Sam Walton with John Huey
आइए जानते है अमेरिका के सबसे सफल बिजनेसमैन के बारे में
दो लफ्जों में
1992 में आई किताब मेड इन अमेरिका हम सभी को यह बताती है कि किस तरह दुनिया की सबसे विख्यात कम्पनी वॉलमार्ट के निर्माता सैम वाल्टन ने रंक से राजा बनने तक का सफर तय किया। इस किताब में इस बात का भी वर्णन है कि किस तरह सैम वॉल्टन ने ग्राहक को अहमियत देने वाली विधि से एक छोटे से बिजनेस को आज पूरी दुनिया में फैला दिया है। और इसी बिजनेस की वजह से सैम वॉल्टन का नाम एक समय दुनिया के सबसे अमीर आदमियों की सूची में रखा जाता था।
लेखक के बारे में
मेड इन अमेरिका के लेखक थे सैम वॉल्टन, जिन्होंने वॉलमार्ट नामक कम्पनी की शुरुआत की थी। वॉलमार्ट वही कम्पनी है जिसने साल 2015 में 500 बिलियन शेयर खरीदे थे। 1992 में सैम वॉल्टन का देहांत हो गया था। जॉन हुए जोकि टाइम मैग्जीन के एडिटर इन चीफ हुआ करते थे उन्होंने बाद में इस किताब को लोगो तक पहुंचाया।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
1992 में जब सैम वॉल्टन का निधन हुआ तो उस समय वो दुनिया के सबसे अमीर आदमी थे। इतना पैसा होने के बावजूद भी सैम वॉल्टन ने कभी मानवता का साथ नहीं छोड़ा। और उनका स्वभाव ही वह मुख्य कारण था जिसकी वजह से वो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बिजनेसमैन बनकर उभरे और उनकी कम्पनी वॉलमार्ट दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कम्पनी के रूप में सामने आई।
इस किताब में सैम वाल्टन की पूरी जीवन गाथा का वर्णन है और साथ ही साथ यह भी बताया गया है कि एक बड़े बिजनेस को किस प्रकार और बड़ा बनाया जा सकता है। हम इस किताब के द्वारा सैम वॉल्टन के जीवन से जुड़ी सारी बातें आपको बताएंगे कि आखिर किस तरह उन्होंने एक छोटे से स्टोर को वॉलमार्ट जैसे दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कम्पनी बना दिया।
1) आखिर किस तरह इंग्लैंड के एक सफर ने सैम वॉल्टन का अपने कर्मचारियों के प्रति रवैया बदल दिया।
2) आखिर क्यों वॉल्टन ने वॉल स्ट्रीट पर हूला स्कर्ट पहन का डांस किया था।
डिप्रेशन में जीने के साथ साथ सैम वॉल्टन नें कठिन परिश्रम की अहमियत भी जानी।
सैम वॉल्टन का जन्म साल 1918 में एक मिडल क्लास परिवार में हुआ था। उनका परिवार किंगफिशर, ओकलाहामा में रहा करता था। उनके परिवार ने ज्यादा समृद्ध न होने के कारण भी उनकी हर जरूरतों का ध्यान रखा।
सैम वॉल्टन के पिता का नाम थॉमस था, थॉमस ने अपने परिवार का जीवन यापन करने के लिए बहुत सी अलग अलग नौकरियां की। अपने आत्मसम्मान की वजह से थॉमस ने किसी भी तरह का लोन या फिर उधार न लेने का निश्चय किया था लेकिन बाद में सैम वॉल्टन ने अपना खुद का बिजनेस शुरू करने के लिए लोन लिया।
सैम वॉल्टन की माँ नैन, एक कर्मठ महिला थी। नैन नए नए आइडियाज के साथ कुछ ऐसे काम करती थीं जिसकी वजह से उनके परिवार के पास कुछ एक्सट्रा पैसे आ सकें।
