Inner Engineering

0
Inner Engineering

Sadhguru Jaggi Vasudev
इनर इंजीनियरिंग - एक योगी की नज़र से ज़िन्दगी का सच

दो लफ्जों में 
2016 में लिखी इनर इंजीनियरिंग नाम की इस किताब को पढ़ कर आप जीवन में सच्चे सुख और शांति कि प्राप्ति के मार्ग को जान सकते हैं। इस किताब में दिए गए सबकों के माध्यम से लेखक ये सन्देश देना चाहते हैं कि जिस ख़ुशी को हम बाहरी वस्तुयों में ढूंढते रहते हैं वो असल में हमारे अन्दर ही होती है बस जरुरत है तो अपनी अंतरात्मा में झांक कर उसे प्राप्त करने की।

ये किताब किसके लिए है 
· जो लोग अपने जीवन के गहन सत्य को जानना चाहते हैं।
· ऐसे लोग जो सफलता की उंचाईयों को छु कर भी जीवन में असंतुष्टि का सामना कर रहे हैं।
· नास्तिक व्यक्ति जो आध्यामिकता को एक मौका देना चाहते हैं।

लेखक के बारे में
सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक भारतीय योगी हैं। अन्य योगियों की तरह अपने जीवन में वैराग्य को अपनाने की जगह उन्होंने आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलकर जीवन में सुख और शांति प्राप्त करने के मार्ग को चुना। उन्होंने कई लोगों के जीवन में आध्यात्मिकता का प्रकाश फैलाया और उनकी संस्था देश से गरीबी को दूर करने के लिए कार्यरत है।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
इस भाग दौड़ से भरी दुनिया में हर व्यक्ति इतना उलझा हुआ है कि खुद के अन्दर झाँकने की फुर्सत किसी को नहीं हैं। जितने उलझे हम खुद हैं उस से भी कहीं ज्यादा उलझें हैं हमारे विचार जिसके कारण मानसिक शांति और सुख प्राप्त करना बहुत कठिन हो गया है। यूँ तो आजकल योगा मानसिक शांति प्रदान करने के लिए बहुत प्रचलित हो गया है, लेकिन फिर भी ज्यादातर लोगों के लिए योग मात्र शारीरिक तंदुरुस्ती का एक जरिया है। लेकिन योगी कहते हैं कि योग बस एक शारीरिक तंदुरुस्ती का जरिया हीं नहीं है बल्कि इससे हम मासिक शांति और आंतरिक खुशी भी प्राप्त कर सकते हैं।

इस किताब में के जरिये योगी ने ज्ञानोदय के उन रहस्यों को उजागर किया है जो कि इस पाश्चात्यीकरण से भरी दुनिया में कहीं खो सी गयी है।।।।।।। इस किताब को पढ़ कर आपको आंतरिक शांति, सुख और संतोष को प्राप्त करने का मार्गदर्शन मिलेगा

· क्यूँ आपको अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए

· किस पर्वत की उंचाईयों पर पहुँच कर आप आध्यामिकता के नए आयामों को छु सकते हैं

· अपने अन्दर आनंद और उत्साह का निर्माण कैसे करें

कभी न ख़त्म होने वाली संतुष्टि का श्रोत हमारे ही अन्दर छुपा हैं
इस प्रतियोगिता से भरे युग में हमें अक्सर देखने को मिलता है कि कई लोग सफलता की बुलंदियों पर बैठ कर भी ख़ुशी और संतोष का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं, तो आखिर ऐसी क्या वजह है जो वो सफल होने के बाद भी उस सफलता की ख़ुशी नहीं मना पाते? ऐसा इसलिए क्यूंकि खुद को भुला कर सफलता की ओर ध्यान देना कारगर तो है लेकिन कुछ हीं समय के लिए क्यूंकि जिस सफलता की चाह में हम अपने आप को भुला देते हैं उसे हासिल करने के बाद हमें ये एहसास होता है कि इसके लिए हमने क्या कुछ खो दिया है। इस बात को समझाने के लिए भारत में एक कहानी बहुत प्रचलित है लेखक नें भी अपनी इस किताब में उस कहानी का विवरण किया है।

