Alain De Botton
हम अपने ट्रेवल से ज्यादा से ज्यादा कैसे सीख सकते हैं?
दो लफ्जों में
साल 2002 में रिलीज हुई किताब “The Art of Travel” को ट्रेवलिंग की अन ऑर्थोडॉक्स गाइड भी कहा जाता है. इस किताब के ऑथर “Alain De Botton” ने इस किताब में ट्रेवलिंग को लेकर अपना एक अलग ही नज़रिया पेश किया है. ऑथर इस किताब को ट्रेवलिंग की हैंडबुक भी कहते हैं.
ये किताब किसके लिए है?
· सफर को पसंद करने वालों के लिए
· प्रोफेशनल ट्रेवलर्स के लिए
· फ्रीलान्स जर्नलिस्ट जिन्हें सफर के साथ काम करने में रूचि हो
ऑथर के बारे में
इस किताब के ऑथर “Alain De Botton” हैं. जो कि फिलॉसफर भी हैं. इसी के साथ वो कई बेस्ट सेलिंग नॉवेल के ऑथर भी रह चुके हैं. ‘द स्कूल ऑफ़ लाइफ’ के ये को-फाउंडर भी हैं.
आपकी ट्रिप आपके सपनों वाली ट्रेवलिंग से बिल्कुल अलग क्यों होती है?
अगर आपको ट्रेवलिंग पसंद है? और आप ट्रेवलिंग को लेकर टिप्स जानना चाहते हैं तो ये किताब आपके लिए ही है. क्या आप भी ऑफिस में 8 घंटे काटते समय अपनी अगली ट्रिप के बारे में सोचते रहते हैं? क्या आपको भी आइलैंड के सपने आते हैं? अगर ऐसा होता है तो इस किताब चैप्टर्स आपको बतायेंगे कि कैसे छोटी-छोटी चीज़ों से अपनी ट्रिप को बेहतर बनाया जा सकता है.
इस किताब को पढ़ने के बाद आपको पता चलेगा कि कैसे आप अपनी ट्रिप को ज्यादा एन्जॉय कर सकते हैं. इन चैप्टर्स से आपके दिमाग में फिलॉसफिकल पर्सपेक्टिव का निर्माण भी होगा. इसी के साथ ही साथ आपको ये भी पता चलेगा कि ऐसी कौन सी चीज़ें थीं. जिन्हें आप अपनी ट्रेवलिंग के दौरान ग्रांटेड में लिया करते थे.
इंसान की जिंदगी ही एक सच के चारों तरफ घूमती रहती है. वो सच है खुशियों की तलाश करना. कई लोगों को अपनी खुशियाँ पैसों में मिलती है. तो कई लोगों को खुशियाँ रिश्तों में मिलती हैं. कई ऐसे भी लोग होते हैं. जिन्हें खुशियों की तलाश ट्रेवलिंग में होती है.
लेकिन ज़्यादातर ट्रेवलर्स की लाइफ में देखा जाता है कि उनकी एक्चुअल ट्रिप उनके सपनों की ट्रिप से पूरी तरह से अलग होती हैं. ऑथर ये भी बताना चाहते हैं कि ट्रेवलिंग की निराशा आज से ही नहीं बल्कि 19वीं सदी से चली आ रही है. इसके पीछे रीजन ये है कि लोग घूमने तो चले जाते हैं लेकिन साथ में अपनी दिक्कतों को भी लेकर जाते हैं. कई लोग ऐसा मानते हैं कि अगर वो किसी दिक्कत में हैं तो फिर घूमने से उनकी दिक्कत खत्म हो जायेगी.
लेकिन इस चैप्टर के ज़रिये से ऑथर बता देना चाहते हैं कि किसी भी मानसिक दिक्कत का ईलाज ट्रेवलिंग से नहीं हो सकता है. जब आप अपने मेंटल बैगेज को साथ में लेकर जाते हैं तब आप अपनी ट्रिप की खराब करने की शुरुआत भी कर देते हैं.
