Just Listen

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Just Listen

Mark Goulston
किसी भी व्यक्ति तक अपनी बात पहुँचाने का राज़ जानें।

दो लफ्जों में 
जस्ट लिसन (Just Listen) में हम देखेंगे कि किस तरह से आप किसी व्यक्ति को समझ सकते हैं या फिर उसे अपनी बात समझा सकते हैं। यह किताब हमें वो साइंटिफिक बातें बताती है जिसकी मदद से हम समझ सकते हैं कि हमारा दिमाग और भावनाएं किस तरह से काम करते हैं और किस तरह से हम उनका इस्तेमाल कर के लोगों को समझ सकते हैं।

यह किसके लिए है 
-वे जो दूसरों को समझने की कला सीखना चाहते हैं ।
-वे जो अपने रिश्तों को मजबूत बनाना चाहते हैं।
-वे जो अच्छे माता पिता बनना चाहते हैं।

लेखक के बारे में 
मार्क गोउल्सटन ( Mark Goulston ) एक मनोवैज्ञानिक हैं जो कि बहुत सी संस्थाओं के सलाहकार हैं। उनकी किताब जस्ट लिसन अमेजॅान की नंबर वन किताबों में से एक है और अब तक 14 भाषाओं में ट्रांस्लेट की जा चुकी है। वे अपनी इसी किताब के लिए जानें जाते हैं और उनकी यह किताब म्यूनिच और शांघाई जैसे शहरों में नंबर वन पर रह चुकी है।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
शायद आपके साथ कभी ऐसा हुआ होगा कि आप अपने किसी खास दोस्त या परिवार के किसी सदस्य से बात कर रहे होते हैं, लेकिन वो व्यक्ति आपकी बात नहीं सुनता। आपको शायद लगा होगा कि आप उसे जितना ज्यादा समझाते हैं, वो उतना ज्यादा गलत काम करता है। ऐसे में शायद गलती उस व्यक्ति की नहीं, बल्कि आपके समझाने के तरीके में है।

आज के वक्त में टेक्नोलॉजी हमें पास लाने की बजाय दूर लेकर जा रही है। हम दूसरों से हर वक्त जुड़े तो रहते हैं, लेकिन हम अपनी भावनाओं को नहीं जोड़ पाते, जिससे आज के वक्त में रिश्ते कमजोर हो रहे हैं। दूसरों को समझना जरूरी इसलिए है क्योंकि इसकी मदद से हम अपनी जिन्दगी में अच्छे  बना कर खुश रह पाते हैं। कुछ लोगों के बिजनेस के लिए भी यह जरूरी है कि वे लोगों को अच्छे से समझें।

यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से हम लोगों को अच्छे से समझ सकते हैं। यह किताब हमें सुनने की ताकत के बारे में बताती है।

 

-लोग आप से अपनी परेशानी क्यों बांटते हैं।

-सामने वाले को अपनी बात समझाने के लिए उसे समझना क्यों जरूरी है।

-किस तरह से आप किसी को समझ सकते हैं।

किसी को अपनी बात समझाने के लिए सबसे पहले उसकी बात समझना बहुत जरूरी है।
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप अपने किसी खास दोस्त को कुछ समझा रहे हों,लेकिन वो बार बार आपकी बात को काट दे रहा हो? या कभी ऐसा हुआ हो कि आप किसी की बात सुन रहे हों लेकिन आप उसे बीच में काट दे रहे हों? 

तनाव के वक्त में आप जब किसी से बात करते हैं और वो व्यक्ति आपकी बात नहीं सुनता तो आप और तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में सुनने वाले को लगता है कि सामने वाला उससे अपनी परेशानी बता कर उससे उसका हल पूछ रहा है, लेकिन असल में अपनी परेशानी बाँटने वाले को हल नहीं चाहिए, उसे चाहिए कि कोई सिर्फ उसकी बात को सुने और उसका दर्द बाँटे।

जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करने के लिए किसी बिल्डिंग पर चढ़ जाता है तो लोग उसे तरह तरह के समाधान बताने लगते हैं। लोग उसे बताते हैं कि उसकी जिन्दगी अभी खत्म नहीं हुई है और वो एक नई शुरुआत कर सकता है। वे उससे कहते हैं कि आत्महत्या करना एक अपराध है। ऐसे हालात में उस व्यक्ति को लगने लगता है कि यहाँ पर कोई उसे नहीं सुन रहा है, सब अपनी ही बात किए जा रहे हैं और वो भी दूसरों के लिए अपने कान बंद कर के कूद जाता है।

