Yu Hua
10 Concepts That Changed The China
दो लफ्जों में
चाइना इन टेन वर्ड्स (2012), इस बात की तहकीकात करती है कि मॉडर्न चाइना खुद के बारे में क्या सोचता और बात करता है, और इससे उसके पास्ट, प्रेजेंट और फ्यूचर के बारे में क्या पता चलता है. यहां पर 10 कॉमन कॉन्सेप्ट पर फोकस करके ऑथर यू हुआ एक ऐसे देश की कहानी बताते हैं जिसमें उम्मीद से ज्यादा बदलाव आया है, लेकिन फिर भी यह देश अपने रिवॉल्यूशनरी नींव के उतना करीब है जितना कोई सोच भी नहीं सकता.
किनके लिए है
- जो लोग "मॉडर्न चाइना" का मेरिकल देखकर बहुत इंप्रेस्ड हैं
- जो यह जानना चाहते हैं कि कैसे कोई भी लैंग्वेज कल्चरल कॉन्सेप्ट्स को शेप करती है
- कम्युनिस्ट चाइना की हिस्ट्री पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के लिए
लेखक के बारे में
यु हुआ एक चाइनीस राइटर हैं जिन्होंने 4 नॉवेल, 6 शार्ट स्टोरी के कलेक्शन और एस्सेज़ के तीन वॉल्यूम लिखे हैं. वह चीन और बाहरी दुनिया में काफी फेमस है उनकी किताबें 20 लैंग्वेज में ट्रांसलेट की गई हैं. यू हुआ 2002 में जेम्स जॉयसी अवार्ड जीतने वाले पहले चाइनीस सिटिज़ेन बने.
तियानमेन स्क्वायर के प्रोटेस्ट तक मॉडर्न चाइना में "द पीपल" एक मेन कांन्सेप्ट था
अगर आप किसी अनजाने कल्चर के बारे में जानना चाहते हैं, तो उसकी लैंग्वेज सीखना एक अच्छा आईडिया हो सकता है. जिस तरह से लोग दुनिया के बारे में बात करते हैं उससे उनके वैल्यूज़, आइडियाज़ और ट्रैडिशन के बारे में पता चलता है. यह कहना कि किसी लैंग्वेज के कुछ वर्ड्स को ट्रांसलेट नहीं किया जा सकता गलत है, लेकिन इसमें कुछ बात तो है. पुर्तगाली शब्द Suada के Nostalgia या Longing जैसे बहुत सारे इंग्लिश ट्रांसलेशन हो सकते हैं. लेकिन यह ट्रांसलेशन कभी पुर्तगीज कल्चर में इस शब्द के इंपोर्टेंस को कैप्चर नहीं कर सकते.ऐसा ही चाइनीस के 10 शब्दों के साथ है जिन्हें ऑथर यू हुआ ने इस समरी में अनालाइज़ किया है. उनमें से बहुत सारे ट्रांसलेट किए जा सकते हैं मिसाल के तौर पर "Renin" शब्द को ही ले लीजिए अंग्रेजी में इसका मतलब The People, और Yuedu को Reading कहते हैं. लेकिन अंग्रेजी के यह शब्द कभी यह नहीं बता पाएंगे कि चाइना के गुजरे दौर में इन शब्दों ने कितना बड़ा किरदार निभाया है.माओ कल्चर के रिवॉल्यूशन की उथल-पुथल से लेकर तिआननमेन स्क्वायर प्रोटेस्ट और आज के बेहतरीन इकनोमिक वरदान तक, इस समरी में कवर किया गया हर कांसेप्ट उस मुल्क का खाका खींचता है जिसने दुनिया की हिस्ट्री में सबसे बड़ा ट्रांसफॉरमेशन देखा.इस समरी में आप जानेंगे किचीन के बहुत सारे लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि माओ की वापसी से देश को फायदा होगा? यू ने अपने आपको रिवॉल्यूशनरी प्रोपेगेंडा के बारे में लिखने के लिए कैसे ट्रेन किया, औरफेक और घटिया क्वालिटी के प्रोडक्ट चीन में इतने कॉमन क्यों हैं।
तो चलिए शुरू करते हैं!
जब 1960 में यू हुआ चीन में बड़े हो रहे थे उस वक्त द पीपल एक बहुत इंर्पोटेंट कॉन्सेप्ट था. जिस तरीके से यह मुल्क अपने बारे में बात करता था, उसके लिये यह आईडिया इतना सेंट्रल था कि हुआ ने अपना नाम लिखने से पहले Renmin यानि "द पीपल" लिखना सीख लिया था.
यह आइडिया 1960 के दशक में वजूद में आया जो कल्चरल रिवॉल्यूशन की वजह से पूरी तरह से उथल-पुथल हो गया था. इस रिवॉल्यूशन के लीडर माओ जे़डोंग थे जिनका मकसद चाइना की सत्ता पर कम्युनिज्म की पकड़ मजबूत करना और प्री कम्युनिज्म के सभी सबूत मिटा देना था.इस पूरे प्रोग्राम में "द पीपल" का कांसेप्ट मेन था. कम्युनिस्टों ने किसी 'एक' पर 'सभी' को तरजीह दी, सोसाइटी को लेकर उनके इस विजन को कोई और कॉन्सेप्ट कैसे बेहतर कम्युनिकेट कर सकता था, कि वर्कर से लेकर इंटेलेक्चुअल तक, फार्मर से लेकर सोल्जर तक सब बराबर हैं. यकीनन माओ एक डिकटेटर था, जो अपने आप को बाकियों से बेहतर साबित करना चाहता था. और इस बात का दावा एक पॉपुलर स्लोगन का इस्तेमाल करते हुए किया गया था, कि 'चेयरमैन माओ ही लोग हैं और लोग चेयरमैन माओ हैं.'
