Steve Peters
अत्मविश्वास और सफलता के साथ खुशियों तक पहुँचने की राह
दो लफ्जों में
2012 में लिखी इस किताब के जरिये लेखक इंसानी दिमाग की जटिल समस्या को सुलझाने की कोशिश में है. इस किताब में दिए गए सबकों के जरिये आप जान सकते हैं क्यूँ आपका दिमाग पल में शोला तो अगल हीं पल शीतल हो जाता है. इस पहेली को सुलझाने के साथ हीं साथ लेखक नें विषम परिस्थियों में अपना धैर्य बनाये रखने का रास्ता भी सुझाया है.
ये किताब किसके लिए है?
मनोचिकित्सक और इस क्षेत्र में रूचि रखने वाले लोगों के लिए.
जो अपने गुस्से पर काबू पाकर अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स को बढ़ाना चाहते है.
जो आपके कार्य क्षेत्र में और अधिक प्रगती चाहते है.
लेखक के बारे में
प्रोफेसर स्टीव पीटर्स ब्रिटेन के एक जाने माने मनोचिकित्सक और लेखक हैं. इंसानी दिमाग की क्षमता और उसके सही इस्तेमाल पर आधारित अपने प्रेरक भाषणों के लिए वो काफी मशहूर हैं. उन्होंने कई नामचीन बिज़नेस मैन और खिलाडियों को सही समय पर सही फैसला लेने का प्रशिक्षण दिया है. उनके द्वारा लिखी किताबें हर क्षेत्र में सफलता की कुंजी बनने में सक्षम हैं.
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
हम सदियों से यह बात सुनते आ रहे हैं कि बंदर खास कर चिम्पांजी हमारे पूर्वज हैं. अब तो विज्ञान ने भी इस बात को स्वीकार लिया है कि चिम्पाजीयों से हीं मनाव जाती का जन्म हुआ है. इसलिए हमारे दिमाग की बनावट और कार्य करने का तरीका काफी हद तक उनसे
मिलता जुलता है. लेखक ने इस किताब के जरिये ये दर्शाने की कोशिश की है कि क्यूँ हमारे दिमाग में दो बिलकुल हीं विपरीत धाराओं और विचारों का प्रवाह चलता रहता है और कैसे हम आज भी अपने पूर्वज चिंपांज़ीयों की तरह हीं सोचते हैं.
- इंसानी व्यवहार के चार तरीके कौनसे हैं और उन्हें दिमाग का कौनसा हिस्सा संचालित करता है?
- कैसे और कब हमारा दिमाग किसी चिम्पंजी जैसा व्यवहार करने लगता है?
- हमारे दिमाग का वो कौनसा हिस्सा है जो कि कंप्यूटर की तरह सभी पुरानी यादों को संजो के रखता है?
ब्रह्माण्ड जैसे विशाल हमारे मस्तिष्क में दो विपरीत मानसिकताएं कार्यरत है.
अपनी ज़िन्दगी में हम रोज़ न जाने कितने लोगों से मिलते है कितने अनुभवों से गुजरते हैं, इसलिए हम में से ज्यादातर लोग इस बात को भलीभांति समझ सकते हैं कि हमारे दिमाग में मुख्यतः दो प्रकार की मानसिकताएं काम करती हैं एक वो जो हमारे मस्तिस्क के फ्रंटल पार्ट (frontal पार्ट) में स्थित है और चूँकि वो हिस्सा तथ्यों और सबूतों के मद्देनज़र काम करता है इसलिए वो हमें इंसान होने का आभास कराती है, वहीँ दूसरी ओर लिम्बिक (limbic) हिस्सा हमारे पूर्वजों की देन है इसलिए वो हिस्सा आज भी हमारे पूर्वज चिंपांज़ीयों की तरह सोचता है इसकी कर्यप्रणाली भावनाओं और परिस्थितियों पर निर्भर करती है.