1920 और 1930 में परिवार की स्थिति अच्छी न होने के कारण, नैन ने दूध का बिजनेस शुरू किया। उन्होंने एक गाय खरीदी, गाय से दूध दुहने के वाद सैम की माँ उसकी बोतल में पैक करती थी और फिर उसके बाद सैम उस दूध को ग्राहकों तक पहुंचाते थे।
बचपन की इन्हीं सब घटनाओं से सैम को आभास हो गया था कि उनको अपने जीवन लक्ष्य को पाने के लिए बहुत कड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। अपनी माँ से प्रेरित होकर सैम ने भी काम शुरू किया। जब सैम वॉल्टन मात्र 7 साल के थे तब उन्होंने मैगजीन बेचने का काम शुरू किया, धीरे धीरे उनका यह कारोबार बढ़ता गया और जबतक सैम 7वीं क्लास में आये उन्होंने बाइक पर मैगजीन की डिलीवरी शुरू कर दी।
पढ़ाई के साथ साथ उन्होंने काम चालू रखा। और ग्रेजुएट होने की अवस्था तक उन्होंने अपने नीचे काम करने के लिए कुछ असिस्टेंट भी रख लिए। उस समय एक साल में लगभग 5500 डॉलर कमाने वाले सैम वॉल्टन को एक बात का एहसास हो गया था कि अगर कोई व्यक्ति मेहनत करता है तो उसको मेहनत का फल अवश्य मिलता है।
27 की उम्र में सैम वॉल्टन ने खुद का बिजनेस शुरू करने का निश्चय कर लिया। उन्होंने यह बात समझ ली थी कि अगर जीवन में अपने किए बिजनेस को सफल बनाना है तो दिल लगा कर मेहनत करनी होगी।
सैम वॉल्टन ने सफल होने के लिए दूसरों की सिर्फ अच्छी बातों की नकल करनी शुरू की।
साल 1945, 27 साल की उम्र में सैम वॉल्टन ने पहला स्टोर खोला, उन्होंने सब सही किया था लेकिन इसके बावजूद उनको लगता था कि वो और अच्छा कर सकते हैं।
सैम वॉल्टन ने फिर अपने प्रतियोगियों पर नजर रखनी शुरू की और उनका यह पैंतरा काम में आया , उनको कुछ ऐसे अनोखे आइडियाज मिले जिसकी वजह से उनका बिजनेस और बड़ा बन गया। कुछ आइडियाज तो इतने अच्छे थे कि आज भी नए नए बिजनेसमैन के द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं।
एग्ज़ाम्पल के तौर पर, 1940 के दौर में यह बात बहुत कॉमन थी कि हर स्टोर पर कई सारे केशियर बैठे हो जिससे कि पैसों के लेनदेन में आसानी हो सके, इसी बीच सैम वॉल्टन को मिनसोटा में एक स्टोर पर जाना पड़ा, वहां पर उन्होंने देखा कि उस स्टोर पर सिर्फ दो ही केशियर मौजूद हैं एक स्टोर के अंदर आने वाले रास्ते पर और एक बाहर जाने वाले रास्ते पर। वॉल्टन ने यही तकनीक अपनाई और इस तकनीक से उनको काफी फायदा भी हुआ।
ऐसे एक उन्होंने नोटिस किया कि उनका एक प्रतियोगी अपने स्टोर नें सामान को रखने के लिए लकड़ी की अलमारी का इस्तेमाल करता है, जिससे कि सामान स्वच्छ और सुरक्षित रहता है। सैम वॉल्टन ने भी ये उपाय अपनाना चाहा। उन्होंने इस आईडिया को अपनाया तो परन्तु अपने ढंग से। सैम वॉल्टन ने मेटल की अलमारियों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
सफल होने के बाद भी वॉल्टन ने दूसरों के अच्छे आईडिया को अपनाना नहीं छोड़ा।