यह शब्द बीसवीं सदी के दूसरे हिस्से तक पॉपुलर रहा. इसे तभी रिप्लेस किया जा सका जब एक दूसरी तरह की उठापटक आन पड़ी, 1989 का तियानमेन स्क्वायर प्रोटेस्ट.कम्युनिस्ट पार्टी के एक रिफॉर्मर लीडर, हु याउबैंग की मौत के बाद करप्शन के खात्मे और डेमोक्रेटिक फ्रीडम की मांग को लेकर स्टूडेंट बीजिंग के सेंट्रल स्क्वायर पर इकट्ठा हो गए. इस प्रोटेस्ट ने पूरे शहर को बदल कर रख दिया, पुलिस सड़कों से नदारद हो गई और लोग सड़कों पर उतर आए, इकट्ठा हो गए जैसे कोई त्यौहार का माहौल हो. लोगों के मन में अपना मकसद हासिल करने को लेकर जो डिटरमिनेशन थी उसके चलते चोर भी चोरी करना छोड़ इस प्रोटेस्ट का हिस्सा बन गए थे.
हालांकि यह बहुत लंबा नहीं चला जून में आर्मी ने आकर ओपन फायरिंग कर दी जिससे भीड़ भाग गई और प्रोटेस्ट खत्म हो गया. यह सब कुछ स्टेट के टीवी चैनल द्वारा कवर किया गया था जिसने ना सिर्फ पावरफुल स्टूडेंट लीडर की गिरफ्तारी को सेलिब्रेट किया बल्कि बाकियों को भी ढूंढने की कोशिश की. फिर एक दिन अचानक से इस टॉपिक की कवरेज बंद हो गई और उसके बाद इस पर कभी बात नहीं की गई.उसके बाद से कभी भी "द पीपल" का कांसेप्ट बड़े लेवल पर इस्तेमाल नहीं किया गया. 1989 से ही चाइनीस लोगों को अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जाने लगा. आज वह खुद को इमीग्रेंट्स, स्टेकहोल्डर, सेलिब्रिटी फैन जैसे नामों से डिफाइन करते हैं.
माओ ने लीडर के कांसेप्ट की नींव रखी और उनकी मौत के बाद दुनिया इसकी खासियत भूल गयी
1966 के जुलाई में 72 साल के माओ ने वुहान में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. शहर में एक मास स्विमिंग इवेंट ऑर्गेनाइज किया गया था और माओ ने यंगज़े रिवर के ठंडे पानी में तैर रहे स्विमर्स को ज्वाइन किया. गोते लगाने के बाद सिर्फ ट्रंक पहने हुए माओ ने फोटो के लिए पोज भी दिया. लोगों ने फौरेन पॉजिटिव वे में रिएक्ट किया, लोग ने उनकी अच्छी सेहत और स्पोर्ट्स के लिए प्यार की तारीफ की.इस तरह के बर्ताव के जरिए माओ ने लोगों में इज्जत कमाई थी. वह चाइनीस कांसेप्ट लीडर या लिंगज़ियो के एक आइडियल रिप्रेज़ेन्टेटिव थे. लीडर को लेकर खास बात यह थी कि उसे लोगों के करीब होना चाहिए और माओ ने लोगों के सामने यह साबित कर दिया था.
"बिग कैरेक्टर पोस्टर" को ही ले लीजिए इन पोस्टर्स में चीनी करैक्टर में बड़ा और आई कैचिंग पॉलीटिकल स्टेटमेंट छपा था, जोकि कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौरान हर गांव, कस्बे और शहर में मिल जाता था. यहां पर जब इन पोस्टर्स के जरिए ऑफिशियल को क्रिटिसाइज किया गया तो माओ ने लोगों का साथ देते हुए खुद भी उन ऑफिशियल्स को क्रिटिसाइज कर उसका पोस्टर छपवाया.1976 में माओ की मौत के बाद लीडर यानी लिंगजियू के कांसेप्ट ने अपनी इंपॉर्टेंस खो दी. और इसमें कोई हैरत की बात नहीं है इसके चलते कुछ ऐसे पॉलिटिकल चेंज हुए जिसने चीन को दुबारा शेप किया. आज इस मुल्क पर किसी एक लीडर का नहीं बल्कि एक कमेटी का राज है. इससे पहले न्यूज़ कॉन्फ्रेंसेस में मुस्कुराने और हाथ हिलाने वाला सिर्फ एक ही शख्स था और वह थे माओ. अब चाइनीस कम्युनिस्ट पार्टी के सभी मेंबर्स नये डायनामिक्स को रिप्रेज़ेंट करते हुए एक साथ हाथ हिलाते हैं.
