Ted Coiné and Mark Babbit
जिन्दा रहने के लिए कंपनियों को किस तरह खुद को ढ़ालना होगा।
दो लफ्जों में
अ वर्ल्ड गान सोशल (A World Gone Social) में हम देखेंगे कि सोशल मीडिया के आ जाने से कंपनियों के काम करने का तरीका किस तरह से बदल गया है। यह किताब बताती है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर के एक कंपनी किस तरह से अपने ब्रैंड को मजबूत बना सकती है। साथ ही यह किताब सोशल मीडिया के खतरों के बारे में भी बताती है जिससे बचकर एक कंपनी अपनी मार्केटिंग के लाखों डॉलर और अपनी इमेज को बचा सकती है।
यह किसके लिए है
-वे जो बिजनेस की दुनिया में सोशल मीडिया से आए बदलाव के बारे में जानना चाहते हैं।
-वे जो आन्त्रप्रिन्योर हैं।
-वे जो मार्केटिंग के स्टूडेंट हैं।
लेखक के बारे में
टेड कोइने ( Ted Coiné ) Meddle.it के चीफ रिलेशनशिप आफिसर हैं। वे इंक के 100 सबसे अच्छे स्पीकर्स में से एक हैं। उन्होंने अब तक बहुत सी कंपनियों की शुरुआत की है और तीन बार कंपनियों के सीईओ रह चुके हैं। वे फोर्ब्स मैगज़ीन के टाप 10 सोशल मीडिया पावर इंफ्लुएंसर और इंक के टाप 100 लीडरशिप एक्सपर्ट्स में से एक हैं।
मार्क बैबिट ( Mark Babbit ) यूटर्न नाम की कंपनी के सीईओ और फाउंडर हैं। यूटर्न कैरियर की शुरुआत करने वाले लोगों के लिए एक सोशल कम्युनिटी है। बैबिट एक लेखक और एक सोशल मीडिया एक्सपर्ट भी हैं।
सोशल मीडिया काम करने के तरीकों को बदल रहा है और आपको इस बदलाव को अपनाना होगा।
बहुत से लोग यह मानते हैं कि पुरानी चीजों से बेहतर कुछ भी नहीं होता। उनका मानना है कि हम जिस तरह से 1000 साल पहले काम करते थे, हमें उसी तरह से आज भी काम करना चाहिए। इस तरह के लोग जब कोई नया ट्रेंड देखते हैं, तो वे उसे "चार दिन की चाँदनी" समझ कर अनदेखा कर देते हैं। बहुत से लोग अपने बिजनेस में सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह ट्रेंड भी कुछ समय के बाद खत्म हो जाएगा।
लेकिन ऐसा नहीं होने वाला है। यहाँ पर चीजें हमेशा बदलती रहती हैं और जो खुद को बदलते हालात में ढ़ाल पाता है वही जिन्दा रह पाता है। इस जमाने में जो कंपनियां सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही हैं, वे अपने फायदों को और अपने ब्रैंड इमेज को सुधार पा रहीं हैं। जो कंपनियां इसका इस्तेमाल नहीं कर रही हैं, वे समय के साथ गायब हो रहीं हैं।
यह किताब बताती है कि किस तरह से आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते हैं। साथ ही यह किताब बताती है कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल से किस तरह से आप नए कर्मचारियों को खोज सकते हैं और अपने कंपनी के कल्चर को बेहतर बना सकते हैं।
आपको लगता होगा कि सोशल मीडिया का इस्लोग सिर्फ एक दूसरे की फोटो और वीडियो देखने के लिए करते हैं। लेकिन सोशल मीडिया का हमारी जिन्दगी पर आज इससे कहीं गुना ज्यादा असर हो रहा है।
