Selling To Big Companies

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Selling To Big Companies

Jill Konrath
सेल्स की फील्ड में अलग नजर आने और बड़े क्लाइंट्स बनाने का तरीका

दो लफ्जों में
साल 2006 में आई ये किताब वैसे तो कुछ पुरानी हो चुकी है लेकिन इसकी बातें हर दौर में काम आती हैं। इसमें कॉर्पोरेट सेक्टर में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के व्यवहार और सोच को काफी बारीकी से जांचा परखा गया है। यानि ऐसे लोग जो इन बड़ी कंपनियों में डिसीजन मेकर की भूमिका में होते हैं। इसे पढ़कर आपको ये समझ आने लग जाता है कि आपको इन लोगों से कैसे कॉन्टेक्ट करना है, कैसे बातचीत करनी है और कैसे अपना प्रोडक्ट या सर्विस ऑफर करनी है। यानि वो सब कुछ जो एक अच्छी सेल्स पिच में गिना जाता है। अगर आप ये बातें अच्छी तरह समझ लेते हैं तो बड़े से बड़े क्लाइंट बना सकते हैं और आपको कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

ये किताब किनको पढ़नी चाहिए
- सेल्स की फील्ड से जुड़े हुए लोग जो बड़े क्लाइंट्स बनाना चाहते हैं
- जो लोग कॉर्पोरेट सेक्टर के कामकाज को अच्छी तरह समझना चाहते हैं
- हर वह व्यक्ति जो अपनी कम्युनिकेशन स्किल सुधारना चाहता है 

लेखिका के बारे में
जिल कोनराथ, सेल्स स्ट्रेटेजी एक्सपर्ट हैं। वे सेल्सपर्सन को ज्यादा से ज्यादा क्लाइंट बनाने की ट्रेनिंग देती हैं।जिल को दुनियाभर में सुना जाता है। उनकी वर्कशॉप ने एक अलग पहचान बनाई है। इस पुस्तक के अलावा उन्होंने एजाइल सेलिंग (2014) और स्नैप सेलिंग (2012) जैसी और किताबें भी लिखी हैं।

  ये किताब मुझे क्यों पढ़नी चाहिए?
ताकि आप अपनी सेलिंग स्किल्स निखार सकें।
सेलिंग एक मुश्किल जॉब है। ऊपर से कोई आपको इतना importance भी नहीं देता है। रोज ढेरों लोगों से मिलना, उनसे फोन पर बातें करना, इतने ईमेल कि उनका जवाब देना भी मुश्किल हो। इन सबसे दिमाग चकरा जाता है। इसके बाद भी टार्गेट की तलवार हमेशा सर पर लटकती रहती है। आखिर सेल्स का काम इतना मुश्किल क्यों है? इसकी एक बड़ी वजह है अटेंशन। एक आम ग्राहक के पास भी रोज ढेरों ऑफर आते हैं। फिर बात जब किसी बड़े क्लाइंट की हो तो उनको अप्रोच करने वाले कितने सेल्सपर्सन होंगे आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। इन सबके बीच आपका ऑफर आसानी से गुम हो सकता है। यानि सेल्स बढ़ना तो दूर की बात यहां तो शुरुआत का ही पता नहीं होता। लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है। सेल्स को बढ़ाने के तरीके हैं। ये किताब आपको बताएगी कि कैसे आप भीड़ में अलग नजर आ सकते हैं ताकि बड़े से बड़े क्लाइंट आपको और आपके ऑफर को नोटिस करें, उसे सीरियसली लें। चाहे वो कितने ही बड़े क्लाइंट्स क्यों न हों। इस किताब को पढ़कर आप जानेंगे कि आपको कभी सेक्रेटरी या असिस्टेंट लेवल के लोगों से रूखा व्यवहार क्यों नहीं करना चाहिए, अपने सेलिंग पैकेज को अट्रैक्टिव कैसे बनाएं और अच्छी सेल्स के लिए गेटकीपर को मैनैज करना क्यों जरूरी है।

