Life Is in the Transitions

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Life Is in the Transitions

Bruce Feiler
Mastering Change at Any Age

दो लफ्ज़ों में 
साल 2020 में रिलीज़ हुई किताब “Life is in the Transitions” ज़िन्दगी में आने वाले बदलावों से रूबरू करवाती है. इंसान अपनी पूरी ज़िन्दगी में कई बदलावों से होकर गुज़रता है. इन्ही बदलावों को कई बार वो एक्सेप्ट नहीं कर पाता है और दिमागी उलझन या बीमारी का शिकार हो जाता है. इस किताब में चर्चा की गई है कि हम ज़िन्दगी में आने वाले बदलावों के लिए कैसे तैयार रह सकते हैं? और कैसे लाइफ में मूव ऑन कर सकते हैं? इसी के साथ आपको ये भी पता चलेगा कि कैसे आप खुद की बेहतर कहानी लिख सकते हैं? इसलिए देर ना करिए और अपने अंदर के कलाकार को ज़िन्दा रखिए.

  ये किताब किसके लिए है? 
-ऐसा कोई भी जो मुश्किल दौर से गुज़र रहा हो 
-आंत्रप्रेंयोर्स के लिए 
-जिसको भी ज़िन्दगी के बारे में जानना हो 

लेखक के बारे में 
इस किताब का लेखन Bruce Feiler ने किया है. इन्होंने इस किताब के अलावा भी 6 न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्ट सेलिंग नॉवेल्स का लेखन किया है. 

मुश्किल दौर में स्टोरीटेलिंग किसी लाइफ लाइन से कम नहीं है!
ऑथर Bruce Feiler किताब की शुरुआत में ही कहते हैं कि “बदलाव आने वाले हैं, उनके लिए तैयार रहें.” इस बात का अंदाज़ा आप कोविड 19 महामारी से लगा सकते हैं. इस महामारी के समय सभी की लाइफ में बड़े बदलाव आए थे. पूरी दुनिया घरों में बंद हो गई थी. इससे पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि ऐसा भी हो सकता है? लेकिन कहते हैं ना कि इस दुनिया में कुछ भी हो सकता है. इसलिए हर सिचुएशन के लिए तैयार रहिए. 

अगर आप भी किसी बदलाव का सामना कर रहे हैं. तो इस किताब के चैप्टर्स आपके लिए किसी गाईड की तरह हैं. वो आपको बताएंगे कि लाइफ में बदलाव से होकर जीत कैसे हासिल की जा सकती है. 

इन सबके के साथ कुछ टूल्स के बारे में भी बताया गया है. जिनकी मदद से आप ज़िन्दगी से डर को हमेशा के लिए भगा सकते हैं. इस समरी में आप जानेंगे कि कैसे स्टोरीटेलिंग से आपकी ज़िन्दगी बेहतर हो सकती है? और लीनियर लाइफ कांसेप्ट क्या है? 

तो चलिए शुरू करते हैं!

आपकी ज़िन्दगी से जुड़ी ऐसी कौन सी कहानियां हैं जो आप बताना चाहते हैं? या फिर जब आपकी ज़िन्दगी टर्न लेगी तो आप कैसे रियेक्ट करेंगे? 

आप भले ही इन सवालों का सामना ना कर रहे हों. लेकिन ऑथर Bruce Feiler से ज़िन्दगी ने इन सवालों को कई बार पूछा है. जब-जब उनकी लाइफ में पर्सनल क्राइसिस आई है. तब-तब उन्होंने इन सवालों का सामना किया है. ऐसा ही उनके साथ तब हुआ था, जब उनकी रिपोर्ट में बोन कैंसर निकला था. उनके बैंक अकाउंट में पैसे भी नहीं थे. सिचुएशन और ज्यादा खराब तब हुई, जब उन्हें पता चला कि उनके पिता जो कि Parkinson नामक बीमारी से जूझ रहे हैं. वो बार-बार आत्महत्या की कोशिश कर रहे हैं. 

ऑथर ने लेखन की फील्ड में अच्छा कैरियर बनाया था. लेकिन अब उन्हें लगने लगा था कि उनके हांथों से उन्ही की कहानी छूटती जा रही है. ऐसा ही अनुभव, उनके पिता को भी हो रहा था. उन्हें लगने लग गया था कि अब उनकी ज़िन्दगी का कोई मतलब नहीं है. ऑथर को एहसास हुआ कि उनका और उनके पिता का जीवन पूरी तरह से बदल गया है. लेकिन अभी भी वो अपनी ज़िन्दगी की कहानी को समझ सकते हैं. 