एक्साम्पल के लिए पहले के वक्त में कंपनियां अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने के लिए बड़ी कंपनियों को पैसे देती थीं। लेकिन आज के वक्त में बहुत से ब्लॉगर्स, यूट्यूबर्स और इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर्स ने उनसे उनका काम छीन लिया है। ब्लॉगर्स, यूट्यूबर्स और इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर्स के पास आज लाखों की फालोविंग है और उनके एक रिव्यू से इन कंपनियों के बहुत से प्रोडक्ट बिक जाते हैं।
कुछ कंपनियाँ अपने नए प्रोडक्ट्स के सैंपल इन ब्लॉगर्स, यूट्यूबर्स और इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर्स को भेजती हैं ताकि वे इसका रिव्यू कर सकें। इस तरह से आज के वक्त में सोशल मीडिया की वजह से प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने में बहुत बदलाव आया है।
सिर्फ यही नहीं, आज कंपनियों को अपने ग्राहकों और कर्मचारियों को खुश रखने के लिए ज्यादा काम करना पड़ रहा है। अगर कंपनी के ग्राहक कंपनी के प्रोडक्ट से खुश नहीं रहेंगे, तो वे आनलाइन जाकर अपना गुस्सा निकाल सकते हैं। सोशल मीडिया पर चीजें वाइरल हो जाती हैं और अगर एक ग्राहक भी प्रोडक्ट का नेगेटिव रिव्यू दे दे, तो कंपनी की इमेज खराब हो सकती है।
साथ ही कंपनियां आज अपने कर्मचारियों को भी अच्छी सुविधा दे रही हैं। कंपनियों को अच्छे कर्मचारी चाहिए जो कि उनके लिए काम कर सकें। काबिल कर्मचारी कंपनी में नौकरी लेने से पहले यह देखेंगे कि कंपनी उन्हें किस तरह की सुविधाएं दे रही है।
इसके लिए वे सोशल मीडिया पर कंपनी के दूसरे कर्मचारियों से बात कर सकते हैं। अगर आपके कर्मचारी आपकी कंपनी में काम कर के खुश नहीं हैं, तो वे उन्हें नेगेटिव फीडबैक देंगे, जिससे वे काबिल लोग आपकी कंपनी में काम नहीं करना चाहेंगे।
इस तरह से सोशल मीडिया आज हर किसी के काम करने का तरीका बदल रहा है।
आज कंपनियों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने हर ग्राहक को खुश रखें।
पहले के वक्त में अगर एक ग्राहक को आपका प्रोडक्ट पसंद ना आए, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। लेकिन आज के वक्त में एक असंतुष्ट ग्राहक आपकी मार्केटिंग के लाखों रुपए बर्बाद करने की ताकत रखता है।
जैसा हमने पहले देखा, सोशल मीडिया के जरिए अपनी राय को लोगों तक पहुंचाना बहुत आसान हो गया है। अगर आप बहुत ज्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं, तो आपको पता होगा कि यहाँ पर हर दिन कोई न कोई चीज़ वाइरल होती रहती है। अगर एक ग्राहक आपके खराब प्रोडक्ट या सर्विस से नाराज होकर सोशल मीडिया पर नेगेटिव रिव्यू डाल दे, तो इससे आपकी कंपनी की इमेज खराब हो सकती है, जिसे शायद आप कभी रिपेयर नहीं कर पाएंगे।
एक्साम्पल के लिए डेव कैराल को ले लीजिए। डेव युनाइटेड एयरलाइन से अपनी गितार लेकर कहीं जा रहे थे। एयरपोर्ट पर कर्मचारियों ने चेकिंग करने के लिए उनका सामान उनसे ले लिया। डेव ने देखा कि वहां के कर्मचारी उनके गितार के साथ खिलवाड़ कर रहे थे। वे उसे एक दूसरे को हवा में उछाल कर दे रहे थे। जब चेकिंग के बाद डेव को उनकी गितार मिली, तो वो टूट चुकी थी।