बड़ी कंपनियों को प्रोडक्ट बेचने के लिए उनके डिसीजन मेकर्स के दिमाग को पढ़ना आना चाहिए।
अगर आपने कभी किसी बड़ी कंपनी या क्लाइंट को अपना प्रोडक्ट या सर्विस बेचने की कोशिश की होगी तो आपको ये अच्छे से पता होगा कि ये कितना मुश्किल काम है। आपके सामने बहुत सी रुकावटें आती हैं। आपके लिए डिसीजन मेकर्स तक पहुंच पाना ही सबसे बड़ा टास्क होता है। क्योंकि ये लोग अपने आस पास इतने बैरियर बनाकर रखते हैं जिससे लोग अपने प्रोडक्ट लेकर उनके पीछे न पड़ जाएं। इनकी गल्ती भी नहीं है। इन लोगों के पास इतना टाइम और मन ही नहीं होता कि ये आपकी बात सुनें। ऊपर से सेल्स का टार्गेट आपकी जिंदगी को और मुश्किल कर देता है। जिल यहां एक फार्मा कंपनी के डायरेक्टर का उदाहरण देती हैं। वो रोज सुबह  4:30 बजे से काम पर लग जाते हैं ताकि ऑफिस जाने से पहले अपने सारे ईमेल पढ़कर उनका जवाब दे सकें। उसके पास एक सेकंड की फुर्सत भी नहीं रहती है। ऐसे में भला वो किसी सेल्सपर्सन से क्या बात कर पाएंगे? हर बड़ी कंपनी में आपको ऐसे ही किसी बिजी पर्सन से बात करनी होती है। क्योंकि फैसले लेने का अधिकार तो इनको ही होता है। इसलिए आपको बहुत संभलकर कोशिश करनी होगी। कोई आम सेल्सपर्सन तो उनके पास फटक भी नहीं सकता। आपको उनको ये समझाना पड़ेगा कि आप जो बेच रहे हैं वो दूसरों से अलग क्यों है? आपको उनको ये यकीन दिलाना होगा कि आपका प्रोडक्ट या सर्विस क्यों इतना जरूरी है कि उनको बिना देर किए इसे ले लेना चाहिए ताकि उनको ज्यादा से ज्यादा फायदा हो। अगर आपने ऐसा कर लिया तो उनका अटेंशन जरूर मिलेगा। 

हालांकि यहां आपके सामने एक और चुनौती आती है। डिसीजन मेकर्स बदलाव पसंद नहीं करते हैं। उनके लिए पहले से चल रहे कॉन्ट्रेक्ट और डील को कंटीन्यू करना ज्यादा आसान है। क्योंकि किसी भी तरह के बदलाव या नए प्लान के लिए उनके पास समय ही नहीं है। इस चलन को बदलने के लिए आपको उन्हें ये यकीन दिलाना होगा कि आप जो बेच रहे हैं वो उनका समय और पैसे बचाकर उनकी जिंदगी आसान बना देगा। यानि बड़ी कंपनियों के नाम से डरने की जरूरत नहीं है। आपको इस बात पर फोकस करना है कि उनके डिसीजन किस तरह लिए जाते हैं। क्योंकि इसे समझने के बाद आपकी राह आसान हो जाएगी। 

डिसीजन मेकर्स चाहते हैं कि उनके सामने कम शब्दों में साफ और काम की बात रखी जाए। आपमें ये स्किल होनी जरूरी है। 

कुछ सेल्सपर्सन ये सोचते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को अप्रोच करने से उनका काम बन जाएगा। सुनने में तो ये तरीका सही भी लगता है। आप जितने ज्यादा लोगों से कॉन्टेक्ट करेंगे, सेल्स के चांस उतने ज्यादा होंगे। पर हकीकत इससे अलग है। जरूरी ये है कि आप सही लोगों से बात करें। वरना ये तो बस अपना समय बर्बाद करने वाली बात होगी। और तो और लोग आपको हल्के में लेने लगेंगे। कॉर्पोरेट लीडर चाहते हैं कि उनके सामने एक स्ट्रांग और कांक्रीट प्रपोजल रखा जाए। इसके लिए आपके पास स्किल होनी जरूरी है। आपको पता होना चाहिए कि सामने वाला क्या चाहता है। मान लीजिए आप रोटी बेलने वाली मशीन बेचते हैं। आप किसी फाइव स्टार होटल जाकर डेमो देना चाहते हैं। अब जरा सोचिए वहां का मैनेजर कितना बिजी होगा। जैसे तैसे आपने मिलने का वक्त ले लिया। अब आप वहां जाकर आटा गूंधने से अपनी बात नहीं शुरु कर सकते। आपको सीधा रोटी बेलकर दिखानी होगी। वरना आपके हाथ आया मौका हमेशा के लिए चला जाएगा। कोई दुबारा आपको वक्त खराब करने के लिए क्यों बुलाएगा? ये भी सच है कि हर कोई इतनी गहराई से नहीं सोच सकता। लेकिन ये इतना मुश्किल भी नहीं है। 

