The Grid.....

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The Grid

Matt Watkinson
किसी भी बिजनेस को इन टूल्स की मदद से सक्सेसफुल बनाइए

दो लफ्ज़ों में
किताब का नाम ‘द ग्रिड’ है. ये साल 2017 में रिलीज़ हुई है. इस किताब में ऐसे फैक्टर्स के बारे में बात की गई है. जिससे आपका बिजनेस बन भी सकता है और ब्रेक भी हो सकता है. इस किताब में बिजनेस को सक्सेसफुल बनाने के सभी तरीकों के बारे में बात की गई है. इस किताब को पढ़ने के बाद आप बिजनेस आईडिया को समझ भी सकेंगे और अपने फैसलों पर गौर भी करेंगे. साथ ही साथ आपको मार्केट में लगातार हो रहे बदलावों के बारे में भी पता चलेगा. इस किताब की समरी से रूबरू होने के बाद आपको ये भी पता चलेगा कि कैसे इस बदलते हुए मार्केट का फायदा उठाना है? छोटी-छोटी टिप्स से लेकर बड़े-बड़े फैक्टर्स से दो-चार करवाने इस किताब की समरी आपके लिए लेकर आए हैं. किताब के लेखक आपको ये बताना चाहते हैं कि बुक में बताए गए सूत्र आपके बिजनेस के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद साबित होंगे. अगर आप इन प्रिंसिपल्स का यूज़ करेंगे तो फिर आप अपने बिजनेस में आ रही दिक्कतों की जड़ तक पहुँच सकेंगे. 

ये किताब किसके लिए है?
- ऐसे बिजनेस मैन जो बुरे दौर से गुज़र रहे हों 
- ऐसे लोग जिन्हें बिजनेस की बारीकियों को सीखना हो 
- इकॉनोमिक्स के विद्यार्थी 

लेखक के बारे में आप कितना जानते हैं?
‘द ग्रिड’ के लेखक ‘Matt Watkinson’ हैं. ये लेखक होने के साथ ही साथ विश्व विख्यात बिजनेस कन्सल्टेंट भी हैं. “The TenPrinciples Behind Great Customer Experiences” इनकी पहली किताब का नाम था. आपको बता दें कि इस किताब ने बुक ऑफ़ द ईयर का अवॉर्ड भी अपने नाम किया था.

बिजनेस भी इंसानी शरीर की ही तरह होते हैं, उन्हें आपको ट्रीट करते आना चाहिए
क्या आपने कभी स्टार्टअप के बारे में सोचा है? अगर आप सोचें होंगे तो आपके मन में ये सवाल भी आया होगा कि क्या मेरा स्टार्टअप सक्सेस होगा? क्या उसे लोग पसंद करेंगे? कहीं वो फ्लॉप हो गया तो मैं क्या ही करूँगा? इसी के साथ ही साथ अगर आप कोई बिजनेस कर रहे होंगे तो भी आपके मन में सवाल आता ही होगा कि इसे आगे बढ़ाने के लिए मैं क्या करूँ? इसी तरह के कुछ सवाल हैं जो अधिकाँश लोग खुद से हर रोज़ करते हैं? इन सवालों के जवाब भी हर किसी के लिए अलग-अलग हैं. एक कम्पनी के लिए जो जवाब सही होगा वो ज़रूरी नहीं है कि दूसरी कम्पनी के लिए भी सही ही होगा. इसलिए ये कहा गया है कि इस तरह के सवालों के जवाब बड़े स्पेसिफिक होते हैं. लेकिन क्या हो अगर आपको कोई मेथड के बारे में पता चल जाए. जिसे आप अपने बिजनेस में इस्तेमाल कर सकें?अगर आपको भी ऐसी ही मेथड की तलाश है? तो फिर इस किताब की समरी आपको ज़रूर पढ़नी और सुननी चाहिए. 

तो चलिए शुरू करते हैं!

अगर खुले दिमाग के इंसान है और अपने चारों तरफ की घटनाओं में ध्यान रखते हैं. तब आप कठिन सिचुएशन को बेहतर ढ़ंग से हैंडल कर सकते हैं. यहां पर लेखक अपने अनुभव से बताना चाहते हैं कि उन्होंने बिजनेस को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात अपने पर्सनल एक्सपीरियंस से ही सीखी थी. वो सिचुएशन थी उनके घुटनों का दर्द, अब आप सोच रहे होंगे कि घुटनों के दर्द से कोई इंसान बिजनेस कैसे सीख सकता है? 