डेव ने युनाइटेड से शिकायत की और कहा कि वे उसे नई गितार दें। लेकिन उनकी शिकायत किसी ने नहीं सुनी। इसके बाद डेव ने एक गाना बनाया - "युनाइटेड ब्रेक्स गितार", जो कि युट्यूब पर 14 मिलियन बार सुना गया।
अगर युनाइटेड ने डेव के टूटे हुए गितार की भरपाई कर दी होती, तो उसकी इमेज को इतना नुकसान नहीं पहुंचता। डेव के उस एक गाने के वाइरल होने की वजह से युनाइटेड को अपनी पालिसी बदलनी पड़ी।
हाँ, यह जरूरी नहीं है कि हर ग्राहक का नेगेटिव रिव्यू वाइरल हो जाए। लेकिन क्योंकि सोशल मीडिया से आज काफी लोग जुड़े हुए हैं, एक व्यक्ति के पोस्ट को बहुत से दूसरे लोग देख सकते हैं। इस तरह से हर ग्राहक आपकी की इमेज को कुछ हद तक तो नुकसान पहुंचा सकता है।
अपने ग्राहकों और कर्मचारियों से सोशल मीडिया के जरिए बात कर के आप अपनी ब्रैंड इमेज को सुधार भी सकते हैं। अगर सोशल मीडिया एक कंपनी की इमेज को बर्बाद कर सकता है, तो वो उस इमेज को बना भी सकता है। अगर किसी कंपनी की काली करतूत सोशल मीडिया पर वाइयल होकर उसकी मार्केटिंग के लाखों डॉलर बरबाद कर सकती है, तो उसके अच्छे काम सोशल मीडिया पर वाइयल होकर उसकी मार्केटिंग के लाखों डॉलर बचा भी सकते हैं।
इसके लिए आपको अपने कर्मचारियों और ग्राहकों को खुश रखने के तरीके खोजने होंगे। जब आपके कर्मचारी खुश रहते हैं, तो वो कंपनी में दूसरे काबिल कर्मचारियों को लेकर आते हैं। सिर्फ यही नहीं, खुश रहने से वे कंपनी के लिए अच्छे से काम कर पाते हैं, जिससे कंपनी की प्रोडक्टिविटी बढ़ती है, सेल्स और फायदे बढ़ते हैं। इस तरह से कर्मचारियों को खुश रखने वाली कंपनी लम्बे समय में कामयाब रहती है क्योंकि उसका क्लचर अच्छा बना रहता है।
ऐसा करने के लिए आपको अपने कर्मचारियों के साथ समय समय पर सोशल मीडिया के जरिए बात करनी चाहिए। आपको उनकी समस्याओं को सुनना चाहिए और उसे सलझाने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही आपको उन्हें उनके काम के लिए शाबाशी भी देनी चाहिए। इससे उनका हौसला मजबूत होगा और वे आपके लिए मन लगाकर काम भी कर पाएंगे।
ग्राहकों के साथ बात करने से भी आपको कुछ इसी तरह के फायदे मिलते हैं। जब आप ग्राहकों से बात कर के उनकी परेशानी सुनते हैं और उसे सुलझाने की कोशिश करते हैं, तो वे ग्राहक आपकी कंपनी का गुणगान पूरे शहर में और पूरे इंटरनेट पर करते फिरते हैं।
एक्साम्पल के लिए रिट्स कार्लटन होटल को ले लीजिए। एक बार वहाँ पर एक परिवार आकर रुका था। सुबह जब वे होटल छोड़कर चले गए, तो उन्होंने ध्यान दिया कि उनके बेटे का जिराफ वाला खिलौना होटल में ही छूट गया है। उनके बेटे को अपने उस जिराफ से बहुत प्यार था, इसलिए उस परिवार ने रिट्स कार्लटन को फोन किया और उस जिराफ को लौटाने के लिए कहा।
इसपर रिट्स कार्लटन के कर्मचारियों ने उस परिवार से कहा कि उन्हें उनका जिराफ मिल गया है और वो उसका अच्छा खयाल रख रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे उसके जिराफ को स्पा में मसाज दे रहे हैं, स्विमिंग पूल के किनारे धूप दे रहे हैं और उसकी अच्छी देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने इन सारी चीजों की फोटो भी शेयर की, जिसमें वो जिराफ कभी पूल के किनारे बैठा मिलता, तो कभी स्पा में।