आमतौर पर इन दोनों हिस्सों में कशमकश चलती रहती है, लेकिन चूँकि हमारा लिम्बिक हिस्सा सदियों से पीढ़ी डर पीढ़ी चला आ रहा है इसलिए वो ज्यादा तेज़ और बेहतर तरीके से काम कर सकता है. यही कारण है कि ज्यादातर हमारी गतिविधयां भावनाओं के वशीभूत हीं होती हैं. हम चाहे जितन भी सोच लें कि अगली बार से सोच समझ कर काम करेंगे लेकिन जब परिस्थिति सामने आती है तो हम क्या कर बैठते हैं ये हमारे वश में नहीं होता.
आईये इस बात को और बेहतर तरीके से समझने के लिए इस उदाहरण को देखते हैं, मान लें ऑफिस में आपके बॉस नें किसी गलतफ़हमी के कारण आपको खरीखोटी सुना दी हो. बाद में जब उसे सच्चाई का पता चला तो उसनें आपको बुल कर आपसे बात की और इस घटना को यहीं रफादफा करने को कहा. ऐसी परिस्थिति में आपका इंसानी सोच वाला हिस्सा आपको कहेगा ठीक है उन्होंने अपनी गलती मानी बात ख़तम, वहीँ दूसरी ओर लिम्बिक हिस्से के हिसाब से ये सोच आएगी कि ऐसे कैसे बात ख़तम मेरी बेज्ज़ती हुई बॉस हमेशा ऐसा मेरे साथ हीं करते हैं और ऐसी हीं बातें सोच कर आप इस घटना को बॉस से नफरत का एक कारण बना लेंगे.
तो जैसा कि हमने देखा कि हमारे दिमाग में कैसी उथल-पुथल चलती है और कौनसा हिस्सा जीतेगा इसपर हमारा सारा व्यवहार निर्भर करता है. तो आगे हम देखेंगे कि कैसे हम दिमाग के विभिन्न हिस्सों का सही समय पर सही इस्तेमाल करना सीख सकते हैं.
अपनी अंदरूनी भावनाओं को बाहर आने दें ताकी वो आपके व्यक्तित्व पर हावी न हो जाएँ.
इस सबक में लेखक नें ये बताने का प्रयास किया है कि कैसे हम अपने दिमाग के तर्कहीन हिस्से पर काबू पाकर अपने व्यवहार को और अधिक तार्किक और इंसानी बना सकते हैं. अक्सर कहा जाता है कि हम किसी चीज़ को जितना दबाने का प्रयास करते हैं वो उतना हीं विक्राल रूप लेकर सामने आ जाती है. इसी तरह अगर हम अपने दिमाग के लिम्बिक हिस्से पर काबू पाना चाहते हैं तो इसके लिए इसकी सोच को दबाने का प्रयास न करें बल्कि उसे अपनी भावना खुलकर व्यक्त करने दें. लेखक का कहना है कि हम अपने दिमाग को सही तरीके से काबू करने का जितना अधिक प्रयास करेंगे उतना हीं संतुलित व्यवहार कर पाएंगे.
एक्जाम्पल के लिए मान लीजिये आप किसी भीड़ भाड़ वाले इलाके से गुजर रहे हैं और एक व्यक्ति जल्दबाजी में आपसे आकर टकरा जाता है जिसके कारण आपके हाथ में पकड़ा सामान छुट कर गिर जाता है. अब ऐसे में आपके दिमाग का लिम्बिक हिस्सा उस व्यक्ति को खूब भला बुरा कहना चाहेगा लेकिन अगर आप उसकी भावना को दबा कर चुप रह जाएँगे तो हो सकता है बाद में सारा दिन आपको बुरा बुरा महसूस होता रहे. इसलिए ऐसी परिस्तिथि में आप किसी ऐसे स्थान पर चले जायें जहाँ आप अकेले हों मसलन बाथरूम
या सड़क का ऐसा किनारा जहाँ कोई आ जा न रहा हो, वहां जाकर आप वो हर बात बोल दें जो आपका दिमाग उस व्यक्ति को कहना चाहता था, हो सकता है इसमें आपको काफी समय लगे लेकिन चाहे जितना समय लगे इसे करें जरुर क्यूंकि ऐसा करके आपको काफी हल्का महसूस होगा. लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि उसी समय उस व्यक्ति के ऊपर हीं गुस्सा दिखाना ना शुरू कर दें वरना स्थति बिगड़ सकती है.