कहानी इस तरह से है कि,एक बार एक पक्षी नें बैल से कहा कि मेरे पंख कमजोर हो गए है अब मैं पेड़ पर बैठ के प्राकृतिक नजारों का आनंद नहीं ले सकती बैल ने उसकी समस्या का समाधान बताते हुए कहा कि तुम मेरे गोबर को रोज़ थोड खा लिया करो इससे तुम्हें ताकत मिलेगी और तुम उड़ सकोगी। चिड़ियाँ ने ऐसा हीं किया और बैल के द्वारा बताया गया तरीका कम कर गया और वो उड़ कर पेड़ पर बैठ गयी। उसकी चेहचहाने की आवाज़ से किसान का ध्यान उसकी ओर गया, इतने तंदुरुस्त और रसीले पक्षी को देख उसने उसे मारकर खा लिया

ठीक ऐसा हीं इंसानों के साथ भी होता है कामयाबी को पाने के लिए कभी कभी हम किसी भी हद तक चले जाते हैं लेकिन उसका नतीजा हमेशा अच्छा नहीं होता

सच्चे संतोष को पाने के लिए हमें दुनिया को अपनी अंतरात्मा के नज़रिये से देखने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन अक्सर लोग दुनिया को बाहरी नज़रिए से देखते हैं और इसी बाहरी दुनिया में अपनी खुशियाँ तलाशते रह जाते हैं

उदाहरण स्वरुप लेखक कहते हैं कि जब हम कोई किताब पढ़ते हैं तो ज्यादातर लोगों के हिसाब से वो किताब हमारे हाथ में होती है लेकिन असल में तो किताब पर जो रौशनी पड़ रही है वो आपकी आँखों में उस किताब का प्रतिबिम्ब बना रही है, तो जो किताब आप पढ़ रहे है वो तो आपके अन्दर हीं है

लेखक कहते हैं कि इस सिधांत को समझना बहुत जरूरी है की सच्ची खुशियाँ और संतोष हमारे अन्दर हीं बसा है।

आप अपने जीवन के अनुभवों को अपने हिसाब से नया मोड़ दे सकते हैं क्यूंकि आपकी सोच और आपकी भावनायें आपके द्वारा हीं संचालित होती है।
आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि क्यूँ कभी किसी को गले लगाना हमें सुकून देता है और वहीँ दुसरी ओर किसी के गले लगाने पर घुटन महसूस होती है, लेखक कहते हैं की दोनों हीं सूरतों में काम एक हीं है लेकिन भावनाएं और सोच अलग है किसी अपने के गले लगाने पर हमें आनंद महसूस होता है और वहीँ जिसे हम नापसंद करते हैं उसके गले लगाने पर घुटन होती है, इस उदाहरण से ये साबित होता है कि हमारी भानायों को हम खुद संचालित करते हैं और ये पूर्णतः हमारी सोच पर हीं निर्भर करता है

एक हीं प्रकार के कार्य पर हमारा मस्तिस्क कई तरह की प्रतिक्रियाएं दे सकता है, ये इस बात पर निर्भर करता है की सामने वाले व्यक्ति के बारे में हमारी क्या भावना है। ये सारी भावनाएं हमारे हीं मस्तिष्क का एक हिस्सा है और इनपर अपनी पकड़ बनाकर हम अपने जीवन को अपने हिसाब से जी सकते हैं।लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि कई लोग इन भावनायों को महसूस करने के लिए शराब और नशे का सहारा लेते है, जबकि लेखक का कहना है कि हमें इसकी कोई जरुरत नहीं है इन बाहरी अनादायक वस्तुयों की जगह हम अपने शरीर में खुद एक आनंद से भर देने वाले अनु का निर्माण कर सकते हैं, वो अनु है अनंदामाईड  नाम का एक केमिकल जो हमारे शरीर में बनता है और ये हमें सुख और आनंद का एहसास करवाता है। इसका असर किसी अफीम के नशे से भी ज्यादा होता है, हमारे शरीर में इसकी ज्यादा से ज्यादा मात्रा बने इसके लिए हमें जरुरत है बस थोड़े व्यायाम की और हर समस्या का सामना करने के लिए खुद को मजबूत बनाने की। जैसे की जब भी हमें कोई बड़ा कठिन काम मिले या आप किसी समस्या में फस जायें तो खुद को ये एहसास दिलाएं की सब ठीक है और आप ये काम आसानी से कर लेंगे।