इस बारे में एक किस्सा शेयर करते हुए ऑथर बताते हैं कि एक बार वो अपनी डेली रूटीन से तंग आकर बारबाडोस चले गये थे. उन्होंने सोचा था कि वहां जाकर उन्हें आराम मिलेगा. लेकिन वहां सबकुछ अच्छा होने के बावजूद भी उनके अंदर एक बेचैनी बनी हुई थी. उन्हें लगातार एहसास हो रहा था कि जैसे वो अभी भी लन्दन में ही हैं.
असलियत ये है कि ट्रेवलिंग सपनों के जैसी ग्लैमरस नहीं होती है. लेकिन ट्रेवलिंग खुद में एक वर्ल्ड ऑफ़ वंडर के बराबर है. सब कुछ हमारे एप्रोच पर निर्भर करता है कि हम ट्रेवलिंग को कैसे हैंडल करते हैं.
हवाई सफर हमें बहुत कुछ सिखाता है
19वीं सदी में एक फ्रेंच पोएट हुआ करते थे. उनका नाम ‘Charles Baudelaire’ था. उन्हें बड़ी शिप्स काफी ज्यादा पसंद हुआ करती थी. जिसमे एक कॉन्टिनेंट से दूसरे कॉन्टिनेंट में जाना उन्हें काफी पसंद था. इससे उन्हें एक अलग ही ख़ुशी का अनुभव हुआ करता था. लेकिन ऑथर बताते हैं कि मॉडर्न मीन्स ऑफ़ ट्रांसपोर्टेशन और भी ज्यादा रोमांचक हो चुका है.
खासतौर पर ऑथर यहाँ पर एयर ट्रेवल की बात कर रहे हैं. उनके अनुसार ये ट्रेवल इतना मजेदार और रोमांचक होता है कि इससे आपका नज़रिया भी बदल सकता है.
अगर 19वीं सदी में फ्रेंच पोएट को समुद्री जहाज़ में सफर करना रोमांचक और आनन्द से भर देता था. अगर वो आज के दौर में बादलों को चीरते हुए हवाई जहाज़ में सफर किये होते. तो शायद वो इसे सबसे रोमांचक सफर बता रहे होते. वह बताते कि जब हवाई ज़हाज ज़मीन को छोड़ता है तो कैसे इंसान का खून भी शरीर में और तेजी से दौड़ने लगता है. वो ये बताते कि बादलों के बीच से गुज़रते समय कैसे आपको आपकी महबूबा की याद आ जाती है? वो बताते कि हवाई ज़हाज से सफर करना किसी इश्क से कम नहीं है.
इसी के साथ ऑथर बताते हैं कि जब हवाई ज़हाज धरती को छोड़ता है और टेक ऑफ करता है तब आपको लाइफ के कई पहलु के बारे में पता चलता है. तब आपको भी एहसास होता है कि उड़ने में कैसा लगता है? आपको ऐसा लगता है कि जैसे आप खुद ही उड़ने की शुरुआत कर रहे हों.
इसी के साथ जैसे-जैसे हवाई ज़हाज ऊपर जाता रहता है घर और फैक्ट्रीज और भी छोटे होते जाते हैं. इससे इंसान साइकोलॉजिकल ह्यूमन नेचर के बारे में भी पता चलता है. साथ ही साथ हम लोगों को ये एहसास होता है कि साइंस ने कितनी ज्यादा तरक्की कर ली है.
अगर आपने कभी ये सोचा होगा कि काश मैं भी पक्षियों की तरह उड़ सकता तो फिर हवाई सफर से आपकी इस सोच को भी एक ऐसी उड़ान मिलती है. जिसे कभी भी आप भूलना तो नहीं चाहेंगे. यही कारण है कि आज भी लोगों के लिए उनका पहला हवाई सफर बहुत ही ज्यादा ख़ास रहता है. लोग उस सफर को अपने जहन में बैठा लेना चाहते हैं.