अब आप समझ गए होंगे कि आपको कैसे अपने लिम्बिक हिस्से पर काबू पाना है लेकिन उस से पहले ये जानना भी जरुरी है कि आखिर किस परिस्थति में आपके दिमाग का कौनसा हिस्सा काम कर रहा है. इसके लिए लेखक नें एक आसान सा तरीका बाते है, खुद से ये सवाल पूछें कि जो मै कर रहा हूँ क्या सच में मैं ऐसा करना चाहता हूँ, अगर आपको इसका जवाब न में मिले तो समझ जायें कि आपके अन्दर का बन्दर बाहर आ गया है और आपको इसे बहला फुसला कर रोकना है.
भावनात्मक और विचारक हिस्से के अलावा एक स्वचालित हिस्सा भी है हमारे मस्तिष्क में.
भावनात्मक लिम्बिक हिस्सा और विचारक फ्रंटल हिस्से के अलवा हमारे मस्तिस्क में एक तीसरा हिस्सा भी है जिसे हम कंप्यूटर का नाम दे सकते हैं, क्यूंकि ये हिस्सा हमारे रोज़मर्रा की स्वचालित गतिविधियों को अंजाम देता है. सरल भाषा में कहा जाए तो ये हिस्सा हमारी जिंदगी में मिले अनुभवों के अनुसार हमारे व्यवहार को संचालित करती है.
इस हिस्से की खासियत है कि अगर ये हिस्सा चाहे तो बाकि दोनों हिस्सों को चुप करवा सकता है. जैसे आप किसी सरकारी दफ्तर में गए हैं और अपने काम के लिए लम्बी लाइन में घंटों से लगे हैं, ऐसे में एक व्यक्ति आकर बीच में लग जाता है ऐसी परिस्थिति में आपका विचारक दिमाग आपको कहेगा कि उसे आराम से लाइन में आने के लिए समझायें वहीँ आपके अन्दर का बन्दर यानी लिम्बिक हिस्से का मन उस व्यक्ति से लड़ने का करेगा, ऐसे में अगर आपके कंप्यूटर नें ये सोच लिया कि दुनिया तो जुगाड़ वालों की है शायद मुझे यहाँ चुप रहना चाहिए तो बाकी दोनों हिस्से खुद ब खुद दब जायेंगे. हमने हमेशा से अपने जीवन में यही देखा है कि कुछ लोग जुगाड़ से आगे बढ़ जाते हैं और ऐसे में चुप रहना हीं
बेहतर होता है, उसी पुराने अनुभव को लेकर दिमाग का कंप्यूटर रुपी ये हिस्सा बाकि दोनों हिस्सों को चुप करवा देगा.
कभी कभी स्वचालित हिस्सा हमारे लिए बहुत मददगार साबित होता है जैसे रोज़मर्रा के कई कार्यो में हमें ज्यादा सोचना नहीं पड़ता क्यूंकि ये स्वचालित कंप्यूटर खुद हीं सब करता है जैसे खाना खाना, नहाना गाड़ी चलाना आदि. लेकिन कई बार हमारे व्यवहार में स्वचालित हिस्से का काम करना हमारे लिए खतरनाक साबित होता है.
ऐसा इसलिए क्यूंकि ये कंप्यूटर जो एक बार डाटा फीड कर लेता है उसे भूलता नहीं जैसे कि एक छोटे बच्चे को अगर हम लगातार ये एहसास करवाते रहे कि वो दूसरों से कम है और वो ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर सकता तो सच में उसका पूरा भविष्य इसी डाटा के हिसाब से चलता रहेगा, उसे कभी ऊपर उठने का मौका हीं नहीं मिलेगा.
हमारे दिमाग के कंप्यूटराइज्ड हिस्से में बहुत से नकारात्मक सोच रुपी शैतान रहते हैं.