इसका जवाब ही अब आपको मिलने वाला है. यहां पर लेखक बताते हैं कि वो अपने घुटनों नके दर्द के लिए कई विशेषज्ञों से मिल रहे थे. लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि उन्हें किसी की दवाई फायदा नहीं कर रही है. इस बात को समझने के बाद वो काफी ज्यादा दुखी भी हो गए थे. 

लेकिन इसके पीछे का कारण उन्होंने खुद अनुभव किया. उन्होंने सोचा कि सभी की दवाइयां क्यों फायदा नहीं कर रही हैं. इसके पीछे का रीजन है कि एक्सपर्टस उनके सिम्पटम्स का ईलाज करने की कोशिश कर रहे हैं. कोई भी उनके दर्द के पीछे के कारण का ईलाज नहीं कर रहा है. 

फाइनली, कई महीनों के भीषण दर्द के बाद लेखक ने अपने घुटनों का ऑपरेशन करवा ही लिया. लेकिन सोचने वाली बात ये थी कि इसके बाद भी उन्हें आराम नहीं मिला था. उनके घुटनों ने उनकी ज़िन्दगी को नर्क बना दिया था. 

अब सर्जरी को हुए 6 महीने से ज्यादा बीत चुके थे. अब लेखक ने फैसला किया था कि अब वो इस दर्द के लिए अपने अप्रोच को ही बदल देंगे. उन्होंने फीजीयोथेरेपिस्ट की मदद लेने का फैसला किया था. उन्होंने रोज़ कई घंटे फोम रोलर्स में बिताने लगे, लेकिन इससे भी कुछ ज्यादा फायदा नहीं हुआ था. अब वो अपने आपको उस दर्द के भरोसे ही छोड़ने वाले थे. लेकिन अचानक उनकी मुलाकात स्पोर्ट्स रीहेबिलीटेशन एक्सपर्ट से हुई. उनका नाम निकोले पार्सन था. 

अब बड़ा सवाल ये था कि क्या पार्सन भी बाकी एक्सपर्ट की ही तरह ईलाज करने वाले थे? 

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने बाकियों की तरह बस घुटने को नहीं देखा बल्कि उन्होंने लेखक की पूरी बॉडी की जांच करने का फैसला किया. 

ये उनकी होलिस्टिक अप्रोच ही थी जिसकी वजह से ये पता चला कि असल में दिक्कत कहाँ पर है. दिक्कत शोल्डर की मसल पर थी. जिसके कारण उनके घुटनों के अलाईनमेंट पर एक्स्ट्रा प्रेशर पड़ा करता था. जब लेखक की दिक्कत के पीछे की असली वजह का पता चल गया. तभी उन्हें सही तरीका भी बताया जा सका था. कई महीनों के सही और सटीक उपचार की मदद से लेखक को अपने घुटनों के दर्द से छुटकारा मिल चुका था. अब वो फिर से आसानी से जॉगिंग और रनिंग कर सकते थे. 

यहां पर लेखक इसलिए बोलते हैं कि बिजनेस भी इंसानी शरीर की तरह ही होते हैं. अगर उनमे कहीं भी दिक्कत आ रही है. तो फिर आपको बस सिम्पटम्स का ईलाज नहीं करना है. बल्कि आपको पूरी प्रोसेस को समझने की ज़रूरत है. रीजन का पता लगाना आपका ही काम है. जब एक बार आपको सही रीज़न पता चल जाएगा तो आप उसका सही ईलाज भी ढूंढ़कर ला सकते हैं. 

इसलिए इस चैप्टर के माध्यम से लेखक कहना चाहते हैं कि कई बार आपको अपनी अप्रोच को सही करने की ज़रूरत होती है.

सक्सेसफुल बिजनेस के लिए किन खूबियों की ज़रूरत पड़ती है?
चलिए, ग्रिड की स्केचिंग की शुरुआत करते हैं. इसकी सबसे अच्छी जगह है कि आप अपने गोल्स को तय करिए. किसी भी बिजनेस के लिए तीन मुख्य गोल्स हो सकते हैं. 

