Rich Karlgaard
Late Bloomers
दो लफ्ज़ों में
साल 2019 में रिलीज हुई किताब Late Bloomers मॉडर्न सोसाइटी के ऊपर कटाक्ष कसती है. वो बताती है कि क्यों मॉडर्न सोसाइटी जल्दी सक्सेसफुल होने वाले लोगों को ज्यादा सम्मान देती है? इसी के साथ-साथ किताब ये भी बताती है कि जल्दी-जल्दी सफल होने की दौड़ की वजह से ही लोगों की मेंटल हेल्थ खराब होती जा रही है.
ये किताब किसके लिए हैं?
- ऐसा कोई भी जिसे ऐसा लगता हो कि उसका कैरियर आगे ही नहीं बढ़ रहा है
- किसी भी फील्ड के स्टूडेंट्स
- ऐसे लोग जिन्हें कुछ नया सीखने और जानने में मज़ा आता हो
- पैरेंट्स के लिए
- ऐसे लोग जिन्हें कैरियर काउंसलिंग की ज़रूरत हो
लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन Rich Karlgaard ने किया है. वो पेशे से American journalist और अवॉर्ड विनिंग आन्त्रप्रेन्योर हैं. इस किताब के साथ इन्होने तीन किताबों का लेखन और भी किया है.
इस किताब में मेरे लिए क्या है?
हम ऐसी सोसाइटी में रह रहे हैं, जहाँ जल्दी से जल्दी सफल होने वाले को काफी सम्मान दिया जाता है. हमारे चारों तरफ ऐसा माहौल तैयार हैं, जहाँ बता दिया गया है कि किसी को भी 25 साल तक पूरी तरह से सेटल हो जाना चाहिए. जो लोग इस खींची हुई लाइन में फिट हो जाते हैं, उन्हें सोसाइटी सफल इंसान समझने लगती है. लेकिन कई ऐसे लोग भी होते हैं, जो सोसाइटी के बनाए सांचे में फिट नहीं हो पाते हैं. तो अब सवाल ये उठता है कि क्या ऐसे लोग सफल नहीं हो सकते हैं?
इसका सीधा सा जवाब यही है कि ये जिंदगी आपकी है, आपके अलावा कोई तय नहीं कर सकता है कि इसे किस स्पीड से आगे ले जाना है. इसलिए सबसे पहले खुद को एक्सेप्ट करिए कि आप जैसे हैं, वैसे अच्छे हैं.
इस किताब के चैप्टर्स में आपको पता चलेगा कि कुछ लोग जीवन में देर से क्यों चमकते हैं? देर से सफल होना भी अच्छा क्यों है? इसी के साथ आपको ऐसी खूबियों के बारे में भी पता चलेगा, जिनके ऊपर आप काम करते हुए अपने जीवन को सफलता तक लेकर जा सकते हैं. इन चैप्टर्स में आपको सीखने को मिलेगा
1. हमेशा जल्दी सफलता पाना भी अच्छा नहीं होता है.
2. मेंटल हेल्थ के बारे में सही जानकारी.
3. सफलता का असली मतलब क्या होता है? Millennial’s के लिए जल्दी से सफल होना ही सबकुछ है
इस किताब में जल्दी-जल्दी सब कुछ हासिल करने वालों को ‘अर्ली ब्लूमर’ कहा गया है. आज के समय में अर्ली ब्लूमर बनना ट्रेंड सा क्यों बनता जा रहा है? इस कांसेप्ट को समझने के लिए हमें एक कहानी से होकर गुज़रना होगा. ये कहानी एक अर्ली ब्लूमर की है, जिसने जिंदगी में सामान्य लोगों से जल्दी सबकुछ अचीव कर लिया था. Pop-neuroscience लेखक Jonah Lehrer का जन्म और परवरिश Los Angeles में हुई थी. वो बचपन से ही पढ़ने में अच्छे हुआ करते थे, यही वजह थी कि 15 साल की ही उम्र में उन्होंने कई हज़ार डॉलर क्विज में जीत लिए, और यहीं से उनके सफलता का सफर भी शुरू हो गया. Lehrer, केवल साइंस में ही अच्छे नहीं थे, वो एक बेहतर लेखक भी थे. यही वजह थी कि 31 साल के होते-होते उन्होंने 3 किताबों का लेखन कर दिया था. उनकी किताबें New York Times best-seller की लिस्ट में शुमार भी थीं. ये सुनकर ही किसी सपने जैसा लगता है, लेकिन ये सब Lehrer के जीवन की सच्चाई थी. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही बहुत कुछ हासिल कर लिया था.