वो परिवार रिट्स कार्लटन के इस काम से बहुत खुश हुआ। आज उनका यह एक्साम्पल बिजनेस की दुनिया में बहुत फेमस है, जिससे उनके मार्केटिंग के बहुत से पैसे बच गए।
छोटी कंपनियां बदलते मार्केट में हालात में खुद को तेजी से ढ़ाल सकती हैं।
जब कंपनियां बड़ी हो जाती हैं, तो वहाँ पर काम बहुत धीरे होने लगता है। उसमें बहुत से डिपार्टमेंट बन जाते हैं और हर डिपार्टमेंट में बहुत से लेवेल बन जाते हैं। एक बदलाव को हर जगह हर लेवेल पर लागू कर बहुत मुश्किल होता है जिससे बड़ी कंपनियां तेजी से खुद में बदलाव नहीं कर पाती हैं। छोटी कंपनियां इस मामले में आगे हैं। वे बहुत से आइडियाज़ को लागू कर के यह देख सकती हैं कि कौन सा आइडिया काम कर रहा है और उसके हिसाब से खुद में बदलाव ला सकती हैं। एक्साम्पल के लिए ग्रोथ हैकिंग टीवी को ले लीजिए जो कि एक छोटी मार्केटिंग कंपनी है।
इस कंपनी में हर प्रोजेक्ट के लिए एक टीम बनाई जाती है। इस टीम को नैनो-कार्प्स कहा जाता है। उस प्रोजेक्ट में जिस भी काम की जरूरत होगी, उनके हिसाब से एक व्यक्ति को टीम में शामिल किया जाता है। जब तक वो प्रोजेक्ट पूरा नहीं होता, तब तक वे सारे लोग मिलकर काम करते हैं।
प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद टीम फिर से अलग हो जाती है। फिर जब कंपनी को कोई दूसरा प्रोजेक्ट मिलता है, तो उस प्रोजेक्ट की जरूरतों के हिसाब से लोगों को काम पर रखा जाता है। इस तरह से वे अपने हर क्लाइंट की जरूरत के हिसाब से एक टीम तैयार करते हैं और उन्हें अच्छी सर्विस देते हैं।
मूवीज़ में यह तरीका बहुत समय से अपनाया जा रहा है। हर मूवी में अलग अलग एक्टर्स और डाइरेक्टर्स को काम पर रखा जाता है। जब मूवी पूरी हो जाती है, तो वे लोग अलग हो जाते हैं और दूसरी फिल्मों पर काम करने लगते हैं। इस तरह की छोटी टीम को मैनेज करना बहुत आसान होता है और इसमें बदलाव करना भी आसान होता है। हम हर नए प्रोजेक्ट के हिसाब से नए लोगों को काम पर रखते हैं और लोगों को भी हर बार कुछ नया करने के लिए मिलता है। इससे वे नए प्रोजेक्ट में एक नए उत्साह के साथ शामिल होते हैं और बेहतर नतीजे पैदा कर पाते हैं।
एक कंपनी को अपने कर्मचारियों को फैसले लेने की ताकत देनी चाहिए। जैसा कि हमने देखा, एक बड़ी कंपनी को खुद में बदलाव करने में बहुत समस्या होती है क्योंकि उसमें बहुत से लेवेल होते हैं। अगर हम इन लेवेल्स को खत्म कर दें, तो एक कंपनी खुद में तेजी से बदलाव कर पाएगी।
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक कंपनी में कुछ कर्मचारी होते हैं और उन कर्मचारियों को मैनेज करने का काम मैनेज कर होता है। जब कर्मचारी कोई समस्या देखता है, तो वो उसके बारे में अपने मैनेजर को बताता है, मैनेजर उसे डिपार्टमेंट के हेड को बताता है, हेड उसे सीईओ को बताता है। सीईओ उस समस्या को सुलझाने के लिए फैसला लेता है। लेकिन अगर हम कर्मचारियों को यह ताकत दे दें कि वे कुछ समस्याओं को सुलझाने के लिए खुद से फैसले ले सकते हैं, तो इससे कंपनी का बहुत सारा समय बच सकता है।