सबसे पहला कि हर बिजनेस डिज़ायरेबल होना ही चाहिए. इसको आप इस नज़रिए से भी देख सकते हैं कि अगर आप चाहते हैं कि आपकी कम्पनी तरक्की करे. तो इसके लिए आपको ये कोशिश करनी चाहिए कि लोग आपके प्रोडक्ट्स को पसंद करें. इसी के साथ ही साथ आपको बता दें कि पसंद करना तो दूसरी बात है. पहली बात तो ये है कि लोगों को आपके प्रोडक्ट्स के लिए इंटरेस्ट होना चाहिए. 

दूसरा गोल क्या है? 

वो है ‘प्रॉफिटेबिलीटी’ इसका मतलब बस ये नहीं है कि आपके प्रोडक्ट्स से आपको फायदा हो, इससे मतलब ये भी है कि लोगों को पैसा खर्च करने के बाद भी अच्छा लगे. उन्हें आपकी सर्विस से फायदा होना चाहिए. आपकी सर्विस ऐसी होनी चाहिए कि लोग सामने से चलकर आएं और आपके प्रोडक्ट्स की खरीददारी करें. 

इन दोनों गोल्स के साथ ही साथ आपका एक और गोल होना चाहिए. वो गोल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भी है. वो है लॉन्जेविटी, इस गोल के होने के भी दो मुख्य कारण हैं. पहला ये है कि जितने लंबे समय के लिए आपका बिजनेस चलेगा, उतना ही ज्यादा प्रॉफिट आपकी कंपनी को होगा. दूसरा कारण ये है कि जितने लंबे समय तक आप किसी बिजनेस से जुड़े रहेंगे, उतने ही ज्यादा कस्टमर आपके ऊपर भरोसा कर पायेंगे. इसी के साथ ही साथ आपको ये याद रखना चाहिए कि किसी भी बिजनेस के लिए कस्टमर भगवान की तरह होता है. अगर आप अपने कस्टमर के दिल पर राज़ करना सीख जायेंगे तो फिर वो भी आपके प्रोडक्ट्स के ऊपर भरोसा दिखाएगा. 

इसी के साथ आपको ये तो पता ही होगा कि अगर आपकी कंपनी काफी नई है. तो कस्टमर का भरोसा जीतना उतना ही कठिन है. आपको सबसे पहले इसी कला में माहिर होने की कोशिश करनी चाहिए. 

इसी के साथ आपको ये भी बता दें कि ये तीनों गोल्स आपस में इंटरकनेक्टेड हैं. 

आपके दिमाग में फिर से सवाल ने दौड़ लगाई होगी कि कौन से तीन गोल्स?

डिज़ायरेबिलिटी, प्रॉफिटेबिलिटी और लॉन्ज़ेविटी 

जैसा कि आपको बता दिया गया है कि ये तीनो गोल्स आपस में इंटरकनेक्टेड हैं. इसलिए आप ये नहीं सोच सकते हैं कि आपके एक गोल तो हो लेकिन दूसरा नहीं हो. अगर आपके पास एक गोल होगा तो फिर दूसरा अपने आप आ ही जायेगा. एग्जाम्पल के लिए जो प्रोडक्ट प्रॉफिटेबल नहीं होगा. वो डिज़ायरेबल भी नहीं होगा और ना ही वो लॉन्ज़ेविटी होगा. 

अब लेखक एक व्हील चेयर कंपनी की कहानी बता रहे हैं. उस कंपनी की रिसर्च टीम ने ये पता लगाया था कि मार्केट में वेल डिजाईन और स्लीक व्हील चेयर की ज़रूरत है. इसके लिए कंपनी ने बनाने के आदेश दिए. लेकिन कंपनी ने यहां गलती ये कर दी कि उसने बस एक गोल की तरफ ध्यान दिया था. वो गोल क्या था? क्वालिटी, इसके लिए उन्होंने कार्बन मटेरियल का यूज़ किया. 

अब दिक्कत कहाँ आई? 

उस समय कार्बन बस एक कंपनी बनाती थी. जिसके कारण मटेरियल कॉस्ट काफी ज्यादा था. इसलिए नई व्हील चेयर काफी ज्यादा महंगी निकली. लोगों ने इतनी महंगी व्हील चेयर को नकार दिया और कंपनी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था. 

इसलिए इस उदाहरण से आपको पता चल गया होगा कि बिजनेस के हर स्टेज पर तीनों गोल्स को याद रखना ज़रूरी होता है. इसको याद रखने के लिए आपको तीन फैक्टर्स पर काम करना पड़ता है. 