अपने वर्तमान क्लाइंट्स का डेटा निकालिए। पता कीजिए कंपनी कितनी बड़ी है, इंडस्ट्री में वो कितने बड़े खिलाड़ी हैं, मैनेजमेंट किस तरह का है, कौन से प्रिंसिपल और वेल्यू को महत्व देते हैं। अब देखिए इनमें से किसके साथ काम करके आपको सबसे अच्छा लगता है? किनके साथ डील करके आप फायदे में रहते हैं? इस रिजल्ट को एक गाइड के तौर पर लीजिए। अब और दस ऐसे क्लाइंट्स की लिस्ट बनाइए जो इस कैटेगरी में फिट हो जाएं। आपको अपने फ्यूचर क्लाइंट की लिस्ट मिल जाएगी। अब आपको इनसे कॉन्टेक्ट करने के लिए खुद को तैयार करनी है। ऐसा प्रोडक्ट डिस्क्रिप्शन बनाइए जो आसानी से समझ आए, सुनने में बढ़िया लगे और क्लाइंट की जरूरत को सबसे अच्छी तरह सूट करे। ये हमेशा याद रखिए कि आपका प्रोडक्ट या सर्विस बस एक रास्ता है। कॉर्पोरेट सेक्टर में मंजिल ज्यादा मायने रखती है। क्योंकि हर कंपनी का लक्ष्य तो एक ही होता है बेहतर रिजल्ट। इसलिए बजाए प्रोडक्ट की डीटेल में जाने के उसके उपयोग और महत्व पर फोकस करें। सबको पता है कि एक पेन लिखने के काम आता है। लेकिन आपको ये बताना होगा कि आपका पेन ज्यादा समय तक चलता है और इसकी ग्रिप नर्म है। यानि इससे लिखने पर उंगलियों को आराम रहेगा। इस तरह आप उसी भाषा में बात कर पाएंगे जो उनको सबसे अच्छी लगती है। उनको वही बता रहे होंगे जो वो सुनना चाहते हैं। अपने फ्यूचर क्लाइंट को भटकाने या ललचाने की कोशिश न करें। उनको ये मत बताइए कि आपके प्रोडक्ट या सर्विस में ऐसा क्या है जो दूसरे में नहीं है। इसकी जगह उनको ये कहिए कि इसकी मदद से वो अपना मार्केट शेयर या मुनाफा कितने परसेंट बढ़ा सकते हैं। ये बात सबका ध्यान आकर्षित करती है।

फ्यूचर क्लाइंट को कॉन्टेक्ट करने से पहले पूरा होमवर्क करें और कोई भी रिसोर्स न छोड़ें।
आपने क्लाइंट लिस्ट तो बना ली। अब उनको कॉन्टेक्ट करने का तरीका ढूंढना है। मजे की बात ये है कि इसके तरीके सबके पास हैं पर सिर्फ कुछ लोग ही इनको सही से इस्तेमाल करना जानते हैं। आपका सबसे कारगर हथियार है रिसर्च। डिसीजन मेकर्स न तो अपनी कॉन्टेक्ट डीटेल पब्लिक करते हैं न ही अपनी रिक्वायरमेंट। ये सब आपको खुद ढूंढना होगा। ऑनलाइन प्लेटफार्म की मदद लें। उनके इंटरव्यू देखें। किसी अखबार या मैग्जीन में आया आर्टिकल पढ़ें। कॉस्ट कटिंग, पिछले तीन महीनों के नतीजे, मैनेजमेंट और कर्मचारियों की खटपट जैसी बातें आसानी से मिल जाएंगी। इन सबसे आपको ये पता चल जाएगा कि उनकी जरूरतें क्या हैं? वो किन परेशानियों का हल ढूंढ रहे हैं। आपको एक पैटर्न सा मिल जाएगा। जैसे सर्दी के मौसम में सेल डाउन रहती है, गर्मी के मौसम में रॉ मटेरियल मंहगा हो जाता है। इन सबको एक मौके की तरह समझें। क्योंकि यही सब आपकी शुरुआत का मकसद होगा। अगर हम जिल का ही उदाहरण लें तो उन्होंने उन कंपनियों पर फोकस किया जो expansion और नए प्रोडक्ट डेवलप करने में लगी थीं। अगर किसी कंपनी को फंडिंग मिलती या वो नई सर्विस अनाउंस करती तो लेखिका के लिए ये उसे अपना क्लाइंट बनाने का सुनहरा मौका होता। अपने कॉन्टेक्ट्स का भी अच्छी तरह इस्तेमाल करें। इसका मतलब ये नहीं है कि आप टिपिकल नेटवर्क प्रोग्राम या ग्रुप्स जॉइन कर लें। वहां कोई बड़ा क्लाइंट नहीं होगा। उनके पास इतना वक्त ही कहां है। इसकी जगह वहां पहुंचिए जहां ऐसे लोग मिल सकते हैं। जैसे ट्रेड शो और वीआईपी कॉन्फ्रेंस और वहां उनसे बात करने की कोशिश करिए। आप अपने दूसरे क्लाइंट्स और साथ काम करने वालों की मदद भी ले सकते हैं। उनसे अपने प्लान डिस्कस कीजिए। हो सकता है कोई हल निकल आए। जिल ने भी इस तरकीब का इस्तेमाल किया था। उनको किसी कंपनी में अप्रोच करने का रास्ता नहीं मिल रहा था। लेकिन उनके दूसरे कस्टमर के उस कंपनी में अच्छे कॉन्टेक्ट थे। उन्होंने खुशी खुशी जिल की मदद की। दूसरा रास्ता ये हो सकता है कि आप अपनी इंडस्ट्री में काम कर रहे किसी दूसरे सेल्सपर्सन के साथ हाथ मिला लें। आप दोनों एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। जितनी जानकारी आप दोनों शेयर कर पाएंगे शायद ही कोई तीसरा आपको दे सके क्योंकि आपके पास डेटा भी है और अनुभव भी। अब आपने बड़ी कंपनियों को अप्रोच करना सीख लिया है। आगे आप एक बढ़िया सेल्स पिच बनाने का तरीका सीखेंगे।

