Rhonda Byrne
परेशानियाँ खत्म कर लॉन्ग लास्टिंग हैप्पीनेस पाने का रास्ता
दो लफ़्ज़ों में
द ग्रेटेस्ट सीक्रेट (2020) वर्ल्ड वाइड बेस्टसेलर और सेल्फ हेल्प फिनोमिनन, 'द सीक्रेट' की सीक्वल है, जिसने लॉ ऑफ अट्रैक्शन का इस्तेमाल करके लाखों लोगों को अपनी जिंदगी बेहतर बनाने के लिए इंस्पायर किया। किताब की इस इंस्टॉलमेंट में हम कुछ डीप सीक्रेट्स जानेंगे, हमारी असल पहचान क्या है और कैसे हम अपनी नॉलेज का इस्तेमाल करके लोंग लास्टिंग हैप्पीनेस अचीव कर सकते हैं।
किनके लिए है?
- द सीक्रेट के फैंस के लिये
- रिलीजन और स्पिरिचुअलिटी में इंटरेस्टेड लोगों के लिए
- सुख-चैन की ख्वाहिश रखने वाले लोगों के लिये
लेखक के बारे में
रोंडा बर्न, डॉक्यूमेंट्री फिल्म और बेस्ट सेलिंग किताब 'द सीक्रेट' के पीछे की मास्टरमाइंड हैं। बर्न, टाइम मैगजीन की मोस्ट इनफ्लुएंशल पीपल की लिस्ट और माइंड बॉडी स्प्रिट मैगजीन की 100 मोस्ट स्प्रिचुअल इनफ्लुएंशल पीपल की लिस्ट में फीचर हो चुकी हैं। द सीक्रेट के अलावा, बर्न ने 'द पावर', 'द मैजिक', और 'हीरो' जैसी कई किताबें लिखी हैं।
आप की असली पहचान सिर्फ इंसान होना नहीं है
हमारी जिंदगी में बहुत सारे ऐसे सीक्रेट्स हैं जो सामने ही होते हैं, लेकिन हम में से बहुत सारे लोग इसे देख नहीं पाते। यह वह सीक्रेट्स हैं, जिनके बारे में दुनिया भर के संतो, गुरुओं और स्पिरिचुअल लीडर्स को हमेशा से मालूम था। और यह सीक्रेट्स नेगेटिविटी फ्री लाइफ जीने में आपकी मदद करते।
नजरों के सामने होने के बावजूद, यह सीक्रेट्स हम में से बहुत सारे लोगों द्वारा अनदेखे ही रह जाते हैं। मॉडर्न लाइफ की उथल-पुथल और डिस्ट्रक्शन ने हमें इस सच से दूर कर दिया कि एवर्लास्टिंग पीस सिर्फ स्प्रिचुअल लोगों के लिए नहीं बल्कि हर किसी के लिए पॉसिबल है। तो आखिर यह सीक्रेट्स हैं क्या? खैर, कोई बात नहीं, आप इनके बारे में जानने ही वाले हैं। इसके अलावा आप जानेंगे कि आपकी बॉडी और माइंड में जो चल रहा है वह आपकी असली पर्सनालिटी क्यों नहीं है? कैसे नेगेटिव फीलिंग हमेशा के लिए खत्म कर दी जाए, और ऐसा क्या है जो संत तो जानते हैं लेकिन साइंटिस्ट नहीं?
चलिए एक सिंपल सवाल से आसपास चल रही चीजों को रोक देते हैं- आप कौन हैं?
आप सोच रहे होंगे यह तो आसान है आप एक इंसान हैं, जिसके पास, नाम, उम्र, कल्चर, प्रोफेशन और कुछ खास यादें हैं। लेकिन आपको पता चले कि आप इंसान बिल्कुल भी नहीं है तो? अगर आपकी पहचान पूरी तरीके से कुछ और है तो? आपकी पहचान सिर्फ एक वहम है, वह वहम जो जिंदगी के हर गम की वजह है?