इस छोटे से ख्याल की वजह से लेखक ने अपने पिता का इंटरव्यू लेने की शुरुआत की, उन्होंने उनसे कुछ छोटे-छोटे सवाल किए. जैसे कि “आपको बचपन में कौन से खिलौने पसंद थे?” 

जब उनके पिता ने इंटरेस्ट दिखाना शुरू कर दिया, तो उन्होंने अपने सवालों की इंटेंसिटी बढ़ा दी. इस पूरी प्रोसेस ने उनके पिता की ज़िन्दगी को ट्रांसफॉर्म कर दिया. 4 सालों के भीतर उन्होंने पिता की ऑटोबायोग्राफी पब्लिश करवाई. इस प्रोसेस ने ऑथर की लाइफ को भी ट्रांसफॉर्म किया, उनके अंदर ज़िन्दगी जीने की ललक का जन्म हुआ. उन्हें एहसास हुआ कि लोग बदलावों से डर जाते हैं और जीने की इच्छा छोड़ देते हैं. लेकिन अगर बदलावों को कहानियों में तब्दील किया जाए, तो बड़ी से बड़ी दिक्कत का सामना किया जा सकता है. 

इसके बाद ऑथर को जीने की वजह मिल गई, उन्होंने पूरे यूनाइटेड स्टेट्स में घूम-घूमकर लोगों से बात की, इस प्रोजेक्ट को उन्होंने लाइफ स्टोरी प्रोजेक्ट नाम दिया. इस पूरे प्रोजेक्ट के दौरान उन्होंने 225 इंटरव्यू कंडक्ट किए, जिससे उनके नज़रिए में बदलाव आया. इस स्टोरीटेलिंग से उन्हें समझ में आया कि ज़िन्दगी हर किसी की परीक्षा लेती है. लेकिन उन सिचुएशन को आप कहानियों में तब्दील कर सकते हैं और ज़िन्दगी का असली मतलब भी जान सकते हैं. 

इसी तरह ज़िन्दगी के बदलावों के बारे में जानने के लिए आज हम चर्चा कर रहे हैं ऑथर Bruce Feiler की लिखी किताब “Life is in the Transitions” के बारे में.. आगे कहानियों का दौर ज़ारी रहेगा.

हमें अपनी ज़िन्दगी जीने की अप्रोच बदलनी होगी, लीनियर थिंकिंग से बाहर आने की कोशिश करें
आपके जीवन की कहानी ने क्या आकार लिया है? यह एक अजीब सा सवाल लग सकता है. लेकिन अगर हम इसे करीब से देखें. तो पता चलता है कि हमारी लाइफ एक स्पेसिफिक पैटर्न फॉलो करती है. या फिर हम ये भी कह सकते हैं कि हम ज़िन्दगी को एक विशेष ढ़ंग से जीते हैं. 

आमतौर पर, हम सोचते हैं कि हमारी ज़िन्दगी लीनियर है. हम जन्म लेते हैं, बूढ़े होते हैं और इस बीच में हमारी ज़िन्दगी कई पड़ावों से होकर गुज़रती है. इस तरह की सोच हमारी सभ्यता बन गई है. और हम इसी सोच को नॉर्मल समझते हैं. लेकिन ज़िन्दगी को लेकर हमेशा से लोगों की सोच ऐसी नहीं थी. 

बेबीलॉन और EGYPT  के अर्ली सिविलाईजेशन के समय लोग ज़िन्दगी को एक साईकल की तरह समझते थे. जिसमें अलग-अलग सीज़न होते हैं. लोग उस सर्कल का हिस्सा बन जाते थे और पूरी ज़िन्दगी एक ही तरह की सभ्यता मानते रहते थे. 

लेकिन फिर समय बदलता गया और लोगों की सोच लीनियर होती गई. जैसे-जैसे बाईबल की ग्रोथ हुई, लीनियर सोच और ज्यादा मज़बूत होती गई. 

इसके 19वीं सदी आते-आते लोग टाइम की वैल्यू को समझने लगे. इंडस्ट्रीज़ की शुरुआत हुई, लोग टाइम के हिसाब से लाइफ को जीने लगे. फिर ऐसा भी समय आया, जब लोग घड़ियों में समय देखने लगे. वो अपने दिन को टाइम के हिसाब से प्लान करते थे. 

