Brendon Burchard
Activating The 10 Human Drives That Make You Feel Alive
दो लफ़्ज़ों में
साल 2012 में रिलीज हुई किताब ‘The Charge’ ये बताती है कि आप खुशियों की तरफ अपनी जिंदगी को कैसे ले जा सकते हैं? अगर आपको भी अपनी लाइफ में कॉंफिडेंट, खुश और एनर्जी से भरे हुए रहना है. तो फिर आपको जिंदगी जीने के तरीके में क्या शामिल करना पड़ेगा? इसी के साथ इस किताब में ज़रूरी टिप्स भी दी गयी हैं. जिनकी मदद से आप लाइफ में आने वाली किसी भी मुश्किल का सामना बड़ी दिलेरी से कर पायेंगे.
ये किताब किसके लिए है?
- ऐसा कोई भी जिसे अपनी जिंदगी में बदलाव लाना हो
- ऐसा कोई भी जिसे साइकोलॉजी में इंटरेस्ट हो
- मोटिवेशनल स्पीकर्स के लिए
- ऐसा कोई भी जिसे लाइफ कोचिंग में इंटरेस्ट हो
लेखक के बारे में
इस किताब के लेखक ‘Brendon Burchard’ हैं. ये हाई परफॉरमेंस अकादमी के संस्थापक हैं. इसी के साथ ये लाइफ कोच और मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं. इन सभी के साथ इन्होने ‘The Millionaire Messenger’ और ‘High Performance Habits’ का लेखन भी किया है.
आप तीन तरह से अपनी लाइफ़ को डिज़ाइन कर सकते हैं
क्या कभी आपको भी ऐसा लगता है कि आप जिंदगी को नहीं बल्कि जिंदगी आपको कंट्रोल कर रही है? आप सुबह उठते हों और आपको अंदाज़ा भी नहीं रहता है कि आज दिन भर में आपके साथ क्या-क्या होने वाला है? दिन भर बस आपका खाने, काम करने और सोने में ही गुज़र जाता है.
तो फिर अब आपको समझ जाना चाहिए कि अब समय आ गया है कि आप अपनी लाइफ में कुछ बड़े बदलाव करें. वो बदलाव क्या होंगे? और उन्हें कैसे करना है? इस बात का पता आपको इस किताब को पढ़ने के बाद ही पता चल जाएगा.
एक गुफा में रहने से अच्छा है कि आप एक चार्ज जिंदगी का चुनाव करिए. अगर आप चार्ज्ड जिंदगी का चयन करते हैं. तब आपको लॉन्ग टर्म फुलफिलमेंट का अनुभव होगा.
तो चलिए शुरू करते हैं!
अगर आप से सवाल किया जाए कि आपकी नजर में फुलफिल लाइफ का मतलब क्या है? तो आप भी सोसाइटी की बताई गयी परिभाषा को ही बतायेंगे. जिसमे एक अच्छी नौकरी शामिल होगी, कार होगी, घर और बच्चे भी होगे. लेकिन आपको बता दें कि ये परिभाषा मटेरियल के इर्द गिर्द ही घूमती है. इस बात का भी पता आपको होना चाहिए कि ख़ुशी कभी भी मटेरियल के आस-पास नहीं हो सकती है.
अगर आप इस तरह की जिंदगी का चुनाव करते हैं. तो इसका मतलब साफ़ है कि आपने एक जेल का चुनाव किया है. इस जेल में ही फंसकर आपको रहना पड़ेगा. भले ही उस जेल के अंदर आपको घुटन होने लगेगी. आप खुश भी नहीं रहेंगे. फिर भी उसकी दीवार तोड़ने से आपको डर लगेगा. इसके पीछे का कारण यही होगा कि आपने उस जेल को एक्सेप्ट कर लिया है. आपके माइंड सेट में ये बैठ चुका है कि मैंने इस जेल को कमाने में काफी मेहनत की है.
लेखक इस किताब में बताते हैं कि कई लोगों को तो उस जेल में घुटन भी नहीं होती है. इसके पीछे का रीजन ये होता है कि उन्होंने एक्सेप्ट कर लिया होता है कि परफेक्ट लाइफ यही होती है. ज्यादातर लोगों के दिमाग में इस बात को बैठा दिया गया है कि जब तक आपकी शादी नहीं होगी. तब तक आप सेटल ही नहीं होगे. सोसाइटी के हिसाब से एक कार है और घर है. तो फिर आपकी लाइफ सेट है. सोसाइटी ये नहीं देखती है कि इंसान को असली ख़ुशी किस चीज़ में मिलती है? लेखक बताते हैं कि आम इंसान की लाइफ में सोसाइटी का प्रेशर बहुत ज्यादा होता है.