हो सकता है आप यह सोचते हों कि आप कोई तकलीफ नहीं सहते हैं, लेकिन कभी-कभी आप परेशान, बेचैन या स्ट्रेस्ड हो जाते हैं। क्या ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता? जवाब है, 'नहीं'! लेखक के हिसाब से, अगर आप किसी भी तरह की नेगेटिव फीलिंग का एहसास करते हैं, तो यह सफरिंग ही है। लेकिन हालात ऐसे ही रहें, जरूरी नहीं है, आप कांस्टेंट और कंप्लीट हैप्पीनेस से भरी लाइफ डिज़र्व भी करते हैं और अचीव भी कर सकते हैं। इसकी शुरुआत यह जानकर होगी- आप कौन हैं।
अभी आप एकदम इंसान की तरह ही महसूस कर रहे हैं। आप एक बॉडी और माइंड फील कर सकते हैं। दरअसल, यह फीलिंग्स एक वहम है जो सच को छिपाए हुये हैं।
चलिए बॉडी के बारे में जानने से शुरुआत करते हैं- आप इसे कार समझ सकते हैं जिसका इस्तेमाल एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचने के लिए किया जाता है। जब आप कार के अंदर होते हैं तो अपने आप को कार नहीं कहते। आपकी बॉडी के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही है, आपकी बॉडी वह कार है जिसके अंदर आपकी असली पहचान छिपी है।
आपका दिमाग भी आपकी रियल पर्सनालिटी का रिफ्लेक्शन नहीं है, हालांकि, अक्सर ऐसा लगता है। आखिरकार, आपके दिमाग की अपनी आवाज़ है, जो आपसे बात करती है, आपके बारे में सब कुछ जानती है और जिसे आप "मैं" का इस्तेमाल करके एडरेस करते हैं। लेकिन यह आवाज़ आपके दिमाग की है, आपकी नहीं। अगर आप कुछ सोच नहीं रहे होते हैं, तो दिमाग का वजूद भी ना के बराबर ही होता है, लेकिन आपका वजूद बरकरार रहता है। आपकी पहचान ना किसी सोच से है और ना जज्बात से।
आप तरह तरह की ख़ूबियों का कलेक्शन भी नहीं है। और हो भी कैसे सकते हैं? आपकी खूबियां और पर्सनालिटी वक्त के साथ बदलती रहती हैं। अगर यह तरह-तरह की पर्सनालिटी आप की असली पहचान होती, तो पर्सनालिटी बदलने के साथ आपकी पहचान का कुछ हिस्सा गायब हो जाता।
आप की असली पहचान बॉडी, माइंड और पर्सनालिटी नहीं है। तो फिर हम कौन हैं? दरअसल यही वह ग्रेटेस्ट सीक्रेट है जिसके बारे में आप आगे इस समरी में जानने वाले हो।
आप की असली पहचान अवेयरनेस ही है
यहां दूसरा सवाल उठता है, क्या आप अवेयर हैं?
इस सवाल का एक ही जवाब हो सकता है। आपको अवेयर होना चाहिए क्योंकि अगर आप नहीं होते, तो इस सवाल के बारे में भी आपको मालूम नहीं होता। आप बचपन से लेकर अभी तक केयरफुल रहे हैं। आपकी अवेयरनेस ही एक ऐसी चीज है, जो बॉडी चेंजेस, पर्सनालिटी शिफ्ट और नये जज़्बात का एक्सपीरियंस करने के बावजूद हमेशा सेम रही। सबसे बड़ा सीक्रेट यह है, कि आपकी असली पहचान यह अवेयरनेस ही है। आपके अंदर मौजूद अवेयरनेस को लाइफ में चल रहे बाकी सारे एक्सपीरियंस के बारे में अच्छे से मालूम होता है।
