Richard Wiseman
Achieve the Impossible With the Apollo Mindset
दो लफ्जों में
शूट फॉर द मून में हम उन एक्सट्रा ऑर्डिनरी लोगों की जिंदगी से मिलने वाले लेसंस सीखेंगे जिन्होंने नामुमकिन कहे जाने वाले काम को मुकम्मल करके दिखाया है और 1969 में इंसान को चांद पर पहुंचा दिया. यह समरी उन लोगों के लिए प्रैक्टिकल और एक्शनेबल एडवाइसेस से भरी पड़ी है जो अपने काम पर फोकस करके कुछ एक्स्ट्राऑर्डिनरी अचीव करना चाहते हैं.किनके लिए है
- साइकोलॉजिस्ट्स के लिए
- प्रोजेक्ट मैनेजर
- एंटरप्रेन्योर्स
लेखक के बारे में
Richard Wiseman, University of Hertfordshire में साइकोलॉजी के प्रोफेसर हैं. उन्होंने क्वर्कोलॉजी और 59 सेकंड समेत कई साइंस और साइकोलॉजी बेस्ड किताबें लिखने के साथ ही साइंस से जुड़े कई अवार्ड भी हासिल किए हैं. वह पॉपुलर यूट्यूब वीडियोज़ भी बनाते हैं. उन्हें उन 100 लोगों की लिस्ट में भी शामिल किया गया है जिन्हें माना जाता है कि वह ब्रिटेन को बेहतर बना रहे हैं.
एक वह दौर था जब इंसानों के चांद पर जाने की बात साइंस फिक्शन ही समझी जाती थी. लेकिन फिर 20 जुलाई 1969 को नासा के एस्ट्रोनॉट्स, इंजीनियर्स और मैथमेटिशियंश की टीम ने चांद पर पहुंच कर, क्या मुमकिन है और क्या नहीं की परिभाषा ही बदल डाली.यकीनन इस कामयाबी के पीछे बहुत दिमागदार और बेहतरीन लोग थे लेकिन कुछ बातें थीं जिनका इस्तेमाल कोई भी अपना गोल अचीव करने के लिए कर सकता है. इसी समरी में हम जानेंगे कि इंसान को चांद पर पहुंचाने के सिर्फ चांद पर पहुंचने का तरीका ही शामिल नहीं था बल्कि इस काम में एक गोल ढूंढना और आने वाले किसी भी अनएक्सपेक्टेड चैलेंज के लिए तैयार रहना भी एक बड़ा हिस्सा था.अपनी जिंदगी में बड़ी बड़ी कामयाबियां हासिल करने वालों से सीख कर आप भी अपना मुश्किल से मुश्किल गोल अचीव कर सकते हैं.इस समरी में आप जानेंगे, किक्यों एक अच्छी नींद आपके प्रॉब्लम का बेहतर सलूशन हो सकती है? दिसंबर और जनवरी की डेडलाइन के बीच इतना फर्क क्यों है? और कैसे एक पेन ने अपोलो 11 मिशन को बचा लिया?अगर आप जानते हैं कि आपका मकसद क्या है और आपके पास कोई कंपटीशन है तो यह कामयाबी के रास्ते में बहुत बड़े मोटीवेटर की तरह काम करते हैं.
जुलाई 20 1969 को एक हिस्टॉरिकल इवेंट हुआ जब अपोलो इलेवन ने सेफली चांद पर लैंड किया. लेकिन इस 1 दिन को हिस्टोरिकल बनाने के लिए दशकों तक मेहनत करनी पड़ी थी.अपोलो टीम के मोटिवेटेड रहने के पीछे उनका सेंस ऑफ़ पर्पस था उन्हें अपने काम में एक मकसद नजर आ रहा था. वह लगातार काम करते रहे क्योंकि उन्हें अमेरिका को आगे ले जाना था उनका मानना था अगर चांद पर सक्सेसफुली लैंड हो लिया जाए तो यह पूरी दुनिया में अमेरिका के दबदबे को बढ़ा देगा.जब आप किसी काम को अपने मुल्क के ऑनर के साथ जोड़ लें तो यकीनन यह बहुत बड़ा मोटिवेशन बन ही जाता है. लेकिन परपस का एक स्ट्रांग सेंस रखना कोई रॉकेट साइंस जैसा मुश्किल नहीं है कोई भी टीम कोई भी शख्स चाहे वह यूनिवर्सिटी के कॉल सेंटर में ही क्यों न काम कर रहा हो स्ट्रांग सेंस ऑफ़ पर्पस रख सकता है.यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिलवेनिया, क्वालीफाईड और फाइनेंशियल स्टेबल लोग जो ट्यूशन अफॉर्ड कर सकते हैं उनके लिए एक ग्रैंड प्रोग्राम चलाती है. उनके पास एक कॉल सेंटर है जिसके जरिए वह यूनिवर्सिटी के एल्युमिनाइज को कांटेक्ट करके डोनेशन देने के लिए कहते हैं.