इसी के साथ ही साथ इस किताब में लेखक बताते हैं कि बाकी सब तो ठीक है. लेकिन फिर भी एक सवाल रहता है कि क्या मैं अंदर से यही चाहता था? क्या मैं इससे बेटर डिजर्व नहीं करता था. इसी के साथ एक और सवाल उठना चाहिए. वो ये है कि आखिर जिंदगी में असली ख़ुशी का मतलब क्या है? क्या बच्चे और घर होना ही असली ख़ुशी का मतलब है?
लेखक यहाँ बताना चाहते हैं कि इंसान अपनी लाइफ को तीन तरीके से जी सकता है. एक तो केज्ड के अंदर, दूसरा कम्फर्टेबल और तीसरा तरीका है. जो सबके बस का नहीं है. वो है कि आप अपनी जिंदगी को चार्ज्ड तरीके से जीने की कोशिश करिए.
जो इंसान खुद को चार्ज्ड समझता है. उसे इस चीज़ से फर्क नहीं पड़ता है कि दुनिया उसके बारे में क्या सोचती है? इसी के साथ वो अपनी लाइफ में मटेरियल के पीछे कभी भी भागने की कोशिश नहीं करता है. इसलिए ही उन्हें चार्जर्स कहा जाता है. वो कभी भी दूसरे के हिसाब से खुद की जिंदगी को नहीं जीते है. ना ही वो कभी दूसरों में खुद की ख़ुशी की तलाश करते हैं.
वो तमाम कठिनाइयों से खुद गुज़रते हैं. इसी के साथ खुद की ख़ुशी का रास्ता भी खुद ढूंढ कर ले आते हैं. समाजिक बंधनों को चार्जर्स लगातार चुनौती देते रहते हैं. वो शादी को ही सेटल होना नहीं मानते हैं. उनके लिए ख़ुशी किसी भी मटेरियल में छुपी हुई नहीं होती है. चार्जर्स को सुकून और अंदरूनी ख़ुशी से लेना देना रहता है.
इस किताब के इस अध्याय से लेखक बताना चाहते हैं कि अगर आप भी कम्फर्टेबल या फिर केज्ड जिंदगी जी रहे हैं. तो अब समय आ गया है कि आप भी चार्जर की तरह जीने की कोशिश करिए. उसे करना कैसे है? इस बात का जवाब आपको आने वाले अध्यायों में पता चल जाएगा.
अपनी जिंदगी का कंट्रोल अपने ही हाथों में रखने की कोशिश करिए
भले ही आपकी जिंदगी केज्ड में हो या कम्फर्टेबल हो या फिर चार्ज्ड हो. एक चीज़ की तलाश तीनों को ही होती है. वो चीज़ है हैप्पीनेस. इसी के साथ ये प्रूव है कि जो लोग चार्ज्ड जिंदगी जीते हैं. वो लोग ज्यादा खुश रहते हैं.
इसके पीछे का रीजन ये है कि उनके 10 ह्यूमन ड्राइव्स एक्टिवेट रहती हैं.
लेखक यहाँ बताते हैं कि सर्वाइव करने के लिए ह्यूमन ड्राइव का होना ज़रूरी तो नहीं है. लेकिन बिना ह्यूमन ड्राइव के आप बस टेम्परेरी ही ख़ुशी का अनुभव कर सकते हैं. इसी के साथ लेखक बताते हैं कि ह्यूमन ड्राइव ऐसे चीज़ है. जिसकी हम सभी को ज़रूरत है. इसे एक्टिवेट करते ही आप चार्ज्ड लाइफे की तरफ बढ़ जायेंगे. जहाँ पर आपको असली ख़ुशी का मतलब भी समझ में आएगा.
अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर ये ह्यूमन ड्राइव किस चिड़िया का नाम है? इसका जवाब भी आपको अभी ही मिल जाएगा.
आपको बता दें कि फर्स्ट 5 ड्राइव को बेस लाइन ड्राइव भी कहा जाता है. इसी के अंदर सेल्फ कांफिडेंस और सेन्स ऑफ़ बीलोंगिंग आती है. ये ड्राइव हैं कंट्रोल, कम्पेटन्स, केयरिंग, कनेक्शन और अभिनन्दन.