अपना सारा फोकस डिसीजन मेकर्स को ढूंढने और उन तक पहुँचने पर लगाइए।
आपको ये पता लग गया कि किसी से कॉन्टेक्ट कैसे करना है। अब बारी आती है उन लोगों का पता लगाने की जिनसे आपको मिलना है। ये देखिए कि कंपनी में ऐसा कौन है जो आपकी बातों में सबसे ज्यादा इंट्रेस्ट लेगा। कौन सी पोस्ट पर बैठे लोग ये डिसाइड करते होंगे कि कंपनी को क्या सर्विस चाहिए। ये फाइनेंस टीम का कोई व्यक्ति हो सकता है, मार्केटिंग से जुड़ा कोई अधिकारी हो सकता है या ऑपरेशन्स टीम का कोई मेंबर हो सकता है। आमतौर पर इनके नाम पब्लिक नहीं किए जाते। लेकिन अगर आपने सही तरह से अपना होमवर्क किया है तो अब तक ये तो पता कर लिया होगा कि इन लोगों तक कैसे पहुंचना है। यानि कोई दोस्त, कोई दूसरा सेल्सपर्सन या कंपनी का ही कोई स्टाफ। मान लीजिए किस्मत ने साथ नहीं दिया और आपको कोई जानकारी नहीं मिली। ऐसे में आप सीधे-सीधे कंपनी में फोन करके जानकारी ले सकते हैं। लेकिन ये भी इतना आसान नहीं है। फोन पर बात करने वाले के लिए तो आप अजनबी ही हैं। आपको पहले उसे ये यकीन दिलाना होगा कि आप सच में ये जानकारी डिजर्व करते हैं। आपको अपनी वर्थ साबित करनी होगी। ये आपका एन्ट्री लेवल है। यहां अपना प्रोडक्ट बेचने से पहले आपको खुद की मार्केटिंग करनी होगी। ताकि आपकी काबिलियत लोगों का ध्यान खींच ले। फिर भी किसी डिसीजन मेकर तक पहुंचने के लिए आपको औसतन सात से दस बार तो कोशिश करनी पड़ जाती है। तब जाकर कहीं वो आपको नोटिस करते हैं। हर बार कोई न कोई चैलेंज सामने आएगा। इनको पार करने के लिए आपको टूलकिट की जरूरत पड़ेगी। ये टूलकिट है ईमेल और फोन जैसे तरीके। पहली ईमेल का जवाब न आए तो दुबारा मेल करें। फिर भी बात न बने तो मैसेज और फोन का सहारा लें। अपनी बात इस तरह रखें कि आपका प्रोडक्ट या सर्विस क्वालिट अच्छी तरह निखरकर सामने आए। डिसीजन मेकर्स के असिस्टेंट लेवल पर काम करने वालों से भी अच्छा रिलेशन बनाएं। अगर रिमाइंडर भेज रहे हों तो उसमें कुछ नया एड करें। ताकि पढ़ने वाला इसमें इंट्रेस्ट ले वरना आप भी तो कितने रिमाइंडर इग्नोर करते ही होंगे।

