Whitney Johnson
डिस्रप्टिव इनोवेशन की ताकत का इस्तेमाल अपने काम में करना सीखो
दो लफ्जों में
डिस्रप्ट योरसेल्फ ( Disrupt Yourself ) में हम देखेंगे कि किस तरह से कंपनियां पुराने आइडियाज़ को जड़ से उखाड़ कर नए आइडियाज़ से काम कर सकते हैं। यह किताब स्टार्ट अप कंपनियों को बताती है कि किस तरह से वे नए तरीके से काम कर के मार्केट में कामयाब हो सकते हैं।
यह किसके लिए है
-वे जो एक स्टार्ट अप कंपनी के सीईओ हैं या एक कंपनी खोलना चाहते हैं।
-वे जो बिजनेस करने के नए तरीकों के बारे में जानना चाहते हैं।
-वे जो नए आइडियाज़ पैदा करने के तरीके जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
व्हिट्नी जॅानसन ( Whitney Johnson ) कंपनियों को सिखाती हैं कि किस तरह से वे पुराने आइडियाज़ को छोड़कर नए आइडियाज़ पैदा कर सकते हैं और खुद भी पुराने तरीके से काम करना छोड़कर नए तरीके से काम करना सीख सकते हैं। वे रोज़ पार्क एडवाइज़र्स की को-फाउंडर हैं और एक लेखिका हैं चार किताबें लिखी हैं।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
एक स्टार्ट अप कंपनी का ख्वाब होता है कि वो भी एक दिन अरबों में खेले और उसकी भी पूरी दुनिया में चर्चा हो। लेकिन अगर आप हर बार वही पुराने तरीके अपनाते रहेंगे तो इस तरह की कामयाबी आप से बहुत दूर होगी। समय के साथ अपने सोचने के और अपने काम करने के तरीकों को बदलना होता है और इस किताब में हम आपको इस तरह से काम करने के तरीके बताएंगे।
डिस्प्टिव इनोवेशन का मतलब होता है एक ऐसा आइडिया जो पुराने आइडियाज़ को जड़ से उखाड़ फेके और एक नई पहचान बनाए। इस किताब में वो तरीके बताए गए हैं जिससे आप इस तरह के आइडियाज़ पैदा कर सकते हैं। यह किताब बहुत से एक्साम्पल लेकर आपको बताती है कि किस तरह से बहुत से कामयाब लोगों ने डिस्प्टिव इनोवेशन का इस्तेमाल कर के कामयाबी हासिल की।
-एक स्टार्ट अप कंपनी के लिए किस तरह का रिस्क लेना ज्यादा अच्छा है।
-कम पैसा या कम अनुभव किस तरह से आपके लिए आपके लिए ताकत बन सकते हैं।
-हर वक्त कुछ सीखते रहने से किस तरह आप कामयाबी पा सकते हैं।
एक स्टार्ट अप कंपनी के लिए मार्केट रिस्क लेना ज्यादा अच्छा होगा।
यहाँ पर अलग अलग तरह के रिस्क होते हैं और इससे पहले कि आप कोई भी रिस्क लें, आपको उसके बारे में अच्छे से जान लेना चाहिए। बिजनेसमैन सिर्फ फायदों को देखते हुए ही रिस्क नहीं लेते, वे हर रिस्क को उससे मिलने वाले फायदे से तौलते हैं और फिर सोच समझ कर रिस्क लेते हैं। तो आखिर बिजनेस में रिस्क कितने तरह के हो सकते हैं?