2007 में साइकोलॉजिस्ट Adam ने इस प्रोग्राम के पुराने बेनिफिशियरीज को कॉल सेंटर के लोगों से बात करने के लिए बुलाया ताकि लोगों को पता चल सके कि उनके पैसों ने कितनी जिंदगियां बदली हैं.Adam ने इस दौरान यह भी नोट किया कि कैसे यह एक इंप्रेसिव मोटीवेटिंग फैक्टर बना. वहां पर काम कर रहे हैं स्टाफ को अब मालूम था कि वह कितना बड़ा चेंज ला रहे हैं इन लोगों को अब अपने काम में एक परपस नजर आने लगा था और उनके काम करने के वक्त में 140 परसेंट, फंड में 171 परसेंट की बढ़ोतरी हो गई थी.
परफॉर्मेंस पढ़ाने का दूसरा प्रूवेन तरीका कॉम्पिटेटिव एलिमेंट जोड़ देना है. अपोलो टीम के लिए कॉम्पिटेटिव एलिमेंट मौजूद था. क्योंकि अमेरिका रसिया के साथ स्पेस रेस में था. मतलब अमेरिका और रशिया के बीच सबसे पहले स्पेस में पहुंचने का कंपटीशन चल रहा था.1989 में इंडियाना यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर Norman Triplett ने मोटिवेटिंग फैक्टर के बारे में पढ़ा था. रेस के दौरान साइकिलिस्ट को ऑब्जर्व करके उन्होंने महसूस किया कि जिन साइकिलिस्ट के सामने कंपटीशन था वह बिना कंपटीशन के साइकिलिंग करने वालों के मुकाबले ज्यादा एफर्ट डाल रहे थे और उनकी स्पीड भी ज्यादा थी.
2008 में Triplett की इस खोज को जैपनीज साइकोलॉजिस्ट Kou Murayama ने आगे बढ़ाया. उन्होंने बताया कि कंपटीशन फैक्टर तब और ज्यादा काम करता है जब कोई इंडिविजुअल किसी टीम का हिस्सा हो और टीम मेंबर कंपीटीटर्स के मुकाबले उस इंडिविजुअल की परफॉर्मेंस पर नजर रख रहे हो.2014 में साइकोलॉजी के प्रोफेसर Gavin Kilduff ने इसे आगे बढ़ाते हुए बताया कि कंपटीशन का मोटीवेटिंग फैक्टर तब और ज्यादा कारगर होता है जब जिसके साथ कंपटीशन हो रहा हो वह जानने वाला हो.आगे हम जानेंगे कि कॉम्पिटेटिव होने के दौरान आपको मालूम होना चाहिए कि कब इस कंपटीशन को हल्के में लेना है.
ब्रेक लेना और रात में अच्छी नींद सोना इनोवेटिव पावर को बढ़ाने के लिए बहुत इंपोर्टेंट है। शायद अपोलो 11 की चांद पर लैंडिंग कभी मुमकिन ही ना हो पाती अगर इसके साथ Lunar Orbit Rendezvous का आईडिया ना जुड़ा होता.यही एक कारण था जिसकी वजह से एस्ट्रोनॉट्स के लिए चांद पर पहुंच पाना मुमकिन हुआ क्योंकि उन्होंने चांद पर पहुंचने से पहले अपना एक स्पेसक्राफ्ट चांद के ऑर्बिट में भेजा था. एक बार जब मेन स्पेसक्राफ्ट अॉर्बिट में पहुंच गया तो Neil Armstrong और Buzz Aldrin ने चांद की सरफेस का फाइनल डिस्टेंस कवर करने के लिए स्मॉल लैंडिंग यूनिट Eagle का इस्तेमाल किया था.
यह आइडिया लगातार 48 घंटे के लिए ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन करने से नहीं आया था यह कई महीनों तक आइडियाज़, एडवाइसेज और सजेशंश एक्सचेंज करने से आया. इस दौरान बहुत सारे ब्रेक भी मिले और ऐसे वक्त भी जिनमें यह आइडिया डिवेलप हो करके फ्रूटफुल साबित हो सकता था.ब्रेक लेना या रात में अच्छी नींद सोना लेज़िनेस की पहचान नहीं है. इन्फैक्ट इनोवेटिव आइडिया जनरेट करने के लिए यह चीजें बहुत जरूरी है.स्टीव जॉब्स और मार्क जकरबर्ग जैसे दुनिया के जाने-माने क्रिएटिव माइंड्स काम के दौरान ब्रेक और साथ ही लॉग वॉक जैसी पीसफुल और एनर्जाइजिंग एक्टिविटीज की वकालत करते हैं.अगर आप एक्सरसाइज ब्रेक लेते हैं तो यह ज्यादा हेल्पफुल होता है, 2014 में स्टैनफोर्ड की साइकोलॉजिस्ट Marily Oppezzo ने बताया कि जो लोग अपने काम के दौरान ब्रेक लेकर ट्रेडमिल पर चलते हैं, ब्रेक लेकर बैठ जाने वालों के मुकाबले, उनकी क्रिएटिविटी में 60% का इजाफा हो जाता है.
साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि यह क्रिएटिविटी बूस्ट काम शुरू करने के कई घंटों बाद तक चलती है मतलब अगर आप काम के दौरान 30 मिनट का ब्रेक लेकर ट्रेडमिल पर चल लेते हैं तो यह कई घंटों की क्रिएटिविटी बूस्ट आपको दे देता है.अच्छी नींद लेने की वजह से भी इनोवेटिव थिंकिंग को कुछ ऐसे ही फायदे होते हैं.2004 में University Of Lubeck की साइकोलॉजिस्ट ने बच्चों को खास तौर पर एक ट्रिकी टास्क दिया जिसमें उन्हें कुछ नंबर दिए गए थे उनमें से कुछ नंबरों को दूसरे नंबरों से रिप्लेस करना था. कुछ पार्टिसिपेंट्स को यह टास्क सुबह दिया गया जिसे करने के लिए किसी तरह का ब्रेक नहीं मिला वहीं कुछ पार्टिसिपेंट्स को यह शाम को दिया गया और वह रात की नींद लेने के बाद सुबह काम कर सकते थे.इस टास्क में सलूशन ट्रिकी और इनोवेटिव थे जो कि पहली नजर में समझ नहीं आ रहे थे. नतीजा यह निकला की जिन लोगों को नींद लेने के बाद टास्क करने की फैसिलिटी प्रोवाइड की गई थी उनमें से 60% लोग इन इन्नोवेटिव सॉल्यूशंस को करने में कामयाब रहे. वही बिना नींद के परफॉर्म कर रहे ग्रुप में से सिर्फ 23% लोग ही सही कर पाए थे.इसमें हैरत की बात नहीं है कि गूगल और नाइकी जैसी दुनिया की लीडिंग कंपनी अपने एंपलॉयज़ को नैप लेने के लिए कहती हैं.अगली बार जब आपको कोई प्रॉब्लम सॉल्व करनी हो तो क्यों ना आप नींद ले कर देखें अगली सुबह आप उस प्रॉब्लम को बेहतर तरीके से सॉल्व कर सकेंगे.
कामयाबी के लिए पॉजिटिव आउटलुक और हीरोज का होना जरूरी है.
अपोलो11 की टीम के ज्यादातर मेंबर किसी प्रिविलेज बैकग्राउंड से नहीं आते थे. इंफैक्ट आप कह सकते हैं कि उनमें से बहुत सारे लोगों को टीम में अपनी पोजीशन तक पहुंचने के लिए किसी ना किसी तरह की बंदिशों को पार करना पड़ा था.मुश्किलों के ऊपर इस जीत ने उनके अंदर यकीन डाल दिया था कि चांद तक दो एस्ट्रोनॉट्स पहुंचाने जैसा मुश्किल से मुश्किल गोल अचीव किया जा सकता है. अपोलो मिशन का हिस्सा होने के लिए पॉजिटिव माइंड सेट बहुत जरूरी था क्योंकि इस रास्ते पर बहुत सारी मुश्किलें थी जिनका सामना करना था.इसलिए आप जिंदगी में चाहे कुछ भी करना चाहते हो पॉजिटिव आउटलुक रखना बहुत जरूरी है. यह पॉजिटिव आउटलुक अपने आप नहीं आ जाता इसे कल्टीवेट करना पड़ता है.ऐसा करने के लिए आपको उस वक्त को याद करना होगा जब आपने कुछ ग्रेट अचीव किया था चाहे वह अच्छा रिजल्ट रहा हो या किसी प्रोजेक्ट का सक्सेसफुल होना. याद कीजिए कि उस वक्त आपने ऐसा क्या किया था जिसकी वजह से आप ऐसा रिजल्ट क्रिएट करने में कामयाब हुए थे और वह पॉजिटिव आउटलुक अपने दिमाग में बार बार रिप्ले करते रहिए.