सबसे पहले शुरुआत करते हैं कंट्रोल से-
लाइफ में कई चीज़ें होती हैं . जिनके ऊपर आपका कंट्रोल नहीं होता है. जैसे कि सड़क की ट्राफिक, रेन, ब्रेक अप, लेकिन इन सब सिचुएशन में आपको रियेक्ट कैसे करना है? इसके ऊपर आपका कंट्रोल हो सकता है. उसी रिएक्शन से आपकी जिंदगी में बड़ा बदलाव भी आ सकता है.
अगर आप चार्ज्ड की तरह जिंदगी जीते हैं. तो फिर भले ही कुछ नेगेटिव चीज़ें आपके साथ होंगी. लेकिन आप एक इवेंट को अपने पूरे दिन को खराब नहीं करने देंगे. इसे कहते हैं चार्ज्ड अप्रोच.
यहाँ पर लेखक अपने पिता के आखिरी दिनों को याद करते हैं. उन्हें ब्लड कैंसर था. अपने आखिरी दिनों में भी वो इतने पॉजिटिव थे कि अधिकत्तर हॉस्पिटल स्टाफ उनका दोस्त बन चुका था. सभी से वो हंसी मज़ाक किया करते थे. उन्होंने अपने रवैये से बता दिया था कि भले ही आपकी साँसे कम बची हों, लेकिन जिंदगी जीने का तरीका आपसे कोई भी नहीं छीन सकता है. उनके जाने के बाद भी लोग उन्हें याद किया करते थे.
लेखक यहाँ बताते हैं कि एक बार जब आपके पास पर्सनल कंट्रोल आ जाता है. तब आप प्रोफेशनल कंट्रोल भी अपने हांथों में ले लेते हैं. पर्सनल कंट्रोल आने से आपके अंदर सेन्स ऑफ़ ओनर शिप आती है. लेखक बताते हैं कि जिंदगी की गाड़ी की स्टेयरिंग हमेशा खुद के हांथों में ही रखनी चाहिए. जब तक आप अपनी गाड़ी खुद ड्राइव करेंगे. तब जीत और हार, दोनों में ही आपका खुद का कंट्रोल होगा.
अगर आप अपनी जॉब में ओनरशिप की फीलिंग लेकर आते हैं. तो फिर आपको वो काम सपनों का काम लगने लगेगा. इसके बाद आप और आपकी सफलता को दुनिया सलाम करेगी.
आज के समय को समझने की कोशिश करिए
क्या आपके पास कभी कोई ऐसा टीचर रहा है जो कुछ भी एक्सप्लेन कर सकता हो? इसी के साथ आप उन को-वर्कर के बारे में क्या सोचते हैं जो किसी भी काम में मदद करते हैं? उस तरह के लोग प्रभावशाली होते हैं क्योंकि वो कम होते हैं. इसी तरह से कुछ होती है सेकंड बेस लाइन ड्राइव. जिसे कम्पीटेन्स कहा जाता है.
अब सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर कम्पीटेन्स क्वालिटी होती क्या है?
इसका जवाब है ये क्वालिटी एक ऐसी एबिलिटी होती है. जिसमे आपके पास समझने की, परफॉर्म करने की और मास्टर बनने की काबिलियत होती है. अगर आपके अंदर ये चीज़ करने की काबिलियत आ जाए. तो फिर आपके सामने कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं है. किसी भी मुश्किल को आप बड़ी आसानी से हल कर सकते हैं.
आज के दौर की ये दुखद बात है कि लोगों के अंदर इस क्वालिटी को खत्म किया जा रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ा हाँथ वर्क प्लेस के माहौल का है. आज के समय में लोगों को मल्टी टास्क करने वाले लोग चाहिए होते हैं. इसी कारण लोगों को किसी भी एक काम में महारत हासिल नहीं होती है. जब तक आपको किसी भी काम में महारत हासिल नहीं होगी. जब तक आपके अंदर ये फीलिंग नहीं आएगी कि इस काम को मुझसे बेहतर कोई भी नहीं कर सकता है. तब तक आपके अंदर आत्मविश्वास या तो यूं कहें कि कांफिडेंस का जन्म भी नहीं होगा. इसलिए ही आज के दौर में लोगों के अंदर कांफिडेंस की कमी देखने को मिलती है. इसलिए लेखक कहना चाहते हैं कि अगर आप अभी इस किताब को पढ़ रहे हैं. या फिर सुन रहे हैं. तो फिर आज से ही अपने अंदर कम्पीटेन्स नाम की क्वालिटी को पैदा करने की कोशिश में लग जाइए.
