियन को खुदके ओपिनियन के बराबर या उससे ज्यादा तरजीह देते हैं.

बराबरी का ट्रीटमेंट उन्हें ऑटोनोमी का एहसास कराएगा, जो सेफ फील करने के लिए तीसरी सबसे जरूरी चीज है. अगर सामने वाले को लगता है कि उसे प्रोसेस के दौरान बोलना चाहिए, तो वह अपने आप को बोलने के लिए आजाद महसूस करेगा.

आखिर में, आपको हमेशा एक्सपेक्टेशन मैनेज करनी चाहिए सामने वाले की बातों को सरप्राइस में नहीं लेना चाहिए नहीं तो वह अपने आप को सिकोड़ लेंगे. सेशन का एक स्ट्रक्चर इंट्रोड्यूस करना उन्हें शांत कर सकता है, जैसा कि अलग-अलग टास्क के लिए टाइम डिसाइड किया जा सकता है.

सपोर्टिव और सेव एनवायरनमेंट क्रिएट करके, आप, उस सर्वाइवल मैकेनिज्म को दरकिनार कर सकते हैं जो सामने वाले को दबा कर रखे हुए हैं, और उन्हें डिमांडिंग और एक्साइटिंग कन्वर्सेशन में इंगेज कर सकते हैं जो उनकी जिंदगी बदल सके.

एक अच्छा कोच बनने के लिए आपको कोचेबल बनना सीखना होगा। 

बहुत निडर क्लाइंबर भी एक बार में माउंट एवरेस्ट नहीं चढ़ पाएगा. वह दो कदम आगे बढ़ने के लिए एक कदम पीछे लेता है, बीच में वह रेस्ट करना और एयर प्रेशर में एडजस्ट करना भी इंश्योर करता है.

एक  एडवाइज मॉन्स्टर को कंट्रोल करना और कोचिंग माइंड सेट डेवलप करना स्लो प्रोसेस होगा. आपको लगेगा कि आप प्रोग्रेस कर रहे हैं, और फिर पुराने रवैया में लौट जायेंगे. यह फ्रस्ट्रेटिंग हो सकता है, लेकिन याद रखिए आप अपनी पूरी जिंदगी की आदत बदल रहे हैं, इसे सही होने में वक्त लगेगा.

कोचिंग माइंडसेट डिवेलप करने का सबसे बेहतरीन तरीका प्रैक्टिस है. कोचिंग कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे बंद कमरे में स्पेशल सेशंस के ज़रिए हासिल किया जा सके. इसके लिए आप दो महत्वपूर्ण तरीकों- सुनने और सवाल करने, का इस्तेमाल अपनी हर कन्वर्सेशन में कर सकते हैं. अपनी फैमिली से उनके दिन के बारे में ओपन-एंडेड सवाल करें, ओपन एंडेड सवाल से मतलब ऐसे सवालों से है जिसका जवाब डिटेल में दिया जा सके. अपने कलीग से पूछें कि आप साथ मिलकर प्रॉब्लम कैसे सॉल्व कर सकते हैं. क्यूरियस रहिए हर मौके को ग्रैप कीजिए और अपना नज़रिया बदलिए.

कोचिंग सिर्फ फेस टू फेस नहीं हो सकती, इसे फोन स्काइप और ज़ूम के जरिए भी अमल में लाया जा सकता है. मैसेज और टेक्स अपनी भी स्किल पर अमल करने का एक बेहतरीन ज़रिया है. अपनी जिंदगी के हर पहलू में कोचिंग माइंडसेट को जगह बनाने दीजिए. लेकिन सीखते रहने के लिए आपको सिर्फ कोचिंग की ही नहीं, बल्कि कोचेबल होने के लिए भी प्रैक्टिस करनी होगी. इसका मतलब अपने काम के लिए फीडबैक मांगना और जब भी मौका मिले अपनी परफॉर्मेंस को बेहतर करना है.

अपने लिए कोई कोच ढूंढना भी इसके मतलब में शामिल है. किसी से ट्रेन्ड होना आपको अपनी रुकावटों को समझने में मदद करेगा. आप कैसे कोचिंग प्रोसेस अवॉइड करने की कोशिश करते हैं क्या चीज में आपको? वल्नरेबल एहसास कराती हैं, और आप उनसे कैसे बचते हैं? इन चीजों की पहचान आपको अपने काम में और इफेक्टिव बनाएगी, क्योंकि इससे आप और एंपैथेटिक बनेंगे और सामने वाले की सिचुएशन को बेहतर समझ सकेंगे.

अपने एडवाइज मॉन्सटर को कंट्रोल में रखने की कोशिश करना एक लाइफ टाइम प्रोसेस है. लेकिन एवरेस्ट चढ़ने जैसा ही इसकी जर्नी भी मंजिल की तरह इंपॉर्टेंट है. तेज़ी से ग्रो ना करने पर बुरा एहसास मत कीजिए, जर्नी का मजा लीजिए और सीखने और ग्रो करने की अपनी ख्वाहिश को सेलिब्रेट कीजिए.

कुल मिलाकर
हममें से ज्यादातर लोग कंपलसरी तौर पर सलाह देने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हमने इस खयाल को अपना लिया है कि किसी भी सिचुएशन में वैल्यू हम तभी एड कर सकते हैं जब हमारे पास एक अच्छा सल्यूशन हो. लेकिन हर वक्त लोगों को यह बताना कि उन्हें क्या करना चाहिए-उल्टा असर कर सकता है, अक्सर सलाह देने की जल्दबाजी में हम सामने वाले की पूरी बात नहीं सुनते. सलाह देने के बजाय, हमें प्रॉबिंग क्वेश्चन करने में महारत हासिल करने की जरूरत है. इस तरीके से हम सामने वाले की प्रॉब्लम को समझ सकते हैं, और उन्हें अपना सल्यूशन खुद ढूंढने के काबिल बना सकते हैं.

 

क्या करें?

चेक कीजिए कि आपकी एडवाइज समझी गई है या नहीं

कभी-कभी आपको एडवाइस देने के लिए कहा जा सकता है जो कि आपके लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि आप एक लंबे वक्त से इससे दूर रहने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन एक थॉटफुल सल्यूशन बिना सोचे समझे दिए गए ओपिनियन से अलग होता है. अगर आपको लगता है कि एडवाइस की जरूरत है तो अपनी सलाह दीजिए लेकिन यह भी साफ कीजिए कि यह एडवाइस सिर्फ इस प्रॉब्लम को लेकर एक नजरिया है. एक बार एडवाइस देने के बाद, सामने वाले से यह कंफर्म करें कि वह इसी की तलाश में था, चेक कीजिए कि आपकी एडवाइज समझी गई है या नहीं.

 

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आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.

अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.

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