हो भी क्यों ना, इसी सफर से तो हमको अपने जिंदा होने का एहसास भी होता है. हमको पता चलता है कि अगर हम ट्रेवल ना करते तो हम काफी कुछ मिस कर सकते थे.
एक बार की बात है इस किताब के ऑथर घूमने के लिए एम्सटर्डम गये हुए थे. ये जगह उनके लिए बिल्कुल नई थी. उस जगह के बारे में वो कुछ भी नहीं जानते. वो जगह उनके लिए विदेश ही थी. एयरपोर्ट के अंजान व्यू ने ही ऑथर को काफी ज्यादा प्रभावित कर दिया था. इसी के साथ एम्सटर्डम में जहाँ के बारे में ऑथर को कुछ नहीं पता था. लेकिन फिर भी उन्हें उस अंजान जगह में घूमकर एक अलग ही ख़ुशी मिल रही थी. अंजान लोगों को देखकर भी उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था. ये बताकर ऑथर ये बताना चाहते हैं कि हमें अनफमिलियर कल्चर को एक्सप्लोर करते रहना चाहिए. इससे हमें हमारे घर के नशे से भी मुक्ति का एहसास होता है.
एक्सोटिजम के बारे में बात करते हुए ऑथर बताते हैं कि ये शब्द काफी समय से प्रचलित है. लेकिन 19वीं सदी में ‘एक्सोटिक’ शब्द का उपयोग मिडिल ईस्ट में पड़ने वाले देशों के लिए किया जाता था. एक्सोटिजम ट्रेवलर से ये वादा करता है कि वो उन्हें बोरियत से दूर लेकर जाएगा. एक्सोटिज्म को आप विदेश यात्रा के रूप में भी देख सकते हैं.
ऑथर आज के दौर की बात करते हुए भी कहना चाहते हैं कि विदेश यात्रा से इंसान बहुत कुछ नया सीख सकता है. विदेश यात्रा आपको एक ऐसी जगह से रूबरू करवाती है. जहाँ इससे पहले आप कभी नहीं गये हैं. आप उस जगह के बारे में और वहां के कल्चर के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं. जो कुछ भी आप जानते होंगे वो किताबों या फिर इंटरनेट के माध्यम से ही जानते होंगे.
जब आप खुद उस जगह का अनुभव करने के लिए जायेंगे तो फिर आपको अपनी जिंदगी का एक अलग ही रूप देखने को मिलेगा. ऑथर इस बात को दावे के साथ कहते हैं कि आप उस अनुभव को कभी भी भूलना नहीं चाहेंगे. इसी के साथ आपको लाइफ की कुछ ऐसी क्वालिटी के बारे में भी पता चलेगा. जिसके बारे में आप पहले नहीं जानते थे.
तो फिर यहाँ पर ऑथर आपसे सवाल करते हैं कि देर किस बात की है? अगर आप भी अपने घर के नशे में डूब चुके हैं? अगर आपको भी अपनी जिंदगी में कुछ बदलाव की ज़रूरत है. तो फिर बैग को बैक करिए और एक सफर में निकल जाइये.
मॉडर्न ट्रेवलर को सवाल पूछने की कला से खुद को रूबरू करवाना चाहिए
भले ही आपको ट्रेवलिंग का शौक हो या फिर नहीं हो, लेकिन आपको सवाल पूछने की आदत तो होनी ही चाहिए. क्वालिटी ऑफ़ क्वेश्चन से कई चीज़ों का पता चलता है. अगर किसी भी आदमी को अपने अंदर इम्प्रूवमेंट लेकर आना है तो फिर उसके अंदर सवाल पूछने की कला तो होनी ही चाहिए. जैसे-जैसे आप सवाल पूछना सीखते हैं आप चीज़ों को ओब्सर्व करना भी सीख रहे होते हैं. सवाल पूछने से आप रिसर्च करने की काबिलियत को भी सीखते हैं. इसलिए देश की बात हो या फिर घूमने की सवाल करते रहिये.