यह दो तरह के होते हैं - काम्पटेटिव रिस्क और मार्केट रिस्क।
काम्पटेटिव रिस्क में आपको पता होता है कि आप जो भी प्रोडक्ट बना रहे हैं, मार्केट में उसकी जरूरत ज्यादा है लेकिन साथ ही आप यह भी जानते हैं कि दूसरी कंपनियां भी वो प्रोडक्ट बना रही हैं और वे भी उसे लाँच करेंगी जिससे कि आपको उनसे प्रतियोगिता करनी होगी।
काम्पटेटिव रिस्क ऊपर से देखने में एक सुरक्षित आप्शन दिख सकता है क्योंकि आप कुछ ऐसा बना रहे हैं जिसकी मार्केट को जरूरत है। लेकिन एक स्टार्ट अप कंपनी के लिए यह रास्ता ठीक नहीं है क्योंकि इस वक्त वे नए हैं और मार्केट में उनकी प्रतियोगिता बड़ी बड़ी कंपनियों से होगी।
1995 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर क्लेटन क्रिस्टेनसन ने कंप्यूटर इंडस्ट्री पर एक स्टडी की और पाया कि काम्पटेटिव रिस्क लेने वाली स्टार्ट अप कंपनियों में से सिर्फ 6% स्टार्ट अप कंपनियां 100 मिलियन डॉलर तक पहुंच पाती हैं। उन्होंने यह स्टडी हार्ड डिस्क बनाने वाली कंपनियों पर किया था।
दूसरी तरफ जब आप एक मार्केट रिस्क ले रहे होते हैं तो आप कुछ नया बना रहे होते हैं जिसमें आपको पता नहीं होता कि आपका प्रोडक्ट मार्केट में कितना कामयाब होगा, लेकिन आप फिर भी मार्केट में कुछ नया लाने की कोशिश करते हैं। एक्साम्पल के लिए जब फेसबुक पहली बार निकला था, तो यह किसी को नहीं पता था कि यह एक दिन इतना कामयाब हो जाएगा, क्योंकि उस समय मार्केट में लोगों को इस तरह की चीज के बारे में पता ही नहीं था।
मार्केट रिस्क सुनने में ही कुछ रिस्की लगता है क्योंकि आपको अब तक सिर्फ यह लग रहा है कि आपका प्रोडक्ट कामयाब हो जाएगा, लेकिन आपके पास अब तक कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे आप यह तय कर पाएं कि उसके कामयाब होने की संभावना क्या है। लेकिन एक स्टार्ट अप कंपनी के लिए यह रिस्क लेना ठीक होगा क्योंकि स्टडीज़ दिखाती हैं कि मार्केट रिस्क लेने वाली स्टार्ट अप कंपनियों में से 37% कंपनियां 100 मिलियन डॉलर तक पहुंच जाती हैं।
कामयाब होने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल कर लोगों की समस्या सुलझाइए।
हर किसी के पास कुछ ऐसी खूबी जरूर होती है जिसका इस्तेमाल कर के वो लोगों की मदद कर सकता है और कामयाब हो सकता है। आपको भी अपने अंदर से उस चीज़ को बाहर निकालना होगा और उसका इस्तेमाल कर मार्केट की किसी जरूरत को पूरा करना होगा। इस तरह से आप कामयाब हो सकते हैं।
एक्साम्पल के लिए 2014 में आई फिल्म द हंड्रेड फुट जर्नी के किरदार हसन को ले लीजिए जो कि भारत में चल रहे राजनीतिक दंगों की वजह से अपने परिवार के साथ यूरोप में चला जाता है। उसे भारतीय तरीके से खाना पकाने आता है और फ्राँस के एक गाँव में अपने रेस्तरां खोलता है, लेकिन गाँव के लोग शक के मारे उसके यहाँ नहीं जाते।
इसके बाद वहां के एक फ्रेंच रेस्तरां का मालिक हसन को अपना स्टूडेंट बनाकर उसे फ्रेंच तरीके से खाना बनाना सिखाता है। हसन अब अपने इंडियन मसालों की समझ और फ्रेच तरीकों को मिलाकर खाना बनाना शुरू करता है जिससे उसका रेस्तरां बहुत कामयाब हो जाता है।