इसी के साथ लेखक बताते हैं कि अगर आपके अंदर कम्पीटेन्स नाम की क्वालिटी नहीं होगी तो फिर इसका खामियाज़ा भी आपको ही भुगतना पड़ेगा. फिर आपके अंदर एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी चीज़ें आने लगेंगी. आप सेल्फ डाउट में रहने लगेंगे. इसलिए ज़रूरी है कि आज ही आप खुद के ऊपर काम करने की शुरुआत कर दीजिये.
अब सवाल ये भी उठता है कि आप ये करेंगे कैसे?
इसका जवाब है कि खुद को चैलेन्ज देकर, आप खुद के अंदर कम्पीटेन्स लूप को तैयार करने की कोशिश करिए.
किसी दूसरे को चैलेन्ज देने से बेहतर है कि आप खुद को ही चैलेन्ज दीजिये. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? आप चैलेन्ज हार जायेंगे. कल बाहर दूसरों से हारने से अच्छा है कि आज आप खुद से हारिये. इससे आपके अंदर जीतने की भावना का जन्म भी होगा. इसी के साथ आपको पता भी चलेगा कि आप खुद को सवा शेर समझ रहे थे. लेकिन आप खड़े कहाँ पर हैं. हमेशा जब कभी भी खुद के अंदर बदलाव लाने की ज़रूरत महसूस हो, तो सबसे पहले खुद को चैलेन्ज दीजिये. हमेशा कोशिश करिए कि कठिन से कठिन चैलेन्ज खुद को दे पायें.
कोशिश करिए कि खुद को रियल चैलेन्ज दें. चैलेन्ज ऐसा होना चाहिए जो कि काफी ज्यादा कठिन हो. इसी के साथ उस चैलेन्ज के साथ टाइम भी जुड़ा हुआ होना चाहिए.
खुद को ओब्सर्व करिए. खुद के क्रिटिक्स भी बनने की कोशिश करिए. जब आप अपने दिए हुए चैलेन्ज को पूरा करेंगे. तो उसके बाद आपके अंदर कम्पीटेन्स का जन्म हो जाएगा. इसी के साथ ही साथ आपके अंदर आत्म विश्वास भी बढ़ जाएगा. इसके बाद आप दूसरे चैलेन्ज के लिए पूरी तरह से तैयार हो जायेंगे. आप खुद ओब्सर्व करेंगे कि पहले के आप में और अभी के आप में ज़मीन और आसमान का अंतर आ चुका है.
आपकी सेल्फ इमेज से आपके एक्शन कितने मिलते हैं?
क्या आप भी काम से लौटते हैं और बेड में सोते समय आपको याद आता है कि आज तो आपकी एनिवर्सरी थी? क्या आप फैमिली के टाइम को भूल जाते हैं. क्या काम के कारण आपको भी जिंदगी को जीने के लिए समय नहीं मिलता है?
अगर आपको भी बेटर पैरेंट या फिर पार्टनर बनना है. तो फिर आपको भी तीसरी बेस लाइन ड्राइव को सीखना पड़ेगा. इसका नाम कॉनग्युरेंस है. इससे आपकी सेल्फ इमेज और एक्शन का मिलाप होने लगेगा. इससे आप जैसा होना चाहते हैं. वैसे ही आपके एक्शन भी होंगे.
कॉनग्युरेंस भी तीन तरह के होते हैं. पॉजिटिव, नेगेटिव और नो- कॉनग्युरेंस.
अगर नो- कॉनग्युरेंस है. तो फिर आपके एक्शन और सेल्फ इमेज का कोई लेना देना नहीं होगा. तब आप बस ऐसा सोचते रहेंगे कि आप बेहतर इंसान हो सकते हैं. लेकिन आपकी सोच और एक्शन का मिलाप कभी भी देखने को नहीं मिलेगा.
अगर आपके पास नेगेटिव कॉनग्युरेंस हैं. तो आपका खुद के बारे में लो ओपिनियन होगा. इसी के साथ ही साथ आपका एक्शन भी कुछ वैसा ही होगा.