लेखन के साथ ही धीरे-धीरे उन्होंने स्पीकर के तौर पर भी काम करना शुरू कर दिया, उन्होंने कई रेडियो और टीवी शो होस्ट किए, इसके बार वो फ्रीलॉन्स स्पीकर के तौर पर भी काम करने लगे, इसके लिए उन्हें मोटी रकम भी मिला करती थी. इतनी सी उम्र में उन्होंने इतना ज्यादा पैसा कमा लिया कि हॉलीवुड हिल्स में उनका खुद का खरीदा बंगला भी था. Lehrer, का सफर एक स्टूडेंट से शुरू हुआ था, जो कि काफी कम समय में ही मीडिया के गलियारों में नज़र आने लगा था. इसी को अर्ली बलूमर्स कहा जाता है. आज के समय में इसी तरह की पर्सनालिटी को wunderkind भी कहने लगे हैं. जिसका मतलब करिश्माई बच्चा या फिर “wonder child.” भी होता है.
आज के दौर के मिलेनियल बच्चे यही wunderkind टाइप की पर्सनालिटी बनना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि उन्हें जीवन में सबकुछ बड़ी आसानी से और बहुत जल्दी मिल जाए. ऐसी चाहत रखना बुरी बात नहीं है. लेकिन अगर किसी ने ये सब 30 की उम्र तक अचीव नहीं किया, तो उसे नीचा दिखाना या फिर उसके माथे पर फेलियर का टैग लगा देना भी सही नहीं है. हमें समझना चाहिए कि हर किसी का सफर अलग-अलग है, हर किसी की सफलता भी अलग-अलग ही होगी. अगर कोई 30 साल तक बहुत कुछ हासिल नहीं कर पाया है. तो कोई बात नहीं, अभी उसका समय आना बाकी है. सोसाइटी को ये भी समझना चाहिए कि सफलता का मापदंड, हर किसी के लिए अलग-अलग हैं. ज़रूरी नहीं है कि आप जिसे सफलता समझते हैं, वही सफलता किसी और के लिए भी ख़ास हो. इसलिए हम सभी को अपने चश्में से केवल अपनी जिंदगी ही देखनी चाहिए. दूसरे को जज करने का काम दूसरे का है.
जल्दी से जल्दी सफलता का प्रेशर मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डाल रहा है।
बीसवीं शताब्दी के मध्यकाल से यूनाइटेड स्टेट्स में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा था. वहां की सोसाइटी aristocracy से meritocracy की तरफ बढ़ रही थी. इसका मतलब अब वहां पर मेरिट्स का जमाना आ चुका था.
ये एक ऐसा समय था जब पैसे और रुतबे के दम पर कोई सफल नहीं हो सकता था. अब किसी को सफल बस उसकी काबिलियत के आधार पर ही माना जाता था. ऐसा दौर आते ही लोग टेस्ट स्कोर्स और कॉलेज रैंकिंग की तरफ जुनूनी हो चुके थे. आज के समय में ऐसा दौर आ चुका है कि हर बच्चें के पैरेंट्स इस रेस में व्यस्त हैं. कि उनके बच्चे को कौन सा कॉलेज मिलता है? इसके लिए पैरेंट्स कोई भी रकम खर्च करने को तैयार हैं. हर साल अमेरीकी पैरेंटस बच्चों के अच्छे कॉलेज में दाखिले के लिए कई हज़ार डॉलर्स खर्च कर देते हैं.