इसके अलावा इस तरह से वो बिजनेस का एक नया मार्केट खोल देता है जिसके ऊपर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया था। अब तक कोई भी इस तरह के खाने को मार्केट में नहीं ला रहा था। हसन ने इसकी शुरुआत पहली बार की। असल जिन्दगी में भी कुछ लोग हैं जो इस तरह के नए तरीकों को अपने बिजनेस में लागू करते हैं।
एक्साम्पल के लिए डैन लॅाक को ले लीजिए जो कि लोगों को हाइ टिकट क्लोसिंग सिखाते हैं। जब सबसे पहले उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि सोशल मीडिया के जरिए वे किस तरह से बहुत सारे लोगों तक पहुंच सकते हैं, तो उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया। इसके अलावा उन्होंने इंस्टाग्राम पर भी अपने फैन्स बनाने शुरू किए।
आज उन्हें अपने बहुत से स्टूडेंट्स अपने सोशल मीडिया से मिलते हैं। इसके अलावा वे एक स्पीकर, एक सलाहकार भी हैं और उन्हें अपने इस काम के लिए बहुत से क्लाइंट भी सोशल मीडिया से मिल जाते हैं जिसके लिए उन्हें बहुत कम मेहनत और ना के बराबर पैसे खर्च करने होते हैं। इस तरह से उन्होंने ने भी ग्राहकों तक पहुंचने का एक नया तरीका खोज निकाला।
बिजनेस की दुनिया में कम पैसे होने से आप कुछ ज्यादा अच्छा सोचना सीख सकते हैं।
जब हमारे पास बहुत से आप्शन होते हैं, तो हमें चुनने में कुछ ज्यादा दिक्कत होती है। जिन्दगी में जब चीजें कम हो जाती हैं तो लोग उनकी अहमियत समझने लगते हैं और उन साधनों का इस्तेमाल अच्छे से कर सकते हैं। अगर आपके पास इस समय अपने बिजनेस के लिए अच्छे पैसे नहीं है , तो यही वक्त है कुछ नया और सस्ता आइडिया खोज कर निकालने का।
एक्साम्पल के लिए रीयल एस्टेट मैनेजर निक जेकोगियन को ले लीजिए जो कि अपने शुरुआती दिनों में अपने बिजनेस में ज्यादा पैसे नहीं लगा पा रहे थे। उनके कर्मचारियों को यह बात अच्छे से पता थी कि कंपनी गलतियां करने का बोझ नहीं उठा सकती और इसलिए उन्होंने ध्यान से और मेहनत कर के काम किया। लेकिन 2007 में जब उनकी कंपनी अच्छा पैसा कमाने लगी, तो उनके कर्मचारी लापरवाही से काम करने लगे और उनका बिजनेस नीचे जाने लगा।
इस सबक से आप यह सीख सकते हैं कि कम पैसे होना कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बन सकती है अगर उनका इस्तेमाल अच्छे से किया जाए तो। यही बात अनुभव पर भी लागू होती है। जब आपके पास अनुभव कम होता है तो भी आप कुछ अच्छा काम कर सकते हैं।
इस बार एक्साम्पल लेते हैं एथेलिया वूले लेसुएउर का। वे अंतरराष्ट्रीय रिश्ते बनाने में एक्सपर्ट थी लेकिन सेहत खराब होने की वजह से उन्होंने वो काम छोड़ दिया और फैसन की दुनिया में काम करने लगी। उन्होंने अपना एक आनलाइन क्लाथ शॅाप लाँच किया जिसका नाम शैबि एप्पल था और उन्होंने अपने काम के लिए होलसेलर या रीप्रेसेंटेटिव्स नहीं रखे। यह लोग बहुत ज्यादा महंगे होते हैं और कुछ ज्यादा फायदा कंपनी के लिए नहीं पैदा करते।
क्योंकि लेसुएउर को इन बातों के बारे में पता नहीं था, उन्होंने इन्हें काम पर नहीं रखा और उन्हें इनका काफी फायदा मिला। आज उनकी कंपनी 43.5 मिलियन डॉलर की हो चुकी है।