इसे बार-बार रिपले करने के लिए उस इवेंट से जुड़ा कोई फोटो, कार्ड या मोमेंटो वहां पर रखिए जहां पर आप उसे हर रोज देख सकते हैं. जैसे कि अपने बेड की साइड टेबल पर या मेन डोर के एकदम सामने. धीरे-धीरे वक्त के साथ यह पॉजिटिव आउटलुक आपके मन में जगह कर लेगा.कामयाबी पाने के लिए दूसरी यूज़फुल टिप रोल मॉडल रखना है एक ऐसा लिविंग इंसान जिसे देख कर आप अपने आप को याद दिला सके कि एक्स्ट्राऑर्डिनरी चीजें अचीव की जा सकती हैं. जरूरी नहीं है कि ऑप्टिमिस्टिक होने के लिए आपने कुछ बड़ा अचीव किया हो आप किसी को रोल मॉडल भी बना सकते हैं हिस्ट्री में ऐसे हजार एग्जांपल भरे पड़े हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि जब अचीवमेंट की बात आती है तो सिर्फ आसमान ही लिमिट है.इसलिए अपना कोई पर्सनल हीरो तलाश कीजिए और जब आगे बढ़ना मुश्किल लगने लगे तो उसे याद कीजिए. Helen Keller इसका बहुत अच्छा एग्जांपल है 1989 में जन्मी हेलेन एक बीमारी की शिकार हो गई जिसके चलते उनकी आईसाइट और सुनने की ताकत दोनों ही चली गई. इसके बावजूद उन्होंने सीखा कि किसी दूसरे तरीके से कैसे कम्युनिकेट किया जा सकता है और हिस्ट्री में पहली आर्ट्स में बैचलर डिग्री हासिल करने वाली डीफ और ब्लाइंड शख्स बनी.वह यूनाइटेड स्टेट भी पहुंची. गरीबों और औरतों की आवाज उठाने वाली लीडिंग एक्टिविस्ट बन गई उन्होंने यह साबित किया कि अगर इरादा पक्का हो तो मुश्किल से मुश्किल रास्ता पार किया जा सकता है.
कामयाब होने के लिए ग्रोथ माइंडसेट रखना होगा खासतौर पर तब जब नाकामियों का सामना करना पड़े। अगर आपको एजुकेशन की शुरुआत में खराब मैथ्स टीचर मिला रहा होगा तो आपको पढ़ने में मुश्किल आई होगी और आखिरकार आपने खुद ही मान लिया होगा कि मैं इस सब्जेक्ट में बेकार हूं. हो सकता है अगर कभी किसी ने किसी के बारे में आपको कहा हो कि वह शक्स लाइब्रेरियन है तो आपने उस शख्स के बारे में सोच लिया होगा कि वह इंट्रोवर्ट ही होगा, है ना?
इस तरह के असम्पशन कॉमन है लेकिन यह लिमिटेड कर देने वाले और नुकसानदायक भी हैं. कामयाब होने के लिए ऐसे माइंडसेट की ज़रुरत है जो लिमिटेशन के एकदम उलट हो- जिसे हम ग्रोथ माइंडसेट कहते हैं.जब आप ग्रोथ माइंडसेट रखते हैं तो आपको मालूम होता है कि किसी की मौजूदा सिचुएशन पर्मानेंट नहीं रहेगी. उन्हें इस बात पर यकीन होता है कि हर कोई इम्प्रूव कर सकता है और उसकी एबिलिटी भी बेहतर हो सकती है. यह माइंडसेट सक्सेस के लिए इंकरेज करता है.1980 में स्टैनफोर्ड की साइकोलॉजिस्ट Carol Dweck ने ग्रोथ माइंडसेट और फिक्स्ड माइंडसेट का टर्म दिया था, जो किसी की काबिलियत पत्थर पर लिखे होने मतलब किसी की काबिलियत के जिंदगी भर एक जैसे होने के यकीन को डिस्क्राइब करता है.2007 में 2 साल की लंबी स्टडी के बाद उन्होंने इन दोनों माइंडसेट के इफेक्ट को प्रूफ किया. इस स्टडी के तहत उन्होंने मुश्किल मैथ प्रोग्राम का हिस्सा रहे सैकड़ों हाई स्कूल के स्टूडेंट्स को ऑब्जर्व किया. इस स्टडी के शुरुआत में साइकोलॉजिस्ट ने यह आईडेंटिफाई किया कि किस स्टूडेंट का माइंडसेट ग्रोथ माइंडसेट है और किसका फिक्स्ड माइंडसेट. कुछ महीनों बाद ही यह क्लियर हो गया था कि ग्रोथ माइंडसेट वाले स्टूडेंट्स फिक्स्ड माइंडसेट वाले स्टूडेंट्स से बेहतर परफॉर्म कर रहे थे और साल गुजरते गुजरते दोनों के बीच परफॉर्मेंस का यह फर्क बढ़ता गया.इसके कारण के रूप में साइकोलॉजिस्ट बताती हैं कि ग्रोथ माइंडसेट वाले बच्चे किसी फेलियर को देखने के बाद खुद को रिकवर कर लेते हैं. उन्होंने कहा कि ग्रोथ माइंडसेट वाले बच्चे जानते थे कि उनकी एबिलिटी बढ़ती रहेगी और वह नाकामी से नहीं डर रहे थे. वह अपने फेलियर से सीख कर खुद को इंप्रूव कर रहे थे और नये चैलेंजेस का सामना करने और मैथमेटिकल प्रॉब्लम से सीखने के लिए एक्साइटिड थे.वहीं दूसरी तरफ फिक्स्ड माइंडसेट वाले बच्चों को डर था कि मैथ प्रॉब्लम का गलत सलूशन यह साबित कर देगा कि वह मैथ में अच्छे नहीं है. जिसकी वजह से वह कोशिश करने से भी डरने लगे.