इस पूरे चैप्टर का सार यही है कि बदलाव ही ज़िन्दगी का सत्य है. हमें इसे एक्सेप्ट करना चाहिए और अपनी लाइफ को उस हिसाब से तैयार करना चाहिए. इसी के साथ हमें थोड़ा क्रिएटिव होने की ज़रूरत है. लीनियर रास्ते पर बहुत चल चुके, अब क्रिएटिव स्टोरीज़ के साथ अपनी लाइफ को एन्जॉय करिए.

ज़िन्दगी के सफर में कई “Disruptors” से मुलाक़ात भी होगी
चलिए एक कल्पना कीजिये, मान लीजिए कि आप जिस जेंडर के साथ पैदा हुए हैं. अंदर से आप उस जेंडर के नहीं हैं. मतलब लाइफ में धीरे धीरे आपको पता चला कि आप गे या लेसबियन हैं. 

कुछ इसी तरह की ज़िन्दगी में बदलाव की कहानियां होती हैं. ऑथर को इसी तरह के बदलावों का कई बार सामना करना पड़ा है. इसलिए वो कहते हैं कि आम तौर पर इंसान को 52 तरह के बदलावों का सामना करना पड़ता है. इसी को  ‘Disruptors ‘ कहा जाता है. और इनके 4 प्रकार हो सकते हैं-body, love, work, identity, और  beliefs.

चलिए एक नज़र में इन ‘Disruptors’ को समझने की कोशिश करते हैं. 

1. Body Disruptors- ये बदलाव शरीर से जुड़े होते हैं. जैसे कि अचानक से शरीर का वजन बढ़ जाना. या फिर किसी को भयानक बीमारी हो जाना. हर साल अमेरिका में 10 में से 6 लोगों को दिल की बीमारी हो जाती है. 

2. LOVE DISRUPTORS-  इस कैटेगरी में आने वाले बदलाव रिश्तों से जुड़े होते हैं. कई लोगों की ज़िन्दगी में रिश्तों की वजह से बड़े बदलाव आ जाते हैं. 

3. WORK  DISRUPTORS-  आज के समय में काम की जगह भी काफी बदलाव देखने को मिलते हैं. रिसर्च बताती है कि आज के दौर में इंसान एक जगह 4 साल से ज्यादा काम नहीं करता है. यही रिसर्च ये भी बताती है कि अपने पूरे कार्यकाल में लोग 12 कम्पनियां बदल चुके होते हैं. इसलिए अगली बार काम की जगह में कोई बदलाव नज़र आए तो घबराइयेगा नहीं.. बदलाव ही ज़िन्दगी का दूसरा रूप है. 

4. IDENTITY AND BELIEF DISRUPTORS- याद रखिए कि बिलीफ सिस्टम और आइडेंटिटी में भी बदलाव देखने को मिलते हैं. इंसान की सोच समय के साथ बदलते रहती हैं. रिसर्च तो यहाँ तक कहती है कि हर 4 से 5 सालों में एक इंसान की पूरी पर्सनालिटी बदल जाती है. 

ऑथर कहते हैं कि “एक नार्मल इंसान अपनी पूरी ज़िन्दगी में 36 बार बड़े बदलावों का अनुभव करता है. कई बदलाव आसानी से एक्सेप्ट कर लिए जाते हैं. तो कई बदलाव हमारी ज़िन्दगी को ही बदलकर रख देते हैं. 

इसलिए अगले चैप्टर में होगी बड़े बदलावों की बात, जिनसे बदल जाती है ज़िन्दगी.

ज़िन्दगी के भूकंप हमारे अस्तित्व की नींव को हिला देते हैं
अब कहानी एक ऐसी लड़की की आने वाली है. जिसनें अपनी बुराई सुनने के तुरंत बाद नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था. 

उस लड़की का नाम लीसा था. एक दिन उसने कांफ्रेंस मीटिंग को कुछ जल्दी ज्वाइन कर लिया, तभी उसनें सुना कि उसके साथ काम करने वाले लोग. उसकी बुराई कर रहे हैं. उसी वक्त उसे एहसास हो गया कि अब उसे ये काम नहीं करना है. उसनें अगले दिन ही ऑफिस छोड़ दिया. 

कुछ सालों के लिए वो कहीं दूर चली गई. लेकिन फिर उसने वापसी की, और अपने करियर के रास्ते को ही बदल दिया. उसने पहले लाइफ कोचिंग की, फिर धीरे-धीरे hypnotherapist बनी और लोगों को उनके ट्रामा से बाहर निकालने में मदद करने लगी. 

एक कांफ्रेंस कॉल, लीसा की लाइफ का टर्निंग पॉइंट था. उसी कॉल के बाद उसे एहसास हुआ कि वो सही जगह काम नहीं कर रही है. वो कॉल ऐसे भूकम्प की तरह था. जिसने लीसा की लाइफ के फाउंडेशन को ही हिलाकर रख दिया था. 