इसका एक दूसरा फायदा यह होता है कि जब कर्मचारी यह देखते हैं कि उनके पास भी फैसले लेने की ताकत है, तो वे मन लगाकर और अपने काम की जिम्मेदारी लेकर काम करना शुरू करते हैं। अगर उनसे कोई गलती हो जाती है, तो यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस गलती को सुधारें।
एक्साम्पल के लिए वैल्व ( Valve ) नाम की एक गेमिंग कंपनी को ले लीजिए, जिसमें 400 कर्मचारी काम करते हैं। यहाँ के कर्मचारी जब भी कोई समस्या देखते हैं, वे मैनेजर से बिना बात किए उस समस्या को सुलझाने की कोशिश करते हैं। उनके कल्चर में हर कर्मचारी इस बात को समझता है कि उनके काम से कंपनी को फायदा होना चाहिए। कर्मचारी यह समझते हैं कि कंपनी उनकी परवाह तो करती है, लेकिन उसके लिए उसके फायदे भी जरूरी हैं क्योंकि इन्हीं फायदों से वो खुद के कामयाब बना पाएगी।
लेकिन यहां पर एक समस्या है- अगर किसी कंपनी में मैनेजर होंगे ही नहीं, तो उस कंपनी में सारे लोग अपने मन से काम करने लगेंगे और कंपनी में उथल-पुथल मच जाएगी। इस समस्या से निपटने के लिए आप एक ऐसे व्यक्ति को काम पर रखिए जो यह देख सके कि सब कुछ अच्छे से हो रहा है या नहीं। यह व्यक्ति मैनेजर नहीं होगा और ना ही यह लोगों पर हुकुम चलाएगा। यह व्यक्ति लोगों को याद दिलाता रहेगा कि कंपनी का मकसद क्या है और कौन से बदलाव हैं जो उस मकसद को पूरा नहीं करेंगे।
साथ मिलकर काम करने से लोग अपनी जानकारी को बाँट सकते हैं और अच्छे नतीजे पैदा कर सकते हैं।
हम में से बहुत से लोग हैं जो एक खास टापिक के बारे में जानकारी रखते हैं। हम उसमें एक्सपर्ट नहीं होते, लेकिन उसके बारे में अपने आस पास के दूसरे लोगों से ज्यादा जानते हैं। इसी तरह से हर व्यक्ति है जो एक टापिक के बारे में जानकारी रखता है। अगर यह सारे लोग एक साथ इकट्ठा हो जाएं, तो ये अपनी जानकारी को एक दूसरे से बाँट सकते हैं और अपनी समस्या को आसान से सुलझा सकते हैं।
सोशल मीडिया हमें यह करने की सुविधा देता है। यहाँ पर बहुत से ऐसे फोरम और ग्रुप्स हैं जहां पर एक खास टापिक के बारे में जानने वाले लोग इकट्ठा होते हैं और अपनी जानकारी को बाँटते हैं। जरूरत पड़ने पर कोई भी व्यक्ति इस फोरम में जाकर अपनी समस्या लोगों को बता सकता है और लोग उसे उसकी समस्या सुलझाने के लिए समाधान देते हैं।
हाँ, सारे लोग एक्सपर्ट नहीं होते हैं, लेकिन अगर सारे लोग साथ मिलकर काम करें, तो वे बड़े काम को अनजाम दे सकते हैं। सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे लोग जरूर होंगे जो उस दौर से गुजर चुके होंगे जिससे आप गुजर रहे हैं और यह लोग आपको आपकी समस्या का समाधान दे सकते हैं।
एक्साम्पल के लिए इनोसेंटिव ( InnoCentive ) को ले लीजिए। यह कंपनी अपने क्लाइंट्स के लिए नए आइडियाज़ पैदा करने के लिए सोशल मीडिया कान्टेस्ट का इस्तेमाल करती है। एक बार उसने सोशल मीडिया पर एक चैलेंज दिया था - कपड़े धोने का एक ऐसा तरीका बताओ जिससे उसमें झुर्रियां ना पड़ें, कपड़े को नुकसान भी ना हो और हमें लिक्विड डिटर्जेंट का इस्तेमाल भी ना करना पड़े। कान्टेस्ट जीतने वाले को $40,000 का ईनाम दिया जाने वाला था।
