Daniel James Brown
आम युवा लड़कों का साहस
दो लफ्जों में
साल 2013 में आई ये किताब वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के कुछ लड़कों के साहस की कहानी आपके सामने रखती है जहां एक आम स्टूडेंट से ज्यादा हैसियत न रखने वाले ये लड़के अपनी जिंदगी की मुश्किलों और महामंदी जैसी चुनौती का सामना करके 1936 के बर्लिन ओलंपिक में जीत हासिल करते हैं।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• एथलीट और खास तौर पर रोविंग से जुड़े लोग
• हर वो इंसान जो इतिहास, WWII या स्पोर्ट्स में रुचि रखता है
• जो लोग मोटिवेशनल कहानियां पढ़ना चाहते हैं
लेखक के बारे में
डेनियल जेम्स ब्राउन एक जाने माने लेखक हैं। उनको ढेरों बड़े पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं। उन्होंने Under the Flaming Sky: The Great Hinckley Firestorm of 1894 और The Indifferent Stars Above: The Harrowing Saga of a Donner Party Bride जैसी फेमस किताबें लिखी हैं।
ये 1933 की बात है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के बहुत से स्टूडेंट्स ने रोविंग टीम का हिस्सा बनने के लिए कॉम्पिटिशन में भाग लिया पर उनमें से कुछ ही ये परीक्षा पास कर पाए।
ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा स्पोर्ट्स इवेंट है। चाहे 19वीं सदी से एथेंस में शुरू हुआ मॉडर्न ओलंपिक हो या पुराने ओलंपिक, इन पर पॉलिटिक्स का असर हमेशा से रहा है। लेकिन 1936 में हुए बर्लिन ओलंपिक में खिलाड़ियों ने शायद उतने रिकॉर्ड नहीं तोड़े होंगे जितने हिटलर के दबदबे के रिकॉर्ड टूटे थे। पांच गोल्ड और 1 सिल्वर जीतकर जर्मनी की रोविंग टीम ने नाजीवाद की हेकड़ी और बढ़ा दी थी। लेकिन अभी इतिहास लिखा जाना था क्योंकि सातवीं रेस बाकी थी। भले ही इस कहानी का अंत जर्मनी में हुआ पर इसकी शुरुआत सिएटल में हो चुकी थी। आम घरों के आठ लड़के किस तरह अपनी रोजमर्रा की परेशानियों से जूझते हुए पहले कॉलेज, फिर ओलंपिक टीम और आखिर में विजेता की जगह पर पहुंचते हैं ये सब आपको इस कहानी से पता लगता है। आप भी इनके सफर का हिस्सा बनते हैं।
इस किताब को पढ़कर आप जानेंगे
• एक लकी चार्म के बारे में
• "स्विंग" क्या होता है
• किस तरह स्वादिष्ट भोजन और कुछ जर्म्स ने एक बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी
तो चलिए शुरू करते हैं!
इस साल यूएस में महामंदी का दौर था। उस समय आबादी का एक चौथाई हिस्सा यानि लगभग दस मिलियन लोग बेरोजगार थे। दो लाख से ज्यादा होमलेस थे। लोगों के पास दो वक्त की रोटी खाने का पैसा नहीं था फिर पढ़ाई का सोचता ही कौन? लेकिन वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी ने ऑफर दिया कि जो भी रोविंग टीम में शामिल हो जाएगा उसे पार्ट टाइम जॉब मिल जाएगी। इस वजह से बहुत लोग इसकी तरफ आकर्षित हुए। मुकाबला तगड़ा था। अक्टूबर 1933 में 175 लड़कों ने अपना नाम लिखाया और कोच इनके तरह-तरह के टेस्ट लेने लगे। अल उल्ब्रिकसन हेड कोच थे। वो बहुत साफ और कम बोलने वाले इंसान थे जो दो बार नेशनल चैंपियनशिप जीत चुके थे।