ऐसा देखा गया है कि लोग दाखिले की तैयारी के लिए ही लाखों डॉलर्स खर्च कर रहे हैं. स्टूडेंट्स भी स्ट्रेस के रूप में बड़ी कीमत चुका रहे हैं. कोचिंग इंडस्ट्री एक साल में 1 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा कमा रही है. न्यू यॉर्क में एक ट्यूटर हैं Anthony-James Green, वो तो हर घंटे 1000 डॉलर से भी ज्यादा चार्ज करते हैं. ये प्राइस बताती है कि किस कदर लोग अच्छे कॉलेज में दाखिले के लिए दीवाने हुए जा रहे हैं.
रिसर्च बताती है कि इससे एक प्रेशर कूकर वाले माहौल का निर्माण हो गया है. जिससे यूएस में बड़ी तादाद में स्टूडेंट्स डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. इस तरह के माहौल से लोगों की मेंटल हेल्थ खराब हो रही है. World Health Organization के साल 2014 के सर्वे में ये बात निकलकर सामने आई थी कि यूएस में ज्यादातर नौजवानों की बीमारी का कारण मानसिक स्वास्थ ही है. इसका प्रभाव और भी ज्यादा खराब होता जा रहा है. अब नौजवान बच्चे इसी प्रेशर की वजह से आत्महत्या की तरफ भी बढ़ते जा रहे हैं.
उदाहरण के लिए आपको बता दें कि कैलिफोर्निया में स्थित Gunn High School के साल 2014-15 के बीच तीन स्टूडेंट्स ने आत्म हत्या की थी. इसी दौरान 42 स्टूडेंट्स को हॉस्पिटल में भी एडमिट करवाना पड़ा था. उन्होंने भी आत्महत्या की कोशिश की थी.
Jean M. Twenge, जिन्होंने 140 साइंटिफिक पेपर्स को पब्लिश्ड किया है, उन्होंने बताया कि बहुत ज्यादा गोल्स के बारे में सोचने की वजह से भी यंग लोगों की मेंटल हेल्थ खराब हो रही है. इसी के साथ इन्होने कहा है कि अब बच्चे Intrinsic Goals की बजाए Extrinsic Goals की तरफ ज्यादा फोकस कर रहे हैं. जिसकी वजह से उनके दिमाग में बिना मतलब का प्रेशर बढ़ रहा है.
Intrinsic Goals क्या होता है?
खुद की स्किल्स डेवलपमेंट पर ध्यान देने को ही Intrinsic Goals कहते हैं. लेकिन आज कल बच्चों का ध्यान Extrinsic Goals की तरफ ज्यादा है. जिसका मतलब होता है स्टेट्स का शो ऑफ करना, दिन भर पैसों के बारे में सोचना और टेस्ट स्कोर के लिए पागल हो जाना.
किसी भी चीज़ के लिए पागलपन वाली सनक बुरी होती है. इसलिए कम उम्र से ही मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की ज़रूरत है. ये ज़िम्मेदारी बच्चों के साथ-साथ उनके पैरेंट्स की भी है.
हर जवान इंसान की प्रोग्रेस रेट अलग-अलग होती है
इस किताब के लेखक बताते हैं कि 25 साल की उम्र तक उनकी ज़िन्दगी लड़खड़ाते हुए चल रही थी. कैरियर के हिसाब से भी उन्होंने कुछ ख़ास अचीव नहीं किया था. उन्होंने एक साधारण से कॉलेज से एवरेज से ग्रेड्स हासिल किए थे. इसलिए उन्होंने सेक्युरिटी गार्ड की नौकरी ज्वाइन कर ली, उस समय उन्हें यही फैसला सही लगा था.
एक रात की बात है, ऑथर अपनी जॉब में थे, वो यार्ड की पैट्रोलिंग कर रहे थे. तभी उन्होंने देखा कि पास वाले यार्ड की पैट्रोलिंग एक कुत्ता कर रहा है. वो भी काफी अच्छे ढ़ंग से कर रहा है. तब उन्हें एहसास हुआ कि ये काम तो कुत्ता भी कर सकता है. उनके अंदर विद्रोह की एक टीस उठी, उन्हें एहसास हुआ कि वो अपनी लाइफ में कुछ बेहतर भी कर सकते हैं. जहाँ 25 साल की उम्र में स्टीव जॉब्स ने कम्प्यूटर की दुनिया में क्रान्ति ला दी थी. वहीं 25 की उम्र में इस किताब के लेखक अपने सही कैरियर की तलाश ही कर रहे थे. 25 साल का पड़ाव पूरा करने के बाद ऑथर को एहसास हुआ था कि अभी तो उनका दिमाग पूरी तरह से जागृत हुआ है. अब उनका मन टीवी शोज देखने में नहीं लगता था, वो इसके बजाय पब्लिकेशन के आर्टिकल्स पढ़ा करते थे.