अपनी अवेयरनेस के बारे में जानने के लिए, आप सोच कर देखें कि आपके पास कोई भी नहीं है। और ना ही कोई दिमाग, नाम या लाइफ स्टोरी है। अपने खयाल, यादें, यक़ीन जो भी आपके पास है सब बाहर निकाल दीजिए। बचता क्या है? सिर्फ आपकी अवेयरनेस।
इस अवेयरनेस को हम, आत्मा/रूह, कुदरत जैसे कई नाम देते हैं। यह सभी एक चीज के बारे में बात करने के अलग अलग तरीके हैं। अवेयरनेस आपके अंदर मौजूद वह चीज है जो, उम्र और मूड बदलने के बावजूद, हमेशा एक जैसे रहती है। यहीं से असली सुकून आता है। अगर और अच्छे से समझने की कोशिश करें, तो हर शख्स अवेयरनेस को आपस में शेयर करता है। अवेयरनेस एक ही होती है, लेकिन हमारा दिमाग और जिस्म एक रुकावट की तरह काम करते हैं। यह सही वक्त पर हमें अवेयरनेस के बारे में जानने से रोकते हैं। लेकिन याद रखिए, यह अवेयरनेस, जिसकी कोई हद, कोई शुरुआत और आख़िर नहीं है, आपके अंदर और आसपास हर जगह मौजूद है।
यह अवेयरनेस इम्मोर्टल है। इसका वजूद आपके जिस्म और दिमाग से बहुत पहले से है। आप शायद गलती से यह समझ लेते हैं, कि जिस्म के मरने के साथ आप भी मर जाते हैं। लेकिन यह सच नहीं है, इस दुनिया में मौजूद हर चीज का अंत होना है, लेकिन आपकी अवेयरनेस कभी न ख़त्म होने वाली चीज है।
अवेयरनेस की ताकत का एहसास करने के लिए आपको कहीं पहुंचने या कुछ बनने की जरूरत नहीं है। असल में आप अवेयरनेस कभी बन ही नहीं सकते क्योंकि यह आपके अन्दर पहले से मौजूद है! बस यह एहसास करने की ज़रूरत है, कि आप की असली पहचान यह अवेयरनेस ही है। एक बार आप यह साफ कर लेते हैं तो आपकी, बॉडी, सोच, और इनकी वजह से होने वाली तकलीफ है सब धुंधली सी पड़ जाएंगी। उसके बाद आप कभी तकलीफ का एहसास नहीं करेंगे, आपके पास असल खुशियां होंगी। अगले लेसन में हम जानेंगे कि, "कैसे"।
जिंदगी में सजग रहने के लिए थ्री-स्टेप अवेयरनेस का इस्तेमाल कीजिए
अवेयर रहने के लिए लेखक थ्री-स्टेप अवेयरनेस प्रैक्टिस का इस्तेमाल करती हैं।
सबसे पहला कदम अपने आप से यह पूछना है, कि क्या मैं अवेयर हूं? लेकिन अपने दिमाग का इस्तेमाल करके इसका जवाब तलाशने में मत लग जाइए। इसके बजाय, अपने आप से यह सवाल करते वक्त अवेयरनेस की मौजूदगी का एहसास कीजिए। अगर आपका दिमाग कोई जवाब ढूंढने की कोशिश करता है तो अपने आप से वही सवाल दोबारा कीजिए। और जबरदस्ती अवेयरनेस का एहसास करने की कोशिश भी मत कीजिए। बस आस-पास मौजूद सुकून और खुशियों को फील कीजिए।
वक्त गुज़रने के साथ आपका मन शांत होने लगेगा। एक बार ऐसा होने लगे तो अपने आप को दूसरे स्टेप के लिए रेडी समझिए- अवेयरनेस को नोटिस करना।
जब आपका मन शांत होने लगेगा तो आप अवेयरनेस को अपने आप नोटिस करने लग जाएंगे, अपको खुद से यह सवाल करने की जरूरत नहीं होगी कि क्या आप अवेयर हैं। दिन में जितनी बार हो सके उतनी बार अवेयरनेस का एहसास करने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने से आपको बहुत सुकून होगा।