हमारे देश के योगियों और साधुयों ने इसी अनु को ध्यान और साधना के जरिये अपने अन्दर बनाने में महारत हासिल कर ली है, इसलिए वो असीम सुख और संतुष्टि का आनंद लेते हैं।

ज्यादातर लोग भावनायों में बह कर जीवन के रास्तों का चुनाव करते है, जबकि इन रास्तों का चुनाव हमें पूरे होशोंहवास में करना चाहिए।
ज्यादातर लोगों की आदत होती है कि जो बात उन्हें दर्द और दुःख की अनुभूति कराती है वो उसको खुद हीं भूलना नहीं चाहते और उसकी कहानी बार बार अपने दिमाग में दोहराते रहते हैं। जैसे की अगर किसी के साथ हमारा कोई रिश्ता टूटा हो तो हम महीनो और बरसों उसे याद कर के खुद को दुखी करते रहते हैं।

कई लोगों की तो ऐसी आदत हीं होती है कि उनके दिमाग में बस जिंदगी की दर्दभरी कहानियाँ हीं चलती रहती है। जबकि जिंदगी के प्रति हमारा नजरिया सकारात्मक होना चाहिए, जो हो गया उसे भूल कर नयी राह अपनाना हीं ज़िन्दगी है, लेखक कहते हैं की बुरे अतीत से अपना आज बुरा करने से अच्छा है कि उससे प्रेरणा लेकर अपना कल अच्छा करें।

लेखक ने बताया है कि वो एक ऐसी लड़की को जानते हैं जिसने अपने जीवन के कडवे अतीत से बहुत कुछ सीखा और संतोष प्राप्ति की राह पर चल पड़ी। उस लड़की और उसके भाई को नाजियों की सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय उसके परिवार से अलग कर दिया था। वो लोग उन्हें रेलवे स्टेशन ले गए और ट्रेन में बैठने को कहा इसी दौरान उसके भाई ने खेलते हुए अपना एक जूता गुम  कर दिया गुस्से में उसने अपने भाई को खूब मारा और बुरा भला कहा, लेकिन वो आखरी दिन था जब उसने अपने भाई को देखा बाद में तो बस उसके मरने की खबर हीं आई। इस सदमें से टूट के बिखरने की बजाये उसने ये सीखा कि जीवन बहुत छोटा है क्या पता कब आप किसी से आखरी बार मिल रहे हो इसलिए सबसे मुस्कुरा कर मिलो ताकी बाद में पछतावा न हो। इस सीख ने उस लड़की की ज़िन्दगी बदल दी और इस बदलाव से उसे आंतरिक संतोष की अनुभूति हुई।

जिम्मेदारियाँ आपकी आज़ादी को और बढ़ा देती है।
जब हम जिम्मेदारियों के बारे में सोचते है तो हमारे मन में सबसे पहले ये बात आती हैकि जिम्मेदारियाँ हमें बन्धनों में बांध देती हैं इसलिए लोग जिम्मेदारियाँ उठाने से डरते हैं। लेकिन इसके विपरीत लेखक कहते हैं कि जिम्मेदारियाँ तो हमारे जीवन में विकल्पों को बढ़ा देती। इसे उदाहरण स्वरुप समझाने के लिए लेखक कहते हैं कि मान लें आपको विश्व भ्रमण पर जाना है और आप अकेले बिना किसी जिम्मेदारियों के हैं तो आपके पास एक हीं विकल्प है लेकिन अगर आपके ऊपर परिवार की जिम्मेदारी हो तो आपके पास ढेरों विकल्प हैं जैसे आप उन्हें भी अपने साथ ले जा सकते हैं, या उनके साथ हीं घर पर रुक सकते हैं या अकेले जा सकते हैं तो आपको इतने सारे विकल्पों में से चुनने की आज़ादी मिल जाती है।

जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाने से अच्छा है उन्हें निभाना सीखें क्यूंकि जरुरी नहीं है कि जिम्मेदारियाँ आपके बोझ को बढायें, बल्कि जिम्मेदारियों के होने से व्यक्ति ज्यादा अनुशासित और सही निर्णय ले सकता है। जीवन की सच्ची पहचान जिम्मेदारियों से ही आती है और बिना जिम्मेदारी के जीवन दिशा हीन हो जाता है।