इस तरह के बदलावों को Lifequakes भी कहा जाता है. ये अचानक आते हैं और हमारी ज़िन्दगी को बदल देते हैं. सबसे बड़ी ख़ासियत ये होती है कि हम कभी इस तरह के बदलावों को अपनी ज़िन्दगी में न्योता नहीं देते हैं. लेकिन ज़िन्दगी की भाग दौड़ में हमारा वास्ता इस तरह के बदलावों से पड़ता रहता है. 

इस चैप्टर की मदद से लेखक यही बताना चाहते हैं कि हमें ज़िन्दगी में बड़े बदलावों के लिए भी तैयार रहना चाहिए. हमें खुद को याद दिलाते रहना चाहिए कि लाइफ में कुछ भी परमानेंट नहीं है. जो चीज़ आज हमारे पास है, हो सकता है कि वो कल हमारे पास नहीं हो. इसलिए हमें खुद के दिमाग को चीज़ों के खोने के लिए भी तैयार रखना चाहिए. 

इसी के साथ लेखक ये भी कहते हैं कि आम इंसान अपनी पूरी लाइफ साइकल में 5 से 6 बार Lifequakes का सामना करता है. अगर आपने अभी तक ऐसा अनुभव नहीं किया है. तो तैयार हो जाइये, बहुत जल्द ऐसे Lifequakes से आपका सामना होगा. अगर आप पहले से इनके लिए तैयार रहेंगे. तो आप इनका सामना हंसते-हंसते कर लेंगे. 

ऑथर सलाह देते हैं कि अगर आप अपने आपको और अपने परिवार को मज़बूत बनाएंगे. तो इन Lifequakes से आपको ज्यादा दिक्कत नहीं होगी. उदाहरण के लिए अगर आपके पास अच्छा हेल्थ इंश्योरेंस रहेगा. तो आप गंभीर बीमारियों का भी ईलाज करवा सकते हैं. उस सिचुएशन में आपको परेशानी का अनुभव तो होगा. लेकिन आपके पास उससे लड़ने के लिए हथियार भी होंगे. इसलिए अपने आपको मज़बूत बनाने की ज़िम्मेदारी केवल आपकी ही है. 

कमज़ोर लोगों का साथ, ज्यादा समय तक कोई नहीं देता है. इसलिए दूसरों के भरोसे बैठना बंद करिए. खुद की लाइफ को क्रिएट करिए. 

Lifequakes से ज़िन्दगी में परेशानियां आती हैं. लेकिन उनके अंदर कई अवसर भी छुपे रहते हैं. जिनकी मदद से आप अपनी लाइफ को ख़ूबसूरत बना सकते हैं. उन अवसरों के बारे में ही हम अगले चैप्टर में बात करेंगे.. इसलिए बने रहिए इस बेहतरीन बुक समरी के साथ.

बड़ी मुश्किलें आएँगी लेकिन उनसे ज़िन्दगी को नया नज़रिया भी दिया जा सकता है
हम लोगों को Lifequakes यानि ज़िन्दगी में आने वाली बड़ी मुश्किलें तोड़कर रख देती हैं. क्योंकि ये मुश्किलें हमारी कहानियों को तोड़ देती हैं. उन कहानियों को जो हम खुद को खुद की लाइफ के बारे में सुनाते रहते हैं. 

मान लीजिए किसी को अपने परिवार को लेकर बहुत गर्व हो, लेकिन जैसे ही उसे पता चलता है कि उसके पैरेंट्स का तलाक हो रहा है. उसका गर्व टूट जाता है. इसी तरह की घटनाओं को LIFEQUAKES  कहते हैं. 

किसी भी तरह की मुश्किलों का सामना करने के लिए, हमें अपने नज़रिए को बदलने की ज़रूरत है. अगर हम सिचुएशन को देखने का नज़रिया बदल लें. तो कई बार सिचुएशन के नज़ारे भी बदल जाते हैं. 

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि ऐसा हम कैसे करेंगे? इसके लिए हमें खुद को समझना होगा. हमें अपने आप से सवाल करना होगा कि हमारे लिए क्या मीनिंगफुल है? इस सवाल का जवाब हर इंसान के लिए अलग-अलग होगा. 

इसे हम एक कहानी से समझने की कोशिश करते हैं. ये कहानी हवाओं सी बहती और सुनामी से टक्कर लेने वाली एक औरत की है. जिन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि ये आम सी दिखने वाली औरत लाखों लोगों को प्रेरित करेगी. लेकिन उनके कैरेक्टर में इतना दम था कि उन्होंने लाखों लोगों के ज़हन में राज़ किया था. 