दूसरे कोच टॉम बॉलेस को स्पोर्ट्स मीडिया, प्रोफेसर कहकर बुलाती थी। वो मास्टर्स की पढ़ाई कर रहे थे और गुडलक के लिए एक खास तरह की टोपी पहना करते थे। मुकाबले में आए लड़के अगले कुछ हफ्तों तक रोविंग के लिए खुद को ट्रेन करते रहे। वो बुरी तरह थक जाते ऊपर से सिएटल का हमेशा बदलते रहने वाला मौसम मुश्किल और बढ़ा देता था। महीना खत्म होते होते 175 में से बस 80 लोग ही रह गए थे। इनमें से दो नाम थे जो रैंट्ज और रोजर मॉरिस। इन दोनों ने इंजीनियरिंग पढ़ी थी। वैसे तो ज्यादातर लड़के शहरों के थे पर जो रैंट्ज गांव में पले बढ़े थे और उनको मेहनतकश जिंदगी जीने की आदत थी। इस वजह से उनमें बाकी लोगों से ज्यादा ताकत थी। जबकि रोजर इन सारों में इकलौते थे जिनको नाव चलाने का अनुभव था। 12 साल की उम्र में वो नाव चलाकर 15 मील दूर जाया करते थे।
जो का बचपन मुश्किलों से भरा था पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
जो का जन्म 1914 में वॉशिंगटन के एक गांव में हुआ था। उनके पिता हैरी एक ऑटोमोबाइल रिपेयर की दुकान चलाते थे। जो का एक भाई था फ्रेड जो उनसे 15 साल बड़ा था। जब जो चार साल के थे तक उनकी माँ को गले का कैंसर हो गया और वो दुनिया छोड़ गईं। ये तो बस परेशानियों की शुरुआत थी। उनके पिता कनाडा चले गए और जो कभी अपनी बुआ तो कभी अपने भाई के घर भटकते रहे। हैरी तीन साल बाद वापस आ गए। उन्होंने दूसरी शादी कर ली और एक पिता की जिम्मेदारी निभाने लगे। लेकिन जल्द ही उनके दो बच्चे और हुए। सौतेली माँ के लिए जो एक बोझ की तरह थे।
हैरी भी नौकरी की तलाश में इधर से उधर भटकते रहे। जब उनकी पत्नी तीसरी बार माँ बनने वाली थी तो उसने हैरी से साफ कह दिया कि अगर जो इस घर में रहता है तो वो चली जाएंगी। 15 साल की उम्र में जो पर अपनी जिम्मेदारी आ गई। वो वॉशिंगटन में ही रह गए और बाकी परिवार दूसरे शहर चला गया। जो ने हार नहीं मानी। वो मछली बेचने लगे और धीरे-धीरे अल्कोहल का बिजनेस जमा लिया। अब वो पढ़ाई भी करते, लोकल बैंड में भी शामिल भी हो गए और उनकी जिंदगी में एक लड़की भी आ गई। जो की मेहनत रंग लाई। उन्होंने अच्छे नंबरों से स्कूल पास किया और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया।
रोविंग के लिए आठ लोगों की टीम बनाना एक मुश्किल काम था।
किसी काम का एक्सपर्ट बनने में वक्त लगता है। रोविंग के लिए आए लोग भी जल्द ही ये बात समझ चुके थे कि इसे रातोंरात नहीं सीखा जा सकता। इसके लिए स्विंग को समझना और टीम का बेहतरीन तालमेल होना जरूरी है। फिलहाल ये लोग इस बात के लिए मुकाबला कर रहे थे कि नाव में कौन किस जगह पर बैठेगा। रेस वाली नाव में नौ लोग होते हैं जिनमें से आठ तो नाव चलाते हैं और एक नाव में पीछे बैठकर सबसे पहले नंबर पर बैठे इंसान को आवाज लगाता जाता है जिससे वो अपनी स्पीड तय करता रहे। रोविंग के लिए सबका एक यूनिट की तरह काम करना जरूरी है क्योंकि अगर कोई एक भी इंसान गड़बड़ कर दे तो नाव पलट जाएगी।