जिम्मेदारियों को निभाने की बात सिर्फ परिवार तक हीं सिमित नहीं रहती बल्कि देश और समाज के प्रति भी हमारी कई जिम्मेदारियाँ होती है। जब देश के किसी कोने में कोई तूफ़ान या बाढ़ जैसी कोई प्राकृतिक आपदा आये तो हाथ पर हाथ रख कर बैठने की बजाये हम कोशिश कर सकते हैं मदद करने के तरीके को ढूंडने की। अगर आप पूरे जतन से कोशिश करने के बाद भी मदद का जरिया नहीं ढूंड पाते है तो भी कम से कम आपके दिल में कोशिश करने का सुकून तो रहेगा। इसलिए लेखक कहते हैं की जिम्मेदारियों को निभाने के प्रयास में जितनी थकान होती है उस से कहीं ज्यादा सुकून उन्हें निभा कर संतुष्ट होने में होती है।

ज्ञानोदय के लिए शरीर, दिमाग, भावनाओं और उर्जा का एक हीं दिशा में कार्यरत होना जरुरी है।
जिस प्रकार जीवन के कई क्षेत्रों में टीम वर्क का होना बहुत जरुरी होता है उसी प्रकार से हमारे शरीर में भी सभी अंगों का एक साथ मिल कर कम करना बहुत जरुरी है ताकी हमारे शरीर में सभी कार्य सुचारू रूप से चल सके

इसलिए लेखक का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति के लिए हमारे शरीर, उर्जा, भावनायें और हमारे मस्तिष्क का एक हीं दिशा मिल कर कार्य करना जरुरी है क्यूंकि इन सब के संगम से जो उर्जा उत्पन्न होगी वही हमें सच्चे ज्ञान की ओर ले जाएगी, इस बात को और सरल तरीके से समझाने के लिए हमारे भारतीय साहित्य में एक कथा प्रचलित है

इस कथा के अनुसार एक बार चार योगियों का समूह किसी वन में से गुजर रहा था। उनमें से एक शारीरिक योगा में विश्वास करता था, दूसरा अंतरात्मा और मस्तिष्क की शक्ति में, तीसरा शरीर में बसे योग चक्रों की शक्ति को सबसे ऊपर समझता था वहीँ चौथे को ये लगता था कि अपनी भावनायों पर विजय पाना हीं सबसे जरुरी है। सब अपने अपने रास्ते को ज्ञान पाने का एकमात्र रास्ता मानते थे। वो वन से गुजर हीं रहे थे की अचानक तेज़ बारिश और तूफ़ान आ गया उन्होंने एक पुराने मंदिर में शरण ली। वो मंदिर बहुत पुराना था उसमें दीवारें नहीं थी इसलिए तूफ़ान से खुद को बचाने  के लिए उन चारों ने भगवन की मूर्ती के पास एकत्रित होकर एकदूसरे का हाथ थाम लिया, तभी अचानक वहां भगवन स्वयं हीं प्रकट हो गए। उन्हें देख योगियों को आश्चर्य हुआ एक ने पूछा हम सारी जिंदगी आपकी उपासना करते रहे तब अपने दर्शन नहीं दिए तो आज कैसे प्रभु। भगवान मुस्कुराये और बोले आज तुमने चारों शक्तियों का मिलान कर दिया जब मन, शरीर, भावनाएं और उर्जा इन सब का मिलन होता है तभी सच्ची भक्ति और ज्ञान का मार्ग खुलता है।

इस कहानी से प्रेरणा लेते हुए हम भी जीवन में इन चार आवश्यक तत्वों को एक दिशा में कार्यरत कर सकते हैं। लेखक कहते हैं की इनमें से एक ने भी अगर संतुलन खोया तो आप अपने मार्ग से भटक सकते हैं। अगले सबक में हम जानेंगे की कैसे हम इन चारों का संतुलन योगा के जरिये बना सकते हैं।