आखिर अचानक से उनके दिमाग के मैच्योर होने का कारण क्या था?
इस बारे में हुईं रिसर्च बताती है कि कई लोगों का दिमाग देर से विकसित होता है. उनके अंदर 25 साल के बाद समझदारी आती है. अगर कोई इंसान 25 साल का होने के बाद भी बच्चों जैसी हरकते करता है. तो भी वो एक दम नार्मल ही है.
जवानी की दहलीज़ पर कदम रखना जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
आज के समय में लोग सेटल होने में ज्यादा समय लेने लगे हैं. पहले के समय में ऐसा नहीं हुआ करता था. ये कहना गलत नहीं होगा कि पिछले 30 सालों में दुनिया काफी बदल गई है. आज के नौजवानों की कैरियर और शादी को लेकर मानसिकता भी काफी बदल गई है. आज के नौजवान पढ़ाई खत्म करने और कैरियर शुरू करने में ज्यादा समय ले रहे हैं.
यूनाइटेड स्टेट्स में एक नेशनल स्टडी कंडक्ट हुई, इस स्टडी में ये निकलकर सामने आया कि आज की पीढ़ी 25 सालों तक अपने माता-पिता के ऊपर ही फाइनेंसियल तौर पर डिपेंड रहती है. इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज के दौर में “adulthood” पहले की अपेक्षा में देरी से आ रहा है. लेकिन ये बुरी बात नहीं है.
Jeffrey Arnett, क्लार्क यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर हैं, उनका मानना है कि सोसाइटी में पिछले 30 सालों में काफी ज्यादा सोशल और इकॉनोमिक बदलाव हुए हैं. जिसकी वजह से नई लाइफ स्टाइल का जन्म हुआ है. यही कारण है कि अब बच्चों को बड़े या समझदार होने में ज्यादा समय लग रहा है.
इसी सामाजिक बदलाव के कारण अब बच्चे पढ़ाई लिखाई को ज्यादा महत्त्व देने लगे हैं. इन्हीं सब कारणों की वजह से आज की जनरेशन स्वतंत्र रहना पसंद करती है. उन्हें शादी करने की भी कोई जल्दी नहीं है.
इसी के साथ Jeffrey Arnett, का मानना है कि जिंदगी में लेट ब्लूमर होना कोई बुरी बात नहीं है. 20 से 30 साल की उम्र बहुत महत्वपूर्ण होती है, यही उम्र होती है. जब हमें घूमने से लेकर रिलेशनशिप तक के अनुभव लेने चाहिए. इन सब अनुभवों से इंसान की असली पर्सनालिटी निखरकर आती है. देर से “adulthood” में प्रवेश करने के कई फायदे भी हैं.
जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, वैसे-वैसे ही हम नई स्किल्स भी सीखते जाते हैं
कई लोगों की जिंदगी में ऐसे अनुभव होते हैं कि उन्हें समय के साथ चीज़ें भूलने लगतीं हैं. उनसे छोटी-छोटी गलतियाँ भी होने लगती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि उनका स्वर्णिम दौर यानि पीक टाइम बीत चुका है. लेकिन इस बारे में साइंस का कुछ और ही कहना है, हमें पता होना चाहिए कि हम जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं. वैसे-वैसे ही हम ज्यादा क्रिएटिव और स्मार्ट भी होते जाते हैं. साइंटिस्ट Laura Germine और Joshua Hartshorne ने साल 2015 में 50 हज़ार लोगों के ऊपर कई एक्सपेरिमेंट्स किए थे. उन एक्सपेरिमेंट्स में उन्हें पता चला कि इंसानी दिमाग में अलग-अलग समय, अलग-अलग स्किल्स अपन पीक में होती हैं. मतलब समय-समय के हिसाब से इंसानी दिमाग की शक्तियाँ बदलती रहती हैं.