इतनी सी भूमिका के बाद आपको बता दें कि हम 1857 के दौर की बात कर रहे हैं. और इस लीडर का नाम HARRIET TUBMAN  है. जिन्होंने मैरीलैंड में रंगभेदी और औरतों के हक के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी थी. 

इन्होंने अपने बचपन से ही रंग भेद के साथ कई मुश्किलों का सामना किया था. 14 साल की उम्र से 30 साल की उम्र तक इन्होंने अपना जीवन एक ग़ुलाम की तरह बिताया था. बचपन से ही इन्होंने फटे पुराने कपड़े पहने, लेकिन इनके चेहरे की मुस्कान बता देती थी कि लड़की के अंदर आत्मविश्वास की कमी नहीं है. 

HARRIET TUBMAN  की बचपन में ही एक शराबी से शादी कर दी गई थी. फिर कैसे इन्होंने खुद रंगभेद और औरतों के हक की लड़ाई लड़ी. उस कहानी को तो मिसाल की तरह याद किया जाता है. 

इन्होंने मैरीलैंड में नर्क से बदत्तर ज़िन्दगी से खुद को भी बाहर निकाला था और लाखों लोगों की भी मदद की थी.

आज के समय में लोग स्पेशली औरतें बुरे रिश्ते और शादियों में फंसी रहती हैं. उन्हें HARRIET TUBMAN  से सीखना चाहिए. जिन्होंने एक बार अपने पति से मदद मांगी थी कि उन्हें खुद की रिहाई के लिए आवाज़ उठानी चाहिए. पति के मना कर देने और धमकाने के बाद, उन्होंने रातों रात अपने पति को छोड़ दिया था और पेन्सिलवेनिया की तरफ रुख कर लिया था. जहाँ के बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

HARRIET TUBMAN  ने एक बार कहा था कि “कोई भी आदमी मुझे ज़िन्दा नहीं रख सकता है. मुझे अपनी ज़िन्दगी की लड़ाई खुद ही लड़नी होगी. और संघर्षों के बाद जीत मेरी ही होगी.”

ये आत्मविश्वास इस बात की गवाही देता है कि ज़िन्दगी में हमेशा मुश्किलें आएँगी. इसलिए उनके प्रति अपने नज़रिए को बदलिए और संघर्ष करते रहिए.

भले ही मुश्किलों को आने से रोकना मुश्किल हो, लेकिन उनका सामना किया जा सकता है
मुश्किलें कभी भी और किसी के सामने भी आ सकती हैं. उन्हें आने से रोकना मुश्किल है. क्योंकि किसी को नहीं मालुम कि भविष्य में क्या होने वाला है? किसी को नहीं मालुम कि कब किसको कौन सी बीमारी हो जाएगी? या फिर कब किसका एक्सीडेंट हो जाएगा? लेकिन हम उन मुश्किलों का सामना कैसे करते हैं? ये हमारे ऊपर है. 

कई लोग मुश्किलों में टूट जाते हैं तो कई लोग उन मुश्किलों से लड़कर मज़बूत हो जाते हैं. ये आपको तय करना है कि आप कौन सा रास्ता अपनाना चाहते हैं. 

हाँ, हम Destructive events को मीनिंगफुल बदलाव में बदल सकते हैं. लेकिन इसके लिए प्रैक्टिस की ज़रूरत पड़ेगी. इसके लिए कई टूल्स भी हैं, जिनकी मदद से हम बदलाव की दुनिया के मास्टर बन सकते हैं. 

पहला टूल है एक्सेप्ट करना, ये सुनने में ज़रूर सरल सा लगता है. लेकिन अधिकत्तर लोग इसी टूल को अपना नहीं पाते हैं. इसके पीछा का कारण इंसान का डिनायल मोड में रहना होता है. हम हमेशा ऐसी ही दुनिया में रहना चाहते हैं. जिस दुनिया को हम जानते हों, इसलिए अधिकत्तर हम रियलिटी को एक्सेप्ट नहीं करना चाहते. लेकिन आपको समझना होगा कि किसी भी सिचुएशन को एक्सेप्ट करके, हम रियलिटी के ज्यादा पास पहुँच जाते हैं. इसलिए किसी भी बुरी सिचुएशन से बाहर आने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम उस सिचुएशन को जैसी भी है. ठीक वैसी ही एक्सेप्ट कर लें. 