जब हर नाव चलाने वाला सिंक में होता है तो टीम मजे से एक ताल में काम करती है। सबके हाथ एक साथ चलते हैं और नाव बिना डगमगाए तेजी से आगे बढ़ती जाती है। रोविंग जितनी तेज होगी स्विंग को बनाए रखना उतना ही मुश्किल होगा। इसलिए कोच को बहुत ध्यान के साथ उन लोगों की टीम बनानी होती है जो एक दूसरे के साथ अच्छी तरह तालमेल बिठा सकें। हर साल वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के कोच तीन टीम बनाते थे। एक फ्रेशमैन टीम, दूसरी जूनियर वर्सिटी टीम और तीसरी वर्सिटी टीम। इसके लिए महीनों लगे क्योंकि कोचों ने अलग-अलग रोवर्स की अदला-बदली करते हुए कई ट्रायल रेस कराईं। जब तक कि उनको बेस्ट आठ लोग नहीं मिल गए। 28 नवंबर 1933 को कोच बोल्स ने फ्रेशमैन टीम की पहली रेस के लिए लिस्ट निकाली। रोजर मॉरिस बो में पहले नंबर पर थे, शॉर्टी हंट नंबर दो और जो रैंट्ज नंबर तीन पर थे।
जॉर्ज पोकॉक और उनकी बनाई नावें, रोविंग की दुनिया में बहुत बड़ी जगह रखती थीं।
एक अच्छी टीम को अच्छी नाव की भी तो जरूरत होती और नाव बनाने वालों में सबसे ऊपर नाम था जॉर्ज पोकॉक का। जॉर्ज की कहानी इंग्लैंड से शुरू होकर वाशिंगटन तक जाती है। रोविंग की बात थेम्स के जिक्र के बिना अधूरी है। पोकॉक का परिवार लंदन में नाव बनाने का काम करता था। उनके पिता रेसिंग वाली नाव बनाने में माहिर थे। जॉर्ज इनसे भी एक कदम आगे निकले। उन्होंने रेसिंग टेक्नीक की ही पढ़ाई की और अपने पिता से भी बढ़िया रेसिंग नाव बनाने लगे। वो काम की तलाश में लंदन छोड़कर कनाडा आ गए और वैंकुवर रोविंग क्लब में काम करने लगे। साल 1912 में उन पर हीराम कोनिबियर की नजर पड़ी जिनको वॉशिंगटन रोविंग का फादर कहा जाता था। कोनिबियर ने उनसे वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के लिए नाव बनाने को कहा। जॉर्ज ने यहां भी बाजी मार ली और हीराम को नाव चलाने के कुछ ऐसे बढ़िया दांव पेच सिखा दिए जो आगे चलकर कोनिबियर स्ट्रोक के नाम से फेमस हो गए। इसकी मदद से यूनिवर्सिटी की टीम को बहुत फायदा भी हुआ। इस तरीके में ज्यादा ताकत लगाकर छोटे स्ट्रोक लिए जाते हैं। लेकिन जॉर्ज के पिटारे में और भी कुछ था।
1927 आते आते जॉर्ज अपने समय की सबसे बढ़िया रेसिंग बोट बनाने लगे थे। पर इसी साल उन्होंने एक और कारनामा कर दिखाया। रेसिंग बोट, महोगनी और स्प्रूस की लकड़ी से बनाई जाती थी पर जॉर्ज तो हमेशा कुछ बढ़िया करने की फिराक में रहते थे। उन्होंने वेस्टर्न रेड सेडार की लकड़ी से नाव बनानी शुरू कर दी। जॉर्ज ने इस बात पर ध्यान दिया कि अमेरिका में पहले लोग इन्हीं लकड़ियों से नाव बनाते थे। इनके पेड़ वॉशिंगटन में बहुत पाए जाते हैं। इनकी लकड़ी हल्की होती है और उसे तराशना आसान होता है। इन पर अच्छी तरह से पॉलिश भी चढ़ जाती है जिसकी मदद से नाव पानी में बड़े आराम से बिना अटके चलती है। जॉर्ज की नावें रेस में और भी सफल होती थीं। ये वॉशिंगटन में आज भी बनाई और बेची जाती हैं।
फ्रेशमैन कॉम्पिटिशन ने वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के सामने एक नया स्टैंडर्ड रख दिया।