नए आइडियाज़ को खोजने के लिए आपको नए लोगों की बातों को सुनना होगा।
बिजनेस की दुनिया में आपको बहुत से ऐसे बॅास मिलेंगे जो अपने कर्मचारियों की बात नहीं सुनते हैं। इसके अलावा उनके कर्मचारी उनकी बात को काटते भी नहीं हैं क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं उनका आइडिया रिजेक्ट ना कर दिया जाए। लेकिन इस तरह का बर्ताव आइडियाज़ पैदा करने की प्रक्रिया का दुश्मन है।
नए और बेहतर तरीके खोजने के लिए आपको कुछ नए लोगों से मिलना होगा और उनकी बातों को ध्यान से सुनना होगा। हम सभी हमेशा अपने तरह के लोगों के बीच रहते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि हमें लगे कि हम जो सोच रहे हैं वो सही है। हमारी तरह सोचने वाले लोग वही सोचते हैं जो हम सोचते हैं और इस तरह से आइडियाज़ का मिल पाना नामुमकिन है।
एक्साम्पल के लिए केल्लाग स्कूल आफ मैनेजमेंट को ले लीजिए जिसे 1990 से 2000 के बीच निकलने वाले साइंटिफिक पेपर्स को पढ़ा और उनकी कामयाबी के पीछे की बात जानने की कोशिश की। उन्होंने पाया कि जो सबसे कामयाब साइंटिफिक पेपर्स थे उन्होंने रीसर्च करने के लिए बहुत से जाने माने सूत्रों का तो इस्तेमाल तो किया ही था, साथ ही उन्होंने 10% से 15% दूसरे सूत्रों का भी सहारा लिया था।
इसका मतलब यह कि जो लोग सबसे ज्यादा कामयाब थे वे खुद को सबसे समझदार नहीं समझते थे। वे दूसरे तरह के लोगों के पास उनके आइडिया के लिए जाते थे और फिर कुछ नया बनाकर सबके सामने रखते थे। यही उनकी कामयाबी का राज है।
इसके अलावा बहुत से लोगों को लगता है कि अगर सामने वाला उनसे कम कामयाब है या फिर उनके मुकाबले कम समझदार है तो वो अच्छे आइडियाज़ नहीं दे सकता। यह भी नए आइडियाज़ पैदा करने से आपको रोकता है। उसकी बात सुनकर एक उसके नजरिये पर गौर कर लेने से आपका कुछ भी नुकसान नहीं होगा। उसकी बात मानना या ना मानना तो आपके ही हाथ में हैं, लेकिन एक बार उसकी बात सुन लेने से हो सकता है आपको कुछ अच्छा आइडिया मिल जाए।
समय के हिसाब से अपने कैरियर को बदलने में भी समझदारी होती है।
आपने वो कहावत सुनी ही होगी कि जब शेर दो कदम पीछे लेता है तो वो छलाँग मारने की तैयारी कर रहा होता है। कुछ ऐसा ही आपको अपने कैरियर के साथ भी करना पड़ सकता है। कभी कभी पीछे हट लेने से लम्बे समय में आपको फायदा मिल सकता है।
एक्साम्पल के लिए कैरीन क्लार्क को ले लीजिए जिन्होंने अपनी जिन्दगी में बहुत से कैरियर बदलने वाले फैसले लिए लेकिन अंत में उन्हें ही इसका फायदा मिला। वे एक साफ्टवेयर कंपनी नोवेल के लिए एक सीनियर मैनेजर का काम करती थी। उन्होंने जब अपना 80 मिलियन डॉलर का मार्केटिंग कैंपेन लाँच किया तो उन्हें लगा कि वे अपने गेम के सारे लेवेल पार कर चुकी हैं और उन्हें अब नए गेम में जाना चाहिए। इसलिए उन्होंने उस कंपनी को छोड़ दिया।
इसके बाद उन्होंने एल्टिरिस नाम का एक छोटा आईटी मैनेजमेंट एसेट का एक प्लैटफार्म खोला जिसे 2007 में एक 6 अरब डॉलर की कंपनी सिमैनटेक ने खरीद लिया और उन्हें इसके बाद सिमैनटेक का सीईओ बना दिया गया। वे अब कुछ ज्यादा तरक्की कर रही थी। लेकिन बात यहां पर खत्म नहीं हुई।