कौन से हैं वो 3 फैक्टर्स? ये हम अगले चैप्टर्स में समझने की कोशिश करते हैं.

बिजनेस बहुत अनरिलाएबल होते हैं, आपका आर्गेनाइजेशन और मार्केट भी लगातार बदल रहा है
इमेजिन करिए कि समंदर के बीचो बीच एक शिप है. हवाएं भी अपने शबाब पर चल रही हैं. हवाओं के साथ चलना शिप की मजबूरी है. अब उस समय उस शिप के कप्तान को मालुम है कि वो क्या-क्या कर सकता है? लेकिन उसे हवा को ध्यान में रखते हुए अपने फैसले लेने हैं. ये मौसम और हवा उसके कंट्रोल में नहीं है. वो चाहकर भी उन्हें अपने हिसाब से एडजस्ट नहीं कर सकता है. 

ऐसा ही कुछ बिजनेस के साथ भी होता है. कई बार ऐसी सिचुएशन आ जाती हैं. जो आपके कंट्रोल के बाहर होती हैं. आप चाहकर भी उन सिचुएशन को नहीं बदल सकते हैं. लेकिन उस समय भी आपको तीन महत्वपूर्ण फैक्टर्स के ऊपर ध्यान देने की ज़रूरत होती है. 

वो तीन फैक्टर्स क्या हैं? 

कस्टमर, आर्गेनाइजेशन और मार्केट 

ये तीनों फैक्टर्स अन-प्रीडेक्टेबल हैं. इनके बारे में आप कुछ भी पूरे शत प्रतीशत भरोसे नहीं  बता सकते हैं. 

चलिए इस व्याख्या की शुरुआत हम पहले फैक्टर यानी कस्टमर से करते हैं. आपको पता ही होगा कि कस्टमर की ज़रूरतें लगातार बदलती रहती हैं. आपने देखा ही होगा कि जैसे ही पेट्रोल के प्राइज़ बढ़ने लगते हैं. लोग कार खरीदना बंद कर देते हैं. उन्हें किराए की टैक्सी ज्यादा अच्छी लगने लगती है. 

इससे पता चलता है कि कस्टमर का बिहेवियर कितनी जल्दी-जल्दी बदलता रहता है. 

इसी तरह आर्गेनाइजेशन की भी ताकत और कमजोरी लगातार बदलती रहती है. इसी तरह मार्केट के बारे में भी कोई भी कुछ भी नहीं बता सकता है. कई बार अच्छे मार्केट की वजह से स्टार्ट-अप भी बड़ी कंपनी के रूप में दिखने लगते हैं. वहीं कई बार मार्केट इतना खराब हो जाता है कि अच्छे से अच्छा बिजनेस भी खत्म होने की कगार में पहुँच जाता है. 

इसलिए कहा भी जाता है कि आप मार्केट का भरोसा नहीं कर सकते हैं. 

अगर आपने इन तीनो फैक्टर्स को नज़र अंदाज़ कर दिया तो फिर आपके बिजनेस का गिरना तय है. इसलिए आपको कोशिश करनी है कि जितना भी हो सके आपको इन फैक्टर्स को साधते हुए चलना है. 

एग्जाम्पल के लिए हम जर्मन कार कम्पनी Volkswagen के एक कांड के बारे में समझने की कोशिश करते हैं. साल 2015 में कम्पनी ने ये माना था कि उन्होंने डीजल इंजन में सॉफ्टवेयर का यूज़ किया था. उन्होंने इस तकनीक की मदद से एमीशन टेस्ट में चीटिंग की थी. बाद में इसे इंटरनेशनल चीट की तरह भी देखा गया था. 

अब सवाल ये भी उठता है कि कंपनी को चीट क्यों करना पड़ा? 

साल 2000 की शुरुआत में ये फैसला लिया गया था कि हाइब्रिड कार को रिजेक्ट कर दिया जायेगा. अब से सिर्फ क्लीन डीजल कार ही बनेगी. तब कंपनी को ऐसा लगा था कि उनके इंजन अमेरिकन पॉल्यूशन टेस्ट पास नहीं कर पायेंगे. इसलिए उन्होंने चीटिंग की थी. 

लेकिन जब ये बात बाहर आई तो कंपनी को काफी ज्यादा नुकसान भी झेलना पड़ा था. उन्हें अपनी साख बचाने के लिए 18 बिलियन डॉलर इमरजेंसी फंड रिलीज़ करना पड़ा था. 