लेकिन अगर यहाँ पर कोई उससे आकर कहता कि - मुझे पता है तुम्हारे साथ कुछ इतना बुरा हुआ है कि तुम्हें इसके अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा। कोई बात नहीं, हम इसके बारे में में बात कर सकते हैं। हमें बताओ क्या हुआ।

इस तरह के शब्द उसे बोलने के लिए मजबूर करते हैं। वो अपना दर्द बाँटता है जिससे उसका दर्द कम होता है और वो बिल्डिंग से नीचे उतर जाता है।

जब भी आपको किसी व्यक्ति को मनाना हो, तो सबसे पहले उसके हालात को समझने की कोशिश कीजिए, उसकी नजर से सब कुछ देखने की कोशिश कीजिए। जब आप ऐसा करते हैं तो वो भी ऐसा ही करने की कोशिश करता है और आप अपनी बात आसानी से उसे समझा पाते हैं।

मिरर न्यूरान्स की वजह से हम दूसरों की नकल करते हैं।
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ कि आप मूवी में किसी को रोते हुए देखते हैं या फिर किसी को मार खाते हुए देखते हैं तो आपको भी अनजाने उदासी महसूस होने लगती है। बहुत से लोग सामने वाले की तरह रोने लगते हैं या वे कुछ इस तरह के भाव अपने चेहरे पर लाते हैं जिससे यह लगता है कि उन्हें भी उसका दर्द महसूस हो रहा हो।

हमारे साथ ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे दिमाग में कुछ खास तरह के न्यूरान्स होते हैं जिन्हें मिरर न्यूरान्स कहा जाता है। इन न्यूरान्स का काम होता है सामने वाले की भावनाओं से जुड़ना जिससे हम उनके साथ गहरे रिश्ते बना सकें और उनकी बात को समझ सकें। वीएस रामचंद्र, जो कि एक रीसर्चर हैं, इसे एंपेथी न्यूरान्स कहते हैं क्योंकि यह सहानुभूति दिखाने में हमारी मदद करता है।

अगर आपके पास यह न्यूरान्स नहीं होते तो आप अपने प्यारे लोगों की पसंद नापसंद समझ कर उन्हें खुश नहीं कर पाते। मिरर न्यूरान्स सामने वाले की नकल करते हैं जिससे हम उनकी भावनाओं को समझ कर उसके हिसाब से काम कर सकें। 

एक्ज़ाम्पल के लिए शायद आप ने कभी देखा होगा कि जब आप बहुत ज्यादा काम कर रहे होते हैं तो आप के बगल में बैठा एक व्यक्ति बोलता है कि थोड़ा आराम कर लीजिए। ऐसा कभी नहीं होता, अगर उसके पास मिरर न्यूरान्स नहीं होते।

स्टडीस यह दिखाती हैं कि जब हमारे भावनाओं की नकल की जाती है तो हमें अच्छा महसूस होता है। लेकिन जब उसकी नकल नहीं की जाती तो हमें लगने लगता है कि सामने वाला हम से जुड़ा नहीं है और हम भी उससे अपना कनेक्शन काट लेते हैं। इसकी एक वजह है कि आज ज्यादातर बातें फोन पर होती हैं और हम सामने वाले की भाव को नहीं देख पाते। इसलिए आज के वक्त में हम लोगों की भावनाओं को कम समझने लगे हैं।

हमारे दिमाग को तीन हिस्सों में बाँटा गया है और हर हिस्से का अलग काम होता है।
बहुत बार आपको लगता होगा कि आप खुद से ही बहस कर रहे हैं। कभी कभी हमें खुद के ही अंदर दो लोग मिल जाते हैं, एक कहता है यह काम कर दो, और दूसरा कहता है मत करो, एक कहता है उसे बता दो, दूसरा कहता है चुप रहो। एक कहता है पढ़ लो, दूसरा कहता है टीवी देखो। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे दिमाग के तीन हिस्सों में बाँटा गया है और हर हिस्से का अपना काम है।