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की कड़ी मेहनत को परखने के लिए दो इम्तिहान सामने थे। हर अप्रैल में होने वाली Pacific Coast Regatta और जून में होने वाली नेशनल चैंपियनशिप Poughkeepsie Regatta. ये मुकाबला तो वैसे ही बड़ा दिलचस्प था। टॉम बॉलेस पिछले 6 सालों से Pacific Coast Regatta जीतते चले आ रहे थे। इनकी टीम के सबसे बड़े राइवल यानि कायले ब्राइट की कोचिंग वाली कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने 1932 का ओलंपिक जीता था। टॉम अभी तक इस बात में फंसे हुए थे कि किस तरह टीम को परफेक्ट बनाया जाए और उनको इस बात की चिंता भी सताती थी कि शायद जो रैंट्ज इस टीम में शामिल नहीं हो पाएंगे। ऊपर से टीम के बाकी लोग जो को उनके कपड़ों के स्टाइल और बैंड से जुड़े होने की वजह से अजीब अजीब नामों से चिढ़ाने लगते। फिर भी इस टीम ने अच्छा परफार्म किया। इस टीम ने ट्रेनिंग मुकाबले में जूनियर वर्सिटी टीम को हरा दिया।
Pacific Coast Regatta मुकाबले में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी ने बर्कले को साढ़े चार नंबर से हराकर सबको दंग कर दिया। इस जीत ने एक नया फ्रेशमैन रिकॉर्ड भी बनाया। इस जीत ने उनका हौसला और बढ़ा दिया। अब उनके सामने था न्यूयॉर्क में होने वाला मुकाबला जहां खुद को साबित करने का और एक मौका था। 1934 में Poughkeepsie Regatta इतनी पॉप्युलर थी जैसे Kentucky Derby. ये मुकाबला इसलिए भी सुर्खियां बटोरने लगा क्योंकि समाज में ऊंचा रुतबा और हैसियत रखने वाले ईस्ट कोस्ट के लोग उस वेस्ट कोस्ट से आए लड़कों के सामने थे जिसे पिछड़ा और गरीब इलाका माना जाता था। आखिर में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की टीम बाजी मार ले गई। उन्होंने Syracuse की टीम को पांच नंबर से हरा दिया।
अब टीम ओलंपिक के सपने देखने लगी थी पर अंदर ही अंदर हलचल होने लगी थी।
इन दो बड़े मुकाबलों में शानदार प्रदर्शन करने पर वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की टीम को मीडिया ने 1936 बर्लिन ओलंपिक का दावेदार कहना शुरू कर दिया। लेकिन अभी कहानी में एक मोड़ आना था। जब उल्ब्रिकसन ने टीम से ये कहा कि अब उनको ओलंपिक की तैयारी करनी है तो सबकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। लेकिन वो स्विंग पर पूरी तरह पकड़ नहीं बिठा पा रहे थे। तनाव बढ़ रहा था। यूनिवर्सिटी की दूसरी टीमें भी इस बात की जी जान से कोशिश कर रही थीं कि वो अपनी ताकत दिखाएं। ये टीमें अब ट्रेनिंग के दौरान इनको हराने भी लगीं। उल्ब्रिकसन ने टीम को अपने ऑफिस बुलाकर चेतावनी दी कि अगर यही सब चलता रहा तो वो ओलंपिक को भूल जाएं। टीम ये सुनकर सकते में आ गई पर इससे मेंबरों में अपनापन और दोस्ती बढ़ने लगी। रोजर, शॉर्टी और जो अब अच्छे दोस्त बन गए थे। उन्होंने ठान लिया था कि ओलंपिक में जाना ही है। शॉर्टी, जो के पीछे बैठा करते थे और हमेशा कहते "जो मैं तुम्हारे साथ हूं।" टीम फिर से अच्छा परफार्म करने लगी और अपने कोच को अपनी वैल्यू साबित की। इस साल उल्ब्रिकसन ये तय नहीं कर पा रहे थे कि Pacific Coast Regatta में कौन सी टीम जाएगी। आखिरकार उन्होंने इसी टीम को भेजकर चांस लेने का फैसला किया।