तीसरा और आखिरी स्टेप अवेयर रहने की प्रैक्टिस करना है। इसके लिए आपको किसी भी चीज पर ध्यान देने के तरीके में बदलाव करने की जरूरत है।
यह आपके दिमाग को, कैमरे के जूम लेंस की तरह बर्ताव करने में हेल्प करेगा। आमतौर पर, क्लोज-अप फोटोग्राफ्स लेने के लिए लेंस छोटी चीज़ पर फोकस करता है, लेकिन किसी बड़ी जगह में तस्वीर खींचने के लिए आपको जितना हो सके उतना ज़ूम आउट करना होगा। इसी तरीके से, अवेयरनेस के लिए, आपको अपनी अटेंशन बढ़ानी होगी।
इसकी प्रैक्टिस करके देखिए। अपने आसपास कोई ऐसी चीज देखिए जिस पर आप फोकस कर सकें। अपना सारा ध्यान उसी एक चीज पर लगा दीजिए। अपने अटेंशन को ज़ूम आउट करिए और किसी एक खास चीज को नहीं, बल्कि अपने आसपास मौजूद हर चीज को देखने की कोशिश कीजिए। आप रिलैक्सेशन सा महसूस करेंगे, क्योंकि अब आपको किसी एक चीज पर अपना ध्यान लगाने की जरूरत नहीं है।
अवेयर रहने की प्रैक्टिस करते-करते आपका मन एकदम शांत होने लगेगा। मुश्किल काम आसान लगने लगेंगे। आप बेफिक्र होने लगेंगे और नेगेटिव थॉट्स को अपने दिमाग से निकाल पाएंगे। क्योंकि अवेयरनेस को कुछ भी डिस्ट्रैक्ट नहीं कर सकता।
हालांकि, इस वक्त भी आपके दिमाग में कुछ ना कुछ चल रहा होगा। इससे बचने का तरीका यह सोचते रहना है, कि नेगेटिविटी बाहर से आती है। (लेकिन, ऐसा है नहीं।)
क्या आपको मालूम है आप के सिर में एक कंप्यूटर प्रोग्राम किया हुआ है? हां, इस कंप्यूटर प्रोग्राम को माइंड कहते हैं आपने इसे उससे ज्यादा पावर दे रखी है जितनी यह डिज़र्व करता है।
आपका यह सोचने वाला दिमाग, हर वह चीज एक्सेप्ट कर लेता है जो यह देखता है। जो जाकर आप के दिमाग में जमा हो जाती हैं, और आपके एक्सपीरियंसेस के लिए कंटेनर की तरह काम करती हैं। और दिमाग इन सारी चीजों को रिसाइकल करके आपके यकीन में बदल देता है, जो कि सच भी हो सकती हैं और झूठ भी। यह यकीन, थॉट में बदल जाता है, जो किसी प्रोग्राम की तरह आपके दिमाग में चलता रहता है। और अक्सर, थॉट्स नेगेटिव या कम्तरी का एहसास कराने वाले होते हैं जैसे कि मेरे पास बहुत कम पैसे हैं या वह शख्स मुझे पसंद नहीं करता।
कुछ लोग इन झूठे ख़यालों में जीते हैं, कि नेगेटिव सिचुएशन हक़ीक़त में कहीं बाहर होती है। लेकिन, असल में, किसी भी सिचुएशन को लेकर नेगेटिव खयाल आपके अंदर से आते हैं। जैसाकि शेक्सपियर ने कहा था, "कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता हमारे ख्याल इसे अच्छा या बुरा बनाते हैं"।
यह एक खतरनाक साइकिल है। अगर आप नेगेटिव फील करते हैं तो यह जल्द ही नेगेटिव सोच में बदल जाएगा। और नेगेटिव थॉट्स आपको और भी बुरा महसूस करने पर मजबूर कर देंगे। जल्द ही, आप अपनी पूरी जिंदगी ग़म के पर्दे से देखने लगेंगे जो हक़ीक़त छुपा देता है। इतना ही नहीं, नेगेटिव थॉट्स की वजह से आपकी सिचुएशंस भी नेगेटिव होने लगेंगी। जितना ज्यादा आप नेगेटिव सोचेंगे उतना ही ज़्यादा नेगेटिविटी अट्रैक्ट करेंगे। अगर आपके दिमाग में लगातार यही चलता रहेगा कि आपकी जिंदगी में पैसे, टाइम या प्यार की कमी है, तो रियलिटी में आपके साथ ऐसा होने लगेगा।