इसको एग्जाम्पल से समझते हैं. अगर आप सोचते हैं कि आप इंग्लिश नहीं बोल सकते हैं. तो फिर कभी भी आप उसे सीखने की कोशिश भी नहीं करेंगे. यही बताता है कि आपके पास नेगेटिव कॉनग्युरेंस है.
इन सबके अलावा अगर आपके पास पॉजिटिव कॉनग्युरेंस है. तो फिर आपको पता होगा कि आप कौन हैं? और आपको क्या बनना है? इसी के साथ आपको ये भी पता होगा कि अगर मैंने इस रास्ते को अपनाया तो फिर मैं वो बन जाऊँगा जो मैं बनना चाहता हूँ.
पॉजिटिव कॉनग्युरेंस को अचीव कैसे करें?
इसके लिए आपके अंदर से मोटिवेशन आना चाहिए. जब एक बार मोटिवेशन आ जाये तो फिर कोशिश करिए कि आप उस पर खड़े रहें. कोशिश करिए कि आपकी सोच रीयलिस्टिक हो, दूसरों की सोच से आपको प्रभावित नहीं होना है. आप जो जानते हैं. उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा रिसर्च करने की कोशिश करिए. खुद के फैसलों को बैक करने की आदत डालिए.
क्या आप खुद का ख्याल रखना जानते हैं?
चौथी बेस लाइन ड्राइव को केयर कहते हैं. हम सभी को एक्सेप्ट होना अच्छा लगता है. हम सभी को अटेंशन पाना भी अच्छा लगता है. ये ड्राइव आपको बताती है कि कैसे आप खुद का ख्याल रखिये. इसी के साथ ये बताती है कि कैसे आपको दूसरों से रिलेशनशिप को बनाकर रखना है? अगर कोई दूसरा आपको सम्मान दे तो कैसे उसे हैंडल करना है?
लेकिन दूसरों की केयर करने से पहले आपको ये सीखना चाहिए कि दूसरों से मिलने वाली केयर को एक्सेप्ट कैसे करना है? इसी के साथ आपको खुद के इमोशन के साथ भी डील करना सीखना पड़ेगा.
लेखक यहाँ सलाह देते हैं कि आप अपने इमोशन को सुनने की कोशिश किया करिए. लेखक बताते हैं कि कम से कम दिन भर में तीन बार अपने इमोशन को सुनिए और समझने की कोशिश करिए. अगर आप ऐसा करते हैं. तो फिर आपके इमोशन ही आपको खुद के बारे में बहुत कुछ बता देंगे.
इसी के साथ ही साथ लेखक बताते हैं कि इस एक्सरसाइज से आप इमोशनली मज़बूत भी हो जायेंगे.
आपकी हेल्थ का इमोशन से सीधा नाता होता है. तो सबसे पहले खुद की हेल्थ ख्याल रखने की शुरुआत कर दीजिये. जब आप स्वस्थ रहेंगे तो फिर आप खुश भी रहेंगे.
एक बार जब आप खुद का ख्याल रखना सीख जाएँ. तो उसके बाद आप दूसरों का ख्याल रखना भी शुरू कर सकते हैं.
क्या आपको दूसरों के साथ डीप कनेक्शन बनाना आता है?
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ह्यूमन बीइंग सोशल एनिमल है. इंसान को अपनी भावनाओं को दूसरों से शेयर करना अच्छा लगता है. इंसान का एक सोशल कनेक्शन होता है. अगर आपको पांचवीं बेस लाइन ड्राइव को डेवलप करना है. जिसका मतलब होता है कि आपके अंदर डीप कनेक्शन बनाने की काबिलियत होनी चाहिए. अगर आपको ऐसा करना है. तो फिर आपको अपने संबंधों को लेकर ज्यादा क्लियर होना पड़ेगा.
आपको पता होना चाहिए कि क्लोज रिलेशनशिप का मतलब क्या होता है? आपको सभी रिश्तों के बीच का अंतर भी पता होना चाहिए. आपको मालूम होना चाहिए कि आपको अपने पार्टनर से क्या एक्सपेक्टेशन हैं?
सबसे पहले तो आप अपने एक्सपेक्टेशन अपने पार्टनर के साथ शेयर करिए. इसी के साथ उसके एक्सपेक्टेशन के बारे में आपको भी पता होना चाहिए.
कोई भी अच्छा और खुबसूरत रिश्ता दो अच्छे लोगों के साथ ही बन सकता है. यहाँ अच्छे से मतलब प्योर सोल से है. ईमानदारी दोनों के अंदर होनी चाहिए. इसलिए किसी भी डीप कनेक्शन की शुरुआत करने से पहले उस इंसान को परख लीजियेगा.