प्रोक्रेस्टिनेशन से बचने के लिए काम को एक स्टेप आगे ले जाइए और अपने लिए स्मार्ट डेडलाइन सेट कीजिए.
अपोलो मिशन में एक फ़्लाइट कंट्रोलर Jerry Bostick भी थे. उनका मानना था कि चूंकि आप वो सब कुछ नहीं कर सकते जो आप करना चाहते हो इसका यह मतलब नहीं है कि आप हार मान जाएं और कुछ भी ना करें.उनकी यह बात सिर्फ रॉकेट साइंटिस्ट पर ही नहीं बल्कि हर किसी पर अप्लाई होती है क्योंकि वह प्रोक्रेस्टिनेट करने और सही वक्त का इंतजार करने से मना करते हैं. जिस सही सिचुएशन का हम इंतजार कर रहे हैं वह शायद कभी आए ही ना.
प्रोक्रेस्टिनेशन से बचने के लिए काम को एक स्टेप आगे ले जाइए और अपने लिए स्मार्ट डेडलाइन सेट कीजिए.
अपोलो मिशन में एक फ़्लाइट कंट्रोलर Jerry Bostick भी थे. उनका मानना था कि चूंकि आप वो सब कुछ नहीं कर सकते जो आप करना चाहते हो इसका यह मतलब नहीं है कि आप हार मान जाएं और कुछ भी ना करें.उनकी यह बात सिर्फ रॉकेट साइंटिस्ट पर ही नहीं बल्कि हर किसी पर अप्लाई होती है क्योंकि वह प्रोक्रेस्टिनेट करने और सही वक्त का इंतजार करने से मना करते हैं. जिस सही सिचुएशन का हम इंतजार कर रहे हैं वह शायद कभी आए ही ना.
प्रोक्रेस्टिनेशन से बचने का एक अच्छा तरीका अपने काम को एक टाइम पर एक स्टेप ही आगे ले जाइए.चलिए मान लेते हैं कि न्यू ईयर पर आपने रिज़ॉल्युशन रखा कि आप 10 पौंड वेट कम करेंगे. यह कोई आसान गोल नहीं है अगर आप पूरे दमखम से शुरु हो जाते हैं तो हो सकता है आप शुरुआत करने से पहले ही हार मान जाएं. लेकिन अगर आप हर महीने 1 पाउंड वेट कम करने का इरादा करते हैं तो आपको यह गोल अचिवेबल लगने लगेगा. हो सकता है समय आने तक आप पूरे 10 पाउंड ना कम कर सकें लेकिन 6 पाउंड ना से तो बेहतर ही होगा. क्या पता एक बार आप को पॉजिटिव रिजल्ट दिखने लगे तो आप मोटिवेट हो कर तेजी से वेट घटाने लग जाएं.
चलिए मान लेते हैं कि आप अपनी मौजूदा जॉब बरकरार रखते हुए एक सॉफ्टवेयर स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं.हो सकता है कि आप चाहते हो कि 1 महीने में ही यह स्टार्टअप रफ्तार पकड़ ले लेकिन जैसे ही आपको एहसास होता है इसके लिए आपको हर घंटे पूरे महीने काम करना होगा तो मुमकिन है कि इस एहसास से भी आप हार मान जाएं. लेकिन अगर आप थोड़ा सा फ्लैक्सिबल होते हैं और सिर्फ वीकेंड पर काम करने का फैसला करते हैं तो हो सकता है आप अपना स्टार्टअप जल्द ही लांच कर लें.प्रोक्रेस्टिनेशन से बचने का दूसरा तरीका स्मार्ट डेडलाइन सेट करना हो सकता है. आपने सही सुना सभी डेडलाइन एक जैसी नहीं होती कुछ डेडलाइन्स दूसरी से बेहतर होती हैं.2014 में फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिस्ट ने पार्टिसिपेंट्स को बैंक अकाउंट खोलने के लिए 6 महीने की डेडलाइन दी एक ग्रुप को जून से दिसंबर के बीच की तो दूसरे ग्रुप को जुलाई से जनवरी तक की.चूंकि एक ग्रुप की डेडलाइन अगले साल की जनवरी में थी इसलिए उन्हें ज्यादा टाइम महसूस हुआ और उन्होंने अपने काम को ज्यादा प्रोक्रेस्टिनेट किया. तो अगर आप स्मार्ट डेडलाइंस सेट करना चाहते हैं तो अगले साल, अगले महीने या अगले हफ्ते ना रखें क्योंकि इस तरह की डेट से हमारे दिमाग को लगता है कि हमारे पास ज्यादा वक्त है और हम ज्यादा प्रोक्रेस्टिनेट करते हैं.