2009 में उन्हें ब्रीस्ट कैंसर हो गया जिसकी वजह से उन्होंने फिर से अपना पद छोड़ दिया और कुछ साल बिजनेस से बाहर रही। लेकिन ठीक होने के बाद 2012 में उन्होंने एक और साफ्टवेयर की छोटी कंपनी बनाई जिसे मैरिट्स सीएक्स ने 2015 में खरीद लिया। इसके बाद उन्हें फिर से मैरिट्स सीएक्स का सीईओ बना दिया गया।
क्लार्क की जिन्दगी से हमें यह सीखने को मिलता है कि जिन्दगी में एक जगह पर कामयाब हो जाने के बाद वहाँ पर रुकना नहीं चाहिए। बल्कि हमेशा कुछ नया कर के उसमें कामयाब होने की कोशिश करनी चाहिए। जिन्दगी में हारना जीतना लगा रहता है और हारने पर हमें निराश नहीं होना चाहिए।
जीत तक का रास्ता हार के दरवाजे से होकर जाता है।
हार और जीत दो अलग अलग रास्ते नहीं हैं बल्कि वे दोनों एक ही रास्ते पर पड़ते हैं। अगर आप अपनी जिन्दगी में कभी हारे हैं या क्लास में कभी फेल हुए हैं तो यह आपके लिए बहुत अच्छी बात हो सकती है। जिन्दगी में कभी न कभी तो सभी को हारना है और जो पहले ही हार का स्वाद चख चुका है वो इस हालात से जल्दी बाहर निकल जाता है।
कैरोल ड्वेक और क्लाओडिया म्यूलर नाम के दो चाइल्ड साइकोलाजिस्ट्स ने 5वीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को कुछ आसान से सवाल लगाने के लिए दिए। एक ग्रुप के बच्चों से उन्होंने कहा कि वे बहुत स्मार्ट हैं इसलिए उन्होंने यह सवाल लगा लिया और दूसरे ग्रुप से उन्होंने कहा कि उन्होंने अच्छे से मेहनत की इसलिए वे उन सवालों को लगा पाए।
इसके बाद दूसरे राउंड में उन्होंने दोनों ग्रुप के बच्चों को बहुत मुश्किल सवाल लगाने के लिए दिए। फिर तीसरे राउंड में उन्होंने फिर से उन्हें कुछ आसान से सवाल दिए। तीसरे राउंड में उन्होंने देखा कि जिस ग्रुप को उन्होंने स्मार्ट कहा था, उस ग्रुप को पहले के मुकाबले 25% कम मार्क्स मिले और जिनकी तारीफ उनकी मेहनत के लिए की गई थी, वे पहले से 25% बेहतर मार्क्स लेकर आए।
इस स्टडी से यह बात साबित हो गई कि हारने जब आप उसे गलत नजर से देखते हैं तो आगे बढ़ने की प्रेरणा खत्म हो जाती है। लेकिन जब आप यह सोचते हैं कि जब तक आप मेहनत कर रहे हैं तब तक आप कुछ भी पा सकते हैं और तब तक हारने से कोई फर्क नहीं पड़ता , तो आप हार को सह ले जाते हैं और कामयाब हो जाते हैं।
हारने से आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। मार्क ज़ुकरबर्ग फेसबुक बनाने से पहले एक फेसमैच नाम का सोशल मीडिया लेकर आए थे जहां पर वे दो लड़कियों की फोटो लोगों को दिखाते थे और उनसे वोट करवाते थे कि कौन सी लड़की ज्यादा सुंदर है। उन्होंने सारे फोटोज़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सर्वर से चुराए थे जिसकी वजह से उनके इस नेटवर्क को बंद कर दिया गया था।
इसके बाद उन्हें यह पता लगा कि लोगों को नहीं पसंद कि कोई व्यक्ति चोरी छिपे उनको फोटो लेकर इस तरह का काम करे, लेकिन लोगों को यह बहुत अच्छा लगता है कि कोई उनके फोटो को लाइक करे या उसपर अच्छे कमेंट करे।