इसलिए अगर आपकी उम्र बढ़ रही है, तो आपको इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि अब आपका दिमाग कमजोर हो जाएगा. उम्र बढ़ने से इंसानी दिमाग पर असर पड़ता है. लेकिन वो कमजोर नहीं होता है. अगर दिमाग की कुछ स्किल्स कमजोर होंगी तो कुछ स्किल्स में दिमाग पहले से बेहतर भी होगा. यही बात लेट बलूमर्स को भी याद रखनी चाहिए, उन्हें पता होना चाहिए कि उनका दिमाग उनका साथ कभी नहीं छोड़ेगा. जीवन में सफल होने के लिए उनके पास पर्याप्त समय और शक्ति है. इसलिए इस अध्याय के माध्यम से लेखक कहते हैं कि “जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे ही हमारा दिमाग ज्यादा मज़बूत होता जाता है. हमें पता होना चाहिए कि एडल्ट माइंड के पास बहुत ताकत होती है. वो बात अलग है कि हम अपने दिमाग को क्रेडिट देना ही बंद कर देते हैं.”
लेट बलूमर्स के लिए ये अच्छी खबर है कि मिडिल एज्ड माइंड के पास सबसे ज्यादा शक्ति होती है. इसलिए अगर आप मिडिल एज्ड हैं, और अभी तक सफलता का स्वाद नहीं चखें हैं. तो घबराएं नहीं, अभी आपके पास बहुत समय और ताकत है. अपने लक्ष्य की तरफ मेहनत करते रहें.
ज़िन्दगी को पूरे दिल से जीने की कोशिश करें, उसके लिए नए कैरियर का चुनाव भी करना पड़े तो पीछे ना हटें .
कॉलेज के दिनों में आपने अपने कैरियर के बारे में क्या सोचा था? हो सकता है कि आपके सपनों का कैरियर दुनिया घूमना हो, नए-नए लोगों से रोज़ मिलना हो. या फिर ऐसी कंपनी की स्थापना करना हो, जिससे लाखों लोगों की ज़िंदगी बदल जाए. लेकिन दुःख की बात ये है कि अधिकत्तर लोग इस रास्ते से भटक जाते हैं. बहुत सारे लोग तो कभी भी अपने सपनों को जी ही नहीं पाते हैं. इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण ये होता है कि उन्होंने ऐसे रास्ते पर चलने की शुरुआत कर दी होती है. जिसे वो कभी छोड़ ही नहीं पाते हैं.
बहुत कम उम्र से ही हमें बताया जाता है कि कम उम्र में ही नौकरी कर लेनी चाहिए, फिर उसे कभी छोड़ना नहीं चाहिए. हमें बहुत ज्यादा एक्सपेरिमेंट्स नहीं करने चाहिए. हमें ये भी बताया जाता है कि ‘एक्सपेरिमेंट करना समय की बर्बादी है.’
शुरू से ही बता दिया जाता है कि 40 साल नौकरी करो और फिर आराम से 60 की उम्र में रिटायरमेंट ले लो. यही जीवन है. लेखक कहते हैं कि अब समय आ गया है कि हमें इस सोच से ऊपर उठना चाहिए. ऊपर बताई गई सोच उस दौर के लिए सही होगी, लेकिन ज़रूरी नहीं है कि वो सोच आपके लिए भी सही है. इसलिए अपनी ज़िंदगी की प्लानिंग आपको खुद से करनी चाहिए. आप एक आर्टिस्ट की तरह हैं और आपसे बेहतर आपकी ज़िंदगी का आर्ट कोई नहीं बना सकता है.