Regatta में इस टीम ने तीन और जूनियर वर्सिटी टीम ने आठ नंबरों से जीत हासिल की। ये रेस इतनी रोमांचक थी कि लोगों की सांसें थमी रह गईं। देखने वाले बहुत देर तक ये फैसला नहीं कर पा रहे थे कि कौन सी टीम जीती।
लगातार अच्छी परफार्मेंस के बाद भी ये साफ नहीं था कि टीम ओलंपिक में जा भी रही है या नहीं।
टीम ने Pacific Coast Regatta में तो जीत हासिल कर ली थी पर अगर किसी टीम ने लोगों का दिल जीता था तो वो थी जूनियर वर्सिटी टीम। Poughkeepsie Regatta बस शुरू होने को थी और कोच उल्ब्रिकसन अभी तक इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं थे कि टीम अपना अच्छा प्रदर्शन दुहरा सकती है। टीम का भविष्य अब इस बात पर निर्भर था कि वो इस रेस के लिए ट्रेनिंग के दौरान कैसा प्रदर्शन करती है। पिछली रेस जीतने का नशा जल्द ही उतर गया क्योंकि ट्रेनिंग के दौरान जूनियर वर्सिटी टीम उनसे मजबूत नजर आती थी। उल्ब्रिकसन ने एक बार फिर टीम को बुलाकर चेतावनी दी कि जूनियर वर्सिटी टीम को हल्के में न लें। लेकिन नतीजा फिर भी वही रहा।
Poughkeepsie race के सिर्फ 6 दिन पहले हुए ट्रेनिंग मुकाबले में जूनियर वर्सिटी टीम ने इनको आठ नंबर से हरा दिया। उल्ब्रिकसन ने जूनियर वर्सिटी टीम को मुकाबले में भेजने का फैसला किया पर Poughkeepsie मुकाबले ने फिर से हालात बदल दिए। टॉम की फ्रेशमैन टीम ने न्यूयॉर्क की रेस चार नंबर से जीत ली। जो की टीम भी दो नंबर से जीत गई। लेकिन जूनियर वर्सिटी टीम असफल रही। वो कैलीफोर्निया और कॉर्नेल की टीम से दो दो नंबर पीछे रह गए। इस तरह उल्ब्रिकसन की उम्मीदों को करारा झटका लगा। हालांकि जूनियर वर्सिटी टीम के लोग अच्छे थे पर उनको और ट्रेनिंग की जरूरत थी। यानि ओलंपिक में जाने के लिए उनको बहुत लंबा रास्ता तय करना था।
इधर टीमें अपनी तैयारी कर रही थीं उधर हिटलर ओलंपिक की भव्य तैयारियां कर रहा था।
यूएस अभी तक ये तय नहीं कर पा रहा था कि वो उस समय नाजीवाद के शिकार जर्मनी में होने वाले ओलंपिक पर क्या स्टैंड ले। अभी वो महामंदी और WWI के नुकसान से ही नहीं उबरा था इसलिए ज्यादातर अमेरिकन एक और लड़ाई के खिलाफ थे। नाजीवाद के खिलाफ बहुत लोग आवाजें उठाते हुए ओलंपिक को बॉयकॉट करने की मांग कर रहे थे। इसका फैसला करने के लिए 8 December 1935 को एथलेटिक्स यूनियन की वोटिंग हुई जिसमें बहुत मामूली अंतर से ओलंपिक में जाने का फैसला आया। नाजी जर्मनी के लिए तो ये ओलंपिक अपनी झूठी शान और प्रचार का सुनहरा मौका था। जर्मनी की जानी मानी फिल्म मेकर Leni Riefenstahl साल 1934 में Triumph of the Will नाम की फिल्म बनाकर पहले ही हिटलर और उसके राइट हैंड जोसेफ गोएबल की नजरों में चढ़ गई थी। इस फिल्म को न्यूरेम्बर्ग में हुई नाजी रैली में दिखाया गया था।