एक बार एक स्टोर पर वॉल्टन ने देखा कि आखिर किस तरह स्टोर के सारे कर्मचारी सुबह स्टोर के नाम के साथ चीयर करते हैं, जिससे कर्मचारियों का उत्साह बना रहता है। वॉल्टन ने भी वापस आकर अपने कर्मचारियों के साथ यह तरकीब अपनाई। वॉल्टन ने इसको वॉल्टन चीयर का नाम दिया।
बाद में जब सैम वॉल्टन के स्टोर के कर्मचारी प्रेसीडेंट बुश से मिलने गए तो वहां पर उन सभी ने चीयर परफॉर्म किया। चीयर देखने के बाद बुश के चेहरे का उत्साह देखने लायक था।
वॉल्टन ने हमेशा ग्राहक को पहले रखा, लेकिन विवाद के बिना नहीं।
सैम वॉल्टन हमेशा चाहते थे कि उनके स्टोर पर ग्राहकों की कमी ना हो इसलिए जब उन्होंने पहला स्टोर खोला तो वहां पर उन्होंने आइसक्रीम बनाने की मशीन रख ली जिससे कि ग्राहक उसकी स्टोर की तरफ आकर्षित हों। इसके बाद भी सैम ने कई अलग-अलग प्रकार की नीतियां अपनाई जिससे कि ग्राहक उनके स्टोर की तरफ आकर्षित रहे।
एक बार सैम वॉल्टन ने देखा की एक परिवार हर शनिवार को शहर में सामान खरीदने आता है लेकिन उनके आते आते ज्यादातर स्टोर बन्द हो जाते है। उन्होंने नोटिस किया कि उनका स्टोर जिस क्षेत्र में वहां पर बाकी के स्टोर जल्दी बंद हो जाते हैं और जो लोग देर से सामान खरीदने आते हैं उनको असुविधा होती है। इसलिए उन्होंने अपने स्टोर को देर तक खोलना शुरू किया, जिससे कि जो कस्टमर लेट आते थे उन्हें सुविधा मिलने लगी।
इन्हीं सब नीतियों के साथ सैम वॉल्टन ने 1969 में वॉलमार्ट का 18 वा स्टोर खोला। स्टोर देर तक खुलने के कारण आसपास के व्यापारियों ने शिकायत करी कि आपकी वजह से हमारा काफी नुकसान हो जाता है, दिन के समय में कस्टमर बहुत कम आते हैं। लेकिन सैम वॉल्टन ने किसी की एक न सुनी और अपने बिजनेस को बढ़ाते गए।
सैम वॉल्टन के हिसाब से उनके इस तकनीक से कोई नुकसान नहीं था बल्कि इससे फायदा था क्योंकि वॉलमार्ट के आने से लोगों के पास ऑप्शन आ गया था कि वो आजादी के साथ शॉपिंग कर सकें और वॉल्टन का मानना था कि लोग अगर वॉलमार्ट को पसंद करते है तो इसका मतलब यह है कि उस एरिया में मौजूद बाकी स्टोर्स के मुकाबले में वॉलमार्ट लोगों को अच्छी सुविधा देता है।
सैम वॉल्टन का मानना था कि ग्राहकों को प्राथमिकता देने वाली स्कीम से लोकल बिजनेसमैन को भी फायदा हुआ।
एग्ज़ाम्पल के तौर पर सैम वाल्टन कहते हैं कि अभी हाल में एक पेंट स्टोर के मालिक ने वालमार्ट के स्टोर पर आके उनका सुक्रिया अदा किया क्योंकि वालमार्ट पर आने वाले ग्राहकों को अगर उनके मन मुताबिक सामान नहीं मिलता था तो कर्मचारी उस ग्राहक को उस पेंट स्टोर पर भेज देते थे।
इस एग्ज़ाम्पल से यह साबित होता है कि वॉलमार्ट अपने ग्राहकों का कितना ख्याल रखता है। और इसी ग्राहक केंद्रित एप्रोच के साथ सैम वॉल्टन ने अपने बिजनेस को आगे बढ़ाया।
कॉम्पिटिशन से वॉलमार्ट को परेशानी नहीं हुई बल्कि और बड़ा बनने में मदद मिली।
सैम वॉल्टन का मानना था कि कॉम्पिटिशन से भागने की बजाय उसका इस्तेमाल करना चाहिय। वॉल्टन अपने विरोधियों को देखकर अपनी बिजनेस स्ट्रेटजी प्लान करते थे।