यहाँ पर ऑथर अपने मैड्रिड घूमने की कहानी को बताते हैं. उस ट्रिप के शुरूआती दिनों की बात है. ऑथर एक दिन नींद में पड़े हुए थे. उन्हें ना ही अच्छे से नींद आ रही थी और ना ही उनके अंदर एनर्जी थी. उस समय ऑथर को लग रहा था. जैसे कि उनके अंदर बहुत सारी आलस भरी हुई है. इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि ऐसे ही बिना आईडिया के भी इस शहर को घूमने के लिए निकल जाते हैं.
फिर वो उस अंजान शहर को देखने के लिए निकल पड़ते हैं. ऑथर यहाँ बताते हैं कि जो थकान उन्हें बिस्तर की ओर खींच रही थी. वही थकान उन्हें आज के ट्रेवलर्स के अंदर भी देखने को मिलती है.
लेकिन ये थकान उन्हें पहले के ट्रेवलर्स के अंदर देखने को नहीं मिलती थी. इसके पीछे का रीजन ये था कि पहले के ट्रेवलर्स एक्सप्लोर किया करते थे.
इसके लिए ऑथर ने अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ड्ट का एग्जाम्पल दिया है. जिन्होंने 1799 में साउथ अमेरिका की यात्रा की थी.
ऑथर बताते हैं कि अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ड्ट की ट्रिप का क्लियर विजन था. उनकी ट्रिप का विजन था कि उन्हें फैक्ट्स जमा करना है. इसके लिए उन्हें काफी जगहों को एक्सप्लोर करना था. वो अपनी ट्रिप के साथ काफी कुछ नया सीखना चाहते थे. उसी सीख के साथ उन्होंने आगे की जनरेशन के लिए उदाहरण भी पेश किया है.
इसी के साथ ही साथ ऑथर बताते हैं कि जब अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ड्ट फैक्ट्स इकठ्ठा नहीं करते थे. तब वो अपने समय को एक्सपेरिमेंट में लगाते थे. उस एक्सपेरिमेंट की मदद से वो ये देखते थे कि आगे की ट्रिप में वो फैक्ट्स का कलेक्शन कैसे करने वाले हैं? यही वो चीज़ है जो आज के ट्रेवलर्स को अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ड्ट से सीखनी चाहिए.
अपनी यात्रा के दौरान अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ड्ट के पास बहुत कम समय का खाली समय बचता था. वो अपनी यात्रा के समय लगातार समुद्र के वेरिएशन को नापते रहते थे. इसी के साथ उनकी नज़र टेम्प्रेचर में भी बनी रहती थी. इन सबका रिकॉर्ड भी वो लगातार नॉट डाउन करते रहते थे.
ऑथर संक्षेप में इस बात को बताते हुए कहते हैं कि अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ड्ट अपनी यात्रा के दौरान वो सब करते थे. जो कि आज के ट्रेवलर करने से चूक जाते हैं. यही रीजन है कि आज के ट्रेवलर के अंदर सफर को लेकर काफी बोरियत भी देखने को मिलती है. अगर इंसान अपने सफर के दौरान लगातार बिजी रहे और कुछ ना कुछ सीखने की कोशिश करता रहे तो ऐसा कभी हो नहीं सकता है कि वो अपने सफर से थक जाए या फिर बोर हो जाए.
ऑथर के अनुसार ट्रेवल तो इतनी खूबसूरत चीज़ है. जिससे इंसान सिर्फ और सिर्फ अच्छे और बुरे अनुभव को सीख सकता है. अगर आपको बुरा अनुभव भी होता है. तो भी उसको एक डायरी में नोट करने की कोशिश करिए. आपको अच्छे अनुभव का मजा लेना है. तो फिर आपको बुरे एक्सपीरियंस से काफी कुछ सीखना भी है. अगर आप ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं. तो फिर आप ज़रूर ट्रेवलिंग के टॉप पर पहुँच सकते हैं.