अपने गोल को अचीव करने के लिए आपको मुश्किल फैसले लेने होंगे जिसके लिए अपने डर को एक्सेप्ट करना बहुत जरूरी है।Gerry Griffin अपोलो 12 मिशन के लीडिंग फ़्लाइट डायरेक्टर थे, यह इवेंट कई वजह से नॉटेबल था कम से कम इस वजह से तो जरूर कि 14 नवंबर 1969 को टेक ऑफ करने के बाद रॉकेट लाइटनिंग मोमेंट में फंस गया था.इस अनएक्सपेक्टेड डेवलपमेंट ने Gerry को बहुत मुश्किल सिचुएशन में डाल दिया था क्योंकि उन्हें ही फैसला लेना था कि मिशन आगे बढ़ाना है या फिर सिचुएशन के और खराब होने से पहले प्लग खींच देना है.
स्ट्राइक की वजह से कंट्रोल रूम में दिखने वाला डाटा अनक्लियर हो गया था. अच्छी बात यह रही कि ग्राउंड पर काम कर रहे क्रु मेंबर्स एस्ट्रोनॉट से कम्युनिकेट करने में कामयाब रहे और उनके एण्ड में मौजूद बटन को फ्लिप करवाया जिसके चलते शिप का डाटा दोबारा ऑनलाइन आ सका. यह काम हो जाने की वजह से अब कम से कम रॉकेट को मॉनिटर किया जा सकता था.अपोलो 12 को तैयार और लांच करने में बहुत वक्त पैसा और मेहनत लगी थी ऐसे में अगर प्लग खींच दिया जाता तो तीनों ही चीजें वेस्ट हो जातीं. लेकिन Gerry के एक ट्रस्टेड कलीग ने उन्हें सही वक्त पर बताया कि इस बार चांद पर लैंड करना उनके लिए इतना भी जरूरी नहीं है.Gerry ने वही करने का फैसला किया जो उन्हें करना चाहिए था उन्होंने चेक किया कि सब कुछ ठीक है और फिर डिसाइड किया कि मिशन वैसे ही कंटिन्यू किया जाएगा जैसे प्लान किया गया था. उनका यह फैसला सही साबित हुआ क्योंकि अपोलो ने नासा को चांद पर दूसरी लैंडिंग मुकम्मल करके दी थी और मौजूद एस्ट्रोनॉट्स 10 दिन बाद जमीन पर सही सलामत लौट भी आए.इसलिए कभी-कभी अपने फ्यूचर के बारे में फैसला लेने के लिए आपको अपने डर को एक्सेप्ट करना पड़ता है. अच्छी बात यह है कि कुछ तरीकों के जरिए जिंदगी के इस पहलू पर खुद को बेहतर किया जा सकता है.जितना ज्यादा आप कुछ करते हैं, यह उतना आसान होता चला जाता है. इसलिए आप जितना ज्यादा वह चीजें करते हैं जो आपको डराती हैं आप उतना ज्यादा ब्रेव महसूस करने लगते हैं, क्योंकि वह चीजें उतनी डरावनी नहीं रह जातीं. अगर आप लगातार अपने डर का सामना करते रहते हैं तो आप किसी भी क्राइसिस का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं.
अब आप खुद से पूछिए कि वह कौन सी चीजें हैं जिन्हें करने से आपको डर लगता है क्या यह पब्लिक स्पीकिंग है, स्विमिंग है या पार्टी में अननोन लोगों से बात करना? यही सही वक्त है कि आप स्विमिंग क्लास लेना शुरू करें या काम पर प्रेजेंटेशन देने की कोशिश करें.जब आप इन एक्सपीरियंसेस से सेफली बाहर निकल आते हैं तो आप ब्रेव होने लगते हैं और क्राइसिस में फैसला लेने की काबिलियत बढ़ जाती है.
किसी बड़े इवेंट के लिए अच्छे से तैयारी करना और किस तरह की प्रॉब्लम आ सकती हैं उसके लिए पहले से तैयार रहना मददगार साबित होता है.