1970 के दौरान वॉलमार्ट ने एक छोटी जगह पर अपना स्टोर खोला, उस जगह पर पहले से ही केमार्ट नामक कम्पनी का स्टोर हुआ करता था। उस समय तक केमार्ट पूरे अमेरिका में लगभग 1500 स्टोर थे और वॉलमार्ट के महेश 150 स्टोर।
वॉल्टन को समझ में आ गया कि अगर उन्हें उस जगह पर अपने स्टोर की वैल्यू बढ़ानी है तो उन्हें कुछ बहुत ही अच्छी स्ट्रेटजी की जरूरत होगी। वॉल्टन कुछ करते इससे पहले ही वहां के स्टोर मैनेजर फिल ने अपना दिमाग लगाया और एक सेल आयोजित की। उस सेल के अंतर्गत वॉलमार्ट वहां के लोगों को डिटर्जेंट पर $1 तक की छूट दे रहा था। जब यह बात वाल्टन को पता लगी तो उन्हें लगा कि यह बहुत ही घटिया आईडिया है इससे वॉलमार्ट को ही नुकसान होगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ यह आईडिया बहुत ही ज्यादा सक्सेसफुल हुआ और इससे बहुत ही ज्यादा लोग वॉलमार्ट की तरफ आकर्षित हुए।
वॉल्टन का मानना था कि अगर उस जगह पर केमार्ट ना होता तो शायद वॉलमार्ट को इतना शानदार आईडिया न मिलता, इसी वजह से सैम वॉल्टन का मानना था कि कॉम्पिटिशन बहुत आवश्यक है।
1977 में लिटिल रॉक नामक स्थान पर वॉलमार्ट के स्टोर को केमार्ट के स्टोर के द्वारा बहुत ही शानदार कंपटीशन मिल रहा था। वहां का केमार्ट का स्टोर लोगों के बहुत ही कम दामों में वस्तुएं दे रहा था। जब इस बात का पता वॉल्टन को चला तो उन्होंने स्टोर के मैनेजर को आदेश दिया कि वह भी कम से कम दाम में चीजों को लोगों तक पहुंचाएं। इसका असर यह हुआ कि उस समय टूथपेस्ट की कीमत मात्र 6 सेंट तक पहुंच गई। लेकिन इतनी कम कीमत होने के बावजूद भी सैम वॉल्टन पीछे नहीं हटे। अंत में केमार्ट को ही पीछे हटना पड़ा।
इस घटना के बाद से वॉलमार्ट के निर्माता सैम वॉल्टन को इस बात का एहसास हो गया था कि अगर कोई उनके कंपटीशन में आता है तो उन्हें वस्तुओं की कीमत कम से कम करनी पड़ेगी अगर उन्हें अपने ग्राहकों को अपने साथ जोड़े रखना है तो।
समय के साथ-साथ धीरे-धीरे वॉल्टन ने अपने कर्मचारियों को अपना सहयोगी बनाना शुरू किया।
सैम वॉल्टन शुरू से ही अपने ग्राहकों को सबसे ऊपर रखते थे। यही वजह थी कि वाल्टन अपने स्टोर के कर्मचारियों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे। सत्य यह भी था कि वाल्टन अपने कर्मचारियों को उतना वेतन नहीं देते थे जितना कि वो सभी चाहते थे।
1955 की एक घटना है कि सैम वॉल्टन के एक स्टोर मैनेजर चार्ली बॉम ने वॉल्टन को कहा कि उन्होंने अपने स्टोर पर काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन में इजाफा किया है क्योंकि वहां के कर्मचारी वेतन से खुश नहीं हूं। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों का वेतन बढाकर उन्होंने 50 सेंट से 75 सेंट कर दिया है। सैम वॉल्टन ने इस बात का विरोध किया और चार्ली को आदेश दिया की वो अभी वेतन न बढाये। वॉल्टन ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि जिस स्टोर से यह मांग उठी थी वो स्टोर वॉल्टन के मनमुताबिक प्रॉफिट प्रदान नहीं कर रहा था।