थॉट्स की तरह ही नेगेटिव फीलिंग्स भी आपको बाँध सा देती हैं। और ऐसी बहुत सारी फीलिंग्स आपने अपने अंदर बचपन से दबा कर रखी हैं, क्योंकि आपने उन्हें एक्सप्रेस करने की बजाय छुपा लेना ज्यादा बेहतर समझा। बड़े होने के बाद आपने जितने भी नेगेटिव एक्सपीरियंसेस किए वह आज की आपके अंदर हैं। यह सारी नेगेटिव फीलिंग्स आपके जेहन में बसी हुई हैं जो सेहत पर बुरा असर डालती हैं।
अगर आप इस वक्त खुश महसूस नहीं कर रहे हैं, तो इसका मतलब है आपके अंदर कोई ना कोई नेगेटिव फीलिंग मौजूद है जो आपको असली खुशी महसूस करने से रोक रही है। आप इन सभी नेगेटिव फीलिंग से बाहर निकल सकते हैं- पावर ऑफ अवेयरनेस के ज़रिए।
नेगेटिव फीलिंग्स आना नॉर्मल बात है, अपने आप को नेगेटिव थॉट्स के बिनाह पर जज मत कीजिए
जब आप खुश होते हैं तो ऐसा लगता है कि आप सातवें आसमान पर हैं। आप बहुत एनर्जेटिक तो होते हैं, लेकिन रिलैक्सड भी, यह अच्छा एहसास ही आपका रियल नेचर है, क्योंकि अवेयरनेस आपकी पहचान है और अवेयरनेस से पॉजिटिविटी आती है। वहीं दूसरी तरफ, हमारे अंदर नेगेटिव फीलिंग किसी हालात की नापसंदी की वजह से आती है। जब किसी चीज पर आप रिएक्शन देते हैं, " नहीं मुझे यह नहीं पसंद या नहीं चाहिए"- यह आपके दिमाग में टेंशन और बेचैनी पैदा करता है जिसकी वजह से आपके आसपास नेगेटिविटी छा जाती है। पॉजिटिव फीलिंग्स अपने आप आती हैं, जबकि नेगेटिव फीलिंग बरकरार रखने के लिए बहुत एनर्जी लगती है। अच्छी बात यह है, कि इस बेचैनी को दूर करने और नेगेटिविटी पर अपनी एनर्जी वेस्ट ना करने के कुछ तरीके हैं।
अगली बार अगर आप नेगेटिव महसूस करें, तो अवेयर हो जाइये। इसे आने दीजिए और ओवर रिएक्ट मत कीजिए। आप नोटिस करेंगे कि जब आप अपनी नेगेटिव फीलिंग के हिसाब से रिएक्ट करना बंद कर देते हैं तो यह अपने आप खत्म हो जाती है।
आप वेलकम करने की प्रैक्टिस भी कर सकते हैं, अपने प्रेज़ेन्ट और पास्ट की नेगेटिव फीलिंग्स से बाहर निकलने का यह बहुत पावरफुल तरीका है। इसके लिए, आप अपने नेगेटिव इमोशंस पर ध्यान देना शुरू कीजिए। आप अपनी बाहें फैलाकर भी नेगेटिव फीलिंग का वेलकम कर सकते हैं, जैसे किसी अपने को गले लगाते हैं। आप बेहतर महसूस करेंगे और टेंशन कम होने लगेगी।
लेखक ने इस तरीके का इस्तेमाल अपने बचपन की दर्दनाक याद से छुटकारा पाने के लिए किया था। और अब उन्हें अपने बचपन की वह बात बिल्कुल भी याद नहीं है, उन्होंने रियलाइज़ किया कि नेगेटिव फीलिंग यादों से जुड़ी होती है और ऐसा करके उन्होंने अपनी दर्दनाक याद से निजात पा ली। तो, कुछ इस तरीके से आप अपनी नेगेटिव फीलिंग्स खत्म कर सकते हैं, लेकिन उन नेगेटिव थॉट्स का क्या जिनकी वजह से नेगेटिव फीलिंग्स आती हैं?