आपने सुना हीं होगा कि अगर हम दुनिया में बुराईयों को ढूंढने चलें तो सबसे अधिक बुराईयाँ हमें अपने हीं अन्दर मिलगी. ये बुराईयाँ कुछ और नहीं बल्कि हमारे मस्तिष्क के कंप्यूटराइज्ड हिस्से में बसे नकारात्मक सोच से आती है. ये सोच एक शैतान बन कर हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है.
उदहारण स्वरुप देखें तो अगर किसी बच्चे को बचपन में नकारात्मक माहौल मिला हो तो उसके अन्दर हीन भावना आ जाती है, उसे लगने लगता है कि वो बाकियों से कम है. ये सोच आगे चलकर भी उसे जीवन में कभी सफलता नहीं प्राप्त करने देती क्यूंकि कोई भी कदम उठाने में वो डरता है. यहाँ तक कि हमारे दिमाग का समझदार इंसानी हिस्सा और भावनात्मक लिम्बिक हिस्सा दोनों हीं कंप्यूटर की बात सुनते हैं अगर वहीँ नकारात्मक सोच रुपी शैतान बैठा हो तो बाकि दोनों हिस्से खुद ब खुद उसके इशारों पर चलने लगते हैं.
तो सवाल ये उठता है कि आखिर हम इस शैतान पर काबू कैसे पा सकते हैं, इसका जवाब देते हुए लेखक ने बताया है कि जब भी आपके दिमाग का ये हिस्सा किसी नकारात्मक भावना का संचालन कर आपको आगे बढ़ने से रोके तो आप उस नकारात्मक भावना को सकारात्मक और प्रगतिशील सोच के साथ बदल दें और बार बार ऐसा
करने से आपके दिमाग के कंप्यूटर में वाही सकारात्मक डाटा फीड हो जाएगा और फिर आपका दिमाग उसी के अनुसार कार्य करना शुरू कर देगा. इसे करने में आपको थोडा समय जरुर लग सकता है क्यूंकि एक बार जो बात दिमाग में बैठ जाती है उसे बदलना थोडा मुश्किल होता है, लेकिन यकीन मानें ये तरीका सौ फीसद कारगर है.
हमारा मस्तिष्क अक्सर ये भूल जाता है कि हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है.
हम अक्सर इसी सोच में जीते हैं कि दुनिया में हर व्यक्ति का दिमाग एक जैसा है वो जो भी अलग करता है उसका सीधा तालुक्क उसके जीवन में हुए अनुभवों से होता है लेकिन असल में दुनिया के हर इंसान का दिमाग और उसके सोचने की शक्ति अलग है क्यूंकि जिस प्रकार हमारे घरों में बिजली तारें जुडी होती हैं उसी प्रकार दिमाग में भी नसों की तारें बिछी हुई होती हैं और हर व्यक्ति के दिमाग में इन तारों का अपना एक अलग नेटवर्क होता है.
इसलिए लेखक का कहना है कि जब तक हम इस सत्य को अपना नहीं लेते तब तक हम इस दुनिया को भी अपना नहीं सकते और दुनिया को अपनाये बिना सुख और शांति प्राप्त करना बहुत मुश्किल है. लेखक नें अपनी ज़िन्दगी का एक उदहारण देते हुए बताया है कि एक बार उनके पास एक व्यक्ति अपने 18 साल के बेटे को लेकर आया जिसे औटिस्म नाम की दिमागी बीमारी थी, उसके व्यवहार से उसके परिवार के लोग बहुत परेशान थे जब लेखक ने उन्हें उसकी बीमारी के बारे में बताया और कहा कि उसे उसी की सोच के हिसाब से समझा कर ठीक किया जा सकता है फिर उसके परिवार को उसके साथ कभी कोई दिक्कत नहीं आई इस उदहारण से हम समझ सकते हैं कि जब तक हम इस बात को नहीं मान लेंगे कि सामने वाले का दिमाग हमसे अलग है इसलिए वो अलग सोच रखता है तब तक हम उसके साथ कोई भी रिश्ता कायम नहीं कर सकते
लेखक का कहना है कि अपने व्यवहार के माध्यम से अगर हम अपने जीवन में सफलता और रिश्तों में मधुरता हासिल करना चाहते हैं तो इन तीन बातों को याद रखना चाहिए.