अपोलो 11 अपनी कामयाबी के लिए जाना जाता है इसका यह मतलब नहीं है की इसके रास्ते में रुकावटें नहीं थीं.20 जुलाई 1969 को एक प्रॉब्लम खड़ी हो गई थी जब नील आर्मस्ट्रांग और Buzz Aldrin को ले जाने वाला लूनार मॉड्यूल Eagle चांद के करीब पहुंचने लगा था. यह एक बहुत बड़ा मकसद था. जब लूनर मॉड्यूल चांद के करीब पहुंचने लगा तो कंट्रोल रूम को कई अलर्ट मिलने लगे और स्क्रीन पर 1022 पॉपअप होने लगा इसका मतलब क्या था? क्या दोनों एस्ट्रोनॉट्स खतरे में थे.ऐसे वक्त के लिए पहले से तैयार रहना बहुत जरूरी होता है और मिशन लीडर Jack Garman तैयार थे. उनके पास सभी तरह के कोड की 1 शीट थी इसलिए वह फौरन पहचान गए कि 1022 का क्या मतलब है उन्होंने कंट्रोल टीम को बताया कि इसका मतलब है कि Eagle ओवरलोड हो गया है. क्योंकि यह चांद से बचे हुए डिस्टेंस का अंदाजा लगा रहा था, मेन शटल की मूवमेंट भी कैल्कुलेट कर रहा था साथ ही अर्थ पर इनफोर्मेशन भी भेज रहा था. 1969 में एक कंप्यूटर के ऊपर इतना प्रेशर होना बहुत ज्यादा होता था.Graman को मालूम था की कंप्यूटर का मालफंक्शन टेंपरेरी है और यह लैंडिंग में इंटरफेयर नहीं करेगा. मिशन वैसे ही आगे बढ़ा जैसा प्लान किया गया था और आखिरकार नील आर्मस्ट्रांग ने कह दिया "ईगल लैंड कर चुका है."
अगर आप भी अपोलो 11 मिशन टीम की तरह पहले से तैयार रहना चाहते हैं तो आपको कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट लांच करने से पहले उससे जुड़ी पोटेंशियल प्रॉब्लम के लिए तैयार हो जाना चाहिए.साइकोलॉजी और डिसीजन मेकिंग स्पेशलिस्ट होने के नाते Gary Klein ने प्रि मॉर्टम डिवेलप किया है, जोकि हाई प्रेशर सिचुएशन के लिए तैयार होने का एक तरीका है जिसके तहत आपको इमेजिन करना होता है कि हर स्टेप पर चीजें खराब जा रही हैं. इस तरह आप हर स्तर पर होने वाले फेलियर के पीछे की वजह भी एक्ज़माइन कर सकते हैं.चलिए मान लेते हैं कि आप एक फंडरेज़र ऑर्गेनाइज कर रहे हैं और इस इवेंट पर कोई भी नहीं आता. आखिर ऐसा होगा क्यों? हो सकता है कि इनविटेशन में गलत डेट बताई गई हो या वेन्यू का डायरेक्शन बहुत कन्फ्यूजिंग हो?जब आप प्री-मॉर्टम बनाते हैं तो आप सभी तरह की पोटेंशियल प्रॉब्लम से डील करने के लिए पहले से तैयार होते हैं और इंश्योर कर सकते हैं कि ऐसी कोई प्रॉब्लम आए ही ना. पर अगर आती भी है तो आप उनका सामना बड़ी तेजी से कर सकें.
अपना गोल अचीव करने के लिए एडेप्टेबल होना बहुत इंपॉर्टेंट है यह आपकी खुशियों में भी कंट्रीब्यूट करता है।
चांद पर पहली लैंडिंग के करीब आते-आते सिर्फ ओवरलोड अलर्ट की ही प्रॉब्लम नहीं आई थी. जब ईगल लैंड कर रहा था उस वक्त एक एस्ट्रोनॉट ने वह बटन तोड़ दी थी जिसकी जरूरत उन्हें आगे का इंजन चलाने के लिए पड़ने वाली थी जो कि स्पेसक्राफ्ट को अॉर्बिटिंग के लिए ले जाने और ऐस्ट्रोनॉट्स को दोबारा जमीन पर ले आने के लिए जरूरी था.यह कोई छोटी प्रॉब्लम नहीं थी लेकिन अच्छी बात यह है कि Buzz काफी अडैप्टेबल थे और उन्होंने बहुत सही वक्त पर बहुत वाइज सलूशन सोच लिया था. इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए उन्होंने अपने पॉकेट में रखी ट्रस्टी फेल्ट-टिप पेन का इस्तेमाल करने का सलूशन निकाला. उन्हें मालूम था कि प्लास्टिक का पेन इलेक्ट्रिसिटी कंडक्ट नहीं कर सकेगा और इसकी साइज उस ओपनिंग के साइज में फिट हो रही थी जहां से बटन टूट गया था.उन्होंने जैसा सोचा वैसा ही हुआ और हम कह सकते हैं कि Buzz की पेन और उनकी अडैप्टिबिलिटी ने उन दोनों एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर भटकने से बचा लिया.