काफी लम्बे समय था सैम वॉल्टन ने अपने कर्मचारियों को अनदेखा किया लेकिन 1971 में जब वो इंग्लैंड जाकर वहाँ से वापस लौटे तो अपने कर्मचारियों के प्रति उनका नजरिया बिल्कुल बदल गया।
अपने इंग्लैंड के सफर के दौरान सैम वॉल्टन ने वहां पर एक स्टोर विजिट किया। वहां पर उन्होंने देखा कि उस स्टोर के सभी कर्मचारियों को एसोसिएट के तौर पर रखा गया है। यह बात सैम वॉल्टन को बहुत पसंद आई और वापस आकर उन्होंने अपने वॉलमार्ट के स्टोर पर भी यही नीति अपनानी शुरू की। इसके साथ साथ उन्होंने अपने साथ काम करने वाले एसोसिएट के साथ प्रॉफिट शेयरिंग का काम भी शुरू कर दिया जिससे कि एसोसिएट का भरोसा पूरी तरह से सैम वाल्टन और उनकी कम्पनी पर स्थिर हो गया।
वॉल्टन को अपनी सफलता सेलिब्रेट करना आता था साथ ही साथ वो यह भी जानते थे कि अपने फेलियर से किस प्रकार सीख लेनी है।
सैम वॉल्टन ने अपनी रफ्तार कभी कम नहीं की। उन्हें जितनी सक्सेस मिलती गयी वो उतनी तेज रफ्तार से अपनी बिजनेस की गति हो बढाते गए। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि रफ्तार बनाये रखने के चक्कर में उनसे कुछ गलतियां भी अवश्य हुईं।
ऐसी ही एक गलती से उनको उनकी कम्पनी से भी हांथ धोना पड़ सकता था।
1974 की बात है वॉलमार्ट बहुत अच्छा बिजनेस कर रही थी। उसी समय वल्टोन ने सोचा कि अब क्यों न रिटायरमेंट ले लिया जाए। उस समय वॉलमार्ट में दो वाईस प्रेसीडेंट हुआ करते थे, रोन मेयर और फेरोल्ड अरेंड। सैम वॉल्टन ने रोन मेयर को प्रेसीडेंट बनाने की राय सबके सामने रखी और खुद रिटायरमेंट ले लिया। यह बात फेरोल्ड और उनके समर्थकों को बिल्कुल पसंद नहीं आयी। इसका रिजल्ट यह हुआ कि कम्पनी के अंदर ही दो दल बन गए, एक रोन मेयर का और दूसरा फेरोल्ड का।
2 साल बीत गए तब सैम वॉल्टन को एह्साह हुआ कि कम्पनी में जो हो रहा है वो ठीक नहीं है। इसकी उन्होंने निश्चय किया कि वो रिटायरमेंट से वापस आएंगें। इस घटना को सैटरडे मसकैरे के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद मेयर और उनके साथियों ने वॉलमार्ट को छोड़ दिया जिससे कि वॉलमार्ट को काफी नुकसान सहन करना पड़ा। सैम वॉल्टन को लगा कि अब उनकी मेहनत से बनाई कम्पनी डूब जाएगी। परन्तु इस विपत्ति की परिस्थितियों में भी वो डटे रहे। उन्होंने जल्द जल्द से नए मैनेजर और कर्मचारियों को नियुक्त किया। रोन मेयर की जगह उन्होंने अपने पुराने दोस्त डेविड ग्लास को नियुक्त किया।
डेविड ग्लास बहुत ही टैलेंटेड थे, उन्होंने बहुत ही जल्द कम्पनी को उसकी पहले की पोजीशन पर ला दिया।
8 साल बाद वो हुआ जिसकी की कभी सैम वॉल्टन ने कभी कल्पना भी नहीं कि थी। 1984 में वॉलमार्ट एक बहुत बड़े माइलस्टोन पर पहुंच गया।