यह बदलाव "लीडर" शब्द के मतलब में भी झलकता है. माओ के जमाने में इसका मतलब खासतौर पर पॉलीटिकल फिगरहेड से था, लेकिन अब यह शब्द यूथ लीडर, बिजनेस टाइटन और यहां तक की ब्यूटी कंटेस्ट विनर्स को रिप्रेजेंट करता है. नतीजतन, लीडर उतना इंपॉर्टेंट कांसेप्ट नहीं रह गया जितना होता था.चीन में अब भी एक असल लीडर की बहुत पॉसिबिलिटी है. जब 2009 में एक ऐसा टेक्स्ट सामने आया जिसमें दावा किया गया कि माओ को सक्सेसफुली क्लोन कर दिया गया है और वह देश के करप्ट लोगों की मुश्किल बन चुके हैं, तो लोगों को लगा कि बस चीन को इसी चीज की जरूरत थी. यहां तक की हाल में हुए पोल में पता चलता है कि 85% पब्लिक यकीन करती है कि माओ की वापसी से कुछ अच्छा होगा.
रीडिंग शब्द के इंपॉर्टेंस से, कल्चरल रिवॉल्यूशन के बाद चाइना में किताब के बदलते रोल का पता चलता है। कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौरान चीन में किताबें बहुत रेयर थी, इसका यह मतलब नहीं है ऑथर के बचपन के दौरान रीडिंग यानी Yuedu मेन कॉन्सेप्ट नहीं था. दरअसल उन्हें चाइना में आए रीडिंग कल्चर में तब्दीली के चार अलग-अलग हिस्से याद हैं.जब वह बहुत छोटे थे तब किताबें लगभग ना के बराबर थीं. ऐसा कोई भी टेक्स्ट जो कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ या कम्युनिस्ट पार्टी जिसके खिलाफ होती थी उसे "जहर का नशा" कहा जाता और जला दिया जाता था. अगर आप कुछ पढ़ना चाहते तो आपको उन दोनों किताबों में से किसी एक को चुनना पड़ता जो चीन के घरों में पाई जाती, द सिलेक्टेड वर्क ऑफ चेयरमैन माओ एण्ड हिस कोटेशन, यह एक छोटी लाल किताब थी. जैसा कि यह टेक्स्ट बहुत बोरिंग होते थे इसलिए यू ने बायोग्राफिकल फुटनोट को स्कैन करके इन्हे इंजॉय करना शुरु कर दिया.
उसके बाद जब यू स्कूल में थे तो उस वक्त कुछ पसंद की जाने वाली बैंड किताबों की कॉपी स्टूडेंट्स में बाटी गईं. उन्हें याद है कि कैसे उन्होंने एलेग्जेंडर दुमा की किताब la dame aux camellias को वापस करने का वक्त आने से पहले अपने हाथ से कॉपी कर लिया था. यह एक कॉमन तरीका था, लेकिन एक अजीब बात यह थी कि स्टूडेंट्स अक्सर अपने साथियों की हैंडराइटिंग पढ़ नहीं पाते थे.
हालांकि पढ़ने का नाता सिर्फ किताबों से नहीं था एक एक्टिव इमैजिनेशन किसी बड़े टेक्स्ट वाले पोस्टर को अलग-अलग स्टोरी में ट्रांसफार्म कर सकती थी. एक बार जवान लोगों के बीच के अफेयर को क्रिटिसाइज करने वाला पोस्टर देखने के बाद, यू ने दूसरे मटेरियल को टाइटल दे के दोस्तों के साथ शेयर करने के लिए बाकी पोस्टर्स को स्कैन करना शुरू कर दिया. यह तब तक चला जब तक कि उसने अपने पेरेंट्स के मेडिकल बुक में शरीर से जुड़ी ड्रइंग नहीं देख ली.1976 में कल्चरल रिवॉल्यूशन के साथ ही इस तरह के सल्यूशन ढूंढने का कल्चर भी खत्म हो गया. जब यू के लोकल बुक्स स्टोर को अपना पहला शिपमेंट मिला तो उस वक्त डिमांड इतनी ज्यादा थी कि बुक्स स्टोर को दो किताब की लिमिटेशन लगानी पड़ी और वह भी अगर सामने वाले के पास बुक टोकन मौजूद है तो. लोग रात भर इस उम्मीद में लाइन में खड़े रहते थे कि अगली सुबह उन्हें एक अच्छी किताब मिल जाएगी. हालांकि उस दिन सिर्फ 50 बुक टोकन ही बेचे गए थे इसलिए बहुत लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ा, चीन के हालात बड़ी तेजी से बदल रहे थे. जल्द ही इस स्टोर को अपना दूसरा शिपमेंट मिला और पढ़ने को लेकर यू के प्यार को परवान चढ़ने का मौका मिल गया.
कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौरान राइटिंग एक की कांसेप्ट था, जो बाद में चलकर यू की पहचान बन गया
दिसंबर 1973 में हुआंग शुअई नाम की एक स्कूल गर्ल ने बीजिंग डेली को लेटर लिखा. हुआंग ने कंप्लेंट की कि उसके टीचर बिना वजह उसे परेशान करते हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने टीचर को क्रिटिसाइज कर दिया था. उसका यह लेटर काफी फेमस हुआ और वह माइनर सेलिब्रिटी बन गई थी. इसमें कोई हैरत की बात नहीं थी, कि किसी इस्टैबलिश्ड अथॉरिटी को लेकर आक्रामक होना या उस पर इल्जाम लगाना और टीचर्स की इंपॉर्टेंट को कम करना कल्चरल रिवॉल्यूशन में बड़ा किरदार निभा रहा था.और इसी माहौल में यू ने ज़ीजुआ (xeizua) को लिखने का फैसला किया. हुआंग जैसे दूसरे यंग राइटर्स की तरह यू भी एक" रेड पेन" बन गए जो रिवॉल्यूशन को हवा देने वाली पॉलिटिकल फोर्सेस के समर्थक थे. स्प्रिंग शूट के इस निकनेम को एक्सेप्ट करते हुए यू ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर स्कूल अथॉरिटी को क्रिटिसाइज करने वाले काफी पोस्टर्स बनाए, जिसके चलते उन्हें लोकल प्रोपगैंडा टीम की काफी तारीफें मिली. इससे बोर होने के बाद यू ने प्ले लिखा जिसमें रिसोर्सफुल किसानों ने जमींदारों की सोशल रिकंस्ट्रक्शन को बर्बाद करने की कोशिशों को नाकाम कर दिया.स्कूल पूरा होने के बाद यू ने एक डेंटिस्ट के तौर पर काम किया. हालांकि, वह लिखना चाहते थे. यह हैरत की बात थी कि सभी तरह के प्रोफेशन में एक जैसी ही सैलरी मिलती थी, जिससे राइटर्स और आर्टिस्ट की आरामदेह जिंदगी लोगों को काफी अट्रैक्टिव लगने लगी थी. और उन्होंने यह लाइफस्टाइल पाने के लिए कल्चरल सेंटर ज्वाइन किया. यू ने कहानियां लिखकर भेजनी शुरू की. आखिरकार 1983 में, बीजिंग लिटरेचर मैगजीन में उनकी कहानी पब्लिश हुई. उनका सपना पूरा हो गया था. उन्होंने अपना बैग सेट किया और अपने होम टाउन में कल्चरल सेंटर में कोई पोज़ीशन हासिल करने के लिए लौटने से पहले अपनी राइटिंग को रिवाइव करने के लिए कैपिटल जाने का फैसला किया.तो यू किस बारे में लिखते थे? शुरुआत में उनकी राइटिंग में उस वायलेंस का जिक्र होता था जो उन्होंने अपनी जवानी में कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौरान देखा था. यहां पर एक सर्जन के बेटे होने के नाते उन्होंने अपने बचपन में बहुत सारे खून देखे थे. उन्होंने लोकल बीच पर कैदियों का एग्जीक्यूशन होते हुए देखा था. यू को आज भी याद है कि उनके सर में लगे घावों ने उन्हें कितना झकझोर दिया था. लेकिन वॉयलेंस के बारे में लिखना यू के लिए अच्छा साबित हुआ. शूट किये जाने से जुड़े ग्राफिक्स के कई सपने आने के बाद यू को एहसास हुआ कि उनकी कहानियां उनकी नींद में दखल कर रही हैं, और उन्होंने फैसला किया कि इससे पहले कि यह वायलेंस की कहानियां उनके साइक्लोजिकल स्टेट पर असर करें उन्हें इसे लिखना बंद कर देना चाहिए.
लु ज़ुन (lu xun) उन चंद राइटर्स में से एक थे जिन्हें यू अपनी जवानी के दौर में पढ़ा करते थे, लेकिन उन्हें अप्रिशिएट करने में यू को बहुत वक्त लग गया। आप बचपन में कितने ऑथर्स के बारे में जानते थे? हो सकता है यू के अलावा बस चंद और को. कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौर में बड़े होने वाले बच्चों के लिए ज्यादा से ज्यादा बस दो ऑथर ही थे- लीडर और पोएट माओ ज़िदॉग और लू ज़ुन, बीसवीं सदी के शुरुआती दौर के ऑथर जिनका नाम रिवॉल्यूशन के लिये एग्ज़ाम्पल बन गया था.तो, लू का काम इतना इम्पॉर्टेंट था? माओ लू के फैन थे, और इसी चाइनीस लीडर की वजह से 1936 में मौत हो जाने के 30 साल बाद लू एक वेल नोन फिगर बन गए थे. इसकी वजह साफ थी. लू अपने वक्त की सोसाइटी को खूब क्रिटिसाइज करते थे, जिसके चलते उनका काम कम्युनिस्ट पार्टी को काफी पसंद था, क्योंकि वह पुराने इंस्टिट्यूशन और तौर-तरीके को खारिज करते थे.यहां पर लू एक जानी-मानी अथॉरिटी बन गए. उनके अलावा जो एक शख्स सबसे ज्यादा कोट किया जाता था वह सिर्फ माओ थे. ऑथर को याद है कि अगर आपको स्कूल में कोई ऑर्गुमेंट जीतनी होती थी तो बस लू को कोट कर देना काफी था. जब ऑथर की अपने क्लासमेट के साथ 'कब सूरज अर्थ के सबसे करीब होता है,' इस टॉपिक पर बहस हो रही थी तो ऑथर ने भी यही रामबाण अपनाया. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि लू को लेकर जो क्लेम किया जा रहा है वह सच है या नहीं, बस कोई लू पर सवाल उठाने की जुर्रत ही नहीं करता था.लू के काम की अपनी इंपॉर्टेंस थी, लेकिन यू को लू की इंपॉर्टेंस समझने में काफी वक्त लग गया. शायद इसकी वजह यह भी थी कि स्कूल में उनके ऐस्से और स्टोरी पढ़ने के लिए फोर्स किया जाता था. यहां तक कि एक वक्त था जब लू अकेले एक ऐसे राइटर थे जिन्हें यू बिल्कुल पसंद नहीं करते थे. लेकिन यह कल्चरल रिवॉल्यूशन के बाद बदल गया. अचानक से लोगों को लू के काम को क्रिटिसाइज करने की आजादी मिल गई थी. बड़ी तेजी से लोगों का ओपिनियन बदला और अब बहुत सारे लोगों का कहना है कि उन्होंने कभी इतना अच्छा काम किया ही नहीं.1996 तक यू के भी खयाल कुछ ऐसे ही थे. जब ऑथर से पूछा गया कि फिल्म के लिए लू की स्टोरीज़ को कैसे अडॉप्ट करना चाहिए तब यू को एहसास हुआ कि उन्हें एक बार फिर उन स्टोरीज को पढ़ना चाहिए. एक नए नजरिए के साथ लू के काम को दोबारा पढ़ने पर यू उनके लिखने की स्टाइल से एकदम इंप्रेस हो गए. आज भी उन्हें लगता है कि लू को जो रेपुटेशन दी गई थी वह उसे डिजर्व करते थे, लेकिन उनके काम को वही लोग अप्रिशिएट कर पाएंगे जिनके पास मैच्योर और सेंसेटिव नजरिया है.