इसके बाद उन्होंने फेसबुक बनाया जहाँ पर लोग खुद अपने फोटो अपलोड करते थे जिससे फोटो चुराने वाली समस्या सुलझ गई और साथ ही फेसबुक ने लाइक का एक बटन दे दिया जिससे लोग उन्हें लाइक कर सकें। इस तरह से उन्होंने अपनी गलती को सुधारा और उसका नतीजा आज हम सब देख ही रहे हैं।
समय के साथ बदलाव करना जरूरी है।
यह जरूरी नहीं है कि आप जो करने की कोशिश कर रहे हैं उसे कर ही ले जाएं। हो सकता है कि आप उससे भी कुछ बेहतर कर लें। जिन्दगी कभी कभी आपको वो नहीं देती जो आपको चाहिए होता है, लेकिन जो वो देती वो शायद उससे बेहतर होता है जो आप ने माँगा था। इसलिए अगर आप जो चाह रहे थे वो आपको नहीं मिला तो हिम्मत मत हारिए। हो सकता है आपको उससे बेहतर मिल जाए।
इसके अलावा कभी भी सीखने की चाह को मत छोड़िए। हमेशा कुछ नया करते रहिए क्योंकि इससे आपके कामयाब होने की संभावना बढ़ जाती है। लिंडा डेस्कैनो को सीखने का बहुत शौक था। उन्होंने सबसे पहले जीओलॅाजी के स्टूडेंट की तरह पढ़ना शुरू किया, फिर वे एक एन्विरान्मेंटल कंसल्टेंट की तरह काम करने लगी, फिर वे एक कानूनी काउंसेलिंग में काम करने लगी। इसके बाद उन्होंने सिटीबैंक का लीगल सेक्टर जाइन किया जहां पर वे कुछ रिस्क लेकर कुछ अनुमान लगाती थी और लोगों को जानकारी देती थी। इसके बाद वे एक ऐसेट मैनेजर बन गई।
कुल मिलाकर लिंडा ने इतना सब कुछ करने की प्लानिंग नहीं की थी। उन्हें बस कुछ नया करने का शौक चढ़ा रहता था और वे अलग अलग काम सीखती गई और उन्हें करती गई जिससे उन्होंने इतनी कामयाबी हासिल की।
इसके अलावा बहुत से लोग कोशिश करते करते कुछ और ही बना देते हैं। वे बनाना कुछ और चाह रहे थे लेकिन हालात कुछ ऐसे हुए कि अंत में उन्होंने कुछ और ही बना दिया। यह उनकी किस्मत नहीं थी बल्कि उनकी कोशिश थी। जब उनका आइडिया काम नहीं करता था तो वे सिर पकड़ कर रोते नहीं थे बल्कि कुछ और करने की कोशिश करते थे।
इसके एक अच्छे एक्साम्पल हैं एलेक्जैंडर ग्राहम बेल जिन्होंने टेलीफोन का आविष्कार किया था। वे अपनी पत्नी के लिए सुनने का एक डिवाइस बना रहे थे ताकि उनकी पत्नी अच्छे से सुन सकें। लेकिन जब वो उनसे नहीं बन पाया, तो उन्होंने दूसरा तरीका अपना कर टेलीफोन बना दिया।
कुल मिलाकर
एक स्टार्ट अप कंपनी के लिए मार्केट रिस्क लेना ज्यादा अच्छा साबित हो सकता है। नए आइडियाज़ को पैदा करने के लिए अलग अलग तरह के लोगों की बातें सुनना जरूरी है। हर वक्त कुछ नया सीखने और कुछ नया करने से आप खुद को अगले लेवेल पर लेजा सकते हैं। अगर आप कामयाब नहीं भी होते हैं तो भी कोशिश करना मत छोड़िए क्योंकि कामयाबी तक का रास्ता हार के दरवाजे से होकर जाता है।
अपने अंदर की आवाज सुनिए।
बहुत से लोगों को लगता है कि अगर वे वो करेंगे जो वे करना चाहते हैं तो उससे वे पैसे नहीं कमा पाएंगे। लेकिन यह जरूरी नहीं है। एक्साम्पल के लिए सूसैन कैन को ले लीजिए जो कि समाज के उन लोगों पर ध्यान देना चाहती थी जो अकेले रहना पसंद करते हैं। उन्होंने इस पर एक बेस्ट सेलिंग किताब लिखी और बाद में द क्वाइट रेवोल्यूशन नाम के एक सोशल मीडिया की सीईओ बन गई। उन्होंने अपने अंदर की आवाज सुनी।