पॉजिटिव रहिये और अपने गोल्स को लेकर क्लियर रहिये
अब तक आपने पांच ड्राइव्स से बारे में पढ़ लिया है. अब आगे बढ़ते हैं. आपको नहीं भूलना चाहिए कि जिंदगी का दूसरा नाम ही आगे बढ़ना है. इसलिए आगे हम देखने और पढ़ने की कोशिश करेंगे कि अपने सपनों को पूरा कैसे करना है?
सबसे पहले हमें बदलाव को समझना चाहिए.
हमे एक्सेप्ट करना चाहिए कि इस दुनिया का नियम ही बदलाव है. इंसान पूरी जिंदगी बदलता ही रहता है. सबसे पहले बच्चा होता है. फिर वो लगातार बदलता रहता है. इंसान बायोलॉजिकल भी बदलता है और उसका नेचर भी बदलता रहता है.
इसलिए किसी को भी या किसी भी चीज़ को खोने का डर अपने अंदर से निकाल दीजिये.
फियर ऑफ़ लॉस को खत्म करिए. ये डर इसलिए भी रहता है क्योंकि हमको क्लैरिटी नहीं रहती है.
लाइफ में क्लैरिटी रहना बहुत ज़रूरी है. भले ही आपको जॉब करनी हो या फिर किसी रिश्ते कि आगे बढ़ाना हो. आपके अंदर क्लैरिटी होना बहुत ज़रूरी है. उसके बिना कुछ भी मुमकिन नहीं है. इसलिए जो कुछ भी आप करना चाहते हैं. सबसे पहले तो उसको लेकर खूब सारा रिसर्च करिए.
इसी के साथ ही साथ एक लिस्ट भी बनाने की कोशिश करिए. इस लिस्ट में आप मेंशन करिए कि आपको अपनी जिंदगी में क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए?
खुद को लगातार चैलेन्ज करते रहिये
ऊपर के अध्यायों में भी आपसे कहा गया है कि खुद को चैलेन्ज करके आप खुद का प्रोग्रेस देख सकते हैं. भले ही आप खुद को किसी मैराथन के लिए चैलेन्ज किये हों. या फिर कोई फर्स्ट क्लास निबन्ध लिखने के लिए. लेकिन क्या आपने खुद को कभी जिंदगी की कठिनाइयों का सामना करने के लिए चैलेन्ज किया है?
अगर नहीं किया है. तो फिर किसका इंतज़ार है?
ऐसा ना हो जाए कि जब आप तैयार हों खुद को चैलेन्ज देने के लिए. तब आपको पता चले कि अब तो पूरा खेत चिड़िया चुग गयी है.
इसी के साथ आपको चैलेन्ज और गोल के बीच का अंतर भी पता होना चाहिए.
गोल क्या होता है?
गोल कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं होती है. ये छोटा भी हो सकता है.
चैलेन्ज क्या होता है?
जो आपकी स्किल और एफर्ट्स को साथ में लेकर आये वही चैलेन्ज है. कैसे पता चलेगा कि आपके अंदर काबिलियत है? ये तभी पता चलेगा जब आप कोई काम करेंगे.
इसलिए लेखक बताते हैं कि गोल सरल हो सकता है. लेकिन खुद को चैलेन्ज देते समय इस बात का ख्याल रखिये कि वो कठिन से कठिन ही होना चाहिए. खुद को ऐसा चैलेन्ज दीजिये जिससे आपकी काबिलियत पूरी तरह से निखर कर सामने आ जाये.
हर हफ्ते, हर महीने खुद को नया चैलेन्ज दीजिये.
जब भी नया महीना आये. आपके पास कुछ नया चैलेन्ज होना ही चाहिए.
जब कभी भी कोई चैलेन्ज आप सेट करें तो ये मत सोचियेगा कि कोई दूसरा आपके बारे में क्या सोचेगा?
कभी भी खुद को कुछ करने से इसलिए मत रोकियेगा कि दुनिया क्या कहेगी? याद रखिये कि लोगों का काम है कहना, वो तो कहते ही रहेंगे.
फियर को जजमेंट को अपने अंदर से निकालकर बाहर फेंक दीजिये. यही वो चीज़ है. जो आपको लगातार पीछे की ओर खींचने की कोशिश कर रही है.