रिवॉल्यूशन ने मॉडर्न चाइना की 20 सेंचुरी से आज तक की हिस्ट्री डिफाइन की
बहुत सारे वेस्टर्न थिंकर इकोनामिक ग्रोथ को पॉलिटिकल डेमोक्रेसी से जोड़कर देखते हैं. तो दुनिया की सबसे तेजी से ग्रो करने वाली इकोनामी, चाइना इस आइडिया में कितना फिट होती है? इस चीज को देखने का एक तरीका तो यह है, कि चाइना का हालिया एक्सपीरियंस इसके रिवॉल्यूशनरी ट्रेडीशन का हिस्सा रहा है, जोकि 20वीं सदी के मिड में शुरू हुआ था. रिवॉल्यूशन या जेमिंग का एक बहुत इंपॉर्टेंट हिस्सा रिस्क लेना, एग्जैगरेशन और इंस्टेबिलिटी यानी उथल-पुथल है.सो कॉल्ड "ग्रेट लीप फॉरवर्ड" को समझिये, एग्रीकल्चर को कलेक्ट करने के साथ ही देश को इंडस्ट्रियलाइज़ करने की एक कोशिश, जो 1958 में शुरू हुई थी. इसकी उम्मीद और हकीकत में काफी फर्क था, यहां प्रोविंशियल ऑफिसर फूड ग्रेन के प्रोडक्शन को लेकर झूठे दावे करने लगे और उन कम्युनिटी डाइनिंग हॉल को दिखाने लगे जहां पर किसानों को उनके उगाये हुये अनाज को लेकर एक तरह से उन्हें सेलिब्रेशन के लिए बुलाया जाता था. बड़े-बड़े दावों के उलट यह पॉलिसी फेल हो रही थी. जल्द ही स्टॉक किया हुआ खाना खत्म हो गया और पूरे देश में भुखमरी फैल गई. सिर्फ शिंचुआ प्रोविंस में ही लगभग 8 मिलियन लोग भूख से मर गए थे, हर 9 इंसान में से एक.आज के चीन में भी ऑफिशियल ऐसे ही झूठे दावे करते हैं जिनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं होता. वह "डिमांड" बढ़ाने के लिए उन बड़े-बड़े पोर्ट और हाईवे के कंस्ट्रक्शन का दावा करते हैं जो असल में वहां पर मौजूद ही नहीं. इसी दौरान असल कामयाबी की वजह से कुछ और प्रॉब्लम सामने आ गई. यूनिवर्सिटीज के एक्सपेंशन के बाद 1998 से 2006 के बीच में स्टूडेंट्स की तादाद 5 गुना बढ़ी, जो कि कुल 25 मिलियन थी. यह सुनने में काफी इंप्रेसिव लगता है, है ना? लेकिन यहां पर कुछ अलग है, चीन की यूनिवर्सिटी एक तरह से खोखली हैं और करोड़ों ग्रेजुएट्स काम नहीं ढूंढ पाते.कल्चरल रिवॉल्यूशन भी मौजूदा चीन पर अपने कुछ निशान छोड़ गया है, खासतौर पर जब सिविल सर्वेंट्स के आपसी झगड़ों की बात आये तो. रिवॉल्यूशन के दौरान ऑफिशियल सील्स के मुद्दे पर काफी तनातनी होती थी इसके पीछे एक बहुत ही सिंपल वजह से कोई भी डॉक्यूमेंट तब तक वैलिड नहीं होता था जब तक उसमें सील ना लगी हो, जिसके चलते सील के होल्डर यानी जिसके पास सील होती थी वह बहुत ज्यादा ताकतवर और इंफ्लुएंशियल होता था. और आज भी चाइना में वैसा ही है. 2008 मे पार्टी के सेक्रेटरी ने कुछ ऐसे लोगों को हायर किया जिन्होंने बोर्ड के चेयरमैन के ऑफिस से सील चुरा ली और उसके बाद सेक्रेट्री ने चेयरमैन को बाहर निकाल दिया.कुल मिलाकर, आज भी रिवॉल्यूशन का गुजरा दौर चीन के मौजूदा हालातों पर असर डाल रहा है. चीन की इकोनामिक ग्रोथ इंप्रेसिव तो है, लेकिन इसकी बुनियाद कमजोर है, और वह कमजोर बुनियाद है इसका इनस्टेबल पॉलीटिकल कल्चर.