पहली बात ये कि किसी को जाने बिना उसके बारे में कोई राय न बनाएं, अगर कोई व्यक्ति चुप चुप रहता है तो जरुरी नहीं कि वो घमंडी है, हो सकता है उसके जीवन में ऐसी कोई घटना हुई हो जिसके कारण उसका मन दुखी हो इसलिए वो चुप है.
दूसरी बात कि किसी से हद से ज्यादा उम्मीदें और आशाएं न रखें क्यूंकि गलतियाँ सबसे होती है कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता इसलिए, ज्यादा आशाएं बस निराशा का घर होती हैं.तीसरी बात ये कि जो व्यक्ति जैसा है उसे वैसा हीं स्वीकार करें हो सकता है उसकी सोच आपसे अलग हो लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं वो गलत है.
बिना उत्तेजित हुए अपनी बात लोगों के सामने रखें यही सरल व्यवहार की कुंजी है.
दूसरों की बातों का गलत मतलब निकाल लेना बहुत हीं आसान है, लेकिन जब कोई आपको गलत समझे तो बहुत तकलीफ होती है इसलिए किसी के बारे में राय बनाये बिना पहले उसे अपनी बात रखने का मौका दें.
लेखक का कहना है कि इस दुनिया में 4 किस्म के वार्तालाप संभव हैं पहले में एक व्यक्ति का इंसानी हिस्सा दुसरे के इंसानी हिस्से से बात करता है, दुसरे किस्म में एक का इंसानी हिस्सा दुसरे के अन्दर के बन्दर रुपी लिम्बिक्स हिस्से से डील करता है, तीसरे में पहले का बन्दर दुसरे के इंसानी हिस्से से डील करता है और आखरी और सबसे भयावह स्थिति तो तब बनती है जब एक का बन्दर दुसरे के बन्दर से बात करता है. चौथी स्तिथि में आप खुद हीं अंदाज़ा लगा सकते हैं कि किस प्रकार का उत्तेजित माहौल बनेगा ऐसी स्थितियों में बात रिश्ते टूटने और मरने-मारने तक आ जाती है.
चूँकि आप इस बात को समझ चुके हैं कि दुनिया में किसी भी दो व्यक्तियों का दिमाग एक जैसा नहीं हो सकता इसलिए दुनिया में सबको अपनी बात प्यार से समझा पाना थोडा मुश्किल है, लेकिन लेखक कहते हैं कि अगर आप सच्चे दिल से प्रयास करते रहेंगे तो आपका मन कभी विचलित नहीं होगा और आप कभी भी सोचे समझे बिना व्यवहार नहीं करेंगे.
अब गौतम बुद्ध को हीं ले लीजिये एक बार किसी व्यक्ति ने भरी सभा में गौतम बुद्ध को एक थप्पड़ मार दिया लेकिन इसके बाद भी गौतम बुद्ध उसे देख कर मुस्कुराते रहे. उनकी मुस्कराहट ने उस व्यक्ति के अन्दर के बन्दर रुपी शैतान को शांत कर इंसानी दिमाग
से सोचने पर मजबूर. फिर उसे एहसास हुआ कि आखिर उसने ये गलत काम क्यूँ किया फिर क्या था वो व्यक्ति गौतम बुद्ध के पैरों में गिर का माफ़ी मांगने लगा.
इस उदहारण से हम ये समझ सकते हैं कि हमारा सही व्यवहार ना सिर्फ हमारी बल्कि दूसरों की सोच को भी प्रभावित करता है इसलिए अगली बार जब भी आप किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाएँ जब सामने वाला व्यक्ति आपके ऊपर अपने लिम्बिक हिस्से के वशीभूत होकर व्यवहार करे तो शांत मन से उसे समझाएं अपनी बात रखें और अगर वो ना मानने की स्थिति में लगे तो चुपचाप वहाँ से चले जायें, आपके व्यवहार से देर-सवेर आपकी बात उसे समझ आ हीं जायेगी.