सबसे पहले हिस्से को रेप्टीलियन ब्रेन कहते हैं। यह हिस्सा हमारे काबू में नहीं रहता। यह किसी हालात को देखकर तुरंत काम करता है। अगर आप कभी पटाखे की आवाज सुनकर घबरा गए हों, तो समझ जाइए कि आपने अभी अभी अपने रेप्टीलियन ब्रेन का इस्तेमाल किया। 

इसके अलावा यह भाग कभी कभी हमारे अंदर कुछ इस तरह के डर पैदा कर देता है कि हम हिल ही नहीं पाते। कभी पहली स्टेज पर 500 लोगों के सामने बोलने की कोशिश कीजिए, आपको लगेगा कि आपके पैर आगे जा ही नहीं रहे। यह सब काम रेप्टीलियन ब्रेन का है।

इसके बाद के हिस्से को मैमेलियन ब्रेन कहते हैं। इस हिस्से में हमारी भावनाएं रहती हैं। इस हिस्से को खुशी चाहिए, आराम चाहिए। यह हिस्सा गुस्से के लिए,प्यार के लिए, नफरत के लिए और तमाम तरह की भावनाओं के लिए जिम्मेदार है। लेकिन इसे सोचना नहीं आता। इसे आराम तो चाहिए, लेकिन यह हिस्सा इस बात को नहीं देखता कि वो आराम उसे किस कीमत पर मिल रहा है।

इसके बाद आता है हमारा रेशनल ब्रेन। यह हिस्सा सोचने के लिए जिम्मेदार होता है। इसे आप क्लास के एक टीचर की तरह समझ लीजिए जो कि बच्चों को काबू करता है। बच्चे मैमेलियन ब्रेन हैं जो सिर्फ मस्ती करना जानते हैं, लेकिन जब टीचर क्लास में आ जाता है तो वे वही करते हैं जो उन्हें करना चाहिए। ठीक उसी तरह, मैमेलियन ब्रेन भावनाओं में बहता रहता है, लेकिन रेशनल ब्रेन उसे बताता है कि उसे क्या करना चाहिए।

हर दिमाग के हिस्से को अलग अलग काम के लिए बनाया गया है और जब हम उसे सही जगह पर इस्तेमाल करते हैं तो हमें सबसे ज्यादा फायदा मिलता है।

अपने रेशनल ब्रेन का इस्तेमाल अच्छे से करने के लिए सबसे पहले आपको अपनी भावनाओं को काबू करना सीखना होगा।
दूसरों की भावनाओं को समझने से पहले आपको सबसे पहले खुद की भावनाओं को जानना होगा और इसके लिए सबसे पहले खुद से ईमानदार होकर अपनी भावनाओं को समझना होगा। कुछ भावनाएं आपके दिमाग के कंट्रोल को रेशनल ब्रेन से छीन कर मैमेलियन ब्रेन को दे देती हैं और आप यहाँ पर अपनी भावनाओं के हिसाब से काम करने लगते हैं।

एक्ज़ाम्पल के लिए शायद आप ने गुस्से में आकर किसी ऐसे व्यक्ति को कुछ बोल दिया हो जिसका आपको बाद में पछतावा हुआ हो। इस तरह के हालात में आप अपने मैमेलियन ब्रेन का इस्तेमाल कर रहे होते हैं, जो कि सोचना नहीं जानता। हमारे दिमाग का कंट्रोल मैमेलियन ब्रेन के पास आ जाता है और हम तुरंत अपनी भावनाओं के हिसाब से काम करने लगते हैं। 

लेकिन जरूरी नहीं है कि हर बार आपके साथ ऐसा हो। हम इसका कोई दूसरा हल भी निकाल सकते हैं। हम खुद की भावनाओं को समझ कर या उन्हें कुछ नाम देकर उन्हें शांत कर सकते हैं और कंट्रोल को रेशनल ब्रेन के पास पहुँचा देते हैं। जब हम ऐसा करते हैं तो हमारा एमाइग्डाला शांत हो जाता है। एमाइग्डाला दिमाग का वो हिस्सा होता है जो गुस्से या दुख जैसी गहरी भावनाओं को पैदा करता है जिसे हम ज्यादातर काबू नहीं कर पाते।

अब जब आपको यह बातें पता लग गई हैं तो आप दूसरों को भी यह बातें बता कर उन्हें शांत दिमाग से सोचना सिखा सकते हैं और फिर उनसे बात कर सकते हैं।