ऐसा करने से हमारे दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर जाएगा. फिर हमें वहां से ज़िन्दगी को आगे बढ़ाने का मकसद भी मिलेगा. 

हालाँकि, एक्सेप्ट करने का ये मतलब नहीं है कि आपको इमोशन से दूर जाना है. या फिर ये समझ लेना है कि सब कुछ बढ़िया हो गया है. बदलाव के साथ कई दर्द भरे इमोशन भी आते हैं. उन इमोशन्स में दर्द, दुःख और शर्म तीनों ही चीज़ें हो सकती हैं. एक्सेप्टेन्स को प्रैक्टिस करने का मतलब, उन फीलिंग्स को स्पेस देना होता है. किसी के चाहने वाले के बिछड़ने का दुःख कभी खत्म नहीं हो सकता है. लेकिन फीलिंग्स को एक्सेप्ट करने से, वो अपने चाहने वाले को लॉन्ग गुड बाय ज़रूर बोल सकता है. इसलिए इंसान को अपनी फीलिंग्स को एक्सेप्ट करना सीख लेना चाहिए. 

दोस्तों, इसी तरह ज़िन्दगी के बदलावों के बारे में जानने के लिए आज हम चर्चा कर रहे हैं ऑथर Bruce Feiler की लिखी किताब “Life is in the Transitions” के बारे में.. आगे कहानियों का दौर ज़ारी रहेगा.

रीति-रिवाज़ हमारी काफी ज्यादा मदद भी करते हैं
हम अगर किसी को खो देते हैं, तो ज़िन्दगी में आगे कैसे बढ़ते हैं? आगे बढ़ने में हमारी rituals यानि रीति रिवाज़ भी काफी ज्यादा मदद करते हैं. 

रिचवल्स हमें सिचुएशन को एक्सेप्ट करना सिखाते हैं. वो हमें बताते हैं कि जाने वाला जा चुका है. उसनें अपने पीछे एक विरासत छोड़ी है. जिसे आगे लेकर जाना ही हमारी ज़िम्मेदारी है. उसी ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए हमें भविष्य की ओर देखना होगा. 

रीति रिवाज ऐसी परंपराएँ या संस्कार हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी मानव जातियों में चले आ रहे हैं. इनका संबंध ज़िन्दगी की प्रमुख घटनाओँ से होता है. कभी कभी ये धर्म और त्योहार का भी हिस्सा होते हैं. ये ख़ुशी से लेकर दुःख तक सहन करने के तरीके बताते हैं. 

इनकी मदद से इंसान को पता चलता है कि ज़िन्दगी में बदलाव का दौर चल रहा है. इसलिए अपने-अपने रिवाज़ों के बारे में भी पता होना चाहिए. कभी भी इन रिवाज़ों को नज़र अंदाज़ करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. और ना ही इनसे आँख चुराकर पतली गली पकड़कर निकलना चाहिए. 

इन रिवाज़ों को सीखने के लिए आप बड़े बुज़ुर्गों की मदद ले सकते हैं. आप उनके साथ बैठकर बातें कर सकते हैं. कई बार घर के बड़े बुज़ुर्ग जिन्हें लोग ख़ास समझना बंद कर देते हैं. वो ज़िन्दगी का सबसे बड़ा ज्ञान दे जाते हैं. इसलिए आप ज़िन्दगी की ख़ुशियों की तलाश भी उनके पास कर सकते हैं. 

वो आपकी ज़िन्दगी के बरगद के पेड़ हैं. जिनकी जड़ों की वजह से ही आप आज दुनिया में छाने की कोशिश कर रहे हैं. 

इस चैप्टर का सार भी यही है कि इंसान को तरक्की की दौड़ में इतना भी मग्न नहीं हो जाना चाहिए कि वो अपनी जड़ों को ही भूल जाए. इसलिए अपनी ज़िन्दगी से जुड़े रहिए और सुख और दुःख को देखने का नया नज़रिया पैदा करिए. 

हर बड़े बदलाव के बीच में इंसान कहीं ना कहीं खुद को खो देता है
क्या हम सांप से कुछ सीख सकते हैं? इसका जवाब भी हाँ है, हाँ हम सांप से बहुत कुछ सीख सकते हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात ये सीख सकते हैं कि जिस तरह सांप अपनी स्किन को उतारकर फेंक देता है. और नई स्किन का स्वागत करता है. उसी तरह हमें भी बदलाव के दौरान पुरानी यादों से बाहर निकलकर, नए अवसरों का स्वागत करना चाहिए. 