मंजिल से पहले रास्ते का आनंद लेना भी सीखें
इस दुनिया में खुश रहने की तमन्ना किसे नहीं होती, लेकिन बहुत कम लोग खुश रह पाते हैं, इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि खुश रहने के लिए लोगों ने जरूरतों की इतनी लम्बी सूची बना रखी है कि उन जरूरतों तक पहुँचते-पहुंचते हमारे दिमाग को खुश रहने की आदत हीं नहीं रह जाती.
आप इस बात को समझ हीं गए होंगे कि हमारा दिमाग वही सीखता है जो हम उसे सिखाते हैं इसलिए अगर आपने अपना आधे से ज्यादा जीवन अपनी आशाओं के पीछे भागने में बिताया ही तो आपके दिमाग के कंप्यूटर वाले हिस्से को बस वैसा हीं रहने की आदत हो जाएगी वो भूल हीं जाएगा कि खुश रहना और जीत का जश्न मनाना कैसा होता है.
मान लें किसी व्यक्ति का लक्ष्य एक बड़ा वैज्ञानिक बनने का हो और वो उसके लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा हो उसने जीवन का हर पल बस उस लक्ष्य के नाम कर दिया हो, उसने एक के बाद एक हर परीक्षा में बेतरीन प्रदर्शन किया. लेकिन अंत में जब वो देश का सबसे जाना माना वैज्ञानिक बन गया तब उसे वो ख़ुशी हासिल नहीं हुई ना हीं उसने अपनी कामयाबी का जश्न मनाया. क्या आप सोच सकते हैं कि जिस लक्ष्य को पाने में उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी लगा दी जब वो उसके सामने था तो वो उसका जश्न क्यूँ नहीं मना पाया? ऐसा इसलिए क्यूंकि उसनें इससे पहले कभी जश्न मनाना सिखाया हीं नहीं अपने
दिमाग को इसलिए जैसे उसका एक लक्ष्य पूरा हुआ उसके दिमाग नें कोई दूसरा लक्ष्य तैयार कर दिया होगा जैसे कोई बहुत बड़ा शोध करने का या और कुछ.
इसलिए लेखक बस इतना हीं कहना चाहते हैं कि चाहे अपना लक्ष्य कितना हीं बड़ा क्यूँ ना रहे लेकिन उसके रास्ते में आने वाली हर छोटी बड़ी उपलब्धि का जश्न मनाएं ताकि आपको खुश रहना आ जाये और यकीन मानें ऐसा करने से अपने लक्ष्य पर पहुंचने की उर्जा और अधिक बढ़ जाएगी. इसलिए मंजिल से पहले रास्तों का आनंद लें फिर देखें मंजिल कब मिल जाएगी ये पता हीं नहीं चलेगा.
कुल मिला कर
हमारा व्यवहार हमारे दिमाग के कई हिस्सों की साझेदारी का मिला जुला रूप होता है. कभी हम विचारक और समझदार हिस्से से काम लेते है तो कभी भावनात्मक हिस्से से और कभी कभी तो आटोमेटिक हिस्सा हमें बिना सोचे समझे व्यवहार करने पर मजबूर कर देता है. इसलिए एक संतुलित व्यवहार के लिए अपने हर एक हिस्से पर काबू पाना जरुरी है क्यूंकि अच्छा व्यवहार हीं सफलता और खुशियों की कुंजी है.
अपना जीवन साथी ढूंडते समय उसके विचारक और भावनात्मक दोनों पहलुओं पर विचार कर लें.
हर इंसान के व्यक्तित्व के दो पहलु होते हैं इसलिए किसी को अपना जीवन साथी बनाने से पहले उसके दोनों पहलुओं को परख लें ताकि आगे जाकर आपके रिश्ते को आपके अन्दर के बन्दर की नज़र न लगे. कोशिश ये करें की अगर आप लिम्बिक हिस्से से ज्यादा काम लेते हैं तो आपका साथी विचारक फ्रंटल हिस्से वाला होना चाहिए ताकी वो आपको समझ सके.