अमीर और गरीब के बीच का फर्क/इनइक्वालिटी, मॉडर्न चाइना को समझने का बहुत कामयाब तरीका है। 2006 के दौरान, एक फिल्म क्रिव्यु ने चीन के साउथ वेस्ट एरिया का दौरा किया. ग्लोबल सॉकर टूर्नामेंट सेलिब्रेट करने के लिए उन्होंने गरीब गांव के बच्चों के लिए सॉकर मैच ऑर्गेनाइज किया, उस वक्त इस मैच को करोड़ों चाइनीस सिटीजन देखने आए थे.उन बच्चों ने कभी इस खेल का नाम भी नहीं सुना था, तो वह इसे खेलते कैसे. उन्हें रूल्स सिखाने का फैसला किया. जब कैमरामैन ने गलती से बॉल को गोबर में फेक दिया तो उन्होंने बच्चों को बॉल साफ करके वापस किया और जब बच्चों की बारी आई तो उन्होंने भी उसी तरीके से बॉल को साफ की, क्योंकि उन्हें लगा कि यह गेम का कोई रूल है। आज के चीन में गरीब और अमीर के बीच के पद के लिए एक बहुत बढ़िया मेटाफर है, चाजु(chaju). 2010 में यह देश दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनामी बनने के कगार पर था. लेकिन पर कैपिटा इनकम के मामले में इसे 100वां नंबर हासिल हुआ. गांव और शहरी एरिया की कमाई में काफी बड़ा फर्क है, जिसका रेशियो 1:3 है.
लिविंग स्टेटस के इस फर्क ने लोगों को अलग-अलग तरीके तलाश करने के लिए मजबूर कर दिया. आज अनइंप्लॉयमेंट की वजह से अक्सर लोग बिना परमिट के सामान बेचने का तरीका अपनाते हैं, गिरफ्तारी और अपनी प्रॉपर्टी ज़ब्त हो जाने का जोखिम उठाते हैं. यू को अपनी जवानी के दिनों का एक ऐसा ही वाकया याद है. कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौरान लोग अपनी कमाई के लिए एक्स्ट्रा फूड कूपन बेचते थे, एक ऐसा काम जिसे स्टेट "काउंटर रिवॉल्यूशनरी" कहता था.यू और उनके स्कूलमेट्स ने ऐसे ऑफेंडर्स को पकड़ने में मदद भी की थी. अगर कोई एक बार पकड़ लिया जाता था तो मुश्किल से ही कभी कोई रेसिस्ट यानी विरोध करता था, यू को याद है कि सिर्फ एक ही शख्स ने उनके साथियों को धक्का दिया, हालांकि उसने भी कोई भरपूर लड़ाई नहीं की थी. इसके उलट लोग आज कहीं ज्यादा डिसएप्वॉइंटेड और डेसपरेट हैं. एक बंदे ने तो उसे गिरफ्तार करने आए ऑफिसर का छोरी घोपकर कत्ल भी कर दिया था.तो, क्या बदल गया है? माओ के राज में इक्वालिटी के लिए काम किया जाता था, और उस दौर में अमीर और गरीब के बीच का फर्क इतना बड़ा नहीं था जितना आज है. लोगों के पास कुछ होने और ना होने के बीच इतना बड़ा फर्क आ गया है, कि लोगों को अब लगता है कि उनके पास खोने के लिए तो कुछ है ही नहीं.
सोशल चैलेंजेज़ को पार करने के लिए जमीनी लोगों की काबिलियत में कल्चरल रिवॉल्यूशन की आईडियोलॉजी का दबदबा नज़र आता है
"ग्रासरुट" या कउजेन का मतलब, एक घास के पौधे की जड़ है. वक्त के साथ इसका मतलब बदलता गया अब इसका मतलब आम लोगों का सोसायटी स्ट्रक्चर में पार्टिसिपेट करना होता है. आज के चाइना में यह शब्द उन फार्मर्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिनकी कामयाबी ने उन्हें सोशल चैलेंजेस को पार करने की इजाजत दी.काउज़ेन का एग्जैक्ट एग्जांपल "blood chiefs" है, जो गरीब फॉर्मर्स से खून लेकर इसे हॉस्पिटल और प्राइवेट क्लाइंट को बेच देते हैं. ऐसा ही एक ब्लड चीफ (blood chief) इतना अमीर हो गया कि उसने टावर ब्लॉक में एक लग्जरी अपार्टमेंट खरीद लिया. ऐसे ही एक एग्जांपल "गारबेज किंग" का भी है जिसने सड़कों से कबाड़ उठाकर इसे फैक्ट्री में बेचकर काफी दौलत कमाई. नये चाइना का मिलेनियर क्लास "बटन किंग" और "सॉक किंग" से भरा हुआ है जो ऐसे ही काम करते हैं.लेकिन सोसायटी के ऊपरी हिस्से में पहुंचना वहां पर बने रहने से ज्यादा आसान है. 2000 से 2010 के बीच में 49 सेल्फमेड टाइकून्स ने करप्शन, धोखेबाज डील की वजह से अपना सब कुछ खो दिया. ऐसा लगता है कि दौलत मुसीबतें लाती हैं.