इसलिए आज से ही अपनी लाइफ को मास्टरपीस बनाने की कोशिश शुरू करिए, इसका सफर बिल्कुल भी आसान नहीं होने वाला है. लेकिन आसान होता तो ये काम आपको नहीं दिया जाता. इसी के साथ-साथ हम सभी की ये ज़िम्मेदारी है कि हम किसी के भी कैरियर को जज ना करें. हर किसी की अपनी एक अलग जर्नी है. कोई 20 साल की उम्र में नौकरी कर लेता है. वो भी नॉर्मल है. और कोई 30 साल की उम्र में भी पढ़ रहा होता है. वो भी नॉर्मल है. हमें अपनी-अपनी लाइफ की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए. अगर हम सभी लोग ऐसा करने लगेंगे तो ये सोसाइटी बेहतर बनती जाएगी.
हमें खुद की सफलता के रास्ते का निर्माण करना ही होगा
Erik Wahl, जिन्हें लोग ग्रेट पेंटर आर्टिस्ट के तौर पर जानते हैं. उनकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. बचपन से ही उन्हें बताया गया था कि कैरियर की शुरुआत करने में देर नहीं करनी चाहिए. अच्छे कॉलेज से पढ़ाई करो, फिर अच्छे ग्रेड्स लाओ और शानदार नौकरी की मदद खूब सारे पैसे कमाओ.
उन्होंने भी सोसाइटी की इसी सीख से अपने कैरियर की शुरुआत कर दी, शुरू में एंटरटेनमेंट फील्ड में नौकरी की, फिर धीरे-धीरे फिल्म में पार्टनर बन गए. लेकिन साल 2008 में आए इकॉनोमिक क्रैश ने सबकुछ बर्बाद कर दिया, उनकी फर्म डूब गई और उन्होंने जितना कुछ कमाया था. सब खत्म हो गया. उम्र के बीच के पड़ाव में वो फिर से बेरोजगार हो चुके थे. उन्हें पता चल चुका था कि उनकी सोसाइटी का बिलीफ सिस्टम उनके लिए काम नहीं कर रहा है. उन्होंने अपने लिए नए रास्ते का निर्माण किया, वो पेंटिंग आर्टिस्ट के साथ घूमने लगे, उन्हें उनका केयर फ्री स्वभाव अच्छा लगता था. उन्होंने साथ में रहते-रहते ही पेंटिंग के गुण भी सीखे.
धीरे-धीरे उन्होंने पेंटिंग करने की शुरुआत की, शुरू में उन्होंने कुछ अच्छा नहीं बनाया, लेकीन जैसे-जैसे वो मेहनत करते गए, वैसे-वैसे ही उन्हें सफलता भी मिलने लगी. फिर एक ऐसा समय भी आ गया, जब वो बिजनेस मैन से ज्यादा कमाई करने लगे.
ये कहानी हमें भी खुद की लगती है क्योंकि हम सभी कहीं ना कहीं सोसाइटी से प्रेरित रहते हैं. ये सोसाइटी हमारे परिवार, दोस्त-यार के रूप में हमारी सेल्फ इमेज बनाती है. हम भी ये मानने लगते हैं कि हम यही करने के लिए पैदा हुए हैं. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि सोसाइटी के अलावा भी हम एक व्यक्तित्व हैं.
इसलिए अगर आपको भी लगता हो कि अभी तक आपने जीवन में सफलता नहीं देखी है. तो खुद से पूछियेगा कि आखिर आप कर क्या रहे हैं? क्या आपके फैसलों में दूसरों का योगदान ज्यादा रहता है?
इन सवालों से आपको पता चल जाएगा कि आपसे ग़लती कहाँ हो रही है?
उदाहरण के लिए अगर आपकी फैमिली आपको ऐसी नौकरी करने को बोल रही है. जो नौकरी आपके लिए सही नहीं है. तो फिर उनके साथ खुलकर बात करिए, उन्हें बताइए कि इस नौकरी से आप वो मुकाम हासिल नहीं कर पाएंगे, जो आप करना चाहते हैं. कई बार आपको खिलखिलाने के लिए थोड़ी सी बग़ावत भी करनी पड़ सकती है. इसलिए हमेशा उस थोड़ी सी बग़ावत के लिए तैयार रहें.