कुछ 600 लोगों ने अलग अलग तरीके सब्मिट किए। इस तरह से इनोसेंटिव के क्लाइंट ने रिसर्च और डेवेलप्मेंट पर बहुत सारा पैसा बचाया और दूसरों की जानकारी का इस्तेमाल कर के अपना प्रोडक्ट बना लिया। बदले में आइडिया देने वाले को $40,000 का ईनाम दे दिया गया।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर के कोई भी कंपनी फायदा कमा सकती है। आप यह सोच रहे होंगे कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल हर बिजनेस नहीं कर सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल हर वो बिजनेस कर सकता है जिसके ग्राहक सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं। अब क्योंकि दुनिया के लगभग 2 अरब लोग सोशल मीडिया पर हैं और यह 2 अरब लोग लगभग हर तरह के प्रोडक्ट को इस्तेमाल करते हैं, तो हर बिजनेस सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर के फायदा कमा सकता है।
एक्साम्पल के लिज पीटर एसीटो को ले लीजिए जो कि टैंजेरीन नाम के एक बैंक के सीईओ हैं। एक बार उनके बैंक के किसी ग्राहक ने ट्विटर पर शिकायत कर के कहा कि टैंजेरीन ने उसका पेपरवर्क अच्छे से नहीं किया जिससे उसके बिजनेस को नुकसान हो गया है। इसपर पीटर ने उसे तुरंत रिप्लाई किया और कुछ ही मिनटों में उसकी समस्या सुलझाई।
अक्सर कंपनियां इस तरह से काम नहीं करतीं हैं। अगर आपको कोई समस्या है, तो आप अपनी शिकायत कस्टमर केयर पर करते हैं और इसके बाद कंपनी उस समस्या को सुलझाती है। लेकिन यहां पर पीटर ने सोशल मीडिया के जरिए अपने ग्राहकों तक पहुंच कर उनसे जुड़ने की और उनकी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की। इस तरह के लीडर्स को सोशल लीडर्स कहा जाता है।
सोशल लीडर बनने से आप ग्राहकों को वफादार बनाते हैं और बड़ी कंपनियों से प्रतियोगिता कर पाते हैं। इससे आपके ग्राहक आपसे इतना प्यार करने लगते हैं कि वे आपके बारे में दूसरों को बताने लगते हैं। इससे आपकी फालोविंग बढ़ती है और फालोविंग के साथ ही आपके ग्राहक भी बढ़ते हैं।
लेकिन सोशल लीडर होने का सिर्फ यही फायदा नहीं है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर के आप अपने कंपनी के अंदर के भी हालात सुधार सकते हैं। एक्साम्पल के लिए फिर से टैंजेरीन को ले लीजिए। यहाँ पर एक ब्लॉग चलता है जिसका नाम है - द राइट टु बिच ( The Right to B*@#h )। कंपनी के कर्मचारी इस ब्लॉग पर जाकर कंपनी की समस्याओं के बारे में खुलकर लिख सकते हैं। इस ब्लॉग की मदद से कर्मचारी खुलकर सभी को यह बता पाते हैं कि कहाँ पर सुधार की जरूरत है।
इस तरह से सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर आप अपने ग्राहकों के साथ अपने रिश्ते साथ अपने कंपनी के कल्चर को भी अच्छा बना सकते हैं।
सोशल मीडिया पर अपना ब्रैंड बनाने के लिए कुछ बातों का खास ध्यान दीजिए।