ओलंपिक जैसे बड़े इवेंट का फायदा उठाकर दुनिया को ये दिखाने के लिए कि नाजी पार्टी कितनी अच्छी थी लेनी को एक और फिल्म बनाने को कहा गया जिसका नाम था ओलंपिया। हिटलर के लिए भी दुनिया से उसकी असलियत छिपाने और खुद को अच्छा लीडर दिखाने का अच्छा मौका था। ओलंपिक शुरू होने के कुछ महीनों पहले वो कैद किए लोगों को खुफिया जगहों पर छिपाने लगा। उसने सड़कों पर लगे यहूदी विरोधी निशान भी हटवा दिए। कुछ समय के लिए यहूदी विरोधी एक्टिविटी बंद भी कर दीं। ओलंपिक खत्म होने के बाद तो सब कुछ पुराने रास्ते पर लौट ही आना था।
उल्ब्रिकसन ने सभी टीमों के अच्छे खिलाड़ी लेकर एक नई टीम बना दी। इस तरह अब उनको एक परफेक्ट टीम मिल गई थी।
जनवरी 1936 में उल्ब्रिकसन ने सभी टीमों को इकट्ठा किया और कहा जो भी ओलंपिक टीम का हिस्सा बनना चाहता है उसे अब कड़े मुकाबले से गुजरना होगा। वो किसी भी सख्त कदम के लिए तैयार थे। पर उनको एक बात अच्छी तरह पता थी कि बॉबी मोच नाम का खिलाड़ी coxswain यानि नवां खिलाड़ी बनेगा और बाकी लोगों का हौसला बढ़ाएगा। बॉबी, रोजर, जो और शॉर्टी से एक साल बड़ा था और सब इस बात को मानते थे कि वो टीम के बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक है।
उल्ब्रिकसन लगातार टीम में फेरबदल करते रहे और जो लगातार कभी इन कभी आउट होने की वजह से परेशान रहने लगे। उल्ब्रिकसन ने मार्च आने तक एक टीम तय कर ली। डॉन पहले नंबर पर, उसके बाद जो, शॉर्टी, स्टब, जॉनी, गॉर्डी, चक और आखिर में रोजर।
जो आखिरी वक्त पर टीम में जगह बना पाए। वो डॉन या गॉर्डी को अच्छी तरह नहीं जानते थे पर टीम के बाकी लोगों ने उनको बहुत अच्छी तरह वेलकम किया। जो, जॉनी और चक की पहले से ही अच्छी जमती थी। वो स्कूल के समय से ही साथ थे। लगभग सारे ही एक जैसे आम परिवारों से आते थे। उन्होंने बचपन में मुश्किलें देखी थीं जहां खुद का खर्च निकालने और पढ़ाई के लिए काम करना पड़ता था। इस वजह से वो हर हाल में जीतना चाहते थे। यानि ये टीम बिल्कुल फिट थी। उनका तालमेल और सोच एक जैसी थी। इस वजह से उनको स्विंग में महारत हासिल करने में कोई मुश्किल नहीं आई।
यूएस में हुए अगले मुकाबलों ने टीम का हौसला बढ़ाया पर ओलंपिक में जगह पक्की कराने वाली जीत थी Princeton की।
आखिर जो भी टीम में शामिल हो गए और हस्की क्लिपर नाम की नई नाव पानी में उतर गई। टीम के लिए नए साल की शुरुआत बढ़िया तरीके से हुई। टीम ने Pacific Coast और Poughkeepsie Regattas जीत ली थीं। Pacific Coast Regatta में टीम ने कैलीफोर्निया टीम को तीन नंबरों से हरा दिया। न्यूयॉर्क रेस में भी टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। इधर बॉबी ने अपने पास एक खुफिया तकनीक बचा रखी थी। उसने शुरुआत में स्पीड कम रखवाई ताकि नाव चलाने वालों के पास आखिर के लिए ताकत बची रहे। उसने उल्ब्रिकसन की उम्मीद से ज्यादा लंबे समय तक टीम को बांधे रखा लेकिन उल्ब्रिकसन को घबराहट होने लगी थी। टीम अभी चार नंबर पीछे थी कि अचानक बॉबी चिल्लाया - "तुम्हें कोच का वास्ता है, जल्दी नाव चलाओ।" ये आवाज काम कर गई। टीम बहुत अच्छे नंबरों से जीत गई। यानि अब वो ओलंपिक में क्वालीफाई कराने वाली Princeton रेस में जा सकते थे।