डिसीजन मेकर्स की अटेंशन पाने के लिए आपको दूसरों से हट कर कुछ करना होगा। आपको अक्सर सेल्स के कॉल आते होंगे। ज्यादातर कुछ इस तरह बोलते हैं- "नमस्ते सर/मैडम, मेरा नाम आशा है। मैं XYZ कंपनी से बोल रही हूं। हमारी कंपनी आपको लोन (या फिर क्रेडिट कार्ड) ऑफर कर रही है। या फिर हमारा टाउनशिप प्रोजेक्ट लांच हुआ है। क्या आप इंट्रेस्टेड हैं?" अब हम इस तरह की कॉल्स पूरी सुनते भी नहीं और फोन कट कर देते हैं। कॉल बैक या उनके ऑफर पर गौर करना तो दूर की बात है आप शायद उनका नंबर ही ब्लॉक कर देंगे। अगर आप चाहते हैं कि आपकी कॉल को भी ऐसा रिस्पांस न मिले तो आपको लोगों के सामने अपनी बात इस तरह रखनी होगी कि उनके मन में curiosity जागे। ये सुनने में जितना मुश्किल है असल में करना उतना मुश्किल भी नहीं है। आपको बस तीन बातें ध्यान रखनी हैं। अगर आपके पास कोई रेफरेंस है तो सबसे पहले वो बताएं। अगर न भी हो तो अपनी पहचान इस तरह बताएं कि आपकी वेल्यू नजर आए। इस तरह लोग आपको थोड़ा सीरियसली लेते हैं। आप पर भरोसा जताते हैं। अगर आपको उस कंपनी का कोई drawback पता है तो वो बता सकते हैं। उनको बताइए कि वो अपना पैसा कहां वेस्ट कर रहे हैं और इसे बिल्कुल बचा सकते हैं। हर कोई अपने फायदे की बात सुनना चाहता है। 

दूसरे स्टेप में उनको इसका सॉल्यूशन दीजिए। अगर आप ये भी कह दें कि आप उनका पांच प्रतिशत खर्च बचा सकते हैं तो वो जरूर आपको अटेंशन देंगे। तीसरा स्टेप है कॉन्फिडेंस से अपनी बात पूरी करना। किसी पुशी सेल्सपर्सन की तरह अपनी चीज बेचने पर जोर मत देने लगिए। उतावलापन मत दिखाइए। उनसे बिल्कुल नॉर्मल होकर बात कीजिए। जैसे किसी कलीग से बात कर रहे हों। उनको बोलिए कि आप उनसे मुलाकात करके डीटेल में सॉल्यूशन डिस्कस करेंगे। ये स्किल धीरे-धीरे डेवलप होती है। आपको हर नए क्लाइंट के लिए अलग और सूटेबल स्क्रिप्ट बनानी होगी और प्रेक्टिस करके इसे लगातार निखारना होगा। शुरुआत में अजीब लगेगा और गल्तियां भी होंगी पर बाद में आप माहिर हो जाएंगे। 

आप अपने कलीग और दूसरे क्लाइंट्स से फीडबैक ले सकते हैं। उनसे ये सवाल जरूर करिए कि आपकी इस स्क्रिप्ट को सुनकर वो आपसे आगे बात करना पसंद भी करेंगे या नहीं। आप अपनी रिकॉर्डिंग खुद सुनिए। आपको समझ आने लगेगा कि साफ और स्पष्ट बातें कितना ज्यादा असर करती हैं। इस तरह आप एक बेहतरीन और नेचुरल लगने वाली सेल्स पिच बना सकते हैं जो सुनने वाले पर असर करे।