क्रिएटिविटी के ऊपर काम करिए
हर किसी के जिंदगी में ऐसा समय आता है. जब उसे अपने काम से बोरियत होने लगती है. इसे मैच्युरेशन का समय भी कहते हैं. लेकिन उसी समय आपको ध्यान देना चाहिए कि कहीं आप रिस्क लेने से डर तो नहीं रहे हैं?
सबसे पहले ऐसा करिए कि खुद से सवाल करिए. इस सवाल में खुद से पूछिए कि आपने अपनी जिंदगी में कितना रिस्क लिया है? आपने अपने काम के चुनाव में कितना रिस्क लिया है? इस तरह के सवाल आपकी पर्सनल ग्रोथ के लिए बहुत ज्यादा ज़रूरी हैं.
अगर अभी आपको ऐसा लग रहा है कि आपके अंदर की क्रिएटिविटी मर चुकी है. तो आप इस बात को याद रखिये कि क्रिएटिविटी ऐसी चीज़ है. जो कभी भी खत्म नहीं हो सकती है. ऐसा ज़रूर हो सकता है कि आपने उसकी पोलिश ना की हो. याद रखिये हर फसल को सही पानी की ज़रूरत होती है. क्रिएटिविटी को भी निखारने के लिए आपको ही मेहनत करनी पड़ेगी.
एग्जाम्पल के लिए लेखक खुद की बात बताना चाहते हैं. वो कहते हैं कि ट्विटर की शुरुआत करने से पहले वो गूगल जैसी बड़ी कंपनी में काफी अच्छी पोजीशन में नौकरी करते थे. लेकिन उन्हें खुद का कुछ ना कुछ करना था. उन्हें किसी नए प्रोजेक्ट की शुरुआत करनी थी. उनकी इच्छा इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने गूगल से इस्तीफ़ा दे दिया था.
गूगल को छोड़ने के बाद ही उन्होंने ट्विटर की शुरुआत की थी. इसलिए आप भी इस बात को याद रखिये कि किसी भी नए काम की शुरुआत तभी होगी. जब आप पुराने काम को छोड़ने की हिम्मत दिखा पाएंगे. अगर आपको लगता है कि आपके अंदर कुछ ख़ास है. आपके अंदर वो क्रिएटिविटी है. जिसकी कीमत दुनिया आपको अदा करेगी. तो फिर देर मत करिए. कल का इंतजार हारे हुए लोग करते हैं. अगर आपके अंदर एक विजेता छुपा हुआ है. तो फिर आज ही शुरू करिए.
एक स्लोगन को याद कर लीजिये कि क्या होगा ज्यादा से ज्यादा? मैं फेल ही हो जाऊंगा ना? इससे ज्यादा तो कुछ हो भी नहीं सकता है. लेकिन ये जिंदगी एक बार ही मिली है. अगर इसमें वो नहीं किया. जिसके लिए मैं बना हूँ. तो फिर बस उम्र बीतने के बाद पछतावा ही रह जाएगा. इसलिए जिंदगी को पछतावा में जीना बंद कर दीजिये. उठिए आगे बढ़िए. सफलता आपका इंतज़ार कर रही है. अगर आपको सफल होना है तो आगे के सफर में चल दीजिये.
क्या आप पैशन और इंटरेस्ट को फॉलो कर रहे हैं?
अब समय आ गया है कि आप अपने अंदर एक और ड्राइव को एक्टिवेट करने की कोशिश करें. ये ड्राइव आपको पैशन और इंटरेस्ट के बारे में बताएगी.
यहाँ पर लेखक आपको बता देना चाहते हैं कि अगर कोई चीज़ को आप दिल से प्यार करते हैं. इसी के साथ उसी काम को आप करते हैं. तो फिर जो आउट पुट आएगा. उसके नज़ारे की गवाह दुनिया बनेगी.
इसलिए इस अध्याय में लेखक सभी को सलाह देते हैं कि अपने पैशन और इंटरेस्ट की खोज आपको ही करनी है. इस पर आपकी मदद कॉज इफेक्ट भी कर सकता है. मतलब साफ़ है कि आप जो भी काम कर रहें हैं. तो सबसे पहले खुद से सवाल करिए. ये सवाल क्या होगा?
आपको खुद से पूछना पड़ेगा कि आप ये काम क्यों कर रहे हैं? क्या आप सिर्फ और सिर्फ पैसों के लिए ये काम कर रहे हैं?