इससे हमें यह भी समझ आता है कि हमें चाहे जितना लगे कि हमने सभी पोटेंशियल प्रॉब्लम का सलूशन सोच लिया है लेकिन कुछ अनएक्सपेक्टेड चैलेंजेस सामने आ ही जाएंगे. इसलिए किसी भी बड़े प्रोजेक्ट के मामले में कुछ अनएक्सपेक्टेड होने के लिए तैयार रहना भी बेटर होगा क्योंकि आपकी सक्सेस इस बात पर भी डिपेंड करती है कि आप किसी सिचुएशन में कैसे रिएक्ट करते हैं, जैसे आखिर में आते-आते अपोलो इलेवन की कामयाबी एस्ट्रोनॉट की अडैप्टिबिलिटी पर डिपेंडेंट हो गई थी.वहीं दूसरी तरफ अगर आप अडैप्टेबल हैं तो सिर्फ नाकामियों से नहीं बच जाते बल्कि इससे खुशियां भी बढ़ती हैं.2003 में ब्रिटिश साइकोलॉजी और मैनेजमेंट एक्सपर्ट Frank Bond ने एक स्टडी कंडक्ट की जिसमें 300 एंपलॉयज़ को कुछ क्वेश्चन दिए गए ताकि यह पता किया जा सके कि वह कितने अडैप्टेबल हैं. उनसे पूछा गया कि वह काम पर आने वाले चैलेंजस का सामना कैसे करते हैं खास तौर पर क्या उनके पास किसी प्रॉब्लम के कई सलूशन होते हैं या हर बार एक ही सलूशन पर काम करते हैं.इस स्टडी के लास्ट में पाया गया कि ज्यादा अडैप्टेबल लोग ना सिर्फ ज़्यादा प्रोडक्टिव थे बल्कि दूसरों के कंपैरिजन में ज्यादा खुश भी थे.अपोलो मिशन की टीम ने यह साबित किया है कि नामुमकिन दिखने वाले मकसद को भी पूरा किया जा सकता है. और ऐसा करके उन्होंने दुनिया को दिखाया है कि कैसे कोई अपना सपना पूरा कर सकता है. कुछ फोकस्ड एफर्ट करके आप जिंदगी में आने वाले चैलेंज का सामना करने के लिए मोटिवेटेड, करेजियस और क्रिएटिव रहेंगे, और बड़ा सपना देखने से डरेंगे नहीं.
कुल मिलाकर
कुछ भी आप की पहुंच से बाहर नहीं है अपोलो टीम से सीख कर आप भी उन सभी गोल्स को अचीव कर सकते हैं जो आपको नामुमकिन लग रहे हो. कुछ बड़ा हासिल करना ना कोई जादू है और ना किस्मत की बात है. अपना गोल हासिल करने के लिए कोशिश कीजिए कि आपको अपने काम में कोई मकसद मिल जाए, जरूरत भर ब्रेक लीजिए, जब भी कोई बड़ी प्रॉब्लम आया जिसका सलूशन आप को ना समझ आ रहा हो तो नींद लेकर देखिए और हर पोटेंशियल प्रॉब्लम के लिए खुद को तैयार कीजिए यहां तक कि अनएक्सपेक्टेड सिचुएशन के लिए भी.
क्या करें
अपना मोटिवेशन बढ़ाने के लिए अपना कंपटीशन खुद क्रिएट कीजिए
मोटिवेशन और परफॉर्मेंस बढ़ाने के लिए कंप्टीट करना एक बहुत बढ़िया तरीका है. इसलिए अगर आपको कोई गोल अचीव करने में मुश्किल आ रही है तो देखिए क्या आप इस पूरी सिचुएशन में कोई कंपटीशन क्रिएट कर सकते हैं क्या. मिसाल के तौर पर अगर आप अपना वजन कम करना चाहते हैं तो अपने पार्टनर के साथ कंपटीशन कर सकते हैं कि कौन ज्यादा वेट कम करता है. अगर आपको जिम में मोटिवेशन की कमी महसूस होती है तो इमेजिन कीजिए कि आप किसी ऐसे इंसान से कंप्टीट कर रहे हैं जिसे अपना राइवल समझते हैं.
येबुक एप पर आप सुन रहे थे Shoot For The Moon by Richard Wiseman
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