एक बार सैम वॉल्टन ने अपने वाईस प्रेसीडेंट डेविड ग्लास के साथ शर्त भी लगा ली थी कि वॉलमार्ट कभी इस माइलस्टोन पर नहीं पहुंच पायेगा लेकिन ऐसा हुआ और सैम वॉल्टन शर्त हार गए। शर्त हारने के तौर पर सैम वाल्टन जो हवाएन ड्रेस पहन कर वाल स्ट्रीट पर जाना पड़ा और उकुलेले प्लेयर्स के साथ हूला डांस करना पड़ा।
पूरा प्रेस उस बात से हैरान था कि आखिर इतने बड़े कम्पनी के मालिक ये बेहूदा काम करेगा या नहीं लेकिन सैम वॉल्टन का कहना था कि ये वॉलमार्ट की फिलॉसफी है। उनको पता है कि कब काम करना है और कब सेलिब्रेट।
वॉल्टन ने यह भी जाना कि कमाए हुए धन से समाज के लिए भी कुछ करना आवश्यक है।
सैम वॉल्टन के बहुत सारे विरोधी थे। सबका मानना था कि सैम वाल्टन इतना कमाने के बावजूद भी कुछ चैरिटी नहीं करते। परन्तु ऐसा नहीं था।
सैम वॉल्टन शुरू से ही एजुकेशन के पक्षधरी थे। उनका मानना था एजुकेशन के साथ ही किसी देश का विकास हो सकता है। उनका मानना था कि अमेरिका का आने वाला भविष्य तभी अच्छा होगा जब वहां के लोगों को अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी। इसी की तहत वॉलमार्ट परिवार ने वॉलमार्ट के सहयोगियों के बच्चों को 70 प्रतिशत तक कि स्कॉलरशिप प्रदान की जिससे कि वो सभी अच्छे विश्वविद्यालय में पढ़ सकें।
न सिर्फ अमेरिका में बल्कि वॉलमार्ट ने अमेरिका के बच्चो को अन्य देशों की बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भेजा। सैम वॉल्टन का मानना था कि जब ये सभी बच्चे पढ़ लिख जाएंगे तो वापस आकर वो सभी अमेरिका की गिरती हुई अर्थव्यवस्था को सुधारेंगे।
वॉल्टन का मानना था कि वॉलमार्ट भी दान का एक स्वरूप है। उनका यह भी मानना था कि वॉलमार्ट की जो ग्राहकों को प्राथमिकता देने वाली नीति है उससे ग्राहकों को भी बहुत फायदा हुआ है। वॉल्टन का कहना था कि वॉलमार्ट का सस्ते दामो में वस्तुओं का बेचने से ग्राहक साल भर में बहुत सारे पैसे बचा लेते हैं।
1982 से लेकर 1992 के बीच 10 साल में जहां वालमार्ट ने 130 बिलियन के प्रोडक्ट बेंचे तो वहीं ग्राहकों ने वालमार्ट से सामान लेके इस दौरान 13 बिलियन बचाये भी। इन बचाये हए पैसों से वलमार्ट के ग्राहकों की जीवन चर्या भी सुधरी।
कुल मिलाकर
सैम वॉल्टन ने एक छोटे से स्टोर को दुनिया का सबसे बड़ा रिटेल स्टोर बनाया। उनकी इस किताब के जरिये हमें यह भी पता चला कि किस तरह ग्राहकों को प्राथमिकता देने से बिजनेस बहुत तेजी से ग्रो करता है। सैम वॉल्टन से हमें यह भी सीखने को मिलता है कि कभी भी कॉम्पिटिशन से दूर नहीं भागना चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए। ग्राहकों के साथ साथ कर्मचारियों का ध्यान रखना भी अतिआवश्यक हैं।
अपने विरोधी की पूर्णतः जांच आवश्यक है
वॉल्टन ने अपने कॉम्पिटिशन को पहचान तथा उसका डटकर सामना किया। वाल्टन अपने विरोधियो की हर नीति पर पैनी नजर रखते थे। उनका मानना था कि वस्तुओं के दाम गिर जाए लेकिन कभी भी ग्राहक का विश्वास नहीं खोना चाहिए।