अपने काम के पीछे के मोटिवेशन को पता करने की कोशिश करिए. अगर आप अपने काम से खुश नहीं हैं. अगर आपको आपका काम बोझ जैसा लगता है. तो जान जाइए कि आप सही ट्रेन में नहीं बैठे हैं.
लेखक के अनुसार इस दुनिए में इतिहास उन्हीं लोगों ने बनाया है. जिन लोगों ने अपने दिल से प्यारे काम को किया है.
इसके पीछे की साइकोलॉजी भी बड़ी सिम्पल सी है. जब आप वो काम करते हो. जिसे आप प्यार करते हैं. तो फिर वो काम आपके लिए किसी महबूबा की तरह हो जाता है. जिसके ऊपर आप अपना सारा प्यार लुटा देना चाहते हैं.
इसलिए सबसे पहले अपने इंटरेस्ट और पैशन की तलाश करिए. उसी राह में आगे की तरफ बढ़ने की कोशिश करिए. जिससे आपको प्यार है.
कॉनसियसनेस को इम्प्रूव करिए, इससे आपका फोकस बेहतर से बेहतर होगा
कॉनसियस होने का मतलब क्या होता है? इसका मतलब होता है कि आपको पता होना चाहिए कि आपके चारों तरफ क्या-क्या हो रहा है. इसी के साथ ही साथ आपके अंदर सेल्फ अवेयरनेस भी होना चाहिए.
ये चेतना का एक रूप है.
कॉनसियसनेस का दूसरा रूप ये है कि आपको इस यूनिवर्स की एनर्जी के बारे में भी पता होना चाहिए. आपको मालुम होना चाहिए कि हम सभी लोग एक दूसरे से कनेक्ट हैं. इस कनेक्शन के पीछे एक सुप्रीम एनर्जी का हाँथ है.
इसी के साथ जब आप कॉनसियसनेस की ड्राइव को अपने अंदर एक्टिवेट कर लेंगे. तो आप ओब्सर्व करेंगे कि आप पहले से बेहतर अपने थॉट्स पर कंट्रोल कर पा रहे हैं.
एक बार अगर आपने अपने थॉट्स के ऊपर कंट्रोल करना सीख लिए. तो समझ लीजियेगा कि जिंदगी की मुश्किलों से लड़ना भी आप सीख रहे हैं.
आज की भागती दौड़ती जिंदगी में डिसट्रेक्शन भी काफी ज्यादा बढ़ चुका है. अगर आप कभी-कभी ये कोशिश करें कि आप अपने सेल फोन से दूरी बना सकें. तो आप ओब्सर्व करेंगे कि आपका फोकस भी बेहतर हो रहा है. इसी के साथ ही साथ आपकी प्रोडक्टिविटी भी अच्छी होगी.
लेखक इस अध्याय में ये भी बताना चाहते हैं कि जिंदगी में हर सिचुएशन इतनी सीरियस होती नहीं है. जितनी हम उसे ले लेते हैं. इसलिए हमें जिंदगी को हल्के दिमाग से खुलकर जीना चाहिए.
आपके आस पास जो कुछ भी है आप उसे एकनॉलेज करने की शुरुआत कर दीजिये. अपने पार्टनर को देखिये कि वो कितना प्यारा है और आपको कितना ज्यादा प्यार करता है? एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे तो फिर आप खुद को इस यूनिवर्स से ज्यादा कनेक्ट महसूस करने लगेंगे.
लाइफ में एक बार जब आप इस तरह की फीलिंग को पा लेंगे. उसके बाद आपको कोई भी सिचुएशन परेशान नहीं कर सकती है.
कुल मिलाकर
इस दुनिया में हर इंसान ख़ुशी रह सकता है. हर इंसान ऐसे जी सकता है कि उसे फुलफिलमेंट लगे. इसके लिए बस आपको अपनी लाइफ में इन ड्राइव्स को जगह देनी पड़ेगी.
क्या करें ?
इसे पाने के लिए आप 90 दिनों का गेट वे प्रोग्राम भी बना सकते हैं.
इन 90 दिनों का मतलब यही होगा कि आप खुद के दिमाग को नए और रोमांचक चैलेन्ज दिया करेंगे. इसी के साथ आप उस चैलेन्ज को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध भी रहने की कोशिश करेंगे. चैलेन्ज से ही आपके दिमाग और शरीर में पॉजिटिव बदलाव आ सकते हैं.
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