जब आप अपनी भावनाओं को खुलकर जताते हैं तो आप दूसरों को खुद से जुड़ने का मौका देते हैं।
क्या आप कभी किसी बात को लेकर बहुत डर रहे होते हैं लेकिन अपनी बात को किसी से कहते नहीं हैं क्योंकि आपको लगता है कि लोग आपको कमजोर समझेंगे। लेकिन जब आप गलत भावनाओं को अपने चेहरे पर लाने लगते हैं, तो सामने वाला उन गलत भावनाओं की नकल अपने मिरर न्यूरान्स से करने लगता है और आपको लगता है कि आपको कोई नहीं समझ रहा है।

इसलिए दूसरों से जुड़ने का सबसे पहला तरीका यह है कि अपनी भावनाओं को खुलकर उनके सामने रखिए। इससे वे आपको समझ पाएंगे और उसके हिसाब से काम कर पाएंगे। अगर आप किसी बात को लेकर परेशान हैं, लेकिन आप दिखा रहे हैं कि आप बिल्कुल ठीक हैं और ऐसे में कोई व्यक्ति आप से मजाक करता है तो आपको तुरंत गुस्सा आ जाएगा। लेकिन इसमें कुछ गलती तो आपकी भी है। आप ने उस व्यक्ति को दिखाया कि आप ठीक हैं जिससे उसने आपकी नकल कर के आप से मजाक किया और आपको गुस्सा आ गया। जब आप अपना गुस्सा दिखाएंगे, तो सामने वाले से फिर आपको कुछ ऐसा मिलेगा जिसकी आप उम्मीद नहीं कर रहे थे।

इसके अलावा दूसरों को भी समझने की कोशिश कीजिए और उन्हें अपनी भावनाओं को दिखाने का मौका दीजिए। मान लीजिए कि आप अपने किसी दोस्त से मजाक करते हैं और वो इस बात पर आपके ऊपर टूट पड़ता है। ऐसे में आप गुस्सा मत कीजिए, बल्कि उसे अपनी भावनाओं को दिखाने का मौका दीजिए। अगर वो व्यक्ति इस तरह के मजाक से हमेशा नहीं गुस्सा होता तो मतलब साफ है कि वो किसी बात से परेशान है।

जब आप दूसरों से उनकी भावनाएं जानने की कोशिश करते हैं, तो आप उन्हें कुछ ज्यादा अच्छे से समझने लगते हैं। इस तरह से जब आप उसे समझने की कोशिश करते हैं और उसकी भावनाओं को कम करते हैं, तो वो भी आपकी नकल कर के आपको समझने की कोशिश करने लगता है।

लोगों से उनके बारे में जानने की कोशिश कीजिए।
हम सभी को अपने बारे में बात करना पसंद है। लोगों की इस भावना का फायदा उठा कर आप उन्हें कुछ ज्यादा हद तक समझ सकते हैं। जब आप लोगों को मौका देते हैं ताकि वे अपने बारे में या अपनी जिन्दगी के बारे में बोल सकें, तो वे खुद आपको अपने बारे में बताने लगते हैं जिससे आपको उन्हें समझने में आसानी होती है।

इसके लिए सबसे पहले उस तरह के सवाल मत पूछिए जो आपको पूछने चाहिए। उस तरह के सवाल पूछिए जो सामने वाले को ज्यादा से ज्यादा बोलने पर मजबूर कर दे। वो सवाल पूछिए जो सामने वाला सुनना चाहता है। इस तरह से आप दोनों के बीच के कनेक्शन को मजबूत करते हैं।

जैसे एक पिता जब भी अपने बेटे से मिलता है तो वो उससे उसकी पढ़ाई के बारे में या फिर उसके मार्क्स के बारे में बात करता है। लेकिन क्या मार्क्स में ही जिन्दगी है? नहीं, यह कुछ ऐसा है जो हमें अंदर से तो नहीं चाहिए, लेकिन बाहर से हमारे ऊपर इतना दबाव डाला जाता है कि हम इसके पीछे भागने लगते हैं।