आपको समय समय पर यह चेक करते रहना चाहिए कि कहीं आप सोशल मीडिया पर कुछ गलतियां तो नहीं कर रहे हैं। अक्सर कंपनी के किसी एक मैसेज का मतलब लोग गलत तरह से निकालने लगते हैं और उससे एक कंपनी की इमेज खराब हो सकती है। इसलिए आपको कुछ बातों का खयाल रखना चाहिए।
सबसे पहले अपने सोशल मीडिया प्लैटफार्म की प्रोफाइल पर अपनी फोटो, ब्रैंड मैसेज, रंग, फंट और स्कीम को एक जैसा रखिए। इससे लोग आपको हर जगह आसानी से पहचान पाएंगे।
साथ ही आप अपने निच से जुड़े रहिए। जब आप सोशल मीडिया पर जाएंगे तो आप बहुत से लोगों को बहुत से काम करते हुए देखेंगे। ऐसे में आपका भी मन कर सकता है कि आप भी उन कामों को ट्राई करें। लेकिन आप एक निच को लीजिए और उसी के साथ चिपके रहिए। इससे आप सही ग्राहकों और कर्मचारियों को अपनी तरफ आकर्षित कर पाएंगे।
जब आपका सामना किसी परेशानी से हो, तो उसे एक मौके की तरह देखने की कोशिश कीजिए। जब आप किसी ग्राहक का नेगेटिव फीडबैक देखें, तो उसकी समस्या को सुलझाने की कोशिश कीजिए और साथ ही उससे फीडबैक लेकर अपनी कंपनी के काम करने के तरीकों में बदलाव भी कीजिए।
सबसे जरूरी बात - अपने सोशल मीडिया पर एक्टिव रहिए। अपने ग्राहकों से और कर्मचारियों से बात करते रहिए। अगर आप उनके सवालों का जवाब देने में देरी करेंगे, तो लोग आप से दूर भागने लगेंगे। अपने ग्राहकों को एंगेज रखने के लिए उनके सवालों का जवाब तुरंत दीजिए।
अपने ब्रैंड ने संबंधित कीवर्ड्स को मानिटर करते रहिए। यह देखते रहिए कि कहीं उन कीवर्ड्स का इस्तेमाल गलत तरह से तो नहीं हो रहा है। कीवर्ड्स पर नजर रखने से आप अपनी प्रतियोगिता के बारे में भी जान पाएंगे।
कभी भी कंप्यूटराइज्ड मैसेज मत सेंड कीजिए। लोगों को आसानी से पता लग जाता है कि वे एक रोबोट से बात कर रहे हैं या फिर एक इंसान से। अगर वे यह देखेंगे कि आप खुद ना बात करके कंप्यूटराइज्ड मैसेज के जरिए बात कर रहे हैं, तो वे सोचेंगे कि आप उन्हें लेकर सीरियस नहीं हैं।
इन बातों का खयाल रख कर आप सोशल मीडिया पर गलतियां करने से खुद को बचा पाएंगे।
कुल मिलाकर
सोशल मीडिया से आज किसी भी कंपनी की इमेज बन भी सकती है और बिगड़ भी सकती है। अपने ग्राहकों और कर्मचारियों को खुश रखकर और सोशल मीडिया के जरिए उनसे बात कर के आप अपने ब्रैंड की इमेज को सुधार सकते हैं। सोशल मीडिया पर आप दूसरों की जानकारी मुफ्त में भी पा सकते हैं। बदलते समय के साथ खुद को तेजी से बदलना सीखिए और सोशल मीडिया के जरिए अपने ग्राहकों की समस्या सुनने की कोशिश कीजिए।
HR चैनल का इस्तेमाल कर कर्मचारियों को खोजने के बजाय सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल कीजिए।
अपने अलग अलग सोशल मीडिया अकाउंट पर यह पोस्ट कर दीजिए कि आपको किस तरह के कर्मचारी की जरूरत है। अपने फालोवर्स से कहिए कि वे इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं। इससे आपकी कंपनी का बहुत सारा समय बच जाएगा और आपको आसानी से एक अच्छा कर्मचारी मिल जाएगा।
आप सुन रहे थे A World Gone Social by Ted Coiné and Mark Babbit
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