इस एग्जाम्पल से हमें पता चलता है कि हमें चेंज से हमेशा ही सीखते रहना चाहिए. इसी के साथ ही साथ हमें बदलाव के लिए तैयार भी रहना चाहिए. 

किसी भी प्रोडक्ट की डिज़ायरेबिलिटी कैसे तय होती है?
अब इस चैप्टर में हम अपने गियर्स को बदलने वाले हैं. अब हम देखेंगे कि किसी भी कंपनी को डिज़ायरेबल कैसे बनाया जा सकता है?अब हमारे ‘ग्रिड’ में तीन और एलिमेंट्स जुड़ने वाले हैं. 

चाहत और ज़रूरत, राईवेलरी, ऑफरिंग्स 

शुरू करते हैं चाहत और ज़रूरत से, ये कस्टमर के वैल्यूज और बिलीफ पर डिपेंड करता है. कस्टमर की चाहत और ज़रूरतें लगातार बदलती रहती हैं. 

किसी भी बिजनेस को करने से पहले उस फील्ड के कम्पटीशन के बारे में भी रिसर्च कर लेना चाहिए. इसी एलिमेंट को राईवेलरी भी कहते हैं. इस एलिमेंट के बारे में जितना भी आप पढ़ सकते हैं. ज़रूर पढ़िए, इसी एलिमेंट की मदद से आपको अपने बिजनेस के बारे में भी बेहतर ज्ञान प्राप्त होगा. 

तीसरा फैक्टर जिसका नाम ‘ऑफरिंग’ है. इसका मतलब साफ़ तौर पर यही है कि आप अपने कस्टमर को कैसी सर्विस देते हैं. हमेशा कोशिश करिए कि आपका कस्टमर आपकी सर्विस से बहुत खुश होकर जाए.

इस फैक्टर की मदद से ही आप अपने कस्टमर के साथ बेहतर रिलेशन बना सकते हैं. इसी फैक्टर की मदद से ही आपका प्रोडक्ट और कम्पनी दोनों डिज़ायरेबल बनेंगी. इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपने कस्टमर के नेचर को समझने की कोशिश करियेगा. 

इस आईडिया को कोका कोला ने भी अपने ब्रांड के साथ जोड़ने का काम किया है. उनका कैम्पेन याद है क्या आपको? ‘शेयर अ कोक’ इस कैम्पेन में कंपनी ने अपना ‘लोगो’ ब्रांड साइन तक हटा दिया था. उसकी जगह उन्होंने कस्टमर के नाम लगाने शुरू कर दिए थे. 

इससे फायदा ये हुआ कि कस्टमर को कंपनी के साथ जुड़ाव सा हो गया था. उन्हें लगने लगा था कि कोक तो घर की ही कंपनी है. इस तरह के कैम्पेन से ग्राहक का विश्वास कंपनी की तरफ बहुत ज्यादा हो जाता है. 

इसी को आसान भाषा में ब्रांड लॉयलटी भी कहते हैं. 

इस चैप्टर में आपने अभी तक डिज़ायरेबिलिटी के महत्व के बारे में सुन भी लिया है और पढ़ भी लिया है. 

अब हम प्रॉफिटेबिलिटी की तरफ आगे बढ़ेंगे, लेकिन अगले चैप्टर में, इसलिए जुड़े रहिए इस किताब की समरी के साथ. 

प्रॉफिटेबिलिटी को बढ़ाया कैसे जा सकता है? इसी के साथ रेवेन्यू के महत्त्व को भी समझिये। 

हमने डिज़ायरेबिलिटी को समझ लिया है. अब समय आ गया है कि हम प्रॉफिटेबिलिटी की तरफ आगे बढ़ें. 

इसका बंटवारा भी तीन फैक्टर्स में किया जा सकता है. 

पहले फैक्टर प्राइज़ से शुरू करते हैं. अपने प्रोडक्ट के दाम को बढ़ा देना सबसे आसान तरीका है रेवेन्यू को बढ़ा देने का, कई रिसर्च में भी बताया जा चुका है कि 1 प्रतीशत के दाम में बढ़ोतरी से 11 प्रतीशत रेवेन्यू बढ़ जाता है. 

दूसरा फैक्टर है बारगेनिंग पॉवर. इसको समझने के लिए एप्पल कंपनी का एग्जाम्पल लिया जा सकता है. 