हमारा शरीर असीम शक्ति और संभावनायों का केंद्र है क्यूंकि ये धरती और ब्रह्माण्ड का हीं एक हिस्सा है।
इस बात को समझना बहुत मुश्किल है कि हम धरती का हीं एक हिस्सा हैं। जब हम माँ की कोख में एक भ्रूण के रूप में आये थे तब भी माँ के खाने से हीं हमें जीवन मिला था और वो खाना धरती माँ का ही दिया हुआ था। इस बात से ये साफ़ है की हमारे अस्तित्व के आरंभ से लेकर हमारी मुत्यु तक हम धरती से जुड़े हुए होते हैं।

जब भी धरती या हमारे आस पास के वातावरण में कोई बदलाव आता है तो उसका असर हमारे शरीर पर भी जरूर देखने को मिलता है। लेखक अपने जीवन का एक वाक्या सुनाते हुए कहते हैं कि एक बार उन्होंने चिक्केगोवडा (Chikkegowda) नाम के एक व्यक्ति को अपने खेतों में काम के लिए रखा। वो गूंगा और बहरा था लेकिन बहुत मेहनती था। एक बार उसने काम करते हुए अचानक काम बंद कर सब सामान इक्कठा करना शुरू कर दिया लेखक के पूछने पर उसने बताया की बारिश आने वाली है, लेखक हैरान हुए की इतने साफ़ मौसम में बारिश, लेकिन उसकी बात मानते हुए लेखक ने काम बंद कर दिया। बस कुछ हीं देर के बाद सच में बारिश की झड़ी लग गयी। चिक्केगोवडा (Chikkegowda) ने लेखक को बताया की वो मौसम के बदलाव को अपने शरीर में महसूस कर सकता है और ये बात सच है इस ब्रहांड में होने वाला हर एक बदलाव हमारे शरीर को भी प्रभावित करता है। लेखक का कहना है की चिक्केगोवडा (Chikkegowda) की तरह हम भी अपने शरीर को ऐसे बदलावों को महसूस करने का प्रशिक्षण दे सकते हैं।

हमारा बौधिक ज्ञान कई बार जीवन के सच्चे अर्थ को समझने में बाधक बन जाता है।
ये सच है की विज्ञानं ने इंसान के जीवन को बहुत से तोहफों से नवाज़ा है लेकिन एक सच ये भी है की विज्ञानं कई बार हमारी आँखों पर ज्ञान की ऐसी चादर डाल देता है कि कुछ अध्यात्मिक सच्चाईयों को समझना हमारे लिए कठिन हो जाता है। इन अध्यात्मिक रहस्यों की गहरायी में झांके बिना हमें जीवन का सच्चा आनंद मिलना मुश्किल है

ग्रीक में कही जानी वाली एक छोटी सी कहानी इस बात को और अच्छे से समझती है, इस कहानी के अनुसार एक बार महान फिलोसोफर एरिस्टोटल(aristotle) समुद्र तट के किनारे घूम रहे थे शाम का सुहाना समां था लेकिन वो अपने हीं विचारों में खोये थे। तभी उनकी नज़र एक व्यक्ति पर पड़ी जो की चम्मच से रेत में गढ़ा करने की कोशिश रहा था। एरिस्टोटल(aristotle) ने बड़ी हीं हैरानी से उससे पूछा की ये क्या कर रहे हो तो उस व्यक्ति ने जवाब दिया की मै समुद्र के पानी को भरने के लिए गढ़ा खोद रहा हूँ। ये बात सुनते हीं एरिस्टोटल(aristotle) हसने लगे तो उस व्यक्ति ने कहा की तुम मुझपर हँस रहे हो लेकिन तुम भी तो सोचते हो की इस ब्रहमांड का सारा ज्ञान तुम्हारे मस्तिष्क में समा जाएगा, तुम्हारा मस्तिस्क भी ब्रहामंड के सामने एक छोटा सा गढ़ा हीं तो है फिर हम दोनों में से ज्यादा पागल कौन है। एरिस्टोटल(aristotle) ये बात सुन कर हैरान रह गए। वो चम्मच से गढ़ा खोदने वाले व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि फिलोसोफर हेराक्लीटस (Heraclitus)थे।