अपने थॉट्स से अवेयर होकर आप इससे भी छुटकारा पा सकते हैं। और अपने आप ही उन पर यकीन करना बंद कर देंगे।
अपने ख़यालों को ध्यान से ऑब्जर्व कीजिए। और यह समझिए कि यह ख्याल सिर्फ आपके दिमाग से आ रहे हैं, आप की असल पहचान नहीं है। इस नज़रिये का इस्तेमाल करके, आप खुद फैसला करेंगे कि इन थॉट्स पर यकीन करना है या नहीं। अपने ख़यालों के हिसाब से चलने के बजाय उनके बारे में अवेयर रहिए। इस प्रैक्टिस के ज़रिए आप अपनी जिंदगी में पॉजिटिविटी ला सकेंगे।
अवेयरनेस का इस्तेमाल करके हार्मफुल और झूठे बिलीफ्स से छुटकारा पाइए
बिलीफ्स और थॉट्स एक जैसे ही होते हैं, बिलीफ्स आपके दिमाग़ में आये वह थॉट्स हैं जिन्हें अब आप फैक्ट समझने लगे हैं। इस थॉट को ही कंसीडर कीजिए- ज़्यादा पैसे कमाने का एकलौता तरीका ज्यादा काम करना है। पहली बार आपने यह सेंटेंस किसी और से सुना होगा। उसके बाद आप इसे रिपीट करने लगे। और जल्द ही आपने इसे किसी फैक्ट की तरह एक्सेप्ट कर लिया और उसके बाद आपको वही चीजें नजर आने लगीं जो इस बात को साबित करती हों।
लेकिन यह बिलीफ पूरी तरीके से सही नहीं है। यह बस आपके एक्सपीरियंसेस को जस्टिफाई करता रहा है। आपका बिलीफ, एक्सपीरियंसेस से उलट दूसरी पॉसिबिलिटीज़ देखने से आपको रोकता है। इस एग्जांपल के ज़रिए सिर्फ यह बताने की कोशिश की गयी है कि पैसे बनाने के दूसरे बहुत सारे तरीके तो हैं, मगर क्योंकि हमने हार्ड वर्क के अलावा दूसरे तरीके अपनाएं ही नहीं, इसलिए हमारा यकीन इसे ही जस्टिफाई करता है।
बस हमें इस तरह के हताश करने वाले बिलीफ्स अपनी जिंदगी से निकालने हैं। और इसकी शुरुआत ऐसे सभी बिलीफ्स के बारे में जानने से होती है।
ऐसी गलतफहमी को खत्म करने के लिए आपको उनके बारे में अच्छे से जानना होगा। हमेशा यह जरूरी नहीं है कि आप जो भी बिलीव करते हैं वह गलतफहमी ही हो। इसके लिए आप अपने सामने उन सभी चीजों का ख्याल रखिएजिन पर आप बिलीव करते हैं, ताकि आप उनके बारे में अवेयर हो सकें। उसके बाद उन स्टेटमेंट्स पर ज्यादा ध्यान दें, जिनकी शुरुआत "आई थिंक", "आई डोंट थिंक", "आई बिलीव", या "आई डू नॉट बिलीव" से होती है। अक्सर ऐसे सेंटेंसेस आपकी गलतफहमी ही होते हैं।
ऐसे बिलीफ्स से बचने का दूसरा तरीका अपने रिएक्शन पर ध्यान देना है। अक्सर आप अपनी सोच के हिसाब से ही रिएक्ट करते हैं।
एग्जांपल के लिए, मान लीजिए कि आपका महीने का इलेक्ट्रिक बिल आया और यह आपकी उम्मीद से कहीं ज्यादा है, इसलिए आप नेगेटिव रिएक्ट करते हैं- हो सकता है गुस्से या दुख से। आपके रिएक्शन की बुनियाद आपका यकीन हो सकता है, कि आपसे ज़्यादा बिल लिया गया या आपके पास पैसे नहीं है।
जब आप गलतफहमियां या कोई खास तरह का रिएक्शन नोटिस करते हैं, तो अवेयर हो जाइये। एक बार आप एक्सेप्ट कर लेते हैं कि आपके बिलीव्स सिर्फ एक कहानी है जो आपने खुद से कही है, तो यह गलतफहमियां खत्म हो जाती हैं, और साथ ही वह सभी थॉट्स भी जो लंबे वक्त से आपके दिमाग में बसे हूये थे।
जैसे ही आप अपनी अवेयरनेस का इस्तेमाल अपनी गलतफहमियों को खत्म करने के लिए करते हैं आपको अपनी बॉडी हल्की और कम बोझिल लगने लगती है। आप जो भी चाहें अजीव कर सकते हैं- अब आपके रास्ते में कोई हदें या रुकावटें नहीं होंगी।
यह दुनिया एक अनस्टेबल और वायलेंट जगह है। जंगे होती हैं, लोग भूखे रहते हैं और गरीबी की वजह से नउम्मीदी बढ़ती है। लेकिन प्रीचर्स और संत हमेशा यही कहते हैं कि सब ठीक है। ऐसे बुरे हालातों में वह ऐसा कैसे सोच सकते हैं? क्योंकि वह उस बस के बारे में जानते हैं जो बहुत सारे लोग नहीं समझ सकते- सब कुछ एक वहम है।
हमें लगता है कि सब कुछ एक सॉलिड, कॉंक्रीट फॉर्म में एग्जिस्ट करता है। दरसल हमें सिर्फ "लगता" ही है। साइंस कहती है, कि हमारे काम में जो आवाजें पहुंचती हैं वह वाइब्रेशंस होती हैं, जिन्हें हमारा दिमाग साउंड में बदल देता है। क्वांटम फिजिक्स कहती है कि जब हम वह रूम छोड़ते हैं जिसमें हम बैठे हुए थे, तो उस रूम में मौजूद एनर्जी वापस उसी पोजीशन में लौट जाती हैं।
साइंस की मदद से रियालिटी को बेहतर तरीके से जान कर, हम इन वहम से बाहर निकल सकते हैं। लेकिन यह सब कुछ उस दुनिया पर डिपेंड करता है जो हमसे अलग है। इसका मतलब है 2 सवालों का जवाब कभी नहीं मिल पाएगा, यह यूनिवर्स किस चीज का बना हुआ है? और हमारी कॉन्शियसनेस कहां से आती हैं?