आपके ईमेल और दूसरे कम्युनिकेशन भी सबसे अलग लगने चाहिए।
अब फोन के अलावा भी किसी तक पहुंचने के बहुत से तरीके हैं। इन पर भी अच्छी तरह काम करना चाहिए। इनमें ईमेल का नाम काफी ऊपर आता है। रिटन मोड भले ही वर्बल मोड की तरह काम करें पर इनको तैयार करना थोड़ा अलग होता है। इसमें इंट्रोडक्शन, बॉडी और कॉन्क्लूजन ये तीन लेवल होते हैं। शुरुआत में आपको लिखना चाहिए कि कंपनी आपके प्रोडक्ट के बारे में क्यों विचार करे। आगे लिखना चाहिए कि इससे कंपनी का क्या फायदा होगा। इसमें आप डेटा भी दे सकते हैं। जैसे कि एक लिस्ट या टेबल दिया जा सकता है कि दूसरी कंपनियां आपसे जुड़कर कैसे फायदा पा रही हैं। आखिर में ये लिखिए कि भविष्य में आप उस कंपनी को कितना आगे ले जा सकते हैं। यहां भी किसी टिपिकल सेल्सपर्सन की तरह पीछे पड़ने या "आपका बहुत आभार" जैसे शब्दों से बचना चाहिए। प्रपोजल जितना कम शब्दों में हो उतना असरदार होगा। 

ईमेल के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोग अक्सर उनको पढ़े बिना ही डिलीट कर देते हैं। डिसीजन मेकर्स के असिस्टेंट तो रूटीन में उनका मेल बॉक्स खाली करते हैं। इसलिए ईमेल की सब्जेक्ट लाइन सबसे खास होती है। अगर ये पढ़ने वाले को अट्रैक्ट कर गई तो वो मेल पर एक नजर जरूर डालेगा। वरना तो डिलीट का ऑप्शन है ही। इस लाइन में अपनी कंपनी या प्रोडक्ट का नाम न लिखें। वरना ये स्पैम जैसा दिखता है। यहां अपने रेफरेंस को मेंशन करना एक अच्छा आइडिया है। या फिर की पाइंट लिख सकते हैं। जैसे "बिना छंटनी किए कॉस्ट कटिंग कैसे करें?" 

मेल की अपीयरेंस भी अलग तरह की होती है। लोगों को सबसे पहले इनका प्रिव्यू नजर आता है। इसलिए ये बहुत जरूरी है की प्रिव्यू में वो नजर आए जो आपकी खासियत है। यानि ईमेल 150 शब्द से ज्यादा नहीं होने चाहिए। आपका फ्यूचर क्लाइंट इस बात पर मुश्किल से बीस सेकंड देता है कि उसे आपकी मेल पढ़नी भी है या नहीं। यानि आप जो भी लिखें वो बस इतना ही हो जिसे कोई बीस सेकंड के अंदर देख ले। अब तक आपने ये तो सीख लिया कि कंपनी के दरवाजे तक कैसे पहुंचना है। आगे आप पढ़ेंगे कि डिसीजन मेकर्स से मुलाकात होने पर किस तरह से बात करनी है।

डिसीजन मेकर्स तक पहुंचना बिल्कुल वैसा ही है जैसे हर्डल रेस को पार करना। अपने फ्यूचर क्लाइंट्स को दर्जनों कोल्ड कॉल और ई मेल करना आपके लिए रोज की बात हो जाएगी। लेकिन आपको इस बात के लिए भी तैयार रहना चाहिए कि कोई उसी वक्त भी रिस्पांस दे सकता है। यानि अगर उसके पास कोई सवाल हों तो आपके जवाब तैयार रहने चाहिए। अगर उस वक्त आपने गड़बड़ कर दी तो समझिए खेल खत्म। 

डिसीजन मेकर्स के बारे में पता करने के बाद अगली रुकावट होती है उनसे पहली बार बात करना। किसी को फोन करने से पहले थोड़ा रिहर्सल कर लें। खुद को मोटिवेट करें और मूड अच्छा कर लें। इस तरह आप एक रिदम में आ जाते हैं। अगर किसी ने फोन पर बातचीत करनी शुरु कर दी तो आप भी बढ़िया ढंग से अपनी बात रख पाएंगे। कभी भी सबसे बड़े क्लाइंट के साथ अपनी शुरुआत न करें। पहले कुछ छोटे क्लाइंट्स से बात करें। ये ट्रिक आपको अच्छी प्रैक्टिस देगी। इस तरह बड़े क्लाइंट तक पहुंचते पहुंचते आप खुद को अच्छी तरह निखार लेंगे। अब तक आपने जो भी सीखा है उसको अप्लाई करें ताकि आपकी बातचीत बेहतरीन हो। सबसे पहले सामने वाले की नजरों में अपनी जगह और महत्व बनाएं। उसका इंट्रेस्ट डेवलप करें। फिर कुछ सवाल जवाब शुरू करें। अगर आप कस्टमर सर्विस जैसा कुछ बेच रहे हैं तो कह सकते हैं कि "कस्टमर सर्विस उन कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है जो अनस्टेबलिटी के दौर से गुजर रही हैं। आपने पिछले महीने ही कुछ नई पॉलिसी लागू की हैं। क्या इसके बाद आपको अपनी कस्टमर सर्विस में कुछ बदलाव नजर आया?" 