तो इस बात से हम समझ सकते हैं की विज्ञान हमें ज्ञान तो देता है लेकिन कई बार इस ज्ञान के कारण हम खुद को सर्वोपरी मानने लगता हैं और ये भूल जाते हैं की हम इस ब्रहामंड के एक छोटे से अंश मात्र हैं। जबतक हम खुद को ब्रहमांड का एक हिस्सा मान कर नहीं चलेंगे तब तक हम जीवन में सच्ची खुशियाँ नहीं प्राप्त कर सकते।

कई स्थान अध्यात्मिक उर्जा का श्रोत होते हैं, जहाँ जाकर हम अपने अध्यात्मिक सफ़र की शुरुआत कर सकते हैं।
कई लोग आध्यात्मिकता के ज्ञान को एक गुप्त मार्ग की तरह मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है इस मार्ग पर कोई भी चल सकता है बस जरुरत है तो दृढ़ निश्चय और विश्वास की। लेखक के अनुसार कई ऐसे खास स्थान है जो की उर्जा के श्रोत की तरह होते है वहां जाकर हम अपने आध्यामिकता के सफ़र की शुरुआतकर सकते हैं।

इस पृथ्वी पर कई ऐसे स्थान हैं जहाँ योगियों और महापुरुषों नें अपने अंतिम दिन बिताये थे वहां के वातावरण में आज भी उनकी शक्तियां और उर्जा का प्रवाह हम महसूस कर सकते हैं, ऐसे हीं एक जगह है तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत, जहाँ की फ़िज़ायों में एक अजीब सी अध्यात्मिक शक्ति महसूस होती हैं। ऐसे हीं स्थानों पर जाकर हम अपनी उर्जा, शरीर और इन्द्रियों का सही संतुलन बना सकते हैं। अपने आपको दुनिया की भीड़ से अलग इस पृथ्वी के हिस्से के रूप में महसूस करते हुए हम इस सफ़र की शुरुआत कर सकते हैं।

लेखक कहते हैं कि इन स्थानों पर रहस्मयी उर्जा का प्रवाह होता है जो कि न सिर्फ हमारे आध्यामिकता को बढ़ाता हैं बल्कि हमारे ज्ञान और स्वस्थ में भी बढ़ोतरी करता है। लेखक ने अपने जीवन का एक वाकया सुनाते हुए बाते है कि कैसे कैलाश यात्रा से उनकी सेहत में सुधार हुआ। बात थी सन 2007 की जब बिगडती सेहत के कारण लेखक अस्पताल में भर्ती हुए डॉक्टर नें कहा की उन्हें कैंसर, मलेरिया और थायरोइड एक साथ हो गया है। लेखक इस से निजात पाने के लिए कैलाश चले गए वहां पहुँचने के कुछ हीं दिन बाद उनकी सेहत में सुधार आने लगा। इसलिए लेखक कहते हैं कि हम भी ऐसे किसी स्थान पर अपने शरीर का संतुलन बनाकर अध्यात्म को पा सकते हैं।

कुल मिलाकर
जीवन की सच्ची ख़ुशी और उमंग हमारे हीं अन्दर बसा हुआ है। ये हम पर हीं निर्भर करता हैं की हम अपनी जिंदगी को कैसा मोड़ देते हैं, चाहे तो हम खुद को खुश रख सकते हैं या फिर दर्द की तारों को बार बार छेड़ कर दुखी भी रह सकते हैं। अपने शरीर, मस्तिस्क और उर्जा को नियंत्रिक करके और अध्यात्मिक स्थलों के दर्शन से हम आंतरिक सुख और शांति प्राप्त कर सकते हैं।

अपने खाने को पूरा स्वाद लेकर खाएं

जीवन में शांति के लिए सबसे जरुरी है वर्तमान में जीना, इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है कि खाते वक़्त आप अपने खाने का पूरा स्वाद लेकर खाएं अपने मुँह में आ रहे स्वाद और फ्लेवर को महसूस करें। अपने पहले प्यार या ऑफिस में करने वाले काम या और कुछ भविष्य या भूतकाल की बातों को छोड़ कर आपका पूरा ध्यान बस खाने में होना चाहिए।


Post a Comment

0Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

YEAR WISE BOOKS

Indeals

BAMS PDFS

How to download

Adsterra referal

Top post

marrow

Adsterra banner

Facebook

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Accept !