आपको याद होगा कि एप्पल ने म्यूजिक स्ट्रीमिंग सर्विस लॉन्च की थी. उसके लिए उन्होने 3 महीनों तक फ्री सर्विस की भी घोषणा की थी. लेकिन जब टेलर स्विफ्ट ने उन्हें ओपन लेटर लिखकर चेतावनी दी थी कि अब वो अपना एल्बम इस प्लेटफॉर्म में नहीं रिलीज़ करेंगी. तब एप्पल कंपनी ने बारगेनिंग पॉवर का इस्तेमाल करते हुए अपनी पालिसी में ही बदलाव कर दिए थे. 

इसी के साथ हम तीसरे फैक्टर में आते हैं. ये है कि अपने प्रोडक्ट्स के दाम कस्टमर की सहूलियत के हिसाब से तय करिए. 

ओरिजनल रहिए साथ ही साथ अपने कस्टमर बेस का बचाव भी करिए
डिज़ायरेबिलिटी और प्रॉफिटेबिलिटी को कवर करने के बाद अब समय आ गया है. ऐसे फैक्टर्स की तरफ ध्यान देने का जिससे कंपनी की लॉन्जेविटी डिसाइड होती है. अब हम अपनी ग्रिड में तीन एलिमेंट और जोड़ने जा रहे हैं.

कस्टमर बेस, ईमीटेबिलिटी, एडाप्टेबिलिटी 

कस्टमर बेस से शुरुआत करते हैं. ये नियम बहुत ही क्लियर है कि कोई भी कंपनी बिना कस्टमर बेस से नहीं चल सकती है. कंपनी की लॉन्जेविटी कस्टमर बेस के ऊपर ही टिकी हुई रहती है. किसी भी कंपनी का जितना बढ़िया कस्टमर बेस होगा. उसका मुनाफा भी उतना ही बढ़िया होगा. कस्टमर बेस से ही मार्केट में कंपनी की साख भी बनती है. बिजनेस के नज़रिए से एक बात हमेशा याद रखियेगा कि ज़रूरी नहीं है कि हमेशा बेस्ट प्रोडक्ट ही रेस जीतेगा, कई बार वो भी जीतता है जिसे लोग जानते हैं. 

कंपनी की लॉन्ज़ीविटी उसकी एडाप्टबिलिटी पर भी डिपेंड करती है. हमेशा कोशिश करिए कि आप अपने कम्पटीशन से दो कदम आगे ही रहें. ये पहलू आज के दौर में और भी ज्यादा ज़रूरी हो गया है. इसके पीछे कारण साफ़ है कि आज का समय और तकनीक बहुत तेज़ी से बदल रही हैं. कस्टमर का बिहेवियर भी बहुत तेजी से बदल रहा है. इसलिए किसी भी बिजनेस में आगे जाने के लिए आपकी सोच का भी आगे होना बहुत ज़रूरी है. 

आज के समय में इनोवेटिव कम्पनियां बहुत ज्यादा ग्रोथ कर रही हैं. इसलिए हमेशा अपने आईडियाज़ के साथ इनोवेटिव रहने की कोशिश करिए. 

अगर आपको इनोवेशन देखना है तो फ्रेम स्टोर कंपनी के काम को देखने की कोशिश करिए. ये कंपनी फिल्मों के लिए ग्राफ़िक्स का काम करती है. लेकिन समय के साथ इस कंपनी ने अपने काम में भी इनोवेशन लाया है. अब ये ग्राफिक्स के अलावा भी कई फीइल्ड्स में काम कर रही है. 

मतलब साफ़ है कि इनोवेटिव बनिए, स्किल्स सीखते रहिए.

अब हम तीन गोल्स, तीन फैक्टर्स और 9 एलिमेंट्स के बारे में जानते हैं. जिन्हें किसी भी कंपनी में शामिल किया जाना चाहिए. लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हर एलिमेंट की अपनी एक अलग जगह है. इसी के साथ ही साथ उसका अपना एक अलग महत्व भी है. मान लीजिये कोई एक कंपनी है. जिसके पास प्रोडक्ट बहुत बढ़िया हैं. लेकिन उसके प्रोडक्ट को किसी और कंपनी ने भी कॉपी कर लिया है. अब उस कंपनी ने क्या गलती की थी? 