शुरुआत काफी उतार-चढ़ाव भरी रही। गॉर्डी और स्टब का तालमेल बिगड़ गया। लेकिन ये गल्ती बहुत मामूली साबित हुई। टीम एकजुट होकर नाव चलाने लगी और बॉबी वापस उनका हौसला बढ़ाने लगा। ये टीम कैलीफोर्निया और पेंसिल्वेनिया की टीमों से बहुत आगे निकलते हुए जीत गई जैसे कि ये लड़के ओलंपिक के लिए ही बने थे। रेस के बाद शॉर्टी ने कहा कि आखिर के कुछ मिनट उसके लिए किसी भी नाव में बिताया गया सबसे बेहतरीन वक्त था।
टीम के लिए बर्लिन ओलंपिक सबसे बड़ा चैलेंज था।
एस एस मैनहट्टन नाम के जहाज पर सवार होकर ये लड़के आखिर 23 जुलाई 1936 को बर्लिन पहुंचे। उनके पहुंचते ही परेशानी शुरू हो गई। ऑन-बोर्ड बुफे की वजह से बॉबी को छोड़कर सबका वजन बढ़ गया था। ऊपर से डॉन को लंग इन्फेक्शन हो गया। वो तो बिस्तर से ही मुश्किल से उठ पाता था तो ट्रेनिंग तो बहुत दूर की बात थी। टीम गड़बड़ाती जा रही थी और उनके सामने मुश्किलों का पहाड़ लग गया था। रेस से पहले उल्ब्रिकसन को बुरी खबर मिली कि टीम लेन सिक्स में रोइंग करेगी। ये सबसे बाहरी लेन होती है जिस पर हवा और मौसम का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। यानि उन्हें बाकी सब टीमों की तुलना में कड़ी मेहनत करनी होगी और ये कोई इत्तेफाक नहीं था कि जर्मनी और इटली की टीमों को पहली और दूसरी लेन पर रखा गया था। ये रेसिंग में सबसे अच्छी पोजीशन होती है।
बॉबी ने टॉम की लकी हैट अपनी सीट के नीचे रखी। रेस की शुरुआत में टीम धीरे-धीरे हाथ चला रही थी ताकि आखिरी वक्त के लिए एनर्जी बची रहे। लेकिन बॉबी की नजर डॉन के चेहरे पर पड़ी। वो पीला पड़ चुका था और उसकी आंखें बंद होती जा रही थीं। बॉबी ने चिल्लाकर पूछा, "डॉन, तुम ठीक तो हो?" लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया। अब फिनिश लाइन आने को थी और आगे वाली नाव से बहुत थोड़ा अंतर रह गया था। बॉबी, डॉन को आवाज लगाता रहा पर उसने आंखें नहीं खोलीं और चुप पड़ा रहा। फिर जैसे कोई चमत्कार हो गया। डॉन के अंदर जैसे कोई ताकत आ गई। उसने आंखें खोलीं और बॉबी को देखा। बॉबी जोर से चिल्लाया कि डॉन हौसला रखो अब बस 600 मीटर की दूरी रह गई है। बॉबी ऐसे ही तेज, और तेज कहकर टीम का हौसला बढ़ाता रहा। उसने फिनिश लाइन आते हुए टीम के हाथ इतने तेज कर दिए जितना आज से पहले उन्होंने कभी नहीं किए थे। उन्होंने पहली नाव को पछाड़ दिया। अमेरिकन नाव जर्मनी से एक सेकंड और इटली से एक सेकंड के छठें हिस्से जितनी आगे निकल गई।
कुल मिलाकर
1936 के बर्लिन ओलंपिक में रोइंग गोल्ड हासिल करने वाले हस्की क्लिपर के आठों लड़कों की जिंदगी बहुत मुश्किल हालातों से गुजरी। हालांकि वे गरीब और गांव से आए लड़के थे और उन्होंने महामंदी के दौरान अपनी पढ़ाई शुरू की थी। लेकिन उनके पक्के इरादे, कड़ी ट्रेनिंग, बेहतरीन कोच और बेहतरीन पोकॉक नावों ने उनको बहुत मदद की। हालांकि उनकी टीम में सबसे आगे बैठने वाला इंसान बीमार था और उन्हें दौड़ में सबसे बुरी लेन दी गई थी फिर भी इन सारी मुश्किलों से निकलकर उन्होंने जीत हासिल की।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Boys in the Boat by Daniel James Brown.
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing.