अचानक से सेल्फ मेड मैन और वूमेन का बढ़ना और अचानक से घट जाना चाइना में कोई नई बात नहीं है. दरअसल इसमें भी कल्चरल रिवॉल्यूशन की झलक मौजूद है. मिसाल के लिए वांग हांगव्हेन को ले लीजिए. 1966 में एक टेक्सटाइल मिल में सिक्योरिटी गार्ड थे. पॉलिटिक्स ज्वाइन करने के बाद उन्होंने एक रिवॉल्यूशनरी ऑर्गेनाइजेशन इस्टैबलिश्ड की और बढ़ते रैंक के साथ वो काफी ऊंचे ओहदे पर पहुंच गए. 1973 में वह कम्युनिस्ट पार्टी के तीसरे सबसे ज्यादा इन्फ्लुएंशियल इंसान बन गये, उनके ऊपर सिर्फ चेयरमैन माओ और ज़ो इन्लई काम करते थे. लेकिन फिर उसके बाद चाइनीस पॉलिटिक्स को लेकर वह कहावत सच हो गयी कि "चाइना की पॉलिटिक्स फिलिपिंग पैनकेक की तरह है" 1976 में वांग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ उन्हें "काउंटर रिवॉल्यूशनरी गुट ऑर्गेनाइज और लीड" करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया.इस तरह की चीजें आम थीं. यू ने अपने होम टाउन में भी काफी लोगों को इसी रास्ते पर चलते हुए देखा था. 1960 से 1970 के दौरान वहां के लोकल लोग अचानक से पार्टी के बहुत इंपॉर्टेंट मेंबर बन गये. और जब पॉलीटिकल क्लाइमेट बदला तो बहुत सारे लोगों को जेल भेज दिया गया और काफी लोगों ने अपना ओहदा खोने के अफसोस में सुसाइड कर ली.कल्चरल रिवॉल्यूशन और हालिया इकोनामिक पावर चीन में जमीन लोगों की तरफ पावर रेडिस्ट्रिब्यूट हुई. पहले यह पॉलीटिकल पावर थी और आज यह इकोनामिक पावर है. दोनों ही मामलों में अक्सर जो लोग ऊंचाइयों पर पहुंचे उन्होंने बदकिस्मती का दौर भी देखा.
मॉडर्न चीन में "कॉपीकैट" शब्द बहुत पॉपुलर है, लेकिन इसकी जड़ें काफी गहराई में फैली हुई है
जब यू ने डेंटिस्ट के तौर पर अपना काम शुरू किया उस वक्त उनके पास कोई मेडिकल ट्रेनिंग नहीं थी. यू की दांतों को निकालने, इलाज करने और फिक्स करने की समझ बहुत ख़राब थी. उन्होंने यह काम अपने बॉस को देखकर सीखा था, जिन्होंने सड़कों पर दांत निकालने से शुरुआत की थी. यू को समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने उन दिनों की हालत को कैसे बयान करें, जब चीजें ठीक हो गईं तो उन्होंने एक नए वर्ड "शंझाई" के बारे में जाना, जिसका मतलब कॉपीकैट होता है. वह इतने सालों से एक डेंटिस्ट को कॉपी करते आ रहे थे.हालांकि 'शंझाई' शब्द कॉपीकैट जितना नेगेटिव नहीं है, इसका इस्तेमाल फेक और पायरेटेड प्रोडक्ट को जस्टिफाई करने के लिए किया जाता था. यह शब्द आखिर आया कहां से? यह शब्द ट्रेंड में तब आया जब सैमसंग और नोकिया ने अपने सेल फोन मार्केट में उतारे. चूंकि उन्हें इस प्रोडक्ट के लिए रिसर्च और डेवलपमेंट पर पैसे नहीं खर्च करने पड़े थे इसलिए वह इसे अपने कंप्टीटर्स के कंपैरिजन में काफी कम दामों में बेच रहे थे. देखते ही देखते यह प्रोडक्ट्स चारों तरफ नजर आने लगे.आज के चाइना में कॉपीड प्रोडक्ट को एक्सेप्ट किया जाता है. इल्लीगल प्रोडक्ट करार दिए जाने के बजाय इन्हें एक यूजुअल सर्विस के तौर पर देखा जाता है, अगर इनके खिलाफ ज़्यादा से ज़्यादा कुछ कहा जाता है तो इन्हें थोड़ा बहुत इनकन्वीनियंस देने वाले प्रोडक्ट के तौर पर देखा जाता है. मिसाल के तौर पर, जब यू ने अपनी खुद की किताब की पायरेटेड कॉपी देखी तो सेलर ने उनसे कहा यह तो सिर्फ कॉपीकैट ही है. इसी तरह जब यू उस जर्नलिस्ट से मिले जिसने उनके साथ इंटरव्यू का झूठा दावा किया तो उसने भी कॉपीकैट को बहाने के तौर पर स्तेमाल किया.यह शब्द नया हो सकता है लेकिन इसके तहत जो काम किए जाते हैं उनकी जड़ें बहुत पुरानी हैं. अगर आप 'शांझई' कॉपीकैट की एक्सेप्टेंस समझना चाहते हैं तो आपको कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौर में एक बार फिर लौटना होगा. 1966 में माओ द्वारा दिए गए बयान को लीजिए तो उसमें कहा गया था "विद्रोह यानी रिबेल करना सही है." उनका रिवॉल्यूशन सोसाइटी को रिशेप करने और समाज के निचले तबके को ताकतवर बनाने को लेकर थी. जल्द ही पार्टी कमेटी और ऑर्गनाइज़ेशंस बर्बाद होने लगे और इनकी जिम्मेदारियां कॉपीकैट लीडर्स के हाथ में चली गईं. अगर आपके पास जरूरत भर ताकत होती थी तो झूठी ऑर्गनाइज़ेशन्स के दम पर रियल पावर छीनी जा सकती थी.उन्होंने कल्चरल रिवॉल्यूशन को 1 मास मूवमेंट बना दिया था. चीन का रिवॉल्यूशनरी पैटर्न तो खत्म हो गया है लेकिन अंदर ही अंदर मास मूवमेंट मौजूद है. आज के चीन में कॉपीकैट्स पॉलीटिकल लीडर्स की जगह फेक प्रोडक्ट्स के साथ स्टेट ओन्ड इकनोमिक हो हथियाने की कोशिश कर रहे हैं.