उसने डिज़ायरेबिलिटी पर फोकस किया था लेकिन राईवेलरी को नज़र-अंदाज़ कर दिया था. 

इसलिए प्रोडक्ट्स के साथ ही साथ हमें कस्टमर नीड्स के बारे में भी पता होना बहुत ज़रूरी है. इसके लिए हमने पहले के चैप्टर्स में व्हील चेयर का एग्जाम्पल पढ़ लिया है. 

इतने एलिमेंट्स को समझने के बाद हमें इस बात को भी समझना चाहिए कि एक एलिमेंट्स में बदलाव दूसरे में इफ़ेक्ट करते हैं. 

जैसा कि डेल कंपनी के साथ हुआ था. डेल ने अपना प्रोड्कशन का काम आउट सोर्स किया था. इससे उसकी कॉस्ट तो कम हुई थी. लेकिन उसकी बारगेनिंग पॉवर भी घट गई थी. इसी के साथ ही साथ जो कंपनी उसका प्रोड्कशन देख रही थी. उसी ने उसका कम्पटीशन भी तैयार कर दिया था. उस कंपनी का नाम ‘आसुस’ था. 

जब तक डेल कंपनी कोई कदम उठाती तब तक बहुत देर हो चुकी थी. 

अब तक आपने ग्रिड को सेट कर लिया है. उसके एलिमेंट्स के बारे में भी आपको पता है. अब ये आपके ऊपर है कि आप इस ग्रिड को अपने बिजनेस के लिए कैसे यूज़ करते हैं? अगर आप इन शक्तियों का सही से इस्तेमाल करेंगे तो फिर सक्सेस तो आपकी ही होनी है.

क्या आपको बिजनेस को ग्रिड के साथ मैच करते आते है?
इस किताब के लेखक हाल ही में एक कंपनी के साथ काम कर रहे थे. ये कंपनी सर्विस सेक्टर में काम करती है. लेकिन कंपनी वित्तीय दिक्कतों से जूझ रही है. जब लेखक ने कंपनी के डेटा के ऊपर अपनी नज़र दौड़ाई तो उन्हें कुछ पज़लिंग पैटर्न देखने को मिला. उसमे ये दिखा कि कस्टमर खुश तो थे. लेकिन उन्होंने दोबारा शॉपिंग नहीं की थी. इसी के साथ ही साथ फर्म के पास पोटेंशियल कस्टमर भी थे. लेकिन वो पर्चेज़ नहीं कर रहे थे. इसके पीछे कारण क्या था?लेखक ने समझा कि कई बार आपको गलतियों को समझने के लिए एक अलग ही नज़रिए की ज़रूरत पड़ती है. लेखक ने ये भी नोटिस किया कि कंपनी ने कस्टमर को कभी वापस आने के लिए कहा ही नहीं, जिसे रिटर्न सर्विस भी कहा जाता है. इससे एक सीख और मिलती है कि कभी भी खुद के ऊपर अतिविश्वास मत करिए. दुनिया और कस्टमर बहुत जल्दी बदलते हैं. इसलिए हमेशा अपनी सर्विस को दुरुस्त रखने की कोशिश करिए. 

कस्टमर से हेल्दी कम्युनिकेशन भी बनाकर रखने की कोशिश करिए. लेखक ने कंपनी को सलाह दी कि वो अपने प्रपोजल को और बेहतर करने की कोशिश करें, इसी के साथ ही साथ वो कस्टमर से इंटरेक्ट करने की भी कोशिश करें. अगर आपका बिजनेस भी स्ट्रगल कर रहा है तो फिर आप भी इन ग्रिड्स का इस्तेमाल करके खुद के बिजनेस में बदलाव ला सकते हैं.

कुल मिलाकर
कई बार सिचुएशन और चीज़ें वैसी नहीं होती हैं. जैसी वो हमें नज़र आ रही होती हैं. इसलिए हमेशा हमें अपने चश्में के ग्लास को साफ़ करते रहना चाहिए. मतलब अपने नज़रिए को बड़ा करना भी आपका ही काम है. 

 

क्या करें?

हमेशा अपने प्रोडक्ट की प्राइज़ को ध्यान से सेट करें, वो कस्टमर की जेब को सूट करना चाहिए. कस्टमर को ये मतलब नहीं है कि आपके प्रोडक्ट की कॉस्टिंग क्या है? इसलिए उनके जेब का ख्याल रखना भी आपका ही काम है. 

 

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