एक काफी ज्यादा मशहूर ब्रिटिश रोमांटिक कवि हुआ करते थे. जिनका नाम विलियम वर्ड्सवर्थ था. वो अपने आपको शहरी जीवन के क्रिटिक के रूप में पेश किया करते थे. उनके अनुसार शहर की बिल्डिंग्स, प्रदूषण, हवा, धुआं और कुछ भी नहीं हैं. ये बस जिंदगी के लिए एक जहर की तरह है. उनके अनुसार शहर की हवा से इंसान के अंदर का चैन और सुख मर जाता है.
आज के दौर में अधिकत्तर लोग ब्रिटिश कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की इस बात से एग्री करते हैं. इसी का रीजन ये है कि लोग नेचर के बीचों बीच अपने वेकेशन को प्लान करते हैं. शहर के लोग अपने वेकेशन में नेचर के पास जाना चाहते हैं.
नेचर में जाकर, पेड़ों के पास जाकर या तो हिमालय की गोद में जाकर लोग रिलैक्स करते हैं. उन्हें वो सुकून मिलता है. जो उन्हें शहरी जन जीवन में नहीं मिलता है.
विलियम वर्ड्सवर्थ के अनुसार नेचर से इंसानी शरीर के साथ ही साथ दिमाग भी सुकून में रहता है. इससे आदमी के अंदर जिंदगी को लेकर एक अलग नज़रिए का जन्म भी होता है.
इस बात को सच मानते हुए ऑथर अपने इंग्लैंड के दौरे को याद करते हैं. जब लेक डिस्ट्रिक्ट गये हुए थे. वहां बढ़िया बारिश हो रही थी. तब ऑथर ने रिलैक्स महसूस किया था. इसी के साथ उन्होंने वहां के जंगल की सैर भी की थी.
जैसे कि विलियम वर्ड्सवर्थ के अनुसार ह्यूमन नेचर से बहुत कुछ सीख सकता है. उनके अनुसार बारिश की बूंदे भी इंसान से बातें करती हैं. पेड़ की पत्तियां जब हवा से हिलती हैं तो वो भी अपनी दास्ताँ सुनाती हैं. इसी बात को इस किताब के ऑथर ने भी ओब्सर्व किया था. उन्होंने नेचर से बहुत कुछ सीखने की कोशिश की थी.
ब्रिटिश रोमांटिक कवि ने बताया है कि नेचर से सीखी हुई खूबियाँ लाइफ में आपको काफी लम्बे समय तक मदद करती हैं. इसलिए इस किताब के ज़रिये ऑथर आज के दौर के ट्रेवलर्स को भी सलाह देते हैं कि जब कभी भी आपको नेचर के पास जाने का मौका मिले तो उससे बात करने की कोशिश करियेगा. कोशिश करियेगा कि आप नेचर में छुपे हुए ज्ञान को समझ पायें.
नेचर से आप गिविंग एटीटयूड भी सीख सकते हैं. इसी के साथ ही साथ नेचर से आप सीख सकते हैं कि मुश्किल के दौर में भी आपको हंसते हुए कैसे रहना है.
अगर आज के समय में आप नेचर के करीब जाते हैं तो फिर एक बार अपनी आँखों को बंद करियेगा और खोलने के बाद उस नज़ारे को खुद के अंदर महसूस करने की कोशिश करियेगा. इसके बाद आपको खुद ही महसूस होगा कि आपका मन कितना शांत हो चुका है.
नेचर की सुन्दरता से स्पिरिचुअल फीलिंग का भी जन्म होता है
क्या आपने कभी सोचा है कि नेचर की सुन्दरता का जन्म कहाँ से हुआ है? ऑथर आपको बताना चाहते हैं कि प्रक्रति का जन्म किसी ग्रेट फ़ोर्स से हुआ है. यही कारण है कि जब हम नेचर के पास होते हैं तो हमारे अंदर भी अध्यात्मिक फीलिंग का जन्म होता है.