मौजूदा चीन में बैम्बूज़ल (bamboozzle) पसंद किए जाने वाला वर्ड है जो धोखेबाज़ी को एक इज्जतदार काम बनाता है।
चीनी शब्द हूयू एक अनस्टेबल, लहराते मोशन को बताता है, वैसा ही मोशन जो आप तेज़ लहरों में चलती नाव पर बैठे हुए महसूस करते हैं. हालांकि, आज इसका मतलब काफी हद तक बदल गया है, जो अंग्रेजी के शब्द bamboozzle से मिलता जुलता है. इस शब्द का मतलब धोखा देना है, खासतौर पर किसी चीज को बहुत बढ़ा चढ़ाकर बताना.2000वीं के शुरुआत में इस वर्ड को पहली बार कॉमेडियन ज़ाओ बेंशान ने 'सेलिंग क्रंचेस' नाम की स्किट में इस्तेमाल किया था. ज़ाऊ के जोक का मतलब है, किसी को वह चीज खरीदने के लिए इनकरेज करने की कोशिश करना जो कि उसे चाहिए ही नहीं, और इस मामले में इसका मतलब किसी ऐसे इंसान को बैसाखी बेचना है जिसके पांव पूरी तरह सही सलामत हैं.तभी से "हुयू" का कांसेप्ट तेजी से बढ़ा. जल्द ही लोग इस शब्द का इस्तेमाल धोखेबाजी, बढ़ा चढ़ाकर बातें करने और आमतौर पर की जाने वाली गलतियों के लिए करने लगे. बाकी शब्दों की तरह हुयू की कोई नेगेटिव मीनिंग नहीं थी. कुछ लोगों का दावा है कि इसका मतलब धोखेबाजी वगैरह है, लेकिन इस तरह की मीनिंग अब मान्य नहीं रही.यू का इस शब्द से पहली बार पाला तब पड़ा जब उन्हें अपने फादर के सर्जन के काम की वजह से दूसरी जगह रीलोकेट करना पड़ा. उन्होंने अपनी वाइफ को लेटर लिखना शुरू कर दिया कि यह नया टाउन बहुत खूबसूरत है और उन्हें भी यू को ज्वाइन करना चाहिए. जब वह शिफ्ट होने के लिए तैयार हो गयीं तो उन्हें एहसास हुआ कि उनसे झूठ बोला गया है, उन्होंने अपने आप को ठगा महसूस किया. आज यू की वाइफ इस वाक्य को हुयू के एक बेहतरीन एग्जांपल के रूप में याद करती हैं.
"बैंबूज़लिंग" का दूसरा एग्जांपल एक जाना माना फ्रॉड है. एक एंटरप्रेन्योर नेटवर्क न्यूज़ पर 7:00 बजे से पहले के एडवर्टाइजमेंट स्लॉट के लिए बिडिंग करना चाहता था, नेटवर्क न्यूज़ चाइना का एक जाना माना और बहुत महंगा एड स्लॉट है. अपनी कैपेसिटी से ज्यादा डिलीवर करने के दावे के साथ बिडिंग जीतने के बाद वह लोकल ऑफिशियल्स के पास एक अल्टीमेटम के साथ पहुंचा. या तो वह उसे लोन देकर शहर का सबसे बड़ा बिजनेसमैन बना दे नहीं तो वह एक फ्रॉडस्टर बनाने के जिम्मेदार होंगे, वह मान गए और यह जबरन वसूली हुयू के एग्ज़ाम्पल के रूप में फेमस है.कभी-कभी यह धोखेबाज़ी उल्टा असर भी कर जाती है. जब यू छोटे थे तो उन्होंने के घर काम से बचने के लिए बीमारी का बहाना किया. एक बार उनके फादर ने उनकी बातों पर यकीन कर लिया और उन्हें लगा कि यू को अपेंडिक्स है वह फौरन दौड़कर हॉस्पिटल गए, जहां पर ऑथर को अपनी अपेंडिक्स निकलवाने पड़ी उन्होंने अपने फादर को झांसा देने की कोशिश की थी लेकिन वह खुद की बातों की वजह से फस गए.
कुल मिलाकर
1960 से चाइना पूरी तरीके से बदल गया है. यहां पर कल्चरल रिवॉल्यूशन ने चाइना को इकोनामिक ग्रोथ की तरफ आगे बढ़ाया और माओ की डिकटेटरशिप ने एक तरह से कमेटी द्वारा एक तरह के कंज़र्वेटिव रूल को जन्म दिया. हालांकि अगर आप करीब से देखेंगे तो उस दौर और आज के दौर में काफी सिमिलैरिटीज़ नजर आएंगी. छुपे हुए कनेक्शन को ढूंढने का सबसे बेहतरीन तरीका लैंग्वेज है. चाहे वह रीडिंग और द पीपल जैसे पुराने कांसेप्ट की बात हो या बैंबूज़लिंग और कॉपीकैट जैसे मॉडर्न चाइना के कॉन्सेप्ट्स, इनमें मौजूद क्लूज़ देश के पास्ट, प्रेजेंट और कई हद तक फ्यूचर के बारे में बताते हैं.
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