बड़े बदलावों के बीच में इंसान काफी ज्यादा कन्फ्यूज़ हो जाता है. कई बार तो वो ख़ुद को ही भूल जाता है. इसके बारे में आपको सभी धार्मिक ग्रंथों में पढ़ने को मिल जाएगा. 

इसलिए ऑथर सलाह देते हैं कि हमें ट्रांसफॉर्मेशन का स्वागत करना सीखना होगा. हमें बदलाव की सत्यता को देखना होगा. हमें अपने आपको बताना होगा कि दुनिया की हर चीज़ बदलने वाली है. अगर हम नहीं बदल रहे हैं. तो फिर दिक्कत की बात है. अगर हमारे आस-पास की चीज़ें बदल रही हैं. तो फिर सब सही चल रहा है. 

इसलिए बदलाव के बीच के फेज़ का भी खुली बाहों से स्वागत करिए. इसी फेज़ में इंसान को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इस फेज़ में इंसान अपनी पुरानी आदतों को छोड़ रहा होता है. इसलिए कई बार वो अंदर से काफी कमजोर हो जाता है. 

अब हमें ये तो पता चल चुका है कि बदलाव के दौरान मिडिल फेज़ सबसे ज्यादा मुश्किल होता है. अब सवाल उठता है कि इस फेज़ को पार कैसे करें? 

इसके लिए सबसे ज़रूरी स्टेप तो ये है कि आपके अंदर इसे पार करने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए. आप मज़बूत इच्छा के दम पर कुछ भी हासिल कर सकते हैं. इसके बाद आप कोई नई स्किल सीखने की कोशिश भी कर सकते हैं. कई लोग इस फेज़ से बाहर आने के लिए राइटिंग का सहारा लेते हैं. वो अपने विचारों को डायरी में लिखने लगते हैं. जिसकी वजह से उनके अंदर की क्रिएटिविटी भी काफी ज्यादा बढ़ जाती है.

क्रिएटिविटी को बढ़ाते जाइए, आपको इससे काफी ज्यादा मदद मिलेगी
अब तस्वीर में Henri Matisse का नाम आ रहा है. जिन्हें कोलन कैंसर हो गया था. जिसके लिए उन्हें कई गम्भीर सर्जरी से गुज़रना था. ऐसा लगा कि अब उनका आर्टिस्ट के तौर पर कैरियर खत्म हो चुका है. अब वो अपने हांथों में पेंट ब्रश नहीं उठा पाएंगे. 

हेल्थ क्राइसिस की वजह से उनक पेंटिंग कैरियर खत्म हो रहा था. लेकिन इस क्राइसिस ने उनके लिए क्रिएटिविटी का नया दरवाज़ा भी खोल दिया. 

उन्होंने बेड पर लेटकर ही पेपर कट आउट बनाने की शुरुआत कर दी, कई बार बदलाव से बहुत दुःख मिलता है. लेकिन अगर दूसरे नज़रिए से देखने की कोशिश करें. तो कोई ना कोई दरवाज़ा भी खुलता है. 

इसलिए बदलाव के समय भी हमें अपनी क्रिएटिविटी को ज़िन्दा रखने की कोशिश करनी चाहिए. क्रिएटिविटी के दम पर हम बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं. 

क्रिएटिविटी की मदद से आप मूव ऑन ही कर सकते हैं. इसलिए इसे एक टूल की तरह यूज़ करने की कोशिश करें. 

अगर आपको कुछ ज्यादा समझ में ना आए तो बदलाव के दौरान क्रिएटिव राइटिंग को मौका दीजिए. लेखन की दुनिया में कदम रखने के बाद, आपके अंदर एक अलग नज़रिया डेवलप होगा. आप उस नज़रिए की मदद से भी मुश्किल से मुश्किल दौर से बाहर आ सकते हैं. जैसे-जैसे आप अपने शब्दों को कागज़ में उकेरते जाएंगे. वैसे वैसे ही आपके दिमाग को शांति भी मिलती जाएगी. आप पुरानी यादों को भी शब्दों की मदद से पीछे छोड़ सकते हैं. 

psychologist James Pennebaker ने एक एक्सपेरिमेंट किया था. उन्होंने लोगों को दो ग्रुप्स में बाँट दिया. पहले ग्रुप्स को कहा कि रोज़ आपको अपने अनुभवों के बारे में लिखना है. दूसरे ग्रुप को कुछ भी नहीं लिखने को कहा, 3 महीनें बाद, जिस ग्रुप के लोगों ने लिखने की प्रैक्टिस की थी. उनमे से 27 प्रतीशत लोगों को अच्छी जॉब मिल चुकी थी. और जिन लोगों ने नहीं लिखा था. उनमे से केवल 5 परसेंट लोगों को ही जॉब मिली थी. इससे पता चलता है कि क्रिएटिव चीज़ें इंसान को बेहतर बनाती हैं.