इस बात को याद करते हुए ऑथर अपने इजिप्ट के दौरे को याद करते हैं. उन्हें वो समय याद आता है जब वो घूमने के लिए इजिप्ट गये हुए थे.
वहां वो साउथर्न सिनाई के माउंटेन्स को एक्सप्लोर कर रहे थे. पहाड़ों की घनी वैली को उन्होंने ओब्सर्व किया था. जिन वैलीज का उन्होंने ओब्सर्व किया था वो वैली 400 मिलियन साल से पुरानी थी.
ऑथर यहाँ बाइबिल के राइटर को याद करते हुए कहते हैं कि उनका भी प्रक्रति को लेकर यही अनुभव था. पवित्र किताब बाइबिल में भी लिखा गया है कि इस प्रक्रति का जन्म सुप्रीम एनर्जी के द्वारा हुआ है. यही कारण है कि जब कभी भी नेचर के नज़दीक होंगे आपको इश्वर के होने का एहसास भी होता रहेगा.
इसलिए अगर आपको घूमने का शौक है. या फिर आपको नेचर के पास जाने का मौका मिलता है तो ज़रूर जाइएगा. वहां जाकर आप अपने अध्यात्म के और पास खुद को पायेंगे. आपको एहसास होगा कि इश्वर ने इस दुनिया का निर्माण किया है.
ये कहा भी जाता है कि इंसान से अच्छा तस्वीरें बयां करती हैं. इसलिए आपने देखा भी होगा कि कलाकार कितनी शिद्दत से कोई भी तस्वीर बनाता है. तस्वीर की एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी भी होती है. उसको बिना बिना बोले अपनी पूरी कहानी बयां करनी होती है.
ऑथर यहाँ विन्सेंट वैन गॉग को याद करते हुए कहते हैं कि अगर उन्होंने पेंट ब्रश नहीं उठाया होता. तो वो भी वहां वो देखने कभी नहीं जा पाते. ऑथर यहाँ बताते हैं कि आर्ट और कला से बस आपके अपने देश का ही नहीं बल्कि दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचा जा सकता है. ग्रेट आर्ट से नए नज़रिए का जन्म भी होता है. इसलिए आप अपने ट्रेवल के दौरान आर्ट और कला को देखने के लिए नज़रिए को पैदा करिए.
यहाँ पर ऑथर जेम्स को याद करते हैं. जेम्स ब्रिटिश पोएट थे. उन्होंने ब्रिटिश की सुन्दरता के ऊपर एक पोएम लिखी थी. उस कविता का नाम उन्होंने ‘द सीजन’ दिया था. वो कविता इतनी ज्यादा प्रचलित हुई थी कि उसी तरह की पोएम और भी पोएटस् ने लिखने की शुरुआत कर दी थी.
इसके बाद इसी कविता के ऊपर ब्रिटिश पेंटर थॉमस ने पेंटिंग भी बनाई थी. उस पेंटिंग को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आया करते थे. इससे आपको समझना चाहिए कि कला की महत्त्व कितनी ज्यादा है?
उस कविता और पेंटिंग की वजह से ब्रिटिश कंट्री साइड की खूबसूरती को देखने के लिए दुनियाभर से लोग आने लगे थे.
इसलिए ऑथर ने ट्रेवलर्स को सलाह दी है कि जब कभी भी आप सफर में निकले तो वहां की कला और आर्ट्स को ओब्सर्व करना ना भूलें.