इन लोगों ने अपने करियर में ढेरों सेल्सपर्सन से बात की होगी। इसलिए आपको भी एक रटा रटाया रिस्पांस मिलने की पूरी उम्मीद है। अगर आप बस अपनी या प्रोडक्ट की तारीफों के पुल बांधते रहेंगे या उनके काम की बात नहीं करेंगे तो उनको लगेगा कि आप बस टाइम वेस्ट कर रहे हैं और वो आपको "अभी हमारे पास बजट नहीं है" या "हमारे पास ऑलरेडी अच्छा डीलर है" जैसे स्टैंडर्ड जवाबों के साथ टाल देंगे। अगर बातचीत इसी रास्ते पर जाती दिखे तो वापस पाइंट पर आइए। उनकी जरूरतों पर बात कीजिए। अपनी रिसर्च का डेटा दीजिए। क्योंकि अक्सर लोग पीछा छुड़ाने के लिए ये भी बोल देते हैं कि "हमें अपने प्रोडक्ट के बारे में और बताइए।" इसलिए बढ़ चढ़कर बोलते जाने से अचछा है आप उनको ये समझाएं कि आप उनके लिए क्या वैल्यू एड कर सकते हैं और क्या फायदा करवा सकते हैं।

लोगों से कॉन्टेक्ट कर पाना काफी मुश्किल है पर अगर आपने इस मुश्किल का सामना कर लिया तो आप बड़े फायदे में रहेंगे।
आप ये तो समझ गए हैं कि नए क्लाइंट्स तक पहुंच पाना इतना भी आसान नहीं है। इसके लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती है। आपको कई जगह से खाली हाथ लौटना पड़ेगा। पर आपको निराश नहीं होना है। अपना फोकस बनाए रखिए और कोशिश करते रहिए। हो सकता है आपको हर बार डिसीजन मेकर्स के असिस्टेंट से ही बात करनी पड़े। इनको जिल गेटकीपर कहती हैं। ऐसे में इसे ही एक बेहतरीन मौका समझकर जी जान से अपनी ताकत लगा दीजिए। एक गेटकीपर ये अच्छी तरह समझ सकता है कि आप उनके किसी काम के हैं या नहीं। इसलिए आप उनको हल्के में न लें। उनको भी उतना अटेंशन दें जितना डिसीजन मेकर्स को देना चाहिए। उनके साथ चालाकी न करें। हो सकता है आप एक दो बार उनको चकमा देकर अपना काम बना लें। पर आगे जाकर ये आप पर भारी ही पड़ेगा। उनसे साफ-साफ बस ये बता दें कि आपसे बात करके उनके बॉस का क्या फायदा होगा। गेटकीपर के साथ दोस्ताना व्यवहार करें। उनको इज्जत दें और एक हँसी मज़ाक का माहौल बनाकर रखें। आप हर बार अपने प्रोडक्ट की कोई नई बात रखिए। एक ही बात बार-बार सुनकर कोई भी बोर हो जाएगा। सुनने वाले को ये भी लगने लगेगा कि आपके प्रोडक्ट में ज्यादा दम ही नहीं है। लेकिन अपनी पिछली बातचीत या मेल का रेफरेंस जरूर दें। इस तरह गेटकीपर आपको पहचानने और याद रखने लग जाता है। हो सकता है इसके बाद वो अपनी तरफ से भी आपकी मदद करने का सोचे। बहुत कोशिश के बाद भी सफलता आती न दिखे तो किसी दूसरे क्लाइंट को अप्रोच करने का सोचें। तीन से चार महीने तक भी रिस्पांस न मिलने का मतलब ये भी हो सकता है कि कंपनी को आपके प्रोडक्ट की जरूरत ही नहीं है या ये सही वक्त नहीं है। हो सकता है वो आगे इसे लेने का सोचें। तब तक आप भी आगे बढ़ना जारी रखें। फिर भी हर तिमाही में एक बार फॉलो अप जरूर करें। हो सकता है अब कंपनी ने नई पॉलिसी बनाई हो और ये आपके लिए सही वक्त हो। तीन महीनों में एक बार डिसीजन मेकर्स को कोई न कोई नई जानकारी देते रहें। ताकि उनको पता चलता रहे कि आप क्या अपडेट करते रहते हैं। अगर कंपनी ऐसे किसी प्रोडक्ट को लेने का सोच रही होगी तो आपको बुलावा आ सकता है। अगर कंपनी ऐसा कुछ प्लान न भी कर रही हो तो भी एक ईमेल भेजने में आखिर क्या जाता है। इतने बड़े फायदे के चांस के आगे तो ये कुछ भी नहीं है।