इसलिए जब भी मुश्किल दौर आए, खुद को थोड़ा और क्रिएटिव बनाने की कोशिश करिएगा.

हमें नई लाइफ स्टोरीज़ क्रिएट करने की ज़रूरत है
ऑथर के पिता ने अपने अंत समय 150 कहानियां लिखीं थीं. इस कहानी में उन्होंने खुद की लाइफ को याद किया था. एक ऐसा भी समय था, जब वो बीमारी से हताश होकर मरना चाहते थे. लेकिन फिर लेखन ने उन्हें ये उम्मीद दी कि आत्महत्या से कुछ सही नहीं हो सकता है. 

लाइफ स्टोरी प्रोजेक्ट के दौरान ऑथर को ऐसी सैकड़ों कहानियों के बारे में पता चला था. जिन कहानी के किरदारों की लाइफ में बहुत बदलाव आए थे. इस प्रोजेक्ट से ऑथर को सीखने को मिला था कि बदलावों से कैसे दो-दो हाँथ किए जा सकते हैं? मतलब इंसान चाह ले तो किसी भी सिचुएशन को हैंडल कर सकता है. 

इस प्रोजेक्ट के दौरान ऑथर का वास्ता दोनों तरह के लोगों से पड़ा. एक तो वो जो बदलाव को एक्सेप्ट नहीं कर पाए और बहुत बुरे हालातों में पहुँच गए. वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग थे. जिन्होंने बदलावों को एन्जॉय किया था. उन्होंने मुश्किलों का सामना बड़ी दिलेरी से किया और मज़बूत पर्सनालिटी बनकर बाहर निकले. 

वो ऐसे लोग थे, जिन्होंने बुरे बदलावों के बाद भी, अपनी लाइफ की नई स्टोरी लिख डाली थी. उन्हें पता था कि ज़िन्दगी का दूसरा नाम ही आगे बढ़ते जाना है. अगर आप आगे बढ़ना बंद कर देंगे. तो आपकी ज़िन्दगी भी रुक जाएगी. इसलिए लाइफ में हमेशा आगे बढ़ते जाना चाहिए. 

लाइफ की नई कहानी बनाते रहिए और उन्हें लोगों के साथ शेयर भी करिए. 

ये बात भी सच है कि जब हम मुश्किल में फंसे हुए होते हैं. तो हम काफी अकेला फील कर रहे होते हैं. उस समय हमारा किसी से भी बात करने का मन नहीं करता है. हम किसी के हैलो का भी जवाब नहीं दे पाते हैं. लेकिन उसी वक्त हमें सोचना चाहिए कि हम अपने दिल की बात शेयर करके खुद के साथ दूसरों की भी मदद कर सकते हैं. हमारे एक्सपीरियंस को सुनने के बाद, हो सकता है कि कोई दूसरा वो गलती करने से बच जाए. जो गलती हमसे हो गई थी. इसलिए अपने दिल की बात दूसरों से शेयर करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. 

अगर आपको शेयर करने से डर लगे तो अपनी कहानी सबको बताने की ज़रूरत नहीं है. आप अपने ख़ास लोगों से भी अपने दिल की बात शेयर कर सकते हैं. वो ख़ास लोग कौन होंगे? ये आपको अपने कम्फर्ट ज़ोन के हिसाब से सेलेक्ट करने हैं. लेकिन इतना आपको पता होना चाहिए कि शेयरिंग से दिल काफी हल्का हो जाता है. इसलिए शायद शेयरिंग को केयरिंग कहते हैं.

कुल मिलाकर
हमें खुद को बताते रहना चाहिए कि समय के साथ हमारे जीवन में बहुत से बदलाव आने वाले हैं. और हमें उन बदलावों के लिए पहले से तैयार रहना है. ऐसा करके हम अपने दिमाग और शरीर को आने वाली सिचुएशन के लिए तैयार कर सकते हैं.. 

 

क्या करें? 

जब आप बड़े बदलाव से गुज़र रहे होंगे. तो आपके दिमाग में बहुत सारे सवाल आएंगे. आपको उन सवालों से घबराना नहीं है. और बेसिक्स को याद रखना है. बदलाव की दुनिया को ही जीवन कहते हैं. 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Life Is in the Transitions By Bruce Feiler 

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आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.

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