सफर के दौरान लेखन और ड्राइंग आपके फोकस में आपकी मदद करेंगे
क्या आपने कभी टूरिस्ट की हैबिट्स को ओब्सर्व किया है? उनकी हैबिट होती है कि वो इमारतों को अपने आँखों से कम देखते हैं. उन्हें देखने के लिए वो कैमरे का उपयोग करते हैं. कैमरे के लेंस से वो कुछ तस्वीरों को क्लिक करते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं.
लेकिन यहाँ पर ऑथर आज कल के ट्रेवलर्स के ऊपर सवाल खड़ा करते हुए पूछते हैं कि अगर आप चीज़ों को देखकर ओब्सर्व नहीं करेंगे तो फिर आपके घूमने का क्या ही फायदा हुआ? इसके लिए ऑथर सलाह भी देते हैं. वो कहते हैं कि जब कभी आप ट्रेवल करें तो वहां की चीज़ों को ओब्सर्व करिए. उन्हें अपने दिल और दिमाग पर जगह दीजिये. उसके बाद जो भी चीज़े आपको अच्छी लगें कोशिश करिए कि उन्हें आप ड्राइंग के माध्यम से कागज़ में उतार सकें.
अगर आप ये एक्सरसाइज करते हैं. तो फिर आप ओब्सर्व करेंगे कि ट्रेवलिंग का आनंद भी दोगुना हो गया है.
कई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि जब भी हम कोई भी चीज़ का स्केच बनाते हैं. तो उस चीज़ को हमारा दिमाग ज्यादा बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करता है. ये बात भी सामने आई है कि स्केचिंग से हमारी ओब्सर्व करने की क्षमता भी बढ़ती है.
जॉन रस्किन राइटिंग के बारे में बताते हैं कि ये वर्ड ऑफ़ पेंटिंग है. रस्किन के हिसाब से अगर पेंटिंग को शब्दों में बयाँ करना है तो आपको लिखने की कला आनी चाहिए.
जॉन रस्किन के अनुसार लिखने का इफेक्ट भी पेंटिंग की तरह ही होता है. इससे भी हम अपने आस-पास की चीज़ों को बेहतर ढ़ंग से समझने लगते हैं.
इसलिए ऑथर ने नये ट्रेवलर्स को सलाह दी है. ऑथर के अनुसार आप जब भी कहीं घूमने जाएँ तो लिखने की कोशिश भी ज़रूर करें.
जॉन रस्किन का मानना है कि अगर आप ट्रेवलिंग के साथ-साथ लिखते भी हैं तो फिर आपकी ट्रेवलिंग भी यादगार बनेगी. साथ ही साथ समाज और सफर के बारे में आपको बहुत कुछ सीखने को भी मिलने वाला है. इसलिए स्केचिंग और लिखने की कला को सीखने की कोशिश में लग जाइए.
तो अब आपको पता चल गया होगा कि हम लोग घूमने से कितना कुछ नया सीख सकते हैं. फर्क तो बस इस बात से पड़ता है कि हम सफर के दौरान अपने पास कौन सा नज़रिया रखने की कोशिश करते हैं.
कुल मिलाकर
ट्रेवलिंग से आपको जिंदगी का असली सुख मिल सकता है. सुकून से साथ ही साथ हम ट्रेवलिंग से काफी कुछ नया भी सीख सकते हैं. नेचर हमे काफी कुछ सिखाता है. हवाई सफर से हमारे नज़रिए में भी बदलाव आता है. इसलिए अब समय आ गया है कि आप ट्रेवलिंग को एक अलग नज़रिए से देखने की कोशिश करिए.
अगर आपको ट्रेवलिंग की शुरुआत करनी है और आपके मन में सवाल है कि कहाँ से शुरू करें? तो फिर इसका जवाब लेखक देते हैं कि आप शुरू तो अपने बेड रूम से भी कर सकते हैं. एक चक्कर अपने बेड रूम का लगाइए. लेकिन अपनी अप्रोच को ट्रेवलिंग वाला रखियेगा. इसके बाद खुद फैसला करिए कि आपको दुनिया देखनी चाहिए या फिर नहीं.
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