अब अपनी पहली मीटिंग के लिए तैयारी का समय है।

फोन, ईमेल और गेटकीपर जैसी हर स्टेज को पार करते-करते एक ऐसा समय आता है जब आप पहली बार किसी डिसीजन मेकर से मिलने जा रहे होते हैं। ये सुनहरा मौका होता है। आप इस मौके का पूरा फायदा उठा सकें इसके लिए बहुत जरूरी है कि मीटिंग की अच्छी तरह तैयारी की जाए। यहां पर भी इस गल्ती के पूरे चांस होते हैं कि आप मुद्दे से भटककर बस प्रोडक्ट की तारीफों में उलझ जाएं। किसी भी डिसीजन मेकर के लिए प्रोडक्ट बस एक टूल है। उनका सबसे ज्यादा ध्यान आउटपुट और रिजल्ट पर होता है। इसलिए आप भी अपना फोकस वहीं रखें। अपनी बॉडी लैंग्वेज पर भी ध्यान दें। जब सामने वाला बोल रहा हो तो थोड़ा पीछे की तरफ टिककर ध्यान से उसकी बात सुनें। अगर आप सामने की तरफ झुकते हैं तो बार-बार आपको अपनी बात बोलने का ख्याल आता रहेगा। आपकी कोशिश यही रहनी चाहिए कि डिसीजन मेकर अपनी बातें (जो कि ज्यादातर उनकी परेशानियां ही होंगी) खुलकर रखे। क्योंकि इसके बाद जब आप उनको इन परेशानियों का हल बताएंगे तो आपकी बात का वजन बढ़ जाएगा। इसलिए आपको इधर उधर की बातों की जगह जितनी जल्दी हो काम की बात पर आ जाना चाहिए। अपने पुराने क्लाइंट्स के उदाहरण देते हुए बातचीत शुरू करें और सामने वाले को ये समझाएं कि आप उनको क्या ऑफर कर रहे हैं और इसमें उनका क्या फायदा है। अब उनसे इस तरह के सवाल पूछें कि आपको उनकी जरूरतों के बारे में और जानकारी मिल सके। बातचीत खत्म करते हुए एक बार समरी दोहरा लें। उनको सुझाव दें कि अगला कदम क्या होना चाहिए। अपने सवालों की लिस्ट तैयार करना इतना भी आसान नहीं है जितना आसान लगता है। मार्केटिंग राइटर नील रैकहम की स्टडी ये कहती है कि एक बेहतर और एवरेज सेल्सपर्सन के बीच सबसे बड़ा अंतर उनके सवाल ही होते हैं। यहां आपकी रिसर्च ही आपके काम आती है। इससे आप अच्छी शुरूआत कर सकते हैं। लेकिन अब इससे आगे बढ़कर इनको डीटेल में समझने की जरूरत है ताकि आप उनको कोई पक्का हल भी दे सकें। 

अपने सवालों की लिस्ट बनाते समय इन तीन पाइंट्स का ध्यान रखें

• डिसीजन मेकर्स से कंपनी की परेशानियों के बारे में पूछें

• ये समझें कि आखिर ये परेशानी कंपनी के लिए इतनी बड़ी क्यों है

• सही उपाय बताएं 

कॉर्पोरेट डिसीजन मेकर्स से मिलना, उनसे बात करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन वे भी तो हमारे जैसे ही लोग हैं। आपने जो कुछ भी पढ़ा और सीखा उस पर अमल करके आप आज नहीं तो कल कामयाब जरूर होंगे।

कुल मिलाकर
बड़े क्लाइंट बनाने का तरीका बस इतना ही है कि आप किस तरह डिसीजन मेकर्स का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं। इसके लिए आपको अच्छी खासी तैयारी करनी पड़ती है। लगातार कोशिश करनी पड़ती है। सब्र बनाकर रखना पड़ता है और उनके सामने एक अच्छा और सूटेबल प्रपोजल रखना पड़ता है। अगर आप ये कर पाते हैं तो अपनी मंजिल पा सकते हैं। 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Selling To Big Companies By Jill Konrath 

ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com  पर ईमेल करके ज़रूर बताइये. 

आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे. 

अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं. 

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Keep reading, keep learning, keep growing.


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