हो सकता है साइंटिस्ट्स को सवाल का जवाब ना मालूम हो लेकिन संतो को मालूम है। उनके हिसाब से इसका सीधा सा जवाब है, कि यूनिवर्स की भी अपनी एक हद है, हम ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि इसकी शुरुआत एक धमाके से हुई और फ्यूचर में किसी पॉइंट पर जा कर यह खत्म हो जाएगा। चुंकि इस यूनिवर्स की एक हद है इसका मतलब यह है कि इसकी शुरुआत किसी ऐसी चीज से हुई है जिसकी कोई हद नहीं है। और संतों का मानना है कि वह चीज हमारी कॉन्शसनेस है। कॉन्शसनेस कहीं से आती नहीं है, यह बस हमेशा से बनी हुई है। यह हमारे अंदर भी मौजूद है और हमारे आसपास भी।
और हां, आप खुद भी वह कॉन्शसनेस हैं जिससे मिलकर यूनिवर्स बना है। आपकी जिंदगी भी मूवी की तरह है, हर हालात, हर हादसा कॉन्शसनेस नाम की स्क्रीन पर दिखाया जा रहा सीन ही है।
इस तारों से भरे कभी न खत्म होने वाले आसमान के बारे में सोचिए। इसे देखकर ऐसा लगता है कि इसका वजूद आप के बाहर है। आपकी नजर के सामने मौजूद आसमान, दिमाग़ द्वारा बनाई गई उन लाइट पार्टिकल्स की इमेज है जो आपके रैटिना से टकराते हैं। इसका मतलब जो कुछ भी आपको बाहर नजर आता है, वह आपके अंदर हो रहा होता है। आप ही यूनिवर्स है- जैसा कि इस दुनिया में मौजूद हर शख्स है। और इसी रियालिटी में आपकी पावर है।
कुल मिलाकर
इस दुनिया में, एवर्लास्टिंग हैप्पीनेस हर किसी की पहुंच में है। ज्यादातर लोग इसे अचीव नहीं कर पाते क्योंकि वह अपने अंदर मौजूद अवेयरनेस के बजाय अपनी बॉडी और माइंड के ज़रिए, इसे ढूंढने की कोशिश करते हैं। अपनी फीलिंग्स के बारे अवेयर हो कर आप सभी नेगेटिव फीलिंग्स से छुटकारा पा सकते हैं।
जब आप दुखी हों तो खुद से कुछ सवाल कीजिए।
जब भी आप नेगेटिव फील करते हैं, मान लीजिए उदास होते हैं, इन हालात में आप "आई एम सैड" जैसे सेंटेंस कहने के आदी हैं। इस तरह के सेंटेंस का इस्तेमाल करके आप अपने नेगेटिव इमोशंस में और एनर्जी डाल रहे होते हैं। अगली बार जब भी आप उदास महसूस करें, अपने आप से सवाल करें कि क्या मैं सैड हूं, या मुझे सैडनेस के बारे में सब कुछ मालूम है? ऐसे सवाल नेगेटिव फीलिंग से बहुत सारी एनर्जी बाहर निकाल देते हैं। आप महसूस करेंगे कि आपकी असली पहचान, जो कि 'अवेयरनेस' है, सैडनेस के पहले और उसके ख़त्म होने के बाद भी मौजूद रहती है।
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