याद रहे आज़ादी का सफर कभी भी आसान नहीं होने वाला है. लेकिन अगर आपने एक बार इस रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया तो आपका भविष्य ज़रूर बेहतर हो जाएगा.
लेट बलूमर्स को खुद को री-इन्वेंट करना पड़ता है, तभी वो खुद के फुल पोटेंशियल तक पहुँच सकते हैं.
क्या आपको कभी लगता है कि आप काफी ओल्ड वर्जन हो चुके हो? लेकिन आप अपनी पर्सनालिटी को बदल नहीं पा रहे हो.
उदाहरण के लिए स्कूल में आपका कोई मज़ाकिया नाम रहा होगा, लेकिन 20 साल बीतने के बाद भी लोग आपको उसी नाम से बुला रहे हैं. भले ही अब आपके खुद के बच्चे स्कूल में जाने लगे हैं.
इस तरह की सिचुएशन वर्क प्लेस में भी होती है, ये बात भी सच है कि लेट बलूमर्स को इस तरह का सिचुएशन का कई बार सामना करना पड़ता है. भले ही आप कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन आपका बॉस बार-बार आपको याद दिलाता रहता है कि आपका ओहदा क्या है? अगर ऐसी सिचुएशन का सामना आपको करना पड़ता है. तो फिर अब आपको खुद को री-इन्वेंट करने की ज़रूरत है. आपको खुद को बदलने की ज़रूरत है. जब तक आप खुद की इज्ज़त नहीं करेंगे, कोई दूसरा आपकी इज्ज़त नहीं कर सकता है.
सबसे पहले तो जो लोग भी आपके साथ सही से पेश नहीं आते हैं. उनके साथ रहना बिल्कुल बंद कर दें, जॉब छोड़नी पड़े तो वो भी कर दें. खुले विचारों वाले लोगों के साथ रहने की शुरुआत करें. ऐसा करने से आपका दिमाग पहले से ज्यादा रिलैक्स रहेगा.
इसी के साथ लेखक कहते हैं कि “हम बचपन से ही SELFISH यानि स्वार्थी होने को बुरी आदत मानते आए हैं. लेकिन अब हमें अपनी इस सोच को बदलने की कोशिश करनी चाहिए. अगर हम PARENT’S हैं तो हमें अपने बच्चों को ये नहीं बोलना चाहिए कि उन्हें SELFISH नहीं होना है. अगर हम उन्हें ऐसा बोलते हैं तो इसका मतलब है कि हम उन्हें दूसरों के बारे में ही सोचने को बोल रहे हैं. लेकिन LIFE में बिना खुद के बारे में सोचे ख़ुशी नहीं मिल सकती है. आज से ही हमें अपने बच्चों को बताना है कि उन्हें SELFISH होने की ज़रूरत है. उन्हें अपने PASSION, GOAL’S, CAREER और प्यार के लिए SELFISH होना चाहिए.”
सेल्फिश होने के लिए भी दिलेरी की ज़रूरत होती है, इसलिए लेट बलूमर्स को खुद की पर्सनालिटी में दिलेरी को एड करना होगा. ऐसा करने से उन्हें जीवन में सफलता के नए-नए मुकाम हासिल होंगे.
कुल मिलाकर
जीवन में खुद के लक्ष्य का देरी से पता चलने में कोई बुराई नहीं है. लाइफ में कम पैसे कमाने में या देर से सफलता हासिल करने में भी कोई बुराई नहीं है. जीवन का उद्देश्य खुश रहना है, उसके लिए आपकी मेंटल हेल्थ अच्छी होनी चाहिए. इसलिए अपने डर का सामना करिए और खुद को खिलने का मौका दीजिए. सफलता कभी भी और किसी भी उम्र में हासिल की जा सकती है.
क्या करें?
किसी भी काम को छोड़ने में भी कोई बुराई नहीं है. किसी भी चीज़ में मज़ा ना आए और आपको लगे कि आप उस जगह के लिए नहीं बने हैं. तो तुरंत उस काम को छोड़ दें, लेकिन कभी भी खुद को दुःख पहुंचाते हुए, किसी काम में ना लगे रहें. खुश रहें और सफलता की जर्नी का मज़ा लें.
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