अगर वो पिता हर बार अपने बेटे से इस तरह के सवाल पूछता रहेगा, तो उसका बेटा एक दिन अपने पिता को आता देखकर किसी दूसरे कमरे में भाग जाएगा या फिर सोने का नाटक करने लगेगा। इस तरह के हालात से बचने के लिए आपको उससे वो सवाल पूछने चाहिए जिसके जवाब देने में वो खुशी महसूस करे। एक्ज़ाम्पल के लिए, आप उसके   दोस्तों के बारे में बात कीजिए। उससे पूछिए कि उसकी कितनी गर्लफ्रेंड हैं या अगर नहीं है तो उसके क्लास की कौन सी लड़की उसे पसंद है। इस तरह के सवालों के जवाब देने में आपके बेटे को खुशी महसूस होगी। वो आप से भागेगा नहीं और जब कोई परेशानी होगी तो एक दोस्त की तरह आप से आकर उसे बताएगा। लेकिन अगर आप उससे हमेशा कैरियर की बात करते रहेंगे और उसपर सख्ती दिखाएंगे, तो कोई गलती करने के बाद वो अपनी पूरी कोशिश करेगा कि आपको वो बात पता ना लगे। इस तरह से आपका और उसका कनेक्शन कमजोर हो गया।

दूसरों की जिन्दगी के बारे में उनसे सवाल पूछिए ताकि वे खुलकर आप से इसके बारे में बात कर सकें। इससे आप उनसे अच्छे से जुड़ पाते हैं।

दूसरों को समझने के लिए उनके लिए सहानुभूति दिखाइए।
इस सबक में हम देखेंगे कि किस तरह से आप खुद को सामने वाले से जोड़ सकते हैं।

इसके लिए सबसे पहले सामने वाले की भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। इसके लिए आप कुछ खास तरह के सवाल पूछ सकते हैं। एक्ज़ाम्पल के लिए, आप उनसे पूछ सकते हैं कि क्या वे इस समय उदास महसूस कर रहे हैं? उनसे कहिए कि आप उनकी बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं और आप जानना चाहते हैं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं।

जब वे आप से बताने लगें कि उनके साथ क्या हुआ है तो आप उनसे इसकी वजह जानने की कोशिश कीजिए। आप उनसे पूछिए कि उनके साथ ऐसा क्या हुआ जिससे वे उदास हैं। इस तरह से आप उनकी परेशानी की तह तक जा सकते हैं।

जब वे खुलकर अपनी बात पूरी कर लें, तो आप उनसे पूछिए कि वे इस समय क्या पाना चाहते हैं या क्या करना चाहते हैं। उनसे पूछिए कि आप उनके लिए क्या कर सकते हैं, या वे खुद अपनी परेशानी हल करने के लिए क्या कर सकते हैं। 

अंत में उनसे पूछिए कि उस चीज़ को पाने के लिए या उस काम को करने के लिए आपको क्या करना होगा। इस तरह से आप उनकी बात को समझ भी गए और आप ने उनकी परेशानी सुलझा भी दी। 

इस तरह से बात करने पर आप ना सिर्फ उनकी परेशानी सुलझाते हैं बल्कि उन्हें अच्छा भी महसूस कराते हैं। अब अगर वो शांत हो गया है और आपको अपनी कोई बात उसे समझानी है तो आप उसे समझा सकते हैं क्योंकि अब वो सुनने के लिए तैयार है। उसे लगेगा कि आप उसे समझ रहे हैं और दिल से उसकी मदद करना चाहते हैं। यह तरीका अपना कर आप किसी को भी समझ सकते हैं।

कुल मिलाकर
जब कोई व्यक्ति अपनी परेशानी बाँटता है, तो उसे अपनी परेशानी का हल नहीं चाहिए होता, वो बस चाहता है कि कोई उसे सुने और उसका दर्द बाँटे। किसी को भी समझने के लिए सबसे पहले उसे सुनना बहुत जरूरी है। जब आप सामने वाले से वो सवाल पूछते हैं जिससे उसे खुद के बारे में बोलने का मौका मिलता है, तो वो खुलकर आप से अपनी परेशानी बाँटता है।

 

अपनी भावनाओं को जताने में हिचकिचाइए मत।

अगर आप कभी किसी चीज़ से डर रहे हैं या किसी बात को लेकर परेशान हैं तो उसे छिपाइए मत। जब आप अपनी भावनाओं को लेकर खुद से ईमानदारी दिखाते हैं तो आप दूसरों से बात करते वक्त उनसे अच्छे से जुड़ पाते हैं और अपनी बात को अच्छे से समझा पाते हैं। सुनने वाले आपकी हिम्मत को पसंद करने लगते हैं और आप पर भरोसा करते हैं।


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